लाला मदनमोहन एक अंग्रेजी सौदागर की दुकानमैं नई, नई फाशन का अंग्रेजी अस्बाब देख रहे हैं. लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल उन्के साथ हैं. मिस्टर ब्राइट ! यह बड़ी काच की जोड़ी हमको पसंद है. इस्की क़ीमत क्या है ? लाला मदनमोहन नें सौदागर सै पूछा. इस साथकी जोड़ी अभी तीन हजार रुपे मैं हमनें एक हिन्दुस्थानी रईस को दी है लेकिन आप हमारे दोस्त हैं आपको हम चारसौ रुपे कम कर दैंगे. निस्सन्देह ये काच आपके कमरेके लायक है इन्के लगनें सै उस्की शोभा दुगुनी हो जायगी. शिंभूदयाल बोले.
Full Novel
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-1
लाला मदनमोहन एक अंग्रेजी सौदागर की दुकानमैं नई, नई फाशन का अंग्रेजी अस्बाब देख रहे हैं. लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी और मास्टर शिंभूदयाल उन्के साथ हैं. मिस्टर ब्राइट ! यह बड़ी काच की जोड़ी हमको पसंद है. इस्की क़ीमत क्या है ? लाला मदनमोहन नें सौदागर सै पूछा. इस साथकी जोड़ी अभी तीन हजार रुपे मैं हमनें एक हिन्दुस्थानी रईस को दी है लेकिन आप हमारे दोस्त हैं आपको हम चारसौ रुपे कम कर दैंगे. निस्सन्देह ये काच आपके कमरेके लायक है इन्के लगनें सै उस्की शोभा दुगुनी हो जायगी. शिंभूदयाल बोले. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-2
हैं अभी तो यहां के घन्टे मैं पौनें नौ ही बजे हैं तो क्या मेरी घड़ी आध घन्टे आगे ? मुन्शीचुन्नीलालनें मकान पर पहुँचते ही बड़े घन्टे की तरफ़ देखकर कहा. परन्तु ये उस्की चालाकी थी उसनें ब्रजकिशोर सै पीछा छुड़ानें के लिये अपनी घड़ी चाबी देनें के बहानें सै आध घन्टे आगे कर दी थी ! कदाचित् ये घन्टा आध घन्टे पीछे हो मास्टर शिंभूदयाल नें बात साध कर कहा। नहीं, नहीं ये घन्टा तोप सै मिला हुआ है लाला मदनमोहन बोले. तो लाला ब्रजकिशोर साहब की लच्छेदार बातैं नाहक़ अधूरी रह गईं ? मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-3
लाला मदनमोहन भोजन करके आए उस्समय सब मुसाहब कमरे में मौजूद थे. मदनमोहन कुर्सी पर बैठ कर पान खानें और इन् लोगों नें अपनी, अपनी बात छेड़ी. हरगोविंद (पन्सारी के लड़के) नें अपनी बगल सै लखनऊ की बनी टोपियें निकाल कर कहा हजूर ये टोपियें अभी लखनऊसै एक बजाज के यहां आई हैं सोगात मैं भेजनें के लिये अच्छी हैं. पसंद हों तो दो, चार ले आऊं ? कीमत क्या है ? वह तो पच्चीस, पच्चीस रुपे कहता है परन्तु मैं वाजबी ठैरा लूंगा ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-4
लाला मदनमोहन को हरदयाल सै मिलनें की लालसा मैं दिन पूरा करना कठिन होगया वह घड़ी, घड़ी घन्टे की देखते थे और उखताते थे, जब ठीक चार बजे अपनें मकान सै सवार होकर मिस्तरीखानें मैं पहुँचै यहां तीन बग्गियें लाला मदनमोहन की फर्मायश सै नई चाल की बन रही थीं उन्के लिये बहुतसा सामान वलायत सै मंगवाया गया था और मुंबई के दो कारीगरों की राह सै वह बनाई जाती थीं. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-5
लाला मदनमोहन बाग सै आए पीछे ब्यालू करके अपनें कमरे मैं आए उस्समय लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल, मास्टर शिंभूदयाल, बैजनाथ, पंडित पुरुषोत्तमदास, हकीम अहमदहुसैन वगैरे सब दरबारी लोग मौजूद थे. लाला साहब के आते ही ग्वालियर के गवैयों का गाना होनें लगा. मैं जान्ता हूँ कि आप इस निर्दोष दिल्लगी को तो अवश्य पसंद करते होंगे. देखिये इस्सै दिन भर की थकान उतर जाती है और चित्त प्रसन्न हो जाता है लाला मदनमोहन नें थोडी देर पीछै ब्रजकिशोर सै कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-6
आप के कहनें मूजब किसी आदमी की बातों सै उस्का स्वभाव नहीं जाना जाता फ़िर उस्का स्वभाव पहचान्नें के क्या उपाय करैं ? लाला मदनमोहननें तर्क की. उपाय करनें की कुछ जरुरत नहीं है, समय पाकर सब अपनें आप खुल जाता है लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे मनुष्य के मन मैं ईश्वरनें अनेक प्रकार की वृत्ति उत्पन्न की हैं जिन्मैं परोपकारकी इच्छा, भक्ति और न्याय परता धर्म्मप्रवृत्ति मैं गिनी जाती हैं दृष्टांत और अनुमानादि के द्वारा उचित अनुचित कामों की विवेचना, पदार्थज्ञान, और बिचारशक्ति का नाम बुद्धिबृत्ति है. बिना बिचारे अनेकबार के देखनें, सुन्नें आदि सै जिस काम मैं मन की प्रबृत्ति हो, उसै आनुसंगिक प्रवृत्ति कहते हैं. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-7
यहां तो आप अपनें कहनें पर खुद ही पक्के न रहें, आपनें केलीप्स और डिओन का दृष्टांत देकर यह साबित की थी कि किसी की जाहिरी बातों सै उस्की परीक्षा नहीं हो सक्ती परन्तु अन्त मैं आप नें उसी के कामों सै उस्को पहचान्नें की राय बतलाई बाबू बैजनाथ नें कहा. मैंनें केलीप्सके दृष्टांत मैं पिछले कामों सै पहली बातों का भेद खोल कर उस्का निज स्वभाव बता दिया था इसी तरह समय पाकर हर आदमी के कामों सै मन की बृत्तियों पर निगाह करकै उस्की भलाई बुराई पहचान्नें की राह बतलाई तो इस्सै पहली बातों सै क्या बिरोध हुआ ? लाला ब्रजकिशोर पूछनें लगे. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-8
लाला ब्रजकिशोर बातें बनानेंमैं बड़े होशियार हैं परन्तु आपनें भी इस्समय तो उन्को ऐसा मंत्र सुनाया कि वह बंद होगए मुन्शी चुन्नीलालनें कहा. मुझको तो उन्की लंबी चोड़ी बातोंपर लुक्मानकी वह कहावत याद आती है जिस्मैं एक पहाड़के भीतरसै बड़ी गड़-गड़ाहट हुए पीछै छोटीसी मूसी निकली थी मास्टर शिंभूदयालनें कहा. उन्की बातचीतमैं एक बड़ा ऐब यह था कि वह बीचमैं दूसरे को बोलनें का समय बहुत कम देते थे जिस्सै उन्की बात अपनें आप फीकी मालूम होनें लगती थी बाबू बैजनाथनें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-10
सवेरे ही लाला मदनमोहन हवा खोरी के लिये कपड़े पहन रहे थे. मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल आ चुके आजकल मैं हमको एक बार हाकिमों के पास जाना है लाला मदनमोहन नें कहा. ठीक है, आपको म्यूनिसिपेलीटी के मेम्बर बनानें की रिपोर्ट हुई थी. उस्की मंजूरी भी आ गई होगी मुन्शी चुन्नीलाल बोले. मंजूरी मैं क्या संदेह है ? ऐसे लायक आदमी सरकार को कहां मिलेंगे ? मास्टर शिंभूदयाल नें कहा. अभी तो (खुशामदमैं) बहुत कसर है ! साइराक्यूस के सभासद डायोनिस्यसका थूक चाट जाते थे और अमृतसै अधिक मीठा बताते थे लाला ब्रजकिशोर नें कमरे मैं आते, आते कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-9
इस्समय मदनमोहनके बृत्तान्त लिखनें सै अवकाश पाकर हम थोड़ा सा हाल लाला मदनमोहन के सभासदोंका पाठक गण को विदित हैं, इन्मैं सब सै पहले मुन्शी चुन्नीलाल स्मर्ण योग्य हैं, मुन्शी चुन्नीलाल प्रथम ब्रजकिशोर के यहां दस रुपे महीनें का नौकर था. उन्होंनें इस्को कुछ, कुछ लिखना पढ़ना सिखाया था, उन्हींकी संगति मैं रहनें सै इसे कुछ सभाचातुरी आ गई थी, उन्हींके कारण मदनमोहन से इस्की जान पहचान हुई थी. परन्तु इस्के स्वभाव मैं चालाकी ठेठ सै थी इस्का मन लिखनें पढ़नें मैं कम लगता था पर इस्नें बड़ी, बड़ी पुस्तकों मैं सै कुछ, कुछ बातें ऐसी याद कर रक्खी थी कि नये आदमी के सामनें झड़ बांध देता था. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-11
आप भी कहां की बात कहां मिलानें लगे ! म्यूनिसिपेलीटी के मेम्बर होनें सै और इंतज़ाम की इन बातों क्या सम्बन्ध है ? म्यूनिसिपेलीटी के कार्य निर्बाह का बोझ एक आदमी के सिर नहीं है उसमैं बहुत सै मेम्बर होते हैं और उन्मैं कोई नया आदमी शामिल हो जाय तो कुछ दिन के अभ्यास सै अच्छी तरह वाकिफ़ हो सक्ता है, चार बराबरवालों सै बातचीत करनें मैं अपनें बिचार स्वत: सुधर जाते हैं और आज कल के सुधरे बिचार जान्नें का सीधी रास्ता तो इस्सै बढ़कर और कोई नहीं हैं मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-12
सुख दु:ख तो बहुधा आदमी की मानसिक बृत्तियों और शरीर की शक्ति के आधीन हैं.एक बात सै एक मनुष्य अत्यन्त दु:ख और क्लेश होता है वही बात दूसरे को खेल तमाशे की सी लगती है इस लिये सुख दु:ख होनें का कोई नियम नहीं मालूम होता मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा. मेरे जान तो मनुष्य जिस बात को मन सै चाहता है उस्का पूरा होना ही सुख का कारण है और उस्मैं हर्ज पड़नें ही सै दुःख होता है मास्टर शिंभूदयाल नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-13
लाला मदनमोहन हवा खाकर आए उस्समय लाला हरकिशोर साठन की गठरी लाकर कमरे मैं बैठे थे. कल तुमनें लाला साहब के साम्ने बड़ी ढिठाई की परन्तु मैं पुरानी बातोंका बिचार करके उस्समय कुछ नहीं बोला लाला मदनमोहन नें कहा. आपनें बड़ी दया की पर अब मुझको आपसै एकान्त मैं कुछ कहना है, अवकाश हो तो सुन लीजिये लाला हरकिशोर बोले. यहां तो एकांत ही है तुमको जो कुछ कहना हो निस्सन्देह कहो लाला मदनमोहन नें जवाब दिया. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-14
लाला मदनमोहन भोजन करके आए उस्समय डाकके चपरासीनें लाकर चिट्ठीयां दीं. उन्मैं एक पोस्टकार्ड महरोलीसै मिस्टर बेलीनें भेजा था. उस्मैं था कि मेरा बिचार कल शामको दिल्ली आनेंका है आप महरबानी करके मेरे वास्तै डाकका बंदोबस्त कर दें और लोटती डाकमैं मुझको लिख भेजैं लाला मदनमोहननें तत्काल उस्का प्रबंध कर दिया. दूसरी चिट्ठी कलकत्ते सै हमल्टीन कंपनी जुएलर (जोहरी) की आई थी उस्मैं लिखा था आपके आरडरके बमूजिब हीरोंकी पाकट चेन बनकर तैयार हो गई है, एक दो दिनमैं पालिश करके आपके पास भेजी जायगी और इस्पर लागत चार हजार अंदाज रहैगी. आपनें पन्नेकी अंगूठी और मोतियोंकी नेकलेसके रुपे अब तक नहीं भेजे सो महरबानी करके इन तीनों चीजोंके दाम बहुत जल्द भेज दीजिये ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-15
ज्योतिष की बिध पूरी नहीं मिल्ती इसलिये उस्पर बिश्वास नहीं होता परन्तु प्रश्न का बुरा उत्तर आवे तो प्रथम चित्त ऐसा व्याकुल हो जाता है कि उस काम के अचानक होंनें पर भी वैसा नहीं होता, और चित्त का असर ऐसा प्रबल होता है कि जिस वस्तु की संसार मैं सृष्टि ही न हो वह भी वहम समाजानें सै तत्काल दिखाई देनें लगती है. जिस्पर जोतिषी ग्रहों को उलट पुलट नहीं कर सक्ते, अच्छे बुरे फल को बदल नहीं सक्ते, फ़िर प्रश्न करनें सै लाभ क्या ? कोई ऐसी बात करनी चाहिये जिस्सै कुछ लाभ हो मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-16
अब तो यहां बैठे, बैठे जी उखताता है चलो कहीं बाहर चलकर दस, पांच दिन सैर कर आवैं मदनमोहन नें कमरे मैं आकर कहा. मेरे मन मैं तो यह बात कई दिन सै फ़िर रही थी परन्तु कहनें का समय नहीं मिला मास्टर शिंभूदयाल बोले. हुजूर ! आजकल कुतब मैं बड़ी बहार आ रही है, थोड़े दिन पहलै एक छींटा होगया था इस्सै चारों तरफ़ हरियाली छागई है. इस्समय झरनें की शोभा देखनें लायक है मुन्शी चुन्नी लाल कहनें लगे. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-17
लाला मदनमोहन कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे इतनें मैं लाला ब्रजकिशोर भी आ पहुँचे. आपनें लाला हरकिशोर कुछ हाल सुना ? ब्रजकिशोर के आते ही मदनमोहन नें पूछा. नहीं ! मैं तो कचहरी सै सीधा चला आया हूँ फ़िर आप नित्य तो घर होकर आते थे आज सीधे कैसे चले आए ? मास्टर शिंभूदयाल नें संदेह प्रगट करके कहा. इस्मैं कुछ दोष हुआ ? मुझको कचहरी मैं देर होगई थी इस्वास्तै सीधा चला आया तुम अपना मतलब कहो ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-18
आप चाहे स्वार्थ समझैं चाहे पक्षपात समझैं हरकिशोर नें तो मुझे ऐसा चिढ़ाया है कि मैं उस्सै बदला लिये क़भी नहीं रहूँगा लाला मदनमोहन नें गुस्से सै कहा. उस्का कसूर क्या है ? हरेक मनुष्य सै तीन तरह की हानि हो सक्ती है. एक अपवाद करके दूसरे के यश मैं धब्बा लगाना, दूसरे शरीर की चोट, तीसरे माल का नुकसान करना. इन्मैं हरकिशोर नें आप की कौनसी हानि की ? लाला ब्रजकिशोर नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-19
सच तो यह है कि आज लाला ब्रजकिशोर साहब नें बहुत अच्छी तरह भाईचारा निभाया. इन्की बातचीत मैं यह तारीफ है कि जैसा काम किया चाहते हैं वैसा ही असर सब के चित्त पर पैदा कर देते हैं मास्टर शिंभूदयाल नें मुस्करा कर कहा. हरगिज नहीं, हरगिज नहीं, मैं इन्साफ़ के मामले मैं भाई चारे को पास नहीं आनें देता जिस रीति सै बरतनें के लिये मैं और लोगों को सलाह देता हूँ उस रीति बरतना मैं अपनें ऊपर फर्ज समझता हूँ. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-20
लाला ब्रजकिशोर मदनमोहन के पास सै उठकर घर को जानें लगे उस्समय उन्का मन मदनमोहन की दशा देखकर दु:ख बिबस हुआ जाता था. वह बारम्बार सोचते थे कि मदनमोहन नें केवल अपना ही नुक्सान नहीं किया अपनें बाल बच्चों का हक़ भी डबो दिया. मदनमोहन नें केवल अपनी पूंजी ही नहीं खोई अपनें ऊपर क़र्ज भी कर लिया. भला ! लाला मदनमोहनको क़र्ज करनें की क्या ज़रूरत थी ? जो यह पहलै ही सै प्रबंध करनें की रीति जान्कर तत्काल अपनें आमद खर्च का बंदोबस्त कर लेते तो इन्को क्या, इन्के बेटे पोतों को भी तंगी उठानें की कुछ ज़रूरत न थी. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-21
लाला ब्रजकिशोर न जानें कब तक इसी भँवर जाल मैं फंसे रहते परन्तु मदनमोहन की पतिब्रता स्त्री के पास उस्के दो नन्हें, बच्चों को लेकर एक बुढि़या आ पहुँची इस्सै ब्रजकिशोर का ध्यान बट गया. उन बालकों की आंखों मैं नींद घुलरही थी उन्को आतेही ब्रजकिशोर नें बड़े प्यार सै अपनी गोद मैं बिठा लिया और बुढि़या सै कहा इन्को इस्समय क्यों हैरान किया ? देख इन्की आंखों मैं नींद घुल रही है जिस्सै ऐसा मालूम होता है कि मानो यह भी अपनें बाप के काम काज की निर्बल अवस्था देखकर उदास हो रहे हैं उन्को छाती सै लगाकर कहा शाबास ! बेटे शाबास ! ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-22
लाला ब्रजकिशोर उठकर कपड़े भी नहीं उतारनें पाए थे इतनें मैं हरकिशोर आ पहुँचा. क्यों ! भाई ! आज अपनें पुरानें मित्र सै कैसै लड़ आए ? ब्रजकिशोर नें पूछा. इस्सै आपको क्या ? आपके हां तो घीके दिए जल गए होंगे हरकिशोरनें जवाब दिया. मेरे हां घीके दिये जलनें की इस्मैं कौन्सी बात थी ? ब्रजकिशोर नें पूछा. आप हमारी मित्रता देखकर सदैव जला करते थे आज वह जलन मिट गई क्या तुम्हारे मनमैं अब तक यह झूंटा बहम समा रहा है ? ब्रजकिशोरनें पूछा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-23
ब्रजकिशोर कौन् हैं ? मदनमोहन की क्यों इतनी सहानुभूति (हमदर्दी) करते हैं ? अच्छा ! अब थोड़ी देर और कुछ नहीं है जितनें थोड़ा सा हाल इन्का सुनिये. लाला ब्रजकिशोर गरीब माँ बाप के पुत्र हैं परन्तु प्रामाणिक, सावधान, विद्वान और सरल स्वभाव हैं. इन्की अवस्था छोटी है तथापि अनुभव बहुत है. यह जो कहते हैं उसी के अनुसार चलते हैं. इन्की बहुत सी बातें अब तक इस पुस्तक मैं आचुकी हैं इसलिये कुछ विशेष लिखनें की ज़रूरत नहीं है तथापि इतना कहे बिना नहीं रहा जाता कि यह परमेश्वर की सृष्टि का एक उत्तम पदार्थ है. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-24
मदनमोहन का पिता पुरानी चाल का आदमी था. वह अपना बूतादेखकर काम करता था और जो करता था वह नहीं फ़िरता था. उस्नें केवल हिन्दी पढ़ी थी. वह बहुत सीधा सादा मनुष्य था परन्तु व्यापार मैं बड़ा निपुण था, साहूकारे मैं उस्की बड़ी साख थी. वह लोगों की देखा-देखी नहीं अपनी बुद्धि सै व्यापार करता था. उस्नें थोड़े व्यापार मैं अपनी सावधानी सै बहुत दौलत पैदा की थी. इस्समय जिस्तरह बहुधा मनुष्य तरह, तरह की बनावट और अन्याय सै औरों की जमा मारकर साहूकार बन बैठते हैं, सोनें चान्दी के जगमगाहट के नीचे अपनें घोर पापों को छिपाकर सज्जन बन्नें का दावा करते हैं, ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-25
हम प्रथम लिख चुके हैं कि हरकिशोर साहसी पुरुष था और दूर के सम्बन्ध मैं ब्रजकिशोर का भाई लगता अब तक उस्के काम उस्की इच्छानुसार हुए जाते थे वह सब कामों मैं बड़ा उद्योगी और दृढ़ दिखाई देता था. उस्का मन बढ़ता जाता था और वह लड़ाई झगड़े वगैरे के भयंकर और साहसिक कामों मैं बड़ी कारगुजारी दिखलाया करता था. वह हरेक काम के अंग प्रत्यंग पर दृष्टि डालनें या सोच बिचार के कामों मैं माथा खाली करनें और परिणाम सोचनें या कागजी और हिसाबी मामलों मैं मन लगनें के बदले ऊपर, ऊपर सै इन्को देख भाल कर केवल बड़े, बड़े कामों मैं अपनें तांई लगाये रखनें और बड़े आदमियों सैं प्रतिष्ठा पानें की विशेष रुचि रखता था. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-26
लाला मदनमोहन प्रात:काल उठते ही कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे. साथ जानेंवाले अपनें, अपनें कपड़े लेकर आते थे, इतनें मैं निहालचंद मोदी कई तकाजगीरों को साथ लेकर आ पहुँचा. इस्नें हरकिशोर से मदनमोहन के दिवाले का हाल सुना था. उसी समय से इस्को तलामली लग रही थी. कल कई बार यह मदनमोहन के मकान पर आया, किसी नें इस्को मदनमोहन के पास तक न जानें दिया और न इस्के आनें इत्तला की. संध्या समय मदनमोहन के सवार होनें के भरोसे वह दरवाजे पर बैठा रहा परन्तु मदनमोहन सवार न हुए इस्से इस्का संदेह और भी दृढ़ हो गया. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-27
उस तरफ़ लाला ब्रजकिशोर नें प्रात:काल उठ कर नित्य नियम से निश्चिन्त होते ही मुन्शी हीरालाल को बुलानें के आदमी भेजा. हीरालाल मुन्शी चुन्नीलाल का भाई है. यह पहले बंदोबस्त के महक़मे मैं नौकर था. जब से वह काम पूरा हुआ इस्की नौकरी कहीं नहीं लगी थी. तुमनें इतनें दिन से आकर सूरत तक नहीं दिखाई. घर बैठे क्या किया करते हो ? हीरालाल के आते ही ब्रजकिशोर कहनें लगे दफ्तर मैं जाते थे जब तक खैर अवकाश ही न था परन्तु अब क्यों नहीं आते ? ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-28
थोड़ी देर पीछै मुन्शी चुन्नीलाल आ पहुँचा परन्तु उस्के चेहरे का रंग उड़ रहा था. लाला सै उस्की आंख नहीं होती थी. प्रथम तो उस्की सलाह सै मदनमोहन का काम बिगड़ा दूसरे उस्की कृतघ्नता पर ब्रजकिशोर नें उस्के साथ ऐसा उपकार किया इसलिये वह संकोच के मारे धरती मैं समाया जाता था. तुम इतनें क्यों लजाते हो ? मैं तुम सै जरा भी अप्रसन्न नहीं हूँ बल्कि किसी, किसी बात मैं तो मुझको अपनी ही भूल मालूम होती है. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-29
आज तो मुझ से एक बड़ी भूल हुई मुन्शी चुन्नीलाल नें लाला मदनमोहन के पास पहुँचते ही कहा मैं समझा था कि यह सब बखेड़ा लाला ब्रजकिशोर नें उठाया है परन्तु वह तो इस्सै बिल्कुल अलग निकले. यह सब करतूत तो हरकिशोर की थी. क्या आपनें लाला ब्रजकिशोर के नाम चिट्ठी भेज दी ? हां चिट्ठी तो मैं भेज चुका मदनमोहन नें जवाब दिया. यह बड़ी बुरी बात हुई. जब एक निरपराधी को अपराधी समझ कर दण्ड दिया जायगा तो उस्के चित्त को कितना दु:ख होगा मुन्शी चुन्नीलाल नें दया करके कहा (!) फ़िर क्या करें ? जो तीर हाथ सै छुट चुका वह लौटकर नहीं आसक्ता लाला मदनमोहन नें जवाब दिया. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-30
सन्ध्या समय लाला मदनमोहन भोजन करनें गए तब मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल को खुलकर बात करनें का अवकाश वह दोनों धीरे, धीरे बतलानें लगे. मेरे निकट तुमनें ब्रजकिशोरसै मेल करनें मैं कुछ बुद्धिमानी नहीं की. बैरी के हाथ मैं अधिकार देकर कोई अपनी रक्षा कर सक्ता है ? मास्टर शिंभूदयाल नें कहा. क्या करूं ? इस्समय इस युक्ति के सिवाय अपनें बचाव को कोई रास्ता न था. लोगों की नालिशें हो चुकीं, अपनें भेद खुलनें का समय आ गया. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-31
लाला मदनमोहन का लेन देन किस्तरह पर है ? ब्रजकिशोर नें मकान पर पहुँचते ही चुन्नीलाल सै पूछा. बार हाल तो कागज तैयार होनें पर मालूम होगा परन्तु अंदाज यह है कि पचास हजार के लगभग तो मिस्टर ब्राइट के देनें होंगे, पन्दरह बीस हजार आगाहसनजान महम्मद जान वगैरे खेरीज सौदागरों के देनें होंगे, दस बारह हजार कलकत्ते, मुंबई के सौदागरों के देनें होंगे, पचास हजार मैं निहालचंद, हरकिशोर वगैर बाजार के दुकानदार और दिसावरों के आढ़तिये आ गये मुन्शी चुन्नीलाल नें जवाब दिया. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-32
अदालत में हाकिम कुर्सीपर बैठे इज्लास कर रहे हैं. सब अहलकार अपनी, अपनी जगह बैठे हैं निहालचंद मोदी का हो रहा है. उस्की तरफ़ सै लतीफ हुसैन वकील हैं. मदनमोहनकी तरफ़ सै लाला ब्रजकिशोर जवाबदिही करते हैं. ब्रजकिशोर नें बचपन मैं मदनमोहन के हां बैठकर हिंदी पढ़ी थी इस वास्तै वह सराफी कागज की रीति भांति अच्छी तरह जान्ता था और उस्नें मुकद्दमा छिड़नें सै पहले मामूली फीस देकर निहालचंद के बही खाते अच्छी तरह देख लिये थे. इस मुकद्दमें मैं क़ानूनी बहस कुछ न थी केवल लेन देनका मामला था. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - 33
आज तो लाला ब्रजकिशोर की बातोंमैं लाला मदनमोहन की बात ही भूल गये थे ! लाला मदनमोहन के मकान पर ही सुस्ती छा रही है केवल मास्टर शिंभूदयाल और मुन्शी चुन्नीलाल आदि तीन, चार आदमी दिखाई देते हैं परन्तु उन्का भी होना न होना एकसा है वह भी अपनें निकासका रस्ता ढूंढ़ रहे हैं. हम अबतक लाला मदनमोहनके बाकी मुसाहबोंकी पहचान करानें के लिये अवकाश देख रहे थे इतनेंमैं उन्नें मदनमोहन का साथ छोड़ कर अपनी पहचान आप बतादी. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-34
लाला मदनमोहन मकान पर पहुँचे उस्समय ब्रजकिशोर वहां मौजूद थे. लाला ब्रजकिशोर नें अदालत का सब वृत्तान्त कहा. उस्मैं मदनमोहन, के मुकद्दमें का हाल सुन्कर बहुत प्रसन्न हुए. उस्समय चुन्नलीलाल नें संकेत मैं ब्रजकिशोर के महन्तानें की याद दिवाई जिस्पर लाला मदनमोहन नें अपनी अंगुली सै हीरे की एक बहुमूल्य अंगूठी उतार कर ब्रजकिशोर को दी और कहा आपकी मेहनत के आगे तो यह महन्ताना कुछ नहीं है परन्तु अपना पुराना घर और मेरी इस दशा का बिचार करके क्षमा करिये ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - 35
दूसरे दिन सवेरे लाला मदनमोहन नित्य कृत्य सै निबटकर अपनें कमरे मैं इकल्ले बैठे थे. मन मुर्झा रहा था काम मैं जी नहीं लगता था एक, एक घड़ी एक, एक बरस के बराबर बीतती थी इतनें मैं अचानक घड़ी देखनें के लिये मेज़पर दृष्टि गई तो घड़ी का पता न पाया. हें ! यह क्या हुआ ! रात को सोती बार जेबसै निकालकर घड़ी रक्खी थी फ़िर इतनी देर मैं कहां चली गई ! नौकरों सै बुलाकर पूछा तो उन्होंनें साफ जवाब दिया कि हम क्या जानें आपनें कहां रक्खी थी ? ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-36
लाला ब्रजकिशोर के गये पीछे मदनमोहन की फ़िर वही दशा हो गई. दिन पहाड़ सा मालूम होनें लगा. खास डाक की बड़ी तला मली लगरही थी. निदान राम, राम करके डाक का समय हुआ डाक आई. उस्मैं दो तीन चिट्ठी और कई अखबार थे. एक चिट्ठी आगरे के एक जौहरी की आई थी जिस्मैं जवाहरात की बिक्री बाबत लाला साहब के रुपे लेनें थे और वह यों भी लाला साहब सै बड़ी मित्रता जताया करता था. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-37
लाला ब्रजकिशोर नें अदालत मैं पहुँचकर हरकिशोर के मुकद्दमे मैं बहुत अच्छी तरह बिबाद किया. निहालचंद आदि के छोटे, मामलों मैं राजीनामा होगया. जब ब्रजकिशोर को अदालत के काम सै अवकाश मिला तो वह वहां सै सीधे मिस्टर ब्राइट के पास चले गए. हरकिशोर नें इस अवकाश को बहुत अच्छा समझा तत्काल अदालत मैं दरख्वास्त की कि लाला मदनमोहन अपनें बाल-बच्चों को पहलै मेरठ भेज चुके हैं उन्के सब माल अस्बाब पर मिस्टर ब्राइट की कुर्की हो रही है और अब वह आप भी रूपोश (अन्तर्धान) हुआ चाहते हैं. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-38
लाला ब्रजकिशोर बाहर पहुँचे तो उन्को कचहरी सै कुछ दूर भीड़ भाड़सै अलग वृक्षों की छाया मैं एक सेजगाड़ी दी. चपरासी उन्हें वहां लिवा ले गया तो उस्मैं मदनमोहन की स्त्री बच्चों समेत मालूम हुई. लाला मदनमोहन की गिरफ्तारी का हाल सुन्ते ही वह बिचारी घबराकर यहां दौड़ आई थी उस्की आंखों सै आंसू नहीं थमते थे और उस्को रोती देखकर उस्के छोटे, छोटे बच्चे भी रो रहे थे. ब्रजकिशोर उन्की यह दशा देख कर आप रोनें लगे. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-39
सन्ध्या का समय है कचहरी के सब लोग अपना काम बन्द करके घर को चलते जाते हैं. सूर्य के के साथ लाला मदनमोहनके छूटनें की आशा भी कम हो जाती है. ब्रजकिशोर नें अब तक कुछ उपाय नहीं किया. कचहरी बन्द हुए पीछे कल तक कुछ न हो सकेगा. रात को इसी छोटीसी कोठरी मैं अन्धेरे के बीच जमीन पर दुपट्टा बिछा कर सोना पड़ेगा. कहां मित्र मिलापियों के वह जल्से ! कहां पानी प्यानें के लिये एक खिदमतगार तक पास न हो ! इन बातों के बिचार सै लाला मदनमोहन का व्याकुल चित्त अधिक अकुलानें लगा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-40
लाला मदनमोहन बड़े आश्चर्य मैं थे कि क्या भेद है जगजीवनदास यहां इस्समय कहां सै आए ? और आए तो उन्के कहनें सै पुलिस कैसे मान गई ! क्या उन्होंनें मुझको हवालात से छुड़ानें के लिये कुछ उपाय किया ? नहीं उपाय करनें का समय अब कहां है ? और आते तो अब तक मुझसै मिले बिना कैसे रह जाते ? इतनें मैं दूर सै एकाएक प्रकाश दिखाई दिया और लाला ब्रजकिशोर पास आ खड़े हुए. हैं ! आप इस्समय यहां कहां ! मैंनें तो समझा था कि आप अपनें मकान मैं आराम सै सोते होंगे लाला मदनमोहन नें कहा. ...और पढ़े
परीक्षा-गुरु - प्रकरण-41
मैंनें सुना है कि लाला जगजीवनदास यहां आए हैं लाला मदनमोहननें पूछा. नहीं इस्समय तो नहीं आए आपको संदेह हुआ होगा लाला ब्रजकिशोरनें जवाब दिया. आपके आनें सै पहलै मुझको ऐसा आश्चर्य मालूम हुआ कि जानें मेरी स्त्री यहां आई थी परन्तु यह संभव नहीं कदाचित् स्वप्न होगा लाला मदनमोहननें आश्चर्य सै कहा. क्या केवल इतनी ही बात का आपको आश्चर्य है ? देखिये चुन्नीलाल और शिंभूदयाल पहलै बराबर मेरी निन्दा करके आपका मन मेरी तरफ़सै बिगाड़ते रहे थे ...और पढ़े