कुछ शब्द Kunal Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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कुछ शब्द

आज़ाद

जब कोड़े खाने पर बोली थी वन्देमातरम तरुणाई,

बर्फीली सिली पर लेटे जयभारत करके चिल्लाई,

करवट बदल इतिहास ले रहा था फिर से अंगड़ाई,

आज़ाद नामकी आंधी पुरे भारतवर्ष पर थी छाई,

भूखे पेट रहे फिर भी आज़ादी की कसमे खाई,

काकोरीमें लूंट खजाना हिम्मत अपनी दिखलाई,

सरकार जिसे रही ढूँढती हाथ न आती परछाई,

लालाजीकी मोत देख आँखे थी जिसकी भर आई,

तब कोर्ट कचहरी क्या जाते सांडर्स की करदी सुनवाई,

क्रांति की मशाल हाथमें लिए और आंखोमे सच्चाई,

संघर्ष अविरत और विरल ज्वाला थी जिसने बरसाई,

नामसे जिसके शाशन कांपे, अंग्रेज सल्तनत शरमाई,

अमर हो गया आज़ाद जिसे मोत कभी न छू पाई,

-कुणाल शाह

मैं कायर हूं

में कायर हूं देख रहा हूं माँ के रक्त की धारा,

मेरे पुरखे समजते जिसको अपने प्राण से प्यारा,

प्लासी पानीपत हल्दीघाटी ने जबभी पुकारा,

प्रताप या शिवाजी बन कर शत्रुदल को ललकारा,

सन सत्तावन की ज्वाला का गौर से देखो नज़ारा,

प्रगट करो अपने दिलमें भी नन्हा एक अंगारा,

भगतसिंह के खून से सींचा सिन्धु तेरा किनारा,

कर्मयोगी आज़ाद का जीवन देख के दिल चीत्कारा,

हाय रे कायर देख रहा क्या माँ के रक्त की धारा,

हाय रे कायर देख रहा क्या माँ के रक्त की धारा ।।

  • कुणाल शाह
  • हाथ बंधे है हथियारों के

    हाथ बंधे है हथियारों के, होंसले बढ़ते हत्यारों के,

    फिरभी ना जाने क्यों चुप है, कातिल है इरादे सरकारों के,

    जो हम पर हमला करते थे, जिसके कारण अपने मरते थे,

    हम उनको बिरियानी खिलाते, क्या मालूम किससे डरते थे?

    बहुत हो चूका अब यह तमाशा, कितनी बार मरी है आशा,

    लातो के है भुत सामने, समजेंगे क्या बातो की भाषा,

    दिल्ही को बस एक इशारा, अबके कुछ करके दिखलाओ,

    अमन चैन की छोडो बाते, युद्ध करो या वापस जाओ,

    -कुणाल शाह

    माँ भारती करूँ आरती

    माँ भारती करूँ आरती, तुज़को नमन माँ भारती,

    कण कण तेरा मेरे श्वासमे धड़कन मेरी है पुकारती,

    माँ भारती करूँ आरती, तुज़को नमन माँ भारती,

    हर शब्द तू, हर स्वर में तू, तेरी हवाएँ संवारती,

    मैं जो भी हूँ तेरे लिए, मेरी रूह भी तुज़े चाहती,

    हर पल तेरे खयालमे, हर ख्वाब में तू जागती,

    बहती नसों में खून बन, तू ज़िंदगी में भागती,

    दुनिया खड़ी है एक तरफ बस तुज़े ही निहारती,

    तू अमन-ख़ुशी का द्वार है बात यह पहचानती,

    तेरी शरण ही सुकून है चारो दिशाएँ है मानती,

    सात सागरो के प्रणाम कर लो स्वीकार माँ भारती,

    माँ भारती करूँ आरती तुज़को नमन माँ भारती,

  • कुणाल शाह
  • मंज़र

    देखो आजका मंज़र, की राज करे है खंजर,

    तक्षशिला और नालंदा की ज्ञानभूमि है बंजर,

    सत्यमेवजयते किया है कैद किताब के अन्दर,

    यहाँ सिखाया जाता है जुठ का जादू मंतर,

    बेबस एक कोने में है इमानदारी का खंडहर,

    एक तरफ हे प्यास और एक तरफ है समन्दर,

    ऐसा कैसा पैसा जो इन्साँ-इन्साँ में अंतर,

    देखो आजका मंज़र, की राज करे है खंजर।

    -कुणाल शाह

    राष्ट्रयज्ञ

    राष्ट्र से प्यारा न होगा कुछ भी हमको, राष्ट्रयज्ञ में करे समर्पित स्वयं को ।

    जौहरों से पावन भूमि है पुकारे, राष्ट्ररक्षा हित आह्वान को स्वीकारे,

    संघर्षो के बिच करे यदि याद कसम तो, राष्ट्रयज्ञ में करे समर्पित स्वयं को ।

    कितनी ही लम्बी हो संकट की कतारे, हम दुलारे माँ के होसला ना हारे,

    कर्तव्यपूर्ति के लिए है लिया जनम तो, राष्ट्रयज्ञ में करे समर्पित स्वयं को ।

    हम नही कमजोर जो मांगे सहारे, बढ़ते चले तोड़ हम मोह की दीवारे,

    शत्रु नाचे शीश पर तब स्मरे धरम तो, राष्ट्रयज्ञमें करे समर्पित स्वय को ।

  • कुणाल शाह
  • सरहद

    सरहद मेरी चिल्ला कर मुज़से है कहती,

    सालो से घुसपैठ और आतंक को सहती,

    छल्ली सिने होते, धारा रुधिर की बहती,

    नापाक इरादे पाक के है जान कर भी,

    ना जाने क्यों चुप चाप दिल्ही बेठी रहती,

    कबसे हम बैठे अमन की उम्मीद लगाये,

    खुशहाल और आबाद चमन के सपने सजाये,

    जब तक टूटी नींद हमने बहोत गंवाया,

    खुद के बेटे खोये, शत्रु के दिल बहलाये,

    अबके जंग छिडे तो ऐसी ही छिड़ जाये,

    सीमा के उस पार कुछभी ना नज़र में आये,

    पाकिस्तान को पूरा कब्रस्तान बना दो,

    की भूले से भी कोई ना भारत को सताये ॥

  • कुणाल शाह
  • (यह कविता सर्जिकल स्ट्राइक होनेसे पहले लिखी गई है)

    एक प्रार्थना

    आज़ाद सा मैं वीर बनूं, बनूं विचारशील भगतसिंह,

    अशफाक सी हो भावना, बिस्मिल का मुज़े ज्ञान दे,

    दे चपलता सावरकर सी, सुभाष का मुज़े शौर्य दे,

    सिंघत्व दे मुज़े तिलक का खुदीराम का नटखटपन,

    संवेदना सुखदेव सी हो, और राजगुरु का अल्हड़पन,

    इन सबकी मस्ती साथ में तू घोल दे मेरे रक्त में,

    जीवन मरण तेरी शरण हर क्षण तेरा वरदान माँ ।

    - कुणाल शाह.

    बादल

    बरसने की बारी आई तो मुकरता है,

    न जाने बादल ऐसा क्यों करता है,

    ज़मीं समा लेगी यह भरोसा नहीं,

    या फिर निचे गिरने से डरता है |

    - कुणाल शाह

    अजनबी महेमाँ

    अपने ही घर में अजनबी महेमाँ हो गए,

    जिसकी न कोई ज़मी रही आसमाँ हो गए,

    रहनुमा थे हम कभी पर कारवाँ गुज़र गया,

    ठहरे रहे पड़ाव पर तो पासवाँ से हो गए |

    - कुणाल शाह.