"सुर"
CHAPTER-13
A Story By
JHANVI CHOPDA
Disclaimer
ALL CHARECTERS AND EVENT DEPICTED IN THIS STORY IS FICTITIOUS.
ANY SIMILARITY ANY PERSON LIVING OR DEAD IS MEARLY COINCIDENCE.
इस वार्ता के सभी पात्र काल्पनिक है,और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई संबध नहीं है | हमारा मुख्य उदेश्य हमारे वांचकमित्रो को मनोंरजन करना है |
आगे आपने देखा,
दादू के हर सवाल का जवाब परवेज़ ने अपने अंदाज़ में दिया। और इस बहाने पायल के पास रुकने की मंजूरी भी ले ली। वो पायल का ख्याल रखना तो चाहता था लेकिन अपनी अकड़ से ! जब दोनों के बीच में तकरार चल रही थी, जुबेर वहाँ जा पहोंचा। और अब देखते है, की उस पियक्कड़ ने आगे क्या किया।
'अकेला दूध तो सेहत के लिए अच्छा ही होता है, लेकिन पनीर बनाने के लिए नींबू की जरुरत पड़ती है, दोस्त !' _जुबेर बड़बड़ा रहा था।
उसने पि रखी थी। जब परवेज़ और पायल के बीच में प्यार की कलियाँ खिल रही थी, तभी ये भंवरा (जुबेर) भू -भू करते आया। पहले तो वो खिड़की से देखता रहा, की उन दोनों के बीच में हो क्या रहा है। और तब तक देखता रहा, की जब तक परवेज़ ने पायल को अपने दोनों हाथों पे उठा के उसके कमरे तक पहोंचा ना दिया। और क्यों ना देखे...! जब की उसे फिल्मों वाला एंटरटेनमेंट मुफ्त में मिल रहा था। वैसे उन दोनों के बीच ऐसा खास कुछ हुआ नहीं था। सिर्फ दोनों की तकरार एक जबरदस्त ख़ामोशी में बदल गई...जिस ख़ामोशी में लब्ज़ थे, जज्बात थे, एक-दूसरे के सीने से टकराने वाली साँसे थी, अनकही कुछ बातें थी, इश्क की सौगात थी...और कभी ना खत्म होने वाली रात थी। जुबेर उस आश में खड़ा था, की ये प्योर पिक्चर अभी ब्लू पिक्चर में कन्वर्ट हो जाएगी। लेकिन इस केस में तो ये सोचना भी टाइम पास करने जैसा था। और उस चाहत में उसने कितनी पि ली, उसका ख्याल ही नहीं रहा। जब ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो जुबेर अपने नशे के मारे दरवाजे पर गिर पड़ा। गिरने की आवाज़ सुन कर परवेज़ बहार आया, अपने दोस्त को नशे में देखकर उसने उसे संभाला !
'यहाँ एक की बेहोशी संभाली नहीं जाती मुझसे... ऊपर से तू भी !' _परवेज़ उसे बेड पे लेटाते हुए बोला।
'इसे बेहोशी नहीं, मदहोसि कहते है, मेरे भाई ! बैठ यहाँ... बैठ !' _उसने परवेज़ का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर बिठाया।
'तू दूध जैसा सफ़ेद है ! और वो नींबू जैसी कड़क ! लेकिन...अगर...प्यार का पनीर बनाना है... तो...तो... तुम दोनों को मिलना होगा !!!' _जुबेर की जुबान लड़खड़ा रही थी।
उसकी इस बात पर परवेज़ ने जोर से एक मुक्का उसके मुँह पर मारकर उसे सुला दिया। अब पूरे घर में कोई नहीं था, उसे परेशान करने वाला ! लेकिन तन्हाई में उसका साथ देने वाली एक थी, जिसका नाम था_सिगरेट !!! उसने अपने अंदाज़ में, सिगरेट जलाई...और उसके धुँए को हवा से मिलाने, वो घर के बाहर निकला। बिना मतलब के टहलने की उसकी आदत नहीं थी, लेकिन मतलब वाला कुछ करने की आज कोई वजह भी नहीं थी ! उसके छूने से शर्मा रही मुलायम घास पर उसने चलना शुरू किया। रातरानी की तरबत कर देने वाली खुश्बू उसे अपनी ओर खींच रही थी। कुछ पंछी अपनी किलकिलाहट से उसे बुला रहे थे। सामने खड़े पैड के नीचे एक बेंच थी, धीमी जल रही लाइट में उसे वहाँ कोई बैठा हुआ दिखा। पर उसकी शक्ल नहीं दिखी, क्योंकि बेंच उलटी थी। सफ़ेद कपड़ो के साथ बिखरे हुए काले बाल ! एक पल के लिए परवेज़ को कुछ समज में नहीं आया। घर में पायल, उसके और जुबेर के अलावा और कोई तो नहीं था। फिर यहाँ अचानक से कौन आ टपका ! उसे उल्लु की आवाज़ सुनाई दी...हवा का एक जोंका आकर ज़मीन से टकराया और पत्ते उड़ने लगे। अचानक, परवेज़ को जुबेर की बात याद आई की, भूतिया घर है, ये ! हलाकि उसने मज़ाक करि थी, लेकिन अभी का वातावरण इस बात के सच होने की गवाही देने जा रहा था। परवेज़ के पैरों ने उसे मंजूरी दी, उसकी धड़कनों ने कहा कि, "जा, जा के देख कौन है, वहाँ ?"
वो दबे पाँव आगे बढ़ा... जितना नज़दीक जाता गया, उसे किसी अपने के होने का अहेसास हुआ ! वो सीधा जा के खड़ा रहा उस शख्स के सामने.....और ये कोई भूतनी नहीं, सफ़ेद कपड़ो में ढंकी परी थी !
'पायल !!!' _उसके मुँह से निकल गया।
पायल ने कोई जवाब नहीं दिया, उसकी आँखे बंद थी...बाल बिखरे हुए थे...पेड़ पे टंगे बल्ब की रोशनी उसके चेहरे को चमका रही थी। परवेज़ उसकी और जुंका ! उसने इससे पहले पायल को इतना खूबसूरत कभी नहीं देखा था। पायल की काली भ्र्मर से पानी की एक बूंद पैदा हुई...पलकों से अपना रास्ता करते हुए उसके गोरे गालों पर दौड़ने लगी...पता नहीं उसकी मंज़िल कहाँ थी, लेकिन रास्ता साफ था। वो बूंद अकेली नहीं थी, उसके साथ परवेज़ की नज़रे भी दौड़ रही थी। और उसकी नज़रों ने देखा की, हॉस्पिटल के उन सफ़ेद कपड़ो के धागे खुल चुके थे। अगर वो कपड़ा थोड़ा सा सरक जाता तो परवेज़ को वो दिख जाता जो देखने का वख्त शायद अभी नहीं था। पानी की वो बूंद उन वादियों में जा गिरे उसके पहले ही परवेज़ की उँगलियों ने हरकत कि, और उसे रोक लिया। पायल की गर्दन से जांक रही नब्ज़ों ने परवेज़ की उंगलियों में आग लगाई !...और उसकी गरमाहट वो महसूस कर पाया। अचानक परवेज़ अपनी दीवानगी से बाहर निकला और उसे ख्याल आया की, पायल का बदन हद से ज्यादा गर्म हो चूका था। उसके मुँह से आने वाली बदबू को वो पहेचान गया।
'पायल ने शराब पी है !!!' _उसके मुँह से निकल गया।
जिस पानी की बूंद को जरियाँ बनाकर वो पायल के बदन की लहेजत ले रहा था वो तो पसीना था। ज्यादा पिने की वजह से पायल को बुखार चढ़ा था...और वो बुखार उस हद तक बढ़ गया कि, वो बेहोश हो गई थी। परवेज़ ने सारी कोशिसे करि की वो होश में आए...उसके हाथ मले...लेकिन कोई फायदा नहीं था। सोचने जितना वख्त नहीं था, उसने तुरंत डॉक्टर राव को फ़ोन कर के बुलाया।
डॉक्टर राव पायल के नज़दीक गए और मुँह पीछे की ओर मोड़ कर बोले, 'वैसे तो तुम्हारे हाथों ने आज तक दुसरो के हाथों पे रस्सियां ही बांधी है, लेकिन आज अगर कुछ धागे बांध दोंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी !'
परवेज़ ने पायल की ओर देखा और उसे याद आया की उसके कपड़ो के धागे खुल चुके थे। राव पीछे मुड़ कर ही खड़ा रहा और परवेज़ ने आज वो भी किया जिसकी मंजूरी शायद पायल से लेनी चाहिए थी। राव ने चेक उप किया...कागज़ में कुछ लिखा और बिना बोले खड़ा हुआ।
'क्या हुआ डॉक्टर ? कुछ तो बोलिये !'
'तुम्हे पहले ही वार्निंग दी थी, की तुम इसे नहीं संभाल सकते। तुम्हे सीधी बात समझ में क्यों नहीं आती ? ये लड़की तुम्हारे धंधे का हिस्सा नहीं है ! और इसकी हालात बिगड़ती जा रही है। कमसेकम इस चीज़ का तो ख्याल रखो !'
'डॉक्टर, मैं इसे अपने धंधे का हिस्सा बनाना भी नहीं चाहता। जो गलती की है, वो सिर्फ सुधारने की कोशिस कर रहा हूँ !'
'तो सुधरी !?'
डॉक्टर के इस सवाल का जवाब परवेज़ के पास नहीं था। वो मुँह लटका के खड़ा रहा।
'चलो छोडो वो सब ! मुझे सिर्फ इतना बताओ की, इस घर में शराब आई कहाँ से ? क्या तुम थोड़े दिन भी शराब से दूर नहीं रह सकते ?'
'मैंने नहीं......!'
'सफाई देने बंद करो, परवेज़ !' _डॉक्टर चिल्लाया।
'आप प्लीज् शांत हो जाओ, और मुझे ये बताओ की पायल को हुआ क्या है ?'
'लिमिट से बाहर पि रखी है, इसने...और वो भी ऐसी हालत में ! ब्लड प्रेशर लॉ है। अगर सुबह होने तक ठीक नहीँ हुआ तो प्रॉब्लम हो सकती है। मैं कुछ इंजेक्शन्स दे रहा हूँ, ताकि प्रेशर कण्ट्रोल में आ सके...और मैं रात भर यहीँ रुकूँगा !'
'थैंक यू , डॉक्टर !'
'मैं तुम्हारी वजह से नहीं रुक रहा, इस लिए रुक रहा हूँ ताकि सुबह इस मासूम चेहरे के पीछे छिपे राज़ को जान सकूँ !'
'क्या मतलब ?'
'इसकी बॉडी ने जिस तरह से रियेक्ट किया है, उससे लगता है कि इसने पहेली बार पि है। और पहेली बार में उसने आउट ऑफ लिमिटेशन पि ली ! इसका मतलब है, कोई बात तो थी जिससे वो परेशान थी। कोई ऐसी बात की, जो उसके दिलो-ओ-दिमाग में घर कर के बैठी है। अगर वो बात ये बाहर नहीं निकल पाई तो उसके लिए रिस्की होने वाला है !'
To be continued...
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