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बील्ली को मगर खा गया

बिल्ली को मगर खा गया

लेखक :–

अजय ओझा


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बिल्ली को मगर खा गया

मम्मी को कुछ काम था तो वह नुक्क्ड़ तक छोडने नहींआईं, पापा तो अभी बिस्तर में ही पडे हैं । तो दक्ष बिलकुल अकेलानुक्कड़ पर खडा स्कूलबस का इंतजार कर रहा था । वह अंग्रेजीमाध्यम की शाला में पढता था । उसकी उम्र शायद नौ साल होगी ।

उसके कंधे पर भारी स्कूलबैग एवं हाथ में वोटरबेग था । स्कूल में पानीकी सुविधा थी पर घर का ही पानी पीने का आग्रह मम्मी का था ।

वोटरबेग सँभालना दक्ष को पसंद नहीं था क्यूं कि क्लासरूम में पानीछिडकता तो ग्राउन्ड में चक्कर लगाने की सजा होती थी और बस मेंपानी के छलकने की वजह से व्यवस्थापक बन बैठे प्यून का तमाचादक्ष खा चूका था । कैसी कैसी चीजें सँभालनी होती है ? वोटरबेग,लंचबोक्स, कंपासबोक्स, कलरबोक्स, स्वाध्यायबुक्स, नोटबुक्स,शूज़ और सोक्स । सबकुछ याद रखना, सँभालना दक्ष के लिए काफीमुश्किलें खडी कर रहा था । कोई भी चीज़ घर से ही भूल आता है तोटीचर सजा करे और स्कूल में भूलकर आये तो मम्मी–पापा का गुस्सा।

स्कूलबस आई तो दक्ष सँभलकर बस में चढ़ गया । उसेपढने का काफी शौक था, होशियार भी था । पर अंग्रेजी माध्यम कीबदौलत उसे बहोत कुछ कठिन लगता रहता । जब भी उसके टीचर कोकोई जरूरत (?) महसूस होती तब दक्ष के मम्मी–पापा को बुलाकरदक्ष की पढाई में कहाँ कहाँ और कैसी कैसी मुसीबतें उसके आडेआती है और इन समस्याओं के हल क्या हो सकते है उनके बारे मेंचर्चा करते । कौन–से सब्जेक्ट में ध्यान न देने से एवं अंग्रेजी जैसेसब्जेक्ट में लगाव न रखने से क्या–क्या नुकसान हो जाता है इससेमम्मी–पापा को टीचर अवगत कराते रहते थे । मम्मी–पापा पढे–लिखेथें पर वक्त न मिलने के कारण वे दक्ष पर कम ध्यान दे पा रहे थे तोउन्होने दक्ष के लिए उसके टीचर का टयुशन रखवा लिया । तब से 'हरमहीने' दक्ष पढाई में बेहतर होता जा रहा है ऐसा उसके टीचर नेबताया था ।

स्कूल में विश्रांति के दौरान दक्ष ग्राउन्ड में खेलता ।गुजराती माध्यम में पढते उसके दोस्तों के साथ वह खेलता । उसकेसारे दोस्त गुजराती कविताएँ गुनगुनाते रहते, जिसे दक्ष बडे चाव सेसुनता । उसे बहोत अच्छी लगती थी गुजराती कविता, जब उसकेदोस्त कविता गाते तब सुनकर वह भी सीख लेता । घर में कोईमेहमान आया हो तो पापा दक्ष को बुलाते, 'बेटे, अंकल को कोईपोयम सुना दे जरा, हां ।' जाने–अनजाने दक्ष गुजराती कविता बोलनेलगता, 'एक थी बिल्ली मोटी, ़ ़ ,' फिर मम्मी उसे रोकते हुएकहती, 'तुम्हें कितनी दफा समझाया है दक्ष ? टीचर ने तुम्हें कईइंग्लिश पोयम्स सिखाये है; वो वाला 'ओल्ड मेकडोनाल्ड हेड अफार्म', या फिर वो वाला 'टि्‌वंकल टि्‌वंकल लिटल स्टार', –जैसीकोई पोयम्स सुना दे ना ?' अंगे्रजी पोयम्स दक्ष को जरूर आती थी परवह पैर पटकाते हुए निकल भागता ।

स्कूल की सजावट के लिए एक बार दक्ष को घर से कुछबनाकर ले जाने का टीचर ने कहा था । सारे छात्र कुछ ना कुछबनानेवाले थे । दक्ष के पापा ने उसे थर्मोकोल की प्लाय के पीस लादिए । युज्ड़ केन्डी की शलाकाएँ भी ला दी । फेविकोल व रंग लाये ।फिर जरूरत लगी तो आइस्क्रीम के रंगीन प्लास्टिक चम्मच भी लायेगये । दक्ष ने थर्मोकोल की प्लेटों के उपर चम्मच से पिल्लर बनाकरअपने स्कूल का एक सुंदर मोडेल बनाया । उसमें रंग भरे । स्कूलबसकी भीड़ में कुछ टूटा जरूर था फिर भी टीचर ने उस मोडेल की भारीप्रशंसा की तो दक्ष बहोत खुश हुआ । ऐसी ही खुशी उसे कुछ दिनबाद फिर एक बार टीचर ने यह कहकर दी; 'दक्ष, इस साल स्कूल के'अेन्युअल डे' के कार्यक्रम में एक नृत्यनाटिका होगी, तुझे उसमें'शहीद' का मुख्य किरदार निभाना है ।'

स्कूल में अेन्युअल डे का फंक्शन हर साल होता था ।अंग्रेजी विभाग के विद्यार्थी कोई 'नृत्यनाटिका' पेश करने वाले थे,जिसमें दक्ष एक 'शहीद' का किरदार निभानेवाला था; जो इसनाटिका की मुख्यभूमिका के रूप में था ।

'टीचर', शहीद' का मतलब क्या होता है ?' दक्ष नेटीचर को एक–दो बार पूछा था, टीचर ने कुछ बताया भी था, पर दक्षकी समझ में नहीं आया था । जो भी हो खुद को स्टेज पर जा के कुछअभिनय करना है यही सोचकर वह बहोत खुश था । शहीद के कपडोंका शुल्क आठसौ रूपए दक्ष के पापा स्कूल में खुशी खुशी जमा करागये । कार्यक्रम का रियाज़ हमेशा देर तक चलता रहता । कभीस्कूलबस भी निकल जाती । पढाई के कईं तास, विश्रांति कानाश्ता, खेलने–कूदने का समय तक, रियाज़ में जाने लगे । थकानके बावजूद भी दक्ष अपने अभिनय में अव्वल रहने की कोशिशें करताथा ।

कार्यक्रम देखने दक्ष के मम्मी–पापा भी आये थे । शिक्षणविभाग के उच्चतम पदाधिकारी लोग व आमंत्रित मेहमान कार्यक्रम सेकाफी प्रभावित हुए । शिक्षकों का क्या, वे तो सब समझते ही होतेहै, पर प्रिन्सीपाल साहब और संचालकगण गर्व महसूस करने लगे ।सख्त रियाज़ के बाद तैयार की गई 'शहीद' की नृत्यनाटिका कोदर्शको ने तालियों से बधाईयाँ दीं । दक्ष को बहोत अच्छा लगा ।

तालियों के शोरगुल में मुख्य संचालकश्री ने बगल में बैठेशिक्षणाधिकारी साहब के कान में 'शिक्षण शुल्क बढौत्तरी' की फाइलमंजूर कर देने की सिफारीश कर दी और उसी तालियों की आवाज मेंसाहब ने हँसते हँसते बात में हामी भर दी ।़ ़ कार्यक्रम काफी सुंदर रहा ।

कार्यक्रम में दक्ष की 4×6 तसवीर के बीस रूपए औरविडीयो सीडी के एकसौ पचास रूपए तय किये थे, जो दक्ष के पापा नेजमा करा दिए थे ।़ ़ कार्यक्रम काफी सुंदर रहा ।फिर एक बार पढाई अपनी रफ्तार से शुरू हुई तो दक्ष बोरहोने लगा । अंग्रेजी आल्फाबेट्‌स उसके इर्दगिर्द मच्छर की भाँतिचक्कर लगाने लगे । 'केट' और 'डोग' उसकी ओर मानो घूरते रहतेथे । 'टि्‌वंकल स्टार' और 'पुसीकेट' का दोस्त वह कभी न बनसकता । फोरलाइन बूक में विभिन्न घुमावदार अक्षर दस–दस बार,बीस–बीस बार लिखने का होमवर्क दक्ष को कोलू का बैल बना देता ।

फोरलाइन की लाल–ब्ल्यू लाइन में उसका दम घूटता था । कभी कभीमम्मी–पापा होमवर्क में मदद करते । कई बार होमवर्क ना हो पायाहो या आता ना हो तो तब पापा दक्ष को उसके एडमिशन में लगे मोटे'डोनेशन' की एवं 'साढे तीन–चार महिने के प्रत्येक सत्र(?)' मेंअेडवान्स में जमा किये जाते बडे शुल्क की याद दिलाके उसकीगंभीरता बडे प्यार से समझाते ।(?) दक्ष की समझ में शायद ही कुछआता, फिर भी उसका चेहरा ऐसा बनता मानो वह बात के हार्द कोसमझ रहा हो । अभी अभी दाखिल हुए 'कंप्यूटर शुल्क' को भी पापायाद करते और कंप्युटर सीखने की एहमियत समझाते ।

स्कूल में हफ्ते में एक बार विद्यार्थियों को कंप्यूटर रूम मेंले जाया जाता था । पिछले हफ्ते गलती से कोई 'की' दबा देने कीवजह से कंप्यूटर 'ओफ' हो गया, तो टीचर ने पूरे तास में दक्ष कोमुर्गा बनकर खडा रहने की सजा दी थी । ़ ़ बाद में 'लीवर मेंहलकी–सी सुझन है' –ऐसा बताकर फेमिली डाक्टर ने सब कुछ ठीककर दिया था । उसके पापा ने कुछ नहीं कहा था । पापा कभी भी कुछकहते नहीं । स्कूल–फी में होती रहती लगातार बढौतरी के बारे में,'इसे 'मोनिटर' और इसे 'की–बोर्ड' कहते है' –बिना छुए ऐसासमझाने का माहाना ढाई सौ रूपए कंप्यूटर शुल्क भरते वक्त, स्कूलजहाँ से लेने को कहे वहीं से शुज, सोक्स, हर साल बदलते रहतेयुनिफोर्म, अभ्यासेतर महँगी किताबें आदि खरीदते वक्त, अलगअलग ट्रस्ट के नाम पर मिलती फीस की रीसीप्ट लेते वक्त; –पापाकुछ नहीं कहते । ये स्कूल नहीं, एक फैक्ट्री है और पेरेन्टस इस फैक्ट्रीके एक तरह के 'शेयरहोल्डर' है जिसे कभी कोई 'डिविडंड' नहींमिलता –ऐसा पापा कभी नहीं कहते । दक्ष के पापा कभी कुछ नहींकहते ।

एक्जाम्स के नजदीक आते ही दक्ष मन ही मन खुश होरहा था । उसकी खुशी की दो वजहें थीं; पहली ये कि एक्जाम्स केदौरान स्कूल में पढाई नहीं होती, दूसरी ये कि एक्जाम्स के बाद लंबीछुट्टियाँ मिलती है । वेकेशन की छुट्टियाँ बिताने का आनंद दक्ष के मनमें उछलता था । इसी वजह से वह आनंदित रहने लगा था ।

आखिर एक्जाम्स शुरु हुए । बडी खुशी से दक्ष ने सारेप्रश्नपत्रों के उत्तर लिखे थे । उसकी खुशी देख मम्मी–पापा के मन मेंभी अच्छे नंबर आने की उम्मीद बनी । वे जानते थे कि एक अच्छास्कूल, अच्छे टीचर का पर्सनल टयूशन और बेहतर वातावरण कीबदौलत ही उज्जवल परिणाम हांसिल किया जा सकता है । कुछ हीदिनों के बाद रिजल्ट का दिन भी आ गया ।

रिजल्ट लेने पेरेन्टस को भी साथ में आने की सूचना दीगई थी; स्कूलबस नहीं आनेवाली थी । मम्मी–पापा को कोई 'ध्यानयोगशिविर' में जाना था, तो पापा दक्ष को स्कूटर पर स्कूल तक छोड़गये । रीजल्ट उसके हाथ में आया तो दक्ष बहोत खुश हुआ, उसे 'अे'ग्रेड प्राप्त हुआ था । टीचर ने सभी को शुभकामनाएँ दीं । दक्ष के हृदयमें खुशियाँ ही खुशियाँ भर गईं । परिणाम जाहिर करने के बाद वर्गखंड़में प्रिन्सीपाल साहब सूचनाएँ दे रहे थे :' ़ ़ सब को अिेभनंदन ़ ़ , छुट्टियाँ बहोत लंबी है, परतुम लोगों को पढाई भूलना नहीं है । हर शनिवार और रविवार के दिनशाम को स्पोर्टस ट्रेनिंग के लिए तुम लोगों को यहाँ अपने पी टी ़टीचर के पास आना है । इसके अलावा रोज सुबह 10 से 12 'कंप्युटरवेकेशन कोर्स' के लिए भी आना है । इसके लिए अलग से शुल्क तयकिया गया है, जिसकी ज्यादा जानकारी नोटीसबोर्ड पर है ़ ़ ।??'

छुट्टियों के खयाल में खोये दक्ष के चेहरे की रेखाएँसिकुडने लगी । उसके शूज़ में पसीना उतरने लगा । जाने–अनजानेहाथ में रखे रिजल्ट को वह गोल गोल मोडने लगा । रीजल्ट कीशहनाई बना दी, और आँख के पास लाकर बीच के छेद से सूचना देरहे प्रिन्सीपाल साहब का चेहरा देखने लगा । फिर उस कागज़ कीशहनाई में मुँह से हवा भरने लगा, पर सीटी तक न बजी । कुछ ऐसेदाँतों को कचकचाने लगा मानो वह रिजल्ट को चबा देना चाहता हो।उसे याद आया कि पापा को रिजल्ट दिखाना अभी बाकी है तो रिजल्टके मोड़ खोलकर ठीक करने लगा ।

दक्ष घर पहूँचा तब पापा अपने दोस्त के साथ आतंकवादके विषय में बातचीत कर रहे थे । रिजल्ट देख मम्मी ने खुशी से दक्षको चूम लिया । गौरवान्वित हुए पापा ने बडे प्यार से दक्ष को कहा,'शाबाश बेटा, वेरी गूड । जरा यहाँ आकर अंकल को कोई नई–सी'पोएम' सुना दे, चल आ जा मेरे अच्छे बच्चे ।'

खडे खडे ही दक्ष पैर के अँगूठे से कीमती कारपेट कुतरनेलगा । तो मम्मी ने तुरंत ही पापा की बात को दोहराया । घबराते हुएदक्ष ने संकोचवश गुजराती कविता शुरू की :' ़ ़ बिल्ली को मगर खा गया ़ ़ '

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