मुख्य मार्ग पर सामने से किसी राजा के महल जैसी भव्य दिखने वाली उस विशाल हवेली के पीछे भी किसी पर्वतीय पर्यटन स्थल जैसा ही शानदार और आकर्षक नजारा था | हर तरफ प्रकृति का मनमोहक सौंदर्य फैला हुआ था | दूर – दूर तक रंग-बिरंगे फूलों और मौसमी फलों से लदे विशाल हरे – भरे पेड़ खड़े थे, तो बीच – बीच में छोटी – बड़ी झड़ियां और घास के मैदान भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में पीछे नहीं हटना चाहते थे | इस हवेली के पीछे, सुरक्षा दीवार से लगी हुई सई नदी बहती थी, जिसके ठंडे पानी को छूकर आने वाली हवा कमाल की थी | इसकी ताजगी बदन को छूते ही सारी थकान छू-मंतर कर देती थी | यहीं एक बड़े और ऊँचे टीले पर जमींदार की शिकारगाह बनी हुई थी, जिसमें सुख सुविधा के सारे साधन मौजूद थे |
Full Novel
विश्रान्ति - 1
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) मुख्य मार्ग पर सामने किसी राजा के महल जैसी भव्य दिखने वाली उस विशाल हवेली के पीछे भी किसी पर्वतीय पर्यटन स्थल जैसा ही शानदार और आकर्षक नजारा था हर तरफ प्रकृति का मनमोहक सौंदर्य फैला हुआ था दूर – दूर तक रंग-बिरंगे फूलों और मौसमी फलों से लदे विशाल हरे – भरे पेड़ खड़े थे, तो बीच – बीच में छोटी – बड़ी झड़ियां और घास के मैदान भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में पीछे नहीं हटना चाहते थे इस ...और पढ़े
विश्रान्ति - 2
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (...और तब, जमींदार के से उपजी घृणा व जुगुप्सा भरी एक रहस्यमय कहानी)-1 रहस्य एक रात का -------------------- वह पूष अर्थात दिसंबर माह की एक बेहद सर्द रात थी। मटमैले बाजरे को पीसकर बने चितकबरे रंग के आटे जैसे रात के माहौल में, पीली – सफ़ेद रंग की उड़ती हुई धुन्ध में, आइसक्रीम जैसी नाजुक, जमती - पिघलती हुई महीन बर्फ से निर्मित घने कुहरे का साम्राज्य दूर – दूर तक फैला हुआ था। हालाँकि आज पूर्णिमा की रात थी और भरे – पूरे ...और पढ़े
विश्रान्ति - 3
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (दुर्गा मौसी मरीज देखने लिये रात - बि- रात और दूर – दराज तक भी चली जाती थी) - 2 मरीज देखने की एवज में दुर्गा मौसी किसी से मुँह खोलकर कुछ नहीं माँगती थी। लेकिन सक्षम लोग उन्हें सम्मान और उपहार के अलावा यथाशक्ति धनराशि मेहनताना भी दे देते थे। इससे मौसी को कुछ नकद आमदनी भी हो जाती थी, जो लगातार बढ़ती मंहगाई में घर चलाने के काम आती थी। हम कह सकते हैं कि समाज सेवा के साथ ही यह उनकी ...और पढ़े
विश्रान्ति - 4
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (उस रहस्यमय व्यक्ति की से गाँव के कुत्ते व सियार भी अजीब से बेचैन थे) -1 - “हूँ...., तभी तो मैं सोचूँ कि मुझे ऐसा कोई नाम ध्यान में क्यों नहीं आ रहा है?” दुर्गा मौसी ने कुछ संतुष्टि की साँसें ली। लेकिन वह अब भी जैसे कुछ याद करने का ही प्रयास कर रही थी इसलिए आगन्तुक युवक उन्हें फिर से जल्दियाते हुए बोला – “सोच - विचार में समय न गँवाइए मौसी ! जल्दी चलिए , मैं बैलगाड़ी लेकर आया हूँ। ...और पढ़े
विश्रान्ति - 5
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (दुर्गा मौसी को आज के इस वातावरण में पेड़ और पंछी भी बड़े रहस्यमय लग रहे थे)-4 आगे उनकी देखा – सुनी रास्ते में मिलने वाले कुछ अन्य जानवर भी असमय जागते जा रहे थे और सब के सब चिड़चिड़ाकर अजीब सी आवाज में भौंकते- गुर्राते या खौंखियाते इधर से उधर भागते चले जा रहे हों। गाँव के वफादार चौकीदार कुत्तों व अन्य जंगली जानवरों की इस कुसमय भौंकने या चीखने की आवाजों से घबरा कर उस बरगद पर चमगादड़ जैसे कुछ अन्य पक्षियों ...और पढ़े
विश्रान्ति - 6
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (बूढ़ा कह रहा था, हूँ ठाकुर मंगल सिंह")-5 मौसी को वह रहस्यमय साये जैसा व्यक्ति बूढ़ा इसलिये लगा क्योंकि उसके चेहरे पर सफ़ेद कोहरे जैसी लंबी - लंबी घनी मूँछें व दाढ़ी लटकती हुई साफ दिख रही थी । लेकिन उसके भी चेहरे की रंगत शायद साँवली ही रही होगी या फिर हवेली की छाया में पड़ने वाले झापक अँधेरे की वजह से दुर्गा मौसी को ऐसा लग रहा था । फिर दुर्गा को महसूस हुआ कि वह भी पूरा काला परछाईं जैसा ही ...और पढ़े
विश्रान्ति - 7
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (दुर्गा ने देखा, जच्चा से कराह रही थी) -6 दुर्गा ने अनुमान लगाया कि शायद एक बड़े घर की सम्मानित बहू होने के कारण मर्यादावश वह अपनी चीखें दबा ले रही थी | दर्द को बुरी तरह पीने या बर्दाश्त करने की सफल – असफल कोशिश में वह लगातार हाथ - पाँव भी पटक रही थी। दुर्गा मौसी के लिये उसकी दर्द की अधिकता का अनुमान लगाना बिलकुल भी मुश्किल नहीं था | उस जच्चा का पेट गर्भावस्था के कारण फूला हुआ दिखाई दे ...और पढ़े
विश्रान्ति - 8
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) ("ये लो बेटी"- बूढ़े ढेरों चमचमाते हुए चाँदी के सिक्के दुर्गा मौसी के आंचल में उड़ेल दिये)-7 - “जा बेटा ! दुर्गा मौसी को उसके घर तक वापस छोड़ दे। आधी रात बीत चुकी है।” बूढ़े ने चटपट बिना किसी भूमिका के बेटे को आवाज लगाते हुए कहा। जैसे दुर्गा मौसी को जल्दी से जल्दी वहाँ से विदा कर देना अथवा भगाना चाह रहा हो। ……और फिर दुर्गा मौसी की ओर वापस घूमकर बोला - “....... और यह लो दुर्गा ! मेरी ओर से ...और पढ़े
विश्रान्ति - 9
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (दीपू तो दुर्गा मौसी प्रतीक्षा ही कर रहा था, दरवाजा खटकते ही बाहर निकाल आया)-9 दुर्गा पहले तो बेटे को प्यार से डाँटते हुए बोली - “अरे, चुप कर बावले ! इतनी सर्दी में किसी को प्यास भी लगती है क्या ?” फिर धीरे से कहने लगी – “अच्छा ले ही आ, इस बार तो उस घर में किसी ने पानी तक को नहीं पूछा |” दीपू ने कमरे में ढिबरी जला दी थी | चारों ओर हल्के उजाले में सब कुछ नजर आने ...और पढ़े
विश्रान्ति - 10
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) ( गाड़ीवान ने दुर्गा से कहा - "शायद आप उस खंडहर हवेली की बात कर रही हैं" ) -10 - “अरे दुर्गा मौसी ! मैं सारी बात समझ गया | लो अब तुम भी सुनो | वह सामने खंडहर हुए विशाल भवन और उसका मलबा देख रही हो न ?” - “हाँ – हाँ” “यही वो पुरानी हवेली थी, जो आपके ठीक सामने बाएँ हाथ के रास्ते पर, इस सड़क से सिर्फ पाँच सौ गज की दूरी पर है। हम इस समय ठीक उसी ...और पढ़े
विश्रान्ति - 11 - अंतिम भाग
विश्रान्ति (‘रहस्य एक रात का’A NIGHT OF HORROR) अरविन्द कुमार ‘साहू’ विश्रान्ति (The horror night) (दुर्गा मौसी द्वारा उन के कारण देखा गया, दीपू की शादी का सपना टूट गया) -11 न पड़ जाएँ। या खुद दुर्गा मौसी का भी हाल ठाकुर मंगल सिंह के परिवार जैसा न हो जाये ? यह सोचना ही था कि उसने सारे सिक्के बड़ी निर्ममता से समेटे और धुंधलके में ही पास के मंदिर में जाकर, चुपचाप उसके दान पात्र में डाल आयी। ऐसा करते हुए उसे किसी ने भी नहीं देखा था। पुजारी ने भी नहीं | ......और घर लौटने पर उसके ...और पढ़े