सुमन Deepali Kohli Sethi द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सुमन

सुमन
हौंसले की कहानी


सुमन एक सुंदर व सुशिल लड़की थी। वह दिखने में जितनी सुन्दर थी उसका मन भी उतना ही सुंदर व साफ़ था। उसे बचपन से ही दूसरों की मदद करना अच्छा लगता था।

सुमन के माता - पिता दूसरों के घर में काम करते थे। इसी तरह से मेहनत करके उन्होंने सुमन को पढ़ाया था। कई - कई दिन तक उन्हें भूखा रहना पड़ता था पर अपनी गरीबी की छाया उन्होंने कभी सुमन पर नही पड़ने दी थी। ये उनके अच्छे कर्मों का ही फल था कि उन्हें सुमन जैसी लायक व सुशिल लड़की मिली थी।

सुमन जब छोटी थी तो अपनी माँ की गोद में जा बैठती और बड़े लाड़ से उनके गले में बाहें डालकर कहती "माँ आप चिंता मत करो। हमारी गरीबी के दिन जल्दी ही कट जायेंगे। जब मैं बड़ी हो जाउंगी तो सब ठीक कर दूंगी। हम भरपेट खाना खाया करेंगे। हमारा बड़ा सा घर होगा। अच्छा कारोबार होगा। अपनी गाड़ी होगी। पिता जी को किसी और की गाड़ी चलाने का काम नही करना पड़ेगा। वो हमें हमारी गाड़ी में रोज़ घुमाने ले जाएंगे। माँ तुम्हे भी किसी और के घर का काम नही करना पड़ेगा। हम अपने घर में कामवाली रखेंगे और तुम रानी की तरह आराम करोगी।"

सुमन की ये बातें सुनकर उसकी माँ की आँखों में आंसू आ गए। वो सोचती है कि सुमन अभी छोटी है। अभी उसमे बचपना है। अभी वो जिंदगी की सच्चाई से वाकिफ नही हुई है। इसीलिए वो अभी ये बड़ी - बड़ी बातें सोच सकती है। जब जिंदगी की सच्चाई से वाकिफ होगी तब उसे समझ में आएगा की ऐसी जिंदगी जीना हम जैसे गरीबों के बस की बात नही है। और ना ऐसी जिंदगी हमारी तकदीर में लिखी है।

सुमन की माँ सुमन द्वारा कही गयी बातों को सुमन का बचपना समझ रही थी पर सुमन नही। वो अपनी कही गयी बातों को लेकर गंभीर थी। सुमन के लिए तो अपने माता - पिता को ऐसी जिंदगी देना ही उसके जीवन का मकसद था। वो किसी भी कीमत पर अपने इस लक्ष्य को पुरा करना चाहती थी। उसे खिलौनों से खेलना पसंद नही था और ना ही वो बाहर मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलती थी। उसे पढ़ना अच्छा लगता था और दिन - रात वह बस पढ़ाई में ही डूबी रहती थी। वह जानती थी की उसके माता - पिता कितनी मुश्किल से उसे पढ़ा रहे हैं। इसलिए वह उन्हें निराश नही करना चाहती थी और फिर उसे अपना लक्ष्य भी तो पूरा करना था जिसके लिए उसका पढ़ना बेहद जरूरी था।

सुमन दिन - रात अपने लक्ष्य के बारे में सोचती और पढ़ाई में डूबी रहती। सुबह उठते ही पहले वो पढ़ाई करती। नहाने व पूजा करने के बाद वो फिर से पढ़ाई करने बैठ जाती। खाना खाते वक़्त भी उसकी नजरें व ध्यान किताबों पर ही होता था। सोना तो जैसे वो भूल ही गयी थी। बस पढ़ना ही उसे अपने लक्ष्य को पूरा करने का रास्ता लगता था। इसलिए वो सब कुछ भूल कर पढ़ाई ही करती रहती थी।

उसकी इतनी मेहनत का ही परिणाम था कि सुमन हर कक्षा में प्रथम आती थी। स्कूल में अच्छे अंकों से बारहवीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद उसने कॉलेज में एडमिशन लिया। बारहवीं में अच्छा रिजल्ट होने के कारण उसे शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में काम फीस में एडमिशन मिल गया। सुमन की तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी ही गई थी। शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में एडमिशन पाकर उसका उत्साह और बड़ गया था। अब वो और ज्यादा मेहनत करने लगी थी। पढ़ाई के साथ - साथ वह कॉलेज के हर प्रोग्राम में बड़ चढ़कर हिस्सा लेती थी और पुरस्कार भी प्राप्त करती थी। कॉलेज में वह सभी अध्यापिकाओं की चहेती थी। सभी उसे पसन्द करते थे। पढ़ाई हो या किसी तरह का कॉम्पिटिशन वह सभी में आगे थी। चाहे वह डांस का कॉम्पिटिशन हो या भाषण का। सुमन पुरे कॉलेज में नम्बर 1 थी। सुमन को रंगोली बनाना बहुत पसंद था। कॉलेज में कोई भी प्रोग्राम होता तो वह ही रंगोली बनाती थी। स्कूल व कॉलेज में उसने रंगोली के कई कॉम्पिटिशन भी जीते थे। कोई त्योहार होने पर वह अपने घर में भी जरूर रंगोली बनाती थी। कॉलेज में सुमन अपनी सभी सहेलियों की चहेती थी। सभी उसे पसंद करती थी। सुमन भी अपनी सभी सहेलियों की पढ़ाई में पूरी मदद करती थी।

समय पंख लगा कर उड़ता गया। स्कूल की तरह कॉलेज में भी सुमन ने अपने कॉलेज और अपने माता - पिता का खूब नाम रोशन किया। उसने कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अब तक कॉलेज का इतना अच्छा रिजल्ट नही आया था जितना इस बार आया था। समय के साथ - साथ अपने लक्ष्य को पूरा करने का हौंसला सुमन के अंदर और मजबूत होता गया। अच्छे रिजल्ट के कारण सुमन को कॉलेज से निकलते ही बड़ी - बड़ी कंपनियों में अच्छी जॉब्स की ऑफर आने लगी। सुमन इस सबसे बहुत प्रभावित थी। वह तो किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहती थी। अपने माता - पिता को कुछ करके दिखाना चाहती थी। नौकरी के ऑफर खुद - ब - खुद मिलना उसके लिए किसी सपने के साकार होने से कम नही था। ये सफलता की तरफ बढ़ने में उसका पहला कदम था।

अपने माता - पिता का आशीर्वाद लेकर सुमन ने अपना ये पहला कदम बढ़ा दिया। उसने नौकरी पर जाना शुरू कर दिया। ये उसके लिए एक नई जिंदगी थी। उसे अच्छी तनख्वाह भी मिलती थी। ऑफिस में वह अपना काम पूरी लगन के साथ किया करती थी। अपनी मेहनत और लगन से सुमन ने थोड़े समय में ही कंपनी को अच्छा प्रॉफिट दिलवा दिया था। ऑफिस में सब उसके काम से प्रभावित थे। जल्द ही उसे ऑफिस में प्रमोशन मिल गया। अब उसका पद भी ऊँचा हो गया था और उसे तनख्वाह भी और अच्छी मिलने लगी थी।

सुमन की नई जिंदगी की एक अच्छी शुरुआत हो चुकी थी। सब कुछ अच्छे से चल रहा था। पर सुमन अभी इतने से संतुष्ट नही थी। उसका जो लक्ष्य था केवल जॉब करके वह उस लक्ष्य को पूरा नही कर सकती थी। उसे तो कुछ बड़ा करना था। वह कुछ ऐसा काम करना चाहती थी जिससे उसका लक्ष्य पूरा हो सके।

ऑफिस से तो उसे अच्छी तनख्वाह मिल जाती थी। इसके साथ ही सुमन ने पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया। ऑफिस से छुट्टी होने पर वह घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी। पढाई में तो वह बचपन से ही होशियार थी इसलिए उसके पास पढ़ने के लिए ज्यादा बच्चे आने लगे। इससे उसकी आमदनी भी ज्यादा बढ़ गयी। सुमन को धीरे - धीरे अपनी मंजिल पास आती दिखाई दे रही थी। पर वो जानती थी की जो उसका लक्ष्य है उसे पाने के लिए उसे कुछ बड़ा करना होगा। कुछ ऐसा करना होगा जिससे उसका लक्ष्य भी पूरा हो सके और वह जरूरतमंदों की मदद भी कर सके। इसके साथ ही वह चाहती थी की उसके माता - पिता अब किसी के लिए काम न करें । वह उन्हें घर भी नही बिठाना चाहती थी क्योंकि वह नही चाहती थी की लोग कहें कि सुमन के माता - पिता घर बैठे हैं और सुमन कमा रही है।

सुमन ने कुछ अलग करने के बारे में बहुत सोचा। और अंत में वह इस नतीजे पर पहुंची की उसे अपना कोई काम शुरू करना चाहिए। कोई ऐसा काम जिससे वह अच्छी आमदनी भी कमा सके और अपने लक्ष्यों को भी पूरा कर सके। काम शुरू करने से पहले उसे अच्छे पैसे चाहिए थे। जिसके लिए उसे और ज्यादा मेहनत करनी थी। और सुमन इसके लिए तैयार भी थी।

सुमन अपने ऑफिस में ज्यादा देर तक काम करने लगी। जिससे उसे एक्स्ट्रा पैसे मिलने लगे। उसने ट्यूशन के भी 2- 3 बैच लेने शुरू कर दिए। जिससे उसकी आमदनी और बढ़ गयी। इसके अलावा वह रात को मोहल्ले के बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा भी देने लगी। कुछ कमाई इससे भी होने लगी। कुछ बड़े घर के बच्चों को वह कंप्यूटर सिखाने उनके घर भी जाया करती थी।

सुमन की सुबह कब होती थी और शाम कब हो जाती थी उसे पता ही नही चलता था। पर फिर भी वो खुश थी। क्योंकि वह अपने लक्ष्य को पूरा करने में आगे बढ़ रही थी। आज की मेहनत से उसकी जिंदगी बदल सकती थी। और सुमन इस बात को अच्छे से समझती थी इसलिए ही वो दिन - रात मेहनत करती थी। सुमन ने पैसे बैंक में जमा करवाने भी शुरू कर दिये। बैंक की तरफ से पैसों पर थोड़ा - बहुत ब्याज भी मिल जाता था। सुमन के लिए ये एक्स्ट्रा इनकम से कम नही था।

कुछ साल सुमन ने डटकर मेहनत की। अब वह इतनी काबिल हो गई थी की अपना कोई काम शुरू कर सके। उसने इस बारे में बहुत सोचा की उसे क्या काम करना चाहिए। ये उसकी जिंदगी का सबसे एहम डिसिशन था क्योंकि इसका असर उसकी पूरी जिंदगी पर पढ़ने वाला था। सुमन ने दिन - रात इस बारे में सोचा और अंत में उसे वो काम मिल ही गया जिसकी मदद से सुमन अपने लक्ष्य को पूरा कर सकती थी। सुमन ने सोच लिया की उसे 'बुटीक' का काम शुरू करना चाहिए। इस काम से सुमन को अच्छी आमदनी भी हो सकती थी। सुमन जरूरतमंदों को रोज़गार भी दे सकती थी। और साथ ही साथ नया बिज़नेस बनाकर सुमन अपने माता - पिता का भविष्य भी सिक्योर कर सकती थीं।

सुमन को बुटीक का काम पसंद भी था। इस काम से उसके कई अच्छे और बड़े - बड़े कांटेक्ट भी बन सकते थे। सुमन को अपना फैसला एकदम उचित लगा । बुटीक के काम से बेहतर और कोई काम हो ही नही सकता था। सुमन ने मन बना लिया था कि वो अब बुटीक का काम ही शुरू करेगी।

सुमन ने इस बारे में अपने माता - पिता से बात की। सुमन को उम्मीद थी की हर बार की तरह इस बार भी उसके माता - पिता जिंदगी के इस एहम डिसिशन में उसका साथ देंगे। पर इस बार वो गलत साबित हुई। सुमन के माता - पिता ने सुमन को अपना बुसिनेस करने से साफ़ - साफ़ मना कर दिया। सुमन को इस बात की उम्मीद नही थी। उसे तो लगा था कि उसका फैसला बिलकुल सही है और इसका ये फ़ैसला उसके माता - पिता को भी सही ही लगेगा लेकिन यहां तो स्थिति कुछ और ही थी।

सुमन अपनी बात पर अड़ी हुयी थी।वो किसी भी कीमत पर बुटीक का काम खोलना चाहती थी। उसे अपने लक्ष्य को पूरा करना था पर उसके माता - पिता ही उसका साथ नही दे रहे थे। जिनके लिए वह बुटीक ओपन करना चाहती थी वो ही उसके साथ नही थी। पर सुमन हार मानने वालों में से नही थी। उसने सोच लिया था की वो अपने माता - पिता को मना कर रहेगी । उसका दिल कहता था कि इस काम से वो अपना लक्ष्य पूरा कर सकती है। सुमन ने इस बारे में अपने माता - पिता से एक बार फिर से बात की।

"हम नही चाहते की तुम कोई बुटीक खोलो। तुम पहले ही हमारे लिए बहुत कुछ कर चुकी हो। इतना तो कोई बेटा भी नही कर सकता जो तुमने बेटी होकर किया है।" सुमन के पिता ने कहा।

"तुम्हारे पिता सही कह रहे हैं " सुमन की माता जी बोली। " तुमने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। अपना बचपन भूल कर , अपने शौंक भूलकर तुमने मेहनत की। हमारे लिए अच्छा बैंक बैलेंस बनाया। और अब हमारे भविष्य के लिए बुटीक का काम खोलने की बात कर रही हो। ये सही नही है। तुमने बहुत मेहनत कर ली। अब और काम नही। अब हम चाहते हैं कि तुम शादी कर लो और अपना घर बसाओ। जिन पैसों से तुम बुटीक खोलना चाहती हो उन पैसों से तुम्हारी शादी धूमधाम से हो सकती है। अब तुम अपने बारे में सोचो"।

सुमन की आँखों में आंसू आ गए थे। वह क्या करे उसे कुछ समझ में नही आ रहा था। पर वह हिम्मत करके बोली " माँ - पिताजी , मैंने अपना बचपन भुलाया सिर्फ इसलिए की मुझे एक लक्ष्य को पूरा करना था। बड़े होकर इतनी मेहनत की ताकि जल्द से जल्द वो लक्ष्य पूरा हो जाये। पर आज जब मैं अपने लक्ष्य के इतने करीब हूँ तो आप मुझे पीछे हट जाने को कह रहे हैं। ये एक आखिरी काम है जो मुझे करना है। उसके बाद मैं शादी कर लुंगी। शादी के बाद पता नही मेरी जिंदगी कैसी होगी। पता नही मैं आपके लिए कुछ कर पाऊँगी या नही। जरूरतमंद लोगों की मदद कर पाऊँगी या नही। लेकिन अभी मैं ये सब कर सकती हूं। आज बुटीक खोलकर ना केवल आप दोनों के भविष्य को लेकर मैं चिंतामुक्त हो जाउंगी बल्कि कितनी और लड़कियों को रोज़गार मिल जायेगा। मेरी तरह उनके भी लक्ष्य हैं जिन्हें वो पूरा करना चाहती हैं । उन्हें बस एक अवसर की जरूरत है। मुझे परमात्मा ने इतना काबिल बनाया है कि मैं उन्हें ये अवसर दे सकती हूँ। मेरे इस छोटे से फैसले से कितने लोगो की जिंदगी बदल सकती है। अब आप ही बताएं कि मेरा ये फैसला सही है या नहीं "

सुमन की बातें सुनकर उसके माता - पिता की आँखों में आंसू थे। और उनका सिर गर्व से ऊँचा हो गया था। परमात्मा ने पता नही उनके किन अच्छे कर्मों का फल उन्हें सुमन जैसी बेटी के रूप में दिया था। वे बहुत खुश थे सुमन जैसी बेटी पाकर।

सुमन भी खुश थी। अपनी मंजिल को पाने में वह केवल एक कदम दूर थी। उसने भगवान का नाम लेकर बुटीक की नींव रखी। दो जरूरतमंद लड़कियां जो सिलाई का काम जानती थी सुमन ने उन्हें काम पर रख लिया। सुमन खुद भी सिलाई का थोड़ा बहुत काम जानती थी। उसने भी लड़कियों के साथ ही काम करना शुरू कर दिया। लड़कियों से वो और ज्यादा काम सिखने भी लगी। सुमन की माता जी भी बुटीक पर बैठती थी और लड़कियों का हाथ बंटाती थी। धीरे - धीरे मोहल्ले की औरतों ने सुमन के बुटीक से कपडे सिलवाने शुरू कर दिए। सुमन ने सिलाई के दाम कम रखे थे और उसने जो लड़कियां रखी थी वो काम भी बहुत अच्छा करती थी। मोहल्ले की औरतों को सुमन के बुटीक का काम बहुत पसंद आया। सुमन की सहेलियां भी उसके पास ही सिलाई का काम लेकर आती थी। सुमन के बुटीक का काम सभी को पसंद आया। धीरे - धीरे उसके बुटीक का काम अच्छा चलने लगा। सुमन ने बुटीक पर जो लड़कियां रखी थी उनके भी काम करने का खूब जज़्बा था। सुमन की तरह वो भी कुछ बनना चाहती थी। उनके भी कुछ लक्ष्य थे जो वो पूरा करना चाहती थी। सुमन ने उन्हें अपने सपनों को साकार करने का मौका दिया था। इसके लिए वो सुमन की एहसानमंद थी। वो पूरी लगन के साथ बुटीक पर काम किया करती थी। वो अपना काम समझ कर ही बुटीक पर काम किया करती थीं। उन लड़कियों का काम सभी को इतना पसंद आने लगा की सुमन के बुटीक का काम चल पड़ा। अब तो शहर की ज्यादातर औरतें सुमन के बुटीक पर ही कपडे सिलवाने आती थी। सुमन ने अब और लड़कियां रख ली और मशीनें भी रख ली। सुमन को शादी ब्याह के कपड़ों के भी अच्छे आर्डर मिलने लगे। धीरे - धीरे उन सबकी मेहनत रंग लाई और बुटीक पर बहुत ज्यादा कपडे सिलने के लिए आने लगे। सुमन के बुटीक का काम अब इतना बढ़ चुका था कि सुमन अब दिन का हजारों रूपया कमाती थी।

सुमन के पिता जी ने बुटीक के काम के साथ ही अब रेडीमेड कपड़ों के काम भी शुरू कर दिया। जो लोग सूट सिलवाने आते थे वो सुमन के पिता जो की दूकान से और रेडीमेड कपड़े भी ले जाते थे। और जो सूट लेने आते थे वो सिलाई का काम भी सुमन के बुटीक पर ही दे जाते थे। अब तो उनकी आमदनी दुगनी हो गयी थी। सुमन के बुटीक का बहुत नाम हो गया था।

बुटीक का साथ साथ सुमन की भी बहुत चर्चा होती थी। सभी जानते थे की सुमन ने कितनी मेहनत की थी। कितना कुछ सुमन ने अपने माता - पिता के लिए किया था ये बात सब जानते थे। सबकी जुबान पर अब सुमन का ही नाम था। अब सुमन अपनी जिंदगी से पूरी तरह संतुष्ट थी। उसका लक्ष्य पूरा हो चूका था। बुटीक खोलकर उसने सारी उम्र के लिए अपने माता - पिता की रोज़ी - रोटी का तो बंदोबस्त कर ही दिया था। साथ ही साथ उसकी वजह से कितनी लड़कियों को रोज़गार भी मिल गया था। सुमन ने अपने माता - पिता के कहने पर शादी के लिए भी हाँ कर दिया था।

सुमन के लिए बड़े - बड़े घरों के रिश्ते आने लगे। सुमन जैसी बहु हर कोई पाना चाहता था। उसके जैसी संस्कारी , सुंदर व सुशिल लड़की पाकर घर को स्वर्ग बनाया जा सकता था। हर कोई चाहता था कि उनके बेटे को सुमन जैसी संगिनी मिले पर सुमन ऐसे रिश्ते की तलाश में थी जो उसके जैसा हो। उसके माता - पिता का सम्मान करे। उसे लड़के को सुमन के पैसों , नाम का कोई लालच ना हो। शादी के बाद भी वह बुटीक का सारा पैसा अपने माता - पिता को दे इससे उस लड़के को कोई परहेज ना हो। और सुमन को सागर के रूप में ऐसा लड़का मिल भी गया।

सागर सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर था। उसे पैसों का कोई लालच नही था। घर में उसके माता - पिता ही थे। सागर अपने माता - पिता की इकलौती संतान था सुमन की तरह। सागर का पास अच्छी ज़मीन ज़ायदाद थी। बस उसे सुमन जैसी एक संगिनी की तलाश थी । और उसकी ये तलाश भी अब पूरी हो चुकी थी।

सुमन और सागर दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर लिया था। दोनों एक साथ जिंदगी बिताने के लिए तैयार थे। जल्दी ही दोनों की शादी बड़े धूमधाम के साथ हो गयी। शादी करके सुमन एक नए घर में , नए लोगो के बीच आ गयी। ये उसके लिए एक नया जीवन था। वह थोड़ा डरी हुई तो थी पर सागर के साथ के कारण उसे इस नए घर में भी अपनापन सा महसूस हो रहा था। नयी जिंदगी की शुरुआत करने के लिए वह पूरी तरह तैयार थी।

शादी के बाद भी बुटीक और रेडीमेड कपड़ों का काम अच्छा चल रहा था। सुमन खुश थी उसकी शादी के बाद भी उसके माता - पिता काम को अच्छे से चला रहे थे। बुटीक से होने वाली कमाई भी सुमन अपने माता - पिता को ही दे दिया करती थी । सागर और उसके माता - पिता को इस बात से कोई परेशानी नही थी। क्योंकि उन्हें पैसों का कोई लालच नही था। उन्हें परमात्मा ने पहले ही बहुत कुछ दिया था। और अब तो उन्हें सुमन जैसी बहु भी मिल गयी थी। अब उन्हें परिवार के वारिस के अलावा और कुछ नही चाहिए था।

सागर जैसा पति पाकर सुमन भी बहुत खुश थी। सागर उसका बच्चों की तरह ख्याल रखता था। वह जानता था कि सुमन ने अपनी जिंदगी में अब तक कितनी मेहनत की है। इसलिए अब वह सुमन को दुनिया की हर ख़ुशी देना चाहता था। वह सुमन की छोटी - छोटी खुशियों का खूब ख्याल रखता था।

सागर के माता - पिता भी सुमन को बेहद प्यार करते थे। वे उसे हमेशा खुश रखते थे। समय बीतता गया और सुमन ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया। उनके घर पर तो जैसे दिवाली का माहौल था। नन्हे से मेहमान के आने पर घर में खूब रौनक लगी हुई थी। सुमन के माता - पिता भी बधाई देने के लिए सुमन के घर आये हुए थे।

सुमन ने सबकी तरफ देखा। सबके चेहरे पर मुस्कान थी। सुमन को ऐसा महसूस हुआ की अब उसका परिवार पूरा हो चूका है। उसने अपने जीवन को सार्थक कर लिया है। उसने इतनी अच्छी जिंदगी के लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा किया और अब जिंदगी को और ज्यादा जीने के लिए अपने परिवार में शामिल हो गयी।