Thakar kare e thik - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

ठाकर करे ई ठीक 2

मुकुलाभाभी : (सर हिलाकर )हा , लगती है
राजीव: और जिसे प्यास लगती है वो पानी ढूँढता है ,जिस प्रकार नदीको सागर से मिलने कि प्यास होती है,

उसी प्रकार प्यासे को पानी पिने कि प्यास होती है

मानिकचंद: अच्छा ,अच्छा ,अब ये तो बताओ कि पानी गायब हुआ कैसे , और वो गया कहा ?
मधुर: अरे अंकल सीधी सी बात है (शायराना अंदाज़ में)
जिस तरह ,दाने-दाने पे लिखा होता है खाने वाले का नाम उसी तरह ,पानी कि हर इक बूंद-बूंद पर

लिखा होता है पानी पिने वाले प्यासे का नाम, कोई प्यास आया होगा और चाचाजी का पानी पि गया

होगा ,सीधी बात है और वरना पानी कहा गायब हो सकता है ?

(इस समय मधुर ,अफ़ज़ल को इशारा कर देता है कि वो अपनी वास्पा स्कूटर ले आये , अब हमें यहाँ

से निकलना होगा )
दकुभाभी: बात तो तुम सही कह रहे हो ,की प्यासा ही पानी पियेगा ,
किन्तु वो प्यासा है कौन ?

मधुर: वो प्यासे तो पानी पिने वाले ही हो सकते हैना !!!!

भोजलराम: (आश्चर्य के साथ ) पीनेवाले !!!!!

मतलब .....?

मधुर: ( थोडा खिचकाता है और फिर जल्दीसे बोलता है )मतलब ,.. मतलब , हा , सुबह सुबह ,कोई दौड़ता है , तो उसे प्यास लगती है कि नहीं ?
डॉली आंटी: हा, ये बात तो सही है दौड़ते है तो प्यास लगती है , मुझे भी बहोत प्यास लगती है
मधुर: हा, तो शायद उनसभी को भी प्यास लगी होगी और ,और उसने चाचाजीको पानी के लोटेके साथ

देखा होगा और जैसे ही चाचाजी लोटे में भरे हुए पानी , सूर्यनारायणको अर्पण करने गए होगे कि उस

पानी को उन सभी ने पीलिया होगा , और जब वे पानी पि कर चले गए होंगे तब तक चाचाजी सूर्य

वन्दना कररहे होंगे,

(सब को पूछता है )सही कि नहीं ?

मंगल महेता : ये भी हो सकता है , किन्तु वो पानी मांग भी सकते थे ?
मधुर : अरे !! चाचाजी जब आप स्वयं उसको पानी दे रहे होते हो तो उसे मांगने कि जरूरत हीं कहा,

और वो पानी पीकर चले गए होंगे

मंगल महेता : हां ये भी तो हो सकता है ,किन्तु वे थे कौन ये जानना बहोत ही जरूरी है
भोजलराम: हां, मेहताजी , ये जानना बहोत ही जरूरी है
(इतनेमे अफ़ज़ल और राजीव स्कूटर लेके वहा आते है और वो पीछे से ही बोलता है )
अफ़ज़ल: अरे चाचाजी वो हम थे , हम

(ये सुनते ही मधुर वहासे निकल कर उसके पीछे बेठ जाता है और ,फिर वे तीनो बहार चले जाते है ,

चाचाजी उसके पीछे लोटा लेके इक दो डगर दौड़ते है,साथ ही में चाचाजी बोलते है )
मंगल महेता : अरे , बदमाशो ....!!!!!!!!! तुम नहीं सुधरने वाले , इतनी देर तक हम सबको सिर्फ पानी
में ही रखा,

(ये सुनकर सब हंसने लगते है ,फिर दकुभाभी बोलती है )
दकुभाभी: कैसी भी हो वे बदमाश ,किन्तु जब वे सोसायटी में नहीं होते है न तो सोसायटी पूरी सुनी-सुनी

लगती है

भोजलराम: अच्छा , हुआ कि अंत में पता तो चला कि वो बदमाश ही थे , आज बहोत ही लेट हो गया हु जॉब के

लिए , चलो, चलो , अपना अपना काम करो
मानिकचंद: हा, हा ये भी करना जरूरी है , वे तीनो तो हम सब को पानी में उलजाये रखे चले गए , अब हमें भी

अपना काम करना चाहिए

मंगल महेता : आज तो मेरी सुबह का सत्यानाश हो गया ,

मेरी सुबह तो आज पानी में ही गयी

( ऐसा बोलकर वो अपने घरमे जाते है )
( फिर सभी अपने अपने घर कि और चलने लगते है )

( मानिकचंद और उसका परिवार भोजन लेनेकी तैयारी करता है ,मौसमी डायनिंग टेबल पर बेठी है, और मुकुलाभाभी किचन में रसोई लेने जाती है ,और मानिकचंद इधर-उधर टहल रहा है ,इतनेमे फ़ोन कि रिंग बजती है ,और मानिकचंद फोन उठाता है )
मानिकचंद: हेल्लो,

कौन ?
अरे ! तू ,
क्यों भाई आज इतने सालके बाद इस दोस्त कि याद कैसे

(इतनेमे मुकुलाभाभी भी उसकी नजदीक आती है , और मौसमी से वो इशारोमे पूछती है कि कौन है फोन पर ,पर मौसमी भी अनजान कि तरह बता देती है , कि मुझे क्या मालूम ,लगता है कि पापा का कोई दोस्त होगा ,फिर वे दोनों मानिकचंद कि बातो पर ध्यान देते है ).


मानिकचंद: अच्छा ,अच्छा ,तूने लिया है क्या ?
बहोत ही बढ़िया काम किया तुमने
आज दोपहर के बादही ,ओके ,ओके ,
चलो मिलते है फिर

(मानिकचंद फोन रखता है , तुरंत मुकुलाभाभी उसको पूछती है )
मुकुलाभाभी: कौन थे ,मौसमी के पापा , फोन पर ?
मानिकचंद: (बड़े ही खुश मिजाज से बोलता है , साथ में हाथ लेहेरोकी तरह फैलाता है और इक दो डगर चलता –

चलता बोलता है )
अरे!!! मुकुला , तू नहीं जानती उसे
(मुकुलाभाभी तुरंत बोलती है )
मुकुलाभाभी: अरे !! ये क्या ?
नहीं जानती हु इसीलिए तो पूछ रही हु ,वरना थोड़ी ही पूछती आपको ,
आपभिना.......!!!!

(इतनेमे मौसमी भी उसकी माँ को साथ देती है )
मौसमी : (उसकी माँ के पास आकर )
सही कह रही है मम्मी,
मुकुलाभाभी: मैतो हमेशा सही ही कहती हु बेटा,
अच्छा ,अब तो बताओ कि कौन था ?
मानिकचंद : अरे!!! मुकुला, वो मेरे बचपन का दोस्त था ,दोस्त
हम ,सब साथ में पढते थे , खेलते थे ,और बहोत मोज-मस्ती किया करते थे ,

मुकुलाभाभी: अच्छा आपके बचपन का दोस्त था, ?
क्या कह रहा था आपका बचपन का दोस्त ?
मानिकचंद: अरे मुकुला , उसने हमारी सोसायटी में घर ख़रीदा है , और वो आज दोपहर के बाद यहाँ रहने के

लिये और वो यहाँ रहेने के लिए आ रहा है उसकी पूरी फॅमिली के साथ
मुकुलाभाभी : क्या?,
मानिकचंद: जी हां
मुकुलाभाभी: तब तो अब वो आपके दोस्त के बाद हमारे पड़ोसी बनेंगे
मानिकचंद हा ,बकुला अब तो वो हमारा पडोसी बनेगा , वो दिल का बहोत ही अच्छा है , और बहोत पैसे वाला

भी है , वो दवाई बनानेकी कि कंपनी में बहोत ही बड़ी पोस्ट पर नौकरी करता है , और उसका ट्रांसफर

यहाँ हमारे शहर में हुआ है
(ये सुनकर मुकुलाभाभी और भी खुश हो जाती है )
मुकुलाभाभी: अच्छा ,तब तो उससे हमेशा दोस्ती निभाना … हा
मौसमी: (अपने पापा के पास आ कर )

पापा उसकी फॅमिली में और कौन-कौन है ?

मानिकचंद : (हस कर )
अरे बेटा , इतनी जल्दी क्या है तुजे ?
थोड़ी देर के बाद वो सब यहाँ आनेही वाले है , तो देख लेना सबको
मुकुलाभाभी: हा बेटा, तेरे पापा सही कहते है , थोडा इंतज़ार करो , धीरज के फल हमेशा मीठे होते है

मानिकचंद: हा बेटा , जब वो आयेंगे तो मै तुम्हारा और हमारी सोसायटी के सभी लोगो का उससे परिचय

करवाऊंगा ,
ठीक है
मौसमी: ठीक है, पापा

(उसके बाद मुकुलाभाभी का ध्यान डायनिंग टेबल कि ओर जाता है, और वो तुरंत बोलती है )
मुकुलाभाभी: अरे! अरे! आपके दोस्त के फोन कि बातो में मेरा खाना ठंडा हो गया है ,
चलो , चलो पहेले खाना खालो ,फिर बाते करना ,
मानिकचंद: (डायनिंग टेबल पर अपनी जगह पर बेठ जाता है ,और प्लेट उठाने लगता है )
हा,हा जल्दी से खाना परोसो मुकुला, आज बहोत जोरोसे भूख लगी है
मुकुलाभाभी: हा, हा , लीजिये ये रोटी , और आपकी मनपसंद सब्जी
मानिकचंद : अरे!!!वाह, क्या बात है आज तो बड़ा ही अच्छा दिन है , मेरे मनपसंद सब्जी का खाना और मेरे प्यारे

दोस्त का आना ,सब इक साथ हुआ ,
(ये सुनकर तीनो हसते है ,और तीनो खाना खाना शुरू करते है )

( दोपहर के बाद का समय है , ,महावीर सोसायटी कि शेरी में सामान से भरा हुआ इक छोटा ट्रक

दाखिल होता है ,ट्रक कि आवाज़ सुनकर सोसायटी के लोग बाहर आते है , पहेले डॉली आंटी और

उसकी बेटी , फिर दकुभाभी,फिर मंगलचाचा ,बाहर आते है , और इक दूसरे के सामने देखकर

पूछते है ,)
दकुभाभी: अरे चाचाजी ,ये तो किसीके घर का सामान लगता है
मंगल महेता: हा, दकुडी ,लगता तो है ऐसाही , किन्तु इस समय कौन यहाँ रहने के लिए आ सकता है ?
(इतनेमे डॉली आंटी बोलती है )...

डॉली आंटी: अरे मेहताजी, अब घर ,यहाँ रहने वाले ने ही ख़रीदा होगा , तो जाहिर सी बात है कि वही रहने के लिए

आये होंगे
मंगल महेता : हा, हा, जो भी हो , किन्तु अब हमें इक नया पडोसी तो मिला

क्यों दकु..? (दकुभाभी के सामने देखकर हसके बोलते है )
दकुभाभी: हा , हो मंगल चाचा, अब हमारी सोसायटी भरी-भरी सी लगेगी ,

(ये सुनकर डॉली आंटी बोलती है ),
डॉली आंटी: क्यों दकु ?, अब तक तुजे ये सोसायटी खाली -खाली दिखाय देती थी ,
मेरे होते हुए ….. ?
(ये सुन कर सभी हँसsssने लगते है )

सभी : हा..... हा...... हा..... हा ....

मानिकचंद अपने घर में सोफे पे बेठ कर टीवी में शेर-बाजार कि चैनल देखा रहा है ,मुकुला भाभी और

मौसमी अपने-अपने कमरे में है, और मानिकचंद साथ ही ssसाथ में फ़ोन पर बात कर रहा होता है
मानिकचंद: हा, हा उसे तू आज ही निकाल दे ,
वरना कही कल से उसे घर-जमाई कि तरह रखने पड़ेंगे , समजा ,
हा, हा,...

(इतने में वो बहार कि कोलाहल ,और ट्रक कि आवाज़ सुनाता है ,और तुरंत खड़ा हो कर जोर से बोलने

लगता है )
मानिकचंद: अरे, मुकुला,मौसमी ,जल्दीसे बाहर आओ ,(ये सुनकर मुकुलाभाभी,और मौसमी जल्दी से बाहर आते है )
मुकुलाभाभी: क्या हुआ , मौसमी के पापा ?,आप इतनी जोर से क्यों चिल्लाये ?(कमरे में से बहार आते हुए )
मौसमी : क्या हुआ पापा ?

मानिकचंद: अरे , कुछ नहीं हुआ है मुझे
(मौसमी ओरे मुकुलाभाभी इक दूसरेके सामने देखते है और फिर मुकुलाभाभी पूछती है ) ,
मुकुलाभाभी: कुछ नहीं हुआ ?
मानिकचंद: हा, कुछ नहीं हुआ ,
मुकुलाभाभी: तो फिर आप इतनी जोर से चिल्लाये क्यों ?

(ये सुनकर मानिकचंद थोडा हसता है )
मानिकचंद: हा…हा…हा…अरे मुकुल वो तो मै ये बताने के लिए कि लगता है कि मेरा दोस्त आया हुआ लगता है

मुकुलाभाभी: कौन, आपका दोस्त?
मानिकचंद: लो,भूलभी गई,
मुकुला आज-कल तू बहोत भुलकनी होने लगी हो,ये बात अच्छी नहीं है ,,,हा
मुकुलाभाभी: अरे हां ,याद आया ,वो दोपहर के फोन वाल आपका दोस्त , जो बहोत पैसे वाला है
मानिकचंद: हा, वही,मेरा दोस्त

मुकुलाभाभी; तो फिर आप यहाँ घर में क्या कर रहे हो?
चलो बहार चलके उससे मिले
मानिकचंद; हा. हा, ये बात तो मै भूल ही गया,

मुकुलाभाभी: (बहार की ओर चलते-चलते ) अभी -अभी आप मुझे भुलकनी कहते थे, और अब आप क्या है,

…भुलकने(
फिर ये तीनो अपने घर से बहार आते है)

(बहार आकर,मानिकचंद देखता है कि ट्रक ,इक घर के सामने रुका हुआ है, और उसमेसे दो

तीन-लोग निचे उतरते है ,फिर मानिकचंद ,मंगल महेता कि तरफ देखकर बोलता है )
मानिकचंद: अरे, मेहताजी ,ये मेरे दोस्त का सामन है, वो अब हमारे साथ ही रहेगा , हमारा नया पड़ौसी

बनकर ,

मंगल महेता :अच्छा , ये तो बड़ी खुशी की बात है , बचपन के बिछड़े दोस्त अब फिर साथ मिलेन्गे

मानिकचंद: एकदम सही कहा आपने , चाचाजी ,
(इतनेमे इक ऑटो रिक्शा वहा पे आती है और उस ट्रक के पीछे रुक जाती है, ,उसमेसे पहेले इक

आदमी जिसने पेंट -शर्ट,काले जूते,पहने है और उसका चहेरा गोल सा है , उसके बाद कंगी किये हुए है ,

इक दम कोई बड़ा ऑफिसर हो ऐसा लगता है ,फिर इक औरत उतरती है , जिसने लेडीज जींस और टी-

शर्ट पहना है , उसके हाथ में इक फैंसी पर्स है,उसने काले रंग के सनग्लास पहने है ,और उसके बाल

बिखरे हुए है ,बड़ी ही मॉडर्न स्टाइल में लगती है वो , और बादमे इक लड़का उतरता है जिसने टी-शर्ट

और हाफ-नाईट पेंट (बरमूडा ) पहना है और पैरो में सैंडल पहेनी हुयी है )

परेश दानी: (ऑटो के ड्राईवर से )कितना हुआ किराया भाई ?
ऑटो ड्राईवर: अस्सी रुपये साहब
परेश दानी : (अपना पर्स निकालता है और उसमेसे पैसे निकाल कर ऑटो ड्राईवर को देता है )लो ये तुम्हारे पुरे अस्सी

रुपये
(ऑटो ड्राईवर रुपये लेकर वहासे चला जाता है फिर, फिर उतरकर परेश दानी उस ट्रक के पास जाता है

और उस ट्रक के लोगो से कहता है कि )

परेश दानी: भाई, खड़े क्यों हो उतारने लगो ये सामान,
मेरी बारात के आने कि राह देख रहे हो क्या ?
(इतनेमे से इक मजदूर बोलता है कि )
मजदूर: क्यों , साब आपकी बारात अभी तक नहीं आयी क्या ?
(ये सुनकर वहा खड़े सब हँसने लगते है ,और परेश थोडा हिचका कर बोलता है )
परेश दानी : अरे……ओ..... बारातवाला ,,,,, काम में ध्यान दे, वरना तेरी बारात निकालूँगा यही से ,

पैसे काट के ,
(फिर मजदूर सामन उतारने लगते है और उसे घर के अंदर रखने लगते है ,इतनेमे परेश इधर –

उधर उसके घर को देख रहा है ,इतनेमे उसके पीछे मानिकचंद ,आकर खड़ा रहा जाता है, और

पीछे से ही उसके कान में जोर से बोलता है )
मानिकचंद: (थोड़ी जोर आवाज़ के साथ ) मेरे दानी

(ये सुन कर परेश डर जाता है और इक दम पीछे मुड़कर देखता है तो वो बड़ा ही खुश होता है )
परेश दानी: ऐईईईइ........ ये कौन है ?
(और जब वो मानिकचंद को देखता है तो )
अरे मानी तू
मेरे यार , दिलदार ,कैसा है तू
मानिकचंद: अरे मेरे दानी , जैसा तुजे दिख रहा हूँ वैसा,

तू बता,तु कैसा है ?

परेश दानी: जैसा तू है, वैसाही मै हु,

(फिर दोनों गले मिलते है ,और इतनेमे तो सभी लोग उसके पास आ जाते है )

परिषदानी: और बताओ , कि तुम्हारा बिजनेस कैसा चल रहा है ?,
शेरबाज़ार का .......
मानिकचंद: सब, उपरवाले कि कृपा है, भाई ,अपना और अपने परिवार का गुजारा हो जाता है , इसमे
परेश दानी : बहोत बढ़िया, इससे ज्यादा हमें ऑर क्या चाहिए , हमारा परिवार खुश , तो हम खुश
(दो नो हसते है )
मानिकचंद: हा, तूने सही कहा दानी , परिवार के लिए ही तो ये सब करते है , ,परिवार से याद आया कि

तुम्हारा परिवार कहा है......? , उनसे तो मुझे मिलवा यार........

परेश दानी: हा, हा, (अपनी पत्नी और अपने बेटे का मानिकचंद से इंट्रो, करवाते हुए )
ये है मेरी पत्नी …. प्रेमलता और ये मेरा बेटा पिंकू है
मानिकचंद: नमस्ते भाभी ,आपका हमारी इस प्यारी महावीर सोसायटी में स्वागत है

प्रेमलता: शुक्रिया बहोत बहोत......भाई साहब
आपको मिल कर हमें अच्छा लगा

मानिकचंद: कैसे हो बेटा, ?
कौनसे स्टैंडर्ड में पढ़ रहे हो तुम ?

पिंकू : जी अंकल , एइट स्टैंडर्डमे....
मानिकचंद: अरे वाह , बड़ा ही होशियार लगता है
(इतनेमे परेश मानिकचंद से कहता है )

परेश दानी: अरे मानी... तू तो अपने परिवार का इंट्रो करवा
मानिकचंद: हा, हा क्यों नहीं , आओ मैं तुम्हे अपने परिवार से मिलवाता हु
(सोसायटी के सब लोग वहा खड़े होते है , तो मानिकचंद उन सभी का इंट्रो उसे करवाता है )

मानिकचंद: मिलो इनसे ये है हमारे मंगल चाचा , जो रियल एस्टेट का बिजनेस करते है
परेशदानी: (चचाजीको नमस्ते करते हुए )नमस्ते चाचाजी
मंगल महेता: नमस्ते… नमस्ते
मानिकचंद: ये है डॉलीजी ,और उसकी बेटी डैनी ,और

ये है दकुभाभी और उसकी बेटी रेवती ,
और ये है मेरी पत्नी मुकुला और मेरी बेटी मौसमी
परेशदानी: (सभीको) नमस्ते डॉलीजी,
नमस्ते दकुभाभी, नमस्ते मुकुलाभाभी ,

और नमस्ते मेरे प्यारे बच्चो …।
अरे वाह मानी, तुम्हारा परिवार तो बहोत बड़ा है यार
मानिकचंद: अरे दानी , अभी तो तूने हमारे परिवार के तीन सदस्यो को तो देखा नहीं है वरना तू

यहाँ खड़ा नहीं होता , उसके पीछे दौड़ रहा होता
परेशदानी: ओर तीन ,,,,मतलब , तुम्हारा परिवार इतना बड़ा है...?
तूने तो कभी इसके बारे में बताया नहीं मुझे

मानिकचंद:(हसता हुआ ) अरे मानी , तू अभी भी वही का वही रहा ,
ये सभी हमारी सोसायटी के लोग है , जो हम सभी इक परिवार कि तरह रहते है ,तो इस नाते ये सब

हमारे हुए कि नहीं

परेशदानी: (ये सुनकर परेश दानी बड़ा ही खुश होता है )तूने सही कहा यार , ये तो मै भूल ही गया था

मानिकचंद: हा किन्तु अब से याद रखना … हा
परेशदानी: हा , जरूर दोस्त , ये बात अब मै कभी नहीं भूलूंगा
मंगलमहता: ये हुई ना बात
(ये सुनकर सब हसते )

(फिर मानिकचंद, परेश ,मंगल महेता और प्रेमलता और पिंकू , नए घर में जाते है , और वहा मजदूरो को

निर्देश देते है कि कौनसा सामान कहा रखना हैं , सब सामान सैटल हो गया है और उसके बाद मजदूर

परेश से कहते है )


मजदूर : साहब , अब हमारी मजदूरी देदो
परेश दानी : कितनी हुई ?...

मजदूर: जो आपसे तैय कि थी वही
पांच हज़ार ……
परेश : ठीक है, ये लो तुम्हारे पुरे पांच हज़ार भाई

(मजदूरो को पैसे दे देता है और वे लोग वहा से चले जाते है )

(मजदूरो के जाने के बाद परेश दानी सब सामान को देख रहे होते है इतने में उसकी नज़र टेबल पर जाती है

और वो जोर से चिल्लाता है )
परेश दानी :(चिल्लाकर) अरे…… माँ ,
( ये सुनकर वह खड़े सभी उसके पास आते है और प्रेमलता पूछती है )
प्रेमलता : अरे परेश ,क्या हुआ ?

क्यों इतनी जोर से चिल्लाया ?

(साथ ही साथ मानिकचंद भी पूछता है )
मानिकचंद: हा दानी क्या हुआ ?
तू चिल्लाया क्यों ?


परेशदानी: अरे मानी , मेरी माँ......
(टेबल कि तरफ निर्देश करते हुए)

मानिकचंद : तुम्हारी माँ......
कहा ?
उस टेबल पर.....

(सब परेश दानी के पीछे चुप जाते है और ये सुनकर मंगलचाचा डर जाते है )

मंगल महेता : एई .... मानिकया!!!!!!!!… ये दानी क्या बक रहा है
उसे उस टेबल पर उसकी माँ दिखाय देती है क्या ?
मानिकचंद: मुझे भी ऐसा ही लगता है मेहताजी ,
(ये सुनकर परेशदानी मानिकचंद से कहता है )

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