सूर - 7 Jhanvi chopda द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सूर - 7

"सुर"

CHAPTER-07

JHANVI CHOPDA

आगे आपने देखा,

परवेज़ अपना काम पहेली बार चुकता है वो भी किसी लड़की की वजह से ! ये बात दादू और जुबेर को रास नहीं आती। परवेज़ पहेली बार लड़की को ये कहकर छोड़ देता है, की कभी वापिस मत आना। लेकिन वो फिरसे लौटती है अपनी छूटी हुई चीज़ लेने और परवेज़ उसे रोक नहीं पाता क्योंकि उसका नाम सुनकर वो खुद रुक सा जाता है।

अब आगे,

'तुम्हारी कौनसी चीज़ यहाँ छूट गई थी ?' _परवेज़ ने पायल से पूछा।

'पायल का पायल खो गया था, उसीको ढूंढने आई थी।' _उसने अपने बाएँ पाँव की ओर इशारा करते हुए कहा।

'उस दिन दंगे में तुम ही थी ना ! तारा के साथ ?'

'हाँ, मैं ही थी। अब तुम उस बात के लिए भी मुझे मारने की धमकी दो उससे पहले मैं चली जाती हूँ। जय रामजी की !' _पायल ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर कहा।

परवेज़ ने पीछे से उसका हाथ पकड़ा और उसे रोकते हुए कहा, 'तुम तो वो हिरनी हो, जो शेर(परवेज़) के मुँह से शिकार(तारा) छीन कर ले गई है, तुम्हे ऐसे ही नहीं जाने दूँगा !'

'तो वो शेर की गलती। शिकार करने के बाद सोना नहीँ चाहिए !!!'

परवेज़ कैसे समजाता की वो सोया नहीं, कस्तूरी की खुश्बू में खोया था।

'...और ये क्या !? एक पैर में पायल पहननी की नई फैशन आई है, क्या !?'

'नहीं, बचपन से मेरे पास ये एक ही है !'_पायल ने उदास हो कर कहा।

'जरा, निकालो तो इसे !' _परवेज़ ने कहा।

'जरा कैसे निकालते है, चाहिए तो पूरा निकाल दूँ !' _पायल ने अपना पायल निकलते हुए कहा।

'ये कहाँ से आया तुम्हारे पास !?' _परवेज़ घुँघरू की ओर घूर घूर कर देखने लगा।

'कहाँ से आया मतलब ! ये कोई बारिश थोड़ी है जो आसमान से गिरेगा, मेरी माँ ने दिया है।'

'ये हो ही नहीं सकता !'

'क्यूँ नहीं हो सकता, भला !? माँ मेरी, पायल उसका, देना उसे था और तकलीफ तुम्हे क्यों हो रही है !?'

'जुबेर....!' _परवेज़ इतनी जोर से चिल्लाया की पायल ने तो अपने कानों के आड़े दो हाथ ही रख दिए।

जुबेर दौड़ कर अपने कमरे में आया और पायल को देख कर चौंक उठा।

'ये लड़की कौन है, परवेज़ ? और यहाँ क्या कर रही है ?'

'वो सब बाद में, पहले तू मेरा वो पुराना डिब्बा लेकर आ ! प्लीज़, जल्दी से !' _परवेज़ बहोत बेचेन था।

'अब मुझे अपना पायल वापिस दो, फिर तुम जब चाहो अपने पुराने डिब्बे से जिन निकालते रहना। मुझे जाना है, यहाँ से !' _पायल ने कहा।

'श्श्श्श...! चुप...एक दम चुप ! तुम कहीं नहीं जा रही, चुप चाप खड़ी रहो।'

जुबेर जल्दी से वो पुराना डिब्बा लेकर आया। परवेज़ ने जपट कर वो खोला और ठीक वैसा ही घुँघरू निकाला जैसा की पायल ने पहना था।

'हो..ओ..ओ..ओ ! मैंने सोचा था तुम सिर्फ गुंडे हो, तुम तो चोर भी निकले !'

'शट उप ! ये मेरी माँ की आखिरी निशानी है।' _परवेज़ ने कहा।

'क्या..!!!' _जुबेर और पायल दोनों ही परवेज़ के सामने देख कर एक साथ बोल पड़े।

'इसका मतलब की तुम दोनों भाई-बहन हो !?' _जुबेर ने मुस्कुराते हुए कहा।

'ऐसे थोड़ी हो सकता है। जरूर इसकी माँ ने मेरी माँ से चुराया होगा !'

'बकवास बंद करो अपनी और दफ़ा हो जाओ यहाँ से !' _परवेज़ ने गुस्से में आकर कह दिया।

पायल मुँह टेढ़ा कर के जाने लगी, परवेज़ ने पीछे से कहा, '...और याद रखना, लांघते वख्त तो ये देहलीज़ है, आते वख्त दिवार बन जाएगी !'

'इसी दिवार से कूद के आई थी मैं और तुम्हारी जीत(तारा) को जित कर ले गई थी। अपनी नज़रो को जरा शातिर बनाईए जनाब, आपके आँगन की धूल पे मेरे पैरों के निशान पड़ चुके है।' _इतना बोल के पायल चली गई।

इसके पहले की जुबेर को परवेज़ से कुछ भी पूछने का वख्त मिले, अयान ने आकर कहा, 'ख़ुफ़िया बातें जेल में कर लेना, इस बार शर्मा सबूत लेकर आया है !'

सब कमरे से हड़बड़ी में बाहर निकले।

शर्मा यानि की इंस्पेक्टर शर्मा ! एक साल पहले हरियाणा से मुम्बई शिफ्ट हुआ था और जब से वो मुम्बई आया तब से परवेज़ के पीछे हाथ धोकर पड़ा था। परवेज़ ने एक भी सबूत नहीं छोड़ा था, आज तक ! इसलिए शर्मा को एक भी मौका नहीं मिला था उसे हथकड़ी पहनाने का !

परवेज़ : खातिरदारी करो भई, शर्माजी की ! बड़े दिनों के बाद पधारे है।

शर्मा : खातिरदारी तो तू मने करणे दे छोरे ! सुणा से, तने चूड़ियों में रास पड्या से...तो सोचा, लोहे की चूड़ियां पहणा आउ !

परवेज़ : मेरे लिए इतनी भी ज़हमत क्यों उठाई, आप कहते तो हम पूरी जेल ही यहाँ खड़ी करवा देते।

शर्मा : इसमें तकलीफ की किमे बात को नी, मैं तो आखिर कानून का सेवक सु, इंसाफ करणा मेरा फ़र्ज़ से !

परवेज़ : भरी बाजार में अकेली लड़की के सीने पे हाथ लगाने वाले के मुँह से शराफत अच्छी नहीं लगती, शर्मा !

शर्मा : अगर या बात से, तो तने भी कोई दूध का धुला ना से ! एक अकेली छोरी ने घर में रखना, पूरी रात...और वो भी कलेक्टर नी छोरी ने, बेरा (पता) नी तने के के करया होगा इसके गेलै !

परवेज़ : मेरे इतने भी खराब दिन नहीं आए की मुझे उसके साथ कुछ करना पड़े, और फिर ये तो हुआ इल्ज़ाम ! कानून इल्ज़ामो पे नहीं, सबूतों पे चलता है, शर्मा !

शर्मा : तने तो पता होणा चाहिए, परवेज़...की मैं सबूत लाता ना, बणाता हूँ !

परवेज़ : और तेरे बनाए हुए सबूतों को मैं ठिकाने लगता हूँ, ये तुजे याद होना चाहिए। चल फिर भी तुजे मौका दिया, बता क्या सबूत लाया है, इस बार ?

शर्मा : राका ने पता था तेरी फितरत का, की तू कितै ते बी उठा ले जावेगा लड़की ने, इसलिए उसने पहले से इंतज़ाम कर रखा था। या चिप देख रिया से !? बाज़ जैसी आँखे तेरी, छोरी के कपड़े पे कैमेरा नी देखया !?

परवेज़ : क्या है, इसमें !?

शर्मा : जहाँ से तने तारा ने उठाया, वहाँ से लेकर तेरे घर में जो होया, वो पूरा कारनामा ! बाकि सवाल जवाब थाणे में कर लेना। (अपने कॉन्स्टेबल्स के सामने देखकर) अब मुहर्त निकलवाओगे के ! लेके चलो छोरे ने...बड़े दिनों बाद हाथ आया से !

परवेज़ : अरे, शर्मा...तू भी ना ! कुत्ते जैसी नाक है तेरी, पहले सूंघ तो लेता। जरा वो चिप लगा के तो दिखा।

शर्मा : अब देखके के करेगा तू ? फिर भी तेरी तस्सली खातर लगा देता सु !

शर्मा ने बड़े खुश होकर वो चिप लेपटॉप में लगाया तो सही, लेकिन उसमें जो चला वो देखकर सबके मुँह खुले के खुले रह गए।

जुबेर : अपनी बीवी को तो छोड़ दे, साले ! उसके साथ जो करता है, उसकी भी वीडियो बनाता है क्या !?

परवेज़ : जब किसी के लिए फाँसी का फंदा बनाने निकले हो ना, तो उसकी गर्दन को नाप लेना चाहिए। मुझे क्या, उल्लू समज रखा है, तुम लोगो ने !? तुम सब लोमड़ी की तरह कितने भी चालाक बनने की कोशिस करो...लेकिन, शेर सोया हुआ हो तब भी वो शेर ही होता है !!! अब तू खुद जाएगा या मैं तेरी औकात दिखाऊ !?

परवेज़ ने कि हुई बेइज़्ज़ती शर्मा सह नहीं पाया। "तने तो मैं ना छोडूंगा " इतना बोल के वो चलने लगा। पीछे से परवेज़ ने आवाज़ दी,

"...और सुन शर्मा, कह देना अपने राका को, की "परवेज़ की सोच वहाँ से शुरु होती है, जहाँ उसके किस्से खत्म होते है।"

*

पायल के साथ परवेज़ का कोई खास नाता तो नहीं था लेकिन वो फिर भी अपने आप को उससे जुड़ा हुआ महसूस कर पा रहा था। उसने पायल को बेइज़्ज़ती कर के निकाला था अपने घर से और कहीं ना कहीं वो इस वजह से बेचैन था। उसने पहेली बार अपने कमरे का दरवाजा बंद किया, बिस्तर पर फ़ैल कर बैठ गया। उसके हाथ मैं अपनी माँ की आखिरी निशानी थी। एक घुँघरू के साथ एक छोटी सी चिट्ठी जिसे शायद वो दूसरी बार पढ़ रहा था।

"परवेज़, मेरे बच्चे ! जब तूने इस दुनिया में अपने कदम रखे थे, तेरा चेहरे का नूर देख कर ही मैं समझ गई थी, की तू आसान कामों किलिये नहीं बना। तू समंदर की तरह है, जिसकी कोई सीमा ना हो, जिसे कोई रोक ना सके। लेकिन समंदर को भी किनारा होता है, बेटा ! जहाँ आके वो शांत हो जाता है। जब इस घुँघरू का दूसरा हिस्सा मिल जाए तो समझ लेना की वहीँ तुम्हारा किनारा है। जब तुम्हारी अपनी लहेरे हवाओं के साथ हो जाएगी ना, तब यही किनारा तुम्हे आराम देंगा !!!"

परवेज़ गहरी सोच में पड़ गया। सवालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया... क्यूँ पायल को देखने से पहले ही इस दिल ने उसके लिए धड़कना सुरु कर दिया था ? क्या अम्मी पहेले से पायल के बारें में जानती थी ? पायल के पास अम्मी का घुँघरू कैसे आया ? पायल ने कहा था वो उसकी माँ का था, लेकिन ये कैसे हो सकता है !? अम्मी ने कहा कि पायल ही मेरा किनारा है, मतलब की अब इन सारें सवालों के जवाब सिर्फ वो ही दे सकती है। लेकिन मैंने तो उसे धक्के मार के निकाला है, अब कहाँ मिलेगी वो ? कैसे ढूंढूगा उसे ? क्या राज़ है इन सुरों का !!?'

To be continued.....

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