इस प्यार को क्या नाम दूं ?

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यह कहानी है एक चुलबुली सी लड़की और धीर गंभीर लड़के की। लड़की के लिए प्रेम संसार की सबसे खूबसूरत भावना है वहीं लड़के को प्रेम शब्द से ही नफ़रत है। जिंदगी के एक मोड़ पर दोनों टकराते है और फिर शुरू होती है इन दोनों की तक़रार । यह देखना रोचक होगा कि प्रेम जीतता है या प्रेम से नफ़रत करने वाला । कहानी के मुख्य पात्र :- अर्नव - नायक खुशी - नायिका देवयानी - अर्नव की नानी मनोहर - अर्नव के मामा मनोरमा - अर्नव की मामी अंजली - अर्नव की बहन श्याम - अर्नव के जीजाजी आकाश - अर्नव का ममेरा भाई मधुमती - खुशी की बुआ पायल - खुशी की बहन गरिमा - खुशी की मौसी शशि - खुशी के मौसा। संगीत की तेज़ धुन से पूरा कमरा गूंज रहा था। धुन इतनी अधिक तेज़ थी कि जिसके कारण कमरे की खिड़कियों के शीशे हिल रहे थे, न सिर्फ़ खिड़कियों के शीशे बल्कि कमरे में रखा हर एक सामान इस तरह से थरथरा रहा था, मानो हर एक सामान संगीत लहरियों पर थिरक रहा हो। सामान के साथ ही एक छरहरी काया भी थिरक रही थी।

Full Novel

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 1

(1) यह कहानी है एक चुलबुली सी लड़की और धीर गंभीर लड़के की। लड़की के लिए प्रेम संसार की खूबसूरत भावना है वहीं लड़के को प्रेम शब्द से ही नफ़रत है। जिंदगी के एक मोड़ पर दोनों टकराते है और फिर शुरू होती है इन दोनों की तक़रार । यह देखना रोचक होगा कि प्रेम जीतता है या प्रेम से नफ़रत करने वाला । कहानी के मुख्य पात्र :- अर्नव - नायक खुशी - नायिका देवयानी - अर्नव की नानी मनोहर - अर्नव के मामा मनोरमा - अर्नव की मामी अंजली - अर्नव की बहन श्याम - अर्नव के ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 2

(2) नौजवान लड़के ने ख़ुशी की बातों को अनसुना कर दिया। वह बिना ख़ुशी की ओर देखें मन्दिर की की तरफ़ जाने लगा। ख़ुशी को उसका ऐसा बर्ताव बुरा लगा। वह दौड़कर उस लड़के के सामने चली गई औऱ अपने दोनों हाथ फैलाकर उसका रास्ता रोकते हुए बोली- "बहरे हो या गूंगे या फिर दोनो ही हो ? पहले एक शरीफ़ लड़की का दुप्पटा खींच लेते हो फिर मन्दिर में जूते सहित प्रवेश करते हो। इन सबके बाद अकड़ भी दिखाते हो। रौबदार आवाज़ में नौजवान ने कहा- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा रास्ता रोकने की औऱ मुझसे इस ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 3

(3) अनुलता का नाम सुनकर ख़ुशी की आँखों में चमक आ जाती है। जैसे अचानक अमावस्या की रात सितारों झिलमिला उठी हो। वह एड़ियों को उचकाकर अनुलता को देखने का प्रयास करती हैं पर भीड़ अधिक होने के कारण देख नहीं पाती हैं। उसे सड़क किनारे एक कार दिखतीं है। वह सोचती हैं कार पर चढ़ जाए तो हम बहुत आसानी से अनुलता जी को देख पाएंगे। अपने इस विचार से खुश होकर उसे मूर्त रूप देने के लिए ख़ुशी कार की तरफ़ तेज़ कदमो से बढ़ने लगती है। वह कार के पास पहुंच जाती है। वह सोचती हैं ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 4

(4) अर्नव की ज़हर उगलती कड़वी बातों को सुनकर ख़ुशी गुस्से से कहती है - बस कीजिए मिस्टर अर्नवसिंह । आपके लिए रुपये सबकुछ होंगे जिससे आप जो चाहे खरीद सकते हैं, जिसे चाहें जो कह सकते हैं। हम न ही आपके गुलाम है और न ही हमें आपके इन कागज़ के टुकड़ों की चाह है। अब तक तो हम सोच रहे थे कि आप भोले बाबा द्वारा भेजा हुआ कोई फ़रिश्ता है जो हमारी रक्षा के लिए आए हैं। पर अब हमें समझ आ गया कि आप ही इस लंका के रावण है। हमने आपसे मन्दिर में जो ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 5

(5) अम्मा ! अम्मा ! रोते हुए ख़ुशी औऱ पायल गरिमा को जगाने का प्रयास करती है। अचानक ख़ुशी है और फ़ोन के पास जाकर एक डायरी उठाती है वह डायरी के पन्नो को जल्दी जल्दी पलटते हुए नम्बर देखती है। जैसे ही उसे नम्बर मिल जाता है वह तुरन्त नम्बर डायल कर देती है। कॉल रिसीव होते ही खुशी कहती है- हेलो, हम ख़ुशी, सराफा बाजार के महाकाल मिष्ठान से। उधर से एक शख्स कहता है- हाँ बेटा बोलो क्या हुआ ? सब ठीक तो है न ? ख़ुशी हड़बड़ाहट में कहती है- अंकल अम्मा बेहोश हो गई ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 7

(7) घड़ी एक बजा रहीं थी। टिक-टिक करते घड़ी के कांटे भी मानो आगे भागकर पायल के मन की अपनी अम्मा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हो। बाहर ऑटोरिक्शा रुकने की आवाज सुनकर पायल खुशी से झूम उठी औऱ मधुमती को पुकारते हुए कहती है- बुआजी जल्दी आइए। वो लोग आ गए हैं। हाथ पोछते हुए मधुमती किचन से बाहर आती है। दरवाजे की घण्टी बजती है। पायल तेज़ कदमों से दरवाज़े की ओर बढ़ती है। वह उत्सुकता से दरवाजा खोलती है। सामने गरिमा, ख़ुशी और शशिकांत खड़े थे। पायल गरिमा को गले से लगा लेती है। गरिमा ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 6

(6) तुम्हें हमरी मदद की ख़ातिर हमरे घर आई का पड़ी। नौकरी ही समझ लो। हमरा भांजा हमार बिटवा जईसन। उह के पास रुपए की कोई कमी नाहीं। महिला ने बड़े गर्व से यह बात कही। ख़ुशी को हर हाल में अपनी चेन चाहिए थी। लेकिन वह महिला की शर्त सुनकर असमंजस में पड़ गई। नौकरी करना सम्भव नहीं था। घर से नौकरी की इजाज़त भी नहीं मिलेगी। ख़ुशी विचारों की उधेड़बुन में ही थी कि वह महिला ख़ुशी से कहती है- का सोच में पड़ गई। तुम्हरी चेन चाहिए कि नाही ? चेन तो चाहिए- ख़ुशी ने धीमे ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 8

(8) ये ठीक रहेगा- गरिमा ने ख़ुशी से कार्ड लेते हुए कहा। और फोन की तरफ़ तेज़ कदमों से है। ख़ुशी भी गरिमा के पीछे जाती है। गरिमा रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करती है। ख़ुशी मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करतीं है- हे भोलेनाथ ! रक्षा करना। ऑन्टी मान जाए और चेन देने पर राजी हो जाए। यह मामला शांतिपूर्ण तरीके से निपट जाएं। एक बार में कॉल रिसीव नहीं होता है। गरिमा दोबारा नम्बर रीडायल करती है। इस बार एक ही रिंग के बाद कॉल रिसीव हो जाता है और उधर से आवाज़ आती है- हेलो ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 9

(9) उस तरफ़ से बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह बिना रुके एक महिला कहने लगती है- अब चिंता कोई बात नहीं है। सब ठीक है। यहाँ स्थिति हमने संभाल ली है। तुम अपने नई दिल्ली प्रोजेक्ट का मोर्चा संभालो। मैं दो दिनों में लौटूंगा। आप तब तक नानी का अच्छे से ख्याल रखिएगा- चिंता जताते हुए अर्नव ने कहा। अगले दृश्य में.. ख़ुशी और गरिमा अपने घर पहुंच जाती है। दरवाजे पर नाराज़ मधुमती खड़ी हुई मिलती है। गुस्से से दोनों को घूरते हुए वह कहती है- ई देखो, आज ही अस्पताल से आई है दुई और आज ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 10

(10) डॉक्टर योगेंद्र राउंड पर आते हैं और अपने सभी पेशंट्स को देखते है। जब डॉक्टर योगेंद्र देवयानी के में आते है तब वह देवयानी को आदर के साथ नमस्कार कहते है, फिर उनकी खेरख़बर पूछते है। देवयानी भी मुस्कुराकर जवाब देती है- खेरख़बर तो आप हमसे बेहतर जानते है। आपकी अनुमति मिलते ही हम घर जा पाएंगे। डॉक्टर योगेंद्र फ़ाइल थामे देवयानी की बात पर हँस देते है और फ़ाइल के पन्ने पलटकर देखते है। कुछ देर पन्नों में लिखी रिपोर्ट को पढ़ते हैं फिर फ़ाइल बंद करते हुए कहते हैं- आप बिलकुल ठीक है, आपकी सारी रिपोर्ट ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 11

(11) ट्रे में बच गए एक ओर प्याले को देखकर ख़ुशी कहती है- आप तो दो लोग ही है, ये एक्स्ट्रा चाय किनके लिए बनवाई मनोरमा आँटी ने? चाय का सिप लेते हुए देवयानी ने कहा- ये भोंदू के लिए होगी। वो कल रात को ही आ गए थे। आपको यदि कोई ऐतराज न हो तो हमारे कमरे से बाएं तरफ़ जाने पर उनका कमरा है। ठीक है नानीजी- अचकचाकर ख़ुशी ने कहा और वह नानी के बताए अनुसार कमरे को ढूंढती हुई डरते सहमते कदमों को बढ़ाते हुए आगे बढ़ती जाती है। उसे कुछ ही दूरी पर वह ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 12

(12) देवयानी (ख़ुशी से)- अरे ख़ुशी, आप खड़ी क्यों है। आप अर्नव के पास बैठ जाइए। सभी अपने अनुसार थाली लगा लेंगे। ख़ुशी (अचकचाकर)- नहीं नानी जी हमें अभी भूख नहीं है। हम सर्व कर देते हैं। देवयानी- लगता है आपको भोंदू की संगति का असर हो गया है। आप भी मनमानी करने लगी है। ख़ुशी देवयानी की आज्ञा का पालन करते हुए डरते-सहमते हुए अर्नव के पास बैठ जाती है। अर्नव ग़ुस्से भरी निगाहों से ख़ुशी को देखता है। देवयानी (ख़ुशी से)- आप अपनी औऱ भोंदु की प्लेट लगा लीजिए। ख़ुशी - जी नानीजी ! ख़ुशी अर्नव की ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 13

(13) गुमसुम सी ख़ुशी अपनी ही धुन में चली जा रही थी। वह आकाश के सामने से ऐसे निकल है जैसे उसने आकाश को देखा ही नहीं। आकाश ख़ुशी के सामने जाकर उसे रोकते हुए कहता है- आकाश- आई एम सॉरी ख़ुशीजी, मेरी वज़ह से आपको भाई की बातें सुनना पड़ी। आप चलिए मेरे साथ मैं भाई को अभी क्लियर कर देता हूँ कि सारी गलती मेरी ही थी, मैंने ही आपसे ज़िद करके उनकी नकल उतरवाई थीं। ख़ुशी- (धीमे स्वर में)- कोई बात नहीं आकाशजी.. और आप उनको कितना भी क्लियर कर देंगे तब भी वह इंसान की ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 14

(14) हरिराम देवयानी और मनोरमा को भरोसा दिलाते हुए कहता है- आप चिन्ता न करें। अर्नव भैया की देखभाल बहुत अच्छे से करूँगा। उनका खाना-नाश्ता, चाय पानी सब मैं ही तो देखता हूँ। अब थोड़ा और विशेष ध्यान रख लूँगा। अब तो मुझे उनके गुस्से की भी आदत हो गई है। आप बेफिक्र होकर जाइये। साधारण सा जुक़ाम है, कोई बहुत बड़ी बीमारी नहीं है। देवयानी और मनोरमा को हरिराम की बात पसन्द आती है। दोनों ही हरिराम की बात से सहमत हो जाती है और सुबह जाने की तैयारी में जुट जाती है। अगले दृश्य में... गुप्ता हॉउस ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 15

(15) ख़ुशी से हुई बातचीत से अर्नव को अपना हलक सूखता हुआ सा महसूस हुआ। वह मेज़ से पानी है, उसके हाथ से पानी का गिलास छूट जाता है। गिलास गिरने की आवाज सुनकर ख़ुशी कमरे के अंदर भागी चली आती है। ख़ुशी फर्श से गिलास को उठाकर मेज़ पर रखती है और ट्रे से दूसरा गिलास लेकर अर्नव को पानी देती है। पानी का गिलास लेते हुए अर्नव ख़ुशी को देखता ही रह जाता है। मानों वह लम्हा ठहर गया हो। अपने लिए ख़ुशी की ऐसा सेवा भाव, फिक्र देखकर अर्नव के दिल में कुछ चुभता सा महसूस ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 16

(16) दुःखी मन से ख़ुशी, रायजादा हॉउस पहुँचती है। वह काँपते हाथ से दरवाज़े की घण्टी बजाती है। थोड़ी देर में दरवाजा खुलता है। हरिराम ख़ुशी को देखकर (चौंकते हुए)- ख़ुशीजी आप ? सब कुशलमंगल तो है न ? सुबह भी आप अचानक यूँ चली गई। ख़ुशी- सब ठीक है, हम यहाँ अपना बैग लेने आए हैं। हरिराम- आपका बैग अर्नव भैया के कमरे में रखा है। ख़ुशी- जी शुक्रिया हरि भैया। क्या आप उनसे हमारा बैग ले आएंगे ? हरिराम- ख़ुशीजी, कहते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा पर आप ही चले जाइए। बैग में रुपये थे तो ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 17

(17) पुराने जख्म हरे हो गए थे। अपनी गलती का पश्चाताप गरिमा की आँखों से निर्झर झरने सा अविरल रहा था। अतीत के किस्से जब वर्तमान से टकराते है तो इंसान खुद टूटकर बिखर जाता है। आज गरिमा का भी यही हाल था। ख़ुशी भी भावुक हो गई। गालों पर लुढ़क आए मोटे-मोटे आँसूओ को पोछते हुए वह गरिमा से प्रश्न पूछती हैं- खुशी- अम्मा, इन सब के बावजूद आपने हमारा पालनपोषण क्यों किया? हम यहाँ कैसे आए? खुद को संभालते हुए गरिमा ने कहा। गरिमा- महिमा औऱ राजपाल की शादी को मेरे घरवालों ने स्वीकार कर लिया था ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 18

(18) प्रिया (अर्नव की पी०ए०) फ़ाइल लेकर केबिन में आती है। वह अर्नव का इंतजार कर रही होती है वहाँ ख़ुशी भी आ जाती है। प्रिया ख़ुशी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए मुँह बनाकर कहती है- ये बहनजी कौन है ? यहाँ क्या कर रही है। प्रिया (तंजिया लहज़े में)- हे यू ! मैं अर्नव सर की पर्सनल असिस्टेंट हूँ। तुम्हें यहाँ किसने बुलाया है ? ख़ुशी (मुस्कुराते हुए)- हम अर्नवजी के घर काम करते हैं। प्रिया- ओह ! सर्वेन्ट हो। वॉशरूम से बाहर निकलते ही अर्नव प्रिया की बात सुन लेता है। ख़ुशी प्रिया की बात ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 19

(19) देवयानी- जी.. पुष्पा- हमारा बेटा जितेंद्र उन्हीं की कम्पनी में सुपरवाइजर है। देवयानी- जी अच्छी बात है। आकाश से पूछती है- आँटी, ख़ुशीजी कही नजऱ नहीं आ रहीं ? गरिमा- लेट लतीफी करना उसकी आदत है। आती ही होगी। ख़ुशी के आने से पहले ही वहाँ अर्नव आ जाता है। अर्नव को देखकर उसके परिवार के सदस्यों साथ ही अन्य लोगों के चेहरे पर भी हैरानी साफ़ दिखाई देती हैं। लड़के वालों के रिश्तेदारों में कानाफूसी होने लगती है- बहुत रईस परिवार से मित्रता है इनकी तो.. अच्छा खासा दहेज़ मिलेगा। भई, जितेंद्र की तो पाँचो उंगलियां घी ...और पढ़े

20

इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 20

(20) अर्नव मन्दिर को आज बहुत गौर से देख रहा था, उसे आज मन्दिर अलग और नया सा लग था। सभी लोग शिवमन्दिर के अंदर थे। अर्नव सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ हर एक बढ़ते कदम पर ख़ुशी को याद करता है। उधर मन्दिर में ख़ुशी को अहसास होता है कि अर्नव उसके आसपास ही है। ख़ुशी- हम भी कितने पागल है। वो और यहाँ मन्दिर आएंगे हो ही नहीं सकता। ख़ुशी अपने ही मन को झिड़क रही थी कि तभी अर्नव मन्दिर के मुख्य द्वार की चौखट में पैर रखते हुए दिखता है। मन कहता है- देख लो नवाबजादे ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 21

(21) मनोरमा- अर्नव बिटवा आज कौन सा स्पेशल दिन है ? काहे इतना रंगबिरंगाई रहे। आज होली नाही है। मामी, मेरे सारे फॉर्मल कपड़े लॉन्ड्री बॉय ले गया। अर्नव नाश्ते का इंतजार करते हुए डॉयनिंग टेबल को तबले की तरह बजाने लगता है। आकाश नहा-धोकर जब नाश्ते के लिए आता है, तो अर्नव को लाल रंग की शर्ट में डॉयनिंग टेबल बजाते हुए देखकर अपनी आंखे मसलने लगता है। आकाश- भाई, सब ठीक तो है न ? आज ये आपका कौन सा अवतार हैं जो मैंने आज तक कभी नहीं देखा। अंजली- हाँ आकाश, हमें भी पिंच करो न ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 22

(22) हॉल में सत्यनारायण भगवान की कथा की तैयारियां हो चुकी थी। पण्डितजी भी आ गए थे। देवयानी ने करके पायल, मनोरमा व मधुमती को भी कथा में बुलवा लिया था। अर्नव के ऑफिस से जरूरी काम आन पड़ा था। वह अपने कमरे में लेपटॉप के सामने बैठा हुआ ऑनलाइन मीटिंग ले रहा था। नियत समय पर सत्यनारायण भगवान की कथा प्रारंभ हुई। खुशी का मन कथा में भी नहीं लग रहा था। कथा में आए प्रसंग को सुनकर उसके दिमाग ने मन से ज़िरह छेड़ दी। खुशी आज अपने ही मन और बुद्धि के कारण दुःख के सागर ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 23

(23) खुशी का चेहरा खिल उठता है। प्रसन्नता और हर्ष के उन्माद से उसके मन में लड्डू फूटने लगते वह सोचती हैं- ऐसा लग रहा जैसे आज हमारा जन्मदिन है। हर कोई हमें आशीर्वाद ही दे रहा है। लगता है आज का दिन बहुत शुभ है। खुशी शिवजी के सामने जाकर हाथ जोड़े खड़ी हो जाती है। खुशी- हे भोलेनाथ! एक दिन हम बहुत दुःखी थे। अम्मा की उपेक्षा, जीजी के लिए लड़के वालों का घर आना और हमारा जीजी के साथ उस वक़्त न होना.. इन सारी बातों से हमें यही लगा था कि आप हमसे बहुत नाराज़ ...और पढ़े

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 24 - अंतिम भाग

(24) लेडीज़ एण्ड जेंटलमैन, आप सभी रायजादा परिवार की खुशियों का हिस्सा बनें, अपना कीमती वक़्त निकालकर इस जश्न शामिल हुए.. आप सबका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ! मैं आज अपने भाई आकाश के लिए बहुत खुश हूँ, जल्दी ही वह विवाह के बंधन में बंधकर अपने नए जीवन की शुरुआत करेगा। आकाश को देखकर मेरा मन भी बदल गया है और मैंने यह तय किया है कि मैं भी शादी के बंधन में बंध ही जाऊं। अर्नव की बात सुनकर देवयानी, मनोरमा, अंजली, श्याम और आकाश के चेहरे खिल उठते हैं। सब एक-दूसरे को सवालिया नजरों से ...और पढ़े

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