माँ का दूध Pran Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

माँ का दूध

माँ का दूध

प्राण शर्मा

भारत कॉलेज के स्टूडेंट्स की एक मीटिंग में शांति देव और धीरज में एक सवाल पर मदभेद हो गया। दोनों में खूब तू - तू ,

मैं - मैं हुयी। देखते ही देखते दोनों का मतभेद क्रोध में बदल गया और क्रोध दुश्मनी में। शांति देव की शांति गुम हो गयी और धीरज का धीरज खो गया। गुस्से में डूबे दोनों ने अपना - अपना ग्रुप बना लिया। धीरज के खून के प्यासे शांति देव की नींदें नदारद हो गयीं। आधी - आधी रात तक वह करवटें बदल - बदल कर सोचता रहता कि काश धीरज उसे अकेला कहीं मिल जाए और वह उसको मार - मार कर उसकी हड्डी - पसली एक कर दे।

शांति देव के खून का प्यासा धीरज की नींदें भी नदारद हो गयीं। आधी - आधी रात तक वह भी करवटें बदल - बदल कर सोचता रहता कि काश शांति देव उसे कहीं अकेला मिल जाए और वह उसको मार - मर कर उसका कीमा बना दे।

एक दिन शांति देव और धीरज का आमना - सामना हो ही गया। गिरधर पान वाले की दुकान पर दोनों ही पान - सिगरेट खरीदने के लिए आये थे। दोनों के साथी उनके साथ थे। धीरज को देखते ही शांति देव का चेहरा लाल - पीला हो गया। शांति देव का चेहरा देखते ही धीरज भी तमतमा उठा। वह गरजा - ` शांति देव - ` आज तू बच कर नहीं जाएगा। `

धीरज के साथियों ने उसकी आवाज़ से आवाज़ मिलायी - ` शान्ति देव , आज तू बच कर नहीं जाएगा। `

जोश में आते हुए शांति देव भी नाग की तरह फुफकारा - ` धीरज , आज तू बच कर नहीं जाएगा। `

शांति देव के साथियों ने भी उसकी आवाज़ से आवाज़ मिलायी - ` धीरज , आज तू बच कर नहीं जाएगा। `

` शान्ति देव , अगर तूने माँ का दूध पिया है तो मुझ पर हाथ उठा कर दिखा। ` यह धीरज की ललकार थी।

` अगर तूने माँ का दूध पिया है तो मुझ पर हाथ तू हाथ उठा कर दिखा। ` यह शांति देव की ललकार थी।

जोश में धीरज और शांति देव के दायें हाथ उठे लेकिन उठे के उठे रह गए। दोनों ने अपनी - अपनी माँ का दूध नहीं पिया

था।

दुष्कर्मी

पंद्रह वर्ष की दीपिका रोते - चिल्लाते घर पहुँची। माँ ने बेटी को अस्त - व्यस्त देखा तो गुस्से में पागल हो गयी। वह चीख उठी - ` बोल , तेरे साथ कुकर्म किस पापी ने किया है ? `

` तनु के पिता मदन लाल ने। ` सुबकते हुए दीपिका ने जवाब दिया।

` तुझे कितनी बार समझाया है कि छाती पूरी तरह ढक कर अंदर - बाहर कदम रखा कर। इन राक्षसों की कामी नज़रें

औरतों की नंगी छातियों पर ही पड़ती हैं। नंगी छाती रखने का नतीजा देख लिया न तूने। ? लेकिन मैं तो कहीं की नहीं रही। पचास साल के उस बूढ़े का सत्यानाश हो रब्बा , वो जीते - जी ज़मीन में गड़ जाए। मेरी भोली - भाली नाबालिग बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया है उस दुष्कर्मी ने। अपनी बेटी की उम्र की लड़की का बलात्कार --- कीड़े पड़ें उसे।

मदन लाल का स्यापा करती हुयी माँ दीपिका का हाथ पकड़ कर बाहर आ गयी। उसका रुदन सुनते ही अड़ोसी - पड़ोसी बाहर निकल आये। सैंकड़ों ही लोग इकट्ठा हो गए। दीपिका के बारे में जिसने भी सूना वह लाल - पीला हो गया। सभी मदन लाल के घर की ओर लपके। उसके घर तक पहुँचते - पहुँचते लोगों का अच्छा - खासा हुजूम हो गया।

मदन लाल घर में ही था कुछ लोगों ने उसे घसीट कर बाहर ज़मीन पर पटक दिया। वह रोया - चिल्लाया। हाथ जोड़ -

जोड़ कर वह माफ़ी माँगने लगा , ज़मीन पर नाक रगड़नी शुरू कर दी उसने लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गुस्साए लोगों का हुजूम था। किसी ने घूँसा मारा और किसे ने जूता। खूब धुनाई हुयी उसकी। लहुलुहान हो गया वह।

मदन लाल को लहुलुहान करने वालों में ऐसे लोग भी थे जिनके हवस की शिकार कई महिलायें हो चुकी थीं।