यात्रा श्री केदारनाथ जी Writer Prem Arora द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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यात्रा श्री केदारनाथ जी

यात्रा श्री केदारनाथ जी

प्रेम अरोड़ा

यात्रा श्री केदारनाथ धाम

श्री केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है । उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है, जो कि हिमवत्वैराग्य पीठ है । यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है । पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था । यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है । जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया ।

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे । उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया । यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं । यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत व आकर्षक नमूना है। मंदिर के गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है। केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं। केदारनाथ के निकट ही गाँधी सरोवर व वासुकीताल हैं।

गाँधी सरोवर श्री केदारनाथ जी

श्री केदारनाथ पहुँचने के लिए मार्ग व् साधन

श्री केदारनाथ धाम की यात्रा हरिद्वार से शुरू होती है। यात्री को पहले हरिद्वार आकर गंगा स्नान करना होता है उसके बाद यह यात्रा शुरू होती है । हरिद्वार से अनेक वाहन मिल किराए पर मिल जाते हैं..जिनमे टेम्पो ट्रैवलर, इनोवा गाडी, 47 सीटर, 32 सीटर या 27 सीटर बस भी शामिल हैं..इसके अलावा हर तरह के लक्जरी कार भी उपलब्ध रहती हैं जो बहुत ही उचित दरों पर हरिद्वार में उत्तरा टूरिज्म पर उपलब्ध रहती हैं...इन वाहनों की ऑनलाइन बुकिंग आप 22 नामक वेबसाइट पर कर सकते हैं जब की अगर आपको गुप्तकाशी से श्री केदारनाथ धाम की यात्रा हेलीकाप्टर से करनी हो तो आप इस वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं..यह बुकिंग आप हरिद्वार से ही करके चलें तो आपको आगे फिर कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि वहां पहुँचने पर कभी मौसम खराब तो कभी बाहर के एजेंट गुमराह करते हैं जिससे आपका मन भटक जाता है । मेरा तो आपसे येही निवेदन है की पहले से ही हेलीकाप्टर का टिकेट बुक करवा लें इसके लिए वेबसाइट है...

अब जब आपका हेलीकाप्टर का टिकेट भी बुक हो गया तो अब आपको चाहिए होगा की आपके लिए सस्ते बजट का अच्छा कमरा मिल जाए..क्योंकि सीजन के दिनों में इस रूट पर बहुत पैसे मांगे जाते हैं और येही यात्रा अगर प्रीप्लानेड होगी तो आप यात्रा के रास्ते में आने वाली प्रॉब्लम से काफी हद तक सुरक्षित रहते है..मई जून के समय फुल सीजन होता है यानी यात्रिओं के संख्या बहुत अधिक होती है..ऐसे में मनमाने रेट हमको देने पढ़ते हैं इस परेशानी से बचने के लिए आप मध्य प्रदेश मंडल, राजस्थान मंडल, हिमाचल मंडल, पंजाब मंडल,दिल्ली-एनसीआर मंडल, हरियाणा मंडल, कानपुर मंडल, लखनऊ मंडल, केदारघाटी टूरिज्म डेवलपमेंट एसोसिएशन से सम्पर्क कर सकते हैं…

वेबसाइट shiwamhelicoptersewa.com में इनके बार में विस्तार से वर्णन किया गया है...

घर से क्या समान लेकर चलें

अपने घर से यात्रा पर आते समय टोपी, जैकेट, स्वेटर, स्पोर्ट्स जूते, जुराबें, शाल, लोई, हवाई चपल, सूखे मेवे, घर के बने बेसन के लड्डू, सुखा मीठा, गुड चने आदि जरुर साथ लें, अगर कोई छोटा छाता हो तो वो भी साथ रख लें..जो सामान कम हो उसको हरिद्वार से खरीद सकते हैं..

बड़ासू गाँव कहाँ है और बड़ासू से क्या क्या खरीदें ?

बड़ासू गुप्तकाशी से 17 किलोमीटर व् फाटा से 6 किलोमीटर आगे केदारनाथ मार्ग पर ही एक छोटा सा और खूबसूरत गाँव है..सड़क पर ही इसकी मार्किट है..बड़ासू को सेफ जोन वैली माना जाता है..जहाँ पर रहने के कमरे और स्वादिष्ट भोजन उचित रेट पर मिलता है और यहाँ की खासियत यह है की यहाँ पर हर प्रकार का भोजन मिल जाता है, फल और सब्जी भी आपके मनपसंद की मिल जाती है..बड़ासू से आप काफी सारी खरीददारी कर सकते हैं..बड़ासू में आपको काफी कुछ खरीदने को मिलेगा आप फल यहाँ से ले सकते हैं..उत्तराखंड के काफी फल यहाँ पर मिल जाते हैं..छोटे बच्चों के लिए दूध भी यहीं मिल जाता है...इसके अलावा गाय के मावे के पेड़े और बर्फी भी यहाँ पर मिलती है...प्रशाद या मिष्ठान के रूप में पहाड़ी चावल व् गुड से निर्मित आरसे और मंडुआ आटा, गेहूं आटा, चुलाई आटा, व् तिल और तिल के तेल से बने रोटने बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं...यह बहुत दिनों तक खराब भी नहीं होते...इसको आप नाश्ते या स्नैक के रूप में भी ग्रहण कर सकते हैं और साथ में ही इसको अपने घर प्रसाद के रूप में भी ले जा सकते हैं…

इसके अलावा कोधे का आटा 10 किलो जरूर अपने साथ लेकर जाएँ यह बच्चों के लिए पोष्टिक होता है और महिलाओं के लिए बहुत ही गुणकारी होता है….इसमें आधा आटा गेहूं मिलकर आप पका सकते हैं...कोधे के अंदर क्या क्या तत्व हैं इस पर मेरी पूरी पुस्तक उत्तराखंड की फसलें व् सब्जियां पढ़ें…बड़ासू से ही आप बुरांश और मालटे का जूस खरीद सकते हैं..यह काफी गुणकारी होते हैं...पहाड़ी निम्बू का अचार भी बहुत ही गुणकारी होता है...अनेक देसी औषधियां व् देसी मसाले भी आपको बड़ासू में मिलती हैं…

(बड़ासू गाँव का एक विहंगम दृश्य)

केदारनाथ धाम पर क्या क्या व्यवस्था है?

केदारनाथ धाम में आपके रुकने के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था की गयी है...एक और टेंट व्यवस्था है तो दूसरी और यहाँ पर रूम भी मिल जाते हैं..पुरोहित भवन में भी आप रात्री विश्राम कर सकते हैं...शाम को आरती टाइम बहुत ही आनंद आता है और प्रात: कालीन फिर से आप सूक्षम पूजा कर सकते है...

रात्री विश्राम कहाँ पर करें

व् रास्ते में अल्प कालीन विश्राम

श्री केदारनाथ यात्रा आपकी हरिद्वार से शुरू होती है यहाँ से आप प्रात: जल्दी ही श्री केदारनाथ धाम के लिए रवाना हो जाते हैं..रास्ते में काफी विश्राम स्थान आयेंगे परन्तु आप देवप्रयाग में ही आकर अलाप कालीन विश्राम करें क्योंकि यहाँ एक और तीन नदियों के दर्शन कर सकते हैं वहीँ पर आप गंगा जी को देख सकते हैं….इसके साथ साथ ही देवप्रयाग में आपके ब्रेक फ़ास्ट के लिए काफी पुख्ता प्रबंध हैं आप स्वादिष्ट ब्रेक फ़ास्ट यहाँ पर कर सकते हैं….इसके बाद आपको श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, अगस्तमुनि तक आ जाना चाहिए और यहाँ से ही आप सभी की पंजीकरण करवा लेना चाहिए...पंजीकरण हो जाने पर आप आगे की यात्रा की और बढ़ जाएँ….इसी समय का टाइम देखें अगर अभी 5 वजे से कम का टाइम है या ज्यादा का अगर ज्यादा का है तो आपको भीरी में आकर रुक जाना चाहिए...अगर शाम के 5 वजे से कम का टाइम है तो आप आगे के यात्रा जारी रखें आप भीरी, गुप्तकशी, फाटा पार करते हुए बड़ासू गाँव की मार्किट में आ जायेंगे...यही आपका रात्री विश्राम स्थल है….यहाँ पर आपको अनेक तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी मिलेंगे..आस पास के गाँव में उगाई ताज़ा सब्जी, दालें, फल, मिष्ठान आदि का जमकर लुत्फ उठा सकते हैं आप बड़ासू में यहाँ के लोग भी बहुत ही मिलनसार हैं..यात्रिओं की खूब आव भगत करते हैं..रात्री के भोजन में आपको पहाड़ के शुद्ध गढ़वाली व्यंजन मिल सकते हैं..नाना प्रकार की हरी व् सूखी सब्जियां, राई का रायता, मट्टी के चूल्हे पर लकड़ी की आंच पर बनी रोटियाँ, रोटियों में भी गेहूं के रोटी, कोधे की रोटी, चुलाई मिक्स रोटी, और भी कई तरह के पहाड़ी व्यंजन मिलेंगे जिनका सेवन कर आपका मन प्रसन्न होगा..इस तरह से बड़ासू से ही आपके पूरी यात्रा का टाइम टेबल भी तय हो जाएगा..रात्री विश्राम करने उपरान्त आपने प्रात: जल्दी उठ कर नजदीकी स्थानों के दर्शन करने हैं...

यात्रा के दौरान क्या परहेज़ करें

यात्रा के दौरान आपको काफी परहेज़ भी रखने होते हैं...ख़ास कर खान पान को लेकर...तल्ला भुना खाना ज्यादा ना खाएं...सड़क पर बिकने वाली चीज़ों से बचें ख़ास कर के मेगी आदि से परहेज़ करें..अगर आपको पितृ तर्पण भी करना है तो प्याज़ लहुसन का सेवन वर्जित माना जाता है…भोजन जैसा भी हो परन्तु शाकाहारी भोजन ही आपको करना होगा..

महिलाओं यात्रिओं के लिए सावधानी क्या क्या है?

महिलाओं को यात्रा के दौरान अगर कोई प्रॉब्लम हो तो अपनी दवाई आदि साथ रख कर चलें..कीमती जेवर पहन कर यात्रा न करें क्योंकि शास्त्रों के अनुसार जेवर पहनकर तीर्थ स्थान पर नहीं जाते हैं...यात्रा में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी महिलाओं के होती है सो हर क्षण में आप अपने साथ आये सभी यात्रिओं का ध्यान रखें...

पंचकेदार की संक्षेप कथा

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे । इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे । भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले । वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया । अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए । भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।

भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ । अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं । पंचकेदार की महिमा नामक पुस्तक में आप और विस्तार से इनके बारे में जानेगे..

केदारनाथ जी का मन्दिर आम दर्शनार्थियों के लिए प्रात: 7:00 बजे खुलता है। दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। पुन: शाम 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर खोला जाता है। पाँच मुख वाली भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित आरती होती है। रात्रि 8:30 बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। शीतकाल में केदारघाटी बर्फ़ से ढँक जाती है। केदारनाथ मन्दिर के कपाट खोलने और बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है, यह सामान्यत: दीपावली के बाद भाईदूज को बन्द हो जाता है और छ: माह बाद अर्थात अक्षयतृतिया के आसपास पुनः कपाट खुलता है । ऐसी स्थिति में केदारनाथ जी की पंचमुखी प्रतिमा को उखीमठ के पंचकेदार के गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मन्दिर में लाया जाता है, ओर छः माह तक यहीं पर केदारनाथ जी की पूजा संपन्न की जाती है ।

पहले दिन की यात्रा और रात्री विश्राम

पहले दिन लगभग 250 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद गाँव बड़ासू, केदारनाथ मार्ग, नज़दीक श्री केदारनाथ धाम में रात्री भोज व् विश्राम करें

इसी स्थान से आपको हेलीकाप्टर की सेवा भी मिल जाती है

इसी स्थान से आपको एडवांस में ही घोड़ा व् खचर भी बुक हो जाते हैं इससे आपको बारगेनिंग करने की प्रॉब्लम ख़तम हो जाती है

इसी स्थान पर ही आपको गढ़वाली भोजन, शुद्ध शाकाहारी भोजन, गुजराती भोजन, मारवाड़ी भोजन भी मिलता है...

बड़ासू व् इसके आस पास के गाँव जैसे रेलगांव, सेरसी, देवीधार, रामपुर, सीतापुर, त्रियुगी नारायण, सोनप्रयाग में गाय का खूब पालन होता है इस कारन से बड़ासू में आपको शुद्ध गाय के दूध से बनी चाय, गाय का दूध, गाय के दूध से बने पेड़े आपको यहाँ पर मिलेंगे

बड़ासू की एक खास बात और है की यहाँ के पास के गाँव खोली और तिरसाली में सब्जी और दालें भारी मात्र में उगाई जाती है, इस कारन से यहाँ पर जो भी दाल सब्जी होती है वोह एक दम कुदरती तरीके से तैयार होती है और इसमें कोई भी रासायनक खाद या जहरीली दवाई का स्प्रे आदि नहीं होता है जिससे यहाँ पर हर चीज़ शुद्ध मिलती है...

केदारनाथ जी के पूरे रास्ते में जितनी भी मार्किट हैं उनमे काफी भीड़ रहती है जब की बड़ासू एक गाँव है और यहाँ पर शाम के ठंडी हवा का आनंद ही कुछ और है.....

मैं पिछले 90 दिन में बहुत जगह पर रहा परन्तु जब से बड़ासू आया तो यहीं का हो कर रह गया हूँ...

अपनी लगभग 150 पुस्तकों के रचना मैंने यहीं पर की है..और इतना ही नहीं अपने बच्चे शिवम को भी कह दिया है की वोह एक स्कूल ऑफ़ बिज़नस एंड मार्केटिंग यहाँ पर बनवाये और शिवम हेलीकाप्टर सेवा की लैंडिंग के लिए एक हेलिपैड यहाँ पर जल्दी बनवाये...

शिवम को यह भी कहा है की श्री केदारनाथ धाम के रास्ते में श्रद्धालुओं के लिए रास्ते में कहीं भी योग और मैडिटेशन करने के लिए कोई स्थान नहीं है ...न ही कहीं पर भी गाइड लाइन और उनको धार्मिक स्थानों व् तीर्थ स्थानों के महत्व पर बताने वाला कोई लिटरेचर है....आप जल्दी ही इसकी भी व्यवस्था बड़ासू में ही कर दें...एक लाइब्रेरी की भी बड़ासू में स्थापित करने को बोल दिया है…मध्य प्रदेश के इंदौर से मनीष त्रिवेदी जी, मनीषा त्रिवेदी जी को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी गयी है..राजस्थान, हिमाचल,, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उड़ीसा से भी काफी लोग आगे आये हैं...मलेशिया से भी मेरे विधार्थी मुझे सहयोग कर रहे हैं .ऐसे में आने वाले समय में बड़ासू आपके लिए केदारनाथ यात्रा का सबसे आसान और सबसे अधिक सुविधा वाला गाँव बन जाएगा…..आप सभी भी मेरे नंबर और व्हात्ट्सएप पर सम्पर्क करके या मेल फेसबुक द्वारा मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं...

लेखक प्रेम अरोड़ा

Call & Whatsapp: 7534875757

E-mail:

श्री केदारनाथ यात्रा के बारे में सम्पूरण जानकारी लेने के बाद अब समय है की श्री केदारनाथ यात्रा की महिमा को पढ़ा जाए…

केदारनाथ यात्रा की महिमा

केदारनाथ की भूमि में प्रविष्ट होते ही आनंद और आश्चर्य की सीमा नहीं रहती। समुद्र की सतह से बाहर तेरह हज़ार फूट की ऊँचाई पर इस मंजुल तीर्थ पर पहुँचते ही शीत, क्षुधा, पिपासा आदि कितने ही विघनों के होते हुए भी किसी भी धार्मिक व्यक्ति का मन भाव समाधि में लींन हो जाता है। धवल धवल पर्वत पंक्तियों के बीच खड़ा मनुष्य इश्वर की अखंड विभूति को देख कर इसी में लींन हो कर रह जाता है। प्रकृति के अनुपम सुंदर को निहार कर इस रमणीय भूमि में स्वयं हे सत्य भाव उमड़ आता है और जब मन में श्रद्धा की उष्णता उमड़ने लगे तो भला फिर मन्दाकिनी का जल शीतल कैसे लगे? शुद्ध व् सात्विक श्रद्धा ही बड़े पुण्य का फल है। पापी लोगों के मन में श्रद्धा का उदय नहीं होता। मनुष्य संसार में जिस दिन जन्म लेता है उसी दिन मृत्यु को अपने सर पर लिए आता है किन्तु बड़ा होने के साथ ही वह यह सब भूल जाता है। इस तरह जिसके पास पापों का ढेर लग गया हो उसे पारलोकिक पुण्य क्रियाओं और आत्मशुद्धी की बुद्धि उत्पन्न नहीं होती। और जो भी व्यक्ति नगरों में रहते हुए गंगा के जल को छूते नहीं, देव मंदिरों में झांकते तक नहीं वह भी केदारनाथ जी की सत्व पृथ्वी पर आकर मन्दाकिनी की अति शीतल जलधारा में बढ़ी श्रद्धा से स्नान करके “केदारनाथ की जय” की पुण्यध्वनी के साथ और “हर-हर महादेव” के जयघोष से मंदिरों में प्रवेश करते हैं। आह! यहाँ कितनी वचित्र महिमा है भगवान् शंकर की। वह सभी जीवों के प्रति समान प्रेम और स्नेह रखते हैं तभी तो यहाँ आकर प्रत्येक के मन में चित को पिघला देने वाला अनुराग पैदा हो जाता है। और ईश्वर के चरणों में अनुराग एक शुद्ध भक्ति पैदा होने से ही मनुष्य जन्म कुतार्थ होता है।

पौराणिक आख्यान

व्यास स्मृति के “चौथे अध्याय में” केदार तीर्थ करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।

महाभारत का शल्य पर्व (38वां अध्याय) संसार में सात सरस्वती हैं १. पुष्कर में सुप्रभा २. नैमीषारन्य में कान्च्नाक्षी ३. गया में विशाला ४. अयोध्या में मनोरमा ५. कुरुक्षेत्र में ओघवती ६. गंगाद्वार में सुरेण ७. हिमालय में विमलोद्का ।

शान्तिपर्व (35वां अध्याय) महाप्रस्थान यात्रा अर्थात पर गमन करके प्राण त्यागने से मनुष्य शिवलोक को प्राप्त होता है। (वनपर्व ३८वा अध्याय) केदार कुण्ड में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, कृष्णा पक्ष की चतुर्थी के दिन शिव के दर्शन करने से स्वर्ग मिलता है।

लिंग पुराण: (92वां अध्याय) जो मनुष्य संन्यास लेकर केदार में निवास करता है वो शिव के सम्मान हो जाता है।

वामन पुराण: (36वां अध्याय) केदार क्षेत्र में निवास करने से तथा डीडी नामक रूद्र का पूजन करने से मनुष्य को अन्यास ही स्वर्ग को जाता है।

पद्म पुराण: (91वां अध्याय) कुम्भ राशि के सूर्य तथा बृहस्पति को जाने पर केदार का दर्शन मोक्षदायक होता है।

कूर्म पुराण: (36वां अध्याय) हिमालय तीर्थ में स्नान करने से केदार के दर्शन करने से रूद्र लोक मिलता है।

गरुड़ पुराण: (81वां अध्याय) केदार तीर्थ सम्पूरण पापों का नाश करने वाला है।

सौर पुराण: (६९वां अध्याय) केदार शंकरजी का महातीर्थ है जो मनुष्य यहाँ स्नान करके शिवजी का दर्शन करता है, वह गणों का राजा होता है।

ब्रह्म वैवर्त पुराण: (कृष्णा जन्मखंड 17वां अध्याय) केदार नामक राजा सतयुग में सप्तदीप का राज्य करता था, वह वृद्ध होने पर अपने पुत्र को राज्य दे वन में जा तप करने लगा, जहाँ उसने तप किया वह स्थान केदार खंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। रजा केदार की पुत्री वृन्दा जो कमला का अवतार थी, ने अपना विवाह नहीं किया, घर छोड़ कर तप करने लगी, उसने जहाँ पर तप किया वोह स्थान वृन्दावन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

शिव पुराण: (ज्ञान सहिता 38वां अध्याय) शिवजी के 12 ज्योतिलिंग विराजमान हैं, उनमे से केदारेश्वर लिंग हिमालय पर्वत पर स्थित है। इसके दर्शन करने से महापापी भी पापों से छूट जाते हैं, जिसमे केदारेश्वर लिंग के दर्शन नहीं किये उसका जन्म निरर्थक है।

स्कन्द पुराण: (केदारखंड प्रथम भाग 40वां अध्याय) युधिष्ठर आदि पांडव गण गौत्र हत्या के पाप से छूटने का उपाय श्री व्यास जी से पूछा। व्यास जी कहने लगे के शास्त्र में इन पापों का कोई प्रायश्चित नहीं है, बिना केदार खंड के जाए यह पाप नहीं छूट सकते, तुम लोग वहां जाओ। वहां निवास करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा वहां मृत्यु होने से मनुष्य शिव रूप हो जाता है, यही महापथ है।

आरती श्री केदारनाथ जी की

जय केदार उदार शंकर,मन भयंकर दुःख हरम |

गौरी गणपति स्कन्द नन्दी,श्री केदार नमाम्यहम् |

शैल सुन्दर अति हिमालय, शुभ मन्दिर सुन्दरम |

निकट मन्दाकिनी सरस्वती, जय केदार नमाम्यहम |

उदक कुण्ड है अधम पावन, रेतस कुण्ड मनोहरम |

हंस कुण्ड समीप सुन्दर,जय केदार नमाम्यहम |

अन्नपूरणा सह अर्पणा, काल भैरव शोभितम |

पंच पाण्डव द्रोपदी सह,जय केदार नमाम्यहम |

शिव दिगम्बर भस्मधारी,अर्द्ध चन्द्र विभूषितम |

शीश गंगा कण्ठ फिणिपति,जय केदार नमाम्यहम |

कर त्रिशूल विशाल डमरू,ज्ञान गान विशारदम |

मझहेश्वर तुंग ईश्वर, रुद कल्प महेश्वरम |

पंच धन्य विशाल आलय,जय केदार नमाम्यहम |

नाथ पावन हे विशालम |पुण्यप्रद हर दर्शनम |

जय केदार उदार शंकर,पाप ताप नमाम्यहम ||

(समाप्त)

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