श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में

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जब हिंदू धर्मग्रंथों की बात होती है तब श्रीमद्भगवद्गीता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता को सारे उपनिषदों का निचोड़ माना जाता है। कहते हैं कि यदि उपनिषद गाय हैं तो श्रीमद्भगवद्गीता उनका दूध है। इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहते हैं।‌ हिंदू धर्मग्रंथों में गीत प्रमुख स्थान रखती है। श्रीमद्भगवद्गीता व्यासदेव जी द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ के छठे खंड के भीष्मपर्व का एक अंश है। महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले जब अर्जुन ने मोहग्रस्त होकर युद्ध से पीछे हटने की बात कही, तब उसके रथ के सारथी भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देकर सही मार्ग दिखाया। श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय हैं। कुल 700 श्लोक हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार परम सत्य को जानने के तीन मार्ग हैं •कर्म मार्ग इसके अनुसार व्यक्ति अपना नियत कर्म करके परम सत्य को जान सकता हैं। •भक्ति मार्ग अपने आप को ईश्वर को समर्पित कर परम सत्य की अनुभूति की जा सकती है। •ज्ञान मार्ग हम ज्ञान द्वारा भी परम सत्य को जान सकते हैं।

Full Novel

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - प्रस्तावना

प्रस्तावनाजब हिंदू धर्मग्रंथों की बात होती है तब श्रीमद्भगवद्गीता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता को सारे का निचोड़ माना जाता है। कहते हैं कि यदि उपनिषद गाय हैं तो श्रीमद्भगवद्गीता उनका दूध है। इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता को गीतोपनिषद भी कहते हैं।‌ हिंदू धर्मग्रंथों में गीत प्रमुख स्थान रखती है। श्रीमद्भगवद्गीता व्यासदेव जी द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ के छठे खंड के भीष्मपर्व का एक अंश है। महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पहले जब अर्जुन ने मोहग्रस्त होकर युद्ध से पीछे हटने की बात कही, तब उसके रथ के सारथी भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देकर ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 1

अध्याय 1 सैन्यदर्शनइस अध्याय के आरंभ में धृतराष्ट्र संजय से युद्धक्षेत्र की गतिविधियों के बारे में प्रश्न करते हैं। पूछते हैं कि कुरुक्षेत्र में मेरे और पांडु के पुत्र, जो युद्ध के लिए एकत्रित हुए हैं क्या कर रहे हैं ? उनके प्रश्न के उत्तर में संजय कहते हैं कि हे राजन युद्धभूमि में पांडवों के पक्ष का सैन्यविन्यास देखने के बाद आपका पुत्र दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गया है। वह उन्हें बता रहा है कि पांडवों की सेना का नेतृत्व द्रुपद का पुत्र धृष्टद्युम्न कर रहा है। पांडव सेना में कई अच्छे योद्धा हैं। जिनमें सात्यकि, ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 2 - (भाग 1)

‌‌अध्याय 2 (भाग 1) सांख्यदर्शनअर्जुन को दुविधा की स्थिति में देखकर श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि हे अर्जुन तुम प्रकार की दुर्बलता क्यों दिखा रहे हो ? तुम इस भ्रम की अवस्था में किस तरह आ गए ? तुम जैसे महान योद्धा को इस तरह का आचरण शोभा नहीं देता है। यह तुम्हारे और तुम्हारे वंश के लिए अपकीर्ति लेकर आएगा। कायर मत बनो। ह्रदय की दुर्बलता को त्याग कर युद्ध करो। श्रीकृष्ण के इस तरह के वचन सुनकर भी अर्जुन की दुविधा समाप्त नहीं हुई। उसने कहा कि उसे यही लग रहा है कि स्वजनों की हत्या कर ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 2 - (भाग 2)

अध्याय 2 (भाग 2) सांख्यदर्शनश्रीकृष्ण ने पहले तो अर्जुन को समझाया कि वह अपने स्वभाव के विपरित आचरण कर है। वह एक वीर योद्धा है। युद्ध से विमुख होकर सन्यास की बातें करना उसका वास्तविक स्वभाव नहीं है। मोह में पड़कर वह भूल गया है कि अन्याय के विरुद्ध लड़ना ही क्षत्रिय का स्वभाव होता है। अपने क्षत्रिय धर्म को त्याग कर वह उस अपकीर्ति के मार्ग पर चल रहा है जो उसके साथ उसके कुल के लिए भी घातक है। अर्जुन को जब यह बात समझ आ गई तब उन्होंने उसके उस मोह को तोड़ने का काम किया ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 3

अध्याय 3 कर्मयोग दूसरे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को लाभ हानि, राग द्वेष, मान अपमान से ऊपर एक स्तिथिप्रज्ञ व्यक्ति बनने का उपदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि अर्जुन को कर्म के फल की चिंता‌‌ छोड़कर अपने कर्म का पालन करना चाहिए। श्रीकृष्ण ने जो ज्ञान दिया उसे सुनने के‌ बाद अर्जुन और भी दुविधा में पड़ गया। उसने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आपने मुझे राग द्वेष, लाभ हानि, मान सम्मान से ऊपर उठने को कहा है। आप चाहते हैं कि मैं मेरे कर्म से प्राप्त होने वाले फल के उपभोग की लालसा त्याग दूँ। ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 4

अध्याय 4 ज्ञानयोग पिछले अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि कर्म मार्ग का अनुसरण करते ज्ञान की ओर बढ़ो। इस अध्याय के आरंभ में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन मैं तुम्हें जो गीता का उपदेश दे रहा हूँ वह बहुत प्राचीन है। मैंने सर्वप्रथम गीता का यह उपदेश सूर्यदेव विवस्वान को दिया। तत्पश्चात गुरु शिष्य परंपरा में यह ज्ञान वैवस्वत मनु तक पहुँचा। उनसे यह ज्ञान इक्ष्वाकु को मिला। कलांतर में इस ज्ञान का क्षय हो गया। क्योंकि तुम मेरे मित्र व भक्त हो अतः मैं वही ज्ञान पुनः तुमको दे रहा हूँ। यह ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 5

अध्याय 5 कर्मसन्यासयोगचौथे अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि वह किस प्रकार निष्काम कर्म करते मोक्ष की तरफ बढ़ सकता है। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम कर्म करते हुए भी स्वयं को कर्ता मत समझो। अर्जुन इस स्थिति को और स्पष्ट करना चाहता था। अतः उसने श्रीकृष्ण से पुनः एक प्रश्न किया। उसने कहा कि हे श्रीकृष्ण आपने कर्म में लिप्त न रहने की बात की है और साथ ही इच्छा रहित होकर कर्म करने की सलाह भी दी है। कृपया इसे स्पष्ट करें। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर देते हुए कहा कि हे पार्थ इन ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 6

अध्याय 6 ध्यानयोगपिछले अध्याय कर्मसन्यास योग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि सन्यास की अवस्था को करना कठिन है। इसके लिए निष्काम कर्म का रास्ता अपनाना ही सबसे उत्तम है।इस अध्याय के आरंभ में श्रीकृष्ण अर्जुन को सन्यास और योग की समानता के बारे में बताते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि योग और सन्यास दोनों में ही स्वयं को इंद्रियों और उनके विषयों से अलग करना आवश्यक है। जो ऐसा करने में सफल होता है वह योगी कहलाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन अपने मन को एकाग्र कर उस पर नियंत्रण प्राप्त करो। उसे ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 7

अध्याय 7 ज्ञान-विज्ञान योग पिछले अध्याय के अंत में श्रीकृष्ण ने कहा था कि योग की अवस्था को प्राप्त का प्रयास करने वाला व्यक्ति यदि असफल भी होता है तब भी उसका अहित नहीं होता है। उसे अगले जन्म में अपना प्रयास जारी रखने का अवसर मिलता है। इस अध्याय के आरंभ में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे पार्थ जो व्यक्ति पूर्णतया मेरे प्रति समर्पित रहता है वह मुझे पाने में सफल रहता है। वह अर्जुन से कहते हैं कि अब मैं तुम्हें वह ज्ञान प्रदान करूँगा जिसे पाने के बाद तुम्हारे लिए कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगा। ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 8

अध्याय 8 अक्षर ब्रह्म योगअध्याय सात में ईश्वर के व्यापक रूप का वर्णन किया गया था। अब अर्जुन के में कई सारे प्रश्न उठ रहे थे। उसने श्रीकृष्ण के समक्ष अपने प्रश्न रख दिए। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे पुरुषोत्तम आप मुझे बताएं कि ब्रह्म क्या है ? आत्मा क्या है ? कर्म क्या है ? अधिभूत क्या है और अधिदेव किसे कहते हैं ? अधियज्ञ कौन है और वह शरीर में किस तरह निवास करता है ? जो पूरी आस्था से आपकी भक्ति में लीन रहते हैं इन प्रश्नों का उत्तर किस प्रकार जान पाते हैं ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 9

अध्याय 9 राजगुह्य योगअध्याय आठ में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन का परम उद्देश्य बताया था। इस अध्याय आरंभ में श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन तुम ईर्ष्या रहित और निष्कपट हो मैं तुम्हें वह ज्ञान प्रदान करूँगा जो सबसे श्रेष्ठ है। यह ज्ञान सबसे गहन है अतः इस ज्ञान को राज गुह्य विद्या कहा जाता है। यह बहुत प्रभावशाली है। इसको सुनने से चित्त शुद्ध होता है। यह प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने में सहायक है। इसके अभ्यास से धर्म की मर्यादा का आसानी से पालन किया जा सकता है। हे शत्रु का नाश करने वाले अर्जुन जो ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 10

अध्याय 10 विभूति योगपिछले अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि इस सृष्टि में यदि कुछ योग्य है तो केवल ईश्वर है। ईश्वर ही सृष्टि का आधार है और सभी चर अचर प्राणियों में विद्यमान है। जो इस बात को समझ लेता है उसके लिए अन्य कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता है। इस इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण उसी बात को आगे बढ़ाते हुए अपनी महिमा एवं ऐश्वर्य का वर्णन कर रहे हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम मेरे ऐश्वर्य को पुनः सुनो। तुम मुझे प्रिय हो अतः मैं तुम्हारा शुभचिंतक हूँ। ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 11

अध्याय 11 विश्वरूप दर्शन योगपिछले अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने ऐश्वर्य के बारे में विभिन्न उपमाओं माध्यम से बताया था। अंत में उन्होंने कहा था कि इस सृष्टि में जो कुछ भी है वह उनके तेज का एक अंशमात्र ही है। भगवान की महिमा का वर्णन सुनने के बाद अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि आपकी महिमा का बखान सुनकर मेरा सारा मोह दूर हो गया है। मैं समझ गया हूँ कि आप ही इस सृष्टि का मूल हैं। आपके ऐश्वर्य के बारे में सुनने के बाद मेरी इच्छा है कि मैं आपके विराट रूप का ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 12

अध्याय 12 भक्तियोगविराट रूप का दर्शन कराने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भक्ति के बारे में बताया उन्होंने कहा था कि मैं ही समस्त सृष्टि का आधार हूँ। अतः स्वयं को मुझे समर्पित कर दो। अर्जुन भगवान की विराटता को समझ चुका था। उसके मन में भगवान के लिए श्रद्धा थी। उसने हाथ जोड़कर पूछा हे प्रभु कुछ लोग आपको साकार रूप में पूजते हैं और कुछ लोग निराकार रूप की पूजा करते हैं। आप किसकी भक्ति से प्रसन्न होते हैं? आनंदमयी भगवान ने कहा हे अर्जुन जो लोग पूरी दृढ़तापूर्वक पूर्ण श्रद्धा के साथ अपना मन ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 13

अध्याय 13 क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग पिछले अध्याय में भक्ति के विषय में बताया गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने था कि जो अपना चित्त मुझमें केंद्रित कर अपने कर्म तथा उसके फल मुझे समर्पित कर देता है वह मेरे निकट है। वह भक्त मुझे प्रिय है जो सबके कल्याण की कामना करते हुए हर स्थिति में समभाव रखता है। जो भक्त माया मोह से परे रहकर मुझमें ध्यान लगाता है वह मेरे निकट रहता है। भक्ति के बारे में जान लेने के बाद अर्जुन के मन में नए प्रश्न खड़े हुए। उसने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे केशव ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 14

अध्याय 14 गुण त्रय विभाग योगपिछले अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि क्षेत्र अर्थात शरीर प्रकृति से है। जबकि क्षेत्रज्ञ आत्मा ईश्वर का अंश है। प्रकृति से उत्पन्न होने के कारण शरीर उसके गुणों से प्रभावित होता है। जिसके कारण धीरे धीरे दुर्बल होकर उसका अंत हो जाता है। जबकि आत्मा ईश्वर का अंश होने के कारण अविनाशी है। प्रस्तुत अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के तीनों गुणों के बारे में बताया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब मैं तुम्हें वह ज्ञान दूँगा जो परम उपयोगी है। जो इस ज्ञान को आत्मसात करते हैं वह मेरी ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 15

अध्याय 15 पुरुषोत्तम योगपिछले अध्याय में प्रकृति के तीन गुणों के बारे में बताया गया था। भगवान श्रीकृष्ण ने था कि इन तीन गुणों से ऊपर उठने का एकमात्र उपाय उनके चरणों में अनन्य भक्ति है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि किस तरह संसार से विमुख होकर अनन्य भक्ति की जा सकती है। श्री भगवान ने कहा हे अर्जुन इस संसार को अविनाशी वृक्ष कहा गया है। इसकी जड़ें ऊपर की ओर हैं और शाखाएँ नीचे की ओर तथा इस वृक्ष के पत्ते वैदिक स्तोत्र हैं, जो इस अविनाशी वृक्ष को जानता है ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 16

अध्याय 16 देवासुर संपद विभाग योग पिछले अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने इस संसार की वास्तविकता समझा कर बताया कि इससे पार होने का उपाय उनके श्रीचरणों में अनन्य भक्ति करना है। उन्होंने समझाया था कि जो लोग उनके स्वरूप को समझ लेते हैं वो उनके परमधाम को प्राप्त होते हैं। ऐसा न कर सकने वाले जन्म मृत्यु के चक्र में फंसे रहते हैं। इस अध्याय में भगावान श्रीकृष्ण ने दैवीय और आसुरी शक्तियों का वर्णन किया है। परम पुरुषोत्तम भगवान् ने कहा हे भरतवंशी निर्भयता, मन की शुद्धि, अध्यात्मिक ज्ञान में दृढ़ता, दान, इन्द्रियों पर नियंत्रण, यज्ञों का ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 17

अध्याय 17 श्रद्धा त्रय विभाग योगईश्वर पर श्रद्धा ही मनुष्य की मुक्ति का साधन है। स्वयं को श्रद्धापूर्वक ईश्वर चरणों में समर्पित करने से ही मुक्ति मिलती है। मनुष्य प्रकृति के तीन गुणों से प्रभावित होता है। ये तीन गुण उसकी श्रद्धा, भोजन और तप पर भी प्रभाव डालते हैं। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने उसी का वर्णन किया है। अर्जुन ने पूछा कि हे कृष्ण जो धर्मग्रन्थों की आज्ञाओं की उपेक्षा करते हैं पर फिर भी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं, उन लोगों की स्थिति क्या होती है? क्या उनकी श्रद्धा, सत्वगुणी, रजोगुणी अथवा तमोगुणी होती ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 18

अध्याय 18 (भाग 1) मोक्ष संन्यास योग हम श्रीमद्भागवतगीता के अंतिम अध्याय पर आ गए हैं। इस अध्याय में और त्याग का वर्णन है। कर्म, कर्म के घटक एवं कर्म फल और तीनों गुणों का इन पर प्रभाव बताया गया है। अध्याय के आरंभ में अर्जुन संन्यास और त्याग के विषय में प्रश्न करते हुए कहता है कि हे महाबाहु मैं संन्यास और त्याग की प्रकृति के संबंध में जानना चाहता हूँ। हे केशिनिषूदन, हे हृषिकेश मैं दोनों के बीच का भेद जानने का भी इच्छुक हूँ।परम भगवान ने उत्तर देते हुए कहा कि कामना से अभिप्रेरित कर्मों के ...और पढ़े

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श्रीमद्भगवद्गीता मेरी समझ में - अध्याय 18 (भाग 2)

अध्याय 18 (भाग 2) मोक्ष संन्यास योगपिछले भाग में अध्याय के पहले, 39 श्लोकों की व्याख्या की थी। उनमें श्रीकृष्ण ने संन्यास और त्याग के बारे में बताया था। ज्ञान, बुद्धि, कर्म, कर्ता, संकल्प और सुखों के सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का वर्णन किया था। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि पृथ्वी या अन्य उच्च लोकों में रहने वाला कोई भी प्राणी प्रकृति के तीन गुणों सात्विक, राजसिक और तामसिक से अप्रभावित नहीं रहता है। अब भगवान समाज के चार वर्णों के विभाजन के बारे में बता रहे हैं। हे शत्रुहंता मानव समाज को चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ...और पढ़े

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श्रीमद्भागवतगीता मेरी समझ में महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 2)

श्रीमद्भागवतगीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 2) अध्याय 5 श्लोक 16ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥जिनका दिव्य ज्ञान द्वारा नष्ट हो जाता है, उनके लिए परम सत्ता उसी तरह प्रकट हो जाती है जिस प्रकार सूर्य उदय होने पर सब कुछ प्रकाशित कर देता है।भ्रम की स्थिति में सत्य का ज्ञान नहीं हो पाता है। भ्रम से बाहर निकलने पर ही सच अपने आप सामने आ जाता है। अक्सर ऐसा होता है कि हम अंधेरे में भ्रमित हो जाते हैं। हिलते हुए पेड़ की परछाईं हमें किसी भूत प्रेत के होने का एहसास कराती है और ...और पढ़े

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श्रीमद्भागवतगीता मेरी समझ में महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 1)

श्रीमद्भागवतगीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक (भाग 1) अध्याय 2 श्लोक 14मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।हे कुंतीपुत्र इंद्रियों और विषयों के बीच संपर्क होने से सुख और दुख की क्षणभंगुर अनुभूतियाँ उत्पन्न होती हैं। ये अस्थायी हैं और सर्दी और गर्मी के मौसम की तरह आते जाते रहते हैं। हे भारतवंशी हमें इन्हें बिना विचलित हुए सहन करना सीखना चाहिए। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुख और दुख में सम रहने की सीख दी है। उन्होंने कहा है कि जिस तरह जाड़े और गर्मी के मौसम स्थाई नहीं होते हैं। थोड़े समय के बाद मौसम बदल ...और पढ़े

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