देह के दायरे
भाग - आठ
दिनभर जाखुजी के मन्दिर एवं अन्य पहाड़ियों में घूमकर छात्र-छात्राओं का समूह होटल की तरफ लौट रहा था | थकान के कारण सभी के पाँव लड़खड़ा रहे थे परन्तु एक-दुसरे का सहारा लिए किसी-न-किसी तरह सभी आगे बढ़ रहे थे | रेणुका और पूजा भी एक-दुसरे के कन्धे पर हाथ रखे अपने पाँवों को होटल की तरफ धकेल रही थीं | सामने ही होटल की बिल्डिंग दिखायी दे रही थी | मंजिल को सामने देखकर सभी के हृदय में उत्साह की एक लहर दौड़ी और उनके पाँव तेजी से आगे को बढ़ने लगे |
रेणुका और पूजा धीमी गति के कारण कुछ पीछे रह गयी थीं | कल वाले स्थान पर पहुँचकर पूजा के पाँव रुक गए |
“थोड़ी देर यहीं आराम करते हैं |” पूजा ने बेंच पर बैठते हुए कहा |
रेणुका भी उसके पास ही बैठकर सुस्ताने लगी |
कुछ देर के लिए थकान ने दोनों को मौन कर दिया था | पूजा सोच रही थी कि रेणुका कल की भेंट के विषय में अवश्य ही पूछेगी | उसे आश्चर्य था कि कल रात और आज पूरे दिन उसने देव बाबू को लेकर उसे एक बार को भी नहीं छेड़ा था |
आखिर मौन टुटा | पूजा की सोच के अनुसार रेणुका ने उससे कल की भेंट के विषय में बात की |
“कल तुमने देव बाबू से बात की?” रेणुका ने पूछा |
“किस बारे में?”
“शादी के बारे में |”
“मुझसे यह काम नहीं होगा रेणु | मैं तो उनसे सामान्य-सी बातें करने में भी घबरा जाती हूँ | उनसे बहुत कुछ कहना चाहकर भी उनके सामने जाकर कुछ नहीं कह पाती |” एक नि:श्वास-सी छोड़ते हुए पूजा ने कहा |
“मैं बात करूँ...?”
“यह जीवन तेरे नाम कर दूँगी |”
“इस जीवन पर अब तेरा अधिकार कहाँ है?”
“जो तेरी इच्छा हो माँग लेना |”
“हूँ...|” रेणुका ने पूजा के मुख पर दृष्टि जमा दी |
“मैं इस आगा में जल जाऊँगी रेणुका...मुझे बचा ले मेरी बहन |” पूजा ने अपना सारा भार रेणुका के कन्धे पर डालते हुए कहा |
“अच्छा! तू यहीं ठहर, मैं फायर ब्रिगेड को बुलाकर लाती हूँ |” हँसी का एक ठहाका अपने पीछे गूँजता हुआ छोड़कर वह तेजी से होटल की तरफ भाग गयी |
पूजा आश्चर्यचकित-सी वहाँ बैठी सोचती रह गयी | कहाँ तो थकान के कारण एक कदम भी आगे बढ़ना उसके लिए मुश्किल हो रहा था और कहाँ अब वह तेजी से भागती हुई एक पल में ही होटल की ओर जाने वाली पगडण्डी पर ओझल हो गयी थी | जानकर भी अनजान बनी वह सोच रही थी कि वह वहाँ इतनी तेजी से भागकर क्यों गयी है |
कुछ ही देर में पूजा ने देखा...रेणुका देव बाबू का हाथ पकड़े लगभग उसे खींचती-सी तेजी से उसकी ओर चली आ रही थी | वहाँ पहुँचकर जब वह रुकी तो दोनों की साँस फुल रही थी |
“रेणुका जी, बताइए तो सही, क्या बात है |” देव बाबू अपनी साँसों पर नियन्त्रण पाने का प्रयास करते हुए कह रहा था |
“मुझे आप दोनों से चाय पीनी है |” रेणुका ने देव बाबू को पूजा के पास बेंच पर धकेलकर बैठाते हुए कहा |
“चाय के लिए कौन-सी विशेष बात है जो इतनी दूर से मुझे भगाए ला रही हो...कभी भी पि लो |” देव बाबू ने कहा |
“देखो पूजा, यह कह रहे हैं कि मैं इन्हें भगाकर ले आयी हूँ |” हँसते हुए रेणुका ने पूजा से कहा |
पूजा क्या उतर देती | दृष्टि झुकाए मौन बैठी थी वह |
“पूजा, क्या बात है, आज रेणुका मेरे पीछे क्यों पड़ी है?”
“इसीसे पूछ लो |”
“देव बाबू, बात को गोल मत करिए! हमें आपसे चाय पीनी है |”
“चाय को कौन मना करता है, कभी भी पी लेना |”
“कभी नहीं, अभी पीनी है |”
“चलो अभी पिला देता हूँ, लेकिन कोई विशेष बात है क्या?” देव बाबू ने उठते हुए कहा | साथ ही यन्त्रवत-सी पूजा भी खड़ी हो गयी |
“हाँ देव बाबू, विशेष बात है और वह भी ऐसी कि सुनोगे तो चाय के साथ बर्फी भी खिलाओगे |”
“तो फिर देर क्या है, चलो |” देव बाबू के कहने के साथ ही तीनों वहाँ से नीचे की तरफ पगडण्डी पर चल दिए |
सड़क के कुछ नीचे उतरते ही एक रेस्तराँ था | तीनों ही थके हुए थे इसलिए समीप पाकर उसमें ही जाकर बैठ गए | पूजा मन ही मन आशंकित थी कि रेणुका न जाने किस तरह बात प्रारम्भ कर बैठे | उसके हृदय में हलचल मची हुई थी | यह तो वह भी समझती थी कि देव बाबू उसे चाहता है मगर वह सोच रही थी कि न जाने रेणुका की बातों की उसपर क्या प्रतिक्रिया हो |
“रेणुका, तुम चाय पीओ, मैं होटल में चलती हूँ |” पूजा ने वहाँ से उठना चाहा |
“नहीं, तू भी यहीं ठहर |” स्वर में आदेश की झलक पा पूजा को विवश वहीँ ठहरना पड़ा |
“हाँ, तो अब कहिए रेणुका जी |” देव बाबू ने पूजा की ओर देखते हुए रेणुका से कहा |
इसी मध्य वेटर भी वहाँ आ गया | देव बाबू ने उससे तीन कप कॉफी लाने के लिए कह दिया |
“बात यह है देव बाबू...एक लड़की आपसे प्यार करती है |” बिना किसी भूमिका की बेझिझक रेणुका ने कहा |
“मुझसे?” मुसकान देव बाबू के अधरों पर थिरक रही थी और पूजा की दृष्टि मेज पर जमी न जाने क्या तलाश कर रही थी |
“हाँ, आपसे और वह विवाह भी आपसे ही करना चाहती है |” रेणुका के कहने के साथ-साथ ही पूजा के हृदय की धड़कन तेजी से बढ़ती जा रही थी |
“कौन है वह लड़की?”
“परन्तु देव बाबू, मैं भी आपसे प्यार करती हूँ |”
“रेणुका जी, आप...?” चौंक उठा देव बाबू और पूजा के पाँवों के नीचे से तो जैसे जमीन ही खिसक गयी | प्रश्न-भरी चार आँखें एक साथ ही रेणुका के मुख की ओर उठीं |
“हाँ मैं! प्यार करना क्या कोई पाप है देव बाबू?”
“पाप तो नहीं है लेकिन...|” भौचक्का-सा देव बाबू कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था |
“लेकिन कुछ नहीं देव बाबू! यहाँ सब एक-दुसरे से प्यार करते हैं | पूजा भी किसी से प्यार करती है? आप भी किसी से प्यार करते हैं; अगर मैंने प्यार कर लिया तो आप दोनों एकाएक चौंक क्यों उठे?”
“लेकिन रेणुका जी, मैं तो किसी और से |”
“तो फिर क्या हुआ?” रेणुका ने उसकी बात काटते हुए कहा |
“आप उससे प्यार करिए, हम आपसे प्यार करेंगे |”
देव बाबू के मुख से मुसकराहट गायब हो गयी और वहाँ एक सन्नाटा-सा फैलने लगा |
“क्यों पूजा, हमारे देव बाबू कैसे लगे तुम्हें!” जान-बूझकर रेणुका ने पूजा को छेड़ा |
“मुझे कुछ नहीं मालुम...मैं जा रही हूँ |” उसकी बात सुनकर पूजा क्रोध से स्वयं पर नियन्त्रण खो बैठी थी | वह सोच रही थी कि कितनी धोखेबाज है रेणुका...इसके मुँह में कुछ और तथा हृदय में कुछ और छुपा रहता है |
पूजा उठकर वहाँ से चलने लगी तो रेणुका ने उसे बाँह पकड़कर बिठा लिया |
“पूजा, रिश्ता तो पक्का करवाती जा |”
विवश-सी पूजा चुपचाप फिर कुर्सी में धँस गयी |
“आप नाराज हो गए देव बाबू?” रेणुका ने देव बाबू से मुसकराते हुए पूछा |
“नाराज तो नहीं, हाँ, आपकी बात सुनकर आश्चर्य अवश्य हो रहा है |”
“देव बाबू, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप जिससे प्यार करते हैं उसीसे प्यार करते रहें और हम भी आपसे प्यार करते रहें?”
“यह अनुचित है रेणुका जी! एक म्यान में दो तलवारें कभी आ सकती हैं?”
“म्यान में न सही...उसके आसपास ही रख लेना |”
“मेरी तो समझ में नहीं आता कि आपको आज हो क्या गया है |”
रेणुका के होंठों की मुसकान गहरी होती जा रही थी |
“क्या एक साली अपने जीजा से प्यार नहीं कर सकती देव बाबू?”
“क्या मतलब?” एक बार फिर चौंके देव बाबू और पूजा की तो रुकी हुई साँस जैसे फिर चल पड़ी |
“आप सोचिए | हम क्यों बताएँ?” रेणुका बोली |
“आपने तो हमें उलझन में डाल दिया रेणुका जी | कुछ समझा नहीं मैं |”
अब तो रेणुका के साथ-साथ पूजा के बन्द उधर भी मुसकरा उठे थे |
“साली यानी कि हम...तुम्हारी |” रेणुका ने हँसकर कहा | देव बाबू भी रेणुका का परिहास किसी सीमा तक समझ गया था | अब वह भी खुलकर हँस रहा था और पूजा के लिए यह फिर शर्म से गर्दन झुकाने का समय आ गया था |
“साली तुम...दुल्हन कौन?” देव बाबू ने कुरेदा |
बिना मुख से कुछ कहे रेणुका ने पूजा की ओर संकेत कर दिया |
“अच्छा...अब समझा!” एक बार फिर जोरदार हँसी का ठहाका गूँजा |
“आज तो आपने हमें खूब उल्लू बनाया रेणुका जी |”
“और सालियों का काम ही क्या होता है जीजाजी |”
“आपने इस विषय में पूजा जी से भी पूछा है?”
“रेणुका ने झूठ नहीं कहा है |” बिना रेणुका को बोलने का मौका दिए धीरे से पूजा ने किसी तरह कह ही दिया |
“तुम्हारे घर वाले मान जाएँगे क्या?”
“शायद न मानें मगर मैं उनकी नहीं सोचती |”
“काँटों पर चलने वालों के पाँवो छलनी अवश्य हो जाते हैं पूजा, और यह राह तुम अच्छी तरह जानती हो कि काँटों-बिछी है |”
“मंजिल मिल जाए तो दर्द अनुभव नहीं होता देव बाबू |”
“और मंजिल न मिल पाए तो?”
“मंजिल की ओर चल पड़ना भी मेरे लिए कम सुखद नहीं होगा |”
“परिवार के नाम पर बस एक मेरी माँ है और मैं अमीर भी नहीं हूँ |”
“मेरे लिए सिर्फ तुम पर्याप्त हो |”
“जीवन में यह एक बहुत बड़ा निश्चय होता है पूजा, अच्छी तरह सोचकर निर्णय लेना |”
“मैं तो सोच चुकी हूँ देव बाबू |”
“तो फिर मेरी भी यही इच्छा है |” स्वीकृति पाकर पूजा का मन हर्षित हो उठा |
मेज के निचे से आगे बढ़ता देव बाबू का पाँव पूजा के पाँवों से टकरा गया था | वह देव बाबू की ओर देख रही थी | देव बाबू उसकी तरफ और रेणुका उस दोनों की तरफ देख-देखकर मुसकरा रही थी |
वेटर कॉफी के प्याले मेज पर रख गया था | कुछ देर तक तीनों ही प्यालों से उठती भाप को देखते रहे |
“कहिए जीजाजी, अब तो हम आपसे प्यार कर सकते हैं?” रेणुका ने कॉफी का प्याला उठाते हुए कहा |
“क्यों नहीं, अब तो तुम्हारा अधिकार बन गया है |”
तीनों कॉफी सिप कर रहे थे |
कॉफी पीकर प्याले मेज पर रखे तो वेटर बिल लेकर आ गया | पूजा ने बिल देने के लिए तश्तरी की तरफ हाथ बढ़ाया तो रेणुका ने उसे रोक दिया |
“आज का बिल तो देव बाबू देंगे |”
“ठीक है भई! आज की कॉफी हमारी तरफ से ही तो थी |” कहते हुए देव बाबू ने वेटर की तश्तरी में पैसे रख दिए |
तीनों उठकर रेस्तराँ से बाहर आए तो हवा तेज हो गयी थी | दूर वृक्षों में अन्धकार गहरा होता जा रहा था | इधर-उधर शिमला शहर की बतियाँ जगमगा रही थीं |
अभी वे तीनों कुछ ही दूर चल पाए थे कि हवा एकाएक तीखी और नम हो गयी | शीध्र ही हवा में बर्फ के कण तैरने लगे जो इस बात के सूचक थे कि शीध्र ही हिमपात होने वाला है | तीनों तेजी से होटल की पगडण्डी पर आगे को बढ़ गए | हिमपात प्रारम्भ होने से पूर्व ही वे किसी तरह होटल पहुँच जाना चाहते थे |
जब वे होटल पहुँचे, उसके तुरन्त बाद ही तेजी से हिमपात प्रारम्भ हो गया | सभी छात्र-छात्राएँ दरवाजे, खिड़कियो और बरामदों में खड़े हिमपात का आनन्द ले रहे थे |
उसे रात और अगले दिन कभी तीव्र और कभी धीमी गति से हिमपात होता रहा | हिमपात के समय बाहर घुमने का कोई कार्यक्रम बन ही नहीं सकता था | सभी छात्र-छात्राएँ आपस में हँसी-मजाक करते हिमपात का आनन्द लेते रहे | कमरे के एक कोने में टेप बजता रहा तो दुसरे में शतरंज की बाजी चलती रही |
सन्ध्या पाँच बजे के लगभग हिमपात रुक गया था | मौसम अब साफ हो गया था परन्तु हवा में ठण्डक बहुत अधिक बढ़ गयी थी | शाम का खाना खाने के उपरान्त बार-बार कॉफी पीने का दिल चाह रहा था |
आसमान साफ हो चुका था | चाँद अपनी मनोरम छटा में चमक रहा था | आकाश में छिटके हुए तारे बड़े भले लग रहे थे | पूजा खिड़की की राह आसमान को ताक रही थी | उसकी इच्छा हुई कि ऐसे मौसम का आनन्द तो बाहर घूमकर ही लिया जा सकता है | उसके पाँव अपने कमरे से बरामदे की तरफ बढ़ गए |
बाहर बरामदे में देव बाबू अपने कमरे के सामने खम्भे का सहारा लिए खड़ा था | दोनों की दृष्टि आपस में टकराई और दोनों खिंचकर एक-दुसरे की तरफ चले आए |
“यहाँ अकेले क्या कर रहे हो देव?” पूजा के होंठों से निकला |
“मुझे सफेद बर्फ को देखना बहुत अच्छा लगता है |” देव बाबू ने कहा |
“तो फिर बाहर निकलकर क्यों नहीं देखते?”
“तुम साथ चलोगी?”
“...” कुछ न कह गर्दन हिला स्वीकृति दे दी पूजा ने |
बरामदे से निकलकर वे दोनों बाहर आ गए | सामने बर्फ ही बर्फ फैली हुई थी | नर्म, मुलायम, चाँद की रोशनी में चाँदी-सी चमकती हुई बर्फ | बर्फ में यात्रियों के आने-जाने से एक ठोस बर्फ की पगडण्डी-सी बन गयी थी | उसी पगडण्डी पर धीरे-धीरे वे दोनों खामोश आगे बढ़ते जा रहे थे | रास्ता अनजान था मगर प्रकृति की सुन्दरता से मोहित वे इससे बेखबर अपने में खोए हुए थे | स्वच्छ आसमान में पूरा चाँद फैला हुआ था और बर्फ पर फैलती उसकी किरणों का सम्मोहन जादू-सा कर रहा था |
राह में इक्के-दुक्के पहाड़ी इधर से उधर आ-जा रहे थे |
“उई |” पाँव तनिक से फिसलने से पूजा की चीख निकल गयी मगर गिरने से पहले ही देव बाबू ने उसे बाँहों में समेट लिया | फिर न देव बाबू को उसे अलग करने का ख्याल रहा और न ही पूजा ने इसकी आवश्यकता समझी | देव बाबू की उँगलियाँ पूजा के बालों में उलझती चली गयीं |
“चाँद बहुत प्यारा निकला है देव |”
“हाँ पूजा |” पूजा की आँखों में झाँककर उतर दिया देव बाबू ने | पूजा खो गयी उस दृष्टि में |
पूजा की आँखों पर जैसे दूरबीन चढ़ गयी थी | वह स्वयं से दूर होती जा रही थी | वह जैसे अनजान-से समुद्र पर तैर रही थी | समुद्र में चारों ओर भाप उड़ रही थी | सामने से देव बाबू दुल्हा बने उसकी ओर बढ़े चले आ रहे थे | वह भी उड़कर उन्हीं की ओर खिंची जा रही थी |
चौकीदार की सिटी की आवाजों ने दोनों को चौंका दिया |
“बहुत प्यारा सपना था पूजा |
“मेरा भी देव |”
“चलो, बहुत देर हो गयी है |”
“चलो |”
देव बाबू के कन्धों का सहारा लिए पूजा उस बर्फ की बनी पगडण्डी पर होटल की ओर चल पड़ी |
सुबह मौसम बिलकुल साफ हो गया था | कार्यक्रम की अनुसार छात्र-छात्राओं का समूह शिमला से शहर की लिए रवाना हो गया |