रागिनी की रैगिंग Jitendra Jeetu द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रागिनी की रैगिंग

कहानी

रागिनी की रैगिंग

रागिनी सुबह से ही बिस्तर में मुँह ढांपकर पड़ी हुई थी। नये स्कूल में दाखिले का रिजल्ट आ चुका था। वह खूब अच्छे अंकों से पास हुई थी। अच्छे अंक आने का एक ही अर्थ था। उसे नये स्कूल में दाखिला मिल गया था। फिर यह रो क्यों रही थी?

हुआ यह कि कल ही उसकी एक सहेली उमा ने उसे नये स्कूल के बारे में बतलाया था कि वहाँ नये बच्चों के साथ खूब रैगिंग होती है। तभी से रागिनी परेशान थी। उसे डर था कि कहीं उसके साथ भी रैगिंग न हो जाये। इसी कारण उसने रात में ही यह फैसला ले लिया था कि वह नये स्कूल में दाखिला नहीं लेगी। वो अंधविश्वासी बिलकुल नहीं थी और कभी मंदिर नहीं जाती थी लेकिन उस रात में वह मंदिर भी गयी। मंदिर में जाकर उसने प्रार्थना की, हे भगवान! मुझे फेल कर देना, पर आज सुबह जब परीक्षा का रिजल्ट अख़बार में आया तो उसने देखा कि वह पास हो गयी है। बस, तभी से रो रही है।

मम्मी आकर दो बार पूछ गयी थीं लेकिन रागिनी ने उन्हें कुछ नहीं बतलाया। उसकी आँखें रोते—रोते सूज गयी, लेकिन आँखों में से आँसू अब भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे। गोरा—गोरा मुखड़ा अब काला स्याह लग रहा था।

इस बार कमरे में मम्मी के साथ पापा भी आ गये। शायद मम्मी ने पापा को बतला दिया था कि रागिनी रो रही है। पापा ने आकर रागिनी को प्यार से थपथपाया और उससे रोने का कारण पूछा। रागिनी और जोर से रोने लगी।

“क्या बात है रागिनी, कुछ बतलाती क्यों नहीं हो?” पापा ने थोड़ा गर्म होकर पूछा।

“मैं नये स्कूल में नहीं पढ़ूँगी।” रागिनी ने रोते—रोते उत्तर दिया।

“पहले रोना बन्द करो, फिर बोलो।” पापा ने डांटा।

रागिनी ने तुरन्त रोना बन्द कर दिया।

“अब बतलाओ, क्यों नहीं पढ़ोगी, नये स्कूल में?” पापा ने पूछा।

“पापा नये स्कूल में रैगिंग होती है।”

“तो क्या हुआ?”

“पापा, स्कूल के सीनियर्स, जूनियर्स को बहुत परेशान करते हैं।”

“बेटी, सीनियर्स अपने जूनियर्स का परिचय लेते, उन्हें परेशान नहीं करते हैं।” पापा ने समझाने का प्रयत्न किया।

“नहीं पापा। सीनियर्स अपने जूनियर्स को खूब परेशान करते हैं, इसलिए मैं नये स्कूल में नहीं जाऊँगी।” रागिनी की एक ही जिद थी।

“किसने कहा तुम्हें यह सब?” पापा ने पूछा।

“उमा ने बतलाया है पापा। उसकी कालोनी की एक लड़की वहाँ पर पढ़ती है।”

“मेरी प्यारी बिटिया! जो सीनियर्स अपने जूनियर्स को परेशान करते हैं, स्कूल वाले उनके खिलाफ एक्शन लेते हैं। तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।” पापा ने बताया।

रागिनी चुप रही।

“तुम्हें मालूम है कि इस स्कूल में दाखिला मिलना कितना कठिन है। स्कूल फीस अधिक होने के बाद भी मैं तुम्हें इस स्कूल में पढ़ने भेज रहा हूँ ताकि तुम बड़ी होकर डॉक्टर बन सको। तुमने भी तो पास होने के लिए खूब परिश्रम किया है। यदि तुम पढ़ने नहीं जाओगी तो तुम्हारा सारा परिश्रम बेकार जायेगा।” पापा ने समझाया।

रागिनी की जिद पापा के सामने बिलकुल नहीं चली। इससे ज्यादा जिद करने पर पापा नाराज हो जाते तो?

एक सप्ताह बाद रागिनी नये स्कूल में पहुँच गयी। उसके पापा उसका दाखिला कराकर वापस चले गये थे। अब रागिनी को यहीं होस्टल में रहना था। आज यहाँ उसका पहला दिन था। वह बहुत डरी हुई थी। फिर भी उसने क्लास में जाने का मन बनाया।

जैसे ही वह मेन गेट से अन्दर घुसी, उसने देखा कि सामने स्कूल के सीनियर्स, जूनियर्स को घेरे हुए थे और उनकी रैगिंग कर रहे थे। रागिनी यह देखकर एक बारगी तो काँप उठी। फिर उसने एकाएक अपना रास्ता बदल दिया।

तभी उसके कानों में आवाजें पड़ी। सीनियर्स गा रहे थे—

“हवा में उड़ता जाये, तेरा लाल दुपट्टा मलमल का, तेरा लाल दुपट्टा मलमल का, हो जी....हो जी.....।”

उसने अपने कपड़ों की तरफ देखा। आज उसने अपने चाचू का लुधियाना से भेजा सलवार—सूट पहना है और उसके दुपट्टे का रंग भी लाल है। “कहीं उनका इशारा मेरी ओर तो नहीं...।” यह सोचते ही रागिनी ने तेज—तेज कदमों से विपरीत दिशा में चलना शुरु कर दिया।

“गोरी चलो न हंस की चाल, जमाना दुश्मन है....।” उसके कानों में आवाज आयी। सीनियर्स गा रहे थे।

अब तो उसे पक्का यकीन हो गया कि वह सीनियर्स का निशाना बन चुकी है। अब वह क्या करे।

अभी वह कुछ सोच ही रही थी कि एक साथ कई सीनियर्स ने वहाँ आकर उसे घेर लिया। वो जहाँ की तहाँ खड़ी रह गयी। फिर तो सवालों के गोले उस पर दागे जाने लगे।

“तुम्हारा नाम क्या है?” एक ने पूछा।

“नीना, मीना, बीना, टीना या .....ऽ....ऽ....ऽ....मधु!” दूसरे ने गााया।

“बोलो कली, तुम्हारा नाम क्या है?” तीसरा बोला।

“र...र....रागिनी।” उसने डरते—डरते जवाब दिया।

“रागिनी.....वाह, रागिनी।” पहला चिल्लाया।

“तू मेरा राग मैं तेरी रागिनी....हो....हो.....हो....।” दूसरे ने फिर गाया।

“तुम नाचना जानती हो?” किसी ने पूछा।

“ना—ना....।” उसने जवाब दिया। हालांकि यह बहुत अच्छा नाचती थी पर उसने मना कर दिया।

“तो तुम्हारा नाम रागिनी क्यों है?” फिर सवाल।

“क्योंकि यह राग अलापती है।” जवाब भी किसी सीनियर ने दिया।

“कौन सा राग अलापती हो, रागिनी।” एक अन्य सीनियर का सवाल।

“बेसुरा राग।” किसी ने कहा तो सभी हँसे।

“तो अलाप अपना बेसुरा राग, रागिनी।”

“मुझे गाना नहीं आता।” वह शर्म से गड़ी जा रही थी।

“तो भी गाओ।” एक ने फरमान जारी किया।

“हमारे साथ गाओ।” सभी चिल्लाये।

फिर उन्होंने एक गीत गाया—

“पल्लू लटके, गोरी का पल्लू लटके, पल्लू लटके, गोरी का पल्लू लटके, जरा सा हू......ऽ......ऽ.....जरा सा हा.....ऽ.......ऽ......जरा सा, सीधो हो जा बालमा मोरा जिया धड़के......., गोरी का पल्लू लटके....।”

उन्होंने रागिनी को भी अपने साथ गाने पर मजबूर कर दिया। रागिनी ने डरते—डरते उनका साथ दिया। थोड़ी देर बाद लड़के वहाँ से चले गये। सिर्फ लड़कियाँ उसे घेरकर खड़ी रही।

“रागिनी, तुम तो बहुत अच्छा गाती हो। क्या तुम नाचना भी जानती हो?” एक लड़क्ी ने पूछा।

उत्तर में जबरन रागिनी मुस्कुरा दी।

“प्लीज रागिनी, नाचकर दिखाओ न।”

“दिखाओ न रागिनी।” दूसरी ने कहा।

“लेकिन बिना संगीत के कैसे?” अब रागिनी का भी हौसला बढ़ा तो वह बोल उठी।

“संगीत भी बजेगा, तुम शुरु तो करो....।” यह कहकर लड़कियों ने तालियों की ताल के साथ गाना आरम्भ कियां

“उड़े जब—जब जुल्फें तेरी, कुँवारियों का दिल मचले, जिंद मेरिये.....

जब ऐसे चिकने चेहरे तो कैसे न नजर फिसले....जिंद मेरिये....।”

फिर तो रागिनी जमकर नाची। एक बार उसकी झिझक टूटी तो फिर टूटती चली गयी। नाच के बाद उन्होंने होस्टल के मेस में ‘चाऊमीन' खाये जिसका स्वाद बहुत देर तक रागिनी को याद रहा।

रात को पापा का फोन आया।

पापा ने पूछा “कैसी है मेरी बेटी?” तो रागिनी खुशी से चीख उठी— “मजा आ गया, पापा।”

“मैं पूछ रहा हूँ कि रैगिंग कैसी रही?” पापा ने फोन पर पूछा।

“बहुत ‘टेस्टी' पापा” रागिनी चाऊमीन का स्वाद याद करते—करते बोल उठी।

उसका जवाब सुनकर पापा आश्चर्य से मम्मी का मुँह देखने लगे।

उधर, रागिनी ने फोन रख दिया था। वो रैगिंग के उन लम्हों को याद करके मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

सम्पर्कः जितेन्द्र ‘जीतू' ‘कविकुल', ‘खबन्दा स्वीट होम', स्टेशन रोड, बिजनौर—२४६७०१

मोबाइलः ८६५०५६७८५४