Lautne Tak books and stories free download online pdf in Hindi

लौटने तक - संपूर्ण

लौटने तक

मधुदीप


© COPYRIGHTS

This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.

Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.

Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.

Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.


भाग — एक

पूजा...

बराबर के कमरे से आयी अपने पति देव बाबू की आवाज पूजा को अनजान—सी लगी। पिछ्‌ले तीन महीनों में अपने लिए पति की यह पहली पुकार उसके लिए आश्चर्य थी । आश्चर्य तो उसे इस बात पर भी हुआ था कि अपने नियम के विरुद्ध कल से देव बाबू सन्ध्या को सात बजे ही घर आने लगे थे । पूजा को पिछ्‌ले तिन महीनों में एक भी ऐसा दिन याद नहीं था जब कि उसके पति रात्रि को दस बजे से पहले घर लौटे हों ।

कुछ सोचकर उसका सोया मान जाग उठा । आश्चर्य को छोड़कर उसने रूठने की सोची तो वह पति की पहली पुकार पर चुप रही ।

पूजा...

बराबर के कमरे से दोबारा आयी आवाज को वह नकार न सकी । अपने रूठने की बात भूलकर वह सोच उठी कि कहीं वे रुट न हो जाएँ ।

हाथ का काम वहीँ छोड़कर जब वह दुसरे कमरे की चौखट पर पहुँची तो देव बाबू दरवाजे की ओर पीठ किए कुर्सी में घँसे बैठे थे । उनकी —टि खिड़की की राह बाहर कहीं भटक रही थी ।

निरन्तर अपनी ओर आती पाँवो की आहट ने देव बाबू को समझा दिया कि पूजा उसके समीप आ चुकी है ।

कल रात तुमने मुझे कुछ लाने के लिए कहा था । बिना अपनी पत्नी की ओर —टि उठाए देव बाबू ने यूँ ही खिड़की से झाँकते हुए कहा ।

क्या...घ्

जो तुमने मँगाया थाए वही मैं तुम्हारे लिए ले आया हूँ ।

आश्चर्यचकित—सी पूजा चलकर अपने पति के सामने आ गयी । देव बाबू की —टि फिर भी बाहर ही भटकती रही । पूजा ने उनके चेहरे पर उभरे भावों को पढ़़ना चाहा...परन्तु वह भावशुन्य चेहरा था । पूजा कुछ अनुमान न लगा सकी कि आज उसके पति उस पर मेहरबान होकर उसके लिए क्या भेंट लाए हैं ।

क्या लाए हो...देखें तो जरा । उसने कहा । खुशी के अतिरेक में वह भूल गयी थी कि कल रात उसने अपने पति से क्या लाने के लिए कहा था ।

वह देखो... कहते हुए मेज पर रखी शीशी को संकेत करती हुई उनकी उँगली ही उठी थीए —टि नहीं।

पूजा ने मेज पर रखी उस छोटी—सी शीशी की ओर देखा जिसमें गहरे लाल रंग का कोई तरल पदार्थ भरा हुआ था ।

कोई दवा होगी... उसने सोचा...मगर उसने तो उनके किसी दवा के लिए नहीं कहा था ।

क्या है इसमेंघ् वह पूछ बेठी ।

आगे बढ़़कर देख लो । देव बाबू ने कहा ।

गहरी —टि शीशी के लेबल पर पड़ी तो आँखे फटी की फटी रह गयीं ।

जहर... होंठ बुदबुदा उठे और मस्तिक झन्ना उठा । कल रात की पूरी घटना उसकी आँखों के समक्ष घूम गयी ।

लो खाना खा लो । वह थाली में खाना लेकन अपने पति के पास आयी थी ।

रख दोए मुझे अभी भूख नहीं हैघ्

ठण्डा हो जाएगा ।

रोज भी तो ठण्डा ही खाना पड़ता है । एक दिन में क्या फर्क पड़ेगाघ्

हर रोज तो मजबूरी होती है । आप स्कूल से देर से आते हैं ।

मैं क्या जान—बूझकर देर से आता हूँघ्

स्कूल तो छः बजे ही बन्द हो जाता है मगर आप कभी दस बजे से पहले नहीं पहुँचतेघ्

दस बजे भी घर आने को मेरा दिल नहीं चाहता ।

क्यों...घ् चीख उठी थी पूजा ।

क्योंकि मुझे इस घर से नफरत है ।

घर से या मुझसेघ्

दोनों से ही । वे एक ही साँस में कह गए ।

हाथ से छूटकर थाली फर्श पर झन्ना उठी । जैसे आसमान से बिजली कड़ककर पूजा के दिल में धँस गयी हो । एक पल को वह अवाक्‌ रह गयी ।

हाँ...हाँ...मैं भी आप से तंग आ चुकी हूँ । मैंने पिछ्‌ले तीन महीनों में आपसे समझोता करने का बहुत प्रयास किया है परन्तु अब मैं थक ही नहीं गयी बल्कि टूट गयी हूँ । पिछ्‌ले तीन महीने मैंने तीन जिन्दगियों की तरह जिए हैं । इन तीन महीनों का एक—एक पल मुझे अपमानित करके गया । इस अपमान से तो मर जाना अच्छा है । बार—बार अपमान करने की अपेक्षा आप अपने हाथों से मेरा गला क्यों नहीं दबा देते । मुझे जहर ला दो...प्रतिदिन कि मौत से तो एक दिन मर जाना अच्छा है । भावावेश में कहती गयी थी पूजा परन्तु देव बाबू पर शायद कोई प्रभाव ही नहीं हुआ था ।

मरना इतना आसान नहीं है...। कुछ देर के मौन के उपरान्त देव बाबू ने कहा तो एक विषैला तीर जैसे पूजा को बींध गया था ।

क्रोध के अतिरेक ने सिसकियों पर नियन्त्रण कर लिया ।

जिन्दा रहकर ही मैं कौन—सा सुख भोग रही हूँ । स्वंय पर से नियन्त्रण जैसे हटता जा रहा था—पल—पल तड़पाकर मारने की अपेक्षा यदि आप एक बार ही मेरी जान ले लें तो यह मुझपर अहसान होगा ।

तड़पकर जिन्दा रहने की अपेक्षा मृत्यु अधिक भयावनी होती है । कितना शान्त स्वर था देव बाबू का ।

नहीं...। में इस जीवन के बोझ को और अधिक नहीं ढ़ो सकती । मैं जीना नहीं चाहती...मुझे अपने हाथों से मार डालो...मुझे जहर दे दो...। आँसुओ का बाँध टूटा तो वह फूट—फूटकर रोने लगी ।

प्रयास करूँगा की तुम्हारे लिए विष जुटा सकूँ । कहते हुए देव बाबू कुर्सी छोड़कर तेजी से बाहर निकल गए थे ।

एक पल को इस प्रहार से सन्न मस्तिक कुछ न समझ सका लेकिन धीरे—धीरे मस्तिक पर जोर दिया तो वह चिल्ला उठी रू

मुझसे मुक्ति ही पानी थी तो मुझे अपनाया क्यों थाघ् मुझसे शादी क्यों की थी...मुझसे इतना बड़ा धोखा क्यों किया तुमनेघ्

कौन सुनता उसकी बात को । देव बाबू तो बाहर जा चुके थे । देर तक बैठी सिसकती रही थी पूजा । अपने भाग्य पर आँसू बहाने के सिवा उसके वश में और कुछ भी तो नहीं था । सन्ध्या का स्थान रात्रि ने लिया—धुँधलके के स्थान पर अँधेरा छा गया परन्तु पूजा को इसका ध्यान ही कहाँ था ।

आज तीन मास के उपरान्त देव बाबू ने उसे स्वयं अपने कमरे में बुलाया था । आयी थी तो उत्सुकता से तीव्रता भी थी पाँवो में परन्तु कल रात की घटना याद करके जैसे पाँव चिपक गए थे जमीन से । वह किसी बुत की भाँती जड़ हो गयी थी । मेज पर पड़ी शीशी को घूरती आँखें जैसे स्थिर हो गयी थीं ।

उसकी चेतना लौटी । देव बाबू मेज से शीशी उठाकर उसकी तरफ बढ़ाकर कह रहे थेए लोए पी लो और पा लो मुझसे मुक्ति । हाँए इस जहर का स्वाद भी बुरा नहीं है । तुम्हें अधिक कट भी नहीं होगा और तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी ।

कहीं कुछ भी तो भाव नहीं थे देव बाबू के मुख पर । खुशीए गमए चिन्ता या घबराहट कुछ भी तो नहीं था उनकी आँखों में । कितने सहज थे वे इस समय । सदैव की भाँती गम्भीरता और —ढ़़ निश्चय की झलक उनकी आवाज में थी ।

पूजा की —टि सिर्फ एक ही स्थान पर स्थिर होकर रह गयी थी । उसकी —टि के दायरे में था वह हाथ जिसमें पकड़ी वह गहरे लाल रंग के तरल पदार्थ की शीशी उसे अपनी ओर खिंच रही थी । शीशी का आकार जैसे बढ़़ता जा रहा था । मौत का दैत्य जैसे शीशी में से उसे पुकार रहा था । भय से पसीना छलक आया उसके मुख पर । कितना प्रयास कर रही थी वह हाथ बढ़ाने का परन्तु साहस साथ छोड़ता जा रहा था ।

देव बाबू एकटक पूजा की आँखों में देख जा रहे थे । उसके मुख पर उभरते एक—एक भाव को वह गहराई से परख रहे थे ।

पूजा की आँखों की पुतलियाँ घूमीं । —टि देव बाबू की आँखों से टकराई तो उसे लगा कि जैसे वहाँ तिरस्कार के सिवा और कुछ नहीं है । घमण्ड ने साहस किया और उसने एक झटके के साथ वह शीशी देव बाबू के हाथों से छीन ली ।

शीशी छीनने के बाद भी वह इतना साहस नहीं जुटा पा रही थी कि उसका तरल पदार्थ अपने गले में उतार ले ।

अपने पति द्वारा किए गए इस अपमान ने पूजा को प्रताड़ित ही नहीं किया था अपितु भीतर गहराई तक हिला भी दिया था । कितना बड़ा अपमान था यह । उसका पति स्वयं उसे अपने हाथों से जहर दे रहा था पीने के लिए । क्या दोष था उसकाघ् वह यह भी तो नहीं जानती थी कि उसे यह किस अपराध की सजा दी जा रही है । क्रोध में कौन पत्नी अपने पति को आत्महत्या की धमकी नहीं दे देती । क्या यह उचित है कि उनके पति उन्हें आत्महत्या के लिए जहर लाकर दे देंघ्

पूजा सोच रही थी ।

यह तो अपमान की पराकाठा है । अब शेष क्या बच गया है जिसे भोगने के लिए वह जिन्दा रहे । बार—बार के इस अपमान से तो मर जाना अच्छा है । क्या वह दिन—रात अपनी लाश को अपने कन्धों पर उठाए नहीं घूम रही हैघ्

सोचते—सोचते एक निश्चय से शीशी की डाट खुली और हाथ अधरों की तरफ बढ़़ गए ।

विष को गले में उतारने से पूर्व पूजा ने एक —टि देव बाबू पर डाली । वे एकटक उसी की ओर देख रहे थे...निश्चिन्तए बिना कोई उतेजना लिए वे शान्त खड़े थे ।

क्रोध से या मौत के भय से पूजा का हाथ अधरों से हट गया । मुख पर उभरे भाव परिवर्तित होने लगे । शीशी के गहरे लाल द्रव को घूरते हुए वह सोच उठीए

आत्महत्या तो पाप है । मैं यह पाप क्यों करूँघ् मेरा अपराध क्या हैघ् क्या मेरा अपराध यह है की मैं नारी हूँघ् नारी होना कोई अपराध नहीं । मुझे सिर्फ इसलिए अपमानित किया जाता है कि मैं अपने पति...एक पुरुष का सहारा चाहती हूँ । मेरे पति शायद सोचते है कि बिना उनके सहारे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा । क्या वास्तव में ही मैं इतनी निरीह हूँघ् क्या मैं इतनी कमजोर हूँ जो किसी के सहारे के बिना जीवित ही न रह सकूँघ् नहीं...मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ । मैं स्वयं अपने पाँवों पर चल सकती हूँए मुझे सहारे के लिए किसी भी बैसाखी की आवश्यकता नहीं है ।

नहीं...मैं क्यों मरुँ...मैं मरना नहीं चाहती । मैं जिन्दा रहूँगी । सोचते—सोचते वह एकाएक चिल्ला उठी और शीशी को उसने जोर से मेज पर पटक दिया । छलक जाने के कारण कुछ तरल पदार्थ मेज पर बिखर गया ।

देव बाबू ने शीशी को सँभाल नहीं लिया होता तो वह अवश्य ही गिरकर टूट गयी होती ।

मैं जानता था पूजाए कि तुम मर नहीं सकतीं । मैंने तुम्हें कहा था कि मरना इतना आसान काम नहीं है ।

मैं क्यों मरुँ...घ् पूजा चीख उठी ।

मारना तो मैं भी तुम्हें नहीं चाहता था । इस शीशी में सिर्फ शर्बत है । कहते हुए देव बाबू ने वह शीशी मुँह से लगाकर एक साँस में ही खाली कर दी ।

पूजा ने विष नहीं पिया था परन्तु उसपर विषपान का—सा असर हुआ था । उसका पुनः अपमान हुआ था । उसे लगा जैसे उसके पति ने कपड़े उतारकर उसे नंगा कर दिया है । उसके पास कहने या करने को कुछ शेष न बचा था । तेजी से पलटकर उसने कमरा छोड़ दिया ।

देव बाबू कुछ देर यूँ ही हाथ में खाली शीशी लिए खड़े कुछ सोचते रहे और कुछ देर पश्चात्‌ मुसकराकर खाली शीशी को एक कोने में फेंकए घर से निकल गए ।

'''

भाग — दो

दीवार में लगी घड़ी ने टनटनाकर ग्यारह बजने की सूचना दी । पूजा पिछ्‌ले दो घंटो से अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थी । घंटा—भर पूर्व देव बाबू बाहर से लौटे थे और इस समय पास वाले बिस्तर पर निश्चित सो रहे थे ।

बिस्तर पर लेटी पूजा अपने स्थिति पर विचार कर रही थी । पिछ्‌ले तीन मास से उसके पति ने उसे छुआ तक नहीं था । वह जितना अधिक पति से प्रेम करने का प्रयास करतीए उनकी घृणा उतनी ही तीव्र रूप से उभरकर प्रकट होती । कितनी ही बार उसने अपने पूरे व्यवहार को स्मरण कर अपना दोष ढ़ूंढ़ने का यत्न किया था । परन्तु कहीं कोई भी सूत्र तो नहीं था जिसे घृणा का आधार माना जा सके ।

तीन महीने से लगातार फैलती आ रही इस घृणा ने दोनों को जीवन की नदी के दो किनारों पर लाकर खड़ा कर दिया था । पूजा हाथ बढ़़ाकर प्रयास करती थी कि उसका पति उसका हाथ थामकर उसे इस घृणा की नदी से उस पार खिंच ले परन्तु देव बाबू तो जैसे उसे उस नदी में धकेलने को तत्पर थे ।

मनुय का वर्तमान जब दुःख एवं असन्तोष से भरा हो तो उसे अपने सुखद अतीत की याद बड़ी भली लगती है । पूजा भी देव बाबू से व्यथित हो अपने कॉलिज—जीवन की सुनहरी स्मृतियों में खो गयी ।

अपनी सहेली रेणुका को बी. एड. में प्रवेश लेते देख उसकी भी इच्छा अध्यापिका बनने की हुई थी । जब उसने अपनी इस इच्छा तो अपने माता—पिता से समक्ष रखा तो उन्होंने भी कुछ विशेष विरोध नहीं किया । हाँए उन्होंने एक शर्त अवश्य रखी थी कि बी. एड. की ट्रेनिंग तो वे दिलवा देंगे परन्तु यदि भविय में उसके पति ने कहीं नौकरी न करवाने की इच्छा प्रकट की तो उसे उसकी इच्छा का स्वागत करना होगा । उनका कहना था की कई बार पत्नी की नौकरी करने की व्यर्थ की जिद गृहस्थी में जहर घोल देती है । पूजा ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था । यह सोचकर कि अभी कौन—सा विवाह हो रहा है । भविय की भविय में सोची जाएगी ।

बी. एड. कॉलिज में यह उसका पहला दिन था । वातावरण सेए साथियो से एवं प्राध्यापकों से अनजान वह रेणुका के साथ इधर से उधर लड़कियों से परिचय करती घूम रही थी । सह—शिक्षा होने के कारण वातावरण में रंगीनी थी । अधिक भीड़ नहीं...सिर्फ सौ ही छात्र—छात्राएँए परन्तु अभी तक लगभग आपस में सब अपरिचित । लड़के एक तरफ दो—दोए तीन—तीन के झुण्ड में खड़े बतिया रहे थेए तो लड़कियों के भी कई समूह इधर से उधर अपनी हँसी बिखेर रहे थे । अपरिचिय की भावना ने छात्र और छात्राअॉ के मध्य एक रेखा—सी खिंच दी थी । कई छात्र—छात्राअॉ के हृदय में उस रेखा को पार करने की इच्छा प्रबल थी परन्तु पहले ही दिन वे आपस में खुलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे ।

घंटी की आवाज सुनकर सभी आपस में बतियाते कॉलिज के हॉल में जाने लगे । सभी अपनी—अपनी बातों में व्यस्त थे । चेहरे खिले हुएए कहीं कुछ फिक्र नहीं...ठहाकों की जिन्दगी ।

इसी मध्य प्रिंसिपल महोदय ने हॉल में प्रवेश किया । उनके हॉल में प्रवेश करते ही सभी छात्र—छात्राएँ एक—दुसरे को देखते हुए उनके सम्मान में खड़े हो गए । प्रिंसिपल साहब धीरे—धीरे चलते हुए हॉल के मंच पर जा पहुंचेए जहाँ कई प्राध्यापक पहले ही उपस्थित थे ।

कृपया बैठ जाइए । माइक के पास आते हुए उन्होंने हाथ से संकेत कर कहा तो सभी खामोशी से बैठ गए । प्रिंसिपल महोदय ने इस खामोशी के मध्य कहना प्रारम्भ कियाए

मैं आप सबका इस कॉलिज में आने पर अभिनन्दन करता हूँ और आशा करता हूँ कि जिस उद्देश्य को लेकर आप इस संस्था में आए हैं...आप सब अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होंगे ।

तालियों की हंगडगडाइट से कुछ व्यवधान पड़ा । तदुपरान्त उन्होंने फिर कहना प्रारम्भ कियाए

हमारी पुरानी परम्परा रही है कि सत्र प्रारम्भ करने से पूर्व प्रत्येक वर्ष कॉलिज में परिचय—दिवस मनाया जाता है । कल आप सब लोग भी सत्र प्रारम्भ करने से पूर्व इसी उत्सव का आयोजन करेंगे । यह सारा कार्यक्रम छात्र—छात्राओं द्वारा ही आयोजित किया जाएगा । कुछ देर बैठकर आप सब इसकी रूप—रेखा बना लें । इस विषय में प्रोफेसर दीवान आपका मार्ग—दर्शन करेंगे । धन्यवाद ।

तालियों का शोर हॉल में उभरा और धीरे—धीरे शान्त हो गया ।

प्रिंसिपल महोदय एवं अन्य कई प्राध्यापकगण हॉल से बाहर चले गए । अब मंच पर प्रोफेसर दीवान के साथ सिर्फ दो ही प्राध्यापक रह गए थे ।

सबसे पहले उन्होंने छात्र—छात्राओं में से कल के कार्यक्रम का संचालक बनने के लिए निमंत्रण दिया ।

सभी एक—दुसरे के मुँह की तरफ देख रहे थे । सभी अपने—अपने साथियों को संकेत से संचालक पद के लिए उठकर मंच पर जाने के लिए कह रहे थे परन्तु उठने का साहस कोई नहीं कर पा रहा था ।

कुछ क्षण बाद...सफेद कुर्ते—पायजामे मेंए मध्यम कदए गेहूँआ रंग और गठीला शरीर लिए एक छात्र आत्मविश्वास के साथ उठकर मंच पर आ गया । उसी दिन प्रथम बार देखा था पूजा ने देव बाबू को ।

शाबास! बहुत अच्छी बात है । क्या नाम है आपकाघ् प्रोफेसर दीवान ने पूछा ।

मुझे देव बाबू कहते है...। आवाज में भी आत्मविश्वास की झलक थी ।

प्रोफेसर दीवान ने देव बाबू की पीठ थपथपाते हुए कहा थाए मी. देव बाबू कल के कार्यक्रम के संचालक होंगे । कल का पूर्ण कार्यक्रम किस तरह आयोजित किया जाना हैए इसका पूर्ण उत्तरदायित्व इन्हीं पर होगा । अब ये आप सबके मध्य हैं—मैं अब अपने साथियों के साथ मंच छोड़ता हूँ । मि. देवए आप कल के कार्यक्रम की रुपरेखा और टीम तैयार करके मुझसे मिल लें । आवश्यक मार्ग—दर्शन मैं आपको अवश्य दूँगा ।

इतना कहकर प्रोफेसर दीवान भी अपने साथियों के साथ मंच छोड़ गए ।

देव बाबू ने कल के कार्यक्रम के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों हेतु छात्र—छात्राओं से अपना नाम देने को कहा । कुछ लड़के—लड़कियों ने भिन्न—भिन्न कार्यक्रमों के लिए अपने नाम लिखा दिए ।

पूजा उस समय चौंकीए जब रेणुका ने खड़े होकर कल के कार्यक्रम में उसका नाम भी लिखा दिया । नाम लिखा जा चुका था । कुछ भी नहीं कर सकती थी पूजा इस समय । उठकर अपना नाम कटवाने के लिए कहती तो छात्र—छात्राएँ उसका उपहास करने से न चुकते ।

तुमने बिना पूछे मेरा नाम क्यों लिखा दियाघ् उसने बिगड़ते हुए रेणुका से कहा ।

इतना क्यों बिगड़ती हो पूजा रानी! मैंने कौन—सा शादी के कार्ड में तुम्हारा नाम लिखवा दिया है! एक गाना ही तो सुनाना पड़ेगा ।

नहींए मैं नहीं गाऊँगी ।

भगवान कला के साथ न जाने नखरे क्यों दे देता है! हँसते हुए रेणुका ने कहा ।

इसमें नखरे की क्या बात हैघ् तनिक रोष से पूजा ने कहा ।

कोई बात नहींए अभी पहला ही दिन है कॉलिज में । थोड़ा चौन करए खोज देंगे किसी नखरा उठाने वाले को भी । उन्मुक्त हँसी रेणुका ने वातावरण में बिखेर दी ।

रेणुकाए बकवास बन्द करो ।

लो साहब कर दी । सचमुच ही रेणुका ने होंठ बन्द कर हाथ जोड़ दिए परन्तु शरारत उसके मुख पर नाच रही थी ।

रेणुका की इस मुद्रा को देख पूजा भी हँसे बिना न रह सकी ।

रेणुए एक काम करेगी घ् पूजा ने अनुरोध किया ।

बोल...।

देखए मेरे नाम पर तुम गाना गा देना ।

क्योंए गधे इकट्ठे करने हैं क्या घ्

और दोनों ही अपनी हँसी न रोक सकीं । उनकी इस खिलखिलाहट से दूसरे छात्र—छात्राएँ भी उधर ही मुँह उठाए देख रहे थे । पूजा ने देखा तो झोंपकर गर्दन झुका ली परन्तु रेणुका —टियो से बेपरवाह हँसती ही रही ।

तभी देव बाबू ने कल के कार्यक्रम में भाग लेने वाले छात्र—छात्राओं को मंच पर आने के लिए कहा । कार्यक्रम में भाग लेने वाले दस—बारह छात्र—छात्राएँ अपने साथियों के साथ मंच की ओर जाने लगे तो रेणुका भी पूजा को उठाकर मंच की ओर ले चली । शेष छात्र—छात्राएँ हॉल से बाहर जा रहे थे ।

काफी देर तक कल के कार्यक्रम का अभ्यास किया जाता रहा । पूजा को मीरा का एक भजन सुनाना था । नाम तो रेणुका ने उसका लिखवा दिया था परन्तु झिझक उसका साथ ही नहीं छोड़ रही थी । उस दिन सबसे अधिक अभ्यास उसे ही करना पड़ा था । गले के माधुर्य ने देव बाबू को प्रभावित किया तो उन्होंने भी उसको काफी अभ्यास करवाया था ।

पूजा को विश्वास होता जा रहा था की अब वह कल सफलतापूर्वक कार्यक्रम में भाग ले सकेगी । देव बाबू के व्यवहार ने उसे प्रभावित किया था और जब उसकी झिझक समाप्त होती जा रही थी ।

प्रातः आप आठ बजे आ जाइए । एक अन्तिम अभ्यास और कर लिया जाएगा । देव बाबू ने उस सभी छात्र—छात्राओं से कहा और सभी मंच से उतरकर हॉल से बाहर जाने लगे ।

पूजा भी रेणुका को साथ लिए अपने घर की ओर चल पड़ी ।

'''

भाग — तीन

देव बाबू के प्रति पूजा का आकर्षण धीरे—धीरे बढ़़ता ही जा रहा था । कक्षा में बैठे—बैठे जब कभी भी वह उसकी ओर देखती तो प्रायः उसकी —टि भी अपनी ओर उठी देखकर निगाहें शर्म से झुक जातीं । कॉलिज के प्रांगण में कितनी ही बार दोनों आमने—सामने से आते हुए एक पल को ठिठककर रुक जाते थे । अधरों पर हृदय की बात आने को मचलती मगर शर्म सेए झिझक से वाणी मूक बनकर रह जाती । अधर सिर्फ काँपकर रह जाते ।

मन बार—बार एक—दूसरे से मिलने का बहाना खोजता । आँखों आपस में उलझती रहतीं । कक्षा में प्राध्यापक का भाषण चलता रहता परन्तु एक—दूसरे के ख्यालों में खोए बैठे उन दोनों को पता ही न चलता कि कक्षा में क्या पढ़़ाया जा रहा है ।

सचमुच उस दिन तो पूजा को भारी अपमान का सामना करना पड़ा था ।

पूजा कुछ इस तरह देव बाबू के ख्यालों में खोई कक्षा में बैठी थी कि उसे पता ही न चला कि कब मैडम ने कक्षा में प्रवेश करके हाजिरी लेनी प्रारम्भ कर दी ।

दो बार रोल नम्बर पुकारने पर भी जब वह नहीं सुन सकी तो पास बैठी रेणुका ने कोहनी से टोककर उसे संकेत किया था । मैडम पूजा के पड़ोस में रहने के कारण उसे व्यक्तिगत रूप से जानती थी ।

तीसरी बार जब उन्होंने पूजा का नाम लेकर पुकारा और सारी कक्षा जोर से हँसी तो जैसे उसकी चेतना लौटी । अपने चारों ओर एक उचटती—सी —टि डाल उसने खड़े होकर हडबडाहट में कहाए यस सर

पुनः हँसी का ठहाका सारी कक्षा में गूँज उठा । पूजा इतनी अधिक हडबडा गयी थी कि उसे यह भी ध्यान न रहा कि सामने मैडम है या सर ।

सॉरी! यस मैडम... उसने झेंपकर अपनी भूल सुधारते हुए कहा था ।

किसके ख्यालों में खोई बैठी होघ् पीछे बैठे हुए शरारती छात्र नरेश ने दबी हुई आवाज में व्यंग्य किया था ।

किया बात है पूजाए कक्षा में तुम्हारा ध्यान नहीं हैघ् मैडम ने पूछा ।

मैडम का प्रश्न सुनकर पूजा को खड़ा होना पड़ा था परन्तु टाँगें लज्जा और घबराहट से काँप रही थीं ।

रात—भर सो नहीं पाती होगी इसलिए दिन में नींद आ रही है । नरेश ने फिर शरारत से व्यंग्य कसा था ।

नरेशए तुम्हें लज्जा नहीं आती ऐसा बोलते हुए । उसका व्यंग्य मैडम ने सुन लिया थाए अतः उसे डाँटते हुए उन्होंने कहा था ।

मैडमए सितम्बर की परीक्षा समीप आ रही है । शायद रात देर तक पढ़़ना पड़ता हो...मैंने तो यही सोचा था ।

अपमान ओर घबराहट से पूजा गिर ही जाती यदि वह अपने स्थान पर न बैठ गयी होती ।

आप वकालत क्यों कर रहे हैंघ् मैडम ने उसपर व्यंग्य कसते हुए कहाए आपसे किसने कहा है वकालत करने को!

काश! कोई कह देता । एक दबी आवाज उभरी ।

न जाने मैडम ने सुना या नहीं लेकिन इस विवाद से बचने के लिए उन्होंने उसे आदेश दियाए बैठ जाओए फिर कभी ऐसी शरारत न करना ।

नरेश अकड़ता हुआ घमण्ड से अपने स्थान पर बैठ गयाए जैसे उसने कोई विजय प्राप्त कर ली हो ।

कक्षा का ध्यान पूजा से हटकर मैडम और नरेश की वार्ता पर केन्द्रित हो गया था । परन्तु फिर भी कक्षा में बैठी पूजा के शरीर में रह—रहकर सिहरन—सी दौड़ जाती थी ।

मैडम पढ़़ाती रही लेकिन अपने ख्यालों में खोई पूजा का ध्यान पढ़़ाई में नहीं लग सका । बह बार—बार अपना ध्यान कक्षा में खींचती मगर मन था कि कल्पना की ऊँची उडान भरकर आकाश में उड़ जाता था । स्वयं पर क्रोध भी आ रहा था पूजा को लेकिन न जाने यह कैसे आनन्द की अनुभूति थी जिसे मन छोड़ना ही नहीं चाह रहा था ।

उस दिन वह एक बार भी कक्षा में —टि उठाकर देव बाबू को न देख सकी । ह्रदय में चोर छिपा हो तो दिल यही सोचता है कि सारा संसार उसकी चोरी देख रहा है । कुछ ऐसी ही स्थिति पूजा की भी थी । —टि देव बाबू के मुख की ओर उठना चाह रही थी परन्तु मन का वह चोर जैसे उसे नियन्त्रित किए हुए था । उसे लग रहा था जैसे वह धीरे—धीरे एक जाल में फँसती जा रही है...एक रेशमी जाल मेंए जिसमें से निकलना दुकर है परन्तु फिर भी जान—बूझकर इस जाल में फँसना उसने कितना भला लग रहा था!

बड़ी बेचौनी में उस दिन पूजा ने सारी घंटीयाँ व्यतीत कीं । उसे बार—बार यही भय लग रहा था कि कहीं कोई प्राध्यापक अथवा छात्र उसकी स्थिति पर व्यंग्य न कर दे । अन्तिम घंटी समाप्त कर वह बाहर आयी तो उसे चौन आया ।

रेणुका चुपचाप पूजा के साथ—साथ चलती जा रही थी । पूजा तो जैसे आज गूँगी ही हो गई थी । उससे कुछ भी तो नहीं बोला जा रहा था ।

पूजा...। रेणुका ने उसे इतना खामोस देखा तो पुकारे बिना न रह सकी ।

हूँ... संक्षिप्त—सा उत्तर मिला ।

आज इतनी चुप क्यों होघ् क्या हुआ है तुझेघ्

कुछ नहीं । बेमन से कहा पूजा ने ।

तुम्हारी तबियत तो ठीक हैघ्

क्योंए मेरी तबियत को क्या हुआ हैघ् एक हलकी—से मुसकराहट पूजा सप्रयास अपने मुख पर ले आई ।

यह खामोश—सा चेहराए बिखरे—बिखरे—से उड़ते बाल और किसी गहरी सोच में डूबी हुई तुम्हारी ये आँखें । ऐसा लगता है...।

कैसा लगता हैघ् न जाने कैसे पूजा के मुँह से निकल गया । कह तो गयी थी वह परन्तु मन काँप उठा था कि कहीं चोर पकड़ी न जाए ।

मुझे लगता हैए तुम बीमार हो ।

रेणुका ने कहा तो जैसे पूजा की रुकी हुई साँस पुनः चलने लगी । वह आशंकित थी कि न जाने रेणुका क्या कह दे ।

हाँ...मेरे सिर में दर्द है । बात को समाप्त—सी करते हुए पूजा ने कहा । वह व्यर्थ ही किसी विवाद में नहीं फँसना चाहती थी ।

सिरदर्द है या कुछ और...घ् रेणुका उसपर चोट करने से चकी नहीं ।

तुम जो भी समझो । पूजा के स्वर में झुंझलाहट—सी थी ।

दवा चाहिएघ् पूजा के मुख पर —टि जमाते हुए रेणुका ने कहा ।

ले लूँगी ।

कौन—से डॉक्टर सेघ्

एक ही डॉक्टर अच्छा होता है ।

अच्छा! उसने मुसकराकर बात समाप्त करनी चाही थी मगर रेणुका कहाँ चुप होने वाली थी ।

मेरी सहायता चाहिएघ् रेणुका के स्वर में शरारत झलक रही थी ।

किसलिएघ् पूजा पूछ उठी ।

तुम्हें डॉक्टर तक पहुँचाने के लिए...या फिर डॉक्टर साहब को तुम तक लाने के लिए । रेणुका ने शोखी से कहा ।

मुझे कोई डॉक्टर नहीं चाहिए । पूजा के स्वर में बनावटी क्रोध साफ झलक रहा था ।

क्रोध न कर मेरी रानी! गुस्सा करने से सिरदर्द और अधिक बढ़़ जाता है ।

बड़ी आई डॉक्टरनी! कहते हुए पूजा ने उसके दायें बाजू पर चुटकी कटी तो रेणुका अपनी हलकी—से चीख पर काबू न रख सकी । हँसते हुए उसने अपना हाथ छुड़ाया और एक पल को खामोश—से हो गयी ।

दोनों कैंटीन के सामने से गुजर रही थीं ।

चाय पिओगी पूजाघ् रेणुका ने कहा ।

हूँ...। इतना ही कह सकी पूजा ।

आओए तुम्हारे सिर में दर्द भी है । एक प्याला चाय पि लोए नहीं तो रास्ते में किसी से टकरा जाओगी । फिर वही चपलता लौट आयी थी रेणुका के स्वर में ।

बिना कुछ कहे पूजा उसके साथ कैंटीन में जाकर बैठ गयी । कॉलिज की छुट्टी हो चुकी थी इसलिए वहाँ अधिक भीड़ नहीं थी । अधिकतर सीटें खली पड़ी थीं ।

पूजाए आज तुम्हें क्या हो गया थाघ्

कबघ्

मैडम की घंटी में ।

झपकी आ गयी होगी । मुसकराहट—भरा किसी तीसरे का स्वर सुनकर दोनों चौंके बिना न रह सकीं । पीछे मुड़कर देखा तो सामने देव बाबू खड़ा मुस्करा रहा था ।

कैंटीन में प्रवेश करते—करते देव बाबू ने उन दोनों की बात सुनकर मुस्कराते हुए कह दिया था ।

आइए देव बाबू । रेणुका ने उसे निमंत्रण दिया ।

मुसकराते हुए वह उन दोनों के पास रखी हुई कुर्सी पर बैठ गया ।

आप चाय लेंगेघ् रेणुका ने ही पूछा । पूजा की तो जैसे आवाज ही छिन गयी थी ।

कॉफी तो यहाँ मिलती नहींय स्पट है चाय लूँगा । मुसकराकर एक —टि पूजा को देखते हुए उसने कहा ।

कुछ देर को उस मेज पर खामोशी—सी छायी रही । न जाने क्यों देव बाबू को अपने समक्ष पाकर पूजा कुछ घबरा—सी गयी थी । ऐसा पहली बार ही तो नहीं हुआ था । इससे पहले भी तो यह स्थिति कई बार उत्पन्न हो चुकी थी । देव बाबू से मिलनेए उनसे बातें करने का वह बहाना तलाश करती रहती मगर जब कभी बात करने का अवसर मिलता तो घबराकर इधर—उधर देखने के सिवा वह कुछ भी न कर पाती । मन में उठे विचार अनकहे ही समाप्त हो जाते और आँखें लज्जा से झुककर रह जातीं ।

पूजा जी... देव बाबू की आवाज सुनकर पूजा की —टि उसकी ओर उठ गयी ।

यदि आप अन्यथा न लें तो एक बात पूछूँघ्

सुनकर घबराहट से एक बार पूजा काँप उठी । मन का चोर फिर उभर गया । न जाने देव बाबू क्या पूछ बैठेंघ् मन आशंकित था परन्तु फिर भी औपचारिकता से उसे कहना ही पड़ाए पूछिए ।

कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ की आप बहुत उदास—उदास—सी रहने लगी हैं । प्रारंम्भ में जब मैंने आपको देखा तो आपका चेहरा इतना गम्भीर न था । एक मुसकराहट रहती थी इस चेहरे पर । क्या कोई ऐसी पारिवारिक समस्या हैघ् अथवा आपका स्वास्थय ठीक नहीं हैघ्

जी नहींए ऐसी तो कोई बात नहीं है ।

तो फिर क्या बात है ।

कितना अपनत्व—सा लगा था पूजा को उस शब्दों में ।

कोई बात नहीं है देव बाबू । आपको ऐसे ही लगता है । इसके सिवाय वह कहती भी क्याघ् कहना तो चाहती थी अपने मन का हाल परन्तु दिल की बात कभी इस तरह तो नहीं कही जा सकती । बीमार करने वाला स्वयं रोगी से पूछे कि उसे क्या बीमारी है...इससे बढ़़कर और क्या बीमारी हो सकती है! सोचकर पूजा के अधरों में मुसकराहट उभर आयी थीं ।

आप ही कोई डॉक्टर बताइए ना देव बाबू । अब तक चुप बैठी रेणुका अब और चुप न रह सकी ।

पूजा का मन फिर आशंका से धड़क उठा ।

किस बीमारी की लिएघ् क्या पूजा सचमुच बीमार हैघ् देव बाबू की आवाज में आश्चर्य था ।

बताना पूजाए तुम्हें क्या बीमारी हैघ् पूजा की तरफ देखते हुए उसी शरारत—भरे स्वर में रेणुका ने कहा ।

में क्या बताऊँ! उसकी शरारत पर पूजा भी एक बार मुसकराए बिना न रह सकी ।

तो मैं ही बताती हूँ देव बाबू । लगता है इन्हें दिल का...

मन के किसी कोने में खुशी तो हुई लेकिन क्रोध भी आया पूजा को रेणुका पर और उसने उसका पाँव अपने पाँव से कुचल दिया ।

क्योंए इसमें झूठ क्या हैघ् सच तो...

हाँ । सच तो यह है कि मुझे दिल का दौरा पड़ता है और एक दिन मैं मर जाउंगी । पूजा जानती थी कि बहुत चंचल है रेणुका । न जाने वह क्या कह देगीए इसलिए उसकी बात को काटकर एक हल्की—से हँसी से बात को समाप्त कर दिया उसने ।

देव बाबू कभी पूजा को और कभी रेणुका को देख रहा था ।

बुरा न मानिए देव बाबूए रेणुका को कुछ अधिक ही बोलने ही आदत है । पूजा ने कहा ।

हम तो चुप होने की भी फीस लेते हैं । वही चंचल स्वर था रेणुका का ।

बोल क्या फीस लेगीघ् पूजा ने भी हँसी—हँसी में बात को मोड़ देने के लिए कहा ।

पहले वचन दो ।

दिया । हँसकर हाथ रेणुका के हाथ पर रख दिया पूजा ने ।

देखिए देव बाबू! आपके सामने वचन दिया है पूजा ने । रेणुका ने गवाही के लिए देव बाबू को भी बीच में घसीट लिया ।

जी हाँए समय आने पर मैं गवाही दे दूँगा । रेणुका की चंचलता पर देव बाबू को भी अपनी हँसी रोकनी कठिन लग रही थी ।

ठीक हैए हम भी समय आने पर अपना वचन माँग लेंगे । अपने वचन के अनुसार अब मैं मुँह नहीं खोलूँगी ।

तो फिर चाय कैसे पिओगीघ् देव बाबू ने कहा तो पूजा हँसे बिना न रह सकी मगर रेणुका अपने होंठों पर खामोशी ला चुकी थी ।

कैंटीन का नौकर आया और चाय के प्याले रखकर चला गया । मेज पर छायी उस खामोशी के मध्य तीनों चाय के घूँट भरने लगे ।

'''

भाग — चार

सितम्बर में परीक्षाओं के उपरान्त कॉलिज में खेल—प्रतियोगिताएँ प्रारम्भ हो गयी थीं । अपने बी. ए. तक के कॉलिज—जीवन में पूजा ने बहुत अच्छा बैडमिंटन खेला था । इस बार भी अपनी विजय का —ढ़़ विश्वास लिए उसने अपना नाम प्रतियोगिता में दे दिया था ।

छात्र एवं छात्राओं की अलग—अलग वर्ग में प्रतियोगिता हो रही थी । अपने वर्ग में सभी लड़कियों में पूजा प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी थी । अब उसका मुकाबला छात्र वर्ग में प्रथम विजेता देव बाबू से होना था ।

प्रतियोगिता के मध्य वह देव बाबू का तेज—तर्रार एवं कलात्मक बैडमिंटन देख चुकी थी । उसे प्रारम्भ से ही इस बात की आशंका थीए उसकी फाइनल में अन्तिम भिड़न्त देव बाबू से ही होगी ।

पूजा ने हाथ में रैकट लिए जब हॉल में प्रवेश किया तो देव बाबू जाल के पास खड़ा अपने किसी साथी से बातें कर रहा था । निर्णायक महोदय एक तरफ खड़े उसके आने की प्रतीक्षा कर रहे थे ।

एक पल को पूजा की —टि देव बाबू पर जमकर रह गयी । सफेद कपड़ो में वे बड़े स्मार्ट लग रहे थे । देव बाबू का ध्यान भी सामने कोर्ट में खड़ी पूजा पर गया तो हँसी उसके अधरों पर बिखर गयी । लुभा गयी पूजा को वह हँसी और एक पल को तो वह भूल ही गयी कि वह वहाँ देव बाबू से बैडमिंटन के मुकाबले के लिए आयी है ।

आइए पूजा जी । नेट के बीच आते हुए देव बाबू ने उसे पुकारा । धीरे—धीरे चलती हुई पूजा जब उसके पास पहुँची तो देव बाबू ने मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़़ा दिया ।

विजय तो आपकी ही होगी । कहते हुए पूजा ने भी उस बढ़़े हुए हाथ पर हौले से अपना हाथ रख दिया ।

नहीं पूजा जीए इसकी भवियवाणी हम नहीं कर सकते । मुसकराते हुए देव बाबू ने कहा ।

निर्णायक ने सिटी बजाकर खेल प्रारम्भ करने का संकेत किया । सभी लड़कियाँ पूजा की तरफ खड़ी थीं । सामने देव बाबू की तरफ खड़े सभी छात्र दबी आवाज में उनपर व्यंग्य कस रहे थे ।

पूजा ने सर्विस की और खेल प्रारम्भ हो गया । सारा हॉल तालियों की गडगडाहट और कहकहों से गूँजने लगा ।

खेल तेजी की ओर बढ़़ता जा रहा था । धीरे—धीरे पूजा भूलती जा रही थी कि उसका मुकाबला देव बाबू से है । खेल में विजयी होने की प्रबल भावना उसके खेल में चुस्ती ला रही थी । देव बाबू भी अपने मँजे हुए खेल तक पहुँचने में लगा था परन्तु फिर भी उसके खेल में पहले जैसे तेजी नहीं आ पायी थी ।

कभी पूजा अंकों में आगे तो कभी देव बाबू आगे । इसीके साथ कभी लड़कियों का स्वर तेज तो कभी लड़कों के समूह से उठती आवाज में तेजी । दोनों ही पक्षों के समर्थक अपनी बुलन्द आवाज से खिलाड़ियों में जोश भर रहे थे ।

अन्तिम अंक के लिए संधर्ष चल रहा था । दोनों के समान अंक थे । दोनों ही तरफ से इस अंक हेतु जी—तोड़ प्रयास किया हा रहा था । कभी सर्विस इस हाथ में तो कभी दूसरे हाथ में । सभी छात्र और छात्राएँ साँस रोके अन्तिम अंक की प्रतीक्षा कर रहे थे । अन्त में यह अंक पूजा को मिला तो लड़कियों का स्वर लड़कों पर भारी हो गया ।

जूस पीने के उपरान्त दूसरी पारी का खेल आरम्भ हुआ । दोनों के कोर्ट बदल गए थे और इसीके साथ ही लड़के और लड़कियों ने भी अपना स्थान—परिवर्तन कर लिया था ।

देव बाबू के खेल की कला धीरे—धीरे निखरती जा रही थी । उसकी चुस्ती और तेजी के सामने पूजा का उत्साह मंद पड़ता जा रहा था । उसके एक—एक तेज शॉट को सम्भालना उसके लिए कठिन होता जा रहा था । एक—एक कर अंक पूजा के हाथों से फिसलते जा रहे थे । पूजा को लग रहा था जैसे वह इस बार एक भी अंक न बना पाएगी । वह तो पहली पारी जीतकर विजय की आशा कर बैठी थी परन्तु अब उसे लग रहा था कि उसने व्यर्थ ही विजय का भ्रम बना लिया था ।

दूसरी पारी में पूजा सिर्फ पाँच अंक ही बना पायी । बड़ी बुरी तरह मुँह की खानी पड़ी थी उसे इस पारी में । सारा उत्साह मंद पड़ गया था । विजयी होने की तो सोचना ही दूरए वह तो तीसरी पारी खेलने का साहस भी नहीं जुटा पा रही थी ।

अन्तिम पारी तो खेली जानी ही थी । पूजा चाहकर भी उससे मना नहीं कर सकती थी । देव बाबू मंद—मंद हँसताए रैकट को एक हाथ से दुसरे हाथ में उछालताए धीरे—धीरे अपने कोर्ट में टहल रहा था । सभी छात्रों को देव बाबू की विजय का विश्वास हो गया था । छात्राओं के समूह में खामोशी—सी छा गयी थी ।

पूजा तीसरी पारी खेलने के लिए स्वयं को तैयार कर ही रही थी की निर्णायक की सिटी ने खेल आरम्भ किए जाने का संकेत किया ।

एक बार फिर पूजा में किसी तरह खेल में विजयी होने की भावना ने जोर पकड़ा तो वह तेजी से जुट गयी । परन्तु देव बाबू के सामने उसकी एक नहीं चल पा रही थी । प्रथम छः अंकों में वह सिर्फ दो ही अंक जुटा पायी । कोर्ट से बाहर खड़े लड़के पूजा पर और उसके पक्ष में खड़ी लड़कियों पर हँसते हुए व्यंग्य करने लगे । उनके व्यंग्यो से उसका शेष बचा साहस भी टूट रहा था । वह सोच रही थी कि किसी तरह शीध्रता से खेल समाप्त हो और वह वहाँ से कहीं भाग जाए ।

एकाएक ही खेल बदलने लगा । पूजा के अंकों की संख्या तेजी से बढ़़ने लगी । न जान क्या हो गया था देव बाबू को । उसका खेल स्थिर—सा हो गया था । उसकी वह तेजी न जाने कहाँ लुप्त हो गयी थी । वह खेल में तेजी से पिछड़ने लगा था । लड़कियों का दबा हुआ जोश—शोर पुनः उभरने लगा ।

पूजा के बारह अंक बनने तक देव बाबू अपने छः अंकों में सिर्फ एक अंक ही और जोड़ पाया था । पूजा चकित थी । खेल देखने वाले सोच रहे थे कि यह खेल एकाएक पलट कैसे गया है ।

सहसा पूजा को लगा जैसे देव बाबू स्वेच्छा से ही खेल में पिछड़ता जा रहा है । न जाने किस भावना से वह पूजा को विजयी कराने का प्रयास करने लगा था ।

प्रतियोगिता की भावना समाप्त होकर पूजा के हृदय में भी समर्पण की भावना उभर आयी । कोई यदि जान—बूझकर हारे तो जितने की कोई खुशी नहीं रह जाती । विजय की इच्छा समाप्त हो गयी और वह भी हारने का प्रयास करने लगी ।

खेल जैसे बच्चों का खेल बनकर रह गया । साधारण से तेज शॉट को दोनों में से कोई खेलने का प्रयास नहीं कर रहा था । दर्शक खेल की नीरसता पर झुँझला रहे थे ।

दोनों ने ही हारना चाहा परन्तु पूजा हार न सकी । वह विजयी घोषित कर दी गयी थी परन्तु उसे अनुभव हो रहा था कि देव बाबू ने उसे हरा दिया है ।

स्साला चिड़िया फँसाने के चक्कर में जान—बूझकर हर गया । देव बाबू पर उसके एक साथी द्वारा कसा गया व्यंग्य पूजा से भी अनसुना नहीं रह गया था ।

लड़कियों के मध्य घिरी पूजा बधाइयाँ स्वीकार कर रही थी परन्तु उसे लग रहा था जैसे यह सब कुछ सिर्फ औपचारिकता—मात्र हो अन्यथा तो वह हार गयी थी । वह खुश नहीं थी इस विजय सेए परन्तु बधाई देने वाले उसकी मनःस्थिति कहाँ देख सकते थे ।

कॉलिज का अवकाश हुआ । बैडमिंटन की फाइनल प्रतियोगिता में पूजा विजयी हो चुकी थी । छात्र—छात्राएँ घर लौटने लगे । रेणुका ने पूजा से भी घर चलने के लिए कहा परन्तु पूजा के हृदय में देव बाबू से मिलने की बलवती इच्छा ने इसे स्वीकार न किया तो रेणुका अकेली ही घर की तरफ चली गयी ।

छात्र—छात्राओं से छुपती—सी पूजा किसी तरह स्वंय को देव बाबू के समीप लाना चाह रही थी । देव बाबू अकेला न था । पूजा को बड़ी झुंझलाहट—सी हो रही थी देव बाबू के उन साथियों पर जो उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे ।

धीरे—धीरे पाँव बढ़़ाती हुई वह देव बाबू के समीप से निकल गयी । कुछ आगे निकल उसने पीछे मुड़कर देखा तो देव बाबू अपने साथियों से बातें करते हुए भी बार—बार उसीकी ओर देख रहा था । उसके पाँव तेजी से कॉलिज के पीछे वाले बाग की तरफ बढ़़ गए ।

आम के भारी तने से अपनी पीठ टीकाए वह देव बाबू की प्रतीक्षा कर रही थी ।

बधाई हो पूजा जी । पास आते हुए देव बाबू ने कहा तो पूजा की —टि उस ओर घूमी ।

किस बात कीघ्

आज के खेल में विजयी होने की । मुसकराते हुए देव बाबू ने कहा ।

लेकिन मुझे तो कोई खुशी नहीं है ।

क्योंघ्

में जानती हूँ देव बाबू! आप जान—बूझकर हारे हैं । —टि झुकाते हुए पूजा ने कहा ।

जान—बूझकर भी कोई हारता हैघ्

हाँए देव बाबू हारता है । मैंने भी हारना चाहा था मगर असफल रही । जब मैंने जितना चाहा तो आपने जितने नहीं दिया । और हारने की इच्छा करने पर हारने भी नहीं दिया ।

पूजा जी...।

हाँ देव बाबू आपको अपनी हार पर जितनी खुशी है उतनी मुझे अपनी जित पर भी नहीं है । आपने तो एक खेल में ही मुझे दो बार हराया है—वास्तव में बधाई के पात्र तो आप हैं ।

आप ऐसा न सोचें पूजा जी । हार—जित से क्या अन्तर पड़ता हैघ् कल हमारा डिग्री कॉलिज के छात्रों से क्रिकेट का मैच हैए आप देखने आइए ।

आज की भाँती तो नहीं खेलोगेघ् मुसकराकर पूजा ने व्यंग्य किया ।

विपक्ष में आप होतीं तो शायद! प्रत्युतर में देव बाबू भी मुसकरा दिया ।

कहीं कल भी मुझे मैदान में देखकर...

प्रेरणा और उत्साह मिलेगा । आप आवश्य आएँ । बिच में ही देव बाबू ने कहा और पूजा इस आग्रह को टाल न सकी । गर्दन हिलाकर उसने स्वीकृति दे दी ।

पूजा जिस आम के वृक्ष से पीठ टीकाए थी देव बाबू भी उसीका हाथ से सहारा लिए खड़ा अब तक उससे बातें कर रहा था । अनजाने ही पूजा का आँचल उसकी हथेली के निचे दब गया था ।

अब मुझे जाने दो देव बाबू । पूजा ने कहा ।

रोकता कौन है । देव बाबू की —टि अपनी उस हथेली पर केन्द्रित हो गयी जिसके नीचे पूजा का आँचल दबा हुआ था ।

दो कदम पूजा ने आगे बढ़़ाने चाहे मगर खिंचकर फिर वहीँ आ गयी ।

ऐसे भी कोई जा सकता है! होंठ बन्द थे उसके मगर आँखें जैसे बोल रही थीं । —टि घुमाकर चारों ओर देखा...बाग में दूर तक कोई न था । हृदय तेजी से धड़कने लगा । अपने दोनों हाथों को वक्ष पर दबाएय वृक्ष का सहारा लेए वह अपनी धडकनों पर नियन्त्रण पाने का प्रयास कर रही थी ।

जाने दो देव बाबू! दबे शब्दों में पूजा ने जाने की स्वीकृति अवश्य माँगी थी लेकिन वहाँ से हिलने की उसकी भी इच्छा नहीं हो रही थी । जड़ हो गई थी जैसे वह वहीँ ।

मन नहीं चाहता पूजा जी । कुछ देर इसी तरह खड़े बातें करते रहें...यही दिल करता है । आँखें आँखों में झाँकने लगीं ।

पता ही न चल सका पूजा को कि कब वृक्ष से फिसलकर उसकी उँगलियाँ देव बाबू के हाथ में उलझ गयीं । धडकनें जैसे रुकने को ही हो गयीं । —टि मिलना कठिन हो रहा था । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तूफान आने वाला हो । साँसों की तेज आवाज बढ़़ती ही जा रही थी ।

पूजा जी...

ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्

जाइए...

पूजा कुछ न बोल सकी और खामोशी से —टि वहाँ से चल दी । ख्यालों में खोई किस तरह वह घर पहुँचीए इसका उसे ध्यान न था ।

'''

भाग — पाँच

रात आधी से अधिक व्यतीत हो चुकी थी । पूजा निंद्रा एवं अनिद्रा के मध्य झूलती अपने अतीत में खोई थी । सहसा उसे लगाए जैसे कोई धीरे—धीरे उसके बालों को सहला रहा है । एक पल को तो उसे लगा जैसे यह भी अतीत की ही कोई सुनहरी याद है परन्तु पुनरावृति पर उसका यह भ्रम टूटा ।

कौन हो सकता हैघ् उसने सोचा ।

स्वप्न का भ्रम समाप्त करने के लिए उसने चुपचाप अपने हाथ पर चिकोटी काटकर देखी । यह सपना नहीं था । वह जाग रही थी...सिर्फ आँखें ही बन्द थीं उसकी ।

वह स्वयं पर विश्वास भी तो नहीं कर पा रही थी । करती भी तो कैसेघ् देव बाबू के अतिरिक्त उस कमरे में किसी दूसरे के होने की सम्भावना ही नहीं थी और देव बाबू...! जो प्रतिक्षण उससे घृणा करते हैंए उसने देखना भी पसन्द नहीं करतेए उसके लिए जहर ला लकते हैंए कैसे रात्रि के गहन अन्धकार में प्यार से उसके बाल सहला सकते हैंघ्

पूजा का मन हुआ कि वह आँखें ही न खोले । यदि यह भ्रम भी था तो वह इस भ्रम को समाप्त नहीं करना चाहती थी । उसे भय था कि यदि यह वास्तविकता है तो देव बाबू उसके आँखें खोलने पर फिर अपना वही रूप धारण कर लेंगे ।

उत्सुकता ने जोर पकड़ा और वह आँखें बन्द किए न रह सकी । धीरे—धीरे आँखें खोलते हुए अधखुली आँखों से उसने जो कुछ देखा उससे वह चकित रह गयी । कमरे में नाइट—लैम्प का मद्धिम—सा प्रकाश फैला हुआ था । सामने देव बाबू कुर्सी में घँसे बैठेए किसी गहरी चिन्ता में डूबेय —टि झुकाए धीरे—धीरे उसके बालों का सहला रहे थे ।

इसे भ्रम भी समझती तो कैसेघ् यह सब कुछ जो पूजा की आँखों के समक्ष थाए उसे वह झुठलाती भी तो कैसेघ् हृदय इस सच्चाई को स्वीकार करने की गवाही नहीं दे रहा था और प्रत्यक्ष को वह झुठला भी नहीं सकती थी ।

कुर्सी में घँसे देव बाबू! अपने में गहरी पीड़ा समोएए उनकी झुकी हुई आँखें और प्यार से पूजा के बाल सहलाते उनके हाथ! तभी पूजा ने देखा—उनकी आँखों से दो बूँद आँसू लुढ़़ककर उनकी गोद में गिरे तो फिर जैसे बाँध—सा टूट गया । कोई आवाज नहीं थी उस रुदन मेंए सिर्फ अविरल बहते आँसू ।

देखकर एक चोट—सी लगी पूजा के मन पर । वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि उसका पति इतना संतप्त है । उनके आँसू बहाने की बात भी उसकी कल्पना से परे थी । वह तो समझती थी कि देव बाबू शायद पत्थर हो गए हैं जो किसी प्रकार की कोई भावना नहीं रखता ।

एक पति...जो अपनी पत्नी से प्रत्यक्ष में इतनी घृणा करता है कि उसकी आत्महत्या की धमकी पर उसके लिए सहज ही विष का प्रबन्ध करने का आश्वासन देए वह रात के अन्धकार में उसके सिरहाने बैठकर आँसू क्यों बहा रहा हैघ् प्यार से उसके बालों को क्यों सहला रहा है घ् पूजा के लिए पहेली—सी बन गयी थी ।

आँखें स्वतः ही पुनः बन्द हो गई और वह सोचने लगीए क्या दुख हो सकता है इन्हें जो अकेले में ही आँसू बहा रहे हैंघ् ऐसी कौन—सी पीड़ा है जो ये अपनी पत्नी से भी नहीं बाँट सकते । आँखें बगैर पीड़ा के कभी आँसू नहीं बहातीं और फिर इन आँसुओ पर तो शंका करना भी व्यर्थ था । देव बाबू किसीको महसूस कराने के लिए नहीं रो रहे थे अपितु यह तो वास्तव में उनके हृदय को कोई पीड़ा थी जो एकान्त में आँखों की राह बह निकली थी ।

उसका मस्तिक किसी निर्णय पर न पहुँच सका कि क्यों उसके पति इस प्रकार पीड़ा में डूबे अनजाने ही प्यार कर रहे हैंघ् यह बात तो स्वीकार नहीं की जा सकती थी कि वह चेतनावस्था में अपनी पत्नी से प्यार करें । पिछ्‌ले तीन महीनों से तो वह एक पल प्यार पाने को तरस गयी थी । प्यार की चाहना करने पर उसे घृणा ही मिल पाती थी ।

वह कुछ न समझ सकी और आँखें बन्द किए लेटी रही । यह असीम सुख जो इतने दिनों बाद अनजाने में उसे मिल गया थाए वह कैसे छोड़ देतीघ् आत्मसुख से शरीर शिथिल होता जा रहा था ।

एकाएक ही वह सुख समाप्त हो गया । सुराही से गिलास में पानी उड़ेले जाने की आवाज से पूजा की आँखें खुलीं ।

एक झटके के साथ पूजा ने बिस्तर छोड़कर सुराही अपने हाथों में ले ली । गिलास अभी आधा ही भर पाया था । प्यार से विह्रल जब उसने उनके हाथ से भरने के लिए गिलास लेना चाहा तो दोनों की आँखें टकरा गयीं ।

पूजा एक बार फिर चौंकी । कहाँ थी उनकी आँखों में वह पीड़ा और कहाँ खो गया था प्यारघ् अब तो वहाँ क्रोध के सिवा और कुछ न था ।

लाइएए पानी मैं पिला देती हूँ । गिलास को लेने का प्रयास करते हुए पूजा ने कहा ।

नहीं...अभी मेरे हाथ नहीं टूटे हैं । फिर एक थप्पड़—सा मारा उन्होंने पूजा के मुख पर और सुराही हाथों से छीन ली ।

एक वज्र प्रहार—सा हुआ पूजा के हृदय पर । बुझी—बुझी आँखों से खड़ी वह उसे देखती रही । पीड़ा से सना धुआँ न जाने मन के किस कोने से उभरने लगा था । फैलते धुएँ ने आँखों के समक्ष जैसे अँधेरा—सा कर दिया था ।

कोई और प्रयास करना व्यर्थ था । पूजा जानती थी कि जितना ही वह उनके समीप होना चाहेगीए घृणा उतनी ही तेजी से भड़क उठेगी । कोई और प्रहार सहने का साहस अब नहीं रह गया था उसमें । हृदय में उभरी विवशता की पीड़ा को किसी तरह दबाने का प्रयास करती हुई वह पलंग पर बैठ गयी ।

देव बाबू फिर कुर्सी में ही आ बैठे । आज की रात नींद शायद उनसे दूर हो चुकी थी ।

पीड़ा तो पीती हुई पूजा किसी तरह अपनी आँखों को मूँद पलंग पर लेट ही गयी ।

चिन्ता में डूबाए आँसुओ में भीगा पति का मुख फिर उसकी मूँदी हुई आँखों के समक्ष आकर टंग गया । अपमान को भूल फिर एक दर्द उभरा पूजा के हृदय में—अपने पति की पीड़ा के प्रति दर्द ।

दुसरे पलंग के चरमराने से पूजा ने अनुमान लगाया की उसके पति कुर्सी छोड़कर सोने के लिए पलंग पर आ गए हैं ।

आप अभी तक नहीं सोएघ् पूजा ने उनकी पीड़ा को किसी तरह कुरेदने का प्रयास किया ।

क्योंए सोने पर भी कोई प्रतिबन्ध लगा हैघ् देव बाबू के शब्दों में गहराई तक अपेक्षा झलकी ।

बचना चाहा था पूजा ने अपमान के इस दुसरे प्रहार से परन्तु अपनी भावुकता—भरी भूल के कारण बच न सकी । कहीं तीसरा प्रहार उसे तोड़ ही न जाए सोचकर वह खामोश हो गयी ।

पूजा को क्रोध आ रहा था अपनी विवशता पर । उसके हृदय में एक तूफान—साए धूआँ—सा उठने लगा । उसका दम जैसे वहाँ घुटने लगा था । आँसू बह निकले और हिचकियों की आवाज कमरे के मौन तो भंग करने लगी । स्वयं पर से जैसे उसका नियन्त्रण समाप्त हो गया था ।

कुछ देर वह उसी तरह पड़ी सुबकती रही । कमरे का मौन भंग होता रहा । न जाने कैसी आशा थी उसकीए एक चाह...एक कामनाए कि उसके पति बिस्तर पर आएँगे...उसके आँसू पोंछेंगे...उससे प्यार करेंगे...उसे अपनी बाँहों में भर गले से लगा लेंगे...उसके होंठों को अपना समझेंगे...और सब कुछ...तृप्त हो जाएगी वह! उसे व्यर्थ का विश्वास था कि आँखों से बहा दर्द व्यर्थ नहीं जाएगा ।

तुम रो रही हो पूजाघ् देव बाबू ने कहा तो उसे लगा जैसे उसकी कामना पूरी हो जाएगी । बहुत मीठा लगा था उसके कानों को पति का यह कहना । कुछ रोमांचित—सी हो उठी थी वह । प्यार के इस झूठे आलम्बन से हिचकियों का वेग कुछ अधिक ही बढ़़ गया ।

बोलो पूजाए किसलिए रो रही होघ्

मेरे रोने से आपको क्या अन्तर पड़ता हैघ् कुछ रुठते हुए कहा पूजा ने ।

पड़ता है...बहुत अन्तर पड़ता है ।

क्या...घ् पूजा को लगा जैसे मंजिल समीप आती जा रही है ।

तुम्हारे रोने से मेरी नींद भंग हो जाती है । एक तो काम ही अधिकता के कारण दिन—भर चौन नहीं मिलताए दूसरा तुम रात्रि को चौन से सोने भी नहीं देती! वही सपाट स्वर था उनका ।

मेरे न रोने से आपको नींद आती हैघ् एक व्यंग्य किया था पूजा ने उनपर । उसे लगा था जैसे मंजिल पास आकर भी खो गयी थी और वह प्यासी की प्यासी ही रह गयी थी ।

मुझसे बहस मत करो । यदि तुम रोना ही चाहती हो तो मैं अपना बिस्तर बाहर लगा लेता हूँ ।

मुँह में साड़ी का पल्लू ठूँस बड़ी कठिनाई से रोका था उसने अपनी रुलाई को । उसने क्या पाना चाहा था और उसे क्या मिला था! चकित थी वह...कहीं उसके पति बहुरुपिए तो नहींघ् क्या उनका पीड़ा से सना चेहरा और आँसुओ से भीगी आँखें मात्र आँखों का एक धोखा थाघ् कैसे स्वीकार कर लेती वह की उसके पति का उसके बालों को प्यार से सहलाना एक स्वप्न था ।

इसके पश्चात्‌ कोई कुछ न बोला । दोनों की आँखों से ही नींद समाप्त हो चुकी थी परन्तु दोनों ही पलकें मूंदे सोने का उपक्रम कर रहे थे ।

कमरे में फैलते सन्नाटे ने एक बार फिर पूजा को उसके अतीत में लौटा दिया ।

'''

भाग — छः

दिसम्बर का महिना था...शरदावकाश होने वाला था । इन छुट्टियों में कॉलिज की ओर से छात्र—छात्राओं का एक समूह स्नोफाल देखने के लिए शिमला जा रहा था ।

अन्य छात्र—छात्राओं के साथ रेणुका ने भी इस भ्रमण के लिए अपना नाम लिखाकर एक निश्चित राशी जमा करवा दी थी । जाने की इच्छा तो पूजा की भी थी परन्तु वह अभी तक अपने घर से स्वीकृति प्राप्त करने का साहस नहीं जुटा पाई थी ।

उस दिन वह कॉलिज के पीरियड समाप्त करके रेणुका के साथ घर जाने के लिए कॉलिज के दरवाजे से निकल ही रही थी कि दूसरी ओर से आते देव बाबू ने उन्हें पुकारा तो दोनों ठिठककर रुक गयीं ।

पूजा जीए आप शिमला—भ्रमण के लिए नहीं चल रही हैं क्याघ् पास आकर देव बाबू ने पूजा से पूछा था ।

मैं नहीं जा सकूँगी । उसने अपनी अप्सट—सी असमर्थता प्रकट की ।

क्यों...घ्

शायद मम्मी मना कर दें...।

मम्मी से पूछा है...घ् रेणुका ने प्रश्न किया ।

अभी तक तो नहीं ।

क्यों...घ्

साहस ही नहीं हुआ मम्मी से पूछने का ।

सुनकर खिलखिलाकर हँस पड़ी थी रेणुका । हँसी कुछ थमी तो उसने कहाए इसमें साहस की क्या बात है । तुम उनसे पूछो...मैं भी सिफारिश कर दूँगीए शायद बात बन जाए ।

हाँ पूजा जीए आप साथ चलेंगी तो कम्पनी अच्छी बन जाएगी । हमने तो आपके साथ के लिए ही नाम लिखवाया था । आप नहीं चलेंगी तो शायद हमें भी अपना नाम वापस लेना पड़े । न जाने कैसे कह गया देव बाबू! कितना आग्रह था उसके शब्दों में ।

इच्छा तो मेरी भी यही है देव । मन ही मन बुदबुदायी थी पूजा परन्तु रेणुका की उपस्थिति में वह सिर्फ इतना ही कह सकी थीए पूछ लूँगी अम्मी सेए शायद मान जाएँ ।

शायद नहीं पूजा जीए कल किसी भी तरह अपना नाम लिखा दो! रेणुका जीए आप मेरी ओर से भी मम्मी को सिफारिश कर देना ।

आपकी ओर से सिफारिश करुँगी तो क्या इनकी मम्मी जाने की अनुमति दे देंगीघ् मुसराकर देव बाबू की ओर देखते हुए रेणुका ने कहा था ।

ओह ! नहीं रेणुका जी मेरी ओर से नहींए मेरा मतलब है आप अपना पूरा प्रयास करना कि इनकी मम्मी मान जाएँ । हडबडा—सा गया था देव बाबू उसकी मुसकराहट से और रेणुका थी कि उसकी इस हडबडाहट पर खिलखिलाकर हँस पड़ी ।

देव बाबू झोंपकर सामने सड़क की ओर देखने लगा था और पूजा की —टि जैसे पृथ्वी से चिपक ही गयी थी । दो पल को दोनों के मध्य सिर्फ रेणुका की हँसी ही रह गयी थी ।

आप चिन्ता न करें देव बाबू! कल पूजा अपना नाम टूर के लिए अवश्य लिखा देगी । चलते—चलते पूजा के स्थान पर रेणुका से ही इतना —ढ़़ आश्वासन पाकर देव बाबू कुछ तो निश्चिन्त हो ही गया था ।

पूजा की मम्मी तो शायद जाने की स्वीकृति न देती परन्तु उस दिन जब वह रेणुका के साथ घर पहुँची तो उसके पिताजी भी घर पर ही थे । पहले तो उसके पिताजी उसे भ्रमण की स्वीकृति देने में हिचकिचाए थे परन्तु रेणुका ने जोर देकर कहा थाए

अंकलए पूजा कोई अकेली थोड़े ही है...मैं भी तो जा रही हूँ । बहुत—सी और लड़कियों ने भी नाम लिखवाए हैं । पाँच—छः दिन की ही तो बात है...हाँ कर दीजिए ना!

रेणुका ने इस आग्रह पर पूजा के पिताजी ना नहीं कर सके । अपनी स्वीकृति देते हुए कहा था उन्होंनेए बेटीए बाहर निकलकर बहुत होशियार रहना पड़ता है । सर्दी का मौसम है और तुम पहाड़ पर जा रही होए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना ।

अपने पिताजी की स्वीकृति पा पूजा बहुत खुश हुई थी । उस दिन बहुत अच्छे लगे थे उसे अपने पिताजी! प्रसन्नता के आवेग को मन में दबाए वह रेणुका के साथ कमरे से बाहर आ गयी । हँसी थी कि होंठों से फूटने को आतुर हो रही थी मगर संकोच उसके मुखरित होने में बाधक हो रहा था ।

अगले दिन जब पूजा रेणुका के साथ कॉलिज जा रही थी तो जैसे खुशी से उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे । मन खुशी से झूम रहा था और वह जैसे कल्पना के पंखों के सहारे उड़ी जा रही थी । रेणुका भी उसकी इस स्थिति पर मन ही मन हँस रही थी पर अपने स्वभाव के विपरीत आज वह चुप थी । शायद वह उसे छेड़कर उसकी कल्पना को भंग नहीं करना चाहती थी ।

दोनों अभी कॉलिज पहुँची भी नहीं थीं कि राह में देव बाबू से साक्षात्कार हो गया ।

पूजा जीए हाँ कर दी मम्मी नेघ् उसका पहला प्रश्न यही था ।

आपका क्या अनुमान हैघ् रेणुका ने पूछा ।

मुख की प्रसन्नता तो कह रही है कि मम्मी ने हाँ कर दी है ।

देव बाबू इस स्थिति में कोई किसीको रोक पाया है क्याघ् हँस पड़ी रेणुका ।

अच्छा! आज वह भी उसकी हँसी में सम्मिलित हो गया था ।

देव बाबू! दुआ दो हमें...।

रेणुका की अनकही अधूरी बात को समझते हुए देव बाबू ने कहाए

आपने बहुत अच्छा किया रेणुका जी! आप दोनों के साथ अच्छी कम्पनी बन जाएगी । शुक्रिया तो मैं आपका क्या करूँ...।

शुक्रिया से काम नहीं चलेगा देव बाबू ।

तो...।

एक कप गर्म—गर्म चाय ।

ओह! इस बार देव बाबू स्वयं को खिलखिलाकर हँसने से रोक नहीं पाया ।

आइए...अभी कॉलिज लगने में देर हैए कैन्टीन चलती है । देव बाबू के कहने के साथ ही तीनों कैन्टीन की ओर चल दिए ।

आपने तो पूजा को जादू से तैयार कर दिया रेणुका जी । कैन्टीन में प्रवेश करते हुए देव बाबू ने कहा ।

हाँए यह जादू ही तो है । मन ही मन कह उठी पूजा और तीनों एक खाली मेज की ओर बढ़़ गए ।

कैन्टीन में अधिक भीड़ न थी । अधिकतर मेजें खाली पड़ी थीं । कैन्टीन का बेयरा शीध्र ही उनकी मेज पर आर्डर लेने के लिए आया ।

मूल के साथ ब्याज भी चलेगा क्याए रेणुका जीघ्

क्याघ् रेणुका चौंकी ।

मेरा मतलब है चाय के साथ समोसे...।

हाँए लेकिन ब्याज चक्रवृद्धि चलेगा ।

क्या...मैं समझा नहीं । इस बार देव बाबू चौंका ।

साथ में स्लाइस भी चलेंगे ।

एक खिलखिलाहट के मध्य बेयरा अॉर्डर लेकर चला गया । पूजा सोच रही थी कि कितनी निःसंकोच है रेणुका और एक वह है जो इतनी देर से एक शब्द भी नहीं बोल पाई है ।

आप इस फार्म को भर दीजिए पूजा जी । देव बाबू ने अपनी डायरी से एक फार्म निकालकर देते हुए कहा ।

मैं आपका नाम भ्रमण के लिए लिखा दूँगा । पूजा जी फार्म की ओर उठी प्रश्न—भरी —टि का आशय समझते हुए देव बाबू ने कहा ।

लाइए! पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी और फार्म लेने के लिए हाथ आगे बढ़़ा दिया । देव बाबू ने फार्म के नीचे लगी अपनी डायरी भी उसकी ओर बढ़़ा दी ।

पूजा ने देखा—फार्म तो पहले ही भर दिया गया थाए उसे तो सिर्फ अपने हस्ताक्षर करने थे । उसकी —टि देव बाबू के मुख की तरफ उठी । देव बाबू ने पेन खोलकर हस्ताक्षर करने के लिए पूजा की तरफ बढ़़ा दिया ।

बेयरा चाय तथा अन्य सामान रख गया था । पूजा ने समोसों को स्लाइस के मध्य रखकर उन्हें सैण्डविच का रूप दे दिया । तीनों अपने प्यालों को उठाकर चाय को घूँट भरने लगे ।

वहाँ सर्दी अधिक होगीए अपने गर्म कपड़े पूरी तरह से साथ ले लेना । चाय पीते हुए देव बाबू ने हिदायत दी ।

आप साथ होंगे...ठण्ड का कुछ विशेष प्रभाव इसपर नहीं पड़ेगा । रेणुका ने मुसकराकर चुटकी ली ।

मैं क्या करूँगा रेणुका जीघ् देव बाबू ने भी उसे जान—बूझकर छेड़ा ।

आपके होते हुए इसपर ठण्ड का प्रभाव होना कठिन है ।

क्योंए क्या मैं हीटर हूँघ्

आप एक कोट अपने साथ अधिक रखना । आजकल लड़के—लड़कियों के कपड़ो में कोई विशेष अन्तर नहीं रह गया है । रेणुका कहाँ पीछे रहने वाली थी ।

यानी मेरा कोट पहनाओगी इन्हेंघ्

क्यों नहींए दुसरे के कोट में सर्दी कम लगती है ।

अनुभव से कह रही होघ् मुसकराकर देव बाबू ने व्यंग्य किया ।

नहींए अनुमान से कह रही हूँ । अपने साइज का कोट तो हमें मिला ही नहीं है । बिना किसी झिझक के रेणुका ने उत्तर दिया और तीनों चाय समाप्त कर उठ खड़े हुए ।

देव बाबू ने कैन्टीन का बिल भुगतान किया और तीनों क्लास की तरफ चल दिए । कॉलिज में अवकाश से पूर्व आज अन्तिम दिन था । अधिकांश छात्र—छात्राएँ भ्रमण हेतु जा रहे थे । कल भ्रमण के लिए प्रस्थान किया जाना था इसलिए कक्षा में पढ़़ाई के स्थान पर भ्रमण—सम्बन्धी चर्चा ही अधिक को रही थी । न तो छात्र—छात्राओं की आज पढ़़ने में रूचि हो रही थी और न ही प्राध्यापकों का पढ़़ाने का मूड था । कल भ्रमण के लिए तैयारी की जा सके इसलिए अवकाश भी आज दो घन्टे पूर्व ही घोषित कर दिया गया था ।

'''

भाग — सात

कालका को पीछे छोड़कर अब बस तेजी से पहाड़ की सर्पाकार सड़क पर शिमला की ओर बढ़़ी जा रही थी । ज्यों—ज्यों बस पहाड़ो में आगे जी ओर बढ़़ रही थीए त्यों—त्यों वातावरण में ठण्ड की अधिकता बढ़़ती जा रही थी । हवा के ठण्डे झोंके बन्द खिड़की के शीशों से टकराकर रह जाते । सभी छात्र—छात्राओं ने अपने गर्म कपड़े पहने हुए थे ।

भास्कर देव आसमान के बीचों—बीच चमक रहे थे । दूर—दूर तक पहाड़ों पर उनका प्रकाश फैल रहा था । आसमान में यहाँ—वहाँ छोटे—छोटे बादलों के टुकड़े भी तैर रहे थे । सभी छात्र—छात्राएँ बन्द खिड़की के शीशों में से बाहर के —श्यों का आनन्द ले रहे थे । पहाड़ के एक भाग पर फैलता हुआ सूर्य का प्रकाश और दुसरे भाग पर फैली छाया मन को विचित्रता का आभास देने के साथ ही आनन्दित भी करती थी । सड़क के एक ओर फैले ऊँचे पहाड़ और दूसरी तरफ गहराई । गहराई की तरफ झाँकने पर आँखें कई बार स्वतः ही भय से मूँद जाती थीं ।

खिड़की के साथ बैठी पूजा की —टि बाहर विस्तृत प्रकृति के प्रांगण पर टीकी थी । पास ही बैठी रेणुका भी अपने ही विचारों में खोई हुई थी । अभी बर्फ नहीं गिरी थी इसलिए जगह—जगह हरियालीविहीन वृक्षों के ठूँठ खड़े थे । किसी—किसी वृक्ष पर पतझर की मार से शेष बचे पत्ते वृक्षों की हरियाली की याद दिला रहे थे ।

बस तेजी से आगे को भागती जा रही थी । एक के बाद एक तीखा मोड़ और चढ़़ाई पर चढ़़ती तेज बस । छात्र—छात्राओं को यह यात्रा बड़ी ही रोमांचकारी लग रही थी । सभी अपने में मस्त यात्रा का आनन्द ले रहे थे । कुछ सीटों पर गपशप चल रही थी तो कुछ पर मौन फैला हुआ था । कुछ छात्र अपने सामने कोई पुस्तक खोले बैठे थे तो कुछ खिड़की की राह बाहर के —श्यों को देखने में खोए हुए थे ।

कुछ देर तो पूजा खिड़की से बाहर झाँकती बाहर के —श्यों में खोयी रही परन्तु उसकी —टि जब एक ओर फैली गहराई की तरफ गयी तो उसका मन काँप उठा । उसने अपनी —टि खिड़की से हटा ली और साथ रखे बैग से पुस्तक निकालकर पढ़़ने लगी । आँखें जैसे थकान—सी अनुभव कर रही थीं । वह पुस्तक पढ़़ न सकी ।

रेणुकाए जी कुछ मिचला रहा है । उसने साथ बैठी रेणुका का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा ।

अभी से...घ्

लगता है कहीं उल्टी न हो जाए ।

डॉक्टर को बुलाऊँघ्

अरी पगलीए चलती बस में डॉक्टर कहाँ से आएगाघ्

हमारे लिए न सहीए तुम्हारा डॉक्टर तो इसी बस में बैठा है । रेणुका ने हँसते हुए कहा ।

कौनघ् चौंकते हुए पूजा ने कहा ।

तुम्हारा डॉक्टर बाबू ।

देव बाबूघ्

देव बाबू का नाम तो मैंने नहीं लिया लेकिन चोर की दाढ़़ी में तिनका । एक बार एक व्यक्ति ने एक भूखे से पूछा कि दो कितने होते हैं—तो भूखे व्यक्ति ने उत्तर दियाए चार रोटीयाँ । कुछ ऐसी ही हालत तुम्हारी भी है । कोई कुछ भी कहे परन्तु मुझे तो देव बाबू ही सुनाई देता है । वाह रे इश्क! सचमुच तुमने गालिब को निकम्मा कर दिया होगा ।

पूजा अपनी स्थिति पर झेंप—सी गयी । झेंप को कुछ कम करते हुए उसने कहाए रहने दो अपने भाषण को! इतना तो होता नहीं कि थर्मस से निकालकर एक प्याला चाय ही पिला दो ।

अभी लो पूजा रानी । हम तो आपके हुक्म के गुलाम हैं । रेणुका ने जिस अन्दाज से कहा था उससे बस में बैठे अन्य छात्र—छात्राओं के साथ ही देव बाबू का ध्यान भी उनकी तरफ खिंच गया ।

देव बाबू को अपनी ओर देखता पाकर मुसकराते हुए रेणुका ने उसे अपने पास आने का इशारा कर दिया ।

क्या बात है रेणुका जीघ् देव बाबू अपनी सीट छोड़ उठकर उनके पास आ गया ।

रेणुका मुख से कुछ न बोल आँखों से मुसकराती रही ।

आपको कुछ चाहिए तो नहींघ् उसने फिर पूछा ।

चाहिए । रेणुका के मुख पर हँसी और आँखों में शरारत नाच रही थी ।

क्या...घ्

दवा ।

क्योंए क्या बात हुईघ् चौंककर देव बाबू ने पूछा ।

इनसे पूछ लो । अभी कह रही थीं की दिल मचल रहा है । उसने पूजा को इंगित करते हुए धीरे से कहा ।

चल झूठी कहीं कीए कब कह रही थी मैंघ् रोष से झिड़कते हुए पूजा ने कहा परन्तु अपने रोष के बनावटीपन को वह छुपा नहीं सकी ।

अभी तो कह रही थीं कि शायद उल्टी हो जाए ।

यह तो कहा था लेकिन तुम तो शब्दों के हाथ—पैर तोड़कर कुछ का कुछ अर्थ बना देती हो ।

नखरे करने तो हमें आते नहीं पूजा रानीए जो ठीक होता हैए कह देते हैं ।

नखते कौन करता हैघ् क्रोध से पूजा ने कहा ।

आप दोनों आपस के झगड़े में हमें बैठाना भी भूल गयी हैं । हँसकर बीच में टोकते हुए देव बाबू ने कहा ।

देव बाबू की बात सुनकर पूजा चौंक उठी । बातों ही बातों में वह उससे बैठने के लिए कहना भी भूल गयी थी ।

बैठिए...। रेणुका ने सीट पर एक ओर खिसकते हुए कहा तो देव बाबू धन्यवाद कहता हुआ उन दोनों के मध्य बैठ गया ।

एक प्याला चाय चलेगीघ् पूजा ने पूछा ।

अरी पूछती क्या हो! तुम्हारी चाह कौन नहीं लेना चाहेगा ।

तो फिर दे क्यों नहीं देतीं डालकर ।

ना बाबाए अपने बस का यह काम नहीं है । तुमने पूछा है तो अब तुम ही पिला दो ।

पूजा को रेणुका पर क्रोध तो आ रहा था परन्तु हृदय की गहराईयों में उसे यह सब अच्छा भी लग रहा था । रेणुका जानबूझकर उसे तंग कर रही थी ।

आप परेशान न हों । मेरी चाय पीने की इच्छा नहीं है । देव बाबू भी उन दोनों के मध्य स्वयं को फँसा पाकर बड़ा विचित्र—सा अनुभव कर रहा था ।

पिलाने वाले की तो इच्छा है देव बाबू । पूजा ने थर्मस से चाय का प्याला भरकर देव बाबू की ओर बढ़़ाया तो रेणुका चुटकी लिए बिना न रह सकी ।

धन्यवाद! पूजा के काँपते हाथों से देव बाबू ने चाय का प्याला थाम लिया ।

आप भी लीजिए! मेरे चक्कर में आपकी चाय भी ठण्डी हुई जा रही है । चाय का घूँट भरते हुए देव बाबू ने कहा ।

इसे अपनी सुध कहाँ!

रेणुकाए यदि इससे आगे अब अगर तुम कुछ बोलीं तो गर्म—गर्म चाय तुम्हारे सिर पे उड़ेल दूँगी । पूजा ने क्रोध से कहा तो रेणुका मुसकराकर रह गयी ।

रेणुका सचमुच ही खामोश हो गयी थी । सम्भवतः वह समझ गयी थी कि पूजा से उसकी छेड़—छाड़ सहन नहीं हो रही है ।

सूर्य आसमान के बीच से पश्चिम की ओर बढ़़ता जा रहा था और बस अपने गंतव्य की ओर भागती जा रही थी ।

बस की एक सीट पर बैठे देव बाबूए रेणुका और पूजा के मध्य खामोशी फैलती जा रही थी । पूजा और देव बाबू आपस में बात करने का कोई सूत्र नहीं खोज पा रहे थे और रेणुका चुप थी कि कहीं उसकी बातों से पूजा अधिक न बिगड़ जाए ।

अचानक पूजा को अनुभव हुआ जैसे देव बाबू का पाँव उसके पाँव से टकरा रहा है । बस तेजी से मोड़ खाती हुई पहाड़ पर चढ़़ रही थी । पूजा के सारे शरीर में सिहरन—सी दौड़ गयी । आनन्द से आँखें बोझिल होने लगीं । —टि झुकाकर उसने नीचे झाँका तो वह चौंक उठी—यह देव बाबू नहींए रेणुका थी जो अपने पाँव से उसके पाँव को छेड़ रही थी । झुँझलाकर उसने रेणुका की ओर देखा तो वह धीरे से गर्दन हिलाकर मुसकरा दी । पूजा झुँझलाहट से अपना होंठ काटकर रह गयी ।

पूजा ने रेणुका से आँखें बचाने के लिए —टि खिड़की से बाहर के —श्यों पर टीका दी परन्तु बाहर गहराई की तरफ देखकर वह सिहर उठी ।

नहीं । वह घबराकर कह उठी । बक एक तीखा मोड़ काटकर चढ़़ाई चढ़़ रही थी ।

क्या हुआघ् चौंककर देव बाबू ने पूछा ।

बहुत भय लगता है देव बाबू ।

शायद पहली बार पहाड़ी यात्रा कर रही हो । भय की कोई बात नहीं है । उसने सामने सीट के डण्डे पर रखे पूजा के हाथ पर अपना हाथ रखकर जैसे उसे आश्वस्त कर दिया ।

हाँफती हुई—सी बस शिमला के स्टैंड पर जाकर रुकी । छात्र—छात्राओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी । सब दरवाजों को खोल तेजी से निचे उतरे तो ठण्डी कंपकंपति हवा ने उनका स्वागत किया ।

कुलियों की सहायता से सामान नीचे उतरवाया गया । बर्फीली हवा शरीर को कंपकंपा रही थी । कई छात्र—छात्राओं ने अपनी अटैचियाँ खोलकर अतिरिक्त गर्म कपड़े नीकालकर पहन लिए ।

कुलियों की कमर पर सामान का बोझा लदवाकर वे सभी पक्की पथरीली सड़कों पर चढ़़ते हुए पूर्व निश्चित होटल तक जा पहुँचे । चढ़़ते—चढ़़ते उनकी साँस फुल गयी थी । शरीर में गर्मी आ गयी थी और उनमें से कई इस बात पर आश्चर्य कर रहे थे कि ये कुली अपनी पीठ पर इतना बोझा लादकर बिना राह में कहीं रुके इतनी चढ़़ाई कैसे चढ़़ जाते हैं । वे बिना किसी सामान के खाली हाथ थे तो भी उनके साथ चलते हुए पिछड़ जाते थे । होटल पर पहुँचकर कुलियों ने सामान उतारा तो उन्हें यह देखकर और भी आश्चर्य हुए की उनके मुख पर थकान का कोई चिह्न न था जब कि वे स्वयं हाँफ रहे थे ।

होटल के गेट पर ही मैनेजर ने इस समूह का स्वागत किया और सामान को पहले से बुक करवाए हुए कमरों में पहुँचा दिया गया । कुल तीन कमरे थे । एक में सभी छात्रए दुसरे में छात्राएँ और तीसरा कमराए जो अपेक्षाकृत कुछ छोटा थाए अध्यापक वर्ग के लिए निश्चित कर दिया गया ।

सामान आदि को कमरों में लगवाने के बाद सभी चाय पीने के लिए होटल के डाईनिंग हॉल में आ गए । कुछ हॉल के बाहर बरामदे में रखी आराम कुर्सियों में घँस गए तो कुछ अन्दर मेजों पर चाय की प्रतीक्षा करने लगे । पूजा रेणुका को खोज रही थी । न जाने वह किधर चली गयी थी । आखिर वह अकेली ही डाईनिंग हॉल की तरफ चल दी ।

गर्म कपड़ों के बावजूद ठण्ड शरीर को छुए जा रही थी । पूजा ने कमरे से बाहर आकर इधर—उधर —टि दौड़ाई । सब कुछ विचित्र—सा आनन्ददायक लग रहा था । बादल चोटीयों का चुम्बन लेते हुए इधर से उधर भागे जा रहे थे । तेज हवा पहाड़ियों से टकरा—टकराकर सांय—सांय की आवाज कर रही थी । पूजा ने कोट के ऊपर ओढ़़े अपने शोल को और अधिक कस लिया ।

पूजा ने बरामदे में प्रवेश किया तो सामने ही देव बाबू एक आरामकुर्सी में बैठा था । पश्चिम में अस्त होते सूर्य की क्षीण—सी किरणें वहाँ तक सीधी पहुँच रही थीं । पूजा वहीँ पास में पड़ी एक कुर्सी पर जाकर मौन—सी बैठ गयी ।

हॉल के अन्दर कहकहों का साम्राज्य था । हँसी—मजाकए गाना एवं मेजें बजाना । रेणुका भी वहीँ बैठी किसी लड़की से बातें कर रही थी ।

आमने—सामने बैठे देव बाबू और पूजा दोनों ही अस्त होते उस सूर्य की ओर देख रहे थे जो कि दिन—भर सफर से थककर अब अपनी मंजिल तक पहुँचने वाला था । दोनों ही शायद एक—दुसरे की उपस्थिति से अनजान बने पर एक—दुसरे के सामीप्य का अहसास करते मौन बैठे थे ।

लम्बे फैलते इस मौन को पूजा सहन न कर सकी और उकताकर वह अकेली ही होटल से बाहर निकल पड़ी । शायद रेणुका ने उसे जाते हुए देख लिया था । मुसकराती हुई वह भी उधर को लपकी।

क्या हुआ देव बाबूघ् देव बाबू के समीप आते हुए रेणुका ने पूछा ।

क्या बात हैघ् देव बाबू की —टि सामने से हटकर रेणुका की ओर घूमी ।

पूजा कहाँ चली गयीघ्

शायद घुमने गयी होगी ।

अकेलीघ् रेणुका की मुसकान गहरी हो गयी ।

तुम भी उसके पीछे भाग जाओ । देव बाबू ने हँसते हुए कहा और रेणुका भी उसी राह पर भाग गयी जिसपर कुछ देर पूर्व पूजा गयी थी ।

पूजा पहाड़ी की ढ़लवाँ पगडण्डी से नीचे उतर रही थी । कुछ नीचे आकर उसने देखा—एक चट्टान को काटकर वहाँ पर बैठने के लिए बहुत ही सुन्दर स्थान बनाया गया था । पूजा के पाँव इसी स्थल पर ठिठक गए । वहाँ पर बैठकर वह एक पल को सुस्ताने लगी । सामने कुछ निचाई पर एक बड़ा—सा चौक था । आदमियों की भीड़ वहाँ न थी अपितु इक्का—दुक्का व्यक्ति ही इधर से उधर गुजर रहा था । पूजा ने आँखों पर दूरबीन लगायी और दूर—दूर तक फैले —श्य देखने लगी ।

सामने काफी निचाई पर एक छोटा—सा पहाड़ी गाँव बसा हुआ था । सूर्य पूरी तरह से अस्ताचलगामी नहीं हुआ था । कुछ घरों से उठकर धुआँ आसमान में फैल रहा था । सूर्य के हलके प्रकाश ने पहाड़ियों की सुन्दरता को और भी अधिक मनोहारी बना दिया था । एक पहाड़ी लड़का सिर पर लकड़ियों का बोझा उठाए सँकरी पगडण्डी से गाँव की तरफ बढ़़ा जा रहा था । एक तरफ दूर—दूर तक लम्बे—लम्बे वृक्षों की कतार—सी फैली हुई थी । कहीं दूर एक पहाड़ी पर बना एकाकी बंगला बड़ा सुना—सा लग रहा था ।

पूजा ।... पुकार सुनकर भी पूजा अपनी आँखों से दूरबीन हटाकर —श्य—अवलोकन करने का आनन्द न छोड़ सकी । आवाज से ही पहचान लिया था उसने की पुकारने वाली रेणुका है ।

हाँ...। दूर एक पहाड़ी पर —टि जमाए हुए उसने कहा ।

दूरबीन आँखों से हटा ले पूजा ।

क्योंघ्

इससे आदमी बहुत दूर चला जाता है ।

फिर क्या हुआघ् हँसकर पूजा ने कहा ।

हमें बहुत दूर नहीं भागना है पूजा । खुशियाँ तो कहीं आसपास ही बिखरी हुई मिलेंगी ।

रेणुकाए फिलोसफर कब से बन गयींघ् पहले तो तुम कभी इस तरह की बातें नहीं करती थीं । पूजा ने दूरबीन को आँखों से हटाते हुए आश्चर्य से कहा ।

पहले तुम भी तो इतनी दूर नहीं देखती थीं ।

लो भाई । अब हम तुम्हें ही देखेंगे । हँसते हुए पूजा ने अपनी —टि रेणुका पर टीका दी ।

देव बाबू को बुलाऊँ क्याघ् अचानक रेणुका के मुख पर फिर वही चिरपरिचित शरारत उभर आयी ।

किसलिएघ्

मैंने कहा था न की खुशियाँ हमारे आसपास ही बिखरी हुई मिलेंगी ।

हाँए तो फिर...घ्

देव बाबू इतनी दूर नहीं कि आँखों पर दूरबीन लगाकर खोजना पड़े ।

देव बाबूघ् क्या मतलबघ्

अपने मन से पूछो ।

पूछ लिया । मुसकराकर पूजा ने कहा ।

क्या कहता हैघ्

कुछ नहीं ।

एक क्षण के लिए मौन छा गया दोनों के मध्य । पूजा सोच रही थी कि रेणुका के सामने सब कुछ स्पट कह दूँ । अपने मन में छुपी भावना को उसपर प्रकट कर दूँ । एक क्षण को उसका मन शंकित भी हुआ परन्तु वह अपनी भावनाओ पर नियन्त्रण रखने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी । कुछ देर वह सोचती रही की बात को कहाँ से प्रारम्भ करे ।

रेणुका! पूजा सिमटकर अपने पास बैठी रेणुका के और भी करीब आ गयी ।

ण्ण्ण्ण्ण् चुप रही रेणुका ।

रेणुकाए तू मेरी बहुत प्यारी सहेली है ना ।

यह तो अपने मन से पूछ ।

हूँ ।

अरी झिझकती क्यों है । सच कह नए बात क्या हैघ्

बताती हूँए मगर इतनी जल्दी क्या हैघ्

फिर एक पल के लिए मौन छा गया । हवा में ठण्डक कुछ और अधिक बढ़़ गयी ।

रेणुकाए वो देव बाबू है ना ।... पूजा बात पूरी न कर सकी ।

हाँए क्या हुआ उसेघ् रेणुका जान—बूझकर अनजान बन रही थी ।

उसे कुछ नहीं हुआ ।

तो फिरघ्

उसे कुछ नहीं हुआ रेणुकाए यही तो मुश्किल है ।

उसे कुछ नहीं हुआ तो इसमें मुश्किल की क्या बात हैघ् रेणुका उसकी स्थिति का आनन्द ले रही थी ।

तू नहीं समझेगी रेणुका । पूजा हृदय की बात रेणुका से स्पट शब्दों में नहीं कह पा रही थी और रेणुका थी कि उसे स्पट कहने को विवश कर रही थी । मौन वहाँ फिर उपस्थित हो गया ।

मैं समझती हूँ पूजा । तू बोलए कोई काम अटक गया है क्याघ् आखिर रेणुका को पूजा की स्थिति पर तरस आ ही गया ।

तेरे बिना मेरा कोई काम नहीं को सकता रेणु । मैं स्वयं तो बहुत कमजोर हो गयी हूँ—मुझसे अब कुछ नहीं हो सकता ।

प्यार में ऐसा ही होता है पूजा ।

प्यार...

मैं जानती हूँ पूजाए कि तू देव बाबू को चाहती है । रेणुका ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा ।

इसके बाद तो पूजा रेणुका पर खुलती ही गयी । अपनी गर्दन का भार उसने उसके कन्धों पर डाल दिया ।

हाँ रेणुका । मुझे उनसे प्यार हो गया है । दिन—रात मैं उन्हीं के सपनों में खोयी रहती हूँ । न पढ़़ सकती हूँ और न घर के काम में मन लगता है । पढ़़ने बैठती हूँ तो सारे अक्षर गडमड हो जाते हैं और रह जाते है पन्नों पर सिर्फ उनकी तस्वीर । हर आवाज में मुझे उनकी आवाज सुनाई देती है । रात को मैं सो नहीं पाती और दिन में जैसे उनींदी आँखों से उन्हीं का स्वप्न देखती रहती हूँ ।

ण्ण्ण्रेणुकाए मुझे बचा ले रेणुका मैं पागल हो जाऊँगी । मुझसे अब और नहीं सहा जाता ।

आँसू छलक आए थे पूजा की आँखों में । रेणुका ने उसे अपनी बाँहों में ले लिया और आँसू पोंछकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहने लगीए साहस से काम ले पूजा । जैसा तू चाहती है वैसा ही होगा ।

ऐसा नहीं हुआ तो मैं मर जाऊँगी रेणुका ।

क्यों बुरी बात मुँह से निकालती है ।

रेणुकाए इससे भी बुरे—बुरे विचार मन में आते हैं । मैं शायद जी नहीं सकूँगीए मैं बहुत दूर चली गयी हूँ ।

तूने देव बाबू से कभी बात की हैघ्

मुझमें साहस ही कहाँ है ।

तू चिन्ता न कर । मैं उनसे बात करुँगीए मगर क्या तेरे घर वाले सम्बन्ध को स्वीकार कर लेंगेघ्

हो सकता है न करेंए मगर मैं घर छोड़ दूँगी ।

आवेश में तो नहीं कह रही होघ्

यदि यह आवेश है तो मैं इसी आवेश में सब कुछ कर गुजरूँगी ।

तो फिर ठीक है । मैं अवश्य ही उनसे बात करुँगी । मगर तू भी इस शर्म के पर्दे को हटाकर तनिक साहस से कम ले । जनवरीए फरवरीए मार्च । अप्रैल में परीक्षाएँ हो जाएँगी । जितना शीध्र हो इस काम को कर गुजरए अन्यथा फिर सारे जीवन पछताती रहेगी ।

पूजा धीर—धीरे अपनी हिचकियों पर तियन्त्रण पाने का प्रयास कर रही थी । इस समय वह कितनी कातर हो गयी थी । फैलते हुए मौन में हल्की—हल्की हिचकियों का स्वर भी साफ उभर रहा था ।

अब तू बैठए मैं चली । अचानक ही रेणुका पूजा को छोड़कर खड़ी हो गयी ।

बैठो नाए कहाँ जा रही होघ्

पुजारिन की लिए देवता को खोजने जा रही हूँ । यह कहते हुए वह उछलती हुई उसी सँकरी पगडण्डी पर भाग गयी जो होटल तक पहुँचती थी ।

हृदय के उदगार रेणुका पर प्रकट करने से और आँसू बहाने से पूजा का मन हल्का हो गया था । उसने अपनी पीठ पत्थर की तराशी हुई बेंच पर टीका दी ।

सामने पश्चिम में डूबता हुआ सूर्य बड़ा भव्य लग रहा था । आसपास की पहाड़ियों में जैसे सोने का रंग भर गया था । सर्दी पहले से कुछ और बढ़़ गयी थी । अपने हाथों को ओवरकोट से निकल शोल को कुछ और कस लिया पूजा ने । बैठे—बैठे थक—सी गयी थी वहए इसलिए उठकर दो—चार कदम इधर—उधर टहलने लगी ।

दो—चार कदम टहलने के बाद वह फिर उसी बेंच पर आकर बैठ गयी ।

पूजा—जीए आप यहाँ अकेली बैठी हैंघ् कन्धे पर कैमरा लटकाए सामने से आते हुए पंकज ने कहा ।

पूजा तो इस समय देव बाबू की प्रतीक्षा कर रही थी । उसे इस समय पंकज का यहाँ आना अच्छा न लगाए फिर भी उसने अपने मनोभावों को छिपाते हुए कहाए कई बार अकेले में बैठना बहुत अच्छा लगता है ।

यहाँ...शिमला में आकर भीघ्

हाँ...। रुखाई छुप नहीं सकी पूजा के शब्दों की ।

आप कुछ उदास हैंए क्या बात हैघ् अपनत्व से पंकज ने पूछा ।

ऐसे कोई बात नहीं हैए आपको कुछ भ्रम हुआ है । पूजा ने होंठों पर सप्रयास मुसकान लाते हुए कहा ।

देखोए ठण्ड बढ़़ रही हैए आओ होटल चलें ।

नहीं...मैं कुछ देर यहाँ और बैठूंगी । कोई अधिक ठण्ड तो नहीं है ।

जैसी आपकी इच्छा । कहता हुआ पंकज पगडण्डी पर निचे उतर गया ।

यधपि रेणुका को गए अभी मुश्किल से पाँच—सात मिनट ही हुए थे परन्तु प्रतीक्षा करती पूजा कुछ झुँझला—सी गयी थी । उसे ऐसा लग रहा था कि न जाने कितना अधिक समय व्यतीत हो गया है ।

वह सोच रही थी कि अब तक तो देव बाबू को आ जाना चाहिए था । फिर कुछ सोचकर वह स्वयं ही अपने इस ख्याल पर हँस पड़ी । क्या देव बाबू रेणुका के कहने से अवश्य ही यहाँ आ जाएगाघ् हो सकता है रेणुका को वह मिला ही न हो या फिर किसी कार्य में या अपने मित्रों में व्यस्त हो । लेकिन यदि ऐसी बात होती तो रेणुका तो अवश्य आती ।

वह बैठी—बैठी बोर होने लगी । बेंच से उठकर उसने दूरबीन फिर अपनी आँखों पर चढ़़ा ली और दूर—दूर तक फैली पहाड़ियाँ—पेड़ों की कतार—पगडण्डीयाँ ।

अचानक सब कुछ दिखाई देना बन्द हो गया । दूरबीन पर मोटी—मोटी उँगलियाँ उभर आई । एक पल को वह दर डर गयी ।

कौनघ् घबराकर पूजा ने कहा ।

सामने खड़े व्यक्ति ने कोई उत्तर देने की अपेक्षा दूरबीन उसकी आँखों से उतार ली । सर्दी के इस मौसम में भी पूजा को लगा जैसे उसके सारे शरीर से पसीना छुट रहा है । एक पल को तो वह घबराकर आँखें ही न खोल सकी लेकिन साहस कर सामने देखा तो वहाँ देव बाबू खड़ा मुसकरा रहा था । कुछ न समझ सकी वह । भय एवं मिलन से उसके हृदय की धड़कने अधिक ही बढ़़ गयी थीं । देव बाबू उसके बिलकुल समीप खड़ा था । सहारा लेने के लिए पूजा ने उसके कन्धों पर हाथ रखकर मुख उसके सीने में छुपा लिया ।

कुछ देर तो बिना कुछ और सोचे दोनों यूँ ही खड़े रहे । पूजा को लगा जैसे मौसम बदल गया है । सर्दी से कंपकंपाते शरीर में गर्मी की लहर दौड़ गयी ।

आप शायद डर गयी थीं । देव बाबू ने उसके बालों पर हाथ फिरते हुए कहा ।

जी हाँ । नीची —टि किए वह उसके सीने से अलग हो गयी ।

मुझसे...घ्

नहीं...नहीं...ए मुझे क्या पता था कि आप हैं । जल्दी में पूजा ने कहा ।

आपने मुझे यहाँ किसलिए बुलाया थाघ् देव बाबू ने पूछा ।

मैंनेघ् प्रत्यक्ष में तो पूजा ने उसे नहीं बुलाया थाए हाँ रेणुका यह अवश्य कहकर भाग गयी थी कि वह देव बाबू को खोजने जा रही है ।

क्या आपने मुझे नहीं बुलाया था घ्

नहीं तो ।

रेणुका ने तो यही कहा था कि इस ढ़लान पर बेंच के पास आप मेरी प्रतीक्षा कर रही हैं ।

पूजा चुप रही । कहती भी क्या वहघ्

अच्छा! यदि आपने हमें नहीं बुलाया तो कोई बात नहींए हम वापस चले जाते हैं । इस बहाने थोड़ी देर की सैर ही हो गयी । यह कहते हुए सचमुच ही देव बाबू ने चलने का उपक्रम किया ।

सुनो...। एकाएक पूजा की तेज आवाज उभरी ।

देव बाबू के कदम ठिठके और वह पलटकर उसके समीप आ गया ।

क्या बात हैघ् मुसकराकर उसने कहा ।

क्या सचमुच चले जाओगेघ्

आपने बुलाया ही नहीं तो...।

क्या हर बार बुलाना ही पड़ेगा ।

इच्छा का पता तो कहने पर ही चलता है ।

क्या आप अपनी इच्छा से कोई काम नहीं करतेघ् क्या आपका मन कुछ नहीं कहताघ्

बहुत कुछ कहता है पूजा जी...मेरा दिल तो बहुत कुछ चाहता है । भावातिरेक में देव बाबू ने कहा ।

लेकिन तुम तो जा रहे थेघ् पूजा की संकोचभरी दीवार और अधिक न ठहर सकी ।

वह तो बहाना था पूजा...मैं जा कहाँ पाताघ्

अच्छा! तो तुम मुझे तंग कर रहे थेघ् रेणुका भी मुझे सताती हैए तुम भी परेशान कर लो । स्वयं पर से नियन्त्रण खो पूजा सुबक—सी पड़ी । रुके हुए आँसू आँखों में छलक आए । प्रयास भी नहीं किया पूजा ने उन्हें रोकने का ।

तुम तो रोने लगीं पूजा । अरे भईए मैंने तो मजाक किया था । अगर तुम्हें दुःख पहुँचा हो तो मुझे क्षमा कर दो ।

उसको दोनों हाथ जोड़कर सामने खड़ा देख रोती हुई पूजा की आँखों के आँसू भी मुसकराए बिना न रह सके ।

देवए अपनी पुजारिन से माँफी माँगने की तुम्हें क्या आवश्यकता हैघ्

पुजारिन को खुश करने के लिए सब कुछ करना पड़ता है । हँसते हुए देव बाबू उसकी ओर अपलक देखने लगा ।

उसके लिए तो तुम्हारी एक झलक ही काफी है । सकुचाकर पूजा ने कहा ।

देव बाबू सामने आसमान में फैलते रंगों में खो गया था । सूर्य अभी—अभी धरती की गोद में समाया था परन्तु अस्त होते—होते भी वह बादलों पर अपना प्रकाश फैलाकर उन्हें रंगीन बना रहा था ।

ढ़लती हुई शाम भी पहाड़ों में कितनी रंगीन होती है! देव बाबू कह उठा ।

यह तो अनुभव का परिणाम है । सूर्य ने दिन—भर जो संजोया वह सौन्दर्य जाते—जाते आसमान पर फैल दिया । पूजा ने भी उस बादलों की ओर देखते हुए कहाए जिनमें कितने ही रंग भर गए थे ।

हवा कुछ और अधिक तेज हो गयी थीए उसीके साथ ठण्ड बढ़़ रही थी । दोनों का शरीर रह—रहकर ठण्ड से काँप उठता था ।

पूजा को ठण्ड का अहसास अधिक हुआ तो उसने देव बाबू की ओर देखा—वे भी ठण्ड से काँपते—सिकुड़ते खड़े थे ।

ठण्ड लग रही है देवघ् पूजा ने पूछा ।

सच कहूँ घ्

हाँ ।

जब तुम दूर हो जाती हो तो ठण्ड अधिक लगती है । पूजा की आँखों में झाँकते हुए उसने कहा ।

आपने ओवरकोट क्यों नहीं पहनाघ्

रेणुका ने कहा तो मैं जल्दी में चला आया । ध्यान ही नहीं रहा की यह दिसम्बर का महीना और पहाड़ की शाम है ।

लोए मेरा ओवरकोट पहन लो । कहकर पूजा अपना ओवरकोट उतारने लगी ।

नहीं पूजा! देव बाबू ने मना किया ।

क्योंए लेडिज है इसलिएघ्

नहींए फिर तुम्हें ठण्ड अधिक लगेगी ।

मैंने शोल ले रखा है ।

क्या एक कोट में दो नहीं आ सकते घ् शरारत से देव बाबू ने कहा ।

धत...। पूजा लजा गयी और —टि झुकाकर उसने ओवरकोट देव बाबू की तरफ बढ़़ा दिया ।

देव बाबू ने कोट को अपने कन्धे पर डाल लिया ।

आओ होटल चलते है । चढ़़ाई चढ़़ने से शरीर गर्म हो जाएगा । देव बाबू ने कहा और पूजा की बाँह थामने के लिए अपना हाथ आगे बढ़़ा दिया ।

पूजा ने भी हाथ आगे बढ़़ाकर देव बाबू के हाथ में थमा दिया । आसमान पर बिखरा रंग कालिमा में परिवर्तित होता जा रहा था । पहाड़ों पर अन्धकार उतरता जा रहा था । एक—दुसरे का हाथ थामे वह उस पगडण्डी पर चढ़़ते गए ।

होटल के समीप आ दोनों अलग हो गए ।

उसे दिन पूजा ने देव बाबू का बहुत समीप से स्पर्श किया था । उसकी गर्म साँसों और हृदय की धड़कनों को महसूसा था पूजा ने । उसे लगा था की इतना सुख तो उसे जीवन में इससे पूर्व कभी नहीं मिला था ।

मिलकर भी मन शान्त नहीं हुआ था । इस भेंट ने ह्रदय के समस्त तारों को झंकृत कर दिया था । उसकी आँखों के समक्ष जैसे देव बाबू की छवि तैर रही थी । सो नहीं सकी थी वह उसे रातय पागल—सी होती जा रही थी वह ।

'''

भाग — आठ

दिनभर जाखुजी के मन्दिर एवं अन्य पहाड़ियों में घूमकर छात्र—छात्राओं का समूह होटल की तरफ लौट रहा था । थकान के कारण सभी के पाँव लड़खड़ा रहे थे परन्तु एक—दुसरे का सहारा लिए किसी—न—किसी तरह सभी आगे बढ़़ रहे थे । रेणुका और पूजा भी एक—दुसरे के कन्धे पर हाथ रखे अपने पाँवों को होटल की तरफ धकेल रही थीं । सामने ही होटल की बिल्डिंग दिखायी दे रही थी । मंजिल को सामने देखकर सभी के हृदय में उत्साह की एक लहर दौड़ी और उनके पाँव तेजी से आगे को बढ़़ने लगे ।

रेणुका और पूजा धीमी गति के कारण कुछ पीछे रह गयी थीं । कल वाले स्थान पर पहुँचकर पूजा के पाँव रुक गए ।

थोड़ी देर यहीं आराम करते हैं । पूजा ने बेंच पर बैठते हुए कहा ।

रेणुका भी उसके पास ही बैठकर सुस्ताने लगी ।

कुछ देर के लिए थकान ने दोनों को मौन कर दिया था । पूजा सोच रही थी कि रेणुका कल की भेंट के विषय में अवश्य ही पूछेगी । उसे आश्चर्य था कि कल रात और आज पूरे दिन उसने देव बाबू को लेकर उसे एक बार को भी नहीं छेड़ा था ।

आखिर मौन टुटा । पूजा की सोच के अनुसार रेणुका ने उससे कल की भेंट के विषय में बात की ।

कल तुमने देव बाबू से बात कीघ् रेणुका ने पूछा ।

किस बारे मेंघ्

शादी के बारे में ।

मुझसे यह काम नहीं होगा रेणु । मैं तो उनसे सामान्य—सी बातें करने में भी घबरा जाती हूँ । उनसे बहुत कुछ कहना चाहकर भी उनके सामने जाकर कुछ नहीं कह पाती । एक निरूश्वास—सी छोड़ते हुए पूजा ने कहा ।

मैं बात करूँ...घ्

यह जीवन तेरे नाम कर दूँगी ।

इस जीवन पर अब तेरा अधिकार कहाँ हैघ्

जो तेरी इच्छा हो माँग लेना ।

हूँ...। रेणुका ने पूजा के मुख पर —टि जमा दी ।

मैं इस आगा में जल जाऊँगी रेणुका...मुझे बचा ले मेरी बहन । पूजा ने अपना सारा भार रेणुका के कन्धे पर डालते हुए कहा ।

अच्छा! तू यहीं ठहरए मैं फायर ब्रिगेड को बुलाकर लाती हूँ । हँसी का एक ठहाका अपने पीछे गूँजता हुआ छोड़कर वह तेजी से होटल की तरफ भाग गयी ।

पूजा आश्चर्यचकित—सी वहाँ बैठी सोचती रह गयी । कहाँ तो थकान के कारण एक कदम भी आगे बढ़़ना उसके लिए मुश्किल हो रहा था और कहाँ अब वह तेजी से भागती हुई एक पल में ही होटल की ओर जाने वाली पगडण्डी पर ओझल हो गयी थी । जानकर भी अनजान बनी वह सोच रही थी कि वह वहाँ इतनी तेजी से भागकर क्यों गयी है ।

कुछ ही देर में पूजा ने देखा...रेणुका देव बाबू का हाथ पकड़े लगभग उसे खींचती—सी तेजी से उसकी ओर चली आ रही थी । वहाँ पहुँचकर जब वह रुकी तो दोनों की साँस फुल रही थी ।

रेणुका जीए बताइए तो सहीए क्या बात है । देव बाबू अपनी साँसों पर नियन्त्रण पाने का प्रयास करते हुए कह रहा था ।

मुझे आप दोनों से चाय पीनी है । रेणुका ने देव बाबू को पूजा के पास बेंच पर धकेलकर बैठाते हुए कहा ।

चाय के लिए कौन—सी विशेष बात है जो इतनी दूर से मुझे भगाए ला रही हो...कभी भी पि लो । देव बाबू ने कहा ।

देखो पूजाए यह कह रहे हैं कि मैं इन्हें भगाकर ले आयी हूँ । हँसते हुए रेणुका ने पूजा से कहा ।

पूजा क्या उतर देती । —टि झुकाए मौन बैठी थी वह ।

पूजाए क्या बात हैए आज रेणुका मेरे पीछे क्यों पड़ी हैघ्

इसीसे पूछ लो ।

देव बाबूए बात को गोल मत करिए! हमें आपसे चाय पीनी है ।

चाय को कौन मना करता हैए कभी भी पी लेना ।

कभी नहींए अभी पीनी है ।

चलो अभी पिला देता हूँए लेकिन कोई विशेष बात है क्याघ् देव बाबू ने उठते हुए कहा । साथ ही यन्त्रवत—सी पूजा भी खड़ी हो गयी ।

हाँ देव बाबूए विशेष बात है और वह भी ऐसी कि सुनोगे तो चाय के साथ बर्फी भी खिलाओगे ।

तो फिर देर क्या हैए चलो । देव बाबू के कहने के साथ ही तीनों वहाँ से नीचे की तरफ पगडण्डी पर चल दिए ।

सड़क के कुछ नीचे उतरते ही एक रेस्तराँ था । तीनों ही थके हुए थे इसलिए समीप पाकर उसमें ही जाकर बैठ गए । पूजा मन ही मन आशंकित थी कि रेणुका न जाने किस तरह बात प्रारम्भ कर बैठे । उसके हृदय में हलचल मची हुई थी । यह तो वह भी समझती थी कि देव बाबू उसे चाहता है मगर वह सोच रही थी कि न जाने रेणुका की बातों की उसपर क्या प्रतिक्रिया हो ।

रेणुकाए तुम चाय पीओए मैं होटल में चलती हूँ । पूजा ने वहाँ से उठना चाहा ।

नहींए तू भी यहीं ठहर । स्वर में आदेश की झलक पा पूजा को विवश वहीँ ठहरना पड़ा ।

हाँए तो अब कहिए रेणुका जी । देव बाबू ने पूजा की ओर देखते हुए रेणुका से कहा ।

इसी मध्य वेटर भी वहाँ आ गया । देव बाबू ने उससे तीन कप कॉफी लाने के लिए कह दिया ।

बात यह है देव बाबू...एक लड़की आपसे प्यार करती है । बिना किसी भूमिका की बेझिझक रेणुका ने कहा ।

मुझसेघ् मुसकान देव बाबू के अधरों पर थिरक रही थी और पूजा की —टि मेज पर जमी न जाने क्या तलाश कर रही थी ।

हाँए आपसे और वह विवाह भी आपसे ही करना चाहती है । रेणुका के कहने के साथ—साथ ही पूजा के हृदय की धड़कन तेजी से बढ़़ती जा रही थी ।

कौन है वह लड़कीघ्

परन्तु देव बाबूए मैं भी आपसे प्यार करती हूँ ।

रेणुका जीए आप...घ् चौंक उठा देव बाबू और पूजा के पाँवों के नीचे से तो जैसे जमीन ही खिसक गयी । प्रश्न—भरी चार आँखें एक साथ ही रेणुका के मुख की ओर उठीं ।

हाँ मैं! प्यार करना क्या कोई पाप है देव बाबूघ्

पाप तो नहीं है लेकिन...। भौचक्का—सा देव बाबू कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था ।

लेकिन कुछ नहीं देव बाबू! यहाँ सब एक—दुसरे से प्यार करते हैं । पूजा भी किसी से प्यार करती हैघ् आप भी किसी से प्यार करते हैंय अगर मैंने प्यार कर लिया तो आप दोनों एकाएक चौंक क्यों उठेघ्

लेकिन रेणुका जीए मैं तो किसी और से ।

तो फिर क्या हुआघ् रेणुका ने उसकी बात काटते हुए कहा ।

आप उससे प्यार करिएए हम आपसे प्यार करेंगे ।

देव बाबू के मुख से मुसकराहट गायब हो गयी और वहाँ एक सन्नाटा—सा फैलने लगा ।

क्यों पूजाए हमारे देव बाबू कैसे लगे तुम्हें! जान—बूझकर रेणुका ने पूजा को छेड़ा ।

मुझे कुछ नहीं मालुम...मैं जा रही हूँ । उसकी बात सुनकर पूजा क्रोध से स्वयं पर नियन्त्रण खो बैठी थी । वह सोच रही थी कि कितनी धोखेबाज है रेणुका...इसके मुँह में कुछ और तथा हृदय में कुछ और छुपा रहता है ।

पूजा उठकर वहाँ से चलने लगी तो रेणुका ने उसे बाँह पकड़कर बिठा लिया ।

पूजाए रिश्ता तो पक्का करवाती जा ।

विवश—सी पूजा चुपचाप फिर कुर्सी में धँस गयी ।

आप नाराज हो गए देव बाबूघ् रेणुका ने देव बाबू से मुसकराते हुए पूछा ।

नाराज तो नहींए हाँए आपकी बात सुनकर आश्चर्य अवश्य हो रहा है ।

देव बाबूए क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप जिससे प्यार करते हैं उसीसे प्यार करते रहें और हम भी आपसे प्यार करते रहेंघ्

यह अनुचित है रेणुका जी! एक म्यान में दो तलवारें कभी आ सकती हैंघ्

म्यान में न सही...उसके आसपास ही रख लेना ।

मेरी तो समझ में नहीं आता कि आपको आज हो क्या गया है ।

रेणुका के होंठों की मुसकान गहरी होती जा रही थी ।

क्या एक साली अपने जीजा से प्यार नहीं कर सकती देव बाबूघ्

क्या मतलबघ् एक बार फिर चौंके देव बाबू और पूजा की तो रुकी हुई साँस जैसे फिर चल पड़ी ।

आप सोचिए । हम क्यों बताएँघ् रेणुका बोली ।

आपने तो हमें उलझन में डाल दिया रेणुका जी । कुछ समझा नहीं मैं ।

अब तो रेणुका के साथ—साथ पूजा के बन्द उधर भी मुसकरा उठे थे ।

साली यानी कि हम...तुम्हारी । रेणुका ने हँसकर कहा । देव बाबू भी रेणुका का परिहास किसी सीमा तक समझ गया था । अब वह भी खुलकर हँस रहा था और पूजा के लिए यह फिर शर्म से गर्दन झुकाने का समय आ गया था ।

साली तुम...दुल्हन कौनघ् देव बाबू ने कुरेदा ।

बिना मुख से कुछ कहे रेणुका ने पूजा की ओर संकेत कर दिया ।

अच्छा...अब समझा! एक बार फिर जोरदार हँसी का ठहाका गूँजा ।

आज तो आपने हमें खूब उल्लू बनाया रेणुका जी ।

और सालियों का काम ही क्या होता है जीजाजी ।

आपने इस विषय में पूजा जी से भी पूछा हैघ्

रेणुका ने झूठ नहीं कहा है । बिना रेणुका को बोलने का मौका दिए धीरे से पूजा ने किसी तरह कह ही दिया ।

तुम्हारे घर वाले मान जाएँगे क्याघ्

शायद न मानें मगर मैं उनकी नहीं सोचती ।

काँटों पर चलने वालों के पाँवो छलनी अवश्य हो जाते हैं पूजाए और यह राह तुम अच्छी तरह जानती हो कि काँटों—बिछी है ।

मंजिल मिल जाए तो दर्द अनुभव नहीं होता देव बाबू ।

और मंजिल न मिल पाए तोघ्

मंजिल की ओर चल पड़ना भी मेरे लिए कम सुखद नहीं होगा ।

परिवार के नाम पर बस एक मेरी माँ है और मैं अमीर भी नहीं हूँ ।

मेरे लिए सिर्फ तुम पर्याप्त हो ।

जीवन में यह एक बहुत बड़ा निश्चय होता है पूजाए अच्छी तरह सोचकर निर्णय लेना ।

मैं तो सोच चुकी हूँ देव बाबू ।

तो फिर मेरी भी यही इच्छा है । स्वीकृति पाकर पूजा का मन हर्षित हो उठा ।

मेज के निचे से आगे बढ़़ता देव बाबू का पाँव पूजा के पाँवों से टकरा गया था । वह देव बाबू की ओर देख रही थी । देव बाबू उसकी तरफ और रेणुका उस दोनों की तरफ देख—देखकर मुसकरा रही थी ।

वेटर कॉफी के प्याले मेज पर रख गया था । कुछ देर तक तीनों ही प्यालों से उठती भाप को देखते रहे ।

कहिए जीजाजीए अब तो हम आपसे प्यार कर सकते हैंघ् रेणुका ने कॉफी का प्याला उठाते हुए कहा ।

क्यों नहींए अब तो तुम्हारा अधिकार बन गया है ।

तीनों कॉफी सिप कर रहे थे ।

कॉफी पीकर प्याले मेज पर रखे तो वेटर बिल लेकर आ गया । पूजा ने बिल देने के लिए तश्तरी की तरफ हाथ बढ़़ाया तो रेणुका ने उसे रोक दिया ।

आज का बिल तो देव बाबू देंगे ।

ठीक है भई! आज की कॉफी हमारी तरफ से ही तो थी । कहते हुए देव बाबू ने वेटर की तश्तरी में पैसे रख दिए ।

तीनों उठकर रेस्तराँ से बाहर आए तो हवा तेज हो गयी थी । दूर वृक्षों में अन्धकार गहरा होता जा रहा था । इधर—उधर शिमला शहर की बतियाँ जगमगा रही थीं ।

अभी वे तीनों कुछ ही दूर चल पाए थे कि हवा एकाएक तीखी और नम हो गयी । शीध्र ही हवा में बर्फ के कण तैरने लगे जो इस बात के सूचक थे कि शीध्र ही हिमपात होने वाला है । तीनों तेजी से होटल की पगडण्डी पर आगे को बढ़़ गए । हिमपात प्रारम्भ होने से पूर्व ही वे किसी तरह होटल पहुँच जाना चाहते थे ।

जब वे होटल पहुँचेए उसके तुरन्त बाद ही तेजी से हिमपात प्रारम्भ हो गया । सभी छात्र—छात्राएँ दरवाजेए खिड़कियो और बरामदों में खड़े हिमपात का आनन्द ले रहे थे ।

उसे रात और अगले दिन कभी तीव्र और कभी धीमी गति से हिमपात होता रहा । हिमपात के समय बाहर घुमने का कोई कार्यक्रम बन ही नहीं सकता था । सभी छात्र—छात्राएँ आपस में हँसी—मजाक करते हिमपात का आनन्द लेते रहे । कमरे के एक कोने में टेप बजता रहा तो दुसरे में शतरंज की बाजी चलती रही ।

सन्ध्या पाँच बजे के लगभग हिमपात रुक गया था । मौसम अब साफ हो गया था परन्तु हवा में ठण्डक बहुत अधिक बढ़़ गयी थी । शाम का खाना खाने के उपरान्त बार—बार कॉफी पीने का दिल चाह रहा था ।

आसमान साफ हो चुका था । चाँद अपनी मनोरम छटा में चमक रहा था । आकाश में छिटके हुए तारे बड़े भले लग रहे थे । पूजा खिड़की की राह आसमान को ताक रही थी । उसकी इच्छा हुई कि ऐसे मौसम का आनन्द तो बाहर घूमकर ही लिया जा सकता है । उसके पाँव अपने कमरे से बरामदे की तरफ बढ़़ गए ।

बाहर बरामदे में देव बाबू अपने कमरे के सामने खम्भे का सहारा लिए खड़ा था । दोनों की —टि आपस में टकराई और दोनों खिंचकर एक—दुसरे की तरफ चले आए ।

यहाँ अकेले क्या कर रहे हो देवघ् पूजा के होंठों से निकला ।

मुझे सफेद बर्फ को देखना बहुत अच्छा लगता है । देव बाबू ने कहा ।

तो फिर बाहर निकलकर क्यों नहीं देखतेघ्

तुम साथ चलोगीघ्

ण्ण्ण् कुछ न कह गर्दन हिला स्वीकृति दे दी पूजा ने ।

बरामदे से निकलकर वे दोनों बाहर आ गए । सामने बर्फ ही बर्फ फैली हुई थी । नर्मए मुलायमए चाँद की रोशनी में चाँदी—सी चमकती हुई बर्फ । बर्फ में यात्रियों के आने—जाने से एक ठोस बर्फ की पगडण्डी—सी बन गयी थी । उसी पगडण्डी पर धीरे—धीरे वे दोनों खामोश आगे बढ़़ते जा रहे थे । रास्ता अनजान था मगर प्रकृति की सुन्दरता से मोहित वे इससे बेखबर अपने में खोए हुए थे । स्वच्छ आसमान में पूरा चाँद फैला हुआ था और बर्फ पर फैलती उसकी किरणों का सम्मोहन जादू—सा कर रहा था ।

राह में इक्के—दुक्के पहाड़ी इधर से उधर आ—जा रहे थे ।

उई । पाँव तनिक से फिसलने से पूजा की चीख निकल गयी मगर गिरने से पहले ही देव बाबू ने उसे बाँहों में समेट लिया । फिर न देव बाबू को उसे अलग करने का ख्याल रहा और न ही पूजा ने इसकी आवश्यकता समझी । देव बाबू की उँगलियाँ पूजा के बालों में उलझती चली गयीं ।

चाँद बहुत प्यारा निकला है देव ।

हाँ पूजा । पूजा की आँखों में झाँककर उतर दिया देव बाबू ने । पूजा खो गयी उस —टि में ।

पूजा की आँखों पर जैसे दूरबीन चढ़़ गयी थी । वह स्वयं से दूर होती जा रही थी । वह जैसे अनजान—से समुद्र पर तैर रही थी । समुद्र में चारों ओर भाप उड़ रही थी । सामने से देव बाबू दुल्हा बने उसकी ओर बढ़़े चले आ रहे थे । वह भी उड़कर उन्हीं की ओर खिंची जा रही थी ।

चौकीदार की सिटी की आवाजों ने दोनों को चौंका दिया ।

बहुत प्यारा सपना था पूजा ।

मेरा भी देव ।

चलोए बहुत देर हो गयी है ।

चलो ।

देव बाबू के कन्धों का सहारा लिए पूजा उस बर्फ की बनी पगडण्डी पर होटल की ओर चल पड़ी ।

सुबह मौसम बिलकुल साफ हो गया था । कार्यक्रम की अनुसार छात्र—छात्राओं का समूह शिमला से शहर की लिए रवाना हो गया ।

'''

भाग — नौ

हैलो पूजाए पढ़़ाई कैसी चल रही हैघ् पास आते हुए पंकज ने पूछा ।

कोई विशेष तो...पर लगता है पास हो जाऊँगी । पूजा ने कॉलिज की द्वार में प्रवेश करते हुए कहा । उस समय उसे पंकज का टोकना अच्छा न लगा था क्योंकि वह देव बाबू से मिलने की उत्सुकता लिए कैन्टीन की ओर जा रही थी । उसे पता था कि प्रायः प्रातःकाल कॉलिज लगने से कुछ देर पूर्व देव बाबू चाय के एक प्याले के लिए कैन्टीन अवश्य आता है ।

आओ कुछ देर बैठते है । कॉलिज लगने में तो अभी कुछ देर है । पंकज पूजा के स्वर की उपेक्षा को न पहचान सका था ।

सिर में हल्का—सा दर्द हैए मैं एक प्याला चाय पीने के बाद क्लास में आऊँगी । पूजा ने उसे टालना चाहा ।

चाय पीने की इच्छा तो मेरी भी है । अगर आपको कोई एतराज न हो तो...। पंकज ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी ।

मुझे क्या एतराज हो सकता है । आइए । शिटाचार के कारण ही पूजा ने कहा था अन्यथा वह तो चाहती थी कि किसी तरह उससे पीछा छुट जाए ।

विवश हो पूजा को उसके साथ कैन्टीन की तरफ जाना पड़ा । अभी तक देव बाबू कैन्टीन में नहीं आया था । क्योंकि आने के पश्चात्‌ घंटी लगने पर ही वह वहाँ से उठकर जाता था ।

पंकज पूजा के पड़ोस में ही रहता था । आज से चार वर्ष पूर्व वह इस शहर में आया था । अपना कहने के नाम पर एक चाचा के सिवा उसका इस संसार में कोई न था । चाचा ने ही उसे अब तक शिक्षा प्रदान करवायी थी और अब वह कुछ तो अपनी चित्रकारी से और कुछ ट्यूशनें करके अपनी पढ़़ाई के खर्चे का काफी हिस्सा जुटा लेता था ।

पंकज और पूजा के पिताजी की आयु में काफी अन्तर होने पर भी उनमें मित्रता का सम्बन्ध बन गया था । पूजा के पिताजी को शतरंज का बहुत शौक था और पंकज भी काफी अच्छी शतरंज खेल लेता था । प्रायः उस दोनों की शतरंज रविवार की सुबह जो जमती तो फिर शाम तक समाप्त होने का नाम न लेती । कभी—कभी अपने पिताजी की अनुपस्थिति में पूजा भी पंकज के साथ शतरंज पर बैठ जाया करती थी ।

पूजा ने बी. एड. में प्रवेश लिया था तो उसके पिताजी ने पंकज को उसकी देखभाल का उतरदायित्व भी सौंप दिया था । इससे पूर्व पूजा लड़कियों के कॉलिज में ही पढ़़ती रही थी । सहशिक्षा का उसका यह प्रथम अवसर ही था और पंकज को उसके पिताजी किसी सीमा तक घर का ही व्यक्ति समझने लगे थे ।

पंकज और रेणुका का परस्पर काफी हास—परिहास चलता रहता था और पूजा रेणुका को अक्सर पंकज का नाम लेकर चिढ़़ाती भी रहती थी । रेणुका जितने खुले विचारों की लड़की थी उससे पूजा के लिए यह अनुमान लगाना कठिन था कि वह पंकज को चाहती है या फिर बात सिर्फ हासपरिहास तक ही सीमित है ।

कैन्टीन का लड़का दो प्याले चाय उनके सामने रख गया था । तभी सामने से देव बाबू ने कैन्टीन में प्रवेश किया ।

आज तो पंकज भाई भी चाय पी रहे हैं । वह सीधा उनकी मेज के पास ही आ गया ।

आप भी आइए देव बाबू । पंकज ने कहा तो देव बाबू वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।

पंकज ने लड़के से तीसरा कप मँगवाया और दो प्यालों की चाय को तीन में करने लगा ।

और मँगा लेते हैं पंकज...आप अपने हिस्से में से क्यों दे रहे हैंघ्

नहीं देव बाबूए आज आप हमारे हिस्से की ही चाय पीकर देखिए । यह तो पीने की चीज है...एक प्याले में दो भी पी सकते हैं । कहते हुए पंकज ने तीसरा प्याला देव बाबू की तरफ बढ़़ा दिया ।

मेरे कारण आप लोगों की चाय भी ठण्डी हो गयी । कहकर देव बाबू ने अपना प्याला उठा लिया ।

कोई बात नहीं देव बाबूए वैसे भी मुझे अधिक गर्म वस्तु पसन्द नहीं है । पंकज ने कहा ।

इस उम्र में भीघ् देव बाबू ने परिहास किया ।

अपना—अपना शौक है देव बाबू । कहते हुए पंकज ने चाय का प्याला उठाकर होंठों से लगा लिया ।

आपकी पेंटींग्स पूरी हो गयी पूजा जीघ् देव बाबू ने पूछा ।

हाँए पंकज ने मेरी सारी फाइल पूरी कर दी है । बहुत अच्छी चित्रकारी करते हैं ये...तुम भी देखो । पूजा ने कहने से साथ ही अपनी पेंटींग्स की फाइल देव बाबू की तरफ बढ़़ा दी ।

देव बाबू कुछ देर पुठ पलटते रहे ।

आप तो बहुत बड़े चित्रकार हैं पंकज भाई ।

धन्यवाद ।

कैसे बना लेते हैं आप इतने सुन्दर चित्रघ्

जैसे आप गजल के शेर बना लेते हैं ।

आपको किसने बताया कि मैं...।

पूजा आपके विषय में अक्सर जिक्र करती है कि आप कितनी सुन्दर गजल लिखते हैं । कई गजल तो इन्होंने हमें दिखायी भी हैं । पंकज ने देव बाबू की बात पूरी होने से पहले ही कह दिया ।

हूँ...तो पूजा ने आपको भी बता दिया ।

कला छुपाई नहीं जाती देव बाबू ।

हाँए यह भी ठीक है । देव बाबू ने मुसकराते हुए कहा ।

अवकाश हो तो हमारे भी कुछ चित्र बना देना । कुछ सोचते हुए देव बाबू ने कहा ।

और बदले में इनसे गजल बनवा लेना । पूजा बीच में ही बोल उठी ।

हम दोनों के मध्य तो कला का रिश्ता है देव बाबू । आपके चित्र तो मैं अवश्य बनाऊँगा ।

धन्यवाद ।

इसकी आवश्यकता अपरिचितों को होती है । अब हम तो अपरिचित नहीं हैं । पंकज ने कहा ।

चाय समाप्त हो चुकी थी । पंकज ने कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखा—घंटी लगने का समय हो गया था । तीनों उठकर काउंटर पर आ गए । तीनों ही चाय के पैसे देना चाहते थे परन्तु देव बाबू उन सबसे आगे आ गया ।

आप दोनों मुझसे छोटे हैं इसलिए इस पहली चाय का बिल मुझे चुकाने दो । अधिकारपूर्वक देव बाबू ने कहा ।

अवश्य ही मैं आपसे छोटा हूँ परन्तु आप फिर भी मुझे आप का सम्बोधन दे रहे हैं । पंकज ने जेब में से हाथ निकाल लिया ।

ठीक हैए भविय में मैं इस बात का ध्यान रखूँगा । देव बाबू ने बिल चुका दिया और तीनों कैन्टीन से कक्षा की तरफ बढ़़ गए ।

तीसरी घंटी खली थी । प्राध्यापक महोदय आज अवकाश पर थे । पूजा रेणुका के साथ कॉलिज के लॉन में आ बैठी थी ।

रेणुकाए मैं तो पढ़़ ही नहीं पातीए न जाने पास भी हो पाऊँगी या नहीं ।

ऐसा ही होता है ।

कैसाघ्

जब प्यार हो जाता है! अब तो तू प्रेमशास्त्र ही पढ़़ा कर । क्या करेगी कॉलिज की पढ़़ाई करके ।

तू...ला देए निश्चय ही पढ़़ लूँगी । पूजा ने हँसकर कहा ।

लाऊँघ्

देवशास्त्रघ्

मजाक मत कर रेणुका । कोई काम की बात कर । हँसती हुई पूजा एकाएक गम्भीर हो गयी ।

तूने मम्मी से इस विषय में बात की थीघ्

प्रयास तो किया था मगर कर नहीं पायी ।

आज दो अप्रैल हो गयी पूजाए इस दिन बाद कॉलिज में परीक्षाओं की तैयारी के लिए अवकाश हो जाएगा । इसके पश्चात्‌ परीक्षा आरम्भ हो जाएगी...देव बाबू उसके बाद अपने गाँव लौट जाएगा...तू उसकी याद में बैठकर आँसू बहाती रहना ।

नहीं रेणुकाए नहीं...। वास्तविकता को पूजा सहन न कर सकी ।

मैं जाती हूँ...तू यहाँ बैठकर सोचती रह कि तुझे क्या करना है । कहते हुए रेणुका उठकर जाने लगी तो पूजा ने उसका आँचल पकड़कर उसे रोक लिया ।

रेणुका...मेरी बहन! तू तो मेरे बारे में सब कुछ जानती है । मैं प्रेम—भँवर में फँस गयी हूँ मेरी बहन...किसी तरह मुझे किनारे लगा देए नहीं तो मैं जी नहीं सकूँगी ।

तो एक काम कर ।

क्याघ् पूजा के अधीर मन को कुछ आशा बंधी ।

आज छुट्टी के बाद देव बाबू को अपने घर चलने का निमंत्रण दे दे । इस बहाने तेरी माताजी भी उसे देख लेंगी ।

पर मैं देव बाबू से कहूँगी क्याघ्

कुछ देर तो सोचती रही रेणुका फिर तेजी से बोलीए पंकज ने उसकी फाइल तैयार कर दी है क्याघ्

नहीं तो...।

मगर यह बहाना तो हो सकता है कि पंकज ने उसकी फाइल पूरी कर दी है और वह तुम्हारे घर पर है ।

मेरी अच्छी रेणुका । पूजा चहक उठी ।

देख अब घंटी बज रही है । जल्दी से क्लास में चलए नहीं तो वह चार आँखों वाला सहगल साहब चार आने जुर्माना कर देगा । रेणुका के हँसते हुए उसकी पीठ पर चपत लगाई और दोनों उठकर कक्षा में चली गयीं ।

पाँचवीं घंटी समाप्त होकर छठी और अन्तिम घंटी प्रारम्भ हो गयी थी । पूजा रेणुका का हाथ पकड़कर कक्षा से बाहर खींच लायी ।

घंटी क्यों छोड़ रही हो पूजाघ् रेणुका ने आश्चर्य से पूछा ।

मन नहीं लग रहाए आओ बाहर लॉन में बैठते हैं । पूजा को समय काटना बड़ा कठिन लग रहा था ।

लेकिन तेरा ब्रह्मचारी तो घंटी छोड़ेगा नहींए इसलिए प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी...लेकिन तू घबरा मतए डॉक्टर बाबू के आते ही मैं उसे मरीज का सारा हाल बताऊँगी ।

जो तेरी इच्छा हो कह ले रेणुका ।

जलेगी तो नहींघ्

अधिक तंग करेगी तो तेरा सिर तोड़ दूँगी ।

बहुत प्यार आता है तेरे गुस्से परय देव बाबू होते तो यही कहते । हँसते हुए रेणुका ने कहा और दोनों के पाँव अनजाने ही कैन्टीन की तरफ बढ़़ गए ।

इसी समय पूजा की —टि सामने से आते पंकज पर पड़ी । शायद उसने भी घंटी छोड़ दी थी । पूजा को उसका इस समय आना अच्छा न लगा ।

रेणुकाए सामने देख!

क्योंए पंकज है ।

तू समझती नहीं । पूरा जोंक हैए देख लिया तो पीछा नहीं छोड़ेगा ।

तो क्या हुआघ् समझते हुए भी रेणुका ने अपनी आदत के अनुसार पूजा को तंग किया ।

रेणुका...। क्रोध भी था परन्तु दबी—सी आवाज में पूजा ने कहा ।

समझी! तो बाई—पास कर दूँघ्

हाँ ।

अच्छाए तू कैन्टीन में जाकर बैठए मैं उसकी छुट्टी करके आती हूँ ।

पूजा तेजी से कैन्टीन में प्रवेश कर एक कोने की तरफ बढ़़ गयी । कुछ देर की प्रतीक्षा के उपरान्त जब वह बोर होने लगी तो एक प्याला चाय का मँगा लिया ।

घड़ी की सुइयाँ धीरे—धीरे आगे खिसकती जा रही थीं । पूजा चाय के घूँट भरती रेणुका की प्रतीक्षा कर रही थी । आखिर चाय का अन्तिम घूँट भर उसने प्याला मेज पर रख दिया । रेणुका अभी तक नहीं लौटी थी ।

तभी घंटी बजी । पूजा का ह्रदय धड़क उठा । वह सोच रही थी कि सम्भवतः वह आज देव बाबू को अपने घर नहीं ले जा सकेगी ।

उसकी आशा के विपरीत देव बाबू ने कैन्टीन में प्रवेश किया । द्वार में घुसकर उसने इधर—उधर —टि दौड़ाई तो एक कोंने में खामोश बैठी पूजा उसकी नजर से छिप न सकी ।

पूजाए तुम यहाँ कोने में दुबकी बैठी होघ्

तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थी ।

लेकिन...घ्

पंकज ने तुम्हारी फाइल पूरी कर दी है । देव बाबू को बिना अधिक कुछ कहने का अवसर दिए पूजा ने कह दिया ।

कहाँ पर है फाइलघ्

मेरे घर पर ।

कल ले आना ।

आज ही चलकर ले लीजिए ।

तुम्हारे घर चलकरघ् आश्चर्य से देव बाबू ने पूछा ।

मेरा घर इतना बुरा है क्याघ्

यह बात नहीं है पूजा! शायद तुम्हारे घरवाले मुझे देखकर कुछ और न समझने लगें ।

एक दिन तो उसको समझाना ही है देव बाबू । फिर मेरे घरवाले इतने पुराने विचारों के नहीं हैं कि एक सहपाठी का मेरे साथ घर आना उन्हें बुरा लगे । तुम्हें घर ले जाकर मुझे खुशी होगी देव ।

तुम्हें इससे खुशी मिलती है तो फिर मैं अवश्य ही चलूँगा ।

देव बाबू कह ही रहा था कि तभी रेणुका वहाँ आ गयी ।

कह रहा था कि कहीं आपने पूजा को देखा हैघ् मैंने तो कह दिया कि वह अभी—अभी घर की ओर गयी है । वह तो फिर नाक की सीध में घर की ओर हो लिया । पहले तो वह पीछा ही नहीं छोड़ता था । कुछ देर तो मैंने उससे इधर—उधर की बातें कीं और फिर अपने दो—तीन चार्ट उसके जिम्मे लगा आयी । रेणुका कह रही थी ।

कौन थाघ् देव बाबू ने पूछा ।

बेचारा चित्रसेन पंकज । हँसते हुए रेणुका ने कहा ।

चलो रेणुकाए घर चलते हैं । पूजा ने उठते हुए कहा ।

हाँ भईए अब चाय की कहाँ पूछोगी !

वह घर पल पिला दूँगी । पूजा के कहने के साथ ही तीनों उठकर कैन्टीन से बाहर आ गए ।

कॉलिज के द्वार से निकलकर तीनों चुपचाप कोलतार की सड़क पर बढ़़े चले जा रहे थे ।

पढ़़ाई कैसी चल रही है पूजाघ् देव बाबू ने मौन तोड़ा ।

मन नहीं लगता पढ़़ने में । पूजा के कुछ कहने से पूर्व ही रेणुका बीच में बोल पड़ी ।

क्योंघ्

आजकल कुछ मानसिक उलझनों में फँसी है बेचारी । पढ़़ना तो चाहती है परन्तु पढ़़ नहीं पाती । रात को सो नहीं पाती और किसी तरह आँख लग भी जाती है तो सपनों में किसी का नाम ले—लेकर बडबड़ाने लगती है ।

रेणुका! पूजा ने बनावटी क्रोध प्रदर्शित करते हुए कहा ।

पूजा जीए परीक्षा निकट है—पढ़़ाई में मन लगाना चाहिए । देव बाबू ने सुझाव दिया ।

काश! यह मेरे वश में होता । मन ही मन पूजा ने सोचा मगर मुख से कुछ न कह सकी ।

पूजा का मकान आ गया था । देव बाबू अन्दर प्रवेश करते हुए कुछ संकोच कर रहा था । मगर पूजा उन्हें सीधे अपने कमरे में ले गयी ।

बहुत सुन्दर चित्र लगाए हैं पूजा । कमरे की दीवारों पर टँगी पेंटींग्स को एक —टि से देखते हुए देव बाबू ने कहा ।

अधिकतर चित्र पंकज के बनाए हुए ही हैं । पूजा ने कहा ।

आप बैठिए तो । बेचारी पूजा तो आपके आने की खुशी में इतनी पागल हो गयी है कि इसे आपको बैठाने की सुध भी नहीं है । रेणुका ने कहा ।

अपने घर में अपनों को बैठाने की आवश्यकता नहीं होती । कहकर देव बाबू बैठ गए । पूजा को देव बाबू का यह कहना बहुत अच्छा लगा ।

मैं आपके लिए चाय लेकर आती हूँ । पूजा ने कहा ।

औपचारिकता में न पड़िए ।

औपचारिकता कैसी देव बाबूघ् एक प्याला चाय तो चलेगी ही । कहते हुए पूजा तेजी से कमरे से बाहर निकल गयी । कुछ ही देर में वह एक प्लेट में कुछ नमकीन तथा दूसरी प्लेट में बर्फी लेकर लौटी । साथ ही रसोई में स्टोव के जलने की आवाज सुनाई दे रही थी—वह चाय बनने को रख आयी थी ।

तुम बैठो पूजाए मैं चलती हूँ । रेणुका ने उठकर चलते हुए कहा ।

चाय नहीं पिओगीघ्

नहीं ।

क्योंघ्

तुम देव बाबू को पिलाओ...मेरी इच्छा नहीं है ।

परन्तु ठहरो तो ।

मैं अभी पुस्तकें रखकर आती हूँ । कहती हुई वह तेजी से बाहर निकल गयी ।

पूजा भी चाय लाने के बहाने उठकर रसोई में चली गयी । पूजा ट्रे में चाय की केतली और प्याले रखकर लौटी तो देव बाबू सामने रखी पत्रिका के पुठ पलट रहा था । पूजा ने चाय की ट्रे मेज पर रख दी और साथ वाली कुर्सी पर बैठ गयी ।

कुछ देर को वातावरण जैसे बोझिल—सा हो गया । पूजा के हृदय की धडकनें तीव्र हो गयी थीं । चाय को केतली से प्यालों में डालते हुए उसके हाथ काँप रहे थे ।

रेणुका कह रही थी कि तुम...।

वह सच कह रही थी देव बाबू! पूजा बिच में ही कह उठी ।

शिमला में इस विषय पर बात हुई थी । मैंने हाँ कहते हुए भी तुम्हें सोचने के लिए कहा था ।

मैंने बहुत सोच लिया है देव बाबू ।

प्यार शब्द प्रत्येक मनुय आसानी से कह तो देता है लेकिन इसकी मर्यादा को कायम रखना बहुत कठिन होता है ।

तुम्हें पाने को मैं हर कठिनाई को पार कर गुजरूँगी । मुझे केवल आपका सहारा चाहिए ।

हमारी जाती भी एक नहीं है ।

कोई फर्क नहीं पड़ता ।

बूढ़ी माँ के सिवा मेरा इस संसार में कोई और नहीं है ।

मैं सबकी पूर्ति कर दूँगी ।

पूजा ।

हाँ देव!

तुमने आज मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया है । जो बात मैं कहने का साहस नहीं कर पा रहा था उसे तुमने स्वीकार कर लिया है । मैंने तुम्हें शमा पर उड़ते पतंगे की तरह चाहा है...रात को जाग—जागकर तुम्हारे सपने संजोए हैं । अब मैं आराम से सो तो सकूँगा । देव बाबू भावुकता में कह रहा था ।

अरे! आप लोग अभी तक यूँ ही बैठी हैघ् चाय तो ठण्डी भी हो गयी होगी । रेणुका ने कमरे में आते हुए कहा ।

तू पी ले । पूजा ने कहा ।

क्योंए तेरी इच्छा समाप्त हो गयी हैघ् रेणुका ने आँखें मटकाते हुए कहा ।

कौन है बेटीघ् पूजा की माँ ने कमरे में आते हुए कहा ।

देव बाबू हैं माँए मेरे साथ पढ़़ते हैं । पूजा ने कहा ।

देव बाबू के हाथ माँ को प्रणाम करने के लिए जुड़ गए । माँ उसे आशीर्वाद देकर बाहर चली गयी ।

पूजा ने अन्दर से एक प्याला और लाकर चाय केतली से प्यालों में डाली और तीनों चाय पीने लगे ।

अब मैं चलूँगा पूजाए समय बहुत हो गया है । देव बाबू ने कहा ।

समय कैसे बीत गयाए कुछ पता ही न चला । मुझे तो अब होश आया है जब तुमने जाने के लिए पूछा है । मैं तो भूल ही गयी थी कि आने वाला जाता भी है । कहना चाहा पूजा ने परन्तु मुख से कुछ न कहकर मन ही मन उदास हो गयी वह ।

देव बाबूए आपने बर्फी तो खाई ही नहीं । आज इस खुशी के मौके पर बर्फी तो अवश्य खानी ही चाहिए । रेणुका के कहा तो देव बाबू ने प्लेट से बर्फी का एक टुकड़ा उठाकर मुँह में डाल लिया ।

पूजा को तो सुध ही नहीं थी । देव बाबू चलने लगा तो यंत्रवत्‌ उसके हाथ जुड़ गए । खामोश—सी वह वहीँ खड़ी रही । रेणुका ही उसे द्वार तक छोड़कर आयी ।

पेंटींग्स की फाइल न बनी थी और न देव बाबू को उसे माँगने का ही होश रहा था ।

बोलए दुल्हा तैयार हो गया शादी की लिएघ् रेणुका ने लौटते हुए पूजा की पीठ पर मुक्का जमाते हुए कहा ।

हाँ । गर्दन झुकाए पूजा इतना ही कह सकी ।

कल रविवार हैए मैं आंटी से बात कर लूँगी । अब चलती हूँ । कहती हुई वह तेजी से निकल गयी और पूजा वहीँ बैठी जीवन की आशाओं में उलझी रही ।

'''

भाग — दस

रविवार की सुबह पूजा सोकर उठी तो उसके मस्तिक में कल की बात घूम रही थी । कल रेणुका ने कहा था कि वह आज उसकी माँ से देव बाबू के विषय में बात करेगी । वह रेणुका की ही प्रतीक्षा कर रही थी । आज उसके जीवन में एक बहुत बड़ा निर्णय होने वाला था । मन आशंकित भी था कि कहीं बात बिगड़ न जाए ।

दस बजे के लगभग जब रेणुका आयी तो पूजा अपने कमरे में बैठी हुई थी । उसकी माँ बराबर वाले कमरे में थी । रेणुका पूजा के पास न आकर सीधी उसकी माँ के पास ही चली गयी ।

बराबर के कमरे में बैठी पूजा उत्सुकता से रेणुका और अपनी माँ के मध्य होने वाली बात सुनने की प्रतीक्षा कर रही थी ।

आंटीए कल जो लड़का हमारे साथ आया था उसे आपने देखा था नघ् रेणुका कह रही थी ।

हाँ देखा तो था । देव बाबू नाम बताया था न उसकाघ् वह उसकी माँ का स्वर था ।

हाँए कैसा हैघ्

अच्छा है । क्योंए क्या बात हैघ्

उससे शादी की बातघ्

तेरी शादी की...घ्

नहीं आंटीए पूजा की ।

पूजा कीघ् माँ एकदम चौंक—सी पड़ी थी ।

हाँ आंटीए पूजा उससे शादी करना चाहती है ।

पूजा उससे शादी करना चाहती हैघ् मगर उसने तो कभी जिक्र नहीं किया ।

उसने मुझसे कहा था ।

मगर हमें उसके गाँव काए जाती काए खानदान का कुछ भी तो पता नहीं है ।

आंटीए गाँव में बस उसकी एक बूढ़ी माँ है । वैश्य जाती है । बहुत समझदार लड़का है आंटीए हमेशा कक्षा में पहले नम्बर पर आता है । रेणुका ने देव बाबू की प्रशंसा की ।

लेकिन वह हमारी जाती का नहीं है फिर पूजा की उससे शादी कैसे हो सकती हैघ्

आंटीए पूजा उसे बहुत चाहती है ।

नहीं बेटीए एक लड़के ने तो पहले ही दूसरी जाती में विवाह करके हमारी नाक कटवा रखी हैए अब पूजा की शादी मैं अपनी जाती से बहार नहीं करूँगी । पूजा की माँ ने मना कर दिया तो बराबर के कमरे में बैठी पूजा का दिल बैठने लगा ।

अच्छी तरह सोचकर ही फैसला करना आंटी । रेणुका कह रही थी ।

क्या पूजा ने तुझे मेरे पास भेजा हैघ्

हाँ ।

इसके बाद पूजा को कोई स्वर सुनाई न दिया । कुछ देर बाद उसे रेणुका के वापस जाते पाँवों की आहट सुनाई दी । पूजा का हृदय धड़क उठा ।

वह सोचकर धबरा रही थी कि अब उसकी माँ उसके पास आकर इस विषय में पूछ—ताछ करेगी । अपनी माँ से बातें करने का वह साहस नहीं जुटा पा रही थी । वह कैसे अपनी माँ से इस विषय में कुछ कह सकेगीए उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।

समस्या से बचने का उसे एक ही उपाय सुझा । वह पलंग पर चादर खिंचकर लेट गयी ताकि माँ यदि आए भी तो उसे सोता देखकर वापस चली जाए । उसे प्रतिपल अपनी माँ के आने का भ्रम हो रहा था । सोने का बहाना किए उसके कान दरवाजे की ओर लगे थे । हवा के झोंके से भी दरवाजा हिलता तो उसे माँ के आने का भ्रम—सा होता ।

उसकी आशा के विपरीत काफी देर तक उसकी माँ उस कमरे में न आयी । सोने का बहाना किए कुछ समय बीता तो उसकी आँख लग ही गयी । दो घंटे सोने के बाद जब वह उठी तो बराबर वाले कमरे से फिर किसी की बातों का स्वर आ रहा था । पूजा ने ध्यान से सुना—उसके पिताजी वापस आ गए थे और उसकी माँ उनसे उसीके विषय में बात कर रही थी । वह जिज्ञासा से उनके मध्य हो रही वार्ता को सुनने लगी ।

पूजा की माँ ने उनको वह सब कुछ बता दिया जो रेणुका उन्हें बता कर गयी थी ।

सब कुछ सुनने के बाद पूजा के पिताजी ने पूछाए तुमने पूजा से इस विषय में कोई बात कीघ्

नहींए मैंने तो उससे अभी तक कुछ नहीं पूछा । अब वह बच्ची तो रही नहीं । सब कुछ सोचने—समझने लगी है । मैं तो आपके आने की ही प्रतीक्षा कर रही थी ।

उस लड़के को मैंने उस दिन देखा था जब पूजा शिमला घूमने गयी थी । जब मैं पूजा को बस पर छोड़ने गया था तो उसने मुझे उससे मिलवाया था । मेरे मन में उस समय भी शंका तो उठी थी लेकिन मैंने बाद में इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया । हाँए देव बाबू नाम ही बताया था पूजा ने उसका । लड़का तो भला लगता था ।

लेकिन वह हमारी जाति का नहीं है ।

किस जाति का हैघ्

वैश्य जाति का है ।

तो हमसे छोटी जाति का तो नहीं है ।

यह सुनकर पूजा की माँ झुँझला उठीए हमसे छोटी जाति का तो नहीं है...हूँ! तुम्हारी तो बुढ़़ापे में अकल ही सठिया गयी है । शादी—ब्याह अपनी ही बिरादरी में ठीक होता है पूजा के पिताजी । एक लड़के ने तो पहले ही हमारी नाक कटवा रखी है ।

जरा ठण्डे दिमाग से सोच भाग्यवान । जब तेरे लड़के ने एक हरिजन की लड़की से शादी करने की बात की तो तूने उसे स्वीकार नहीं किया । परिणाम क्या हुआए क्या वह शादी रुकीघ् उसने कचहरी में शादी कर ली । आज तेरी लड़की अपने से ऊँची जाति में विवाह करना चाह रही है तो भी तू इसे नहीं मान रही । पूजा अब सयानी हो गयी है । वह अपना भला—बुरा स्वयं सोच सकती है । यदि तूने पहले की तरह ही जिद की तो मुझे डर है कि कहीं पहले की तरह न पछताना पड़े । लड़का तो हमें छोड़कर चला ही गयाए अब सिर्फ यह एक लड़की रह गयी है । पूजा के पिताजी की आवाज भावनावश नम हो गयी थी ।

क्या पूजा भी ऐसा कर सकती हैघ्

यह जवानी का जोश होता है पूजा की माँ । अब जमाना बदल रहा है । भला इसीमें है कि हम पीढ़़ी के लिए अपनी पुरानी लकीरों को छोड़ दें ।

बड़े की शादी का कितना चाव था मुझे । अब तो उसको एक लड़का भी हो गया है लेकिन वह तो हमें ऐसे भूल गया है जैसे हम उसके माँ—बाप ही नहीं हैं ।

माँ का स्वर अपने बड़े लड़के की याद में भीग गया था ।

पूजा को कुछ आशा बंधी । उसे लगाए माँ का ह्रदय पिघल रहा है । माँ अपने बेटे से अलग होने पर दुख व्यक्त कर रही थी ।

पूजा की माँए तुम पूजा से इस बारे में बात कर लेना ।

नहीं...मैं तो बात नहीं कर सकूँगी । मुझमें तो अब इतनी हिम्मत नहीं...है ।

कोई बात नहींए उसे यहाँ मेरे पास भेज दे । मैं उससे बात कर लूँगा । पूजा के पिताजी ने कहा ।

माँ आएगी यह सोचकर पूजा एक पुस्तक खोलकर पढ़़ने बैठ गयी ।

पूजाए तेरे पिताजी बुला रहे हैं । माँ ने कमरे के बाहर से ही आवाज लगायी । पूजा ने अपना साहस बटोरा । दरवाजे से बाहर निकली तो उसे लगा जैसे उसके पाँव काँप रहे हैं । वह किसी तरह हिम्मत जुटा रही थी । पिताजी की बात वह सुन चुकी थी । इसी कारण कुछ साहस हो रहा था आगे बढ़़ने का ।

धीरे—धीरे चलती हुईए गर्दन झुकाए पूजा अपने पिताजी के पास कमरे में पहुँची ।

बैठो बेटी । पिताजी ने कहा तो वह सामने की कुर्सी पर बैठ गयी ।

पूजा बेटीए मैंने सुना है तुम देव बाबू से शादी करना चाहती होघ्

हाँ पिताजी। किसी तरह साहस बटोरकर पूजा ने कहा ।

तुम तो जानती हो कि वह हमारी जाति का नहीं है ।

वह एक शरीफ आदमी तो है पिताजी । —टि बिना उठाए ही पूजा पिताजी की बात का उत्तर दे रही थी ।

वह तो ठीक है बेटीए लेकिन उसके साथ क्या तुम्हें वे सुख—सुविधाएँ मिल सकेंगी जो यहाँ मिल रही हैघ्

सुविधाएँ न सही मगर सुख तो अवश्य ही मिलेगा पिताजी ।

अच्छी तरह सोच लेना बेटीए कहीं बाद में पछताना न पड़े ।

मैंने इस विषय में बहुत सोचा है पिताजी । किसी तरह साहस जुटाए पूजा कह रही थीए शेष सब तो जो भाग्य में होता है वही मिलता है । मेरी खुशी तो इसी में है ।

तो फिर ठीक है । मैं देव बाबू से इस विषय में बात करूँगा । कल मैं सुबह तेरे साथ ही कॉलिज चलूँगाए मुझे उससे मिलवा देना और अब तुम अपना मन पढ़़ाई में लगाओए परीक्षा सिर पर है ।

जी पिताजी ।

हर्षित मन पूजा उठकर अपने कमरे में आ गयी । उसकी इच्छा पूर्ण हो गयी थी । इतनी खुशी थी कि वह स्वयं में समेट नहीं पा रही थी । उसका मन करता था कि ढ़ोलक पीटकर सारे नगर में खबर कर दे कि आज वह बहुत खुश है । उसे अपने—आप पर भी हँसी आ रही थी । मन की इस खुशी को व्यक्त करने के लिए उसके पाँव रेणुका के घर की तरफ बढ़़ गए ।

रेणुका अपने कमरे में बैठी कोई कोर्स की पुस्तक पढ़़ रही थी । पूजा ने उसकी पुस्तक छीनकर पलंग पर फेंक दी । रेणुका उसे देखकर कुर्सी से खड़ी हो गयी ।

तू आज रास्ता कैसे भूल गयीघ्

भूल गयी रास्ता जो अपनी रेणुका से मिलने का दिल किया । खुशी से उसके होंठ मुसकरा रहे थे । वह स्वयं को रोक न सकी और रेणुका से लिपट ही गयी ।

क्या बात है पूजाए बहुत खुश होघ् क्या हाथ लग गयाघ्

बसए कुछ लग ही गया ।

समझीए मम्मी मान गयी लगती हैघ्

हाँ रेणुका । पूजा ने उसके कन्धे पर अपना मुँह छिपा लिया ।

बधाई हो पूजा । तूने बाजी जीत ही ली ।

तूने जितवा दी रेणुकाए मेरी बहन!

तो बोल क्या इनाम दे रही हैघ्

इसके बदले में तुझे क्या दूँ रेणुकाए मेरे पास तो कुछ भी नहीं है । तूने मुझपर बहुत उपकार किया है ।

मेरे उपकार की फीस बहुत छोटी होती है ।

क्याघ्

एक प्याला चाय । कहकर रेणुका हँस दी ।

अच्छा चलए आज तुझे जी भरकर दावत दूँगी । कहते हुए रेणुका को खींचकर पूजा दरवाजे की ओर चल दी ।

अगले दिन पूजा अपने पिताजी को साथ लिए कॉलिज पहुँची । उसने उन्हें देव बाबू से मिलाया और स्वयं कक्षा में चली गयी । उन दोनों की बातें सुनने की उसकी इच्छा तो थी मगर संकोच के कारण वह वहाँ ठहर नहीं सकी थी ।

कक्षा में उसका दिल न लगा । देव बाबू भी उसके पिताजी से बातें करके दुसरे पीरियड में कक्षा में आ गया था । दूसरा पीरियड समाप्त हुआ तो पूजा ने उसकी ओर देखा । वह मंद—मंद हँस रहा था । पूजा कक्षा में बैठी न रह सकी और उठकर कॉलिज के पास बाग की ओर चली ।

देव बाबू उसकी स्थिति को समझ गया था । वह भी कक्षा छोड़कर बाग की तरफ चल दिया ।

पूजा एक वृक्ष के नीचे आँखें बन्द किए बैठी थी । उसके कान देव बाबू के पाँवों की आहट की प्रतीक्षा कर रहे थे ।

पास आती पदचाप से पूजा ने अनुमान लगा लिया कि देव बाबू वहाँ पहुँच गया है । आँखें खोलने को जैसे उसका दिल ही नहीं चाह रहा था ।

पूजाघ्

हाँ ।

आँखें तो खोलो ।

नहीं देव बाबूए ऐसे ही रहने दो । मेरा सपना बहुत सुन्दर है ।

लेकिन सपने की क्या आवश्यकता है—मैं तो सामने ही हूँ । आगे बढ़़कर देव बाबू पूजा के समीप ही बैठ गया ।

पिताजी क्या कह रहे थे देवघ्

कह रहे थे कि पूजा से न मिला करो ।

क्योंघ् पूजा ने चौंककर आँखें खोल दीं ।

क्योंकि उसकी परीक्षा निकट है और यदि तुम उससे मिलते रहोगे तो वह पढ़़ नहीं पाएगी । अगर वह फेल हो गयी तो उसका उत्तरदायित्व तुमपर होगा ।

तुमपर क्योंघ्

क्योंकि उन्होंने अपनी लाड़ली को मेरे साथ बांध दिया है ।

यह बात है । कुछ और कहा उन्होंनेघ्

देव बाबू एकाएक कुछ गम्भीर हो गए ।

पूजाए जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाएगी तब तक तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ।

मैं कर लूँगी देव ।

तो फिर ठीक है । अब हमें कुछ दिन अलग—अलग रहना होगा । प्रतिदिन मिलने से कॉलिज में बदनामी भी हो सकती है और हमें परीक्षा की तैयारी भी करनी है । तुम भी पढ़़ाई में अपना मन लगाओ । गम्भीरता से देव बाबू ने कहा ।

प्रयत्न करुँगी । पूजा ने कहा ।

मुझसे कोई सहायता लेनी हो तो संकोच न करना ।

संकोच कैसाय अब तो सारा जीवन ही तुमसे सहायता लेनी होगी । पूजा ने मन ही मन सोचा और बिना कुछ कहे उठकर चल दी ।

पूजाए तुम्हारा रुमाल रह गया है । पीछे से देव बाबू की आवाज आयी ।

कोई बात नहींए इसे तुम रख लेना । देखोगे तो हमारी याद आ जाएगी । पूजा ने रुकते हुए बिना पीछे मुड़े कहा ।

याद तो उनकी आती है जिन्हें भुलाया जा सके । तुम्हें क्या मैं कभी भुला सकूँगाघ् आगे बढ़़ती पूजा के कानों में देव बाबू के शब्द पड़े ।

पूजा रुमाल भूली नहीं थी अपितु जान—बूझकर वहाँ छोड़ आयी थी । दो दिन लगाए थे उसने उसकी कढ़़ाई करने में । रेशमी धागों से एक कोने में लिखा था—देव—पूजा । काढ़़ने के पश्चात्‌ उसे पढ़़कर बार—बार लजा जाती थी वह । सुबह उस रुमाल में सेंट की कुछ बूँदें डालकर उसने देव बाबू को देने के लिए अपने पास रखा था । हाथ से देने का साहस वह न कर पाई तो इस तरीके से उसने वह रुमाल देव बाबू के लिए छोड़ दिया था ।

कुछ आगे बढ़़कर उसने पीछे मुड़कर देखा—देव बाबू रुमाल को अपने अधरों से लगा रहे थे । यह देखकर वह लजा गयी और तेजी से बाग से बाहर निकल गयी ।

देव बाबू वहीँ पेड़ से पीठ टीकाए मुसकराते हुए खड़ा रहा ।

'''

भाग — ग्यारह

उस दिन के पश्चात्‌ पूजा परीक्षा की तैयारी में लग गयी । कॉलिज में परीक्षा की तैयारी हेतु अवकाश हो चुका था । कॉलिज न जाने के कारण देव बाबू से भेंट भी नहीं हो पाती थी । उसके ह्रदय में कई बार देव बाबू से मिलने की इच्छा बलवती होती मगर वह किसी तरह स्वयं पर नियंत्रण कर पढ़़ाई में लग जाती । रेणुका प्रायः उसके घर आती रहती थी और जब भी वह उसके पास आतीए देव बाबू को लेकर परिहास किए बिना न रहती ।

धीरे—धीरे समय व्यतीत होता गया । परीक्षाएँ समाप्त हो गयीं । परीक्षाओं के मध्य पूजा की भेंट प्रतिदिन ही देव बाबू से होती थी । देव बाबू को आशा थी कि वह प्रथम श्रेणी अवश्य ही ले लेगा और पूजा को भी अपनी सफलता में कोई सन्देह न था ।

परीक्षा समाप्त हुए तीन दिन हो चुके थे । इन तीन दिनों में पूजा उत्सुकता से देव बाबू की प्रतीक्षा करती रही थी । परीक्षा के अन्तिम दिन देव बाबू ने कहा था कि वह कल अवश्य ही उसके घर आएगा । दो दिन प्रतीक्षा में कट गए थे । कल रात पूजा ने सोचा था कि वह सुबह रेणुका को साथ लेकर अवश्य ही उससे मिलने जाएगी ।

प्रातः काल ही देव बाबू पूजा के घर पहुँच गया । अनेक शंकाओं से घिरा पूजा का मन हर्षित हो उठा । काफी देर तक देव बाबू पूजा के पिताजी से उनके कमरे में बैठा बातें करता रहा । पूजा अपने कमरे में बैठी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । इस मध्य वह एक बार शर्बत लेकर वहाँ गयी थी परन्तु देव बाबू को एक —टि देखने के सिवाय वह उससे कोई बात नहीं कर पाई थी ।

पूजा के पिताजी से बातें करने के बाद देव बाबू पूजा के पास आ गया । पूजा दरवाजे में ही खड़ी उसकी रह देख रही थी ।

नमस्ते देव बाबू...!

मैं आज गाँव जा रहा हूँ पूजा ।

क्योंघ् पूजा का मन अनेक शंकाओं से घिर गया ।

माँ अधिक बीमार है पूजाए और अब परीक्षाएँ भी समाप्त हो चुकी हैं ।

शाम को मिलोगेघ्

नहीं पूजाए मुझे आज दोपहर की गाड़ी से ही जाना होगा । माँ का तार आया है ।

मुझे भूल न जाना देव!

अपने को कोई भूल सकता है क्याघ्

न जाने क्योंए मन डर रहा है ।

मैं तुम्हें बराबर पत्र लिखूँगा । तुम खुश रहना पूजा ।

तुम खुश रहने की कहते हो देवए मैं सोच रही हूँ कि समय कैसे व्यतीत होगा ।

समय कभी नहीं रुकता पूजा । किसी न किसी तरह बीत ही जाता है ।

पूजा की आँखों में आँसू छलक आने को आतुर हो रहे थे ।

आज अन्दर भी नहीं बुलाओगी क्याघ् हँसते हुए देव बाबू ने कहा ।

क्या बुलाने की आवश्यकता हैघ्

दोनों दरवाजे से हटकर कमरे में आ गए । पूजा और अधिक स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी और देव बाबू के वक्ष से चिपटकर सिसक उठी ।

देव बाबू क्या कहता! चुपचाप उसकी पीठ पर हाथ फिर उसे सांत्वना देता रहा । कुछ देर पश्चात्‌ किसी तरह पूजा ने अपनी रुलाई पर काबू पाया तो देव बाबू ने अपनी उँगली से उसके आँसुओं को पोंछ दिया ।

मैं जा रहा हूँ पूजा । पूजा को स्वयं से अलग करते हुए देव बाबू ने कहा ।

पूजा का मन तो चाह रहा था कि किसी भी तरह वह उसे रोक ले परन्तु यह क्या उसके वश में था! आखिर देव बाबू द्वार की तरफ बढ़़ गया । पूजा वहीँ खड़ी स्थिर निगाहों से उसे जाते हुए देखती रही ।

देव बाबू चला गया । पूजा प्रतिदिन उसके पत्र की प्रतीक्षा करने लगी । पत्र की प्रतीक्षा में दिन लम्बा होने लगा । रोज डाकिया उनके मकान के सामने से निकल जाता परन्तु उसकी प्रतीक्षा समाप्त न होती ।

एक सप्ताह पश्चात्‌ देव बाबू का पत्र आया । यह पत्र पूजा के पिताजी के नाम था । संयोग से उस दिन वे घर पर ही थे । पत्र पढ़़ा तो वे कुछ चिन्तित हो गए ।

क्या बात है पिताजीघ् अपने पिताजी के मुख पर चिन्ता की लकीरें देखते हुए पूजा ने घबराकर पूछा ।

देव बाबू की माँ का देहान्त हो गया है बेटी । कहते हुए उन्होंने पत्र पूजा की ओर बढ़़ा दिया ।

मुझे आज ही उसके गाँव जाना होगा बेटी । मेरा सामान तैयार कर देनाए शायद एक—दो दिन वहाँ ठहरना भी पड़े । पूजा के पिताजी ने कुछ सोचते हुए कहा ।

अच्छा पिताजी । कहकर पूजा दुसरे कमरे में जा अपने पिताजी का सामान तैयार करने में लग गयी ।

पूजा के पिताजी भी कई दिन तक गाँव से न लौटे । वे यही कहकर गए थे कि अधिक से अधिक दो—तीन दिन में लौट आएँगे परन्तु आज पाँच दिन व्यतीत हो गए थे । घर में सभी को स्वाभाविक चिन्ता हो रही थी ।

छठे दिन पूजा के पिताजी देव बाबू के साथ स्कूटर से घर के सामने उतरे । पूजा ने देखा तो मुसकरा उठी मगर उसे गम्भीर होना पड़ा । यह खुशी का उपयुक्त अवसर न था । देव बाबू की माँ का देहान्त हो चुका था । वह उससे मिलने को आतुर तो थी परन्तु अपनी आतुरता प्रकट नहीं कर सकती थी ।

स्कूटर से उतरकर पूजा के पिताजी देव बाबू के साथ अपने कमरे में चले गए । पूजा उनका सामान उठाकर अन्दर रखने लगी ।

अपने पिताजी के साथ देव बाबू के आने से पूजा चकित थी । संकोच के कारण वह किसीसे इसका मतलब भी नहीं पूछ सकती थी ।

देव बाबू पूजा के पिताजी से बातों में व्यस्त था । अपनी माँ को उनके कमरे में जाती देख वह भी दरवाजे के समीप जाकर खड़ी हो गयी ।

पूजा की माँए यह तो मेरे साथ आ ही नहीं रहा था । बड़ी मुश्किल से समझाकर इसे अपने साथ लाया हूँ । पूजा के पिताजी कह रहे थे ।

एक—दो दिन में कोई कमरा यहाँ मिल गया तो मैं चला जाऊँगा । देव बाबू संकोच से कह रहा था । दरवाजे पर खड़ी पूजा को उसका यह कहना अच्छा न लगा ।

क्यों बेटाघ् पूजा की माँ ने कहा ।

मैं किसी पर बोझा नहीं बनना चाहता माँजी ।

अपने बेटे भी कभी बोझ हुआ करते हैं पागल! क्या मैं तेरी माँ नहीं हूँ बेटेघ् पूजा की माँ ने स्नेह से कहा ।

अब तो आप ही मेरे सब कुछ हैं । आपके सिवाय अब मेरा कोई भी तो नहीं है । भावुकता से देव बाबू ने कहा ।

फिर मकान की चिन्ता क्यों करता हैघ् जब तक भी यहाँ रहे...इसे अपने घर समझकर रह ।

यह यहीं रहेगा पूजा की माँ । इसे जाने ही कौन देगाघ् तुम जाकर पूजा से कह दो कि शर्बत बना दे । गर्मी से बुरा हाल हो रहा है ।

अपनी माँ के आने से पूर्व ही पूजा शर्बत बनाने के लिए वहाँ से हट गयी ।

अब देव बाबू वहीँ पर रहने लगा था । सारा दिन वह घर से बाहर नौकरी और कमरे की तलाश में भटकता रहता । सुबह—शाम वह पूजा को दिखाई तो अवश्य देता मगर न जाने क्यों अब वह उससे अपने ह्रदय की बात करने से कतराने लगा था । पूजा अवसर की तलाश में रहती थी कि किसी तरह कुछ देर उससे बात कर सके और वह प्रयास करता कि भेंट न हो ।

उस रात पूजा दूध का गिलास लेकर उसके कमरे में पहुँच गयी । उसने निश्चय कर लिया था कि आज वह उससे अवश्य ही उसकी उदासी का कारण पूछेगी ।

आजकल बहुत उदास रहते हो देवघ्

हाँ पूजाए न जाने क्यों मैं आजकल अपने मन पर एक बोझ—सा महसूस करता हूँ ।

माँ चली गयीए इसीका बोझ तुम महसूस कर रहे होघ् एक दिन सभी के माँ—बाप जाते हैं देव!

वह दुःख तो है ही पूजाए लेकिन...। कहते—कहते वह रुक गया । उसकी —टि नीचे की ओर झुक गयी ।

और क्या दुःख है देवए क्या मुझसे छिपाओगेघ्

सच कहूँ पूजाए तुम्हार घर में रहना मुझे अच्छा नहीं लगता ।

देव...।

इसे अन्यथा न समझो पूजा । मुझे यहाँ कोई कट नहीं है मगर फिर भी मैं कब तक तुम्हारे घरवालों पर बोझ बना रहूँ । प्रतिदिन मकान की तलाश में निकलता हूँ लेकिन कोई ढ़ंग का मकान मिलता ही नहीं । देव बाबू के मुख पर चिन्ता की रेखाएँ गहरी हो गयीं ।

तुम बहुत भावुक हो देवए इसलिए ऐसा सोचते हो । तुम्हारे यहाँ रहने से किसीको भी कोई कट नहीं है ।

हाँ पूजाए लेकिन मैं स्वयं को समझा तो नहीं पाता ।

अधिक न सोचा करो देव!

माँ के चले जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ पूजा । भावुकता से देव बाबू ने कहा ।

तुम स्वयं को अकेला क्यों सोचते होघ् मैं तुम्हारे साथ हूँ देव । पूजा उसके और अधिक निकट हो गयी । उसने उसके माथे पर हाथ रखा और धीरे—धिरे बालों को सहलाने लगी ।

देव बाबू को बहुत अधिक सुख मिल रहा था । इस सुख से उसकी पलकें मूँदी जा रही थीं ।

पूजाए मेरे नम्बरों की देखकर प्राचार्य ने कहा था कि बीटाए तुम्हें तो निकलते ही नौकरी मिल जाएगी...तुम जैसे होनहार छात्रों के लिए सफलता के द्वार सदा खुले रहते हैं । इन दो महीनों में मैंने कितने ही प्राइवेट स्कूलों में कोशिश की है पूजाए मगर कहीं से कोई जवाब नहीं मिलता । डी. ए. वी. स्कूल के मैनेजर ने इन्टरव्यू के समय पूरा आश्वासन भी दिया था मगर...

बी. एड. किए हुए अभी समय ही कितना हुआ है देव! कुछ समय तो नौकरी मिलने में लगता ही है ।

तभी माँ की आती आवाज को सुनकर पूजा को वहाँ से उठकर जाना पड़ा ।

इतने समीप होकर भी वे दोनों आपस में कितने दूर हो गए थे! जब से देव बाबू पूजा के घर आया था तो पूजा उसीके विषय में सोचती रहती थी । उसकी हर छोटी से छोटी सुविधा का ध्यान रखती थी मगर देव बाबू का संकोच उन्हें स्वतन्त्र रूप से मिलने नहीं देता था । पूजा कई बार सोच उठती थी कि इससे अच्छा तो कॉलिज का समय ही था । कम से कम देव बाबू के मुख पर मुसकान तो थिरकती रहती थी । यहाँ आकर तो उनकी वह मुसकान न जाने कहाँ गायब हो गयी थी । पूजा ने मन में बड़ी घुटन—सी रहने लगी थी । रात को देर तक पूजा के कमरे की बिजली जली रहती और वह रोशनी में लेटी न जाने क्या—क्या सोचती रहती ।

उस दिन दोपहर को देव बाबू लौटा तो पूजा ने कितने ही दिनों बाद उसके मुख पर मुसकान देखी थी । पूजा की माँ बराबर वाले कमरे में सो रही थी । देव बाबू पूजा पर एक मुसकराती —टि फेंककर अपने कमरे की तरफ बढ़़ गया ।

कुछ देर बाद पूजा भी चाय का कप लेकर उसके कमरे में चली गयी । आज वह भी अपने मन में एक खुशी का समाचार छिपाए हुए थी और शीध्र ही देव बाबू को वह समाचार बता देना चाहती थी । देव बाबू की गहराती हुई मुसकान देखकर उसका जोश कुछ ठण्डा पड़ गया । उसने सोचा कि सम्भवतः किसी तरह उसे यह समाचार मिल चुका है जिससे कि वह आज इतना खुश है ।

क्या बात है...आज बहुत खुश होघ् पूजा ने पूछा ।

हाँ पूजाए तुम्हारे शहर में सिर छुपाने को एक कमरा मिल गया है ।

बसए इतनी—सी बात हैघ् पूजा ने हँसते हुए कहा ।

मेरे लिए यह लंका जीतने से कम नहीं है पूजा ।

हमारे पास इससे भी अधिक खुशी का समाचार है ।

क्याघ्

तुम्हारी नौकरी डी. ए. वी. स्कूल में...।

सच पूजाघ् अविश्वास और आश्चर्य से उसने कहा ।

देख लो । कहते हुए पूजा ने आज डाक से आया नियुक्ति—पत्र उसके हाथ में थमा दिया ।

मैं आज बहुत खुश हूँ पूजा । कहकर देव बाबू पूजा से लिपटने को आगे बढ़़ा मगर उसी क्षण पूजा मुसकराकर कमरे से भाग गयी ।

पूजा की माँ जाग चुकी थी । पूजा को इस तरह हडबडाकर भागते हुए आते देखा तो उन्होंने पूछा...क्या बात है पूजाघ्

माँए मकान में एक कुत्ता आ गया था...बस काट ही लेता! घबराहट में पूजा कोई उपयुक्त बहाना न सोच यही कह गयी ।

पागल था क्याघ्

हाँ माँए लगता थाए पागल ही हो गया है । एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरा झूठ बोला पूजा ने ।

मैंने भगा दिया है माँजी । बराबर वाले कमरे से देव बाबू ने कहा तो सिहर उठी पूजा । तो क्या उन्होंने सब कुछ सुन लिया हैए यह सोचकर वह लज्जित हो उठी । मकान में ठहरना उसके लिए कठिन हो रहा था इसलिए वह रेणुका के घर की तरफ भाग गयी ।

'''

भाग — बारह

आज सन्ध्या को पूजा रेणुका के पास से लौटी तो उसने देखाए देव बाबू अपना सामान बाँध चुके थे । दोपहर ही उसने पूजा से कहा था कि आज साँझ ही वह इस घर को छोड़ देगा ।

बहार ताँगा आकर खड़ा हो गया था । पूजा की माँ और पिताजी वहीँ खड़े थे । देव बाबू ताँगे वाले से समान तो ताँगे में रखवा रहा था । अन्त में सभी सामान ताँगे में रखवा चुकने के बाद देव बाबू ने उन दोनों के पाँव छूकर चलने के लिए अनुमति माँगी ।

तुम्हें यहाँ से जाने देना हमें अच्छा तो नहीं लगता बेटाए मगर तुम्हारी जिद के सामने हम कुछ कर भी नहीं सकते । पूजा के पिताजी ने कहा ।

कभी—कभी चक्कर लगाते रहना बेटा । पूजा की माँ ने कहा ।

जरुर माँजी । कहकर देव बाबू कमरे से बाहर आ गया । पूजा उससे बहुत कुछ कहना चाहती थी मगर खामोश खड़ी उसे देखती रही । देव बाबू ने एक —टि मुसकराकर उसे देखा और हाथ हिलाकर चलने की अनुमति चाही । माँ और पिताजी की उपस्थिति में वह हाथ हिलाकर उसे विदा भी न कर सकी । बस...मन मसोसकर रह गयी वह । ताँगा धीरे—धीरे आँखों से ओझल हो गया परन्तु पूजा यूँ ही खड़ी उस सड़क को ताकती रही ।

देव बाबू को किराये के कमरे में गए कई दिन व्यतीत हो गए थे । पूजा को प्रतिदिन ही यह प्रतीक्षा रहती थी कि आज वह उससे मिलने अवश्य आएगा । इसी प्रतीक्षा के कारण वह सारा दिन घर से बाहर न निकलती । कई दिन तक भी जब वह न आया तो पूजा की प्रतीक्षा बेचौनी में बदल गयी । कहीं पर भीए किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता था । हर पल वह उससे मिलने का उपाय सोचती रहती । उसे तो देव बाबू के कमरे का पता भी मालूम न था । माँ तो पता था मगर संकोच के कारण वह उनसे पूछ नहीं पाती थी । यदि पूजा को देव बाबू के कमरे का पता मालूम होता तो शायद वह दो दिन भी प्रतीक्षा न कर उससे मिलने के लिए वहाँ पहुँच जाती ।

आखिर इसके लिए भी उसे रेणुका का ही सहारा लेना पड़ा । जब उसने अपनी समस्या उसके सामने रखी तो कुछ देर तो उसने अपने स्वभाव के अनुसार उसे तंग किया परन्तु अगले दिन प्रातः ही उसने पूजा की माँजी से देव बाबू के कमरे का पता पूछकर पूजा को बता दिया ।

पूजा को पता क्या मिलाए उसकी उदासी मुसकराहट में बदल गयी । सन्ध्या को पाँच बजे तैयार होए एक सहेली से मिलने का बहाना करके वह देव बाबू से मिलने के लिए चल दी ।

रेणुका द्वारा दिए गए पते पर जाकर पूजा ने पूछाए देव बाबू इसी मकान के एक कमरे में रहते हैंघ् उसने धड़कते ह्रदय से आगे बढ़़कर दरवाजा खटखटा दिया ।

खोलता हूँ...रोज तंग करने के लिए आ जाती है । अन्दर से आती आवाज को सुनकर पूजा चकित रह गयी । आवाज तो देव बाबू की ही थी परन्तु वह उसके कहने का अर्थ नहीं समझ पा रही थी ।

कौन आती है रोज...रोजघ् सोचकर पूजा के मन को एक धक्का—सा लगा ।

दरवाजा खोला तो देव बाबू भी चकित रह गया ।

पूजाए तुम! आओए अन्दर आओ । सामने पूजा को खड़ी देखकर उसने कहा ।

कौन आती है रोज—रोज तंग करनेघ् क्रोध और संशय की कुछ लकीरें पूजा के मुख पर खिंच आयी थींए जो देव बाबू से भी अनदेखी न रह सकीं ।

माफ करना पूजाए मुझे क्या पता था कि तुम आयी हो ।

यह तो मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हैघ्

कौन—से प्रश्न काघ् देव बाबू भी गम्भीर हो गया ।

कौन आती है रोज आपके पासघ्

अच्छा समझा । देव बाबू की गम्भीरता एक गहरी मुसकान में बदल गयीए संशय न करो पूजाए इस समय प्रतिदिन एक भिखारिन रोती माँगने आती है ।

यदि देव बाबू के हाथ में पूजा ने रोटी न देख ली होती तो शायद उसका संशय दूर न हो पाता परन्तु अब उसकी शंका का समाधान हो गया था । इस समय तो पूजा को स्वयं पर शर्म—सी अनुभव हो रही थी कि उसने व्यर्थ ही देव बाबू पर शक किया ।

देव बाबू ने पूजा की उस स्थिति को भाँप लिया था इसलिए बात को मोड़ देते हुए उसने कहाए बैठोगी नहीं क्याघ्

पूजा आगे बढ़़कर पलंग के एक किनारे पर बैठ गयी । कमरा साफ—सुथराए हवादार था परन्तु वहाँ की प्रत्येक वस्तु जिस स्थिति में थी उससे देव बाबू का अनाड़ीपन और लापरवाह स्वभाव की झलक मिल रही थी ।

क्या हल है पूजाघ् देव बाबू ने भी पास ही बैठते हुए कहा ।

कभी मछली को पानी से बाहर फेंक दिए जाने पर उसकी स्थिति को देखा है देवघ्

तुम्हारे मन की बात मैं समझता हूँ पूजा । अब हमारी राह में कोई रूकावट नहीं है । मैं शीध्र ही पिताजी से बात करूँगा ।

तुम्हारे बिना अब एक दिन भी कितना बोझिल हो जाता है—यह भी शायद तुम समझ सकते हो ।

तो ऐसा करो...तुम यहीं ठहर जाओ । शादी बाद में कर लेंगे । हँसकर देव बाबू ने कहा । पूजा भी हँसे बिना न रह सकी ।

कुछ देर कमरे में उनकी हँसी छाई रही ।

मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूँ ।

तुम चाय बनाओगेघ्

क्योंघ्

चाय बनानी आती हैघ्

अब तो खाना बनाना भी सीख गया हूँ । मुसकराकर देव बाबू ने कहाए कहो तो आज शाम का खाना तुम्हें अपने हाथ से बनाकर खिला दूँ ।

ख्याल तो बुरा नहीं है लेकिन अभी तो तुम मुझे ही चाय बनाने दो । कहते हुए पूजा उठ खड़ी हुई ।

किचिन बराबर में है । देव बाबू ने उँगली से उसे बताते हुए कहा और स्वयं एक पत्रिका के पृठ पलटने लगा । पूजा किचिन की तरफ चली गयी ।

कमरे वाली स्थिति किचिन की भी थी । एक कोने में स्टोव पड़ा था तो माचिस ढ़ूँढ़े से नहीं मिल रही थी । किसी तरह पूजा ने पिन और माचिस तलाश की और स्टोव जलाकर चाय के लिए पानी रख दिया ।

पानी स्टोव पर खौलता रहा मगर पूजा जो कमरे में आकर अस्त—व्यस्त सामान को ठीक करने लगी तो उसे यह ध्यान ही न हरा कि वह स्टोव जलाकर चाय बनने के लिए उसपर पाने रख आयी है । कुछ देर तो देव बाबू बैठा पूजा को वह सब कार्य करते हुए देखता रहा और फिर स्वयं रसोई की तरफ बढ़़ गया ।

पूजा को सुध आयी तो देव बाबू चाय के प्यालों को मेज पर रख रहे थे ।

ओह! मैं तो चाय बनाना भूल ही गयी थी । पूजा ने चौंकते हुए कहा ।

अब तो हम तुम्हें माफ कर देते हैं । मगर शादी के बाद अँगीठी पर सब्जी को जलने के लिए ही न छोड़ दिया करना । हँसकर देव बाबू ने कहा और पूजा हाथ धोकर पलंग पर आ बैठी ।

खामोशियों के मध्य चाय पी जा रही थी । देव बाबू कमरे की ओर देख रहा था जो कि बदला—बदला—सा लग रहा था ।

तुम्हारे हाथ लगते ही यह घर बन गया है पूजा ।

पहले घर नहीं था क्याघ्

पहले खण्डहर था पूजाए तुम्हारे आने पर महल हो गया है ।

मगर तुम्हारे आने से हमारा घर तो सूना हो गया है ।

चिन्ता न करो । जल्दी ही हम तुम्हें उस घर से ले आएँगे ।

कबघ्

पूजा ने कहा तो देव बाबू उसके मुख की ओर देखता रह गया । पूजा भी कहकर लगा गयी और उसकी —टि झुक गयी ।

चाय समाप्त हो चुकी थी । पूजा चलने के लिए उठ खड़ी हुई ।

इतनी जल्दी चल दी पूजा!

जल्दी! सात बज रहे हैं । क्या घर से निकलवाने का इरादा हैघ्

एक दिन तो निकलना ही है ।

लेकिन समय आने पर ।

फिर अब आओगीघ्

जब तुम आओगे । कहकर तेजी से बाहर निकल गयी पूजा ।

उसके पाँव तो आगे नहीं बढ़़ रहे थे परन्तु किसी तरह वह उन्हें धकेल रही थी ।

देव बाबू के साथ आने की भी उसने प्रतीक्षा न की । वह चकित—सा दरवाजे पर खड़ा जाती हुई पूजा को देखता रहा ।

दो दिन बाद जब पूजा फिर देव बाबू से मिलने के लिए घर से निकल रही थी तो उसके पिताजी ने उसे टोक दिया ।

देव बाबू से मिलने जा रही हो बेटीघ्

सुनकर पूजा का मन शंकित हो उठा । उसकी प्रश्न—भरी —टि अपने पिताजी के मुख की ओर उठी ।

तुम्हारी शादी की तारीख पक्की कर दी है बेटी...अगले महीने की बीस तारीख । अब रोज उससे मिलना ठीक नहीं है । कहकर पूजा के पिताजी वहाँ से चले गए ।

पूजा की इच्छा तो थी कि वह देव बाबू से मिलकर उस खुशी को बाँट ले परन्तु अपने पिताजी की बात टालने का साहस उसमें न था । देव बाबू से न मिल सकने का उसे दुःख अवश्य था परन्तु वह दुःख बीस तारीख की प्रतीक्षा की खुशी में नीचे दब गया था ।

'''

भाग — तेरह

विवाह की पहली रात । पूजा कमरे में फूलों से सजी सेज पर सिमटी हुई बैठी थी । घर में देव बाबू की एक रिश्ते की ताई के सिवाय और कोई न था । दोनों ओर के ही सम्बन्धी इस विजातीय विवाह से प्रसन्न नहीं थे । देव बाबू का तो अपना कहने को कोई सगा था ही नहींए पूजा के रिश्तेदारों ने भी इस विवाह का बहिकार कर दिया था ।

छत पर लगा नया पंखा घूम रहा था । ट्यूब लाइट का तेज प्रकाश कमरे में फैल रहा था । देव बाबू की ताई दिनभर के काम से थककर ऊपर छत पर लेटी आराम कर रही थी । पूजा के कान दरवाजे पर कदमों की आहट पर लगे थे ।

हल्के से दरवाजा खुलने की आवाज से पूजा ने —टि उठाकर उधर देखा । आगन्तुक ने कमरे में प्रवेश किया तो पूजा की —टि वहाँ से हटकर फिर पलंग पर झुक गयी । वह तो देव बाबू को अच्छी तरह से देख भी नहीं पायी थी । यधपि देव बाबू उसके लिए अनजान नहीं थे परन्तु फिर भी उसका ह्रदय खुशी के साथ—साथ भय से तनिक घबरा भी रहा था ।

धीरे—धीरे आगे बढ़़ते देव बाबू पलंग के पास आकर खड़े हो गए । पूजा यंत्रवत्‌ उठकर उनके पाँवों में झुक गयी । देब बाबू ने उसे उठाकर अपने वक्ष से लगा लिया । पूजा उनके ह्रदय से लगी धड़कनें सुन रही थी । दोनों ही मौन थे । कोई कुछ नहीं कह पा रहा था । हाँए हृदय की धड़कनों की भाषा अवश्य ही दोनों समझ रहे थे ।

देव बाबू ने उसे अपने हाथों का सहारा देकर पलंग पर बिठा दिया । ट्यूब—लाइट के तीव्र प्रकाश को बटन दबाकर उन्होंने हल्की गुलाबी मनोरम रोशनी में परिवर्तित कर दिया । बन्द दरवाजे पर लगा पर्दा पंखे की तेज हवा से इधर—उधर उड़ रहा था ।

पूजाए मेरा सपना साकार हो गया ।

मैंने भी यही सपना देखा था देव ।

उसे रात देव बाबू का प्यार पाकर पूजा ने सोचा था कि उसे जीवन में प्यार का अभाव कभी नहीं होगा । बहुत सराहा था उस रात उसने अपने भाग्य को ।

समय बहुत तेजी से व्यतीत होता जा रहा था । पूजा का दिन देव बाबू के लौटने की प्रतीक्षा और घर के कामों में कटताए शाम दूर—दूर तक घूमने में और रात्रि तो न जाने कब व्यतीत हो जाती ।

दो सप्ताह का स्कूल से अवकाश लेकर मसूरी भ्रमण का कार्यक्रम बनाया गया । वहाँ दिन—भर घूमने—फिरने और मौज—मस्ती के और कोई काम ही नहीं था । हाथों में हाथ डाले वे ऊँची—नीची पहाड़ियों में दूर तक घुमने निकल जाते और जब लौटते तो थककर एक—दुसरे में खो जाते ।

दिनों को जैसे पंख लग गए थे । पलक झपकते ही जैसे दो सप्ताह का समय व्यतीत हो गया । वे वापस लौटे तो फिर अपने मकान में अकेले थे । देव बाबू की ताई तो उनके मसूरी जाने से पहले ही गाँव चली गयी थी ।

जिस दिन वे मसूरी से लौटे उस रात मौसम—परिवर्तन के कारण पूजा के सिर में असहनीय दर्द हो गया । पूजा देव बाबू को अपने दर्द के विषय में कुछ बताने में संकोच कर रही थी मगर मुख पर उभरे भावों से वे सब कुछ समझ गए थे ।

पास आकर देव बाबू ने पूजा के माथे पर अपना हाथ रख दिया ।

तुम्हारा माथा तो जल रहा है पूजा । लगता है बुखार है और तुमने मुझे कुछ बताया भी नहीं ।

कोई विशेष नहीं है देव! कुछ देर में ठीक हो जाएगा!

मैं डॉक्टर को बुलाता हूँ ।

तुम किसी डॉक्टर से कम हो क्या! कुछ देर पास बैठोगे तो बुखार चुटकी में उतर जाएगा । हँसते हुए पूजा ने कहा ।

मजाक न करो पूजा । मैं अभी आता हूँ । कहकर देव बाबू उठकर जाने लगे तो पूजा ने उनका कमीज पकड़कर उन्हें रोक लिया ।

थोड़ी—सी थकान है देवए आराम करने से ठीक हो जाएगी । तुम तो व्यर्थ ही मेरी इतनी चिन्ता करते हो । पूजा ने कहा ।

देव बाबू पूजा के सिरहाने बैठ गए । कुछ पल उनकी उँगलियाँ उसके बालों में खेलती रहीं और फिर वे उसका माथा दबाने लगे ।

क्या कर रहे हो! पूजा ने उनका हाथ पकड़ लिया ।

तुम्हारे सिर में दर्द है पूजाघ्

अब ठीक हो गया है । पूजा ने झूठ कहा ।

नहीं...नहीं...बिलकुल ठीक होने दो । पूजा से हाथ छुड़ाकर वे पुनः उसका माथा दबाने लगे ।

क्यों मुझे पाप की भागी बना रहे हो देव!

मुझे अच्छा लगता है ।

नरक मेंए वाह भई! खूब कही तुमने भी । तुमने कृण—लीला की वह कहानी पढ़़ी हैघ्

कौन—सीघ्

लौए मैं तुम्हें वह कहानी सुनाता हूँ । कहते हुए उन्होंने बातों में उलझा लिया पूजा को और उसे यह कहानी सुनाने लगे ।

एक बार कृण की गोपियों में यह विवाद छिड़ गया कि कौन कृण को सबसे अधिक प्यार करती है ।

फिर...। पूजा ने कहा ।

कृण महाराज ने उस सबकी परीक्षा लेने का निश्चय किया ।

कैसेघ्

अचानक उनके पेट में बहुत जोर से दर्द हुआ । मारे दर्द के वे छटपटाने लगे । वैध—हकीम बुलाए गए लेकिन कोई अराम नहीं हुआ । सभी रानियाँए गोपियाँ और दासियाँ चिन्तित—सी वहाँ खड़ी थीं । तभी कृण महाराज के एक सखा ने बताया कि यदि कृण का कोई चाहने वाला अपने पाँव धोकर वह पानी उन्हें पिलाए तो उन्हें आराम आ सकता है ।

फिर...। पूजा ने उत्सुकता से पूछा ।

फिर सभी एक—दुसरे का मुख ताकने लगीं । सभी कृण को प्यार करती थीं परन्तु उन्हें अपने पाँव का पानी पिलाकर नरक का भागी कौन बनती । सभी ने मना कर दिया । बात राधा तक पहुँची । दौड़ती हुई वह महल में आयी और सब कुछ सुनकर बेझिझक अपने पाँव का पानी उन्हें पिलाने के लिए तैयार हो गयी ।

ओह...। पूजा के मुख से निकला ।

एक गोपी ने राधा से कहा कि क्यों वह ऐसा करने अपना जीवन बिगाड़ रही हैय उसे सीधा नरक में जाना पड़ेगा । यह सुनकर भी राधा विचलित नहीं हुई और कहने लगी कि क्या हुआ जो उसे नरक जाना पड़ेगाए उसके प्राणेश्वर तो ठीक हो जाएँगे । उस समय सभी के मुँह लटक गए जब कृण महाराज ने कहा कि वे तो परीक्षा ले रहे थे कि कौन उन्हें सबसे अधिक चाहती है और राधा उस परीक्षा में विजयी रही । कहकर एक पल को वे मौन हो गए ।

तुमसे बातों में तो मैं नहीं जित सकती देव । पूजा ने कहा ।

हमारे मध्य हार—जीत का प्रश्न ही कहाँ है पूजा ।

मुझसे इतना प्यार क्यों करते हो देवघ्

कहाँ कर पाता हूँ पूजा । जी तो चाहता है तुम्हारी प्रत्येक इच्छा को पूरी कर दूँ । चाँदनी रात में आकाशगंगा के पथ पर तुम्हें साथ लेकर आगे बढ़़ता रहूँ । सारे संसार की खुशियाँ मैं तुम्हारी झोली में डाल देना चाहता हूँ ।

कुछ भी तो शेष नहीं बचा देवए जो तुमने मुझे न दिया हो । अब सो जाओए रात आधी से अधिक बीत चुकी है ।

सिर का दर्द कैसा हैघ्

मालूम ही नहीं कि मुझे सिरदर्द भी था ।

प्यार से कुछ देर पूजा के माथे पर हाथ फिराते रहे देव बाबू और पूजा की आँखें स्वतः ही बन्द होती चली गयीं ।

'''

भाग — चौदह

देव बाबू तीन—चार दिन के लिए शहर से बाहर जा रहे थे । उनके एक मित्र का विवाह था और उसने बड़े आग्रह से उन्हें बुलाया था । उन्होंने पूजा से भी साथ चलने के लिए कहा मगर उन्हीं दिनों उसकी एक सहेली का विवाह था । वह साथ न जा सकी तो विवश देव बाबू को अकेले ही जाना पड़ा ।

एक सप्ताह तक देव बाबू नहीं लौटे तो पूजा को चिन्ता हुई । आठवें दिन प्रतीक्षा करते हुए पूजा को उनका फोन मिला । पड़ोस के मकान में ही टेलीफोन था । पड़ोसिन के बुलाने पर पूजा भागती हुई वहाँ पहुँची ।

हैलो...। दूसरी ओर से आती हुई देव बाबू की आवाज को पूजा पहचान गयी ।

मैं पूजा बोल रही हूँ देव ।

कैसी हो तुमघ्

मैं तो ठीक हूँए लेकिन तुम अभी तक लौटे क्यों नहींघ् मुझे यहाँ चिन्ता हो रही है ।

एक आवश्यक काम से यहाँ फँस गया हूँ पूजाए इसीलिए अभी तक नहीं आ सका ।

कब तक लौटोगेघ्

मुझे लगभग महिना—भर लग जाएगा । ऐसा करनाए तुम अपने पिताजी के पास चली जाना ।

लेकिन ऐसा क्या जरुरी काम हो गया हैघ् पूजा ने पूछाए मगर दूसरी ओर से बिना कोई उत्तर दिए देव बाबू ने सम्बन्ध—विच्छेद कर दिया । पूजा हाथ में रिसीवर पकड़े झुँझलाकर रह गयी । उसे तो उनका टेलीफोन नम्बर और पता भी मालूम न था । रिसीवर को क्रेडिल पर पटकते हुए वह अपने कमरे में भाग आयी । उसका ह्रदय अन्दर से भर आया था । कमरा बन्द कर वह देर तक आँसू बहाती रही ।

पूजा कुछ भी कर सकने में असमर्थ थी । उसकी इच्छा तो थी कि वह उड़कर पति के पास पहुँच जाएए मगर कैसेघ् उसे तो उनका पता भी मालूम न था । आखिर सन्ध्या को एक निश्चय करके वह उठी और कपड़ों की एक अटैची लेकर अपने पिताजी की पास चली गयी । पूजा के पिताजी उसके इस तरह अचानक अकेले आने पर चकित तो हुए मगर जब पूजा ने उन्हें सारी बात बतायी तो वे निश्चिन्त हो गए ।

एक महीने के स्थान पर दो महीने व्यतीत हो गए थे । देव बाबू वापस नहीं लौटे थे । इधर पूजा बेचौनी से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी और उसके पिताजी भी उनकी कोई सूचना न पाकर चिन्तित हो उठे थे ।

आखिर एक दिन स्कूल के चपड़ासी ने आकर पूजा को देव बाबू के लौट आने की सुचना दी ।

लेकिन वे कब आएघ् पूजा ने पूछा ।

अभी—अभी ही आए हैं । मुझे राह में ही मिल गए थे । मुझे देखा तो उन्होंने मुझे आपको बुलाने के लिए भेज दिया ।

लेकिन वे यहाँ पर क्यों नहीं आएघ् आश्चर्य से पूजा ने पूछा ।

उनकी तबीयत ठीक नहीं है ।

क्योंए क्या बात हैघ् पूजा ने व्यग्रता से पूछा ।

कह रहे थे कि बहुत थका हुआ हूँय तुम पूजा को मेरे आने की सुचना दे आओ ।

थके हुए हैं! पूजा ने झुँझलाते हुए सोचाए दो महीने तक बाहर घूमते रहे तब नहीं थके और यहाँ तक आने के लिए वे थके हुए हैं!

चपड़ासी सुचना देकर चला गया ।

पूजा की झुँझलाहट अधिक देर तक स्थिर न रह सकी । वह सोच उठी कि कहीं वे सचमुच ही बीमार न हों । यह सोचकर वह तुरन्त जाने के लिए तैयार हो गयी । अपनी माँ को सुचना देए वह अटैची लेकर वहाँ से चल पड़ी ।

वहाँ पहुँचकर पूजा ने जब अपने पति को देखाए तो एकाएक देखती ही रह गयी । वे सुखकर काँटा हो गए थे । मुँह पीला हो गया था और आँखें अन्दर को धँस गयी थीं । एक बार को तो उन्हें पहचानने में भी धोखा हो सकता था ।

यह तुम्हें क्या हो गया है देव! अधीरता से अटैची को वहीँ पटकए उनके पास बैठते हुए पूजा ने कहा ।

कुछ नहींए यूँ ही जरा बीमार हो गया था । कमजोरी—सी आ गयी है । कहने के साथ ही देव बाबू की आँखें छलछला उठीं । आँखों में उभरे आँसुओं को उसने गर्दन फिराकर पूजा से छिपाना चाहा ।

पूजा ने पति का मुख अपनी हथेलियों में ले लिया । उनके आँसुओं ने उसे शंकित कर दिया था ।

क्या बात है देवए मुझसे छिपा रहे होघ्

कुछ नहीं ।

कुछ तो है । तुम्हारी आँखों के आँसू...। कहते—कहते पूजा का गला भी भर आया ।

जाओ चाय तैयार करो । आते ही तंग करने बैठ गयीं । कहकर देव बाबू ने मुँह मोड़ लिया ।

सुनकर पूजा सन्न रह गयी । मन को एक झटका—सा लगा था । उसे लगा जैसे सैकड़ों बिजलियाँ एकसाथ उसपर गिर पड़ी हों । उसके पति दो माह के बाद लौटे थे और लौटने पर यह उपेक्षाघ् एक बार को तो उसे लगा जैसे वे उसके पति नहींए उनके रूप में कोई और ही लौटकर आया है ।

उस दिन पूजा ने अपमान का पहला कड़वा घूँट पिया था । उसके अन्दर अपमान की ज्वाला उठी थी और वह उठकर तेजी से रसोई में आ गयी थी ।

दीवार पर लगे घंटे के टनटनाने से पूजा की चेतना लौटी । सुनहरे अतीत में खोए कब पाँच बज गएए उसे पता ही न चला । उसने देखाए पास में ही दुसरे पलंग पर उसके पति गहरी निद्रा में सो रहे थे । एक गहरी निश्वास—सी उसके मुँह से निकल गयी । अपने अतीत में वह कोई भी तो ऐसी घटना नहीं ढ़ूँढ़ सकी थी जो उसके पति की उससे विमुखता का कारण बन सकती ।

उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था । इच्छा हो रही थी कि जी—भरकर रो ले मगर आँखों के आँसू तो जैसे समाप्त ही हो गए थे । वह कुछ न सोच सकी और उसकी आँखें धीरे—धीरे फिर बन्द होती चली गयीं ।

'''

भाग — पन्द्रह

सोने के सिवा और कोई काम भी है तुम्हें । फर्श पर गिरकर कुछ टूटने और देव बाबू के जोर—जोर से बोलने की आवाज से पूजा की आँख खुली ।

दिन निकल आया! आँखें मलते हुए पूजा बिस्तर पर उठकर बैठी तो उसके मुँह से निकल गया ।

नहींए अभी तो रात आरम्भ हुई है । देव बाबू ने अपने क्रोध—भरी आवाज में पूजा पर व्यंग्य किया ।

रात देर तक सो नहीं सकी थी । पूजा ने सफाई देनी चाही ।

हाँए न स्वयं सोती हो और न मुझको सोने देती हो । एक और चोट देव बाबू ने की ।

पूजा चुपचाप उठकर फर्श पर बिखरे टूटे काँच के टुकड़ों को एकत्रित करने लगी । काँच के टुकड़ों को एक कागज पर उठाए वह बाहर डालने के लिए गयी तो उसने देखा—दिन काफी चढ़़ आया था । इतनी देर तक आँख न खुलने के कारण उसे स्वयं पर क्रोध भी आया ।

पूजा का आज का दिन बड़े ही मनहूस ढ़ंग से आरम्भ हुआ था । उसे प्रातः उठते ही अपमान का सामना करना पड़ा था । रात्रि को जिन स्थितियों से वह गुजरी थी वे उसके लिए मौत से भी अधिक कटदायी थीं ।

अपमान के विष के कड़वे घूँट हलक से नीचे उतारने की तो वह आदी ही हो चुकी थीए न तो वह अपनी स्थिति पर अफसोस कर सकती थी और न ही खुलकर रो सकती थी ।

स्नान से निवृत हो जब पूजा स्नानघर से बाहर निकली तो देव बाबू अपना बैग उठाकर जा रहे थे । सामने जाकर पूजा ने उनकी राह रोक ली ।

खाना खाकर जानाए मैं अभी बना देती हूँ ।

जब तुम्हें सोने से फुर्सत मिल जाए तो...।

अभी तो आठ ही बजे हैं । पूजा ने उनकी बात काटते हुए कहाए स्कूल तो एक बजे लगता है ।

तुम जानती हो कि मैं प्रतिदिन प्रातः आठ बजे ही घर से निकल जाता हूँ ।

लेकिन क्यों...घ्

तुम्हारी तरह मैं समय को व्यर्थ नट नहीं करता । कहते हुए हाथ झटककर वे कमरे से बाहर निकल गए ।

पूजा चौखट के सहारे लगी खड़ी देखती रह गयी । ऐसी स्थिति में वह क्या करती...वह कुछ समझ नहीं पा रही थी ।

देव बाबू पहली बार घर से बिना खाना खाए हुए गए थे । पूजा अपने कर्तव्य को पूरा करने में कोई ढ़ील नहीं छोड़ती थी । वह भरसक प्रयास करती थी कि उससे कोई ऐसी भूल न हो जिससे उसे अपमान का सामना करना पड़े परन्तु जब कोई बिना किसी दोष के ही उसे झिड़कने पर उतारू हो तो वह क्या करे! सोच—सोचकर वह बहुत देर तक रोती रही । आँसू बह जाने से मन कुछ हल्का हुआ तो वह पुनः अपनी दिनचर्या में लग गयी ।

आजकल पूजा को एक भ्रम—सा होता था कि कहीं उसके पति के जीवन में कोई और लड़की तो नहीं आ गयी हैघ् उसका ऐसा सोचना निराधार भी तो नहीं था । जब से उसके पति अपने मित्र के यहाँ से लौटे थेए वे बिलकुल ही बदल गए थे । वे चार दिन की कहकर दो मास बाद लौटे थे । वह सोचती थी कि कहीं वहाँ पर तो उसके पति की किसी अन्य लड़की से भेंट नहीं हो गयीघ् फिर दुसरे ही क्षण वह अपने विचार से असहमत हो जाती ।

पूजा इतना तो अवश्य ही सोच सकती थी कि उसके पति में यह परिवर्तन अपने मित्र के यहाँ से लौटने पर ही हुआ है । इससे पहले वे उसे कितना प्यार करते थे! छुट्टी होते ही सीधे घर लौट आते थे परन्तु अब तो ये दो दिन ही अपवाद थे अन्यथा वे कभी रात्रि को दस बजे से पहले घर नहीं लौटते । प्रातः भी वे आठ—नौ बजे तक घर से निकल जाते हैं । ऐसा स्कूल में क्या काम हो सकता हैघ् अवश्य ही उसके पति की जीवन में कोई और लड़की आ गयी गई है । वह लड़की ही मेरे पति को मुझसे दूर करती जा रही है ।

पूजा देर तक सोचती रही । सारा दिन वह विचारों के दायरों में उलझती रही । दोपहर को खाना बनाने का उसका मन ही नहीं हुआ । एक कप चाय का पीकर वह उदास—सी पड़ी रही । इस समय भी उसका मन उठने को नहीं हो रहा था परन्तु पति के लौटने से पूर्व खाना तो बनाना ही था ।

सन्ध्या को खाना बनाकर वह पति की प्रतीक्षा करने लगी । वह सोच रही थी कि पिछ्‌ले दो दिनों की तरह आज भी वे जल्दी लौट आएँगे परन्तु जब रात्रि को नौ बजे तक भी वे न आए तो प्रतीक्षा में रत उसकी आँखें नींद से बोझिल होने लगीं ।

जोर—जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज सुनकर पूजा की नींद खुली । सामने घंटे पर —टि गयी तो ग्यारह बज रहे थे । भागकर उसने दरवाजा खोला तो लड़खड़ाते—से उसके पति उसपर गिरते—गिरते बचे । यदि वह थोड़ा बच न जाते तो उसके हाथ की सिगरेट उसकी साड़ी जला हो देती ।

आप सिगरेट कब से पीने लगे हैं । न जाने फिर से उनके मध्य यह आप की दुरी आ गयी थी ।

शराब पीने के बाद सिगरेट पीना बहुत अच्छा लगता है । हँसते हुए देव बाबू ने कहा ।

तो आप शराब भी पीने लगे हैंघ्

कोठे पर जाकर क्या कोई बिना शराब पिए लौटता हैघ्

सुनकर पूजा सन्न रह गयी । आश्चर्य और दुख से वह टूट—सी गयी थी । जैसे उसे किसी ने आकाश से धरती पर पटक दिया हो! एक स्त्री का इससे बढ़़कर और क्या अपमान होता । वह क्रोध का घूँट पीकर रह गयी ।

मैं क्या मर गयी हूँए जो आपको कोठे पर जाने की आवश्यकता पड़ती है । वह कहे बिना न रह सकी ।

हाँए मेरे लिए तो तुम मर ही चुकी हो ।

मेरा दोष क्या हैए मुझे इतना तो बता दो ।

तुम्हारा दोष! हँसकर देव बाबू ने कहाए चिन्ता न करोए समय आने पर तुम्हें सब पता चल जाएगा ।

अभी बता दो न ।

मुझे सोने दोए जाओ बहस न करो । कहते हुए देव बाबू पत्नी को एक तरफ हटाकर अपने बिस्तर पर चले गए ।

पूजा उनसे खाना खाने के लिए कहने का भी साहस न कर सकी । सुबह से उसने खाना नहीं खाया था और अब फिर अपमान के विष का घूँट पीने के बाद उसके खाने की इच्छा समाप्त हो गयी थी । भूखी ही वह अपने पलंग पर जाकर लेट गयी ।

पूजा की आँखें खुलीं तो उसने हल्के—से प्रकाश में देखाए दो बज रहे थे । बराबर के पलंग पर सोते हुए देव बाबू उसे उस समय कितने आकर्षक लग रहे थे । इस समय उन्हें देखकर कौन कह सकता था कि यह व्यक्ति अपनी पत्नी का तिरस्कार कर सकता है । कुछ सोचकर वह उठी और पति के पलंग पर चली गई ।

पूजा अपने पति के पास लेटी उनके मुख की तरफ देखे जा रही थी । जाने—अनजाने देव बाबू का हाथ उसकी कमर से आ लिपटा था । वह सिकुड़कर उनके वक्ष में समाने लगी । महीनों की प्यास होंठों पर उभर आयी तो उसके होंठ बिना कुछ कहे फड़फड़ा उठे । वह स्वयं को रोक नहीं पाई और उसने अपने सुलगते होंठों को उनके होंठों पर रख दिया । कितने ठण्डे थे वे होंठ! परन्तु पूजा ने उनकी इस अनजान चुप्पी को स्वीकृति समझा और उसका शरीर और अधिक क्रियाशील होता गया ।

अचानक देव बाबू चौंककर उठ बैठे । उठे हुए उफान को जैसे किसी ने छोंटे मारकर शान्त कर दिया हो । एक झटके से उन्होंने स्वयं को पत्नी से अलग कर लिया और तीखी —टि से उसकी ओर देखने लगे ।

क्या बात हैघ् दुख और आश्चर्य से पूजा ने पूछा ।

तुम मेरे बिस्तर पर कैसे!

क्योंए क्या मुझे इसका भी अधिकार नहीं हैघ् पूजा ने भी हँसते हुए देव बाबू पर व्यंग्य किया ।

यह मैं नहीं जानता...लेकिन तुम मुझे सोने क्यों नहीं देतींघ् रात को यदि नींद पूरी न हो तो दिन में बच्चों के सामने नींद आने लगती है । कहते हुए उनका गला भर आया । दिल पर रखा पत्थर सरका जाता था मगर वे विवश फिर उसे स्वयं पर खिंच रहे थे ।

मुझे सोने दो पूजा । कहकर वे पुनः लेट गए । उनकी आँखें में उभरे आँसुओं को देखकर भी पूजा कुछ पूछने का साहस नहीं कर पाई । कल रात्रि की घटना वह भुला नहीं सकी थी ।

बाढ़़ आई नदी को जैसे किसी ने बहुत ऊँचा बाँध बनाकर रोक दिया था ।

देव बाबू अपने आँसुओं पर नियन्त्रण नहीं रख पा रहे थे । वे यह भी नहीं चाहते थे की अपनी पत्नी के सामने कमजोर पड़ जाएँ । लघुशंका का बहाना करए वे अपने आँसुओं को छिपाने के लिए बाहर निकल गए ।

पूजा के मन को एक झटका—सा लगा । उसके मस्तिक में एक विचार उभराए कहीं उसका पति...नहीं—नहींए यह बात नहीं हो सकती । शादी होने के बाद तो इन्होंने मुझे पूर्णतया सन्तुट किया है । ऐसी कोई कमी इनमें नहीं हो सकती ।

मन में उठे विचार को तर्कशक्ति ने दबा दिया । शंका का कोई समाधान न था । विचारों के दायरें में उलझी वह कितनी ही देर करवटें बदलती रही और उसके पति बाहर बरामदे में टहलते रहे ।

'''

भाग — सोलह

पूजा की यह निश्चित धारणा बन चुकी थी कि उसके पति के जीवन में अवश्य ही कोई और लड़की आ गई है । सन्देह का अंकुर पनपकर एक विशाल वृक्ष का रूप धारण करता रहा था । वह पिछ्‌ले कई दिनों से अपने इस सन्देह की पुटि करने की योजना बनी रही थी । बीमारी का बहाना करके आज प्रातः ही उसने टेलीफोन करके घर के नौकर को बुला लिया था ।

प्रातः दस बजे जब देव बाबू घर से निकले तो पूजा ने नौकर को भी सब कुछ समझाकर यह देखने के लिए उनके पीछे भेज दिया कि वे कहाँ जाते हैं । नौकर कुछ दुरी रखकर देव बाबू के पीछे—पीछे चल दिया । कुछ ही दूर चलने के पश्च्यात देव बाबू एक मकान के सामने जाकर रुक गए । उस कमरे का दरवाजा सड़क की ओर ही खुलता था । जब देव बाबू ने दरवाजा खटखटाया तो पूजा का नौकर कुछ ही दूर पर खड़ा सब कुछ देख रहा था । द्वार एक स्त्री ने खोला तो देव बाबू अन्दर चले गए ।

नौकर कुछ देर बाहर खड़ा प्रतीक्षा करता रहा । उसने खिड़की की राह कमरे में झाँककर देखा तो वही स्त्री देव बाबू के समक्ष चाय का प्याला रख रही थी । नौकर और अधिक प्रतीक्षा न करके तेजी से घर की ओर लौट चला ।

घर आकर उसने सारी घटना पूजा को सुना दी । उसके सन्देह की पुटि हो गई थी । उसका शक विश्वास में बदल गया । नारी—स्वभाववश मन में ईर्‌या जाग्रत हो उठी और उसने निश्चय किया कि वह आज ही उसे स्त्री से मिलेगी जो पिछ्‌ले तीन महीनों से उसके घर में आग लगा रही है ।

पूजा ने नौकर को घर का कुछ आवश्यक सामान लाने के बहाने बाजार भेजा और स्वयं कार्य निपटाने में लग गई । जब नौकर बाजार से लौटकर आया तो वह घर का कार्य निपटाकर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी ।

जब पूजा तैयार होकर नौकर के साथ घर से निकली उस समय एक बज चुका था । जिस घर को नौकर ने दूर से दिखायाए वह अधिक दूर न था । नौकर ने उँगली के इशारे से ही वह कमरा भी बता दिया ।

नौकर वहीँ से लौट गया । पूजा धड़कते ह्रदय से उस घर की ओर बढ़़ी । उसके ह्रदय में घबराहट—सी हो रही थी जिसे दबाने की प्रयास में वह हाँफने लगी थी ।

कमरे के दरवाजे पर पहुँचकर पूजा एक पल को वहीँ ठहर गयी । कुछ देर रूककर उसने अपनी उखड़ी हुई साँस पर नियन्त्रण पाया और आगे बढ़़कर दरवाजा खटखटा दिया ।

कौन...! अन्दर से नारी—स्वर सुनाई दिया । बिना कोई उत्तर दिए पूजा ने फिर दरवाजा खटखटा दिया ।

द्वार खुला तो पूजा ने देखाए सामने खड़ी वह स्त्री किसी भी तरह उससे अधिक सुन्दर न थी । साधारण परन्तु आकर्षक वस्त्र पहने खड़ी वह एक प्रश्नभरी —टि लिए पूजा को देख रही थी । पूजा सोच रही थी कि क्या इसी स्त्री ने मेरे पति को मुझसे छिनकर अपने वश में कर रखा हैघ् विशेष आकर्षण तो उसे उसमें नहीं लगा परन्तु फिर भी वह सोच रही थी कि पुरुष प्रायः अपनी प्राप्य स्त्री को छोड़कर दूसरी स्त्रियों के पीछे भागने का स्वभाव रखते हैं । न जाने गोपियों के मध्य कृण बने रहने का उन्हें क्या शौक होता है!

क्षमा करना बहनए मैंने आपको पहचाना नहीं । सामने खड़ी स्त्री बड़ी शालीनता के साथ पूजा से कह रही थी ।

आप पह्चानेंगी कैसेए पहली बार मुझे देख रही हैं ।

तो फिर...घ्

देव बाबू मेरे पति हैं । पूजा ने सीधे ही कहा । उसके कहने में एक अधिकार की भावना थी ।

अच्छा! तो आप देव बाबू की पत्नी हैंए आइए...आइए...आप बाहर क्यों खड़ी हैंघ् रास्ता छोड़ते हुए उस स्त्री ने कहा । एक लम्बी मुसकान उसके मुख पर फैल गयी थी ।

पूजा अन्दर आने का साहस नहीं कर पा रही थी ।

आइए नए आप संकोच क्यों कर रही हैं । उस स्त्री ने पूजा का हाथ पकड़कर अन्दर लाते हुए कहाए धन्य भाग्य हैं मेरे जो आपने इस कुटीया को पवित्र किया ।

ऐसा कुछ घटीत होने की पूजा को आशा न थी । इस स्त्री का व्यवहार उसकी समझ में नहीं आ रहा था । पूजा सोच रही थी कि क्या यह स्त्री इतनी कुशलता से अभिनय कर रही हैघ्

आप बैठिएए मैं आपके लिए कुछ फल लाती हूँ ।

सुनिएए मैं किसी विशेष काम से यहाँ आई हूँ ।

काम बाद में होता रहेगा बहनए पहले मुझे कुछ अतिथि—सत्कार तो कर लेने दो । आप तो देवी हैं...अच्छे भाग्य से आपके दर्शन हो रहे हैं । कहती हुई वह स्त्री कमरे से बाहर चली गयी ।

पूजा के लिए इस स्त्री का व्यवहार एक पहेली के समान उलझता जा रहा था । वह सोच रही थी कि वह कैसे इस स्त्री के समक्ष अपने मन की बात कहेघ् यह स्त्री तो उसे इतना अधिक सम्मान दे रही है कि उसके समक्ष कुछ कहा ही नहीं जा सकता । जिस काम के लिए वह आयी थी उसे पूरा किए बिना ही वह लौटना नहीं चाहती थी ।

तभी उस स्त्री ने एक प्लेट में कुछ कटे हुए फल लाकर उसके सामने रख दिए ।

पूजा सोच रही थी कि बात कहाँ से प्रारम्भ करे ।

खाईए! उसे स्त्री ने कहा ।

आप भी लीजिए ।

नहीं..नहींए आप जैसी देवी के साथ मैं...! कहते हुए उसने बात अधूरी छोड़ दी ।

इज्जत की एक मोटी परत उसने पूजा पर चढ़़ा दी थी । उस परत को कुछ हल्का करने के उद्देश्य से पूजा ने पूछाए आप मुझे इतना सम्मान क्यों दे रही हैंघ्

मैं तो कुछ भी नहीं दे पा रही हूँ । आप तो इससे बहुत अधिक सम्मान के योग्य हैंए आप पूजनीय हैं । और इसके पीछे मेरा अपना स्वार्थ भी तो है ।

आपका स्वार्थ...घ् आश्चर्य से पूजा ने पूछा ।

आपको सम्मान देकर मुझे खुशी मिलती है ।

लेकिन आप तो पहली बार मुझसे मिल रही हैंघ् मेरे विषय में तो आप कुछ भी नहीं जानतीं ।

आपके विषय में मुझे बहुत कुछ पता है ।

कैसेघ्

देव बाबू प्रायः आपकी चर्चा करते हैं । वे आपकी बड़ी प्रसंशा करते हैं ।

मेरी...घ् पूजा का आश्चर्य बढ़़ता ही जा रहा था ।

हाँ! वे तो आपके पीछे जैसे पागल हैं । जब कभी भी यहाँ आते हैं तो बसए एक ही बात कहते हैं—चलूँए पूजा प्रतीक्षा कर रही होगी । बहुत कसकर बाँधा है आपने अपने पति को । भाग्यवान हैं वे स्त्रियाँ जिन्हें देव बाबू जैसे देवता मिल जाते हैं ।

इस पृथ्वी पर देवता की कल्पना करना मिथ्या है बहन! वे तो दुसरे लोक में ही निवास करते हैं । हाँए इस लोक में भी अनेक मनुय देवता का आवरण ओढ़़कर विचरण करते हैं लेकिन उनमें देवत्व नहींए स्वार्थ की कोई भावना होती है । पूजा के मन में छिपी घृणा पति की प्रशंसा सुनकर उभर आई । उसने तनिक रोष से कहा था परन्तु वह स्त्री शायद उसका भाव नहीं समझ पाई थी । उसने पूजा की बात का अर्थ उसकी विनम्रता ही समझा था ।

धन्य हैं आप जो इतने गुण होते हुए भी आपमें लेशमात्र अहंकार नहीं है । अब छोडिए इन बातों कोए अपने आने का कारण कहिए ।

मैं सोच रही हूँए कि मन की बात तुमसे कहूँ या नहीं । पूजा कह उठी ।

मन में कोई शंका हो तो पूछने से उसका निवारण हो जाता है । कोई दुःख हो तो कहने से हल्का हो जाता है । अपनों से कोई बात छिपाने से क्या लाभघ्

अपनों से...घ्

क्योंए क्या आप मुझे...घ्

लेकिन इतनी शीध्रए पहली भेंट में ही क्या कहा जा सकता है । पूजा ने कहा ।

ओह! मैं तो भूल ही गई थी कि हम पहली बार मिल रहे हैं । मैं इतना अवश्य कह सकती हूँ कि आप मुझे कभी पराया महसूस नहीं करेंगी ।

लेकिन...

आप संकोच न करें बहनए मुझपर विशवास करो । मुझसे जो कुछ भी हो सकेगा वह मैं करने से पीछे नहीं हटूँगी ।

मुझे डर है कि कहीं आप अन्यथा...

आप निःसंकोच कहिएए यहाँ कोई भय नहीं है ।

पूजा ने साहस बटोरकर अपने मन के —ढ़़ किया और एक प्रश्न उसकी तरफ छोड़ दियाए आप देव बाबू को कब से और कैसे जानती हैंघ्

प्रश्न सुनकर एक पल को वह स्त्री सोच में डूब गई । धीरे—धीरे वह जैसे सब कुछ याद करती जा रही थी । पूजा के मुख पर —टि जमा वह कहने लगी...

लगभग तीन महीने पूर्व एक रात देव बाबू मुझे मिले थे । जैसे भगवान ने उन्हें मेरे पास भेजा था! कहकर वह चुप हो गयीए जैसे वह आगे कुछ कहने का सूत्र तलाश कर रही हो ।

रात कोए कैसे...घ् पूजा चौंक उठी । तीन महीने से ही तो उसके पति उससे विमुख हुए हैं । वह अपनी बढ़़ती उत्सुकता को दबा न सकी और बोलीए विस्तार से बताओ कि वे आपको कैसे मिले थेघ्

यह मेरे जीवन की लम्बी कहानी है बहन । माँ—बाप के देहान्त के बाद मैं गाँव में अकेली रह गई थी । सारी धन—दौलत रिश्तेदारों ने हड़पकर मुझसे मुँह मोड़ लिया था । सारे गाँव में मैं अकेली बेसहारा रह गयी थी । किसी पर भी मैं विश्वास नहीं कर सकती थी । सारा दिन मैं स्वयं को घर में बन्द किए पड़ी रहती ।

मैं सब कुछ सहन कर सकती थी मगर पेट की भूख को सहन नहीं कर सकी । एक पल रूककर उसने फिर कहना प्रारम्भ कियाए इस तरह घर में मुँह छिपाकर पड़े रहने से कब तक पेट भरा जा सकता था । घर में खाने को कुछ भी शेष न बचा तो मुझे बाहर की दुनिया में निकलना पड़ा ।

पूजा ध्यान से उसकी बात सुन रही थी ।

पेट पालने के लिए मैंने एक सेठ के यहाँ नौकरी कर ली । मैं बी. ए. तक पढ़़ी थी परन्तु फिर भी भाग्य ने मुझे घर की नौकरानी बना दिया था । पेट की भूख तो मिटने लगी परन्तु इसके साथ ही दुनिया की पाप—भरी —टि भी मुझपर पड़ने लगी । राह में आते—जाते कोई आँख मटकता तो कोई भद्दा मजाक करता मगर मैं जैसे अपने कानों और आँखों को बन्द किए सेठ जी के घर जाती और लौट आती ।

राह में तंग करने वालों की संख्या धीरे—धीरे बढ़़ती ही गई । कोई अपना न था जिसका सहारा पाकर स्वयं को सुरक्षित महसूस करती । किसी को भी अपनी विपदा नहीं कह सकती थी । गाँव के सरपंच का बदमाश लड़का तो हाथ धोकर मेरे पीछे ही पड़ गया था । वह प्रायः अपने व्यंग्य बाणों से मुझे आहत करता रहता था । मुझे बेसहारा देखकर उसका साहस बढ़़ता ही जा रहा था । अब तो वह कई बार मेरे घर भी घुस आता था । उसने मुझे तरह—तरह के प्रलोभन दिए परन्तु बचाने को मेरे पास सिर्फ इज्जत ही तो थीए उसे मैं किस तरह लुट जाने देतीघ्

उस रात भी मैं अन्य रातों की तरह घर में अकेली ही थी । बाहर बादलों की गडगडाहट और तेज वर्षा के मध्य बिजली चमक रही थी । बादलों की तेज गर्जना रह—रहकर मेरे मन को कँपा जाती थी । भय से मैंने दीपक की लौ को तेज कर दिया था । उससे उठते धुएँ की एक मोटी लकीर छत की तरफ जा रही थी । मेरा ध्यान भी उस लकीर में उलझकर रह गया था । अचानक सब कुछ अन्धकार में बदल गया । हवा के तेज झोंके ने दीपक को बुझा दिया ।

बादलों की गडगडाहट और बिजली की चमक से मेरा मन काँप रहा था । खिड़की के दरवाजों में चिटकनी न थी । उन्हें बन्द करके मैंने उनके पीछे ईंट लगा दी । काफी देर से वे भी हवा से आपस में भड़भड़ा रहे थे । दीपक को फिर से जलाने के लिए मैं उठकर माचिस खोजने लगी तो बिजली के प्रकाश में अपने सामने उस बदमाश को खड़ा देखकर भय से मेरी चीख निकल गई । सामने का दरवाजा खुला खुला हुआ था और वह बदमाश चौखट का सहारा लिए खड़ा विचित्र—सी निगाहों से मुझे देख रहा था । मैं उससे कुछ दुरे पर खड़ी थी परन्तु फिर भी शराब की बदबू मेरी नाक में घुस रही थी । बिजली फिर चमकी । उसके मुख पर किसी पाप का —ढ़़ निश्चय देखकर मैं काँप उठी ।

तुम इतनी रात को यहाँ किसलिए आए होघ् मैंने क्रोध से कहा मगर उसपर इसका कुछ भी असर नहीं हुआ ।

दिन में तो अवसर मिलता नहींए इसलिए रात को आना पड़ा । नशे के कारण उसकी आवाज लड़खड़ा रही थी ।

चले जाओ यहाँ से ।

जाने के लिए तो मैं यहाँ नहीं आया हूँ । कहकर वह मेरी ओर बढ़़ा ।

उसका —ढ़ निश्चय देखकर मैं स्वयं को बचाने के लिए दरवाजे की ओर भागी मगर वहाँ तक पहुँच पाती इससे पहले ही उसने मुझे पीछे से पकड़कर खींच लिया ।

छोड़ देए मुझे नहीं तो अच्छा नहीं होगा । मैंने उसे धमकी दी ।

यहाँ अच्छा करने के लिए कौन आया है! उसने हँसकर कहा ।

में शोर मचा दूँगी ।

कोई नहीं सुनेगा । कहते हुए उसने एक झटके से मुझे अर्धनग्न कर दिया ।

मैं बहुत रोयी थीए अपनी पूरी ताकत से मैं चिल्लायी भी थी मगर मेरी आवाज बादलों की गडगडाहट के नीचे दबकर रह गयी । किसी तक मेरी पुकार न पहुँची और यदि किसी तक पहुँची भी होगी तो वह मेरी सहायता को न आया ।

मैंने उससे लड़कर स्वयं को बचाने का बहुत प्रयास किया मगर बचा न सकी । वह अपनी इच्छा पूर्ण करके चला गया । मैं लुटी—सी पड़ी थी । अब मेरे पास शेष क्या बचा था! उस रात अपने भाग्य पर मैंने बहुत आँसू बहाए थे । सब कुछ गँवाकर अब इस दुनिया में जीने की इच्छा नहीं रह गयी थी । अपने—आपको समाप्त कर देने के लिए मैं अपने गाँव और इस शहर के मध्य उस बड़े तालाब की ओर चल दी ।

मकान को यूँ ही खुला छोड़ए मैं वर्षा की बौछारों में भीगती एक —ढ़़ निश्चय के साथ निकल पड़ी । वापस लौटने की कोई इच्छा न थी जो कि घर से मोह होता । आसमान पर काले—काले दैत्याकार बादल फैले हुए थे । उनकी गर्जना के मध्य रह—रहकर बिजली चमक उठती थी । अँधेरी भयानक रात और कीचड़—भरी राहय मैं तालाब की ओर बढ़़ती ही चली गयी । स्वयं को समाप्त कर देने के निश्चय से मेरा सारा भय समाप्त हो गया था ।

एक क्षण को तालाब के बुर्ज पर खड़ी मैं सोचती रही । तेज चमकती बिजली में मैंने आसपास देखा—चारों ओर सन्नाटा—सा फैला हुआ था । बारिश रुक गयी थी । तालाब की गहराई की ओर झाँका तो गहरे पानी ने मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लिया । आँखें बन्द करके मैं तालाब की गहराई में कूद पड़ी ।

पानी में मेरा दम घुटने लगा था । उसी पल मुझे अपने पास किसी और के कूदने का अहसास हुआ । मैं मरने का निश्चय करके कूदी थी मगर मैंने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया । शायद मैं मौत से डर गयी थी । मेरा निश्चय डगमगा गया और मैं मौत से बचने को संघर्ष करने लगी ।

तभी कठोर और मजबूत हाथों ने मुझे थाम लिया । उसके बाद मुझे होश नहीं रहा था ।

चेतना लौटी तो मैं तालाब के बुर्ज पर लेटी थी । वर्षा नहीं हो रही थी तो भी आसमान में चारों ओर बादलों का साम्राज्य था । एक व्यक्ति मेरे समीप बैठा हुआ था ।

आप कौन हैंघ् मैं हड़बड़ाकर उठने लगी ।

मैं आपका दुश्मन नहीं हूँ ।

आपने मुझे क्यों बचायाघ्

इस विषय में तो मैं कुछ भी नहीं कह सकता ।

आप इतनी वर्षा में रात को यहाँ क्या कर रहे थेघ् मैं पूछ बैठी ।

मैं भी मरने के लिए आया था ।

फिर...घ्

पानी की उठती—गिरती लहरों ने मुझे जीने का सन्देश सुनाया तो मैंने अपना इरादा बदल दिया । आपको छलाँग लगाते देखा और न जाने किस भावना से मैं आपको बचाने के लिए तालाब में कूद पड़ा ।

आपने मुझे बचाकर अच्छा नहीं किया । मरने का साहस बार—बार नहीं किया जा सकता ।

अच्छा—बुरा क्या होता हैए यह कोई नहीं जानता । हम सब तो भाग्य के हाथों में खेलते हैं ।

मेरे जीवन में कहीं भीए कुछ भी तो नहीं बचा है जिसके सहारे जीवन कटा जाए ।

आप अपने विषय में कुछ बताइए तो ।

सुनकर आप मुँह मोड़कर चल देंगे ।

नहींए एक दुखी मनुय दुसरे दुखी मनुय से अनजान होते हुए भी उसका मित्र होता है ।

इस जीवन में मेरा सब कुछ छिन चुका था परन्तु फिर भी मैं स्वयं को किसी तरह बचाए जी रही थी परन्तु आज रात मैं स्वयं भी लुट गयी । अब तो मेरे पास कुछ भी शेष नहीं रहा ।

वह सब कुछ समझ गए थे इसलिए आश्चर्य से उन्होंने पूछा थाए लेकिन यह सब कुछ हुआ कैसेघ्

ताकत ने एक अबला को रात के अन्धकार में लुट लिया ।

इसमें आपका क्या दोष है । आप तो व्यर्थ ही स्वयं को अपराधी अनुभव कर रही हैं ।

शायद स्त्री हूँ इसलिए । दो आँसू मेरी आँखों से निकलकर आसमान के बहाए आँसुओं में विलीन हो गए ।

अब समाज में मेर क्या स्थान होगाघ् क्या सभी मुझे घृणा की —टि से नहीं देखेंगेघ् मैं कलंकित हो चुकी हूँ । क्या प्रत्येक व्यक्ति मेरा अपमान नहीं करेगाघ् मैं अब इस समाज में कैसे रह सकूँगी!

समाज में रहने वालों को कोई नहीं निकाल सकता ।

अब कौन मुझे स्वीकार करेगाघ् मैं किसके सहारे यह जीवन व्यतीत करुँगीघ्

कोई न कोई आपको अवश्य स्वीकार कर लेगा । आज से आप अपने इस जीवन को पीछे छोड़ दो । इस दुनिया में बहुत—से व्यक्ति एक—दुसरे के सहारे की तलाश में होते हैं ।

क्या आप...घ्

मेरी पत्नी जिन्दा है ।

ओह!

देखोए समाज और दुनिया में जीने के लिए संघर्ष करना होता है । आप आगे बढ़़ेंए मैं प्रत्येक कदम पर आपकी सहायता करूँगा ।

मेरे साथ आपको भी अपमान सहन करना होगा ।

इसकी चिन्ता मुझे नहीं है । मैं समाज से अधिक व्यक्ति को महत्त्व देता हूँ । समाज मानव के लिए है न कि मानव समाज के लिएए मेरी ऐसी धारणा है । आप मेरी चिन्ता न करें ।

लेकिन यह सब कैसे होगाघ् मैं चकित थी ।

सुबह की उषा की नयी किरण के साथ हम यहाँ से चल देंगे । शहर में आपको कोई नहीं जानता । वहाँ आप फिर से अपना नया जीवन प्रारम्भ करें । मैं वहाँ इसकी व्यवस्था कर दूँगा ।

मैं कब तक आपपर बोझ बनी रहूँगीघ्

इसकी आप चिन्ता न करें । मैं इतना अमीर भी नहीं हूँ । आप अपने जीवन को स्वयं आगे बढ़़ाएँगी...मैं तो सिर्फ आपकी सहायता को रहूँगा ।

कैसेघ्

कुछ पढ़़ी हैं आपघ्

बी. ए. किया था ।

फिर चिन्ता न करें । मैं प्रयास करूँगा कि आपको कोई नौकरी मिल जाए । तब तक मैं आपको कुछ ट्यूशन दिलवा दूँगा ।

मैं तो कुछ भी नहीं समझ पा रही हूँ ।

इस समय आप कुछ समझने की स्थिति में हैं भी नहीं । मुझपर भरोसा हो तो मेरे साथ चलिए ।

आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करुँगी ।

लेकिन एक वायदा आपको करना होगा ।

क्याघ्

मुझसे कभी यह न पूछना कि मैं आत्महत्या क्यों कर रहा था ।

लेकिन क्यों...

यह मेर व्यक्तिगत रहस्य हैए मैं किसी पर इसको प्रकट नहीं कर सकता ।

यदि आप इसे गुप्त रखना चाहते हैं तो मैं इस विषय में कभी कुछ नहीं पूछूँगी ।

ठीक हैए आज से आप हमारी बहन हुई । अब आप अपने घर जाओए मैं सुबह वहाँ से आपको ले जाऊँगा ।

मैंने उन्हें अपना पता बताया और उठकर घर की तरफ चल दी । गाँव की सीमा तक वे भी मुझे छोड़ने आए । रात को ही मैंने अपना सारा सामान समेट लिया । सामान था ही क्या जो देर लगती । प्रातः ही देव बाबू ताँगा लेकर मेरे घर पहुँच गए और मैं उनके साथ शहर आ गयी । उन्होंने ही मुझे यह कमरा दिलाया है जीविका चलाने के लिए अपने स्कूल के कुछ बच्चों की ट्यूशनें भी मुझे दिला दीं । कुछ महीनों में शायद कोई नौकरी भी मिल जाए ।

देव बाबू मेरे जीवन में देवता ही बनकर आए हैं । उन्होंने मुझे फिर से जीने की प्रेरणा दी है । आप उनकी पत्नी हैंए कई बार आपके दर्शन करने की इच्छा हुई परन्तु भेंट न कर सकी । उनके मुख से आपकी इतनी प्रशंसा सुनी है कि आपके चरणों की धुल लेने को मन करता है ।

इतना कहकर वह स्त्री चुप हो गयी । वह पूजा के मुख पर अपनी बातों की प्रतिक्रिया देख रही थी ।

आप मुझे इतना सम्मान न देंए इससे तो मैं आपसे दूर हो जाऊँगी । पूजा उससे कह उठी ।

आप रुट न हों तो मैं आपको भाभी कह लूँए इससे मुझे बहुत खुशी होगी ।

कह लोए मुझे भी अच्छा लगेगा ।

पूजा की स्वीकृति पाकर तो वह स्त्री चिहुँक उठी । उसके गले में बाँहें डालकर वह कह उठीए आज फिर अनुभव हो रहा है कि मैं संसार में अकेली नहीं हूँ । सब कुछ है मेरे पास ।

पूजा के भ्रम का निवारण हो चुका था परन्तु वह कुछ अधिक ही उलझ गयी थी । मन में शंका थी कि उसके पति किसी और स्त्री को चाहने लगे हैंए उस शंका का समाधान हुआ तो वह एक और उलझन में फँस गयी । उसके पति आत्महत्या क्यों करना चाहते थेघ् यह स्त्री भी तो इस विषय में कुछ नहीं जानती थी । उन्होंने इसे भी तो इस विषय में कुछ नहीं बताया था । वह अपने पति के जीवन के इस रहस्य में उलझ गयी थी ।

अच्छा चलूँ बहनए समय मिलने पर हमारे घर अवश्य आना । पूजा ने उठते हुए कहा ।

आपने अपने आने का उद्देश्य तो बताया ही नहींघ्

बिना बताए ही मेरा उद्देश्य पूर्ण हो गया है ।

बिना बताए हीघ्

हाँए मनुय कुछ करना चाहता है तो कुछ नहीं होता और कई बार स्वयं ही सब कुछ हो जाता है ।

आपकी बातों ने तो मुझे उलझा दिया है ।

कोई बात नहींए समय आने पर सुलझा दूँगी । हाँए तुमने अपना नाम तो बताया ही नहीं ।

करुणा कह लो भाभी ।

अच्छा तो करुणाए अब मैं चलती हूँ । कहती हुई पूजा दरवाजे तक आ गयी । करुणा उसे छोड़ने बाहर तक आयी । पूजा उससे विदा लेकर आगे बढ़़ गयी ।

सन्ध्या के चार बज रहे थे । पश्चाताप के कारण पूजा के पाँव जैसे पृथ्वी से चिपके जा रहे थे । उसका मस्तिक अपने पति की जीवन के रहस्य में उलझता जा रहा था । भारी कदमों को वह अपने घर की ओर धकेले जा रही थी ।

'''

भाग — सत्रह

अपने मकान पर पहुँचकर पूजा ठिठककर रुक गयी । कमरे का ताला खुला हुआ था और अन्दर से किसीके हँसने की आवाज आ रही थी । उसे अच्छी तरह याद था कि वह बाहर से ताला लगाकर गयी थी । ताले की दूसरी चाबी उसके पति के पास थी मगर वो तो रात्रि को दस बजे से पूर्व घर नहीं लौटते थे ।

पूजा ने एक पल वहीँ रूककर सुनी—आवाज देव बाबू की ही थी । वे किसी अन्य व्यक्ति से बातें कर रहे थे । दूसरा स्वर भी पूजा को जाना हुआ—सा लगा मगर वह उसे पहचान न सकी ।

द्वार को ढ़केलने पर वह खुल गया । सामने उसके पति बैठे पंकज से बातें कर रहे थे । पंकज को वहाँ देखकर उसका आश्चर्य और भी बढ़़ गया ।

आप...!

घर आकर देखा तो तुम नहीं थीं । यह तो मेरे पास ताले की दूसरी चाबी थी अन्यथा महेमान को बाहर ही बैठना पड़ता । देव बाबू ने मुसकराते हुए कहा ।

आज आप जल्दी आ गएघ् पूजा ने व्यंग्य से कहा ।

जल्दी तो नहीं आया ।

स्कूल तो छः बजे बन्द होता है ।

आज शनिवार है मेम साहब । आज आधी छुट्टी थी ।

अपने लिए मेम साहब का सम्बोधन सुनकर पूजा चौंकी । आज तो उसके पति का व्यवहार कुछ बदला हुआ—सा लग रहा था । उनहोंने कितने प्यार से उसे मेम साहब पुकारा था । यह प्यारा सम्बोधन सत्य है या सिर्फ उसका भ्रममात्र हो सकता हैघ् हो सकता हैए इनका यह व्यवहार यहाँ पंकज की उपस्थिति के कारण हो ।

तुम तो कभी घर से बाहर नहीं निकलतीं । आज कहाँ घुमने चली गई थींघ्

अपनी एक सहेली के यहाँ गयी थी ।

रेणुका के पासघ्

नहीं ।

रेणुका के सिवाय भी इस शहर में तुम्हारी कोई सहेली हैए यह तो मुझे पता ही न था ।

आप भी उसे जानते हैं ।

मैं जानता हूँघ् आश्चर्य से देव बाबू ने कहा ।

हाँए बल्कि मुझसे अधिक आप उसे जानते हैं ।

क्या नाम है उसकाघ्

करुणा । पूजा ने कहा और प्रतिक्रिया देखने के लिए —टि अपने पति के मुख पर जमा दी ।

अच्छा हुआ तुम उससे मिल आयीं । वह भी कई दिनों से तुमसे मिलने के लिए कह रही थी ।

पति के मुख पर कोई भाव या प्रतिक्रिया न पाकर पूजा निराश हो गयी । उसने तो सोचा था कि उसके पति करुणा का नाम सुनकर चौंक उठेंगे ।

हम भी यहाँ बैठे हैंए पूजाजी । पंकज ने उन दोनों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए कहा ।

माफ करनाए मुझे ख्याल ही न रहा । पूजा ने हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए कहा ।

कोई बात नहींए पंकज महसूस नहीं करेगा । अब तुम जल्दी से खाना बना दोए हमें भूख लगे है । देव बाबू ने कहा ।

काफी दिनों के बाद पूजा की भेंट पंकज से हुई थी । वह कुछ देर उससे बातें भी करना चाहती थी मगर पति की बात सुनकर वह रसोई की तरफ चल दी ।

पूजा को देखकर तो पहचाना भी नहीं जाता देव । क्या बात हैए बीमार रहती है क्याघ् पंकज ने पूछा ।

न जाने इसे क्या हो गया है पंकज । सारा दिन घर में अकेली बैठी कुढ़़ती—सी रहती है । अब तुम्हीं बताओए मैं सारा दिन घर में कैसे रहूँघ् अब तो तुम यहाँ आ गए हो । दिन में एक—आध चक्कर लगा लिया करो । इसका दिल बहल जाएगा और यह मुझपर उपकार भी होगा ।

कैसी बातें करते हो देव! क्या पूजा से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं हैघ्

सम्बन्ध मानकर ही तो कह रहा हूँ ।

दोनों बैठे हुए बातें कर रहे थेए तभी पूजा खाना लिए वहाँ आ गयी ।

तुम्हारी चित्रकारी कैसी चल रही है पंकजघ् खाना उन दोनों के सामने रखते हुए पूजा ने पूछा ।

ठीक ही चल रही है पुजाजी । बी. एड. करके चाचा के पास चला गया था । उनहोंने मुझे व्यवसाय में लगाना चाहा मगर मैं उसमें रूचि न ले सका । इस मध्य चित्र वैसे कम ही बनाए हैं । अब फिर इस शहर में लौट आया हूँए एक स्टूडियो भी खोल लिया है । पंकज ने अपने विषय में बताते हुए कहा ।

इतने दिनों में कभी मिलने भी नहीं आए ।

दो—तीन दिन पहले ही तो लौटा हूँ । स्टूडियो को ठीक से व्यवस्थित किया । आजकल में आने की सोच ही रहा था कि उससे पहले ही देव बाबू राह से पकड़ लाए ।

आते रहा करो पंकज । पूजा कह उठी ।

शतरंज तो भूल गई होंगीघ् पंकज ने पूछा ।

ले आनाए फिर सिख जाऊँगी ।

तो ठीक हैए कल ही एक बाजी हो जाए ।

जरुर हो जाए पंकज भाई । अब तुम हमारी बेगम से जीत नहीं पाओगे । हमने इन्हें बहुत—सी नई चालें सिखा दी हैं । हँसते हुए देव बाबू ने उन्हें खेलने की स्वीकृति देते हुए कहा ।

दोनों ही खाना खा चुके थे । पूजा ने हाथ धुलाकर तौलिया उनकी ओर बढ़़ा दिया ।

पंकज ने सिगरेट निकालकर देव बाबू की ओर बढ़़ाई ।

जानता तो थाए मगर मैंने सोचा शायद शादी के बाद शुरू कर दी हो । कहते हुए पंकज ने सिगरेट सुलगा ली ।

अपने पति के झूठ बोलने पर पूजा व्यंग्य से मुस्करा उठी । वह सोचने लगी कि उसके पति शराब पीकर कोठे पर तो जा सकते हैं मगर पंकज के सामने सिगरेट पीने से मना करते हैं । ये दूसरों के सामने कितना बदला हुआ मुखौटा पहन लेते हैं । सोचते हुए पूजा का मन तो हुआ कि अपने पति के मुख से उस मुखौटे को नोच ले परन्तु वह कुछ नहीं कर पाई ।

पूजा खाली बर्तन उठाकर रसोई की तरफ गई तो देव बाबू पंकज के साथ बाहर निकल गए ।

घर से निकलकर दोनों सड़क के एक किनारे चले जा रहे थे ।

कभी हमारे स्टूडियो भी आ जाया करो देव बाबू । सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए पंकज ने कहा ।

कहाँ बनाया हैघ्

यहाँ से अधिक दूर नहीं है । सामने चौराहे पर डिस्पेन्सरी के पास ही बनाया है ।

फिर तो अभी चलते हैं । वहीँ बैठकर बातें करेंगे ।

चलिएए मुझे खुशी होगी । पंकज ने कहा और देव बाबू को साथ लिए वह अपने स्टूडियो की तरफ चल दिया ।

स्टूडियो में पहुँचकर देव बाबू ने पंकज के बनाए चित्र देखे तो वह उनमें खो गए । पंकज की कला और बारीकी को देखकर तो वे चकित रह गए । उन्होंने उन चित्रों को ध्यान से देखा तो पाया कि उनमें एक दर्द है...एक टीस है उन चित्रों में जो देखने वाले का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचती हैं ।

पंकजए तुम्हारे सभी चित्रों में एक दर्द हैए टीस है । ऐसा क्यों हैघ् देव बाबू ने पूछा ।

ह्रदय में जो कुछ होता है देवए वही तूलिका के सहारे कागज पर उतरता है ।

तुम्हारे जीवन में इतना दर्द हैए मैं पहली बार सुन रहा हूँ ।

दर्द किसी को सुनाया तो नहीं जाता देव बाबू ।

लेकिन तुम्हें ऐसा कौन—सा दर्द हैघ्

अभी तो मैं कुछ नहीं बता सकता देव बाबू । शायद कभी समय आया तो आप स्वयं ही समझ जाओगे । सिगरेट का एक लम्बा कश खींचकर पंकज ने उसे फेंक दिया ।

लकड़ी का पार्टीशन डालकर कमरे के दो भागों में बाँट दिया गया था । एक तरफ स्टैंड पर कैनवास लगा था जिसपर पर्दा झूल रहा था । पार्टीशन के दूसरी ओर शायद पंकज ने अपना सामान रखा हुआ था ।

आपको एक तसवीर दिखलाता हूँ देव बाबू । यह तसवीर मैंने कुछ ही दिन पहले बनाई है । कहते हुए पंकज तसवीर लेने के लिए पार्टीशन के दूसरी ओर चला गया ।

देव बाबू का ध्यान सामने कैनवास पर पर्दे की तरफ गया तो उन्होंने सोचा कि यह पंकज की कोई नई और अधूरी तसवीर होगी । उसे देखने की सोच वे उठे और उन्होंने आगे बढ़़कर वह पर्दा उठा दिया । उस तसवीर पर —टि पड़ी तो एक पल को वे चौंक उठे । उन्हें पंकज के जीवन में दर्द और टीस के रहस्य का पता चल गया था । वे एकटक देखते रहे कैनवास पर लगी पूजा की उसे अधूरी तसवीर को और उनके होंठों की मुसकान गहरी होती गयी ।

पंकज के आने की आहट सुनकर उन्होंने उस तसवीर पर फिर से पर्दा डाल दिया ।

देखो देवए यह चित्र! पंकज ने बाहर आते हुए कहा ।

देव बाबू ने देखाए यह एक पेड़ पर बैठे एकाकी पक्षी का चित्र था । बरसात की बूँदें झर रही थीं मगर वह अपने साथी के वियोग में प्यासा था ।

इसका दूसरा साथी कहाँ गया पंकजघ्

किसी और वृक्ष पर ।

क्योंघ्

यहाँ तो एकाकी पक्षी सोच रहा है ।

कोई बात नहींए हम अपनी गजल से इसके साथी को इसके पास बुला देंगे । देव बाबू ने मुसकराते हुए कहा ।

पंकज कुछ न बोला । वह मौन किसी गहरी सोच में डूब गया था ।

पंकज! देव बाबू ने मैं तोड़ा ।

हूँ...।

हमें कौन—सा चित्र दोगेघ्

सभी चित्र आपके हैंए जो इच्छा हो ले लो ।

मना तो नहीं करोगेघ्

आप ऐसा सोचेंगेए मुझे विश्वास नहीं था । मैं आपको किसी चित्र के लिए मना करूँगा! कौन—सा चित्र पसन्द आया है आपकोघ्

यह...! कहते हुए पर्दा उठाने के लिए देव बाबू ने कैनवास की तरफ हाथ बढ़़ाया ।

पंकज काँप उठा । उसने तेजी से आगे बढ़़कर देव बाबू का हाथ रोक लिया ।

यह तसवीर तो अधूरी है देव बाबू ।

हमें अधूरी ही दे दो । कहते हुए देव बाबू ने वह पर्दा उठा दिया ।

पंकज को लगा जैसे देव बाबू ने तसवीर पर से पर्दा न उठाकर उसके मुख पर से एक मुखौटा खींच लिया हो ।

अच्छा! तो तुम यह तसवीर हमारे लिए ही बना रहे थे । बहुत खूबए मित्र हो तो ऐसा । इस तसवीर में तो तुम्हारी कला का कोई जवाब ही नहीं है ।

पूजा को तसवीर बनवाने का बहुत शौक था । साथ पढ़़ते थे तब यह तसवीर शुरू की थी मगर उसके बाद इसे पूरी नहीं कर सका । पंकज की आवाज से घबराहट झलक रही थी ।

मैं इस तसवीर को ले जा रहा हूँ पंकज ।

मगर यह तो अधूरी है ।

मुझे तो यह पूरी लगते है । फिर भी कोई कमी हो तो घर पर आकर पूरी कर देना । इसे देखकर पूजा बहुत खुश होगी ।

जैसी आपकी इच्छा! विवश पंकज ने वह तसवीर कैनवास से उत्तार कर फ्रेम में लगायी और देव बाबू को दे दी ।

देव बाबू ने मुसकराकर पंकज का धन्यवाद किया और हाथ मिलाकर विदा ली ।

कल आ रहे हो न पंकजघ्

हाँए अब तो आना ही पड़ेगा ।

भूल मत जाना । यह तसवीर भी पूरी करनी है । कहकर देव बाबू स्टूडियो से बाहर आ गए । पंकज वहीँ कुर्सी में धँसा कुछ सोचता रहा ।

तसवीर को हाथ में लिए देव बाबू सड़क पर बढ़़े जा रहे थे । वे पूजा और पंकज के विषय में सोच रहे थे । शादी से पहले उन्हें यह तनिक भी आभास न था कि पंकज पूजा को चाहता है । मगर आज उन्हें यह विश्वास—सा हो गया था कि पंकज के ह्रदय में जो दर्द और तड़प है वह सिर्फ पूजा से वियोग के कारण ही है ।

विचारों में खोए वे कब अपने घर के दरवाजे पर पहुँच गए पता ही न चला । दरवाजा खटखटाया तो पूजा ने खोला । उसे सामने देखकर देव बाबू के होंठों पर फिर मुसकान फैल गयी ।

आज हम तुम्हारे लिए एक बहुत ही सुन्दर भेंट लाए हैं । देव बाबू ने कमरे में आते हुए कहा ।

जहर...! पूजा ने व्यंग्य किया ।

जहर से तुम इतनी घृणा क्यों करती होघ् वह तो दवा बनकर अनेकों दुखी व्यक्तियों का भला करता है ।

हाँए दुखी व्यक्तियों को वह सदा के लिए दुखों से छुटकारा भी दिला सकता है ।

पूजाए तुम्हारी एक आदत है—तुम गिलास में भरे आधे पानी को कभी नहीं देखतींए तुम्हारा ध्यान सदा आधे खाली गिलास पर ही होता है ।

यह ठीक है मगर हर व्यक्ति अपनी —टि से ही तो देख सकता है ।

—टि पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए । कई बार आँखें धोखा दे जाती हैं ।

इसी का परिणाम तो भुगत रही हूँ ।

पूजा कह तो गयी थी मगर वह चकित भी थी कि आज उसके पति को उसकी इतनी बातें सुनने के बाद भी क्रोध क्यों न आया । पिछ्‌ले तीन महीनों में उसने उन्हें इतना शान्त कभी नहीं देखा था । वह इस तरह समानता का वार्तालाप करना तो भूल ही गयी थी । उसने तो तीन महीनों में सिर्फ आँखें झुकाकर पति का आदेश मानना और अपना अपमान सहना ही सिखा था ।

मुझसे स्पट हो पूजाघ् पूजा की आशा के विपरीत देव बाबू ने उसके पास आते हुए मुलायम स्वर में कहा ।

मुझे नाराज होने का अधिकार ही कहाँ है!

मैंने तुम्हें बहुत दुख पहूँचाया है ।

ण्ण्ण्ण्ण्

पूजा कुछ न बोल सकी । अपने पति की आवाज में प्यार की झलक पाकर वह सुबकने लगी । धीरे—धीरे आँसुओं की अविरल धारा उसकी आँखों से बह चली ।

पूजाए मैं बहुत बुरा व्यक्ति हूँ न!

अपने पति के इस कथन पर तो पूजा हिल ही गयी । वह एक स्त्री ही तो थी । पति उसे लाख अपमानित करे...दण्डित करे...उसके साथ अनचाहा व्यवहार करे परन्तु नारी को उसके पति के दो प्यार—भरे शब्द ही सब कुछ भुलाने को पर्याप्त हैं । नारी और वह भी भारतीय परिवेश में पली—बढ़़ीए कभी अपने पति से अपने अपमान का प्रतिशोध लेने की नहीं सोच पाती । प्यार की हल्की—सी आँच से ही वह मोम की तरह पिघलकर सारा दोष अपने सिर लेने को तैयार हो जाती है ।

पूजा भी अपने अपमान को भूल गयी । पति के एक ही वाक्य ने उसे मोम बना दिया ।

आप तो बहुत अच्छे हैंए शायद मुझमें ही कोई दोष आ गया होगा जो आपका प्यार न पा सकी ।

अब छोड़ो इस बातों को । अपनी गीली आँखों को पोंछकर देखोए मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ ।

क्या लाए होघ्

देखोगी तो चकित रह जाओगी ।

ऐसा क्या हैए दिखाओ तो ।

देखो! हाथ में पकड़ी तसवीर से कागज हटाकर देव बाबू ने वह तसवीर पूजा के सामने कर दी ।

अरे! यह तो मेरी तसवीर है । किससे बनवाईघ् पूजा अपनी तसवीर देखकर सचमुच ही चकित रह गयी ।

पंकज से । अभी मैं उसके स्टूडियो से ही आ रहा हूँ । अब तो वह बहुत बड़ा चित्रकार बन गया है । कभी तुम भी उसकी तसवीरें देखना ।

उसने मेरी तसवीर कब बनाईघ् पूजा पूछ उठी ।

काफी दिन पहलेए जव वह हमारे साथ कॉलिज में पढ़़ता था । कर रहा था कि तुम्हें तसवीर बनवाने का बहुत शौक था ।

उसने तो मुझे कभी नहीं कहा कि वह मेरी तसवीर बना रहा है ।

यह तसवीर अभी अधूरी है । मैंने उससे कह दिया हैए वह घर पर आकर इसे पूरी कर देगा । कभी—कभी तुम भी उसके स्टूडियो चली जाया करोए तुम्हारा दिल भी बहल जाएगा ।

अब मेरे दिल की बात किए जाओगे या अपने पेट की भी चिन्ता करोगेघ्

मैंने तो पंकज के साथ खा लिया था ।

वह तो पाँच बजे की बात है । अब नौ बज रहे हैंए भूख लगे होगी ।

नहीं पूजाए तनिक भी इच्छा नहीं है ।

तो फिर मुझे भी भूख नहीं है ।

क्योंए तुम्हें क्या हुआघ्

बस यूँ हीए इच्छा नहीं है ।

देव बाबू उसके कहने का अर्थ समझ गए थे । कुछ सोचकर वे बोलेए ठीक हैए तो फिर ले आओ । मैं भी तुम्हारे साथ खा लूँगा ।

यह सुनकर पूजा खाना लेने के लिए रसोई में चली गयी । आज वह बहुत खुश थी । कितने दिनों बाद उसे अपने पति के प्यार का एक कतरा मिला था ।

पूजा भविय के प्रति आश्वस्त—सी होती जा रही थी ।

'''

भाग — अठारह

बारह बजे थे । देव बाबू स्कूल जा चुके थे । पूजा घर का काम निपटाकर आराम करने के लिए लेटी ही थी कि द्वार खटखटाए जाने की आवाज सुनकर उठ गयी । उसने दरवाजा खोला तो सामने पंकज खड़ा था ।

तुम! पूजा आश्चर्य से कह उठी ।

हमारा आना अच्छा नहीं लगा क्याघ्

ऐसा क्यों सोचते होघ्

तो फिर चौंक क्यों पड़ीघ्

इस समय यहाँ कोई नहीं आताए इसीलिए आश्चर्य हुआ था ।

मैं तो कल ही आने के लिए कह गया था ।

पूजा का ध्यान ही न था कि वह दरवाजे में राह रोके खड़ी है । सामने पंकज अपने दोनों हाथों में सामान उठाए खड़ा था । उसके एक हाथ में स्टैंड तथा दुसरे में अन्य सामान था ।

अब यहीं खड़ी रहकर बातें करोगी! हँसकर पंकज ने पूजा को याद दिलाया ।

ओह! मैं तो...लाइएए यह मुझे दे दीजिए । पूजा ने पंकज के हाथ से स्टैंड ले लिया और कमरे में आ गयी । पंकज भी हाथ में कैनवास और बैग लटकाए उसके पीछे—पीछे कमरे में आ गया ।

यह सब क्या सामान ले आए! पूजा ने कहा ।

अभी दिखता हूँ...जरा बैठने तो दो । कहते हुए पंकज एक कुर्सी में बैठकर बैग खोलने लगा ।

पूजा भी सामने बिछे पलंग के एक किनारे पर बैठकर उत्सुकता से पंकज के बैग की ओर देख रही थी ।

यह शतरंज है तुम्हारे लिए और यह सब सामान मेरी पेंटींग का है ।

कोई तसवीर बनाओगे क्याघ्

हाँए कल देव बाबू जो तसवीर लाए थे वह अधूरी है । आज उसे पूरा करने के विचार से आया हूँ । अब तुम सामने रखे उस स्टूल पर बैठ जाओए मैं इधर स्टैंड पर कैनवास लगा लेता हूँ । पंकज ने कहा ।

इतनी जल्दी क्या हैए पहले एक प्याला चाय तो पी लो ।

नहीं पूजाए पहले यह तसवीर पूरी कर लें । चाय बाद में पिएँगे ।

पंकज के कहने पर पूजा उठकर सामने रखे स्टूल पर जा बैठी । पंकज ने सामने स्टैंड लगाकर उसपर कैनवास लगा लिया ।

वह तसवीर तो ले आओ पूजा ।

अभी लाई । पूजा ने उठकर अलमारी से वह तसवीर निकल दी । पंकज ने उसे फ्रेम से निकालकर कैनवास पर लगा दिया ।

पूजा फिर स्टूल पर बैठ गई । पंकज सामने से उसे एक निश्चित मुद्रा में बैठने के लिए निर्देश देने लगा ।

पंकज का ब्रश तसवीर पर चलने लगा । कभी—कभी उसकी —टि पूजा पर उठती और वह फिर कैनवास पर लगी तसवीर में खो जाता ।

पूजा एक ही स्थान पर और एक निश्चित मुद्रा में बैठी रहने के कारण थक गई थी । अब उसके लिए अधिक समय तक यूँ ही बिना हिले बैठे रहना असम्भव हो गया ।

मुझसे और नहीं बैठा जाता पंकज । शेष तसवीर कल पूरी कर लेना ।

बस दो मिनट और...तसवीर पूरी होने ही वाली है । सिगरेट सुलगाकर पंकज तेजी से तसवीर पर ब्रुश चलाने लगा ।

कुछ देर पश्चात्‌ तसवीर पूरी हो गई । पंकज ने सिगरेट का आखिरी कश खींचकर एक चौन की साँस ली ।

उठो पूजाए अब पास आकर देखो अपनी तसवीर को । ब्रुश को वहीँ स्टैंड पर एक ओर टीकाते हुए पंकज ने कहा ।

पूजा ने पास आकर देखा । रंगों से तसवीर में निखार आ गया था मगर अब पंकज ने उसके मुख पर उठे भावों को परिवर्तित कर दिया था । पहले जिस मुख पर मुसकान थी अब उसपर मायूसी और निराशा झलक रही थी । वह सोच उठीए क्या पंकज ने उसकी उदासी को पकड़ लिया है या देव बाबू ने इसे मेरे विषय में कुछ कहा है । मगर ऐसा तो नहीं हो सकता । कल ही तो पंकज आया है और तब से तो उनका व्यवहार एकदम बदला हुआ है । वैसे भी वे दूसरों के सामने अपना व्यवहार बड़ा सभ्य रखते हैं ।

तसवीर कैसी लगीघ् पंकज ने उसके विचार—प्रवाह को तोड़ा ।

बहुत सुन्दर बनी है ।

तो फिर इसी खुशी में हमें एक प्याला चाय पिला दो ।

अवश्य! कहती हुई पूजा रसोईघर की तरफ चल दी ।

पंकज ने एक सिगरेट निकाली और होंठों में दबाकर सुलगा ली । थोड़ी देर तक बराबर की रसोई से स्टोव की भरभराहट आती रही और उसके बन्द होने पर पूजा दो प्यालों में चाय लिए वहाँ आ गयी ।

पंकज ने उठकर पूजा से प्याले लेकर मेज पर रख दिए । दो पल को कमरे में मौन व्याप्त हो गया । इस मौन के मध्य पंकज पूजा के मुँह की ओर देख जा रहा था ।

क्या देख रहे होघ् पूजा ने पूछा ।

पूजाए एक बात बताओगीघ्

क्याघ्

सच बताओगी नघ्

ऐसी क्या बात हैघ्

तुम बहुत बदल गई हो पूजा । मुझे लगता है कि तुम खुश नहीं होघ् क्या देव बाबू...। पंकज ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी ।

तुम्हारे चाचा कैसे हैं पंकज! पूजा ने प्रसंग से घबराकर बात बदलते हुए कहा ।

यह मेरे प्रश्न का उत्तर तो नहीं हैघ्

सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं होता पंकज । मन में उठते तूफान को रोकते हुए पूजा ने कहा ।

मैं तुम्हारा पुराना साथी हूँ पूजा । क्या मुझसे भी अपने मन की बात छुपाओगीघ् पंकज कह उठा।

तुमने भी तो मेरे हँसते हुए चेहरे को दुख में डुबो दिया है ।

मैंने...घ् चौंककर पंकज ने पूछा ।

हाँ पंकज! कल जो तसवीर देव बाबू लाए थे उसमें रंग न होने पर भी वह जिन्दगी की तसवीर थी परन्तु आज इस तसवीर में रंग होने पर भी चेहरे पर मौत का सन्नाटा छाया हुआ है ।

वह कॉलिज में पढ़़ने वाली पूजा की तसवीर थी और यह वह पूजा है जिसे मैं कल से देख रहा हूँ । चित्रकार वही कागज पर उतारता है जो कुछ वह अपने सामने देखता है ।

क्या मैं बहुत बदल गई हूँघ् पूजा ने हँसकर कहा ।

कभी आईने में अपनी शक्ल देखी हैघ्

मुझे उससे भय लगता है ।

शायद तुम ठीक कह रहे हो पंकज ।

लेकिन यह सब हुआ कैसेघ् पंकज उत्सुकता से कह उठा ।

मुझे कुछ नहीं मालूम! पंकजए मैं कुछ नहीं जानती । कहते—कहते वह स्वयं पर नियंत्रण न रख सुबक उठी । जिस तूफान को वह अब तक स्वयं में दबाए हुए थी वह अब रुक न सका । दो आँसू बहकर सामने रखे चाय के प्याले में समा गए ।

पंकज उसके आँसुओं को सहन नहीं कर पा रहा था । वह पूजा का पुराना साथी था । उसने तो उसे कभी स्वयं से भी अधिक चाहा था । उसके हाथ पूजा की आँखों की तरफ उठ जाना चाहते थे मगर सामने ही उसकी माँग का सिन्दूर उसे रोक रहा था ।

ऐसा नहीं करते पूजा । इन आँसुओं को पोंछ लो । मुझे बताओ तो बात क्या हैघ् प्रत्येक समस्या का समाधान होता है ।

मैंने जीवन में बहुत बड़ा धोखा खाया है पंकज ।

पूजा...!

हाँ पंकज! न जाने यह सब मेरे भाग्य में लिखा था या मुझसे समझने में भूल हो गई । पूजा ने अपने आँसुओं पर नियन्त्रण पाने का प्रयास करते हुए कहा ।

लेकिन बात क्या हैघ्

कहते हुए भय लगता है ।

मुझपर विश्वास करो पूजा ।

अब तो स्वयं पर भी विश्वास नहीं रहा ।

मैं कभी तुम्हारा बुरा नहीं सोचूँगाए विश्वास करो ।

देव बाबू को समझने में मैंने बहुत बड़ी भूल की है पंकज । जिसे देवता समझा था वह तो आदमी भी नहीं निकला । उसका व्यवहार...मैं सोच भी नहीं सकती थी कि एक पति अपनी पत्नी से इतना क्रूर व्यवहार भी कर सकता है ।

पूजा! पंकज आश्चर्य से पूजा को देख रहा था ।

तुम्हें तो पता है कि मैंने इनसे प्यार किया था और अपने माँ—बाप की इच्छा के विरुद्ध इनसे शादी भी की थी । माँ—बाप भी मेरी जिद के सामने झुक गए थे । शादी के बाद तीन महीनों तक ये मुझे इतना प्यार करते थे कि मैं सोचती थी कि क्या कोई और पति भी अपनी पत्नी से इतना प्यार करता होगा! वे तीन महीने कितनी जल्दी बीत गए थे!

फिर क्या हुआघ्

एक दिन ये अपने मित्र की शादी में शामिल होने के लिए दुसरे शहर गए थे । चार दिन की कहकर गए थे मगर वहाँ से दो महीने बाद लौटे । वहाँ से लौटे तो ये एकदम ही बदल गए थे । अब तो हम एक नदी के दो किनारों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं । मैं इनसे जितना अधिक प्यार करती हूँए बदले में उतनी ही घृणा और अपमान मुझे मिलता है । मैं जितना ही पास आना चाहती हूँए ये उतना ही दूर चलते जाते हैं । अब तो हमारे जीवन की स्थिति चुम्बक के दो समान ध्रुवों की भाँती ही है ।

कहीं कोई और लड़की तो इनके जीवन में नहीं हैघ् सब कुछ सुनकर पंकज ने अपनी शंका व्यक्त की ।

मैं भी ऐसा ही सोचती थी मगर ऐसा कोई संकेत भी मुझे नहीं मिलता । मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि मैं क्या करूँ । हर पलए हर क्षण मुझे उनके अपमान और घृणा को सहन करना होता है । अब तो मैं टूट चुकी हूँ । जी चाहता है की उन्हें भी विष दे दूँ और स्वयं भी जहर पीकर सो जाऊँ ।

मैं तो उन्हें देवता समझता था ।

हाँ पंकजए वह देवता ही तो है । तम्बाकू वह पीता हैए शराब पीकर कोठे पर वह जाता है और अपनी पत्नी का अपमान वह करता है । यह सब कुछ आदमी तो कर नहीं सकताए शायद देवता ही करते हों । व्यंग्य से पूजा ने कहा । ह्रदय का सारा दर्द सिमटकर होंठों पर आ गया ।

सच कह रही हो पूजाघ् पंकज उसकी बातों पर विश्वास न कर सका ।

क्या कोई पत्नी अपने पति के लिए इन शब्दों का झूठा प्रयोग कर सकती है पंकजघ्

ऐसी बात नहीं है पूजा! यह प्रश्न तो मैं आश्चर्य के कारण कर गया ।

आश्चर्य में तो मैं डूबी हूँ । कल जब से तुम इस घर में आए हो इनका व्यवहार ही बदल गया है । कल एक लम्बे अरसे के बाद मैंने इनकी बातों में अपमान की झलक नहीं देखी । शायद यह सब तुम्हारे कारण हो ।

मेरे कारण...घ्

हाँ पंकज । कल से मैं अनुभव कर रही हूँ कि इनमें पहली—सी घृणा नहीं रही । मेरे लिए इन्हें समझना कठिन हो गया है । अब तो मुझे इनसे भय लगने लगा है ।

तुम निराश न हो पूजा । अब तो मैं आता ही रहूँगाए कोई न कोई राह निकल ही आएगी ।

अपने मन की बात तुमसे छिपा नहीं सकी इसलिए कह दी । तुम उनसे इस विषय में कुछ न कहना । दो आँसू बहाकर और दिल का दर्द पंकज के समक्ष खोलकर पूजा स्वयं को कुछ स्वस्थ अनुभव कर रही थी । उसका मन हल्का हो गया था ।

अच्छा पूजाए अब मैं चलता हूँ । कहते हुए पंकज उठ खड़ा हुआ । प्यालों में पड़ी आधी से अधिक चाय ठण्डी हो गई थी मगर उसकी तरफ दोनों में से किसी का भी ध्यान न था ।

पंकज अपना सामान उठाकर चल दिया । स्टैंड को उसने वहीँ छोड़ दिया था...शायद फिर आने के लिए ।

पूजा दरवाजे तक उसे छोड़ने के लिए आयी ।

द्वार पर खड़े होकर पंकज ने सिगरेट सुलगाई और धुआँ छोड़कर आगे की ओर बढ़़ गया ।

'''

भाग — उन्नीस

अरे वाह! पंकज ने तो रंगों से इस तसवीर को बहुत ही सुन्दर बना दिया है । कमरे में प्रवेश करते ही देव बाबू की —टि सामने रखे उस चित्र पर पड़ी । एक पल को वे उस तसवीर को देखते ही रह गए ।

पूजा देव बाबू के आने पर कुर्सी से खड़ी हो गई । उनसे चाय के लिए पूछना चाहती थी मगर जब उसने उनको उस तसवीर में खोए हुए देखा तो बिना पूछे ही चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई ।

रसोई में बैठी पूजा सोच रही थी कि उसने पंकज से सब बातें कहकर ठीक नहीं किया । पिछ्‌ले दो दिनों से उसके पति का व्यवहार उसके प्रति काफी मृदु हो गया था । यदि भाववेश में कभी पंकज ने इनसे उस बातों की चर्चा कर दी तो वह कहीं की न रहेगी । वह पहले ही अपने पति से काफी दूर हो चुकी है और जब उन्हें इस बात का पता चलेगा तो वे उसे कभी क्षमा नहीं करेंगे ।

आज तो उसके पति स्कूल बन्द होने के समय से पूर्व ही घर आ गए थे । अभी पाँच ही बजे थे । पूजा को आश्चर्य था कि क्या उसके पति आज स्कूल से अवकाश लेकर आए हैंघ् यदि हाँए तो उन्होंने ऐसा क्यों कियाघ् वह पूछना चाहती थीए फिर कुछ सोचकर उसने कुछ न पूछना ही अधिक उपयुक्त समझा । पिछ्‌ले दिनों से वह अपने पति के व्यवहार को बिलकुल ही नहीं समझ पा रही थी । यधपि इन दिनों उनका व्यवहार बदला हुआ था परन्तु फिर भी वह प्रत्येक पल आशंकित रहती थी कि न जाने वे कब उसका अपमान कर दें ।

चाय बन गई तो पूजा उन्हें प्यालों में डालकर कमरे में ले आई । देव बाबू अब तक यूँ ही खड़े थे और उनकी —टि पूजा की तसवीर पर जमी हुई थी ।

चाय पी लीजिए । पूजा ने उन्हें टोकते हुए कहा । देव बाबू ने मुड़कर अपनी पत्नी की ओर देखा और पास रखी कुर्सी पर बैठ गए । चाय के प्यालों को मेज पर रखकर पूजा भी उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई । उसने अपने पति के मुख की ओर देखा तो उन्हें इतना अधिक गम्भीर पाकर कुछ सहम—सी गयी

पंकज ने अपनी तूलिका से इस तसवीर को बिलकुल ही बदल दिया है पूजा । कल जब मैं इसे लाया थाए कैसा हँसता हुआ चेहरा था मगर आज तो जैसे इस पर मौत की उदासी छायी हुई है ।

वह चेहरा शादी से पहले का था और यह चेहरा अब का है । पूजा कह उठी ।।

इसके लिए क्या मैं दोषी हूँघ् कुछ झुँझलाकर देव बाबू ने कहा ।

इसके लिए कोई दोषी नहीं है । सब भाग्य की बात है ।

खुश रहने का प्रयास किया करो पूजा ।

यह क्या मेरे वश में हैघ्

फिर भी तुम्हें इसके लिए प्रयास तो करना ही चाहिए । देव बाबू की आवाज से झुंझलाहट समाप्त हो गयी । नम्रता का पुट पाकर पूजा का साहस भी लौटा ।

आप कह रहे हैं कि मैं खुश रहने का प्रयास करूँघ् आप जब चाहते हैंए मुझे रुला देते हैं और आज आप कह रहे हैं कि मैं खुश रहा करूँ । आपके कहने पर ही मुझे हँसना है और आपके कहने पर ही मुझे रोना है । जैसे मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है । मैं क्या एक मशीन हूँघ् क्या हँसना या रोना किसी के कहने से होता हैघ् कहते हुए पूजा की आवाज भर्रा गयी ।

हाँ पूजाए हमें बहुत—से काम दूसरों की इच्छा से ही करने पड़ते हैं । जैसे तुम चाय बनाकर ले आयी हो । क्या तुमने मुझसे इसके लिए पूछा थाघ् मगर मैं पी लूँगा । चाय का प्याला मेज से उठाकर होंठों से लगाते हुए देव बाबू ने कहा ।

पूजा को एक गहरा धक्का लगा । उसके पति ने एक विशेष बात को किस साधारणता में बदलकर उसे निरुतर कर दिया था । उसका मन हुआ कि वह सामने मेज पर रखे प्याले को उठाकर दरवाजे से बाहर फेंक दे और स्वयं वहाँ से उठकर कहीं भाग जाए । लेकिन वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पायी ।

हमें जीवन में प्रत्येक क्षण खुशी का ही नहीं मिलता पूजा । कुछ ही क्षण हमें सुख के मिलते हैं । यदि हम उन्हें भी उदासी में बिता देंगे तो हमारा जीवन एक मृगतृणा बन जाएगा ।

इससे तो मृगतृणा ही अच्छी है । पानी की परछाई तो दिखायी देती रहती है । मगर मेरे जीवन में तो सूखे रेगिस्तान के सिवाय कुछ भी नहीं । यहाँ तो चारों तरफ अन्धकार है ।

तुमने आँखें बन्द कर रखी हैं पूजा । उजाला किसीकी आँखों को चुँधिया तो सकता है मगर बन्द आँखों को चीरकर अन्दर नहीं जा सकता ।

आँखें खोलूँ तो कौन—सा प्रकाश बिखरा हुआ हैघ्

बहुत क्रोध है । देव बाबू हँस पड़ेए चलो छोड़ो इस बात कोए एक काम करो । उन्होंने बात बदलने के लिए कहा ।

क्याघ्

कुछ देर देव बाबू सोचते रहे मगर फिर सिर को हिलाते हुए बोलेए मगर नहींए तुम कहोगी कि अपनी बात मुझपर लाद रहे हो ।

नहीं कहूँगी...आप कहिए । पूजा स्वयं भी उस तनाव के वातावरण से मुक्ति पाना चाहती थी ।

तो तैयार हो जाओ ।

किसलिएघ् पूजा ने चौंककर पूछा ।

पिक्चर चलेंगे ।

पूजा यह सुनकर चकित रह गयी । वह सोच उठी कि उसके पति स्वयं को इतनी शीध्र बदल कैसे लेते हैं ।

मेरी इच्छा नहीं है ।

मगर हमारी तो है । हमारी इच्छा के लिए ही सही । देव बाबू ने चाय का आखिरी घूँट भरकर प्याला मेज पर रख दिया ।

पूजा अपने पति की बात पर हँस पड़ी । कितनी गम्भीरता से वे कितनी शीध्र सरलता पर आ गए थे । पूजा ने —टि उठाकर उनकी ओर देखा तो सिवाय मुसकराहट के उनके मुख पर और कोई भाव न खोज सकी ।

पूजा तैयार हुई तो वे दोनों कमरा बन्द करके निकल पड़े । पूजा काफी स्वस्थ लग रही थी । हरे रंग की साड़ी और ब्लाउजए उसने थोड़ा—सा मेक—अप भी किया था—पतझड़ से झड़ी टहनियों पर जैसे नई—नई कोपलें उग आई हों । उसका यह सौंदर्य देव बाबू को बहुत भला लगा । वे बहुत दिनों बाद आज उसे ध्यान से देख रहे थे । एक पल को उन्होंने सोचा कि वह उसे सब कुछ बताकर माफी माँग लें मगर वे ऐसा करने का साहस नहीं कर पाए ।

बड़ी मुश्किल से तीन टीकटें मिली हैं । वे दोनों हॉल के समीप पहुँचे तो साथ वाली दुकान से निकलते हुए पंकज ने कहा ।

तुमघ् पंकज को वहाँ देखकर पूजा को आश्चर्य हुआ ।

मैंने इसे टीकटें लेकर रखने को कह दिया था । देव बाबू ने कहा और बिना कुछ बोले तीनों हॉल की तरफ बढ़़ गए । गेट पार करके जब वे हॉल में पहुँचे तो न्यूज—रील चल रही थी । अन्दर टार्च की सहायता से लाइट—मैन ने उन्हें उनकी सीटों तक पहुँचा दिया ।

फिल्म प्रारम्भ हुई । पूजा पंकज और देव बाबू के मध्य बैठी हुई थी । उसके पति किनारे की सीट पर जम गए तो पूजा के समक्ष वहाँ बैठने के और कोई उपाय ही न था ।

पंकज बार—बार अपना ध्यान पर्दे पर जमाने का प्रयास कर रहा था मगर उसका मन पास बैठी पूजा में भटक जाता था । साथ बैठी पूजा के शरीर की गन्ध उसे अपनी ओर आकर्षित कर रही थी । उसके बाल उड़—उड़कर उसके कन्धे को छू रहे थे । अनचाहे ही उसका हाथ पूजा के हाथ पर जा पड़ा ।

पंकज का हाथ अपने हाथ पर पाकर पूजा चौंकी मगर बिना कुछ कहे उसने अपना हाथ खींच लिया । पंकज का हाथ अब भी उसकी कुर्सी के हत्थे पर निश्चेट पड़ा था ।

इसी बीच मध्यान्तर हो गया । देव बाबू ने सीट से उठते हुए कहाए पंकजए तुम बैठना मैं जरा बाथरूम होकर आता हूँ ।

पंकज पूजा से बात करना चाहता था मगर उसे कोई सूत्र ही नहीं मिल रहा था । मन ही मन उसे बड़ी घुटन—सी हो रही थी । हॉल का वातावरण उसे बोझिल—सा लगने लगा था । पूजा उससे बेखबर अब भी उसे खाली पर्दे की ओर एकटक देख रही थी ।

फिल्म कैसी है पूजाघ् पंकज ने इसी बहाने मौन तोड़ा ।

पूरी फिल्म देखकर ही कुछ कहा जा सकता है । आधी फिल्म से क्या पता चलता है । पूजा ने पंकज की ओर देखते हुए कहा ।

फिर भीए कुछ तो अनुमान लग ही जाता है । पंकज ने टूटती बात को जोड़ना चाहा ।

पंकजए मुझे तो नायिका का अपने पति के अलावा पूर्व प्रेमी से सम्बन्ध बनाना अच्छा नहीं लगा । इससे तो उसका चरित्र बहुत पिछड़ गया है । क्या एक स्त्री को इस तरह अपने पति को धोखा देना चाहिएघ्

पंकज को एक झटका—सा लगा । उसे लगा जैसे पूजा ने उसके मन में उठे विचारों को पढ़़ लिया है और ये शब्द उसने उसीको इंगित करके कहा हैं ।

एक स्त्री को यदि उसका पति लगातार अपमानित करे तो उसके समक्ष और क्या उपाय हैघ् पंकज कह उठा ।

यह तो समस्या का कोई हल नहीं है । उसे चाहिए कि वह किसी तरह अपने पति का प्यार पाने का प्रयास करेए न कि अपने मार्ग से ही भटक जाए । तुम्हारा क्या विचार हैघ्

पंकज क्या उतर देता । उसने तो फिल्म देखी ही नहीं थी । वह चाहकर भी पर्दे पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाया था । खीझ—भरे स्वर में वह इतना ही कह सकाए मेरा तो फिल्म में ध्यान ही न था ।

तो कहाँ ध्यान थाघ्

मालूम नहीं ।

क्या सो गए थेघ्

हाँए सो ही गया था ।

क्योंघ्

सिरदर्द था । बात को टालने के लिए पंकज ने कह दिया ।

कुछ देर दोनों मौन रहे । पूजा हॉल में लोगों की हलचल देख रही थी और पंकज न जाने क्या सोचने लगा था ।

आप ठण्डा लेंगी या गर्मघ् पंकज ने पूछा ।

तुम्हारे सिर में दर्द हैए चाय ठीक रहेगी ।

अच्छा तो आप ठण्डा ले लें ।

नहींए मैं भी चाय ही लूँगी ।

मैं भी चाय ही लेकर आया हूँ । पीछे खड़े देव बाबू की आवाज सुनकर दोनों चौंक उठे । साथ खड़े लड़के ने तीनों के हाथों में चाय के गिलास थमा दिए ।

आपको कैसे पता चला कि हमारी चाय की इच्छा हैघ् चाय का घूँट भरते हुए पंकज ने कहा ।

क्या बात करते हो यार! हम तो लिफाफा देखकर खत का मजमून भाँप लेते हैं । हँसते हुए देव बाबू ने कहा और अपनी कौने वाली सीट पर बैठ गए ।

फिल्म समाप्त हुई तो साढ़़े नौ बज रहे थे ।

आज का खाना भी तुम हमारे साथ ही खाओगे पंकज । देव बाबू ने अनुरोध किया ।

नहीं...नहींए आपको व्यर्थ ही कट होगा ।

कट हमें क्या होगाए कुछ होगा तो होटल के बेयरे को । उसके लिए टीप जरा तगड़ी दे देंगे । आज तुमने पूजा का चित्र पूरा किया हैए इसी खुशी में मैं पार्टी दे रहा हूँ । देव बाबू ने कहा ।

घर क्यों नहीं चलते । पहुँचते ही गर्म—गर्म खाना तैयार हो जाएगा । मौसम भी खराब होता जा रहा है । पूजा ने आसमान में उमड़ते बादलों को देखते हुए कहा ।

नहीं पूजा । देव बाबू ने पूजा का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए कहाए आज तो घुमने का मौसम है और फिर तुम कितने दिनों के बाद घर से निकली हो । आज हम तुम्हें कोई काम नहीं करने देंगे । खाना होटल में और घर जाकर आराम ।

देव बाबू की बात सुनकर पंकज सोच रहा था कि यह सच है या वह जो दोपहर को पूजा ने उससे कहा था । इस समय देव बाबू के व्यवहार को देखकर कोई भी पूजा की इस बात को स्वीकार नहीं कर सकता था कि उसके पति उससे प्यार नहीं करते । वह सोच रहा था कि क्या पूजा ने वह सब झूठ कहा था । यदि हाँए तो उसने यह झूठ क्यों बोला—वह समझ नहीं पा रहा था ।

तीनों अपने—अपने विचारों में खोए सड़क पर चल रहे थे । होटल पहुँचने तक किसी ने कुछ नहीं कहा । होटल में प्रवेश कर सीटों पर बैठने के बाद देव बाबू ने कहाए क्या खाओगे पंकजघ्

जो आप उपयुक्त समझें मँगा लें । मेरी किसी विशेष चीज की इच्छा नहीं है । मैं भी वही ले लूँगा जो आ लेंगे ।

ठीकए बहुत ठीक । तुम्हारी भी हम जैसी ही इच्छा है तब तो खूब निभेगी । ऐसा लगता हैए हमारी पसन्द काफी मिलती है । हँसते हुए देव बाबू ने कहा ।

मैं दोहरे व्यक्तित्व में विश्वास नहीं रखता देव बाबू । पंकज ने जो व्यंग्य किया था उसे पूजा भी समझ गयी थी ।

करना भी नहीं चाहिए मगर फिर भी हमें दोहरे व्यक्तितव में जीना होता है । तुम ही बताओए मैं घर में पत्नी से और स्कूल में बच्चों से समान व्यवहार कैसे कर सकता हूँघ् देव बाबू ने बात को हँसी में उड़ा दिया ।

बच्चे इतने पंगु नहीं होते जो आपका वह व्यवहार स्वीकार कर लें । पूजा की इच्छा हुई कि अपने पति से कह दे मगर कुछ न कहकर वह मौन ही रही ।

पंकज भी निरुतर हो गया था । इसी मध्य बेयरा खाने का आर्डर लेने के लिए आ गया । देव बाबू ने उसे आर्डर दिया और तीनों अपने—अपने विचारों में खोए खाने की प्रतीक्षा करने लगे । तीनों ही आपस के सम्बन्धों के विषय में सोच रहे थे मगर तीनों के ही सोचने का —टिकोण भिन्न था ।

'''

भाग — बीस

आज का दिन बहुत अच्छा रहा पूजा । रात को बिस्तर पर जाते समय देव बाबू ने कहा ।

ण्ण्ण् पूजा सुनकर भी कुछ न बोली ।

इधर आओ पूजाए एक बात सुनो । देव बाबू ने बहुत प्यार से उसे बुलाया था मगर वह जानती थी कि अधिक प्यार से बुलाने का अर्थ है अधिक अपमान । एक पल को तो वह खामोश रहीए फिर उठकर पास आ गयी ।

सामने कुर्सी पर बैठो । देव बाबू ने आदेश—सा दिया मगर वह उस आदेश की अवहेलना करके उनके पाँवों के समीप ही पलंग पर बैठ गयी । उसके हाथ पति के पाँवों पर जा पड़े और वह धीरे—धीरे उन्हें दबाने लगी ।

कुछ देर के लिए देव बाबू को बहुत ही आराम मिला । उन्होंने प्यार से अपनी पत्नी को स्वयं पर खींच लेना चाहा । वे विचलित हो उठे थे मगर तभी अपने निश्चय को याद कर उन्होंने अपने पाँव ऊपर खींच लिए ।

क्या कर रही हो पूजा!

अपने धर्म पालन । —ढ़़ता से पूजा ने कहा ।

मेरे विचार से यह धर्म पालन नहींए गिरावट है ।

यदि यह गिरावट है तो मुझे गिरने में ही सुख मिलता है । मुझे गिर लेने दो देव ।

नहीं पूजाए तुम्हें गिरकर नहींए उठकर सुख भोगना है । देव बाबू सिर्फ इतना ही कह पाए । दोनों का मन भरा हुआ था मगर दोनों ही चुप थे । मौन फैलता जा रहा था ।

पूजा के हाथ फिर देव बाबू के पाँवों की ओर बढ़़ रहे थे मगर वे उठकर तकिए के सहारे अधलेटे—से बैठ गए ।

मेरा के विचार है पूजा ।

क्या...घ्

पंकज मुझे बहुत पसन्द है ।

तो...घ्

इस मकान में ऊपर एक कमरा खली है । क्यों न पंकज यहीं आ जाएघ् मैंने आज सुबह मकान—मालिक से भी इसके लिए बात की थी ।

आपने ऐसा किसलिए सोचा हैघ् किसी शंका से भयभीत पूजा कह उठी ।

अरे भईए कोई विशेष बात नहीं है । अपना मित्र हैए अकेला है । यहाँ रहेगा तो उसके खाने की समस्या भी हल हो जाएगी और फिर तुम भी तो अकेली नहीं रहोगी ।

उससे पूछ हैघ्

नहींए उसके सामने चर्चा करने से पहले मैंने तुमसे पूछना अधिक उपयुक्त समझा ।

आपको यदि यह अच्छा लगता है तो मुझे क्या आपति हो सकती है । तटस्थता से पूजा ने कहा ।

फिर भी तुमसे पूछना तो आवश्यक था ।

मेरे विचार आपसे भिन्न थोड़े ही हैं ।

तो फिर ठीक है । कल रविवार है । मैं प्रातः ही जाकर उसे अपने साथ ले आने का प्रयास करूँगा । तुम सुबह उठकर ऊपर वाला कमरा ठीक कर देना ।

एक पल को फिर मौन छा गया । दीवार पर लगे घंटे की सुइयाँ निरन्तर आगे भागती जा रही थीं । बारह बजने को थे ।

अब जाकर अपने बिस्तर पर सो जाओ । रात बहुत अधिक बीत चुकी है । देव बाबू ने कहा ।

सुनकर पूजा की आशाएँ मिट गयीं । निराश—सी वह उठी और चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर लेट गयी ।

दोनों ही अपने—अपने बिस्तर पर सोने का प्रयास कर रहे थे मगर आँखें बन्द किए होने पर भी नींद मीलों दूर थी । यह जानते हुए भी कि दूसरा सो नहीं रहा हैए दोनों ही सोने का बहाना कर एक—दुसरे को धोखा दे रहे थे ।

रात देर तक जागने के उपरान्त भी देव बाबू प्रातः शीघ्र ही उठ गए । अपनी दिनचर्या से निवृत होकर जब वे पंकज के स्टूडियो की तरफ चले तो उसने पूजा को भी उठा दिया । वे जानते थे कि पंकज न अपने रहने का अब तक कोई प्रबन्ध नहीं किया है और वह रात को स्टूडियो में ही सोता है ।

सात बज रहे थे मगर पंकज अभी सोकर नहीं उठा था । देव बाबू ने जाकर दरवाजा खटखटाया तो उसकी नींद खुली । उठकर उसने दरवाजा खोला तो सामने देव बाबू को खड़ा देखकर चकित रह गया ।

आओ—आओए देव बाबू । आज तो सुबह की किरण के साथ ही आपके दर्शन हो गए । देव बाबू को अन्दर लेकर उसने दरवाजा उढ़़का दिया ।

सुबह—सुबह एक प्याला चाय नहीं पिलाओगेघ् देव बाबू ने बैठते हुए कहा । वे अपने उद्देश्य तक पहुँचने के लिए भूमिका तैयार कर रहे थे ।

आप तो जानते हैं देव बाबूए कि अभी मैं दूध नहीं लाया हूँए सोकर ही उठा हूँ । आओ बाजार में पिएँगे । पंकज तैयार होने के लिए उठने लगा ।

नहीं भईए बाजार की भी कोई चाय होती है! देव बाबू ने मना कर दिया ।

इस बिना घर—द्वार के व्यक्ति को क्यों लज्जित कर रहे हो देव बाबू!

मैं एक प्रस्ताव लेकर तुम्हारे पास आया हूँ । मना तो नहीं करोगे पंकजघ्

प्रताव तो बताओ ।

तुम हमारे साथ आ जाओ । हमारे मकान में ऊपर वाला कमरा खाली है । तुम्हारे खाने का प्रबन्ध भी हो जाएगा ।

नहीं देव बाबूए मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता ।

यह बोझ नहीं होगा पंकज । इसमें मेरा भी स्वार्थ है ।

क्याघ्

तुम तो देख रहे हो कि पूजा कितनी उदास रहती थी मगर तुम्हारे आने से जैसे उसकी खुशी लौट आयी है ।

मेरे आने सेघ्

हाँ पंकजए उसे मुसकराए कितने ही दिन हो गए थे मगर तुम्हारे आने से वह हँसने भी लगी है । हमपर यह उपकार कर दो पंकज ।

पूजा से इस विषय में बात की हैघ्

वह भी यही चाहती है । तुम्हारे आने से उसका एकान्त टूट जाएगा ।

जब आप दोनों की यही खुशी है तो मैं अवश्य ही इस विषय में सोचूँगा ।

अरे भईए सोचना कैसाघ् पूजा ने तो हमें सामान के साथ तुम्हें लिवा लाने का आदेश दिया है । रविवार हैए मैं भी इस काम में तुम्हारी सहायता कर दूँगा । हँसते हुए देव बाबू ने कहा ।

देवए मैं उस मकान में रह तो लूँगा लेकिन खाना मैं बाजार में ही खाऊँगा । पंकज को पूजा के समीप जाना बड़ा सुखद लग रहा था मगर उसने अपनी प्रसन्नता को दबाते हुए कहा ।

क्योंए पूजा के हाथ का बना खाना हजम नहीं होगा क्याघ्

ऐसी बात नहीं है देव बाबू! बात यह है...

मैं तुम्हारी उलझन समझ गया हूँ । तुम खर्चे के विषय में सोच रहे हो तो इस विषय में चिन्ता न करो । वहाँ तुम्हें मुफ्त खाना नहीं मिलेगा । जितना तुम खाने में खर्च करते हो उतना पूजा को दे देना । देव बाबू ने कहा ।

इस विषय में वह बहु हठी है देव! वह कभी खर्च लेना स्वीकार नहीं करेगी । पंकज ने शंका व्यक्त की ।

कमाल के आदमी हो तुम भी । देने के सौ बहाने होते हैं । चलोए अब अपना सामान समेटो । पूजा ने तुम्हारा कमरा भी ठीक कर दिया होगा ।

आपकी चाय...घ्

उधार रही ।

तो चलो । आपका आग्रह टालना क्या मेरे वश में हैघ् पंकज ने प्रस्ताव स्वीकार कर अपना सामान समेटना शुरू कर दिया ।

गिनती का सामान था । एक बिस्तराए एक अटैचीए एक थर्मस और छोटी—छोटी चीजों का एक थैला । कुल मिलाकर बीस मिनट में ही सामान तैयार हो गया ।

देव बाबू ने स्टूडियो के दरवाजे पर आकर बाहर सड़क से गुजरते रिक्शे को बुलाया और उसमें सामान लादकर दोनों घर की तरफ चल दिए । दोनों ही अपने विचारों में खोए हुए थे । देव बाबू पंकज को पूजा के समीप लाने की सोच रहे थे और पंकज पूजा के समीप जाने की उत्सुकता से प्रसन्न था ।

पूजा कमरा साफ करके छज्जे से निकल ही रही थी कि उसकी —टि सामने सड़क पर आ रहे रिक्शे पर पड़ी । देव बाबू पंकज को उसके सामान सहित लेकर आ रहे थे । वह भी शीघ्रता से नीचे दरवाजे पर आ गयी ।

रिक्शा मकान के सामने आकर रुका तो पंकज के उतरने से पहले ही देव बाबू कूदकर रिक्शे से उतर पड़े ।

मैं पंकज को पकड़ लाया हूँ पूजा । दरवाजे पर खड़ी पूजा से उन्होंने कहा ।

पूजा पंकज की ओर देख रही थी । एक पल बाद उसे ध्यान आया तो उसने आगे बढ़़कर रिक्शे से पंकज की अटैची उतार लीए पंकज भी थैला और थर्मस लिए रिक्शे से उतर गया । रिक्शा वाले ने बिस्तर उठाकर दरवाजे में रख दिया और पैसे लेकर चला गया ।

सभी सामान ऊपर कमरे में पहुँचा दिया गया । इस प्रकार दो व्यक्तियों के इस परिवार में एक व्यक्ति और जुड़ गया ।

देव बाबू प्रसन्न थे...वे अपने उद्देश्य के निकट आते जा रहे थे ।

पंकज पूजा के समीप आकर प्रसन्न था ।

पूजा यह सोचकर सन्तुट थी कि शायद पंकज की उपस्थिति से उसके पति का व्यवहार बदल जाएगा ।

'''

भाग — इक्कीस

आज प्रातः से ही तेज वर्षा हो रही थी । दोपहर हो चुकी थी मगर बाहर झाँकने से समय का पता नहीं चलता था । गहरे काले बादलों के बीच चमकती दामिनीए तेज हवा...जैसे आसमान फट पड़ेगा । यह मौसम की सबसे तेज वर्षा थी ।

कुछ देर तो देव बाबू ने वर्षा रुकने की प्रतीक्षा की मगर फिर छाता उठाकर स्कूल की तरफ चल दिए । पूजा कमरे में बैठी खिड़की की राह बाहर की ओर —टि जमाए वर्षा की बूँदों को देख रही थी ।

पंकज ने नीचे उतरकर आने से उसका ध्यान टूटा ।

आज स्टूडियो नहीं जाओगे क्याघ् पूजा ने पूछा ।

ऐसे मौसम में कौन ग्राहक आएगाघ्

ग्राहक और मौत बेवक्त भी आ जाते हैं ।

हम कलाकार अपनी मर्जी के मालिक होते हैं पूजा । किसी की नौकरी तो है नहीं जो जाना ही पड़े । कहते हुए पंकज ने एक सिगरेट अपने होंठों में दबाकर सुलगा ली और वहाँ पड़ी कुर्सी में धँस गया ।

शतरंज खेलोगेघ् पूजा ने प्रस्ताव रखा ।

मन नहीं है ।

तो क्या इच्छा हैघ्

मानोगीघ्

बताओ तो ।

नहींए तुम्हें कट होगा । अप्रत्यक्ष रूप से पंकज ने पूजा को तैयार करने के लिए कहा ।

कट की क्या बात हैए तुम कहो तो ।

मैं तुम्हारी एक तसवीर बनाना—चाहता हूँ । वर्षा की बौछारों में भीगती पूजा की तसवीरए जिसकी जुल्फों से निकलकर मोतियों की लड़ियाँ—सी पानी की बूँदें गालों पर बह रही हों । सचए बहुत ही सुन्दर चित्र बनेगा । मैं इस चित्र में उस दिन वाले चेहरे की उदासी खत्म कर देना चाहता हूँ ।

मुझे क्या करना होगाघ्

जब तक चित्र बनेए स्टूल लेकर छत पर बारिश में बैठना होगा ।

कहीं बीमार पड़ गयी तोघ् मुसकराते हुए पूजा ने कहा ।

इसका उत्तरदायित्व मेरा रहा ।

तो ठीक हैए चलो । पूजा उठकर पंकज के पीछे—पीछे छत पर आ गयी । पंकज के कमरे के सामने वह खुली छत पर स्टूल लेकर बैठ गयी और पंकज ने कमरे में स्टैंड पर कैनवास लगा लिया ।

कैनवास पर लगे कागज पर पंकज का ब्रुश चलने लगा और उभरने लगी वर्षा में भीगती पूजा की तसवीर ।

वर्षा की बूँदों ने पूजा को पूरी तरह भिगो दिया था । बारीक रेशमी साड़ी शरीर से चिपक गयी थी जिससे उसके अंगों का सौंदर्य उभर आया था । वह ठण्ड से कभी—कभी सिहर उठती थी और उसके शरीर में कंपकंपी—सी छुट जाती थी ।

पंकज पूजा को देखे जा रहा था । उसकी —टि उसपर से हट ही नहीं रही थी । ऐसे मौसम में भी उसके माथे पर पसीना छलक आया था । उसका हाथ कागज पर ब्रुश नहीं चला पा रहा था । उसे लग रहा था जैसे आज वह चित्र नहीं बना पाएगा । परन्तु फिर भी वह स्टैंड के पास खड़ा कागज पर ब्रुश फिराने का नाटक कर रहा था । वह नहीं चाहता था कि पूजा का सौंदर्य उसकी आँखों से विमुख हो जाए ।

कितनी देर और लगेगी पंकजघ् पूजा ने पूछा ।

इतनी ही देर और बैठना होगा । पंकज ने कहा ।

वहाँ बैठी पूजा थक गयी थी । वह तुनककर खड़ी हो गयी और बोलीए शेष फिर बना लेना पंकजए मुझसे और नहीं बैठा जाता ।

पंकज भी ब्रुश को वहीँ स्टैंड पर टीका बाहर बरसती बूँदों में आ गया ।

ठीक हैए तसवीर मैं फिर बना लूँगा । लेकिन तुम यहाँ सिर्फ दो मिनट को और रुक जाओ ।

क्योंघ्

एक फोटो ले लेने दोए बाद में उसीके सहारे चित्र बना लूँगा ।

जल्दी करोए मुझे ठण्ड लग रही है । पूजा ने कहा तो पंकज कमरे में आ गया ।

पंकज ने कैमरे में फ्लैश लगायी और वहीँ खड़ा होकर पूजा को ठीक मुद्रा में बैठने का निर्देश देने लगा ।

बस थोड़ा—सा मूँह ऊपरए गर्दन दायीं ओरए हाँ...हाँ...ए थोड़ा मुसकराओ...बस...बस...ठीक है...रेडी...वन...टू...थ्री...। बस...। फ्लैश की तेज रोशनी के साथ ही पंकज ने कहा ।

पूजा कमरे में आकर अपने भीगे बालों को निचोड़ने लगी ।

पूजाए तुम्हारा यह फोटो बहुत ही सुन्दर आएगा ।

हाँ पंकजए झूठी मुसकान का फोटो । पूजा ने कुछ सोचते हुए कहा ।

तुम बहुत उदास रहती हो पूजाए यह मुझसे सहन नहीं होता ।

और उपाय भी क्या हैघ् एक गहरी साँस छोड़ते हुए पूजा ने कहा ।

एक बात तो मैं बहुत दिनों से अपने दिल में दबाए हुए हूँ मगर वह बात अब और अधिक मुझसे नहीं छिपाई जाती ।

कौन—सी बातघ् पूजा का सारा ध्यान पंकज पर केन्द्रित हो गया ।

तुम्हारी शादी से पहले मैंने तुम्हें बहुत चाहा था पूजा । तुम्हारे साथ जीने का सपना भी देखा था । किसी तरह पंकज कह ही गया ।

पूजा की गर्दन झुक गयी थीए तुमने कभी प्रकट नहीं किया ।

अपने संकोची स्वभाव के कारण मैं कुछ भी तो नहीं कह सका । कई बार मैंने तुम्हें संकेत भी देना चाहा मगर तुम देव बाबू के प्यार में खो चकी थीं । देव बाबू से तुम्हारी शादी की बात सुनकर दिल में विद्रोह भी हुआ मगर मैं उसे किसी तरह दबाकर यहाँ से दूर चला गयाए इसीलिए मैं चाहकर भी अपनी आँखों से नहीं देख सकता था ।

काशए तुम मेरी उसे खुशी में बन गए होतेए मगर अब तो ऐसा सोचना भी पाप है ।

नहीं पूजा । मैं पाप और पुण्य की बात नहीं सोचता । मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ । कहते हुए वह एक झटके से आगे बढ़़ा और न जाने किस भावना के वशीभूत हो उसने पूजा को अपनी बाँहों में कस लिया ।

पूजा उसकी बाँहों में काँपकर रह गयी । वह तो सोच भी नहीं सकती थी कि पंकज ऐसा कर सकता है । उसकी —टि पंकज की आँखों की तरफ गयी तो वहाँ लाल—लाल डोरे तैर रहे थे । उसके इरादे को भाँपकर उसके सारे शरीर में कंपकंपी—सी दौड़ गयी । तभी उसके विवेक ने बल दिया तो वह कह उठी ।

छोड़ दो पंकज! न जाने तुममें यह पशु कैसे जाग गया है । यह ठीक नहीं है ।

मुझे मत तोको पूजा ।

सुनकर पूजा स्वयं पर संयम न रख सकी । क्रोध से काँपते हुए उसने कहाए मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम ऐसी बेहूदा हरकत करोगे । और एक झटके के साथ स्वयं को छुड़ाकर वह तेजी से नीचे की ओर भाग गयी ।

उसकी आँखों में आँसू भर आए थे । बिस्तर में गिरए वह फूट—फूटकर रो उठी । आँसू बहाकर दिल हल्का हुआ तो वह काफी देर वहाँ पड़ी सोचती रही ।

एक विचार उसके मन में आया कि देव बाबू के आने पर वह उन्हें सारी घटना बताकर पंकज को यहाँ से निकलवा दे । जो हरकत पंकज ने की थी उसे वह किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकती थी । तभी एक दूसरा विचार उसके मस्तिक में आया । देव बाबू आग्रह से पंकज को यहाँ बुलाकर लाए थे । हो सकता है कि यह घटना बताने से उनपर उल्टा असर पड़े । वैसे भी पंकज के आने से उनका व्यहार काफी बदल गया है । वे अब उसका अपमान नहीं करते । हो सकता है कि पंकज के जाने से उनका व्यवहार फिर बदल जाए । इससे तो इच्छा है कि वह स्वयं ही पंकज को विवेक से समझाकर आज की घटना के लिए शर्मिन्दा करे । कई बार भावावेश में मनुय जो कुछ कर जाता है बाद में उसे उसके लिए काफी पछतावा होता है ।

सब कुछ विचारकर वह इसी निश्चय पर पहुँची कि वह आज की घटना के विषय में पति को कुछ नहीं बताएगी । यह उसकी परीक्षा की घड़ी थी और उसे इसमें खरा उतरना था ।

इधर पंकज भी भावावेश में वह सब कुछ कर तो गया था मगर अब गिले कपड़ों सहित बिस्तर में पड़ा पश्चाताप के आँसू बहा रहा था । वह स्वयं भी नहीं समझ पा रहा था कि उसने ऐसा क्यों किया । कैसे वह अपनी भावनाओं में बह गया! वह पूजा से प्यार तो अवश्य करता था मगर उसकी देह तो भोगने का विचार उसने कभी नहीं किया था । वह चाह रहा था कि इसी पल कमरा छोड़कर वहाँ से भाग जाए और फिर कभी वापस न लौटे । वह पूजा से क्षमा माँगना चाहता था मगर उसके सामने जाने का उसमें साहस नहीं था ।

नीचे से आती देव बाबू की आवाज सुनकर वह काँप उठा । वह सोच रहा था कि अब पूजा आज की सारी घटना उनसे कहेगी । जब देव बाबू उससे पूछेंगे तो वह क्या उत्तर देगाघ् उसके कान नीचे से आती देव बाबू और पूजा की बातों पर ही लगे थे ।

चाय बनाओ पूजाए आज कुछ ठण्ड है । देव बाबू के कहने पर पूजा चाय बनाने के लिए उठकर रसोई में चली गयी ।

देव बाबू उठकर दरवाजें में आकर खड़े हो गए । ऊपर पंकज के कमरे का दरवाजा खुला देख उन्होंने उसे आवाज लगायी मगर पंकज बिना कुछ उत्तर दिए यों ही चुपचाप पड़ा रहा ।

पूजा चाय बनाकर ले आयी । चाय को प्याले में डालकर उसने देव बाबू की ओर बढ़़ा दिया ।

पंकज आज स्टूडियो नहीं गया क्याघ् देव बाबू ने पूछा ।

नहीं! पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी ।

तो उसके लिए चाय क्यों नहीं बनायीघ्

शायद सो रहा है । पूजा ने बहाना किया ।

नहीं पूजाए उठकर उसे चाय दे आओ । मौसम खराब हैए कहीं बीमार न हो गया हो ।

मुझसे ऊपर नहीं जाया जाता । पूजा के सब्दों की रुखाई देव बाबू से छिपी न रह सकी ।

क्या बात है पूजाए तुम्हें आज यह क्या हो गया हैघ्

कुछ नहीं ।

कहीं पंकज से...।

नहीं...नहीं...। पूजा कह उठीए आप चाय पिओए मैं उसे चाय देकर आती हूँ । कहते हुए पूजा चाय का एक और प्याला बना पंकज के कमरे की ओर चल दी ।

सीढ़ियाँ चढ़़ने की आवाज पंकज के कानों में पड़ रही थी । वह पूजा से आँखें मिलाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था । पूजा को दरवाजे के समीप आयी जानकर उसने अपना मुँह दूसरी ओर फिरा लिया ।

उन्होंने चाय भिजवाई है । चाय के प्याले को हाथ में पकड़े पूजा लड़खड़ाती आवाज में इतना ही कह सकी ।

क्या मैं इतना बुरा हो गया हूँ पूजा!

इसका प्रमाण तो आज तुमने दे दिया है ।

मुझे इसका बहुत दुःख है पूजा । मैं नहीं जानता कि वह सब मुझसे क्या हो गया । क्या भावनाओं के अन्धे व्यक्ति को क्षमा नहीं किया जा सकताघ् कहकर पंकज ने पूजा की ओर करवट बदल ली ।

यदि आज की घटना पर तुम्हें अफसोस है तो तुम्हारा अपराध स्वयं ही समाप्त हो गया है ।

मैं कल प्रातः ही यह घर छोड़ दूँगा । हो सके तो तुम मुझे माफ कर दो ।

क्यों...घ्

अपने कलंकित मुख को लिए मैं अब यहाँ नहीं रह सकता ।

तुम्हें यहीं रहना है । पूजा के स्वर में आदेश था ।

क्योंघ् आश्चर्य से पंकज ने कहा ।

मेरी खुशी के लिए ।

तुम्हारी खुशी के लिएघ्

हाँ...। तुम्हारे यहाँ आने से उनका व्यवहार बदल रहा है । मुझे आशा है कि मैं उन्हें फिर से पा लूँगी । पूजा की आँखों में भी दर्द उमड़ आया । उसका क्रोध तो आँसुओं में ढ़लकर पहले ही बह चुका था । आगे बढ़़कर उसने चाय मेज पर रख दी ।

ठीक है पूजा! यदि मेरे यहाँ रहने से यह सम्भव हो सकता है तो मैं यहाँ रह लूँगा मगर तुम्हें मुझे माफ करना होगा ।

व्यर्थ की बातें न करो पंकज । अब तुम अपनी गलती पर पश्चाताप कर रहे हो तो तुम्हारा अपराध स्वयं ही समाप्त हो गया है । अब तुम्हारा मन साफ है । उठोए चाय ठण्डी हो रही है । हाँए चाय पीकर नीचे आ जानाए एक बाजी शतरंज की जमेगी । कहते हुए वह उसके बिस्तर पर ही बैठ गयी ।

पंकज उठकर चाय पीने लगा । चाय समाप्त कर जब उसने प्याला पूजा के हाथ में दिया तो उसका हाथ पूजा के हाथ से टकरा गया । पूजा ने महसूस किया...उसका हाथ बुखार से तप रहा था ।

अरे! तुम्हें तो तेज बुखार है!

पंकज कुछ न कह सका । पूजा का ध्यान उसके गीले कपड़ों की ओर गया तो उसने अटैची से उसके लिए दुसरे कपड़े निकाल दिए ।

तुम कपड़े बदलोए मैं उनको भेजकर डॉक्टर बुलवाती हूँ । कहती हुई पूजा वहाँ से उठकर नीचे कमरे में आ गयी । पंकज ने उसे डॉक्टर बुलाने से मन किया मगर वह इसे सुनने के लिए वहाँ नहीं रुकी ।

सुनोए पंकज तो तेज बुखार है । देव बाबू के समक्ष आते हुए पूजा ने कहा ।

मैंने पहले ही कहा था कि मौसम खराब है ।

किसी डॉक्टर को बुला लेंघ्

ठीक हैए मुझे अभी बाहर जाना है । जाते हुए मैं डॉक्टर को भेज दूँगा । रात मैं शायद देर से आऊँ...तुम पंकज की अच्छी तरह से देखभाल करना । वह इस घर का ही सदस्य है । कहते हुए उन्होंने कुर्सी छोड़ दी ।

डॉक्टर को याद करके भेज देना । पूजा ने कहा ।

अच्छा । कहकर वे कमरे से बाहर निकल गए ।

डॉक्टर आया तथा इन्जेक्शन और कुछ गोलियाँ देकर चला गया । पूजा दिन की बातों को भुलाकर पंकज की देख—भाल कर रही थी ।

रात देव बाबू काफी देर से घर लौटे ।

'''

भाग — बाईस

खट...खट...द्वार के खटखटाने की आवाज सुनकर पूजा की नींद टूटी । आज उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं था । देव बाबू के स्कूल जाने के उपरान्त वह आराम करने के लिए पलंग पर लेटी तो लेटे—लेटे ही उसकी आँख लग गयी ।

घड़ी की ओर पूजा की —टि गयी तो अभी एक बजा था ।

इस समय कौन हो सकता हैघ् एक पल तो वह बुदबुदायी और उठकर दरवाजा खोलने के लिए चल दी ।

अरी रेणुकाए तू! बड़े दिनों बाद याद किया तूने अपनी बहा को! द्वार खोला तो सामने रेणुका को पाकर वह विस्मित रह गयी थी । आगे बढ़़कर उसने रेणुका को गले से लगा लिया । गले मिलीं तो दोनों का दिल भर आया ।

तूने तो इतने दिनों में भी मुझे याद नहीं किया दीदी । रेणुका ने भी भरे गले से कहा ।

दरवाजे पर खड़ी वे दोनों कुछ देर मन हल्का करती रहीं और फिर कमरे में आ गयीं ।

दीदीए तुम्हें हो क्या गया हैघ् पूजा के मुँह की ओर देखती हुई रेणुका कहे बिना न रह सकी ।

क्योंघ् क्या बात हैघ् हँसते हुए पूजा ने कहा ।

तुम तो पहचान में भी नहीं आतीं । अभी साल—भर भी तो तुम्हारे विवाह को नहीं हुआ! सुखकर काँटा हो गयी हो ।

शादी के बाद ऐसा ही होता है रेणुका!

नहीं दीदीए शादी वाली कोई खुशी तो तुम्हारे मुख पर दिखाई नहीं देती । पूजा की आँखों में झाँकते हुए रेणुका ने कहा ।

छोड़ इस बात कोए अपनी सुना । इतने दिनों क्या करती रहीए कैसा जीवन बीत रहा हैघ् पूजा ने बात को मोड़ते हुए कहा ।

बसए अच्छा ही बीत रहा है ।

शादी कर लीघ्

करती तो क्या तुझे खबर नहीं होतीघ्

कोई लड़का देखूँघ्

किसकी बात कर रही होघ्

पंकज की ।

कॉलिज की बातों को भूली नहीं होघ्

भूल जाती तो यह स्थिति ही क्यों होती । मन ही मन पूजा ने सोचा मगर मुँह से कुछ न कह सकी । उदासी की एक हल्की—सी परत उसके मुख पर फैल गयी ।

क्या बात है पूजाए उदास क्यों हो गयीघ्

वैसे हीए तू बता—करूँ पंकज से बातघ्

पंकज यहीं रहता हैघ्

हाँए इसी मकान में ऊपर वाला कमरा ले रखा है ।

हूँ...। रेणुका कह उठी ।

क्या विचार हैघ्

नहीं पूजाए मैं किसीको पसन्द कर चुकी हूँ ।

अच्छा! मगर किसेघ्

राजन को ।

वही कॉलिज वाला करोड़पतिघ्

हाँ पूजा ।

खूब समझ लिया हैघ्

इसमें समझ से नहींए भावनाओं से काम लिया जाता है पूजा ।

तो कब कर रही हों शादीघ्

बसए शीघ्र ही मैं घर वालों के सामने यह विस्फोट करने वाली हूँ । वैसे मैं जानती हूँ कि यह सम्बन्ध दोनों में से किसी के घरवालों को स्वीकार नहीं होगा ।

तो फिर...घ्

हम हिन्दुस्तान छोड़कर कनाडा जा रहे हैं पूजा । वहाँ भी उनका व्यवसाय है । बिना किसी हिचकिचाहट के रेणुका ने कहा ।

माँ—बाप की इच्छा का विरोध करना ठीक नहीं है रेणुका ।

क्योंए क्या बिल्ली सौ चूहे खाकर हज को जा रही है । वही कॉलिज वाली शोख —मुसकान एक बार से फिर रेणुका के मुख पर उभर आयी ।

मैं अनुभव की बात कर रही हूँ रेणुका ।

क्योंए तू खुश नहीं है क्याघ् चौंकते हुए रेणुका न कहा ।

पूजा खामोश होकर रह गयी ।

क्या बात है पूजाए तुम बहुत उखड़ी हुई लग रही होघ्

नहींए वैसे ही ।

मुझसे छिपा रही होघ्

रेणुकाए तू तो जानती है कि मैं तेरी तरह साफ नहीं कर सकती । पहले चाय पिओ...मैं बनाकर लाती हूँ । इसके बाद बातें करेंगे ।

ठीक हैए तू पहले अपनी चाह ही पिला दे । रेणुका चाय के स्थान पर चाह का प्रयोग करके स्वयं ही हँस पड़ी और कॉलिज के जीवन की एक हल्की—सी परछाई से पूजा के मुख पर भी मुसकान फैल गयी ।

चाय पीते हुए पूजा ने अपनी जिन्दगी के दर्द—भरे पृठों को रेणुका के समक्ष खोल दिया ।

यह सब हुआ कैसे पूजाघ् सुनकर रेणुका सहसा ही विश्वास नहीं कर पाई ।

कारण तो मैं भी नहीं जानती । पूजा ने स्वयं पर नियन्त्रण पाते हुए कहा । उसकी सिसकियाँ रोकने पर भी नहीं रुक रही थीं ।

कहाँ हैं तेरे मियाँए मैं उनसे बात करुँगी ।

नहीं पूजाए ऐसा न करना । अब वे कुछ बदल रहे हैं । तू उनके स्वभाव को नहीं जानती ।

लेकिन हैं कहाँ देव बाबूघ्

स्कूल गए हैं ।

कब लौटेंगेघ्

कोई निश्चित समय नहीं है ।

ओह! मगर तू उनका इतना ख्याल क्यों रखती हैघ्

क्या करूँए भारतीय नारी हूँ न ।

फिर भीए पढ़़ी—लिखी हो । अपने अधिकारों के लिए संघर्ष क्यों नहीं करतीघ्

कई बार किया है मगर उनके समक्ष टीक नहीं पाती ।

दोनों वहाँ बैठी काफी देर तक बातें करती रहीं । सन्ध्या के छः बज चुके थे मगर पूजा को इसका ध्यान न था । काफी दिनों से वह रेणुका से मिल ही नहीं पाई थी । आज जो मिली तो शाम के खाने की सुध भी भूलकर उससे बतियाती रही ।

अपने समय की विपरीत आज देव बाबू छः बजे छुट्टी होते ही सीधे घर आ गए । उनके साथ ही पंकज भी था । रेणुका को वहाँ देखकर देव बाबू मुसकरा उठे ।

अरे वाह! आज तो हमारा कमरा ही कॉलिज का क्लास—रूम बन गया है । हँसते हुए उन्होंने कहा ।

कॉलिज का क्लास—रूम कैसे जीजाजीघ्

भई हम चार सहपाठी एक स्थान पर मिले हैं तो क्या यह क्लास—रूम से कम हैघ्

पंकज और देव बाबू आगे बढ़़कर सामने बिछे पलंग पर बैठ गए ।

दोनों उदास—उदास क्यों बैठी होघ् पूजाए उठी भईए हमारी साली का अच्छी तरह से अतिथि—सत्कार करो ।

दीदी तो कर चुकी । अब आप ही कुछ करिए । हँसते हुए रेणुका ने कहा ।

आप तीनों मुझे इसका मौका दें । कहते हुए पंकज खड़ा हो गया ।

कहाँ जा रहे हो पंकजघ् रेणुका ने पूछा ।

सेवा के लिए सामग्री एकत्रित करने । कहकर बिना कुछ सुने ही पंकज बाहर निकल गया ।

जब पंकज लौटकर आया तो उसके हाथ में बहुत—सा सामान था । पीछे—पीछे लड़का चाय की ट्रे लिए आ रहा था ।

चाय पीने के बाद रेणुका चलने के लिए उठ खड़ी हुई ।

आज यहीं रुको रेणुका । देव बाबू ने कहा ।

नहींए आज तो जाना हैए फिर कभी ठहरा लेना । एक गहरी मुसकान के मध्य रेणुका ने कहाए क्योंए ठहराओगे न जीजाजीघ्

रेणुका की बात पर देव बाबू भी निरुत्तर हो झेंपे बिना न रह सके और रेणुका हँसती हुई कमरे से निकल गयी ।

तीनों दरवाजे पर खड़े उसे जाते हुए देखते रहे । कुछ देर बाद पूजा खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई और देव बाबू कमरे में बैठे पंकज से बातें करते रहे ।

'''

भाग — तेईस

प्रातः के दस बज रहे थे । रात—भर वर्षा होती रही थी और अब भी उसके बन्द होने के आसार दिखायी नहीं दे रहे थे । देव बाबू घर से निकलने के लिए वर्षा रुकने की प्रतीक्षा कर रहे थे । इस मध्य वर्षा कुछ हल्की हुई तो वे घर से निकल पड़े ।

देव बाबू के घर से जाने के बाद पूजा ऊपर पंकज के कमरे की तरफ चल पड़ी । पंकज आज अभी तक सोकर नहीं उठा था । आज सुबह उसने उनके साथ चाय भी नहीं पी थी । पूजा चाय देने के बहाने ऊपर जाकर वर्षा की झरती बूँदों का आनन्द लेना चाहती थी ।

चाय लेकर पूजा ऊपर कमरे में पहुँची तो पंकज अभी तक चादर ताने सो रहा था । पूजा के पुकारने से उसकी नींद टूटी ।

आज सोते रहोगे क्याघ् पूजा ने चाय का प्याला उसकी ओर बढ़़ाते हुए कहा ।

पंकज ने आँखें मलते हुए हाथ आगे बढ़़ाकर उससे चाय का प्याला ले लिया । पूजा वहीँ पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गयी ।

देव बाबू स्कूल का एक आवश्यक रजिस्टर घर पर भूल गए थे । उसके लिए उन्हें राह से लौटना पड़ा । पूजा को नीचे न पाकर वे उसे ऊपर पंकज के कमरे में देखने के लिए चल दिए । उसका अनुमान ठीक था । पूजा वहाँ बैठी पंकज से बातें कर रही थी । देव बाबू एक पल को वहीँ रुक गए और उन्होंने सामने खिड़की में से अपनी —टि कमरे में जमा दी । वे उनकी बातों को सुनकर यह अनुमान लगाना चाहते थे कि अपने उद्देश्य में वे अब तक कितने सफल हुए हैं ।

घूँट भरकर चाय के प्याले को मेज पर रखते हुए पंकज पूजा से कह रहा थाए पूजाए रात को देव बाबू के जोर—जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी । क्या फिर कोई झगड़ा हुआ थाघ्

झगड़ा किस दिन नहीं होता पंकज!

लेकिन बात क्या थी ।

कुछ पल तो पूजा मौन रही परन्तु फिर सब कुछ छिपाने में स्वयं को असमर्थ पाकर उसने सच बोल दियाए

रात बादलों की तेज गर्जनाए बिजली की चमक और तूफान से डरकर मैं उसके बिस्तर पर चली गयी थी । बसए यही अपराध था मेराए जिसके कारण मुझे उनके क्रोध और अपमान का सामना करना पड़ा । तुम बताओ पंकज! मेरा अपराध क्या हैघ् कहते हुए वह स्वयं पर से नियन्त्रण खोकर सुबक उठी ।

पूजा कब तक सहोगी यह सबघ् कब तक मारोगी स्वयं को । मुझसे यह सब कुछ नहीं देखा जाता । मुझे यहाँ से जाने दो पूजा । पंकज कह उठा ।

नहीं पंकजए तुम्हारे चले जाने से क्या स्थिति सुधर जाएगीघ्

कम से कम मैं तुम्हारी यह स्थिति देखकर दुखी तो नहीं हूँगा ।

पंकजए अब कम से कम मैं तुम्हारा साथ तो अनुभव करती हूँ । तुम्हारे जाने के बाद तो वे मुझे प्रताड़ित करने को पूरी तरह स्वतन्त्र हो जाएँगे ।

तो मुझे अपने मन की करने दो पूजा । मैं तुम्हें इस दलदल से बाहर निकल लेना चाहता हूँ ।

मुझे कुछ समय दो । मैं स्वयं भी किसी निर्णय पर पहुँचना चाहती हूँ ।

मैं तुम्हारे निर्णय की प्रतीक्षा में हूँ । अग्नि जब ताप देने के स्थान पर जलाने लगे तो उससे दूर हो जाना चाहिए ।

हाँए दूर ही होना पड़ेगा । अब मुझसे भी और सहन नहीं होता । कहकर पूजा खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखने लगी जहाँ पर धरती और आसमान के मिलने का भ्रम हो रहा था ।

बाहर खड़े देव बाबू ने भी सब कुछ सुना । वे अपने उद्देश्य में सफल हो रहे थे । एक गहरी मुसकान उनके मुख पर उभरी और वे निश्चित से होकर वहाँ से निकल गए ।

मकान से निकलकर देव बाबू सीधे स्कूल पहुँचे । वहाँ पहुँचकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । प्रधानाचार्य ने उनके इस अचानक व्यवहार का कारण पूछ तो कुछ स्पट न बताकर वे बात को टाल गए । इसके उपरान्त उन्होंने सहयोगी अध्यापकों से विदा ली और चल पड़े ।

राह में बैंक से होते हुए वे करुणा के घर पहुँचे । वहाँ बैठकर उन्होंने पूजा और पंकज के नाम दो पत्र लिखे । उन्होंने करुणा को अपने वहाँ से जाने का संकेत तो दिया मगर कहा कुछ नहीं । करुणा उनके संकेत को समझ नहीं पायी । उसने देव बाबू की बात को गहराई से नहीं लिया था । उसने उनसे कुछ देर वहाँ रुकने को कहा मगर वे वहाँ से निकल गए ।

उस रात को जब देव बाबू देर तक घर नहीं लौटे तो पूजा को स्वाभाविक चिन्ता हुई मगर वह जानती थी कि उनके आने का कोई समय निश्चित नहीं है । रात्रि को बारह बजे तक प्रतीक्षा करके वह सो गयी । उसने सोचा कि अपने स्वभाव के अनुसार वे कहीं रुक गए होंगे ।

अगले पुरे दिन प्रतीक्षा करने के उपरान्त भी जब देव बाबू नहीं लौटे तो पूजा की चिन्ता बढ़़ गयी । सन्ध्या के सात बज रहे थे । पंकज भी स्टूडियो से आ चुका था । वह दो बार ऊपर से आवाज लगाकर उनके विषय में पूछ चुका था । पूजा खाना बना चुकी थी मगर देव बाबू घर नहीं लौटे थे ।

पूजा ने पंकज को आवाज लगाकर नीचे बुला लिया ।

क्या बात है पूजाघ्

वे कल से अभी तक घर नहीं लौटे पंकज । चिन्ता की गहरी लकीरें पूजा के मुख पर खिंच आयी थीं ।

कहीं चले गए होंगे । उपेक्षा से पंकज ने कहा ।

पूजा को पंकज की यह उपेक्षा अच्छी न लगी और वह तेज वर्षा से बचने के लिए छाता उठाकर बाहर जाने लगी ।

इतनी तेज बारिश में कहाँ जा रही होघ्

स्कूल से शायद कोई खबर मिल जाए ।

तुम यहीं ठहरो । स्कूल तो बन्द हो चुका होगा । मैं प्रिंसिपल का घर जानता हूँए वहीँ होकर आता हूँ । पूजा के हाथ से छाता लेकर वह बाहर निकल गया ।

एकाएक पूजा को करुणा की याद आ गयी । शायद वे वहीँ रुक गए होंए इस विचार के आते ही वह तेज वर्षा की ओर ध्यान दिए बिना ही घर को ताला लगाकर वहाँ से चल पड़ी ।

भाभी आप! तेज वर्षा से भीगती खड़ी पूजा को करुणा ने देखा तो वह कह उठी ।

वे कल से अब तक घर नहीं लौटे । तुम्हारे पास आए थे क्याघ् पूजा एक ही साँस में कह गयी ।

कुछ देर तक करुणा खड़ी सोचती रही और फिर उसने कहाए कल दोपहर को दो बजे के लगभग वे मेरे पास आए थे । उस समय वे बहुत ही उखड़ी—उखड़ी—सी बातें कर रहे थे । कह रहे थे कि वे एक लम्बी पर्वत—यात्रा पर जा रहे हैं । मैंने तो सोचा कि वे अपने स्वभाव के अनुसार परिहास कर रहे हैं ।

पूजा खड़ी उसकी बातों पर विचार कर रही थी ।

क्यों भाभीए कोई झगड़ा हो गया था क्याघ्

झगड़ा तो प्रतिदिन होता था । एक आह भरकर पूजा ने कहा ।

क्या कर रही हो भाभी! आश्चर्य से करुणा उसका मुँह ताकती रह गयी ।

चलकर देखती हूँए शायद पंकज स्कूल से कोई समाचार लाया हो ।

ठहरो भाभीए मैं भी साथ चलती हूँ । कहते हुए करुणा ने अपना छाता उठा लिया ।

नहींए नहींए तुम क्यों कट करती हो ।

इसमें कट की क्या बात हैघ् इतना कहकर करुणा ने कमरे को ताला लगाया और पूजा के साथ चल दी ।

कमरे का द्वार अभी तक बन्द था । पंकज लौटा नहीं था । पूजा ने कमरे का ताला खोला तो दोनों अन्दर आ गयीं । पूजा ने बिजली जलायी और वे वहाँ बैठकर पंकज के लौटने की प्रतीक्षा करने लगीं ।

भाभीए यह सब हुआ कैसेघ् करुणा स्थिति की गम्भीरता के विषय में सोचती हुई कह उठी ।

मैं कुछ नहीं जानती करुणाए मगर जब से तुम उन्हें मिली होए वे एकदम बदल गए हैं । तभी से प्रतिदिन मुझे अपमान और प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है । मैं समझ नहीं पायी हूँ कि उन्हें हो क्या गया है ।

भाभीए क्या इसमें मैं कहीं अपराधिनी हूँघ्

जिस दिन तुम्हारे पास गयी थीए मैंने भी यही सोचा था । लेकिन तुमसे मिलने के बाद मुझे अपने मन की शंका निराधार लगी । सब मेरे भाग्य का दोष है...इसमें किसी का क्या वश चल सकता है । पूजा की आँखों में आँसू छलक आए ।

दिल छोटा न करो भाभीए देव भइया अवश्य लौट आएँगे । करुणा ने पूजा के आँसू पोंछ दिए ।

भगवान करे तुम्हारी बात सच हो मगर मेरा मन बुरी विचारों से घिर रहा है ।

सामने से छाता लिएए सिर झुकाए पंकज चला आ रहा था । उसे अकेला आता देख पूजा का मन बुझ गया ।

कुछ पता चलाघ् पास आकर दरवाजे पर ही पूजा ने पूछा ।

उन्होंने कल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया है! आश्चर्य और दुःख में डूबी पूजा खड़ी न रह सकी । वह गिरने को ही थी कि पंकज ने उसे थामकर कुर्सी में बैठा दिया ।

कुर्सी में धँसी पूजा छत की ओर ताक रही थी । पंकज भी खामोश सिर झुकाए वहीँ बैठ गया । दरवाजे के सहारे लगे छाते से एक पानी की लकीर बहकर कमरे में फैल रही थी ।

करुणा पूजा को दिलासा देती रही । पंकज भी ऊपर जाने का साहस न कर सका । कुर्सी में धँसा वह सिगरेट फूँकता रहा । सारी रात आपस में सोच—विचार होता रहा लेकिन कोई कुछ नहीं समझ पा रहा था ।

सभी अलग—अलग कई बार यह सोच चुके थे कि शायद देव बाबू ने आत्महत्या कर ली हो मगर अपना यह विचार कोई भी दुसरे पर प्रकट करने का साहस नहीं कर पा रहा था । सभी रह—रहकर एक—दुसरे की आँखों में यह विचार पढ़़ रहे थे मगर तीनों ही खामोश थे ।

रह—रहकर तीनों के मध्य मौत का—सा सन्नाटा फैल जाता । एक आशा लिए तीनों की निगाहें किसी भी आहट पर दरवाजे की ओर उठ जातीं मगर जाने वाला नहीं लौटा ।

बाहर वर्षा थम चुकी थी मगर तेज हवा अब भी भयावनी आवाज कर रही थी । तीनों ने ही वह रात वहाँ खामोशी के बिच बैठकर काटी ।

'''

भाग — चौबीस

एकाएक पूजा चीखकर उठ बैठी । रात—भर जागने के कारण प्रातः ही कुर्सी पर बैठे—बैठे उसकी आँख लग गयी थी ।

क्या हुआ पूजाघ् पास बैठे पंकज ने पूछा ।

बहुत बुरा स्वपन था पंकज । पूजा की आँखें खिड़की की राह आते सूर्य के प्रकाश को ताकने लगीं ।

क्या स्वप्न थाघ्

चारों ओर गहरा अन्धकार था पंकज । तेज हवाएँ चल रही थीं । मैं अपने हाथ में दीपक लिए सुनसान राह पर बढ़़ी जा रही थी । दीपक की लौ तेज हवा में थरथरा रही थी । मैंने उसे बचाने की बहुत कोशिश की मगर तेज हवा के एक झोंके ने उसे बुझा दिया । मेरी राह अन्धकार से भर गयी । मैं घबराकर भागने लगी परन्तु पाँव में कुछ उलझने से गिर पड़ी और भय से मेरी चीख निकल गयी । स्वप्न का भय अब भी पूजा के मुख पर विधमान था ।

दुःख और चिन्ता में आदमी को बुरे सपने आते ही हैं । मैं तुम्हारे लिए बाहर से चाय लेकर आता हूँ । पंकज ने कहा ।

करुणा कहाँ गयीघ् पूजा ने पूछा ।

वह अभी—अभी उठकर गयी है । कह रही थी कि शीघ्र ही लौट आऊँगी ।

पूजा की —टि सामने पड़ी । घड़ी में ग्यारह बज रहे थे । उसने फिर अपनी पीठ कुर्सी के सहारे टीका ली ।

चिट्ठी...। तभी डाकिए ने दो लिफाफे फेंकते हुए कहा ।

पंकज ने आगे बढ़़कर दोनों पत्रों को उठाया । एक पत्र पूजा के और दूसरा उसके नाम था । लिखावट देखकर ही वह पहचान गया कि दोनों पत्र देव बाबू के हैं । उसने पूजा का पत्र चुपचाप उसकी ओर बढ़़ा दिया ।

किसके हैंघ्

देव बाबू के हैं ।

उनके पत्र हैंघ् आश्चर्य से पूजा ने कहा और तेजी से हाथ बढ़़ाकर पत्र ले लिया ।

पढ़़ो...शायद कुछ समाचार मिले । पंकज ने कहा मगर पूजा इससे पहले ही लिफाफा फाड़कर पत्र पढ़़ने लगी थी ।

पूजाए

शायद तुन मुझे कभी क्षमा नहीं करोगी । मैंने तुम्हें बहुत प्रताड़ना दी हैए तुम्हारा अपमान भी किया है । मेरा अपराध बहुत बड़ा है । मैंने तुम्हें बहुत यातनाएँ दी हैं । पंकज तुमसे बहुत प्यार करता है । मेरे घर छोड़ने का यह कारण नहीं है कि पंकज तुम्हें चाहता है अपितु यह तो घर छोड़ते हुए मेरी निशिचन्तता का कारण है । शायद तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो परन्तु मैं अपुरुष हो चुका था पूजा । उस दिन जब मैं मित्र के विवाह में गया तो वहीँ एक दुर्घटना में सब कुछ घटीत हो गया ।

अब शायद तुम मेरे उस सारे व्यवहार का कारण समझ सको जो पिछ्‌ले कई महीनों से मैं तुम्हारे साथ करता आया हूँ । मैं तुम्हारे योग्य नहीं रह गया था पूजाए और चाहता था कि मेरे व्यवहार से तुम मुझसे घृणा करने लगो । मेरा तो जीवन ही व्यर्थ हो गया था पूजा ।

अन्तिम समय एक माँग कर रहा हूँ । एक और उपकार मुझपर करना—मुझे तलाश करने में अपना समय नट न करना । मैं लौटने के लिए नहीं जा रहा हूँ । मैं किसी शहर या कस्बे में नहीं अपितु दूर कहीं हिमालय की तराइयों में खो जाना चाहता हूँ । तुम पंकज को अपना लेना पूजाए इससे मुझे चौन मिलेगा ।

अन्तिम बार फिर तुम्हारे भावी जीवन की लिए शुभकामनाएँ करता हूँ ।

एक अभागाए

देव बाबू

इधर पंकज भी साँस रोके अपना पत्र पढ़़ रहा था ।

भाई पंकजए

मैं जा रहा हूँ । मैं जानता हूँ कि तुम पूजा को बहुत अधिक प्यार करते हो मैं उसके योग्य नहीं रह गया हूँ पंकजए इसीलिए उसे तुम्हारे हाथों में सौंपकर जा रहा हूँ । उसे दिन स्टूडियो में पूजा का अधुरा चित्र देखकर मैंने अनुमान लगा लिया था कि तुम पूजा को बहुत चाहते हो । उसी समय मैंने एक निश्चय कर लिया था । तुम्हें अपने यहाँ बुलाकर ठहराने का भी मेरा यही उद्देश्य था कि तुम और पूजा एक—दुसरे के और निकट आ सको । आज की घटना से मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे चले जाने पर पूजा तुम्हें अवश्य अपना लेगी ।

मैंने उसे बहुत दुःख दिए हैं पंकज । तुम उसे इतनी खुशी देना मेरे भाईए कि वह उसे दुखों को भूल जाए । मैं कई जन्मों तक तुम्हारा ऋणी रहूँगा । उठोए सम्भाल लो पूजा को...संकोच न करो ।

तुम्हाराए

देव बाबू

पूजा...। पत्र से —टि हटाकर पंकज ने पूजा के मुँह की ओर देखा ।

पूजा ने चीखकर हथेलियों में अपना मुँह छुपा लिया और फूट—फूटकर रोने लगी । पंकज से यह सब नहीं देखा गया और वह उठकर भरी कदमों से अपने कमरे में चला गया ।

अभी निकट सम्बन्धियों और जान—पहचान वालों को तार देकर देव बाबू के विषय में पूछा गया मगर कहीं से कोई उत्तर न आया । अनेक रिश्तेदार सूचना पाकर वहाँ आने लगे ।

पुलिस स्टेशन पर भी रिपोर्ट लिखवाई गयी मगर व्यर्थ । सभी अपना अनुमान लगा रहे थे मगर कोई एक—दूसरे के अनुमान से सन्तुट नहीं हो रहा था । अभी देव बाबू के घर छोड़ने का कारण जानना चाहते थे मगर पूजा और पंकज के सिवाय कोई कुछ नहीं जानता था । वे दोनों ही खामोश हो गए थे ।

माँ से लिपटकर पूजा बहुत देर तक रोती रही थी । सभी उससे अनेकों प्रश्न पूछना चाह रहे थे मगर वह तो जैसे पत्थर हो गयी थी । वह किसी के प्रश्न को कोई उत्तर न दे सकी ।

तीन दिन से पूजा से कुछ नहीं खाया था । आज माँ ने आग्रह करके थोड़ा—सा गर्म दूध उसे पिला दिया ।

एक—एक करके सभी वापस लौट गए । माँ ने उसे पास बैठाकर कहाए बेटीए अब तू हमारे साथ चल । हम कब तक यहाँ रहेंगेघ्

नहीं माँए आप जाओ । मैं यहीं रहूँगी । पूजा का उत्तर था ।

यहाँ अकेली कैसे रहोगी बेटीघ् क्या करोगी यहाँघ् माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिरते हुए कहा ।

मैं यहाँ रहकर उनकी प्रतीक्षा करूँगी माँ

न जाने वह कब लौटेंघ्

जब भी लौटें! मैं पढ़़ी—लिखी हूँए नौकरी मिल ही जाएगी । जिद न करो बेटी ।

माँए मुझे अपना कर्तव्य पूरा करने दो ।

जैसी तेरी इच्छा! माँ को उसके हठ के समक्ष झुकना ही पड़ा ।

अगले दिन पूजा स्कूल के मैनेजर से मिली । उन्होंने उसकी सारी कहानी सुनकर उसे देव बाबू के स्थान पर अध्यापिका नियुक्त कर लिया ।

पूजा ने स्कूल जाना आरम्भ कर दिया । माँ—बाप अपने घर चले गए थे । जीवन धीरे—धीरे सामान्य गति से चलने लगा । पंकज के साथ ही साथ अब करुणा भी उसके पास रहने लगी थी ।

'''

भाग — पच्चीस

दो दिन की लम्बी यात्रा के बाद अब देव बाबू पैदल ही हिमालय की तराइयों में भटक रहा था । उसने अपना अन्तिम समय इन एकान्त और मौन पर्वतों के मध्य बिताने का निश्चय कर लिया था ।

कल से उसने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया था । पैदल चलने और भूखे रहने से उसका शरीर क्षीण होता जा रहा था । उसके बाल बिखर रहे थे और शरीर थकान से टुटा जा रहा था परन्तु फिर भी वह निरन्तर पर्वत पर ऊपर की ओर बढ़़ा जा रहा था । ऐसा लगता था जैसे साँस रुकने से पहले वह पर्वत की सबसे ऊँची चोटी को छू लेना चाहता हो । एक —ढ़़ विश्वास उसके मुख पर फैल रहा था ।

अचानक ठण्डी हवा तेज हो गयी । उसका कमजोर शरीर काँपने लगा । पाँव पत्थरों से टकराने लगे । तेज हवा के थपेड़े उसे विचलित करने लगे । फिर भी वह सर्दी की परवाह किए बिना गिरता—उठता तेजी से आगे बढ़़ता जा रहा था ।

हवा में बर्फ के कण तैरने लगे । जब उसने अपनी यात्रा आरम्भ की थी तो उसने सोचा था कि यों ही चलते—चलते वह अपनी इस जीवन—यात्रा को समाप्त कर देगा परन्तु अब उससे मृत्यु की पीड़ा सहन नहीं हो रही थी । वह पर्वत में चारों ओर कोई आश्रय खोज रहा था लेकिन दूर—दूर तक बर्फ—ढ़की चोटीयों के सिवाय उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ।

एक क्षण को उसे अपने किए निश्चय पर पश्चात्ताप भी हुआ । मृत्यु की पीड़ा अधिक कटदायक होती जा रही थी । आश्रय की खोज में वह और अधिक तेजी से इधर—उधर भागने लगा ।

बर्फ तेजी से गिरने लगी । पर्वत के पत्थर सफेद होने लगे । उसके आगे बढ़़तेए लड़खड़ाते पाँव बर्फ में धँसने लगे । उसका साहस साथ छोड़ता जा रहा था । उसके पाँवों में जैसे किसी ने भारी पत्थर बाँध दिए थे । आगे बढ़़ने को उसके पाँव उठ ही नहीं रहे थे ।

उस राह का कोई ज्ञान न था । चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी । पगडण्डी का निशान दूर—दूर तक न था । फिर भी वह अनुमान से धीरे—धीरे बढ़़ा जा रहा था ।

अचानक उसका पाँव एक गड्ढे पर पड़ा और वह सम्भल न सका । वह कमर तक बर्फ में धँस गया । वह बाहर निकलने का प्रयास कर रहा था मगर शरीर के सारे अंग ठण्ड से निक्रिय होते जा रहे थे ।

अब वह बर्फ से बाहर निकलने का प्रयास भी नहीं कर पा रहा था । उसने सोच लिया कि उसका अन्तिम समय समीप आ गया है । उसके हाथ स्वयं ही भगवान की प्रार्थना में ऊपर को उठकर जुड़ गए । एक पल पश्चात्‌ वह बुदबुदा उठाए मैंने तम्हें बहुत कट दिए हैं पूजा! मेरा अपराध क्षम्य नहीं है परन्तु मैं विवश था । इसका प्रायश्चित मैं अपना जीवन देकर कर रहा हूँ । हे भगवान! उसे उसकी खुशियाँ लौटा देना...उसने कोई अपराध नहीं किया है । प्रभुए अब मैं तुम्हारी शरण में आ रहा हूँ । बुदबुदाते होंठ भी बन्द हो गए ।

बर्फ में धँसता उसका शरीर निश्चेट होता जा रहा था । उसकी आँखें मूँद रही थीं और वह निढ़ाल—सा हो गया था ।

हवा के साथ आ—आकर बर्फ के कण तेजी से उसपर जमने लगे ।

'''

भाग — छब्बीस

आह...आह... देव बाबू की चेतना वापस लौट रही थी । धीरे—धीरे उसने अपनी आँखें खोलीं । वह एक तख्त पर लेटा हुआ था और उसका शरीर गर्म कम्बलों में लिपटा हुआ था ।

देव बाबू ने उठने का प्रयास किया मगर शरीर की क्षीणता के कारण वह उठ नहीं पाया ।

लेटे रहो वत्सए उठो नहीं । एक वृद्ध तपस्वी ने उसके माथे पर हाथ रखकर कहा ।

देव बाबू प्रश्नभरी —टि से अपने चारों ओर देख रहा था ।

मैं कहाँ हूँ बाबाघ्

तुम मेरे आश्रम में हो वत्स । मेरे शियों ने तुम्हें बर्फ में धँसे हुए देखा तो निकालकर यहाँ ले आए । तुम पहाड़ी तो नहीं हो वत्सए फिर यहाँ पहाड़ पर क्या कर रहे थेघ्

मैं मरने आया था बाबा ।

आत्महत्या पाप है वत्स ।

जानता हूँ बाबाए मगर मेरे पास इसके सिवाय कोई उपाय न था ।

मौत किसी समस्या का समाधान नहीं होती । तम्हें क्या क्लेश है वत्सघ्

बाबा मैं अपंग हूँए अपुरुष हूँ ।

शादी हो गयी हैघ्

हाँ ।

सब कुछ जानते हुए भी शादी क्यों कीघ्

शादी के बाद एक दुर्घटना में यह सब हो गया बाबा ।

तुमने अपनी पत्नी को बतायाघ्

नहींए वह इसे कैसे सहन करती!

नारी बहुत महान्‌ होती है वत्स! शायद वह तुम्हें स्वीकार कर लेती । तुम्हें सब कुछ अपनी पत्नी से कह देना चाहिए था ।

मैं ऐसा नहीं कर सका बाबा ।

अब लौटकर उसे सब कुछ बता दो ।

मैं वापस नहीं जा सकता बाबा ।

क्यों...घ्

मेरा एक मित्र मेरी पत्नी को बहुत अधिक चाहता है । मुझे विश्वास है कि वह उसे स्वीकार कर लेगा । मैं अपने शेष जीवन को प्रभु के चरणों में बिताना चाहता हूँ बाबा ।

बहुत कठिन रास्ता अपना रहे हो वत्स ।

मुझे आश्रय दे दो बाबा । आपकी दया से सब कुछ सरल हो जाएगा । देव बाबू ने लेटे—लेटे ही हाथ जोड़ दिए ।

तथास्तु! हाथ उठाकर उस वृद्ध तपस्वी ने उसे आशीर्वाद दे दिया ।

तभी एक शिय एक लोटा गर्म दूध लेकर वहाँ उपस्थित हुआ ।

दुग्ध पी लो वत्स! शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे ।

देव बाबू उठने में स्वयं को असमर्थ अनुभव कर रहा था । शिय ने दूध का लोटा गुरुदेव को देकरए आगे बढ़़ उसे सहारा देकर उठाया । देव बाबू ने धीरे—धीरे वह दूध पी लिया । गर्म—गर्म दूध शरीर में पहुँचने से उसे लगाए जैसे उसके शरीर में जान वापस आती जा रही है । उसने अपने हाथ—पाँवों को हिलाकर देखा । सभी अंग ठीक तरह से कार्य कर रहे थे । देव बाबू ने सन्तोष की साँस ली ।

तुम थके हुए हो और काफी क्षीण भी होए आराम करो । सन्ध्या का समय हो गया हैए मैं पूजा करने को जाता हूँ । कहकर वृद्ध तपस्वी कुटीया से बाहर निकल गया ।

देव बाबू उत्सुकता से अपने चारों ओर देख रहा था । यह एक लकड़ी की बनी हुई कुटीया थीए जिसमें वह लेटा हुआ था । वह वहाँ पर अधिक देर तक लेटा न रह सका और शरीर की क्षीणता के उपरान्त भी कम्बल लपेटे हुए किसी तरह उठकर चलता हुआ बाहर आ गया ।

कुटीया के द्वार पर खड़े होकर उसने देखाए चारों ओर गहन मौन छाया हुआ था । वहाँ पर स्वर्ग जैसी शान्ति थी । फलों से लदे घने वृक्षए उनपर लिपटी हुई सुन्दर लताएँ । दूर गिरते हुए एक झरने की हल्की—सी ध्वनी सुनाई दे रही थी । इधर—उधर दौड़ते नन्हे हरिण—शावक । सब कुछ बहुत ही अलौकिक लग रहा था । वह बहुत ही सुन्दर घाटी थीए देव बाबू ने देखाए आसपास और भी कई कुटीयाँ बनी हुई थीं ।

सन्ध्या का आहार आपके स्थान पर रख दिया गया हैए ले लो । गुरुदेव ने आपको आराम करने के लिए कहा है । देव बाबू के समीप खड़ा एक शिय उसीसे कह रहा था । वह दरवाजे के समीप ही खड़ा था परन्तु उसे इसका ध्यान भी न था कि यह शिय कब उसकी कुटीया में आहार रख आया था ।

धन्यवाद! देव बाबू ने कहा मगर शिय बिना कुछ सुने ही लौट गया था ।

कुटीया के अन्दर आकर देव बाबू ने देखा—केले के पते पर कुछ फल रखे हुए थे । समीप ही लोटे में दूध रखा था । उसकी इच्छा अन्न खाने की हो रही थी परन्तु वहाँ तो सिर्फ फल और दूध ही उपलब्ध थे । भूख अधिक थी इसीलिए उसने बिना अधिक सोचे फल खाने प्रारम्भ कर दिए । इनमें से कई फलों का स्वाद तो उसने पहली बार ही चखा था । बहुत ही स्वादिट फल थे । फल खाकर उसने दूध पिया और आराम करने के लिए तख्त पर लेट गया ।

तख्त पर लेटते ही उसे विचारों ने घेर लिया और विचारों में घिरे उसे कब नींद आयीए वह जान न सका ।

'''

भाग — सताईस

पूजा को तपस्या करते एक वर्ष बीत गया मगर देव बाबू का कोई समाचार उसे न मिला । इसपर भी उसका विश्वास था कि उसका पति एक दिन अवश्य ही वापस लौट आएगा । उसकी तपस्या निरर्थक नहीं होगीए यही सोचकर वह पति की प्रतीक्षा कर रही थी ।

देव बाबू के चले जाने के पश्चात्‌ पूजा अन्धविश्वासों में घिर गयी थी । पण्डितों के बहकावे में आकर वह दान—पुण्य और यज्ञ आदि भी करती थी । सप्ताह के तीन दिन तो वह तरह—तरह के उपवासों में ही व्यतीत कर देती थी ।

वि।ालय के प्रत्येक भ्रमण—कार्यक्रम में वह बच्चों के साथ अवश्य जाती । हर स्थान पर उसकी —टि देव बाबू को खोजती रहती । वह विरहिणी—सी एक स्थान से दुसरे स्थान पर उनकी खोज में भटकना चाहती थी । कोई साधू या तपस्वी उसे मिलता तो वह उससे देव बाबू के विषय में पूछती परन्तु प्रत्येक दिशा में उसे अब तक निराशा ही मिली थी ।

बहुत दिनों के बाद आज रविवार का दिन उसने घर रहकर व्यतीत किया था । पंकज भी आज स्टूडियो नहीं गया था । करुणा बाजार गयी हुई थी । पूजा नीचे के कमरे में पलंग पर अधलेटी—सी कोई पत्रिका देख रही थी तभी सामने से उसे पंकज कहीं जाते हुए दिखाई दिया ।

कहाँ जा रहे हो पंकजघ् पत्रिका को एक ओर रखकर उसने उसे पुकार लिया ।

बाजार जा रहा थाए कोई काम था क्याघ् पंकज ने रुकते हुए पूछा ।

उनके विषय में कुछ पता नहीं चलाघ्

नहीं! सुनकर पंकज उसके पास आ गया ।

तुम्हारा क्या विचार है पंकजघ्

पूजाए परछाई के पीछे इस तरह पागल होकर नहीं भागना चाहिए ।

अब तो यह परछाई ही मेरे जीवन का आलम्बन है ।

पागल मत बनो पूजा । मुझसे तुम्हारा दुःख देखा नहीं जाता । मुझे कुछ करने दो पूजा ।

क्या करना चाहते होघ्

मैं...मैं... आवेश में पंकज ने उसकी दोनों बाँहों को पकड़ लिया और उसकी आँखों में झाँकतें हुए बोलाए मैं देव बाबू का सपना पूरा करना चाहता हूँ पूजा ।

वह सपना कभी सच नहीं होगा पंकज ।

पर क्योंय क्यों तुम स्वयं को मिटाना चाहती हो और क्यों तुमने मेरे जीवन को बाँध रहा हैघ् आवेश में पंकज ने कहा ।

तुम मेरी ओर से स्वतन्त्र हो पंकज । पूजा ने शान्त स्वर में कहा और स्वयं को छुड़ाकर पलंग पर बैठ गयी ।

जानती हो पूजाए लोग हमारे बारे में क्या बोलते हैंघ्

क्या सोचते हैंघ्

हम दोनों ने मिलकर देव बाबू को घर से निकल दिया है । पंकज एक ही साँस में कह गया ।

लोगों को सोचने दो पंकज । तुम तो पुरुष होए इसकी चिन्ता क्यों करते होघ् मैं एक स्त्री होकर भी इस तरह के आक्षेपों की परवाह नहीं करती । मुझपर भी तो ये आक्षेप किए जाते हैं पंकज । मेरे दिल में कोई बुराई नहीं है तो फिर मैं इस सबकी चिन्ता क्यों करूँघ्

लेकिन मुझसे यह अपमान सहन नहीं होता ।

नहीं होता तो तुम यहाँ से जाने के लिए स्वतन्त्र हो । उन्होंने तुम्हें यहाँ छोड़ा था इसलिए मैं चाहती तो नहीं कि तुम यहाँ से जाओ मगर यदि तुम इसे बन्धन महसूस करते हो तो मैं तुम्हें बाँधकर नहीं रखना चाहती ।

मेरे यहाँ रहने में तुम्हें कोई आपति नहीं हैघ् मैं भी एक पुरुष हूँए क्या तुम्हें मुझसे भय अनुभव नहीं होताघ् पंकज ने उसपर प्रश्न करते हुए कहा ।

नहीं पंकज । मुझसे स्वयं पर विश्वास है । तुम्हारे यहाँ रहने से तो मैं स्वयं को सुरक्षित अनुभव करती हूँ । एक —ढ़़ता के साथ पूजा ने कहा । पंकज भी उसके इस विश्वास से प्रभावित हुए बिना न रह सका ।

इतना विश्वास! मुझे क्षमा कर देना पूजा । तुम देवी हो...तुम्हारा चरित्र इतिहास में अमर हो जाएगा । मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ पूजा । कहते हुए पंकज सचमुच ही पूजा के समक्ष झुक गया ।

मुझमें ऐसी कोई महानता नहीं है पंकजए मैं तो अपने पत्नी—धर्म का पालन मात्र कर रही हूँ । देखती हूँए मेरी तपस्या में कितनी शक्ति है । मुसकराते हुए शान्त स्वर में पूजा ने कहा ।

भगवान में भी इतनी शक्ति नहीं होगी जो तुम्हारी इच्छा का विरोध कर सके । देव बाबू अवश्य लौटेंगे । कहते हुए पंकज दरवाजे से बाहर निकल गया ।

अब पूजा का आत्मविश्वास धीरे—धीरे जाग्रत होने लगा था । किसी से बात करने में अब वह संकोच अनुभव नहीं करती थी । शारीरिक रूप से वह अवश्य ही क्षीण हो गयी थी मगर उसकी इच्छाशक्ति काफी —ढ़़ हो गयी थी । उसके मुख पर चमक और आँखों में आत्मविश्वास झलकने लगा था ।

अपने पति से अपमानित होकर उसके हृदय में उनके अनिट के विचार पहले कई बार उठते थे परन्तु अब उनके चले जाने के बाद वह स्वयं को और भी अधिक दुखी अनुभव करती थी । पति कैसा भी होए नारी के लिए सुरक्षा होता है । उसके अभाव में पूजा ने स्वयं को कई बार बहुत ही कमजोर अनुभव किया था ।

वहाँ बैठे—बैठे उसका मन ऊब गया था । उठकर वह घर की सफाई में लग गयी । अपना कमरा साफ करके वह ऊपर पंकज का कमरा ठीक करने चली गयी ।

'''

भाग — अठाईस

देव बाबू को उस आश्रम में रहते हुए तीन वर्ष व्यतीत हो गए थे । शारीरिक रूप से उसमें बहुत ही परिवर्तन हो गया था । स्वच्छ वातावरण और प्रकृति की गोद में रहकर उसका शरीर पुट हो गया था । बढ़़ी हुई दाढ़़ी और मूँछेए सिर पर कन्धों तक लटकते बाल और गले में पड़ा जनेऊ । वस्त्र के नाम पर एक धोती और पाँवों में खडाऊँ । सब कुछ तपस्वियों जैसा हो गया था परन्तु उसका मन अभी भी अशान्त था । कभी—कभी पूजा और अपने शहर की याद आकर उसके मन को व्याकुल कर जाती थी ।

सन्ध्या के समय सभी शिय गुरुदेव के समीप बैठते और गुरुदेव उन्हें ज्ञान की बातें सुनाते । इसी समय वे अपने शियों की शंकाओं का समाधान भी करते थे ।

प्रतिदिन की भाँती आज भी गुरुदेव अपना प्रवचन समाप्त करके शियों से वार्ता कर रहे थे । देव बाबू भी उनके चरणों के समीप बैठा मन की बात उनसे कहने का प्रयास कर रहा था ।

गुरुदेवए अभी तक मेरे मन का सन्ताप दूर नहीं हुआ । मैं अभी भी सांसारिक विषयों में उलझा रहता हूँ । मैं क्या करूँ गुरुदेवघ्

चिन्ता न करो वत्स । तुम श्रेठ पथ पर अग्रसर हो । मन का सन्ताप शनैः—शनैः दूर होता है । इसके लिए तपस्या करनी पड़ती है ।

मैं तपस्या करने को तैयार हूँ गुरुदेव । आप मुझे इसके लिए आदेश दें ।

अभी उसका समय नहीं आया है वत्स । पहले तुम पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाओ । गुरुदेव ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा ।

मैं तो स्वस्थ हूँ गुरुदेव ।

लेकिन पूर्ण रूप से नहीं । अभी तुम पूर्ण पुरुष नहीं हो ।

क्या यह कभी सम्भव हो सकेगा गुरुदेवघ् क्या मैं पूर्ण पुरुष बन जाऊँगाघ् देव बाबू ने उत्सुकता से कहा । उसकी आँखें आशा से चमक उठीं ।

अवश्य । बस एक वर्ष और उपचार करना होगा ।

उपचार कैसा गुरुदेवघ्

तुन नहीं जानते वत्स! तुम्हारा उपचार चल रहा है । गुरुदेव ने मुसकराते हुए कहा ।

तभी गुरुदेव के संकेत पर अन्य शियों ने कीर्तन प्रारम्भ कर दिया । देव बाबू अनेक प्रश्न पूछना चाहता था । मगर अपनी उत्सुकता को गुरुदेव पर प्रकट नहीं कर सका ।

रात्रि को सभी शिय अपनी कुटीयों में विश्राम कर रहे थे । देव बाबू का ह्रदय अशान्त था ।

वह पूर्ण पुरुष बन जाएगा । वह लौटकर पूजा को अपना लेगा । उसका आँचल खुशियों से भर देगा । वह सोचे जा रहा थाए मगर पूजा ने तो अब तक पंकज को अपना लिया होगा । वह स्वयं ही तो उस दोनों को इसकी स्वीकृति देकर आया था । नहींए नहींए पूजा अब तक उसकी प्रतीक्षा कैसे कर सकती हैघ् उसे तो अब सारा जीवन इसी आश्रम में व्यतीत करना होगा । प्रभु की कैसी विडम्बना है । जब मैंने जीवन के लिए संघर्ष किया तो जी न सका । और जब मरना चाहा तो सब कुछ मिल रहा है । विचारों में घिरा उसका मन पीड़ा से भर गया ।

वत्सए सो जाओ । अधिक सोचने से मन में सन्ताप उत्पन्न होता है । कुटीया के बाहर से उसे गुरुदेव का आदेश सुनाई दिया ।

गुरुदेव तो अन्तर्यामी हैं । वह सोच उठाए वे तो मेरे मन की सभी बातें जानते हैं । क्या उन्हें यह पता नहीं होगा कि मेरा मन अब भी अपनी पूजा के लिए भटकता हैघ् उन्हें अवश्य ही सब कुछ पता होगा । वे मेरी इस समस्या का समाधान सुझाएँगे ।

मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया वत्स! गुरुदेव का स्वर पुनः सुनाई दिया ।

क्षमा करें गुरुदेव ।

अब विश्राम करो वत्स! प्रातः उठकर जंगल से हवन के लिए लकड़ियाँ भी लानी हैं ।

जैसी आज्ञा गुरुदेव! कहकर देव बाबू स्वयं को विचारों से मुक्त कर सोने का प्रयास करने लगा । रात्रि धीरे—धीरे भागती जा रही थी । किसी न किसी तरह देव बाबू की आँखों में भी नींद घिर ही आयी ।

'''

भाग — उनतीस

प्रातः काल पूजा रसोई में खाना बना रही थी । करुणा भी वहीँ उसका काम में हाथ बंटा रही थी । तभी उन्हें गली में से किसी की जोर—जोर से झगड़ने की आवाज सुनाई दी ।

पूजा उत्सुकता के कारण आता—सने हाथों के साथ ही देखने के लिए कमरे के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी । पंकज सामने गली में किसी से झगड़ रहा था । उसके चारों ओर भीड़ एकत्रित हो गयी थी और वह भीड़ में धिरा एक व्यक्ति को पकड़े हुए निर्दयता से पीट रहा था ।

पूजा दौड़कर वहाँ पहुँची । भीड़ में किसी का भी साहस न था जो कि पंकज से उसे व्यक्ति को छुड़ा दे । पूजा ने भीड़ में घुसकर बड़ी कठिनाई से पंकज के हाथों उसे आदमी को मुक्त किया । ऐसा प्रतीत होता था जैसे पंकज के सिर पर खून सवार हो और यदि पूजा वहाँ न आती तो शायद वह उस व्यक्ति को जान से ही मार देता ।

पूजा उसे पकड़कर कमरे में ले आयी ।

क्यों लड़ रहे थे उससेघ् क्रोध से पूजा ने कहा ।

मैं तुम्हारे लिए किसी के मुँह से अपमान का एक शब्द भी नहीं सुन सकता ।

ओह! तो यह बात थी । लेकिन क्या इससे उसकी आवाज रुक जाएगीघ् किस—किसको मारोगे तुम! पूजा की आवाज में अनजाने ही व्यंग्य का पुट आ गया ।

जो भी तुम्हारे बारे में अपनी गन्दी जुबान खोलेगाए मैं उसे जान से मार डालूँगा । क्रोध से चिल्लाकर पंकज ने कहा ।

इससे कुछ नहीं होगा पंकजए सिर्फ तुम अपराधी बन जाओगे । इस समाज को तुम नहीं समझते...इसमें रहने वालों से तुम नहीं टकरा सकते । हाँए इस समाज का मुँह तुम्हें अवश्य ही बन्द करना होगा । पूजा ने शान्त स्वर में कहा ।

कैसे...घ्

तुम अपनी शादी कर लो ।

मेरी शादी । हँसकर पंकज ने कहा ।

हाँए तुम्हारी शादी । या तो तुम किसी लड़की को चुन लो अन्यथा मैं तलाश करती हूँ ।

तो तुम ही करो यह काम । कहकर पंकज ऊपर अपने कमरे में चला गया ।

पूजा वापस लौटकर रसोईघर में आ गयी । करुणा वहाँ बैठी खाना बना रही थी ।

पूजा ने करुणा के पास आकर कहाए देखोए पंकज ने आज सुबह से नाश्ता भी नहीं किया है । तुम जाकर उसे गर्म—गर्म खाना दे आओ । यहाँ का काम मैं सम्भाल लूँगी ।

मैं भाभीघ् आश्चर्य से करुणा ने पूछा ।

हाँ तुम ।

मगर...।

चली जाओ करुणाए संकोच न करो । पंकज अच्छा लड़का है । पूजा ने कहा और खाना थाली में लगाकर करुणा को दे दिया ।

करुणा जब खाने की थाली लेकर ऊपर पहुँची तो पंकज वहाँ बैठा अपने चित्रों की फाइल देख रहा था ।

करुणा जी आपघ् करुणा को देखकर पंकज ने आश्चर्य से कहा ।

आपके लिए खाना लायी हूँ ।

आपने कट क्यों कियाघ् मैं नीचे आकर भोजन कर लेता । उसने आगे बढ़़कर करुणा के हाथों से खाने की थाली ले ली ।

इसमें कट की क्या बात है घ् पूजा भाभी ने कहा तो मैं खाना ले आयी ।

आपको पूजा ने भेजा हैघ्

हाँ...।

ओह । पंकज अभी थोड़ी देर पहले ही पूजा से हुई बात को याद करके कह उठा ।

क्या बात हैघ्

कुछ नहींए यूँ ही । आप बैठिए ।

नहींए चलती हूँ ।

मेरे खाना खाने तक रुकिए अन्यथा मुझे पानी पीने नीचे जाना होगा । हँसते हुए पंकज ने कहा ।

करुणा को अपनी भूल का पता चला । वह खाने के साथ पानी लाना भूल गयी थी ।

मैं पानी लेकर आती हूँ । कहते हुए वह नीचे चली गयी । जब वह वापस लौटी तो उसके हाथ में पानी का जग और दुसरे में गिलास था ।

पंकज ने खाना समाप्त किया तो करुणा ने गिलास में पानी भरकर उसकी ओर बढ़़ा दिया ।

करुणा जीए मैं आपका एक चित्र बनाना चाहता हूँ ।

आप मेरा चित्र बनाएँगेए मैं इतनी सुन्दर तो नहीं हूँ ।

आपको शायद अपनी सुन्दरता का ज्ञान नहीं है ।

सुन्दर चाँद में कलंक भी होता है ।

तो भी लोग उसे सौदर्य का प्रतिक मानकर उसकी पूजा करते हैं ।

आपके लिए कुछ और लाऊँघ् कहकर करुणा ने बात को टाल देना चाहा । वैसे उसके मस्तिक में भी पूजा के शब्द उभर रहे थेए जाओ संकोच न करोए पंकज अच्छा लड़का है ।

आपने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया ।

मेरा चित्र बनाकर आप क्या करेंगेघ् करुणा कह उठी ।

मैं प्रत्येक सुन्दर वस्तु को अपने चित्रों में उतार लेना चाहता हूँ ।

करुणा ने कुछ उत्तर नहीं दिया । खाने के बर्तन उठाकर वह नीचे जाने को मुड़ी । पंकज ने इसे उसकी स्वीकृति समझा और उसे जाते देख बोलाए मैं दोपहर को चित्र बनाने के लिए आपकी प्रतीक्षा करूँगा ।

आज स्टूडियो नहीं जाओगेघ्

नहींए आज घर पर ही काम करूँगा । वैसे यह ठीक भी नहीं होगा कि आप स्टूडियो आएँ ।

करुणा बिना कुछ कहे वहाँ से चल दी । उसकी चुप्पी ने पंकज को आश्वस्त कर दिया था और वह चित्र बनाने की तैयारी में लग गया ।

'''

भाग — तीस

गुरुदेवए मैं स्वस्थ हो गया! मैं पूर्ण हो गया गुरुदेव! देव बाबू आकर गुरुदेव के चरणों में लोट गया । आज वह बहुत खुश था । खुशी के चिह्न उसके मुख पर साफ दिखाई दे रहे थे ।

गुरुदेव ने उसे अपने चरणों से उठाकर वक्ष से लगा लिया । स्नेह से उसके सिर पर हाथ फिरते हुए वे बोलेए तुम्हारी साधना सफल हुई वत्स । भगवान की तुम पर कृपा हो गयी है । जाओए पूजा की तैयारी करो...समय हो रहा है ।

जो आज्ञा गुरुदेव । कहकर वह वहाँ से पूजा के स्थान पर लौट आया ।

आज वह काफी प्रयास करने पर भी पूजा में एकाग्रचित नहीं हो पा रहा था । बार—बार उसका मन भटक रहा था । उसे रह—रहकर पूजा और घर की याद आ रही थी । एक तरफ वह खुश था तो दूसरी और उसका मन हाहाकार कर रहा था ।

सूर्य की किरणों घाटी मैं फैलने लगी थीं । देव बाबू अपनी कुटीया के एक कोने में चिन्तामग्न बैठा था ।

चार वर्ष उपरान्त पूजा की याद ने उसे विचलित कर दिया था । उसका मन चाह रहा था कि एक बार वह जाकर पूजा को मिल ले परन्तु तभी वह सोच उठता कि क्या चार वर्ष तक पूजा उसकी प्रतीक्षा करती रही होगीघ् उसे तो यह भी पता नहीं है कि मैं जीवित हूँ या नहीं । उसने पंकज के साथ अपनी गृहस्थी बसा ली होगी । अब तो उसके पास एक—दो बच्चे भी होंगे । अब तो वह उसे भुलाकर प्रसन्नता से पंकज के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही होगी । अब उसका वहाँ जाना उसके हरे—भरे जीवन को नट करने का कारण बन जाएगा । हाँ..हाँ...अब तो उसका संसार ही बदल गया होगा । उस बदले हुए संसार में उसके लिए कोई स्थान नहीं होगा । नहीं...वह वहाँ नहीं जाएगा...कभी नहीं । उसे तो अब इसी आश्रम में अपना जीवन व्यतीत करना है । प्रभु की ऐसी ही इच्छा है ।

जाने का समय निकट आ गया वत्स! गुरुदेव ने द्वार से प्रवेश करते हुए कहा ।

गुरुदेवए आप तो अन्तर्यामी हैं । मेरे ह्रदय की बात आप भली तरह जानते हैं । अब वहाँ वापस लौटकर मुझे क्या मिलेगा! देव बाबू ने आगे बढ़़कर गुरुदेव के चरण पकड़ लिए ।

तुम्हें अपने घर लौटकर जाना है वत्स! वहाँ तुम्हें एक नयी दिशा मिलेगी ।

लेकिन गुरुदेवए मेरी पत्नी तो...घ्

इस संसार में बहुत—से दुखी व्यक्ति हैं । तुम संसार में लौटकर उनकी सेवा करो वत्स ।

क्या मैं ऐसा कर सकूँगा गुरुदेवघ्

तर्क मत करो वत्स । आज्ञा का पालन करो । इच्छा —ढ़़ हो तो मानव क्या नहीं कर सकता!

मुझे अपने से अलग न करें गुरुदेव ।

मोह में न पड़ो । जो ज्ञान तुमने प्राप्त किया है उसे एक मशाल बनाकर सारे संसार में उसका प्रकाश फैला दो । मौसम स्वच्छ है वत्सए तुम अभी यहाँ से प्रस्थान कर जाओ । कहते हुए गुरुदेव वहाँ से चले गए ।

देव बाबू ने अपने कमण्डल और लकुटी सम्भालकर अन्य शियों से विदा ली और गुरुदेव के पास आ गया ।

गुरुदेवए मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।

कल्याण हो! हाथ उठाकर गुरुदेव ने आशीष दिया और वे भी देव बाबू को छोड़ने कुछ दूर तक उसके साथ चल दिए ।

देव बाबू चार वर्षो में इन पहाड़ी रास्तों से भली तरह परिचित हो चुका था । एक ढ़लान पर आकर गुरुदेव रुक गए ।

जाओ वत्सए प्रभु तुम्हारा कल्याण करेंगे! कहकर गुरुदेव पीछे मुड़कर चल दिए और देव बाबू कुछ देर को वहाँ खड़ा उन्हें जाते देखता रहा । जब वे आँखों से ओझल हो गए तो वह भी अपनी राह पर बढ़़ चला ।

एक हाथ में कमण्डल और दुसरे में लकुटी लिए देव बाबू के पाँव पहाड़ से नीचे उतरने लगे । राह में मिलने वाले पहाड़ी झुक—झुककर उसे प्रणाम करते तो उनका हाथ स्वयमेव ही आशीष देने की मुद्रा में ऊपर उठ जाता ।

'''

भाग — इकत्तीस

करुणा के चित्र को अपने सामने रखकर पंकज बड़े ध्यान से उसे देख रहा था । जब से उसने यह चित्र पूरा किया थाए उसे यह विश्वास हो गया था कि करुणा भी उसे उसीकी भाँती खामोश प्यार करती है । वह उसका पहले से अधिक ध्यान रखने लगी थी । एक तरह से उसने ही तो उसकी देखभाल का उत्तरदायित्व पूरी तरह से अपने ऊपर ले लिया था ।

करुणा उसके पीछे खड़ी काफी देर से उसे देखे जा रही थी ।

पंकजए आप प्रतिदिन इस चित्र को इतने ध्यान से क्यों देखते होघ् करुणा की आवाज ने पंकज को चौंका दिया ।

इस चित्र की सुन्दरता मुझे आकर्षित करती है करुणा ।

आपने इस चित्र को सचमुच ही बहुत सुन्दर बना दिया है । इतनी सुन्दर तो मैं नहीं हूँ ।

आप अपनी सुन्दरता को स्वयं कैसे देख सकती हैंघ् मेरी आँखों ने उसे देखा तो चित्र में ढ़ाल दिया । यह चित्र झूठा नहीं है करुणा ।

पंकज! करुणा भावावेश में कह उठी ।

हाँ करुणा । कुछ ठहरकर पंकज ने कहना प्रारम्भ कियाए बहुत दिनों से एक बात तुम्हें कहता चाहता हूँ ।

क्याघ्

आप स्वयं समझती हैं करुणा जी ।

मेरे कलंक को जानकर भी आप ऐसा सोचते हैंघ्

वह कलंक नहींए तुमपर अत्याचार था । आवेश में पंकज ने कहा ।

यह कौन देखता हैघ्

यह मैं देख सकता हूँ करुणा । हाँ करुणाए बहुत सोच—समझकर ही मैं यह सब कुछ कह रहा हूँ । मैं तुम्हें पवित्र मानता हूँ । आपकी दीवार ढ़ह गयी ।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा हैं पंकज । करुणा की आवाज जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही थी ।

एक झटके से पंकज उठ खड़ा हुआ और उसने करुणा को अपनी बाँहों का सहारा देकर कुर्सी पर बैठा दिया ।

आप बहुत महान्‌ हैं पंकज बाबू! करुणा ने उसके पाँव पकड़ लिए ।

मैं भी एक मनुय हूँ करुणा । तुम्हारे प्यार ने शायद मुझे महान्‌ बना दिया हो । पंकज ने उसके हाथ पकड़कर चूम लिए ।

किसी के आने की आहट से दोनों ख्यालों की दुनिया से बाहर आए । पूजा उसे दोनों के सामने खड़ी थी । दोनों ही उससे —टि नहीं मिला पा रहे थे ।

पंकज मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देख ली है ।

लेकिन...! संकोचवश वह कुछ न कह सका ।

मैं अब शीघ्र ही तुम्हारी शादी कर देना चाहती हूँ । कुछ कठोरता से पूजा ने कहा ।

करुणा यह सुनकर वहाँ न ठहर सकी ।

मैं शादी नहीं कर सकता पूजा ।

क्योंए क्या कोई लड़की तुमने पसन्द कर ली हैघ्

हाँ! मैं करुणा...

मैं जानती हूँ पंकज! मैंने भी उसे ही तुम्हारे लिए चुना है ।

पूजा...!

लेकिन एक बात सुन लो पंकज । करुणा के विषय में तुमसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है । उसने जीवन में बहुत कट उठाए हैं । कहीं ऐसा न हो...।

नहीं पूजाए मुझपर विश्वास करो । मैं करुणा को पवित्र मानता हूँ । जो कुछ भी हुआ उसमें उसका कहीं भी कुछ दोष नहीं है ।

तो ठीक हैए शादी कोर्ट में होगी । पूजा ने कहा ।

आप भी कल हमारे साथ कोर्ट चलना । पंकज उत्सुकता में कह गया ।

इतनी जल्दी है शादी की! पूजा ने हँसकर कहा तो पंकज झेंप गया ।

ठीक हैए हम तीनों कल ही कोर्ट में चलेंगे । कहकर पूजा वहाँ से चल दी ।

बाहर निकली तो उसकी —टि एक ओर खड़ी करुणा पर गयी । शर्म से उसकी —टि झुकी हुई थी । शायद वह वहाँ छुपकर उनकी बातें सुन रही थी । पूजा हँसकर सीढ़़ियों की ओर बढ़़ गयी ।

'''

भाग — बत्तीस

गुरुदेव ने देव बाबू को संसार में लौटकर ज्ञान का प्रकाश फैलाने का आदेश दिया था मगर वह स्वयं को इन चार वाषोर्ं में भी संसार के बन्धनों से मुक्त नहीं कर पाया था । उसका मन अब भी अपने उस संसार में भटक रहा था जहाँ पूजा थीए उसका घर था । आशा को अपने ह्रदय में छिपाए हुए वह शहर में ही लौटकर आ गया था ।

अपने शहर में लौटकर देव बाबू ने वि।ालय के साथ वाले मन्दिर में अपना डेरा जमाया । धीरे—धीरे शहर के अनेक व्यक्ति उसके दर्शनों को आने लगे । चार वर्ष पूर्व वह भी इन्हीं व्यक्तियों में से एक था । इनमें से कितनों को ही वह निकट से जानता था मगर उसे उस वेश में कोई भी नहीं पहचान सकता था । वह उन्हें उनके भूतकाल की बातें बताकर चकित कर सकता था । जब वह उन्हें उनके चार—पाँच वर्ष विगत की बातें बताता तो वे चकित होकर उसकी महत्ता को स्वीकार कर लेते ।

बात बढ़़ते—बढ़़ते सारे शहर में फैलने लगी । लोगों का एक भरी समूह नित्य ही उसके दर्शनों को आने लगा । लोगों के मुँह पर एक ही बात थी—हिमालय से एक तपस्वी आया हैए सब कुछ जानता है ।

भक्तों ने मिलकर तीन महीनों में ही मन्दिर की काया—पलट कर दी । टूटे—फूटे मन्दिर की कुछ मरम्मत भी कर दी गयी । बाहर से आने वाले अनेक यात्रियों के वहाँ ठहरनेए भोजन तथा वस्त्रों का प्रबन्ध कर दिया गया । बहुत—से शिय वहाँ एकत्रित होने लगे ।

जाने—अनजाने सभी आ रहे थे मगर वह अभी तक नहीं आयी थीए जिसकी देव बाबू को प्रतीक्षा थी । उसे उसका कोई समाचार भी नहीं मिला था । वह किसी से उसके विषय में पूछ भी तो नहीं सकता था । वह इस विषय को लेकर चिन्तित था कि पूजा को उसके आने की खबर कैसे हो । वह स्वयं को प्रकट भी तो नहीं कर सकता था ।

अधिक प्रचार के लिए देव बाबू ने तीन दिन का मौनव्रत रखा । इस तीन दिनों में वह किसी से भी नहीं बोला था । चुपचाप अपने आसन पर बैठा वह आने वाले प्रत्येक नर—नारी को गहन —टि से देख रहा था ।

आखिर तीसरे दिन उसकी इच्छा पूर्ण हुई । पूजा हाथ में फल—फुल लिए उसके समक्ष उपस्थित थी । पूजा ने आगे बढ़़कर उसके चरण छुए तो उसका मन काँप उठा । कम्पित ह्रदय वह उसे आशीर्वाद देना भी भूल गया । यह उसकी परीक्षा की घड़ी थी । उसका मन बोलने को व्याकुल हो रहा था मगर मौनव्रत का यह अन्तिम दिन था । शब्द ह्रदय से उठकर मुँह में घुल रहे थे लेकिन मौनव्रत की बंधी पट्टी उस शब्दों को बाहर नहीं आने दे रही थी । अब वह स्वयं पर पछता भी रहा था कि उसने यह मौनव्रत का आडम्बर क्यों किया ।

हाथ से उसने पूजा को वहाँ बैठने का संकेत किया । पूजा स्त्रियों के साथ जाकर बैठ गयी । देव बाबू की —टि अब हर तरफ से हटकर पूजा पर एकाग्र हो गयी थी । वह अपनी समस्या का कोई उपयुक्त समाधान सोच रहा था ।

एक सेवक को संकेत से समझाकर उसने लिखने का सामान मँगवाया । कागज के पुर्जे पर उसने लिखा

पूजाए

आप कल आकर अपनी समस्या का हल पूछें ।

लिखकर वह पर्ची उसने उसी सेवक के हाथ में दे दी । हाथ के संकेत से ही उसने उसे समझाया कि वह इस पर्ची को पूजा तक पहुँचा दे ।

आपमें से पूजा किसका नाम हैघ् सेवक ने स्त्रियों में आकर कहा ।

मेरा नाम पूजा है । पूजा ने खड़ी होकर कहा ।

लोए बाबा ने आशीर्वाद दिया है । सेवक ने वह पर्ची पूजा की ओर बढ़़ा दी ।

पूजा ने पर्ची को लेकर पढ़़ा । पास आकर उसने पुनः तपस्वी के चरणों को छुआ और धीरे—धीरे कदम बढ़़ाती हुई वहाँ से लौट गयी ।

तपस्वी देव बाबू दूर तक उसे जाते हुए देखता रहा । वह मौन बैठा उसके विषय में सोचता रहा ।

कमजोर तो वह अवश्य हो गयी है लेकीन उसकी आँखों में एक गहरा विश्वास आ गया है । पहले जैसी उदासी तो उसके मुख पर नहीं थी । तो क्या उसने पंकज से शादी कर ली हैघ् व्याकुल मन वह सोचता रहा ।

पूजा वहाँ से वापस लौटी तो उसे इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि बाबा को उसके नाम का पता कैसे चला । वह सोच रही थी कि सचमुच ही यह कोई महान्‌ तपस्वी है । शायद वह उसकी उलझन दूर कर सके । कल उन्होंने उसे बुलाया है...वह अवश्य जाएगी । सोचते—सोचते उसे तपस्वी के प्रति पूजा के मन में आस्था गहरी होती जा रही थी ।

विचारों में खोई वह अपने कमरे पर पहुँच गयी । वहाँ पहुँचकर उसने देखा...कमरा खुला था मगर करुणा वहाँ नहीं थी । वह तो उसे वहीँ छोड़कर गयी थीए फिर वह कमरा खुला छोड़कर कहाँ चली गयीघ् ऊपर होगीए यह सोचकर उसने आवाज दी ।

करुणा...।

आयी भाभी! आवाज के साथ ही भागती हुई करुणा नीचे आ गयी ।

कमरा खुला छोड़कर कहाँ चली गयी थीघ्

पंकज के सिर में दर्द थाए चाय लेकर गयी थी ।

सिर्फ चाय ही लेकर गयी थीघ् पूजा ने गहरी —टि से उसे देखते हुए कहा । करुणा ने —टि झुका ली ।

सिर दर्द की टीकिया भी तो लेती जाती । पूजा ने हँसते हुए कहा ।

ओह भाभी! मैं भूल गयी थी ।

तो अब दे आ । और हाँए सुनए स्कूल के पास वाले मन्दिर में एक बाबा आए हैं । उसके दर्शन कर आनाए मन को बहुत शान्ति मिलती है ।

आप वहीँ गयी थींघ्

हाँ! अब तू जल्दी से टीकिया ले जा और आते हुए चाय का खाली प्याला और प्लेट उठा लाना । पूजा ने कहा ।

सुनकर एक पल को करुणा चौंकी । वह तो ऊपर चाय लेकर ही नहीं गयी थी । फिर भी उसने अपने झूठ को छिपाने के लिए पूजा से सिरदर्द की एक टीकिया ले ली और ऊपर चल दी ।

वापस लौटी तो वह पूजा की —टि बचाकर रसोईघर में घुस गयी मगर पूजा ने उसे खाली हाथ लौटते देख लिया था । कुछ सोचकर उसके मुख पर मुसकान गहरी होती चली गयी ।

करुणा अन्दर रसोई में धुले हुए कप—प्लेटों को धोने का बहाना कर रही थी ।

'''

भाग — तेंतीस

देव बाबू सारी रात सो न सका । रात्रि—भर जागकर वह सुबह की प्रतीक्षा करता रहा । प्रातः चार बजे ही जप पूरा कर उसने अपने मौन समाप्त कर दिया ।

प्रातः सात बजे से ही भक्तों की भीड़ वहाँ आने लगी । देव बाबू रात—भर न सो सकने के कारण स्वयं में दुर्बलता—सी अनुभव कर रहा था । इस समय उसकी इच्छा भीड़ के समक्ष जाने की न थी । उसने एक सेवक को आदेश दिया कि बाहर उपस्थित भक्तों में से एक—एक को ही अन्दर आने दिया जाए ।

दोपहर ढ़लने को थी मगर पूजा अभी तक नहीं आयी थी । देव बाबू ने कल उसे जो पुर्जा लिखकर दिया था उसके कारण उसे विश्वास था कि वह आज अवश्य ही आएगी ।

जब पूजा वहाँ पहुँची तो शाम के चार बज रहे थे । ज्यों ही उसने कल वाली पर्ची सेवकों को दिखलायी तो उन्होंने उसे बिना नम्बर के विशेष तौर पर अन्दर भेज दिया ।

पूजा ने अन्दर प्रवेश करके तपस्वी के चरण छुए । कल की भाँती आज वह उसे देखकर अधिक विचलित नहीं हुआ ।

प्रसन्न रहो । आज हाथ उठाकर उसने उसे आशीर्वाद भी दिया । पूजा भी उसके सामने ही पृथ्वी पर बैठ गयी ।

मुझपर कृपा करो बाबा । पूजा ने कहा ।

तुम्हारी शादी हो गयीघ् देव बाबू उसके मुख की ओर देखने का साहस नहीं कर पा रहा था । उसे भय था कि कहीं वह उसे पहचान न ले । एक पति अपनी पत्नी की —टि से कठिनाई से ही छुप पाता है ।

हाँ बाबा । पूजा ने उत्तर दिया । सुनकर देव बाबू की आघात—सा लगा ।

देव बाबू तुम्हारा पति थाघ् उसने पूछा ।

हाँ बाबाए वे मुझे छोड़कर चले गए ।

हम जानते हैं मगर वह तो तुमसे घृणा करता था । इसका कारण जानती होघ्

नहीं जानती बाबा ।

शादी से पहले तो उसने तुम्हें बहुत प्यार किया थाघ्

हाँ बाबा! शादी के बाद भी वे मुझे बहुत चाहते थे मग...।

हम जानते हैंए लेकिन कुछ दिन बाद वह तुमसे घृणा करने लगा ।

ऐसा क्यों हुआ बाबाघ् पूजा ने तपस्वी के अन्तर्ज्‌ञान से प्रभावित होते हुए कहा ।

इसका कारण तो तुम जानती हो मगर शायद हमारी परीक्षा लेने के लिए तुम हमारे मुँह से ही सुनना चाहती हो । सुनोए वह एक दुर्घटना में अपुरुष हो गया था । वह अपूर्ण हो गया थाए फिर भी वह तुम्हें बहुत चाहता था । इसी कारण से वह अपनी अपूर्णता को तुम्हारे जीवन में नहीं लाना चाहता था । और इसीसे वह बात—बात पर तुम्हें अपमानित करता था कि तुम उससे घृणा करके मुक्ति पा लो । तुम शायद नहीं जानतीं कि ऐसा करते हुए उसका ह्रदय रोता था मगर फिर भी वह ऐसा करता था ।

बाबा...। पूजा आश्चर्य से सुन रही थी ।

हाँ...और सुनो । इसी मध्य तुम्हारे जीवन में एक और व्यक्ति ने प्रवेश किया । वह तुम्हें पहले से ही चाहता था । तुम्हारा पति तुम्हें उसके हाथों में सौंपकर अज्ञातवास को चला गया ।

उन्होंने बड़ा अनर्थ किया बाबा । वे नारी—स्वभाव को कभी नहीं समझ सके । यदि वे अपूर्ण हो गए थे तो इसमें उनका क्या दोष था । काशए वे जाने से पहले मुझे सब कुछ बता देते!

क्या तुम उसके साथ अपना जीवन काट देतीं!

नारी केवल वासना के लिए ही तो पति को ग्रहण नहीं करती बाबा । यह तो शादी का केवल एक भाग होता है ।

तुम्हारे पति ऐसा सम्भव नहीं मानते थे ।

उन्होंने यही तो भूल की बाबा । पूजा कह उठी ।

सन्ध्या का समय हो गया गुरुदेव! एक सेवक ने आकर सुचना दी । पूजा ने आगे बढ़़कर एक बार फिर उसके चरणों की धुल ली और वापस चल दी ।

देव बाबू का ह्रदय पूजा के समक्ष सब कुछ स्पट कर देना चाहता था मगर वह किसी तरह स्वयं पर नियन्त्रण रखए सेवकों के साथ सन्ध्या के लिए चल दिया ।

'''

भाग — चौंतीस

मन्दिर के सामनेए पेड़ों के झुरमुट से घिरा पक्का तालाब प्रातः की वेला में सोया पड़ा था । दूर क्षितिज में सूर्य उगने से पूर्व लाली उभर रही थी । पेड़ों पर पक्षी कलरव करने लगे थे । वहाँ फैले धुंधलके को चीरती उनकी आवाज जैसे संसार को जागने का सन्देश दे रही थी ।

तालाब के एक बुर्ज पर खड़ा तपस्वी उस प्रातः वेला में दातुन कर रहा था । पिछ्‌ले दो दिन उसने मानसिक अशान्ति में व्यतीत किए थे । पूजा उससे दो बार मिल चुकी थी । उसने उसे अभी तक पहचाना नहीं था । वह भी इस दो दिनों में यह नहीं जान सका था कि क्या पूजा ने पंकज को अपना लिया है । कल वह अपने भाग्य का निर्णय कर लेना चाहता था कि उसी मध्य सेवकों ने आकर सन्ध्या के समय की सूचना दे दी । वह शीघ्र ही स्थिति जानकार निर्णय कर लेना चाहता था । उसने सोच लिया था कि यदि पूजा ने पंकज को अपना लिया होगा तो वह बिना स्वयं को प्रकट किए यहाँ से चला जाएगा । उस स्थिति में उसने गुरुदेव की आज्ञा को स्वीकार करके समाज—सेवा में अपना शेष जीवन व्यतीत करने का निश्चय भी कर लिया था । एक आशा उसे अब भी थी कि शायद पूजा अब तक उसकी प्रतीक्षा कर रही हो । इसी आशा के सहारे तो वह वहाँ आया था । उसे विश्वास था कि यदि ऐसा हुआ तो पूजा उसे अवश्य अपना लेगी ।

दातुन को फेंककरए उसने एक सेवक को आवाज दे कुल्ला करने के लिए पानी मँगवाया । कुल्ला कराकर सेवक लौट गया । देव बाबू अभी बुर्ज पर टहल ही रहा था कि सामने पूर्व से उगते सूर्य के साथ उसे पूजा आती दिखाई दी ।

पूजा...इस समयघ् वह कुछ नहीं सोच सका और वहीं पेड़ के चारों ओर बने चबूतरे पर आकर बैठ गया ।

पूजा ने वहाँ पहुँचकर उसके चरणों में प्रणाम किया और उसे चबूतरे के नीचे पृथ्वी पर बैठ गयी ।

क्या बात है देवीए आज प्रातः की प्रथम वेला में ही...घ्

आप तो अन्तर्यामी हैं महाराज! पूजा बिच में की कह उठए मैं रातभर सो नहीं सकी । आप मेरे देवता के विषय में सब कुछ जानते हैं । मैं आपके पास उन्हीं के विषय में जानने आयी हूँ ।

लेकिन देवीए क्या तुमने अपने पति के कहने पर पंकज से विवाह नहीं कियाघ् तुम्हारा पति तो तुम्हें उसे सौंपकर गया थाघ् उत्सुकता से देव बाबू ने कहा ।

नहीं महाराज! मेरी —टि में वह अनुचित था ।

पंकज तो तुम्हें बहुत चाहता था ।

वह तो पागल है महाराज! उसका विवाह तो मैंने अपनी सहेली करुणा से करा दिया है ।

क्या सच कह रही हो देवीघ् देव बाबू विश्वास न कर सका ।

आप अविश्वास क्यों कर रहे हैं महाराज!

नहीं देवीए ऐसी बात नहीं । देव बाबू ने सम्भलते हुए कहाए तुम्हारा पति तुमसे घृणा करता था । क्या तुम्हारे मन में उसके प्रति प्रतिशोध की कोई भावना उत्पन्न नहीं हुईघ्

वे मेरे पति हैं महाराज! पत्नी अपने पति से प्रतिशोध की भावना कैसे रख सकती हैघ् शान्ति से पूजा ने कहा ।

तुम अपने पति से मिलना चाहती होघ्

क्या यह हो सकता है महाराजघ् आश्चर्य से पूजा ने पूछा ।

क्या तुम अब भी उसे उतना ही चाहती होघ्

मैं चार वर्ष से उनकी प्रतीक्षा कर रही हूँ ।

अब वह पूर्ण स्वस्थ हो गया है । वह पूर्ण हो गया है देवी ।

सच! लेकिन वे कहाँ हैं । क्या आप उन्हें जानते हैंघ्

तुम्हारे सामने । देव बाबू स्वयं को और अधिक न छिपा सका ।

कहाँ महाराजघ् पूजा ने आश्चर्य से कहा ।

अपने देव बाबू को नहीं पहचाना पूजा!

आप! पूजा अविश्वास से कह उठी ।

हाँ पूजा । देव बाबू ने अपने हाथ आगे बढ़़ाए ।

एक क्षण को पूजा कुछ न सोच सकी और फिर एकाएक पूछे मुड़कर तेज कदमों से भागने लगी ।

रुक जाओ पूजा...रुक जाओ । पूकारता हुआ कुछ कदम देव बाबू उसके पीछे भागा परन्तु पूजा वहाँ न रुकी । एक पल को भी उसने पीछे मुड़कर न देखा । थके पाँवों से वह वापस चल दिया ।

'''

भाग — पैंतीस

तेज कदमों से लगभग भागती हुई पूजा अपने घर की ओर बढ़़ी जा रही थी । उसकी साँस फूल रही थी । घर पहुँचते ही वह बिस्तर में गिरकर फूट—फूटकर रो उठी । इतना तो वह पहले कभी भी न रोई थी । उसका पति लौट आया था मगर वह पागलों की भाँती रोए जा रही थी ।

करुणा रसोई में चाय बना रही थी । जब वह प्रातः सोकर उठी तो पूजा को नीचे वाले कमरे में न पाकर अपनी दिनचर्या में लग गयी थी । पूजा के रोने की आवाज उसके कानों में पहुँची तो वह चकित—सी भागकर कमरे में आयी । दरवाजे पर खड़ी होकर उसने देखाए पूजा बिस्तर में औंधी पड़ी बच्चों की भाँती रोए जा रही थी ।

भाभीए क्या हो गयाघ् उसने पुकारा मगर पूजा ने उसको कोई उत्तर नहीं दिया । करुणा आगे बढ़़कर बिस्तर पर बैठ गयी और उसने पूजा का सिर अपनी गोद में रख लिया । उसके मुख को अपने हाथों में लेकर उसने कई बार पुकारा लेकिन पूजा उसके स्नेह का आलम्बन पाकर और अधिक जोर से रोने लगी ।

करुणा समझ गयी थी कि ऐसी स्थिति में पूजा कुछ भी नहीं बता पाएगी । वह उसके इस तरह फूट—फूटकर रोने से चकित थी । वह इसका कारण जानना चाहती थी मगर पूजा इस स्थिति में नहीं थी कि कुछ बोल सके । करुणा देर तक उसे अपनी बाँहों में लिए बैठी रही ।

पूजा के रोने की आवाज सुनकर पंकज भी नीचे उतर आया था । उसने भी पूजा से पूछना चाहा मगर सिसकियों के अलावा उसे भी कोई उत्तर न मिल सका । वह चुपचाप कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।

इतनी सुबह कहाँ गयी थीं भाभीघ् पूजा कुछ स्वस्थ हुई तो करुणा ने पूछा ।

मन्दिर में । पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी ।

किसी ने कुछ कह दियाघ्

मुँह से कुछ न कहकर पूजा ने इन्कार में गर्दन हिला दी ।

देव भईया की याद आ गयी क्या! बहुत ही प्यार से करुणा ने पूछा । पूजा की आँखों से टपके दो आँसुओं ने उसकी बात का समर्थन कर दिया ।

भाभीए सपनों के सहारे स्वयं को कब तक छ्‌लोगीघ्

यह सपना सच्चा है करुणा । पूजा कह उठी ।

क्याघ् चौंककर करुणा ने कहा ।

मैंने उन्हें अपनी आँखों से देखा है ।

कहाँ...घ्

मन्दिर में ।

तुम्हें भ्रम हुआ होगा भाभी ।

नहीं करुणा! तुम्हारे भईया लौट आए हैं । उन्हें पहचानने में मैंने देर अवश्य की लेकिन मैं धोखा नहीं खा सकती ।

क्या यह सच है पूजाघ् पंकज भी अविश्वास से कह उठा ।

तुम उन्हें घर क्यों नहीं लेकर आयीं भाभीघ् करुणा अब भी विश्वास नहीं कर पा रही थी ।

मैंने तो उन्हें घर से नहीं निकाला था करुणा । वे स्वेच्छा से घर छोड़कर गए थेए अब उन्हें स्वयं ही घर आना होगा ।

क्या कह रही हो भाभी! चार वर्ष बाद तुम्हें यह खुशी मिली है और तुम...।

हाँ करुणाए मैंने इन चार वाषोर्ं में बहुत कुछ जाना हैए बहुत कुछ समझा है । पूजा अब शान्त हो गयी थी । आँसू बह जाने से उसका मन हल्का हो गया था ।

करुणा प्रश्न—भरी —टि से पूजा की ओर देखे जा रही थी ।

स्त्री का भी अपना स्वाभिमान होता है करुणा । उसकी रक्षा उसे स्वयं करनी होती है । ऐसा किए बिना वह कभी अपने पति का पूर्ण प्यार नहीं पा सकती । पूजा ने प्रश्नभरी —टि के उत्तर में कहा ।

तो क्या तुम उनके पास नहीं जाओगीघ् पंकज ने कहा ।

मैं जिद नहीं करती पंकजए लेकिन जब तक मेरा स्वाभिमान इसके मध्य आता रहेगाए मैं कोशिश करके भी जा नहीं सकूँगी ।

मैं जाकर उन्हें बुला लाता हूँ । पंकज ने सुझाव रखा ।

इस कार्य में तुम स्वतन्त्र हो । मैं तुम्हें रोक नहीं सकती लेकिन मेरा एक आग्रह अवश्य है ।

क्याघ्

मेरी ओर से तुम एक शब्द भी उनसे न कहना ।

आओ करुणाए हम उनसे मिलकर आते हैं । पंकज ने कहा ।

चलो । करुणा उठकर उसके पीछे—पीछे चल दी । उस दोनों को वस्त्र बदलने की सुध भी नहीं थी । पंकज कुर्ते—पायजामे में और करुणा अधमैली धोती में ही मन्दिर की तरफ चल दी थी ।

देव बाबू अभी तक उस पेड़ के चारों ओर बने चबूतरे पर गहरी चिन्ता में डूबे बैठा था । दूर से आते पंकज और करुणा को पहचानकर भी वह कुछ नहीं बोला ।

पंकज ओर करुणा मन्दिर के चारों ओर देव बाबू को तलाश कर चुके थे ।

यहाँ तो देव बाबू दिखाई नहीं देते । पंकज ने कहा ।

हमने पूजा से उनके विषय में कुछ अधिक पूछा भी तो नहीं । हो सकता है कि वे किसी और वेश में हों और हम उन्हें पहचान न पाएँ । करुणा ने कहा ।

मगर वह तो हमें पहचान लेगा । पंकज ने कहा और दोनों एक बार फिर तालाब की ओर चल दिए ।

पंकज...। पेड़ के नीचे बैठे देव बाबू ने उन्हें पुकारा तो दोनों आश्चर्यचकित—से उसके समक्ष जाकर खड़े हो गए ।

यह करुणा है न! देव बाबू ने कहा ।

हाँ बाबाए लेकिन आप हम दोनों को कैसे जानते हैंघ् पंकज ने आश्चर्य से प्रश्न किया ।

मैं तुम्हारी उलझन जानता हूँ । देव बाबू की तलाश कर रहे होघ्

बाबाए आप उन्हें जानते हैंघ् हम उससे मिलने आए हैं ।

सुना था कि कलाकार की —टि बड़ी पैनी होती है । तुम देव बाबू को नहीं खोज पाए!

यहाँ तो वह कहीं नहीं है बाबा ।

सामने बैठे मनुय को भी नहीं पहचानतेघ्

देव बाबू के कहने के साथ ही पंकज और करुणा दोनों ने ही तेज निगाहों से उसकी ओर देखा । एक पल बाद उनके मुँह से निकल पड़ाए देव बाबू...!

हाँ पंकजए मैं ही तुम्हारा देव बाबू हूँ ।

इतने दिनों तक कहाँ रहे भईयाघ् तुम हमें छोड़कर कहाँ चले गए थेघ् करुणा एक ही साँस में कह गयी ।

भाग्य की लकीरों को कोई नहीं मिटा सकता करुणा ।

अब घर चलो भईया ।

नहीं करुणाए अभी शायद अपयुक्त समय नहीं आया है ।

चार वर्ष बाद भीघ् पंकज ने कहा ।

हाँ पंकजए पूजा थोड़ी देर पहले ही यहाँ आयी थी । मुझे पहचानकर बिना एक पल रुके ही वह यहाँ से भाग गयी । लगता हैए वह मुझसे रुट है । बिना उसकी अनुमति के मैं घर कैसे जा सकता हूँघ्

आप अनुमति की बात करते हैं देव बाबूए उसने तो इस चार वाषोर्ं का एक—एक पल आपकी प्रतीक्षा में काटा है । वह आपसे नाराज नहीं है । अब आप घर चलिए ।

नहीं पंकजए मैं यहीं रहकर उसकी प्रतीक्षा करूँगा । देव बाबू के शब्दों की —ढ़़ता उसके निर्णय का प्रतिक बन गयी थी ।

काफी देर तक पंकज और करुणा उससे वापस घर चलने का आग्रह करते रहे परन्तु वे उसके निर्णय को नहीं बदल सके । अन्त में हार कर वे घर को वापस चल दिए ।

जब वे लौटकर घर पहुँचे तो पूजा सामान्य होकर घर का कार्य कर रही थी । कुछ देर पहले के प्रलाप का कोई चिह्न उसके मुख पर शेष न था । ऐसा प्रतीत होता था जैसे आज उसके साथ कोई असामान्य घटना घटी ही न हो ।

पंकज और करुणा के वापस आने पर पूजा ने उनसे देव बाबू के विषय में कोई चर्चा नहीं की और उसे दोनों के पास तो बताने को कुछ भी नहीं था । अपने—अपने ख्यालों में खोए तीनों कार्य करते रहे । दिन सामान्य गति से आगे बढ़़ता रहा । तीनों ही असामान्य थे मगर स्वयं को सामान्य दर्शाने का प्रयास करते रहे ।

'''

भाग — छतीस

देव बाबू ने अब धीरे—धीरे अपने भक्तों से मिलना भी बन्द कर दिया था । अब वह न तो किसी के प्रश्न का उत्तर देता था और न ही ज्ञानवार्ता करता था । उसकी उदासीनता को देखकर अब बहुत कम लोग मन्दिर में आने लगे थे । पहले जहाँ उसके दर्शनों को भीड़ एकत्रित हो जाती थी अब वहाँ मन्दिर में कुछ नियमित उपासक ही आते थे ।

देव बाबू दिन—भर चुपचाप मन्दिर के एक कोने में बैठा रहता । उसे हर पल पूजा के वहाँ आने की प्रतीक्षा रहती थी मगर वह उस दिन के बाद पुनः लौटकर नहीं आयी थी । पंकज और करुणा उससे मिलने के लिए आते रहते थे । वे उससे घर लौट चलने की कहते तो वह मौन हो जाता । वे दोनों भी उसकी जिद के सामने विवश थे ।

भक्तों से न मिलने के कारण अब खाना भी नहीं आ पाता था । जो कुछ वहाँ आता था वह उस मन्दिर के नियमित पुजारी के लिए ही पर्याप्त नहीं था । इस स्थिति को देखते हुए वे सेवक भी वहाँ से गायब हो गए थे जो अनायास ही पिछ्‌ले दिनों एकत्रित हो गए थे ।

पंकज और करुणा द्वारा लायी हुई कोई भी वस्तु देव बाबू स्वीकार नहीं करता था । भिक्षा के लिए शहर में निकलना उसके वश में न था । अन्नाभाव के कारण उसका शरीर क्षीण होता जा रहा था । जिस शहर में उसके आगमन की धूम मच गयी थीए अब वहीँ उसके लिए सन्नाटा छा गया था परन्तु वह सन्नाटा भी तो उसके द्वारा स्वयं ही उत्पन्न किया गया था । लोगों को तो अब यह भी पता नहीं था कि वह साधू इसी शहर में है या यहाँ से चला गया है । एक तरह से वह इन दिनों एकान्तवास कर रहा था ।

पूजा की प्रतीक्षा करते देव बाबू को एक मास से अधिक व्यतीत हो गया था । पिछ्‌ले दो दिनों से तो उसे ज्वर ने जकड़ लिया था मगर वह ज्वर में भी एक कोठरी में चटाई बिछाए चुपचाप लेता हुआ पूजा की प्रतीक्षा कर रहा था ।

उसे दिन जब पंकज वहाँ से लौटकर घर पहुँचा तो उसने पूजा से देव बाबू के अस्वस्थ होने की बात बतायी । देव बाबू के ज्वर का समाचार सुनकर एक पल को तो वह हिल गयी ।

चलोगी न पूजाघ् पंकज ने पूछा ।

नहीं पंकज । तुम उसके लिए दवा और फल ले जाना । भरे दिल से पूजा ने कहा ।

लेकिन तुम क्यों नहीं चलतींघ् उसे फल और दवा की नहीं तुम्हारी आवश्यकता है ।

तू बहुत भोला है पंकज । समय आने दे...जब उन्हें मेरी आवश्यकता होगीए मैं अवश्य ही चलूँगी । अभी उन्हें मेरी आवश्यकता नहीं है । शान्त स्वर में पूजा ने कहा ।

इस अवस्था में भीघ् उत्तेजना से पंकज ने कहा ।

हाँ पंकजए इस समाज ने नारी को तुच्छ समझा है । हमें जुल्म सहकर क्षमा माँगने की प्रथा को समाप्त करना ही होगा । पूजा ने भी उत्तेजित होते हुए कहा ।

लेकिन मुझसे तुम दोनों का दुःख देखा नहीं जाता ।

यह तेरा प्यार है पंकजए मगर हम दुःख के सागर में से गुजरे बिना निर्मल नहीं हो सकते । यह हमारी परीक्षा है ।

तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आती ।

समझोगे पंकज । समय आने दो...सब समझ जाओगे ।

मैं मन्दिर जा रहा हूँ ।

जाओए उसकी दवा का प्रबन्ध कर देना ।

लेकिन वह स्वीकार नहीं करेगा ।

उन्हें समझाना कि अपने शरीर के साथ अन्याय न करें ।

अच्छा । कहकर पंकज वहाँ से उठकर चल दिया ।

सन्ध्या का हल्का अन्धकार मन्दिर के चारों ओर फैलता जा रहा था । मन्दिर की जिस कोठरी में देव बाबू लेता हुआ था उसका द्वार खुला था मगर पंकज उसे अन्धेरे में कुछ भी स्पट नहीं देख सका । अन्दर से कराहने का स्वर आ रहा था । आज प्रातः ही वह देव बाबू को ज्वर की स्थिति में छोड़कर गया था । वह जान गया कि वह कराहट देव बाबू की ही है । वह दरवाजे से अन्दर चला गया ।

देव बाबू दीवार का सहारा लिए अधलेटा—सा बैठा था । उसकी आँखें बन्द थीं । मुख से कराहट के मध्य अस्पट—से शब्द निकल रहे थे...काशए तुम मुझे क्षमा कर सकतीं पूजा!

पूजा ने तुम्हारे लिए फल और दवा भिजवायी है । पास बैठते हुए पंकज ने कहा ।

देव बाबू ने आँखें खोलीं । एक गहरी —टि उसने पंकज पर डाली और फिर आँखें बन्द कर कहने लगाए मैं दया के सहारे जीना नहीं चाहता पंकज । मुझे अपने अपराधों का प्रायश्चित करने दो ।

यह तुम्हारा कैसा प्रायश्चित है देव बाबू! इससे तो पूजा को और अधिक कट पहुँचता है । पिछ्‌ले तीन दिनों से उसने भी अन्न नहीं छुआ है । पंकज की आँखें भय आयीं ।

लेकिन क्योंघ् आश्चर्य और दुःख से देव बाबू ने कहा ।

यह तो मैं नहीं जानता मगर इतना अवश्य है कि तुम उसकी जान ले लेना चाहते हो । तुम शायद उस देवी को दोषी समझते हो ।

ऐसा न कहो पंकज । उसे दोषी समझना मेरी मौत होगी । उसने तो चार वर्ष तक अपने पति की प्रतीक्षा करके एक उदहारण प्रस्तुत किया है । वह तो पूजनीय है पंकज ।

लेकिन वह मर रही है देव बाबू । इधर तुम मर रहे हो । क्यों तुम दोनों ही स्वयं को नट करने पर तुले हो!

शायद यही हमारी नियति है पंकज ।

नहीं देव बाबूए यह नियति नहीं छलावा है । इधर तुम उसकी प्रतीक्षा कर रहे हो और उधर वह तुम्हारीए मगर तुम दोनों ने ही व्यर्थ में इसे स्वाभिमान का प्रश्न बना लिया है । न वह अपना हठ छोड़ने को तैयार है और न तुम । आज रात हम तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे देव । यदि तुम घर नहीं आए तो मैं करुणा के साथ प्रातः ही उसे घर को छोड़ दूँगा ।

ऐसा न करना पंकज ।

मैं क्या करूँ देव बाबूए मुझसे यह दुःख और अधिक नहीं देखा जाता । कहते हुए वह अपने आँसुओं को अन्दर ही अन्दर पीता हुआ वहाँ से उठकर चल दिया ।

पंकज देव बाबू को छोड़कर चला गया मगर वह वहाँ पड़ा सोचता रहा । पूजा वहाँ मेरी प्रतीक्षा करती हुई स्वयं तो मिटा रही है मगर वह मुझसे मिलने क्यों नहीं आयी । पंकज ने कहा कई कि तुम दोनों ही एक—दुसरे की प्रतीक्षा कर रहे हो मगर तुम दोनों ने इसे स्वाभिमान का प्रश्न बना लिया है । तो यह पूजा का स्वाभिमान है जो वह मुझसे मिलने नहीं आयीघ् वह सोचे जा रहा थाए मगर मैं उससे मिलने क्यों नहीं गयाघ् क्या मैं सचमुच ही इस बात की प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि वह मुझे क्षमा करके लेने आएघ् लेकिन मैं वहाँ जाकर भी उससे क्षमा माँग सकता हूँ । क्या वह मुझे घर से निकाल देगीघ् नहींए मेरे न जाने के मूल में भी शायद मेरा अहं छिपा है । कहीं न कहीं मेरी भी चाह यही है कि पूजा मुझे लेने आए तो मैं गर्व से जाऊँ । मगर वह मुझे लेने क्यों आएघ् उसने तो मुझे घर से नहीं निकाला थाघ् इसमें उसका तो कोई दोष नहीं था जो मैं घर छोड़कर गया । दोष मेरा भी नहीं था मगर वह महान्‌ है । मैंने उसे सिर्फ दुःख दिए हैं...अगर वह मिट गयी तो इसका उत्तरदायित्व भी मुझपर ही होगा । नहीं...नहीं...मुझे वहाँ जाना चाहिए...मैं वहाँ जाऊँगा ।

सोचकर देव बाबू खड़ा हो गया । कमजोरी के कारण उसके पाँव काँप रहे थेए मगर लाठी का सहारा लिए वह मन्दिर से बाहर आ गया ।

रात्रि का गहरा सन्नाटा सड़क पर फैला हुआ था । हल्की—हल्की बूँदें पड़ रही थीं । रात एकदम काली थी परन्तु आसमान में चमकती बिजली से रह—रहकर सब कुछ चमक उठता था । धीरे—धीरे वर्षा की बौछारों में भीगता देव बाबू लाठी के सहारे सड़क पर बढ़़ा जा रहा था । वर्षा की बूँदें उसके ज्वर से जलते शरीर पर गिरकर शूल—सी चूभो रही थीं । तेज हवा उसके शरीर को कंपा रही थी मगर तपस्वी की धोती लपेटे वह अर्धनग्न अपनी दिशा की ओर बढ़़ा जा रहा था ।

मकान के सामने जाकर वह कुछ देर को ठिठक गया । बिलकुल वही कमराए वही दरवाजा...कुछ भी तो नहीं बदला था मगर आज दरवाजा खटखटाते हुए देव बाबू के हाथ काँप रहे थे । साहस जुटा उसने किसी तरह द्वार खटखटाया ।

द्वार पर पड़ती थपथपाहट से करुणा की नींद टूटी । पूजा का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण आज वह नीचे उसीके पास सो रही थी । कमरे में हल्की रोशनी थी । सामने लगी घड़ी पर उसकी —टि गयी तो सवा बारह बज रहे थे । इतनी रात को कौन दरवाजा खटखटा रहा है—यही सोचकर वह डर गयी । उसने पास के बिस्तर पर लेटी पूजा को जगा लिया ।

तभी एक जोर का धक्का दरवाजे को लगा और उन्हें किसी के गिरने की आवाज सुनायी दी । पूजा ने उठकर ट्यूबलाइट जलाई और साहस कर आगे बढ़़कर दरवाजा खोल दिया ।

आप...। ट्यूबलाइट का प्रकाश देव बाबू के मुख पर पड़ा तो पूजा उसे पहचानकर कह उठी । उसका पति उसके दरवाजे पर लौट आया था मगर किस स्थिति मेंघ् उसका मन रो उठा । एक पल को वह वहीँ जड़ हो गयी ।

देव भईया! करुणा ने आगे बढ़़कर उन्हें उठाया तो पूजा मौन खड़ी देखती रह गयी । करुणा देव बाबू को सहारा देकर कमरे में ले गयी । उसने उन्हें बिस्तर पर लिटाया और उनपर गर्म कम्बल डाल दिया ।

क्या सोच रही हो भाभी! देव भईया लौट आए हैं । करुणा ने आगे बढ़़कर देखाए बुत बनकर खड़ी पूजा की आँखों से आँसू बह रहे थे ।

रो रही हो भाभी । करुणा ने उसे पकड़ कर वहीँ चारपाई पर बैठा दिया ।

तुमने मुझे क्षमा नहीं किया पूजाघ् गर्म कम्बल की गरमाई से देव बाबू की चेतना लौट आयी थी ।

ण्ण्ण्ण्ण् पूजा कुछ न कह सकी । उसकी —टि पति की लम्बी बढ़़ी हुई दाढ़़ी और उलझे बालों में अटकी रही ।

मैंने तुम्हें बहुत कट दिए हैं पूजा । मैं तो जैसे पाषाण हो गया था । पश्चाताप के दो आँसू देव बाबू की आँखों से निकलकर दोनों ओर बह गए ।

आप जैसा कोमल ह्रदय कभी पाषाण नहीं बन सकता । वह तो मेरे भाग्य की विडम्बना थी देव । खामोश पूजा के अधरों से स्वर फूटा ।

नहीं पूजाए मेरा ह्रदय मुझे मेरे अपराधों के लिए धिक्कार रहा है । मुझे क्षमा कर दो...। कहकर देव बाबू धीरे—धीरे उठा और उसके हाथ पूजा के पाँवों की ओर बढ़़ने लगे ।

ऐसा न करो देव! मेरा सौभाग्य आपको वापस लौटा लाया है । पूजा ने उसे सहारा देकर फिर बिस्तर पर लिटा दिया ।

करुणा उपर पंकज को सारी सूचना देकर नीचे रसोई घर में चाय बनाने लगी थी । सूचना पाकर पंकज भी नीचे आ गया था । वह कुर्सी पर मौन बैठा सिगरेट पी रहा था ।

करुणा चाय बना लायी । पूजा अपने हाथों में प्याला थामे देव बाबू को चाय पिलाने लगी । उसके आँसू बहकर चाय के प्याले में गिरने लगे ।

इस शुभ अवसर पर रो रही हो भाभी! करुणा ने उसके समीप बैठते हुए प्यार से कहा ।

मैं स्वयं को सम्भाल नहीं पा रही हूँ करुणा । इतनी खुशी मुझसे सम्भाली नहीं जाती । कहते हुए पूजा फूट—फूटकर रो उठी । देव बाबू की आँखों में भी आँसू तैर आए थे । उसने पूजा के हाथ से चाय का प्याला लेकर नीचे रख दिया ।

आओ करुणाए हम ऊपर चलते हैं । पंकज ने करुणा से कहा और वह उठकर उसके पीछे—पीछे चल दी ।

पूजा ने अपने शरीर का सारा भार कमजोर देव बाबू के वक्ष पर डाल दिया । एक हुंकार सी रह—रहकर मन में उठ रही थी । वह फूट—फूटकर रो रही थी । बहते हुए आँसू मन का सन्ताप धोते जा रहे थे ।

'''

अन्य रसप्रद विकल्प