10 ग़ज़ल Ajay Gupta द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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10 ग़ज़ल

(1)

जाने कैसी अजब पहेली है
जान इस ज़िन्दगी ने ले ली है

वक़्त की मार को न कुछ बोलो
ठोकरें इस की गुड़ की भेली हैं

मैं लकीरों पे क्यों यकीं कर लूँ
मेरे हाथों में ये हथेली है

कौन जानेगा ये सिवा अपने
कैसे हमने जुदाई झेली है

मैं अकेला यहाँ पे हूँ ऐसे
जिस तरह तू वहां अकेली है

जब से खाली हुआ तेरा कमरा
खाली-खाली सी ये हवेली है

तुमसे मिलने के वास्ते हमने
सांस भी अब तलक धकेली है

आने वाला समय बतायेगा
कौन राजा है कौन तेली है

गुल भी खिल जाएंगे तू धीरज धर
ये फ़िज़ा ही नई-नवेली है

(2)

चलते चलते थक गया तो दौड़ने का मन हुआ
गुम हुई किस्मत को फिर से खोजने का मन हुआ

कब तलक कोई सहे इल्ज़ाम पर इल्ज़ाम यूँ
सुनते-सुनते थक गया तो बोलने का मन हुआ

वक़्त के हर इक सितम को पहले मैं सहता रहा
घिर गया जब हर तरफ़ से घेरने का मन हुआ

काम क्या था और क्या क्या कर रहा था क्या पता
आखिरी दस्तक से पहले सोचने का मन हुआ

(3)

पास नज़रों के वो मंज़िल कभी ऐसे तो न थी
पर ये तक़दीर भी काहिल कभी ऐसे तो न थी

आज पहली ही दफ़ा इनको किया है बाहर
ये तेरी याद भी बोझिल कभी ऐसे तो न थी

वहशियाना मैं हुआ तो है भला क्यों हैरत
वस्ल की आस भी ज़ाहिल कभी ऐसे तो न थी

मुद्दई खौफ़ नहीं रखता खुदा से भी अब
ये अदालत तेरी आदिल कभी ऐसे तो न थी

अब तो हर सांस पे ये जान आती जाती है
तू मेरी सांस में शामिल कभी ऐसे तो न थी

(4)

आज के दौर में नेकियाँ ढूंढना
भूस के ढेर में सूइयां ढूंढना

थाल भर कर मिला सब्र लेकिन नहीं
छोड़ दो अब तो ये बोटियाँ ढूंढना

एक बेड़ी है ये नफ़रतें बढ़ रही
नाम में से छुपी जातियां ढूंढना

तुम संभाले हुए हो मुझे है यकीं
मेरी लिक्खी हुई चिट्ठियां ढूंढना

शोख अदाओं से ये हुस्न करता है क़त्ल
इश्क की है अदा शोखियां ढूंढना

खूबियां है बहुत मुझ में पर ये जहान
इसको भाता है बस गलतियां ढूंढना

(5)

इसी खातिर बना है ये अँधेरे को कुचल पाए
वो सूरज क्या जो शाम आये करीने से न ढल पाए।

मिले जब लुत्फ़ फुरकत का तभी आकर खलल पाए
न वो अरमां विसाले-यार का दिल से निकल पाए।

कभी इस राह से गुज़रुं मलाल आता है तब दिल में
न लेकर हाथ में हम हाथ तेरे साथ चल पाए।

ज़वाहर था, ज़वाहर हूँ ज़वाहर ही रहूँगा मैं
बदलते ताज ये पहचान मेरी कब बदल पाए।

कहें वो कुछ न पूरा हो कहाँ मुमकिन कहाँ मुमकिन
हुकुम का हुक्म आया है न कैसे ये अमल पाए।

ये किस्से हीर-रांझे के कहानी लैला-मजनूँ की
हमारी सरफ़रोशी की तमन्ना कब कुचल पाए।

मेरे सीने पे इक पत्थर है तुझसे बेवफाई का
कोई तो आंच होगी जिसमें जल के ये पिघल पाए।

(6)

आसान किसी पर यूँ इलज़ाम लगाना है
मुश्किल है अगर कुछ तो विश्वास जताना है

हम प्रेम नगर वाले बेघर नहीं होते हम
ख्वाबों में बसेरा है नींदों में ठिकाना है

है कौन यहाँ अपना मतलब के हैं सब रिश्ते
दुनिया ये सराय है , दो रोज़ बिताना है

दिन रात अधूरे से लगते हैं बिना तेरे
कहने को तो संग बेशक ये सारा ज़माना है

बदनाम अगर हैं तो क्या नाम नहीं अपना
बदनाम मुहल्लों का ये राग पुराना है

(7)

आकर हवा में जिस दिन भी छोड़ दी ज़मीनें
वापिस तुझे ज़मीं पर ले आएँगी ज़मीनें।

हस्ती का सच समझ में ऊंचाइयों से आया
इंसा सिकुड़ रहा था, बढ़ती चली ज़मीनें।

कैसी रहमदिली ये, सरकार ने दिखाई
छोड़ा लगान लेकिन, क्यों लूट ली ज़मीनें।

इस शायरी का कोना, कब कौन ढूंढ पाया
आग़ाज़ भी ज़मीनें, अंजाम भी ज़मीनें।

दैरो-हरम का गिरना, चुपचाप सह लिया पर
इंसानियत गिरी जब, तो बोल उठी ज़मीनें।

क्यों खून से ज़ियादा, मज़बूत ख़ाक निकली
दिल बँट गए तभी जब, बँटने लगी ज़मीनें।

(8)

चाँद पर चरखा कोई चलता नहीं अब
आसमाँ धरती से भी जुड़ता नहीं अब

जंगलों में जानवर दिखता नहीं अब
आदमी इस शहर में मिलता नहीं अब

अब तो हम लेने लगे हैं सेल्फियां
पीछे झरना बह रहा दिखता नहीं अब

रीढ़ जैसे खो गई हो हर किसी की
आदमी सीधा खड़ा रहता नहीं अब

सब फ़रिश्ते हैं कहाँ कोई न जाने
कोई बच्चा नींद में हँसता नहीं अब

हैं चलन में नोट अब बदला ज़माना
सिक्का तेरा इस जगह चलता नहीं अब

और बग़ावत कर दी सूरज ने ये कहकर
रात-दिन का कोल्हू ये पिरता नहीं अब

(9)

बिना कहे ही मुझे हाल सब पता है तो
बता मुझे जो ये मेरी कोई खता है तो

कभी कभार तो चलकर यहाँ भी आया कर
दिलों के बीच में मौज़ूद रास्ता है तो

न आयतें न ही सजदा मगर नहीं काफ़िर
तुझे पुकार के मेरी नमाज़ अता है तो

बस एक तेरी वजह से है जान बाकी पर
ये जान दे दूँ अगर तू ये चाहता है तो

ये माना बेचने वाले ने खो दिया अपना
कहाँ ज़मीर बचेगा खरीदता है तो

किताब खोल के कहता है पूछ लो कुछ भी
तज़ुर्बे खोल के कुछ बोल जानता है तो

(10)

हमारा नाम लेना भी नहीं जिनको गवारा है
न जाने क्यों वही हमको ज़माने भर से प्यारा है।

यहाँ इस शहर के सब रिन्द ज़िंदा हैं जिसे पीकर
तेरी मखमूर आँखों से बहे उस मय की धारा है।

तिलिस्मी राज़ है कोई तेरे आने से जान आई
सुनो तुमको तो मुर्दों ने भी तुरबत से पुकारा है।

न कोई सल्तनत मांगूं न कोई राज ही चाहूँ
मैं रांझा हीर तू पहलू तेरा तख्ते-हज़ारा है।