छोटी पर प्यारी प्यारी बाते
"इतना ज्ञान, तो फिर क्यों नहीं हैं खुश धरती पर लोग । " एक दिन यमराज और चित्रगुप्त आपस में बात कर रहे थे। अचानक से यमराज ने चित्रगुप्त से पूछा, "चित्रगुप्त, एक बात बताओ, वहाटसअप और फ़ेस्बुक पर होने वाले ज्ञान के आदान प्रदान को देखकर तो लगता है कि मनुष्यलोक में सभी लोग एकदम मज़े में होंगे ।
स्वर्ग का आनन्द ले रहे होंगे पर उनके चेहरों को देखकर ऐसा मालूम तो नहीं पडता । क्या प्रोब्लम हो सकता है" चित्रगुप्त हल्के से मुस्कुराये और बोले, "महाराज, कल मैंने आपको आपके पेट दर्द के लिए आयुर्वेद का एक बेहतरीन इलाज वहाटसअप पर भेजा था, वो आपको कैसा लगा?" यमराज ने बड़े ही उत्साह के साथ तुरंत उत्तर दिया और बोले, "जरूर ही बहुत अच्छा होगा चित्रगुप्त क्योंकि मैंने तुरंत उसे मेरे सारे ग्रुप्स पर फॉरवर्ड कर दिया था ।
और तुरंत बहुत सारे लाइकस भी आ गए थे । और तो और, अब वही मैसेज मुझे वापस भी आने लगे हैं." यमराज का उत्तर सुनकर चित्रगुप्त बोले, "वो तो ठीक है महाराज, - पर क्या आपने वो नुखशा आजमाया?" यमराज बड़े ही उदास होकर बोले - "नहीं चित्रगुप्त, मैं उस नुस्ख़े को नहीं आज़मा पाया क्योंकि मैं पूरा समय उस नुस्ख़े को सभी लोगों को फ़ॉर्वर्ड करने में व्यस्त रहा" ।
इसपर चित्रगुप्त ने उत्तर दिया, "तो महाराज, बस यही प्रोब्लम है. ज्ञान तो बहुत है पर जीवन मैं उतारने का समय किसी के पास नहीं। बस सब फ़ॉर्वर्ड करने में लगे रहते हैं।"
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भगवान् श्री कृष्ण को अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामो से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश मे कृष्ण या गोपाल, गोविन्द इत्यादि नामो से जानते हैं। राजस्थान मे श्रीनाथ जी या ठाकुर जी के नाम से जानते हैं। महाराष्ट्र मे बिट्ठल के नाम से जाने जाते हैं।
उड़ीसा मे जगन्नाथ के नाम से जाने जाते हैं। बंगाल मे गोपालजी के नाम से जाने जाते हैं। दक्षिण भारत मे वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते हैं। गुजरात मे द्वारकाधीश के नाम से जाने जाते हैं। असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूवोर्त्तर क्षेत्रों मे कृष्ण नाम से ही पूजा होती है। मलेसिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंगलैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।
गोविन्द या गोपाल मे "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इंद्रियों , दोनो से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद मे गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश मे इंद्रियाँ हो वही गोविंद है गोपाल है
श्री कृष्ण के पिता का नाम वासुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था.. श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल मे हुआ था।
श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे, अंगिरस ने बाद मे तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे। श्री कृष्ण ने १६००० राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी मे उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था। क्योंकि उस युग मे हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नही था।।
श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु । दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था। श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था।
श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सांदीपनि से अलौकिक विद्याओं का ज्ञान अर्जित किया था।। श्री कृष्ण की कुल आयु १२५ वर्ष थी। उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से २४ घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था। उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था। उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ मे चार घोड़े जुड़े होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।
श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे। श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था। श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था। श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी।
द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र 45 मिनट मे दे दिया था । श्री कृष्ण अवतार नही थे बल्कि अवतारी थे....जिसका अर्थ होता है "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" सर्वान् धर्मान परित्यजम मामेकं शरणम् व्रज अहम् त्वम् सर्व पापेभ्यो मोक्षस्यामी मा शुच--भगवद् गीता अध्याय 18, श्री कृष्ण सभी धर्मो का परित्याग करके एकमात्र मेरी शरण ग्रहण करो, मै सभी पापो से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा, डरो मत हरे कृष्णा.
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श्रीकृष्ण ने प्रतिज्ञा की कि कल से मथुरा दूध और घी भेजना बन्द करना है और मित्र टोली को भी कह दिया सभी ने यही कहा - " हम आज से हम श्याम सुंदर की आज्ञा पर जिएँगे और मरेंगे और सारे ब्रज ममडल की दूध ,घी की बिक्री बंद करने मथुरा न्धि जाने देगे ।
आज सारे गोकुल वासियो को बता देना है । अगले दिन ही सुबह -सुबह दिन निकलने से पहले ही सारा ग्वाल -बाल दल उस पर जाकर जमा हो गये जिस रास्ते से गोकुल की गोपियां घी,दूध बेचने को जाया करती थी । सारा ग्वाल -बाल दल जिस समय के इंतजार में था वह भी आ पहुँचा ।
आठ -दस गोपियाँ घी,दूध की मटकियाँ अपने सिर पर रखे इठलाती मुस्काती आ पहुँची । तब श्री कृष्ण ने उन्हें प्रणाम कर हाथ जोड़कर कहा -" क्या आपको अभी पता नहीं चला कि आज से मथुरा जाकर घी,दूध बेचना बिल्कुल बंद है । इस घी,दूध को अपने गोकूल ग्राम के सभी बच्चों को खिला -पिलाकर बलवान बनाओ ।
राक्षसों को बलवान बनाने से हम लोगों को बड़ी हानि पहुँच रही हैं ।" इतने में ही बीस-पच्चीस गोपियों का झुण्ड आ पहुँचा और उनमें से एक मोटी गोपी बोली -" क्या माजरा है और कैसे रूकी खड़ी हो ?" उनमें से एक गोपी बोली -" बहन ! यह नंद बाबा का छोरा कहता है कि आज से घी ,दूध की बिक्री मथुरा जाकर बंद है । यह बौरा गया है । इसे यह पता नहीं कि घी, दूध की बिक्री के कारण ही यशोदा रानी बनी और नंद बाबा के बेगिनती गाय,भैंसे है ।" मोटी ग्वालिन बोली -" बकने दो इसे यशोदा के छोरे को । मैं भी देखती हूँ यह हमें कैसे नही जाने देता है ।"
इतना सुनते ही कृष्ण जी ने अपने ग्वाल -बाल दल से कहा -" तुम सब रास्ता रोक कर लम्बे -लम्बे होकर लेट जाओ । जिन्हें जाना हो वह हमारे पेट पर पैर रखकर आगे बढेंगा ।" कन्हैया के मुँह की वाणी सुनकर सारा ग्वाल -बाल दल ( गोप ) जो हजारों की संख्या में था सारा रास्ता घेरकर लम्बा- लम्बा लेट गया। तब उस मोटी जीपी ने कहा -" बहनों !
इन छोकरो की कतई परवाह मत करों ।" उस मोटी गोपी के कहने से जो छोटी बुद्धि की गोपियाँ थी वह गोपो के सीने पर पैर रख -रखकर जाने लगीं और जो भली थी वह खड़ी देखती रहीं । तभी मनसुखा ने चीखकर कहा - "कन्हैया ! जुल्म की हद हो गई । यह गोपियां राजी से मानने वाली नहीं है । भाईयों मेरी तुम्हें आज्ञा है कि इनकी मटकियों को ईंट मार -मारकर तोड़ दो, इनका दूध और घी मिट्टी में मिला दो ।" मनसुखा श्री कृष्ण का गहरा मित्र था ।
उसकी आज्ञा और कन्हैया की आज्ञा सब ने एक समझी और सभी गोपो ने उठकर ईंट के टुकड़ों -मारकर सभी गिपियो की मटकियाँ फोड़कर उनके सारे घी ,दूध को मिट्टी में मिला दिया । इस आपा-धापी में अपने कृष्ण कन्हैया की बातों पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया । जिन गोपियों ने गोपो के सीने पर अपने पैर रखे थे उन सभी गोपोयो के कपड़े, मुँह और बाल बुरी तरह घी-दूध में सन गए थे और गुस्से की वजह से उनके चेहरे बड़े ही भयानक बन गए थे ।
वह रोती-पीटती सीधी यशोदा मैया के पास जा पहुँची और गरज-गरज कर कहने लगी-" देख अपने सपूत की करतूत । उसने हमारा क्या हाल कर डाला है । यशोदा रानी ! रकम तुझसे पाई-पाई वसूल करके ही अपने घर जाएँगी ।" यशोदा रानी बोली -" बहनों ! धीरज धरकर मेरी बात सुनो । कल की सभा में यह निश्चित हो गया था कि मथुरा जाकर घी-दूध-मक्खन बेचना बंद । इसमें गोकुल ग्राम और वृंदावन के सभी नौजवान शामिल थे ।
इन नौजवानों ने प्रतिज्ञ करी थी, कि ब्रजभुमि का दूध-घी की बिक्री मथुरा के लिए कल से बंद करवानी है । तुम सबको इस बात का पता तो चल ही गया होगा ।फिर तुमने खुद ही अपने बालकों की बात की परवाह नहीं की और मुझसे झगड़ा करने यहाँ चली आई । अक्ल से काम लो और अपने बच्चों की बात मानो । तभी कंस जैसे अन्यायी ( राक्षस ) राजा का राज पलटेगा ।" यशोदा माता के समझाने से सब गोपियाँ समझ गई कि-"।यशोदा रानी की बात ठीक ही है । हम सबको प्यार -पूर्वक एक -दूसरे की बात समझकर ही सुभीता के साथ रहना चाहिए और अपने बच्चों के कार्य में विघ्न -बाधा नहीं पहुँचानी चाहिए ।"
बधुओं ! गोकुल ग्राम की दूध -घी की बिक्री एकदम से रूक गई । साथ ही एक माँ ने दूसरी बहन बेटियों को समझा -बुझाकर और नौजवानॅ ने ग्राम -ग्राम घूम फिर कर कन्हैया की कही बातों को समझाई तो सब ही ग्रामों से घी-दूध की बिक्री रोक दी गई । मथुरा के बाजारों में घी-दूध की एक बूँद का भी दर्शन दुर्लभ हो गया और बड़े -छोटे सभी एक 'एक बूँद घी-दूध को तरस गए । जब राजा कंस को इस भेद का पता चला तो उसने नंद बाबा से !
नाराज हो अपने दूत बरसाने भेजकर राधा के पिता वृषभान को मथुरा बुलाकर कहा -" चौधरी जी ! हम आज से नंद बाबा की प्रधानता का पद छीनकर तुम्हें ब्रज का मुख्य प्रधान बनाते हैं । कल से आप हमारे यहाँ घी-दूध भेजने का कार्य करो । जिससे मथुरा वासियों की परेशानी दूर हो ।"राजा कंस की बातें सुनकर राधा के पिता बड़े ही प्रसन्न हुए और घी-दध बरसाने से भिजवाने का वचन भर दिया और अपनी रक्षा हेतु कंस राजा के कुछ सिपाही साथ ले अपने बरसाने ग्राम आ पहुँचे
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पतन का कारण : श्रीकृष्ण ने एक रात को स्वप्न में देखा कि, एक गाय अपने नवजात बछड़े को प्रेम से चाट रही है। चाटते-चाटते वह गाय, उस बछड़े की कोमल खाल को छील देती है । उसके शरीर से रक्त निकलने लगता है । और वह बेहोश होकर, नीचे गिर जाता है।
श्रीकृष्ण प्रातः यह स्वप्न,जब भगवान श्री नेमिनाथ को बताते हैं । तो, भगवान कहते हैं कि :- यह स्वप्न, पंचमकाल (कलियुग) का लक्षण है । कलियुग में माता-पिता, अपनी संतान को,इतना प्रेम करेंगे, उन्हें सुविधाओं का इतना व्यसनी बना देंगे कि, वे उनमें डूबकर, अपनी ही हानि कर बैठेंगे। सुविधा, भोगी और कुमार्ग - गामी बनकर विभिन्न अज्ञानताओं में फंसकर अपने होश गँवा देंगे। आजकल हो भी यही रहा है।
माता पिता अपने बच्चों को, मोबाइल, बाइक, कार, कपड़े, फैशन की सामग्री और पैसे उपलब्ध करा देते हैं । बच्चों का चिंतन, इतना विषाक्त हो जाता है कि, वो माता-पिता से झूठ बोलना, बातें छिपाना,बड़ों का अपमान करना आदि सीख जाते हैं । याद रखियेगा संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है। आज कल हम पतन होता हुआ अपनी आखों से देख शकते हे । (सकलंन)
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