सुर - 6 Jhanvi chopda द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सुर - 6

"सुर"

CHAPTER-06

JHANVI CHOPDA

आगे आपने देखा,

दादू के घर पे रात को हमला होता है। उस दंगल के बिच में परवेज़ को एक लड़की मिलती है और परवेज़ की लापरवाही की वजह से वो तारा को छुड़ा कर ले जाती है। उसका छलकता हुआ रूप परवेज़ को चकमा देने में कामयाब रहता है।

अब आगे,

सुबह होते ही दादू को पता चलता है, कि रात को क्या कुछ हो गया। परवेज़ रात भर यही सोचता रहा की, 'आखिर उसने कुछ किया क्यों नहीँ ! क्यों जाने दिया उस लड़की को युहीं...? कौन होगी वो...? किसके लिए काम करती होगी...? क्या खूबसूरत और मासूम दिखने वाली लड़कियां भी ऐसे काम करती है...? क्या मेरे धमकी देने के बाद भी वो फिर से यहाँ आएगी...? लेकिन वो यहाँ क्यों आएगी, उसने तो कर दिया अपना काम !! '_इन सारे सवालों के जवाब अपने आप में ढूंढते हुए कब उसकी आँख लग गई, पता ही नहीं चला और वो गार्डन के जुले पर ही सो गया !

दादू और बाकी सब बहार आए। अमोल ने घबराते हुए दादू के कहने पर परवेज़ पर पानी की पूरी बाल्दी गिरा दी।

'अबे, तेरी माँ की तो....!'_दादू को देख कर, 'दादू आप !!?'

'भाई, कोई मुर्गा मंगवाके बांग लगवाओ...जनाब की सुबह नहीं हुई अभी !'

'दादू, मुर्गा तो नहीं मिल सकता...मटन है, लाउ !?' _अयान बोला।

'हाँ, फिर उसके ऊपर "कुकड़ेकुक..!" वाला टेपरिकॉर्डर लगाना...अशली मुर्गे वाली फीलिंग आएगी।' _जुबेर के बोलते ही सब हँस पड़े।

'खुदा भी रेहमत बर्षा रहा है, आज कल ! मेरे बच्चे नई नई चीज़े सिख रहे है। कोई कविताए लिख रहा है...कोई बेहूदा बातें कर रहा है...और कोई उसी घटियां बातों पे चुटकुले बना रहा है। जंक लग गई है मेरे हथियारों को...लगता है, फिर घिसना पड़ेगा !'

दादू कम बोलेते थे, लेकिन उनके एक एक लब्ज़ तोल के बाहर आते थे। दादू की कोई भी बात बिना मतलब की नहीं होती थी। उनकी हर बात में गहराई होती थी और उनकी बात के खिलाफ बोलना मतलब उनकी तौहीन करना...और मुसीबत को बुलावा देना !

कोई कुछ नहीं बोल पाया। सब मुँह लटका के खड़े रहे और परवेज़ अपना हाथ सर पे रख के बैठा रहा।

'माथा पटकने से किस्मत बदल नहीं जाती ! और अगर किस्मत को बदलना हो तो जाग कर काम करना पड़ता है। लेकिन आप को तो कल कोई सुला के ही चला गया !'

'दादू, पहली बार कोई गलती हुई है, मुझसे !'

'गलती पहली बार हो या आखिरी बार, गलती तो गलती होती है। और फिर गलती को गुनाह बनते देर नहीं लगती, परवेज़ !' _इस बार दादू की आवाज में वजन था।

'जब गुनाह करू तो सज़ा दे देना, और जो कमी मुझसे रही है उसे पूरा भी मैं ही करूँगा !' _इतना बोल के परवेज़ घर के अंदर जाने लगा।

पीछे से दादू की आवाज़ परवेज़ के कानों तक पड़ी, 'कैसे भरोगे अपनी गलती का हर्जाना ?'

परवेज़ दादू की ओर थोड़ा मुड़कर बोला, 'जो तारा को यहाँ से ले गई, वो ही उसे यहाँ वापिस भी लाएगी !'

परवेज़ तो इतना बोल के चला गया लेकिन यहाँ सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।

'तारा को यहाँ से ले गई !!! भाई, ये "गई" कौन है ? रात को तो सब "गया" आए थे !' _अमोल कंफ्यूज़न में था।

'क्या बकवास कर रहा है !?' _जुबेर भी कंफ्यूज़न में !

'मेरा मतलब है, ये लड़की कहाँ से बिच में आ गई !?'

अयान ने दादू की ओर देखकर अमोल और जुबेर को चुप रहने का इशारा किया।

'दादू, आप.....!'

जुबेर कुछ भी बोले उसके पहले दादू उड़ती हुई तितली की ओर देख कर बोले, 'जुबेर, जरा उस खूबसूरत तितली को पकड़ के लाना !'

पुरे दस मिनट तक कोशिस करने पर वो जुबेर के हाथ आई, उसने दादू की ओर देखा...

'बड़ी मेहनत से पकड़ी है, उसे संभल के रखना !'

जुबेर ने कोशिस करी लेकिन वो फिर से उड़ गई।

'नहीं संभाल पाए !? वो तो चली गई लेकिन उसकी खूबसूरती का रंग तुम्हारे हाथों में छोड़ती गई !' _इतना बोल के दादू भी चले गए।

जुबेर ने अपने हाथों में झांका तो पता चला की, तितली का रंग उसके हाथों पे लगा था। दादू की इस बात का मतलब जुबेर के अलावा कोई नहीं समझ पाया। वो जान गया कि, कुछ इसी तरह परवेज़ की ज़िंदगी में कोई आया है, महेनत करने पर भी परवेज़ उसे सम्भाल नहीँ पाएगा और जब वो चली जाएगी तब भी अपने रंग छोड़ती जाएगी...और सफ़ेद कफ़न जैसी उसकी जिंदगी में रंगों के लिए कोई जगह नहीं थी।

जुबेर अपने कमरे की हालत देख कर चिल्लाया, 'खंडर बना के रखा है मेरे कमरे को, साले तूने ! ये घासफूस क्यूँ डाल रखी है !? फ़िल्मी किडनेपिंग वाली फीलिंग दे रहा था क्या उसे !? और ये क्या...! मेरा बेड कहाँ पे है ? ये मेरा रूम है या भंगार वाले का अड्डा !'

'भाई तू जा ना, मैं कर देता हूँ साफ !' _परवेज़ ने हाथ जोड़ कर कहा।

'तू पहले अपने आप को साफ कर...गटर लग रहा है पूरा !' _जुबेर तो भड़ास निकाल के चला गया।

परवेज़ ने अपना भीगा हुआ शर्ट निकाला...भीगे हुए उसके शरीर पर पानी की बुँदे चमक रही थी। लोहे सा कसा हुआ उसका शरीर...बाहों पर चमड़ी के बाहर से झांकने वाली नसे ! दादू की कामियाबी को बयां करने वाले निशान ! परवेज़ ने किसीके आने की आहट सुनी...

'तू फिर से आ गई ! बोला था ना कल तुजे की, मार डालूँगा...! डर नहीं लगा तुजे ? ओर इतनी सिक्योरिटी होने के बावजूद तू आ कैसे जाती है, कहीं भूतनी तो नहीं है !'

'इतनी खूबसूरत भूतनी देखी है, क्या तुमने कभी !?'

'किसने बोला तुम खूबसूरत हो ?'

'तुम्हारी आँखों ने...!' _वो परवेज़ के इतनी करीब जा कर बोली की उसकी साँसे परवेज़ का सीना महसूस कर पा रहा था। वो थम गया वहीँ पे...! बेताब कर देने वाली खुश्बू का लुफ्त वो पहली बार उठा रहा था...और वो उस महक में इतना खो गया कि उसे होश ही ना रहा, कब उसकी पिस्तौल सरक कर किसी ओर हाथों में चली गई।

'चलाना आता है, पहले !?' _होश में आते ही वो बोला।

'हाँ, आता है। पता है ना, मैं कुछ भी कर सकती हूँ !'

'अच्छा ? फिर दिखाओ जरा...कैसे चलाते है !?'

'में आधे नंगे आदमी पर गोली नहीं चलाती !'

'ठीक है, फिर में पूरा नंगा हो जाता हूँ !'

'अरे...अरे...अरे, रुको ! शर्म ही नहीं है तुम्हें तो ! एक लड़की के सामने...!?'

'शर्म मुझे देख कर शर्माती है। और फिर शर्म को कपड़े भी पहनाओ ना, तब भी वो तुम्हारे जितनी बेशर्म नहीं दिखेंगी !...मना करने पर भी मुँह उठा के चली आई ।'

'देखो, में युहीं नहीं आई यहाँ पे ! मेरी एक चीज़ छूट गई है वो लेने आई हूँ...और मैं तुम्हें जुबान देती हूँ, की वो मिलने पर मैं यहाँ से चली जाऊंगी और फिर कभी वापिस नहीं आऊँगी।' _उसने पिस्तौल परवेज़ की ओर उछालते हुए कहा।

'मेरे पास खुद की जुबान है, तुम्हारी लेके क्या करूँ !.....अब जो करने आई हो वो जल्दी से करो और निकलो यहाँ से !'

वो अपनी खोई हुई चीज़ ढूंढने लगी। परवेज़ अगर उसकी ओर देखता तो अपने आप को भूल जाता, इस लिए वो उलटी तरफ मुड़ के खड़ा रहा। पुरे 15 मिनट तक खोजने के बाद उसे अपनी चीज़ मिल ही गई !

'फाइनली, मिल गया। i should leave now and thanks to you.'

'i am not going to mercy on u for third time, go and never get back.'

'ओ...तेरी...!! तुम्हे इंग्लिश भी आती है !?'

'मुझे मवाली भी आती है, सुनाऊ !?'

वो मुँह टेढ़ा कर कर के कुछ भी बोले बिना चलने लगी। जैसे ही उसके पाँव उठे की परवेज़ की साँसे रुक गई ! उसे हिला देने वाले वही सुर उसने फिर से सुने...वही सुर जिसने उसको कलाकार बनाया...वही सुर जिसकी वजह से वो दादू से भी भीड़ गया !

वो जट से उस लड़की की ओर मुड़ा, 'रुको, नाम क्या है, तुम्हारा !?'

वो लड़की मन में ही मुस्कुराई और बोली, 'पायल...!!!'

To be continued...

Hello, my enthusiastic readers ! You can get suspensive creation at the end of every chapter. I hope, you like the flow of story very well. If you would like to read remaining story, please left your comment and give me five stars as well as you can add me in your favorite catagory.

Keep in touch to get regular updates of "Sur" and my first exclusive upcoming novel "Hole in the heart" as a paperback. Thank you.

E-mail address : janvichopda8369@gmail.com

Instagram id : jhanvi_chopda

Facebook page : Jhanvi chopda (writing essence)