सूर - 12 Jhanvi chopda द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सूर - 12

"सुर"

CHAPTER-12

JHANVI CHOPDA

Disclaimer

ALL CHARECTERS AND EVENT DEPICTED IN THIS STORY IS FICTITIOUS.

ANY SIMILARITY ANY PERSON LIVING OR DEAD IS MEARLY COINCIDENCE.

इस वार्ता के सभी पात्र काल्पनिक है,और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई संबध नहीं है | हमारा मुख्य उदेश्य हमारे वांचकमित्रो को मनोंरजन करना है |

आगे आपने देखा,

पायल का अचानक से बेहोश हो जाना, ये खतरे की घंटी थी। वो पहले से ही पूरी तरह से ठीक नहीं थी और उसे घर लाया गया। उसकी इतनी खराब हालत होते हुए भी, उसका और परवेज़ का एक साथ घर में रहना, यही बात साबित करता है कि, एक कहानी जनम लेने वाली है। हाँ, कहानी तो है, लेकिन वो प्रेम कहानी होगी या कुछ और !!!

अब आगे,

उतने में अमोल और अयान भी आ गए और साथ में घर साफ करने के लिए दो आदमी भी ले आए।

अयान ने इशारा करते ही वो दोनों आदमी अपने काम पे लग गए।

'सांगले काई, भाऊ ! मज़ा आ रहा है, ना ?' _अमोल ने पूछा।

'मज़ा तो बड़ा आ रहा है, बेटा ! पहले तू ये बता, की ये भाड़े के ट्टुओं को क्यों उठा लाया ? हमारे घर की कामवाली बाई को नहीं ला सकता था, क्या ?' _जुबेर ने अमोल के कंधे पर हाथ रख कर कहा।

'उसे लाते तो यहाँ का सारा लाइव टेलीकास्ट दादू तक पहोंचता !... मैं क्या बोलती, साहेब ! मेरे को तो, विश्वास ही च नहीं हो रहा था...देवा रे देवा, परवेज़ भाऊ, लड़की के चक्कर में कैसे पड़ गए !' _अयान बाई की एक्टिंग करते हुए बोला। और सब हँस पड़े लेकिन पायल के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे।

'अच्छा, ये बता अमोल, की खिचड़ी और सूप बनाना आता है, तेरे को ?' _जुबेर ने पूछा।

'हाँ, भाई ! माला सांगला येता अहेत !'

'अच्छा, तुजे सब आता है ? तो फिर जा...किचन में सब कुछ है, देख ले कुछ मिस तो नहीं हो रहा...रात को तुजे बनाना है !'_परवेज़ ने कहा।

'ठीक है, फिर !' _बोल के अमोल किचन में गया। इसने इधर-उधर सब कुछ ढूंढा और फिर वापिस आया।

'क्या हुआ ?' _जुबेर ने पूछा।

'भाई, अंडा तो है ही नहीं !'

'खिचड़ी में कौनसा अंडा चाहिए होता है, बे !'

'जी, न.....नई होता !!?.....मुझे क्या पता, आपने बचपन से लेकर आमलेट के अलावा कुछ खिलाया है, क्या !? एक बार पिट कर आया था, तब अभी मैंने आपकी गालियाँ ही खाई थी !' _अमोल मुँह टेढ़ा कर के बोला।

सब उसकी और आँखे फाड़ कर देखने लगे। लेकिन पायल इस बार जोर जोर से हँसी ! उसे हँसता हुआ देखकर परवेज़ को सुकून मिला।

'अच्छा सुन, मैं इन दोनों को छोड़ के आता हूँ, और दादू को भी मिल लूंगा ! और हाँ...आते वख्त खाना लेके आऊंगा !' _जुबेर परवेज़ की ओर देखते हुए कहा।

'पायल को बहार का खाना नहीं दे सकते, मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ !' _परवेज़ ने कहा।

जुबेर, अमोल और अयान चले गए।

पायल के चेहरे को खुशनुमा देख कर परवेज़ ने पूछा, 'क्या हुआ ?'

'कुछ नहीं, तुम सब को साथ में देख कर लगता नहीं की तुम गुंडे हो ! कितना मिल ज़ुल के रहते हो ना, तुम सब ! और तुम तो बहोत नसीब वाले हो, हर किसीको फ़िक्र रहती है, तुम्हारी !'

'हाँ, अब मेरा नसीब ही है, की तुम्हारे सामने इस कदर बैठा हूँ ! और वो अच्छा है या बुरा, ये मुझे नहीं पता !_उसने मुस्कुराते हुए कहा।

उस ओर जुबेर दादू के पास जैसे ही पहोंचा की दादू ने सबसे पहला सवाल किया, 'परवेज़ कहाँ है ?'

'वो हॉस्पिटल में है, दादू ! अब किसीको तो पायल के पास रहना पड़ेगा ना !' _जुबेर ने कहा।

'ऐसा तो क्या जादू कर दिया उस लड़की ने की, अपने बाप से भी जुठ बोलना सिख गए !'

जुबेर कुछ नहीं बोल पाया। दादू ने जुबेर का फ़ोन माँगा, और परवेज़ को फ़ोन लगाया । सामने से परवेज़ की आवाज़ आई, 'हाँ बोल, जुबेर। सब ठीक तो है, ना ! दादू कैसे है ?'

'जिसको सामने देख कर मैं साँसे लेता हूं, वो तो किसी और को ज़िन्दगी देने गया है ! तो फिर मैं, ठीक कैसे हो सकता हूँ ।'

'दादू....! कैसे हो आप ?'

दादू कुछ नहीं बोले। उनकी चुप्पी परवेज़ से सही ना गई । वो बोला,

'दादू, कुछ तो बोलो ! नाराज़ हो तो डाँटो...चिल्लाओ...गालियाँ सुनाओ, लेकिन प्लीज खामोश मत रहो !'_परवेज़ की आवाज़ में नर्मी थी।

'घर कब आ रहा है ?' _दादू ने पूछा।

दादू की इस बात जवाब परवेज़ के खुद के पास नहीं था। वो क्या बोलता। वो चुप ही रहा।

'जब तक वो ठीक नहीं हो जाती तब तक, है ना !?' _दादू ने कहा।

'ऐसी बात नहीं है, दादू !'

'परवेज़....!!! तू तो सिर्फ ये जानता है कि, तेरा दिल धड़क रहा है या नहीं। मैं तो तेरी धड़कने तक गिन सकता हूँ !'

'...और मैं ये जानता हूँ की मेरी किन साँसों पे आपकी धड़कन रुक जाएगी ! यकीन मानिये मेरा, आपके खिलाफ मैं साँसे भी नहीं ले सकता !'

'तू जानता है ना, इंशान की जान पानी में गिरने से नहीं जाती, वो तब जाती है, जब उसे तैरना ना आता हो !'

'मुझे सिर्फ तैरना ही नहीं, किनारा करना भी आता है, दादू ! क्योंकि वो आपने सिखाया है। आपको नहीं पता की, आप मुझमें मुझसे भी ज्यादा हो !!!' _परवेज़ ने कहा।

'क्या करना चाहते हो तुम ?' _दादू ने पूछा। इस बार उनकी आवाज़ में प्यार था...वो प्यार, जो की सिर्फ परवेज़ के लिए बना था।

'फ़िलहाल तो सूप और खिचड़ी बनाना चाहता हूँ, जो की मुझे बनाना नहीं आता !'

'उसके लिए सबसे पहले किचन में जाना पड़ता है।' _दादू ने कहा।

परवेज़ खुश होकर किचन में गया। और उसके बाद दादू बोलते गए और परवेज़ बनाता गया। उन दोनों का रिश्ता ही गुलाब जैसा था...काँटे तो चुभते ही थे, लेकिन खुशबू फिर भी बरक़रार रहती थी। दादू ज्यादा देर तक परवेज़ से नाराज़ रह ही नहीं सकते थे और परवेज़ उन्हें मनाना अच्छी तरह से जानता था। वो खून नहीं था उनका, लेकिन हर रिश्ते खून के मोहताज नहीं होते ! कभी कभी नब्ज़ों में जज़्बात भी तो बहने चाहिए !

खाना बनते ही परवेज़ पायल के पास गया। लेकिन उसकी आँख लग गई थी। परवेज़ ने घड़ी में देखा, शाम के आठ बजे थे। उसने सोचा की पायल को सोने देता हूं। वो गार्डन में टहलता रहा उतनी देर में पायल उठ के बाहर आई।

'अरे, तुम्हे बोला था ना, की ऐसे अकेले मत चला करो ! बाहर कैसे आ गई तुम ?'

'अकेले थोड़ी चल रही हूँ, मेरी जूती है ना मेरे साथ !' _पायल ने अपने पैरो के तरफ इशारा करते हुए कहा।

'तुम्हारा कुछ नहीं होने वाला, चलो अंदर !' _परवेज़ उसे हाथ पकड़ कर अंदर ले गया।

'भूख लगी है, मुझे !' _पायल छोटे बच्चे की तरह मुँह बिगाड़ कर बोली।

'तुम दो मिनट बैठो, मैं लेके आता हूँ।'_ये बोल के परवेज़ गरमा गरम सुप लेके आया।

पायल का एक हाथ में फेक्चर था तो दूसरे में चौट ! मतलब पहेली बार परवेज़ किसीको खाना खिलाने वाला था। उसे एक्सप्रेरिएन्से तो नहीं था लेकिन हालात ही हमें एक्सपेरिएन्से सिखाते है। उसने पायल को पहला स्पून पिलाया। और यहाँ पे तो फिल्मों वाले रोमांस के बारे में सोचना भी बेकार है।

'ये गर्म है ! जुबान जल गई मेरी...कभी किसीको खिलाया है, तुमने ! मैं अपने आप से पी लेती हूँ, रहने दो तुम !' _पायल चिल्लाई।

'ठीक है, जो मन में आए वो करो।' _परवेज़ ने बाउल टेबल पे रख दिया और मुँह घुमा के बैठ गया।

पायल ने कोसिस करि, लेकिन उससे नहीं हुआ। लेकिन ये तो पायल थी, ऐसे कैसे छोड़ देती ! उसने दूसरी बार ट्राय कीया और इस बार तो उसके हाथ में जोरो का दर्द हुआ...उसके मुँह से चीख निकल गई, और आँखों से आँसू भी ! परवेज़ उसकी आवाज़ सुनते ही खड़ा हो गया,

'कर ली अपनी मनमानी ? हो गई तस्सली !?'

पायल कुछ बोलने ही जा रही थी की उसने रोका,

'चुप...अब और एक लब्ज़ नहीं, समझी तुम !'

उस सन्नाटे और हवाओं की लहरों के साथ दो अंजान दिलों के बीच प्यार पनप रहा था, लेकिन दोनों की अकड़ ने कभी उनको एकदूसरे की जरूरत महसूस ही नहीं होने दी ! कभी कभी जिस चेहरे की खोज में हम ज़िन्दगी के कई साल गवां देते है, वो चेहरा हमारे आसपास ही होता है, शायद उतने करीब की, उसकी आहट तक ना सुनाई दे !

खैर...यहाँ तो बात थी, इन दोनों की ! ये बात तो आप भी जानते हो की, अब इस कहानी में प्यार का रंग बिखरने वाला है, लेकिन क्या ये एक्सट्राऑर्डिनरी इंशानो का प्यार ऑर्डिनरी होगा !!? या फिर ये कोई बडे धमाके के पहले की शांति है !!!

To be continued...

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