खुशी की खोज
सुख किसे नहीं चाहिए ? हर कोई खुशी होने की इच्छा रखतें है । खुश रहना हमारा जन्मसिध्ध अधिकार है । लेकिन खुशी या सुख कोइ ऐसी बिकाऊ चीज़ नहीं जो खरीदी जा सके । कैसे पाए क्या करें इसी सोच में वक्त निकलता जाता है । शायद सब जानते तो है पर पर अपनाते नहीं । समय की धारा बदलते हुए संयोग से तालमेल करके हर कोई सुखी और खुश हो सकता है । क्योंकि परिवर्तन ही जीवन का नियम है। कहते है कि खुशी हमारे भीतर ही होती है । लेकिन हम बाहर ढूँढते है । कल क्या होगा किसको पता ? ये जानते हुए भी हम “कल” के लिए “आज” मे नहि जीते । सुबह से शाम तक अपने कामकाज़ी जीवन में व्यस्त रह्ते है । भागते रहते है । परिवार से अलग होकर भी ज्यादा पैसा, रुतबा पाने की अहमियत रखतें है। सोश्यल साइट्स पर ही सबसे मिल लेते है । दिखावा करते है कि खुद बहुत ही खुश है लेकिन भीतर से नाखुश है । अपनी ही मनमानी करते हुए भी सुखी नही है। तनाव में है। खुश नही है । बस मन भागता है । शांति नही है । कोइ सुख की खोज मे बाबा साधु की शरण मे जाता है तो कोइ व्यसन को गले लगाता है । फिर भी स्थिति वही है । क्योँकि ‘संतोष” नही है, क्योंकि ‘स्विकार” नही है । स्वीकृति से सुख मिलता है।
स्वीकृति के लिए चाहिए सकारात्मक भाव. पारिवारिक संबन्ध हो या शारीरिक व मानसिक बिमारी या फिर आर्थिक समस्या. जिवन में कहीं पर भी कोई भी अगर दुख या पीड़ा है तो वह स्वीकृति की कमी के कारण ही होता है । कहीं न कहीं कोई तो कमी रहेगी ही यही जिवन है तो शिकायत करके क्या पाओगे ? अपने माता-पिता या जीवनसाथी या मित्र किसीके भी साथ अगर कोई वैचारिक भिन्न्ता हो तब एकदुसरे में कितनी साम्यता है वह अगर देखा जाए तो हर संबंध मधुर बन सकता है । दूसरों की परिस्थिति को समज़ने की कोशिश की जाए तो समस्या दूर हो सकती है। नकारात्मक विचार गलतफहमी बढ़ाते है। अन्य के प्रति द्वेष और इर्शा के कारणवश मनमुटाव होता है । पति-पत्नि के तलाक या आत्महत्या व अन्य की हटाया जैसाए किस्से समाज मे बढ़ रहे है । अगर किसी के गुण के साथ उसके अवगुण को भी स्वीकारा जाएँ तो कोई समस्या नही होगी। एक बात हमेशा याद रखें - समय, सत्ता, संपति चाहें साथ दे न दे लेकिन स्वभाव, समजदारी, सत्संग और सच्चे संबंध हमेशा साथ दे कर हमें सुखी करते है।
विश्व के महतम चिंतकोंने स्वीकार किया है कि हमारा जीवन कैसे व्यतित होगा वह हमारा दिमाग मतलब की सोच ही तय करते है। इसलिए भावावेश में या क्रोध में कोई भी निर्णय नही लेना चाहिए। संवेदनशीलता से सोचकर अपनी विवेकबुध्धि से ही निर्णय लेने से जीवन हरा-भरा बनाया जा सकता है। अलबर्ट एलिस ने कहा था – “ किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति हमें विचलित नही करती लेकिन अगर हम सोचते है कि वे हमें विचलित कर सकती है तब हम विचलित होते है।“ मतलब वही कि हम परिस्थिति का स्वीकार जल्द ही करें तो मन दुखी होने से बचेगा या कम दुखी होगा।
शारीरिक या मानसिक बिमारी हो या फिर उम्र बढ़ने पर कोई बिमारी का अगर स्वीकार कर लिया जाएँ तो आत्मविश्वास से उससे डटकर मुकाबला कर पाएँगे। बिमारी के कारण व इलाज के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके स्वस्थ हुआ जा सकता है। हेलन कैलर के माता-पिता ने बेटी की कमी का स्वीकार कर लिया और उसी प्रकार पालन किया, पढ़ाया। वे प्रथम प्रज्ञाचक्षु स्नातक बने। युवराजसिंह, मनीषा कोइराला ने अपनी कैन्सर की बीमारी को स्वीकार कर के ट्रीटमेंट करवाया और कुछ ही साल मे बिल्कुल स्वस्थ हुए । तन की बीमारी में मन का मजबूत होना बहुत जरुरी है। समस्या नही पर उपाय के बारे मे ही सोचकर इलाज करवाना होता है। वास्तविकता की स्वीकृति से ही खुशी और सुख पाया जा सकता है । ह्कीकत को स्वीकार कर उसमें से कैसे निकले वही सोचें और उसी प्रकार कार्य करे। अवश्य ही सारी समस्या दूर हो जाएगी ।
जिंदगी उलज़नो का दरिया है, गम और खुशियों का नज़राना है ।
हर हालात का जो सामना कर लें उसी के मुक़द्दर मे जिंदगी का तराना है।
सभी आधि- व्याधि के स्वीकार से मुकाबला करने की जिंदादिली होनी चाहिए । यह इतना आसान नही है लेकिन अन्य के प्रति प्रेम बढ़ाना सिख लेने से किसी से मनमुटाव नही होगा । अपनी जिंदगी को प्यार करो। गलतियां इन्सान से ही होती है इसलिये दूसरों की ग़लतियों को माफ करें। अपनी गलती का भी स्वीकार कर के माफी माँग ले। Forgive and forget को अपनाकर मन को शुध्ध रखें । कई लोग हमेशा किसी और की निंदा या इर्शा करते रह्ते है खुद के पास जो है वह कम है ऐसा मानते है।अपने ही नसीब को कोसते है । इसी कारण दुखी रह्ते है। अपनी कमज़ोरी को समजकर कार्य करने से सफलता मिलेगी। खुश रह्ना है तो किसी को खुश रखना भी सीख लें । हमारी अति अपेक्षा ही हमें सुख से वंचित रखती है। हमारी तृष्णा बढ़ती रहती है और हमे हमारे पास जो है उससे खुश नही होने देती । जो मेरा है वही अच्छा है, चाहे वो जीवनसाथी हो या पैसा । पैसा मह्त्वपूर्ण है इसलिए अपनी आय कम हो तो उसे बढ़ाने का प्रयत्न प्रामाणिकता से करे। गलत राह पर चलकर पैसा न कमाए । जीवनसाथी से अपनी कोइ बात न छुपाए और न अच्छी लगनेवाली बात को प्यार से कहें। एकदूसरे के प्रति सन्मान रखते हुए समजदारी से समस्या का हल पाए । अपने इसलिये मन को परिस्थिति को स्वीकार करने को तैयार रखें।। मन चंगा तो कथरोट में गंगा । मन से हारी हु़ई व्यक्ति कभी खुश रह्ती नही और रह्ने देती नहीं ।
ज्यादातर लोग अपने भूतकाल से परेशान हो कर वर्तमान में दुखी रह्ते है । हम सब जानते है कि गुज़रा हुआ वक्त वापस नही आता, जो हो चुका है वो बदला नही जा सकता । जो नहीं कर सके वो अब करने की कोशिश करे क्युंकि किसी भी कार्य कभी भी कर सकते है । समय को दोष देते रहने से परिस्थिति मे सुधार नही आ सकता लेकिन कार्य का आरंभ करने से प्रगती करीं जा सकती है । तो फिर क्यु उस वक्त को या बात को याद करके दुबारा नाखुश रह्ते है । हा, अच्छी यादें याद करके खुशी दुबारा पाइ जा सकती है । इसलिए हमेशा वर्तमान परिस्थिति को स्वीकार कर के खुश रहे, स्वस्थ रहे ।
यह जिंदगी एक ही बार मिली है । इसे हर हाल मॆं जीना ही है तो हर मुश्किल को सरल करना सीख लें । "खुश रहे खुश रखे" को ही अपनाकर वैसा ही व्यवहार करें ।
पारुल देसाई
parujdesai@gmail.com