Thakar kare e thik - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

ठाकर करे ई ठीक - 6

( तो दकुभाभी कहती है )
दकुभाभी: हा..... आपकी ये बात भी सही है
किन्तु और कोई रास्ता नहीं है क्या ?
(तो मानिकचंद बोलता है)
मानिकचंद; हा , यदि इसके अलावा और कोई रास्ता हो तो बताओ ,

जल्दी से.....
(तो परेश दानी कहता है )
परेश दानी ; हा हा सोचो , सोचो और कोई रास्ता शायद हमें मिले
जिससे हम जल्द ही जल्द मेरे कुंजे को पा सके...

( तभी सब सोचते है और इक दूसरे के आमने -सामने देखकर उसे इशारो में पूछते है कि कुछ

आईडिया आया ,तो फिर सामने से वही जवाब आता है.. नहीं अब तक तो नहीं , इस तरह सब इधर से

उधर और उधर से इधर टहलते है और आईडिया के बारे में सोचते है , किन्तु किसीको कुछ दिमाग में

नहीं आता...)

तभी दकुभाभी एकदम से बोलती है
दकुभाभी: हे दानी भाई ,यदि हम न्यूज पेपर में ये खबर छपवादे तो नहीं चलेगा ?
तो परेश दानी कहता है
परेश दानी : नहीं दकुभाभी, ऐसा नहीं हो सकता , बहोत ही देर हो जायेगी उसमेतो
दकुभाभी: तो फिर हम उस ऑटो वाले को कैसे ढूंढें ,?

इतनेमे अफ़ज़ल बीचमे कूद पड़ता है,और जट से बोलता है
अफ़ज़ल: मिल गया , इक आईडिया मिल गया
सब सुनकर खुश हो जाते है और उसे पूछते है
परेश दानी: जल्दी से बताओ , क्या है ?

अफ़ज़ल: मुझे सबसे पहेले कोई ये बताओ कि आप सभी ने ऑटो को ध्यानसे देखा था
तो सब कहते है
सब: हा हम सब ने ऑटो को देखा था
तो मानिकचंद बोलता है
मानिकचंद; किन्तु ऑटो को देखने से क्या होगा ?
हमें तो कुंजा चाहिए

(तो मुकुलाभाभी तुरंत बिचमे ही बोलती है)
मुकुलाभाभी: क्या आप भी मौसमी के पापा ,

पहेले अफ़ज़ल कि पूरी बात तो सुन लीजिये
वो क्या कहना चाहता है ,ये तो जान लीजिये
हो सकता है इससे हमें दानी भाई का कुंजा वापस मिल जाए

(इस समय मानिकचंद मुकुलाभाभी कि ओर थोड़ी तीसरी नज़र से देखता है और फिर बोलता है )
मानिकचंद; हा भाई हां ,बताओ तुम क्या कहना चाहते हो
(तो अफ़ज़ल तुरंत बोलता है) :
अफ़ज़ल: मै कहा रहा था कि आप में से कोई मुझे पहेले ऑटो के बारे में बताइये

उसका रंग कौनसा था ?
उसमे कुछ लिखा था , या नहीं ?
उसके पीछे कोई बेंनर छिपका हुआ था कि नहीं
वगेरा, वगेरा .......
(तो प्रेमलता भाभी बोलती है )
प्रेमलता भाभी ; हा हा....... उस ऑटो का रंग कालाथा और उस पर पीले रंग कि पट्टी थी
( तो तुरंत राजीव पूछता है)

राजीव; और कुछ ,,,,

उस पर कुछ लिखा हुआ था , वगेरा
(तो प्रेमलताभाभी सर हिलाकर बोलती है )
प्रेमलताभाभी ; नहीं , अब आगे तो मुझे कुछ याद नहीं आ रहा
(ये सुनकर राजीव थोडा निराश होता है और बोलता है)

राजीव : ( फिलोसोफर कि तरह समजाते हुए )

थोडा और दिमाग पे जोर डालिये ,

अपने पिछले समय में जाईये और जाँकिये और

ठीक तरह से याद करके बोलिये कुछ ना कुछ तो वहा होगा ही
(तो प्रेमलताभाभी बोलती है)

प्रेमलताभाभी: नहीं नहि , अब आगे मुझे कुछ याद नहीं आ रहा ,

मुझे जितना मालुम था उतना मैंने आपको बता दिया
(ये सब हो रहा होता है तब परेश दानी का बेटा,पिंकू इक जागर ,अपने दरवाजाके पास बेठा हुआ होता

है , और वो सुमसाम सा है,)

फिर राजीव अफ़ज़ल को कहता है
राजीव ; अरे !!!!यार

ये काले रंग और पिली पट्टी से क्या होगा ?
ऐसे रंग कि तो हज़ारो ऑटो यहां सडको पे दौड़ती है ,

इतनी इनफार्मेशन ,कुंजा ढूंढनेके लिए पुरती नहीं है
(तो अफ़ज़ल कहता है)

अफ़ज़ल : तू सही कहता है ,

किन्तु किसीको कुछ मालुम ही नहीं है ,

तो फिरं हम कैसे उस ऑटो को ,और......
ऑटो वाले को ढूंढ सकेन्गे ?
(ये सुनकर ओटे पर सुमसाम बेठा पिंकू बोलता है)

पिंकू : (खड़ा हो कर , ) मुझे पता है भैया ,
उस ऑटो में कुछ लिखा था किन्तु …।
(तो तुरंत सबकी नज़र उस पिंकू पर पड़ती है और ,परेश दानी उसके पास पहोच कर उसके सामने अपने

घुटनो पर बेठ कर पूछता उसे है )
परेश दानी : (बड़े प्यार से )..

किन्तु क्या मेरे बेटे ?
(साथ ही साथ में प्रेमलताभाभी भी उसे पूछती है )
प्रेमलताभाभी: हा बेटा बताओ ,

किन्तु क्या ?
(तो पिंकू बोलता है)

पिंकू : किन्तु मुझे वो पढने में थोड़ी दिक्कत हुयी थी
इसीलिए मै उसे ठीक तरह से पढ़ नहीं सका
और ऑटो चली गयी
(तो फिर परेश दानी खड़ा हो जाता हैउसके सामने से और बोलता है)

परेश दानी : हे भगवान ! ये आज तू मेरे साथ क्या खेल खेल रहा है ?
(ये बात सुनकर मधुर से रहा नहीं गया और वो तुरंत मश्करी कि तरह बोल पड़ा )
मधुर: भगवान तो सदा हमारे साथ निराला खेल ही खेलता है
जैसी करनी वैसी भरनी

(ये सुन कर सब उसके सामने देखने लगे और मंगलमहेता से अब रहा नहीं गया और वो बोले )
मंगल महेता : अबे ! करनी-भरनी वाला ,

चुपचाप खड़ा रहे वरना अभी तेरी करनी मुझे करनी पड़ेगी , और.....
भरनी का तो बाद में हिसाब लिया जाएगा ,
(इतने में अफ़ज़ल पिंकू के पास आता है और उसे प्यार से पूछता है)

अफ़ज़ल : अच्छा तो पिंकू , तू उसे ठीक से पढ़ नहीं सका ,

किन्तु ठीक से देख तो सका है ना ?
(तो पिंकू सर हिलाकर बोलता है )
पिंकू : हा अफ़ज़ल भैया ,

मैंने उसे ठीक तरह से देखा था , उसमे क्या लिखा था , वो
(तो अफ़ज़ल तुरंत उसे कहता है )
अफ़ज़ल: तो फिर तुम उसे लिख सकते हो

काली ऑटो के पीछे किस तरह कैसा लिखा था ,और .....

क्या लिखा था ?
(तो पिंकू तुरंत बोलता है)
पिंकू : हा , मै वो लिख सकता हु

(तो अफ़ज़ल कहता है कि मुझे वो लिख कर दो जल्दी से तुम
तो पिंकू घर के अंदर जाता है और बुक और पेन लेकर आता है , और फिर बुक में कुछ लिखता है , और

लिख कर जब वो बुक अफ़ज़ल को देता है तो )
(बुक अफ़ज़ल को देते हुए )
पिंकू : लो अफ़ज़ल भैया ,

उस ऑटो के पीछे इस तरह लिखा हुआ था
(अफ़ज़ल पिंकू के हाथ मे से बुक लेता है और पढ़ता है , और पढनेके बाद थोड़ा मन ही मन हसता है
उसे हसते हुए देखकर परेश दानी पूछता है )
परेश दानी : अरे!!! अफ़ज़ल
ऐसा तो क्या लिखा है पिंकू ने कि तुम हस रहे हो ?
(तो अफ़ज़ल वो बुक दानी साहब के हाथ में देता है और कहता है )
अफ़ज़ल: (बुक देते हुए )लो आप खुद ही पढ़ लीजिये ,कि इसमे क्या लिखा है ?

(परेश दानी पढने कि कोशिश करता है किन्तु ठीक तरह से वो पढ़ नहीं पाता , तो वो बुक मानिकचंद

को देते हुए कहता है )
परेश दानी : देखो तो मानी
इसमें पिंकू ने क्या लिखा है , ?

मुझे तो कुछ समज में नहीं आ रहा है ,

तुम ही मुझे ,इसे पढ़ कर बताओ ,कि इसमे क्या लिखा है ?
(और परेश दानी वो बुक मानिकचंद को देता है)
परेश दानी : लो ये तुम ,
मानिकचंद :(बुक लेते हुए ) हां लाओ ,

मै भी देखु कि पिंकू ने क्या लिखा है ?
(मानिकचंद बुक में लिखा हुआ पढते है और वो भी मन ही मन में हसता है...)

उसे भी हसता हुआ देख कर मंगल महेता उसके नजदीक आता है और वो भी उस बुक में नज़र लगाते है

और वो भी पढ़ कर मन ही मन हसता है इस तरह धीरे धीरे ,मुकुलाभाभी, डॉली आंटी, और दकुभाभी

,और मधुर और राजीव उस बुक को देखते है और फिर सब हसते है ,सबको हसते हुए देख कर परेश

दानी से रहा नहीं गया और उसने मानिकचंद से पूछा
परेश दानी : अरे मानी , तुम सब हस क्यों रहे हो ,?

और इस बूक में क्या लिखा है ,वो तो मुझे बताओ
( फिर मानिकचंद कहता है)
मानिकचंद : अरे दानी उसमे लिखा है कि
"ठाकर करे ई ठीक "

(इतनेमे मंगल चाचा बीचमे टापसी पुरते है)
मंगल चाचा :हा दानी इसमे पिंकू ने गुजराती में यही लिखा है कि
"ठाकर करे ई ठीक "

(ये सुनकर परेश दानी उनको पूछता है)
परेश दानी : इसका मतलब क्या होता है ?
(तो मंगल महेता उसे समजाते है कि )
मंगल महेता: देखो बेटा दानी यहाँ हमारे गुजरात में ,

गुजराती में इक भगवान कि लोकवायका है और

यही सत्य सनातन है,

इसका मतलब ये होता है कि
जो भगवान् करता है वो सदा अच्छे के लिए ही और सदा अच्छा ही होता है

(ये सुन कर परेश दानी कहता है )
परेशदानी: किन्तु अब मेरे कुंजे का क्या ?
(तो अफ़ज़ल तुरंत कहता है )
अफ़ज़ल: दानी अंकल अब आप बिलकुल चिंता मत करो,
ठाकर करे ई ठीक ,और

ऑटोवाले का पता मुझे चल चुका है
कि वो कौन है ?

(ये सुनकर परेश दानी और प्रेमलता और बाकी के सभी खुश हो गए और तुरंत परेश दानी ने उसे पूछा )
परेश दानी : तो जल्दी से बताओ ना कि वो कौन है ?
क्या तुम उसे जानते हो

(तो अफ़ज़ल बोलता है )
अफ़ज़ल: बड़ी अच्छी तरह से जानता हु
तो मानिकचंद उसे पूछता है
मानिकचंद ; कौन है वो अफ़ज़ल ?
(तो अफ़ज़ल कहता है)

अफ़ज़ल: अरे अंकल वो तो अपना यार ऑटो वाला है
( और फिर वो पिंकू को पूछता है )
अरे पिंकू ,उसके ऑटो के पीछे कृष्ण भगवान का फ़ोटो था ,

और आगे के काच पे राधे लिखा हुआ था लाल रंग में
(तो पिंकू तुरंत कहता है)
पिंकू : हां भाई बिलकुल ऐसा ही था

ये सुनते ही अफ़ज़ल ताली बजाके बोलता है
अफ़ज़ल:(ताली बजाकर ) तब तो वो अपना भीखू ही हो सकता है
अभी उसे यहाँ बुलाता हु

9- -
और वो अपनी जेब में से फ़ोन निकालता है और उसमे से नम्बर निकाल कर भीखू को फोन लगाता है इतने

में इक ऑटो महावीर सोसायटी में दाखिल होती और उसे देखा कर पिंकू तुरंत बोल पड़ता है
पिंकू : (ऑटो कि तरफ हाथ का निर्देश करके )देखो पापा ,ये वही ऑटो है ,

हमारी सोसायटी में फिर आयी

( सब उस ऑटो कि तरफ देखते है और बड़े ही खुश होते है ,इतने में ऑटो उस सभी के पास आ कर रुकती है

और उसमेसे ऑटो ड्राईवर बाहर आता है ,औरो ड्राईवर के मोबाइल कि रिंग भी बज रही है,उसे देख कर सब

खुशी के मारे ज़ूम उठते है)

इतनेमे वो ऑटो उन सबके पास आकर रुकती है और इनमेसे भीखू बाहर निकलता है, और जैसे ही भीखू बाहर निकालता है की सब भीखू को चारो आवर से घेर लेते है और ऑटो में इधर उधर देखने लगते है और भीखू भी उन सबको देखते रहेता है. फिर अफज़ल भीखू से कहेता है

अफज़ल: अरे भीखू भाई अच्छा हुआ की आप सही समय पर यहाँ पहुच गए, वरना आज तो ......

भीखू: अरे अफज़ल सीधा परेश दानी के पास आता है, और जैसे ही वो कुछ बोले उनसे पहेले ही परेश बोलने लगता है

परेश दानी: अरे भाई ...कहा चले गयेथे तुम यार ...?, पता है तुजे....?,

तेरे बगेर हम कितने परेशां हो गए थे...?

भीखू: क्या कह रहे हो साहब....?,

मेरे बगेर आप परेशान हो गए थे...?

परेश दानी: अरे हां भाई! तेरे चले जाने से ...

और मेरी माकी आखरी निशानी को भूलजाने से

भीखू: तो साहब अब तो मै वापस आ गया हु ना

आपकी वो परेशानी दूर करने के लिए

परेश दानी :हा हा वो तो ठीक है अब जल्दी सी वो मुझे कुंजा दो , जब तक मै उसे देख नहीं लेता तब

तक मुझे चैन नहीं आएगा

भीखू: अरे साहब वो कुन्न्जा कही नहीं गया वाही लौटाने के लिए मै वापस आया हु, जब मैंने अपनी

ऑटो में इसे देखा तो मुझे मालुम पड़ा की आप इसे ऑटो में ही भूल गए हो तो इसी वापस करने

के लिए फिर मुझे यहां आना पडा

ये सुनकर वहा खड़े सब लोग हर्षित हो उठे की एक ऑटो ड्रायवर इतना इमानदार यदि वो चाहता तो इस कुंजे को बेच कर हजारो रुपये कमा सकता था किन्तु उसने उस हजारो रुपये के सामने दुसरोके प्रति अपनी निष्ठां और उनकी भावनाओ को महत्त्व दिया और इस कुंजे को अपनी सही जगह पर सही सलामत पहुंचा दिया

ये देखकर महेताजी भिखुके पास आते है और उनकी पीठ थपथपाते हुए कहेते है

मंगल मेहता : अरे वाह भीखू ! वाह ! आज तो तूने बडाही नेक काम किया है इस कुंजे को वापस देने

आकर, परयो तेरा आभारी रहेगा सदा के लिए

ये सुनकर सब खुश हो जाते है और भीखू कहेता है

भीखू: अरे चाचाजी इसमे क्या बड़ी बात है ..? ये तो मेरा फर्ज था

बाकी तो ठाक करे इ ठीक....

मंगल मेहता: हा भिखुडा ये सही कहा तूने...धार्यु धणी नु थे हो...

ये सुनकर परेश दानी कहेता है

परेश दानी: जी , आपने बिलकुल एकदम सही कहां चाचाजी,

चाहे कुछ भी हो....कैसे भी हो और जैसे भी हो पर

ठाकर करे इ ठीक.......

ये सुनकर सब बड़े आनंद में आ जाते है और सब ऑटो को घेर कर रास गरबा लेने लगते है, सब आनंद विभोर में ऑटो को बिचमे रख कर उनके आसपास बड़े मजे से गरबा लेते है और जोर जोर से बोलते है...”ठाकर करे इ ठीक रे भाई ठाकर करे इ ठीक..”

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