कुछ कविताएं..! Arun V Deshpande द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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कुछ कविताएं..!

कविता -१

एक नई राह ...दूर क्षितीज तक

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एक नई राह थी वो

आम रस्ते से अलग थी

जरा हटकर मानो वो

खिसककर अपनी ही

धून मे आगे जा राही थी

दूर क्षितीज तक ....!

गिने -चुने ही सही, मगर

निकल पडे थे कई लोग

उस नई राह पार चलने

दूर क्षितीज तक ..!

असमंज था मै,

एक मनचले से पूछा

उस आम रस्ते को छोड

इस नई राह से क्यो ? भाई ..?

मुस्कुराते बोला वो-

हम तो वो है भैया

दिमाख से कम

मनसे जादा सोचते है ..

निकल पडे है अब तो

दूर क्षितीज तक ...!

वो चलता गया आगे

उस नई राह पार

मै बाजू मूड गया

रोजके रस्तेपर

दिमाखसे सोचते चलता गया

आखिर क्यू चल रहा है वो शक्स

दूर क्षितीज तक ....!

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कविता -२

बस यही एक शिकायत है ..|

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मेरा एक मित्र

बहुत पुराना यार है

कविता करता है - लेकीन

सबको सुनाता -फिरता है

बस यही एक शिकायत है ..|

कवी-मित्र का संसार तो

असमान बसा बसाया है

चांद -सितारो से दिनरात

बडी खुल के बाते करता है

घरवालीसेही बात नही हो पाती

बस यही एक शिकायत है |

बाजर की हालचाल से बेखबर

कवी पुरी दुनिया की खबर रखता है

उसकी दुनिया बदल गयी कब कितनी

बात ये नही समझता कभी वो इतनी

बस यही शिकायत है ..|

एक दिन मैने कवीवर को कहा

यार तू तो बडा गजब का कवी है

दर्द-पराया तू लिखता है

तेरे अपनोको तू भूल गया है

बस यही एक शिकायत है |||

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कविता -३

यादे .

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मिठी यादे -खट्टी यादे

गुजरे हुये वो हसीन पल

उनकी लुभावनी यादे

नाकाम है सभी कोशिशे

भुल जाना ये यादे .

अनायास ही कभी कभी

खो सा जाता है दिल इन्ही यादो में

वर्तमान की तेज तर्रार कडी धूप मे

श्रांत हो जाता है दिल मस्त पडा रहेता है

यादो की घनी -शीतल छांव में.

यादे बचपन की

जैसे गुनगुनाती तितली

यादे जवान दिनो की

शोख-,चुलबुलीसी

यादे सुख भरी-

यादे दुख भरी

नही मुर्झा जाती है ये यादे

हर एक का होता है खजाना

अपनी अपनी यादो का

खाली नाही होता कभी

यादो का ये खजाना

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कविता -४

जब कविता लिखता हुं मैं

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जब कविता लिखता हुं मै

नया रूप मेरा दिखता है मुझे

जो खो गया था कई पहले

फिरसे मिल जाता है मुझे ...!

सुनाई देती है आहत एक अनाहत

सुनकर खिल जाता हुं मैं

भूल जाता हु सब तब

जब कविता लिखता हुं मैं...!

आदमी मे बसा हुआ इन्सान

उल्झानोसे उल्झ्ता इन्सान

हो जाती है उसकी ही कविता

जब कविता लिखता हुं मैं...!

संगदिल है ये दुनिया,कोई बात नही

कोमल शब्द दोस्त है मेरे

सहेज कोमल सृष्टीमे

शब्द होते है मेरे साथी

जब कविता लिखता हुं मैं...!

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कविता -५

कुछ कुछ तो बदल रहा है

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सब कुछ तो नही

कुछ कुछ तो बदल रहा है

मेरे घर का दरवाजा जो बंद रेहता था

अब खुला खुलासा रेहता है

मुस्कुराहट भी रेहती है

अब मेरे चेहेरेपर

गुजरनेवाला भी मेरे तरफ देखता है

मुस्कानी अंदाजमे अब

सब कुछ तो नही

कुछ कुछ तो बदल रहा है .

आंगन सुना सुनासा पडा रेहता था कबसे

जाने-अनजाने पंछी रुकते नही थे तब

मैने अब शक्कर दाने रखना शुरू किया है

आने लगे है फिरसे वो पुराने प्यारे- पंछी

सब कुछ तो नही

कुछ कुछ तो बदल रहा है .

बुजुर्गोसे सुना है अक्सर ये बात की -

आदमी से बेहेतर समझदार तो

पंछी होते है ..

जो कुछ भी बदल जाता है

पहले वो समज जाते है--- की ,यहा

सब कुछ तो नही

कुछ कुछ तो बदल रहा है

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कविता -६

यादो की किताब

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मन जिसे प्यार करता है

यादोमे उसीके खो जाता है

ये किताब यादोसे भरा पुरा

बहुत मनस्पर्शी होता है

अपने हर प्रियतम के नाम

उसमे एक पन्ना होता है ..

जब भी दिल चाहे

खोल देना ये किताब

मन ही मन पढ लेना

प्रियतम को प्यारा पन्ना

खो जाना फिर एक बार

उन्ही मिठी मिठी यादोमे

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कविता -७

रास्ते ही रास्ते

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चलते चलते

सफर जिंदगी का

हर बार मिले

नये नये रास्ते ...!

मुक्कम्मल हुवा जितना

अबतक का सफर

समझमें आया थोडा थोडा

भूल-भुलैय्याही थे

वो सब रास्ते ..!

कभी तेढे -मेढे रास्ते

कभी थे सीधे -साधे रास्ते

कभी उंचाई के कभी गेहराई के

लेकीन थे तो वो सभी रास्ते .

मुडके पीछे देख कर अब

बडा अच्छा लागता है

मंझील तरफ ले जानेवाले

दोस्तही थे ये सब रास्ते

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कविता - ८

उम्मेद पे कायम हुं मै

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स्नेही-जनो के पास जाता हुं मै जब भी

बडे ही सहेज ढंगसे हसकर टाल देते है

यार ,तू तो फुरसत मे रेहता है हमेशा

बुरा न मान दोस्त.जिसके पास काम नाही

हमे उससे कोई काम नही ..

बंद-दरवाजा सोसायटी में रेह्नेवाला

एक दोस्त मिलने आया मुझे

खुले दरवाजे का घर था मेरा

देख कर ये नजरा ,दोस्त बोला

आओ -जाओ,ये भी क्या बात हुई

इसी बात पर हमारी बहस भी हुई

लौट गया गुस्सेमे वो दोस्त

फिर कभी मेरे घर ना वो आया .

भले ही मिले हो मुझे दोस्त ऐसे ऐसे

उम्मीद पे कायम हुं मैं

मिल ही जायेंगे दोस्त मुझे

मै चाहता हुं वैसे .

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कविता -९

हम

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हम ही है हम

बातुनी है सिर्फ

उसमे नही है दम

केहते है फिर भी

किसी से कम नही है हम .

कोरे कोरे चेहेरेपर

लगी हुई है

तनखे की कलम-पट्टी

घर में पडे रेहते है

गुजार लेते है छुट्टी

घडी कसोटी की

हिम्म्त्बाज आगे बढे

किनारे बैठे तब

बजाये तालीया हम .

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कविता -१०

प्रिय कविता

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हे कविते आभारी हुं तेरा

एक नया जनम है ये मेरा

रिश्ते-नाते है शब्दोसे

अब तो यही जग है मेरा .

लिखते -लिखते ,पढते -पढते

अंतर-प्रवाह तेरा दिख गया

उपरसे अर्थ एक होता है

अंदरुनी वो बहुत ही गेहरा.

अचानक इस सफर मे

मुझे एक सहेली मिली

प्रीत उसिसे मिली

एक नयी कविता खिली

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कविता -११

तू ना कभी ये भूलना

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क्षण क्षण का नही भरोसा

प्यार से तो जी ले

भूलुंगा नाही कभी मै

तू ना कभी ये भुलना.

तन दर्शन से क्या लेना

मन का दर्शन है सही

भूलुंगा नाही कभी मै

तू ना कभी ये भुलना.

मन से मन का प्यार

जिस्म का जिस्म से नही

दिल ही दिल रहे प्यार

सब की नजरो मे यही प्यार .

भूलुंगा नाही कभी मै

तू ना कभी ये भुलना.

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कविता -१२

सुनो तो सही

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सुनो तो सही

मन मंदिरमे

जिसे दिलसे चाहते है

उसीकी प्रतिमा होती है ..!

कब कौन किसी के

दिल में बस जाये ?

कोई नियमावली तो है नही

और .ये मजबुरीसे भी नही होता

सुनो तो सही -

अजब-गजब हाद्से तो

होते ही रेहते है ..

ऐसा ही हादसा अभी अभी हुवा है ..

इसमे जखमी मैं हुवा हुं

तू नही ..

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कविता -१३

केहने मे ही तो मजा है

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दिल से दिल लगाने मे

जिंदगी को जिना है

प्य्यार तुझीसे करता हुं

केहने मे ही तो मजा है

इकरार तेरे मन का

नजर से झलकता है

मुस्कुराने से अब बात नही

केहने मे ही तो मजा है

गीत तेरे प्यार का

सुनाना अच्छा लागता है

पसंद आया है ये तुझे

केहने मे ही तो मजा है

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कविता -१४

सिर्फ एक बार ..

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क्यू केहता हुं मै

ये तुमसे बार बार

ही तुमसे ही प्यार

पुछो तुम मुझे

सिर्फ एक बार ..

पूजा है मैने हमेशा

मन की सुंदरता को

खुबसुरती बदन की

कभी भी न भाई मुझको ..

साथ तुम देना

हमसफर जो बनी हो

साथ दोगी हमेशा 'कहो ना

सिर्फ एक बार ..

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कविता -१५

इंतेजार

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आंखे बिछाकर इंतेजार करने वाले,

हो रहा है -देख,

असर तेरी शिकायत का

किसीके आने की

आहट सुनाई दे रही है कबसे

आ रहा है आखिर वोही

,जिसका इंतेजार था कबसे ....

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कविता -१६

सहारा

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यहा दिल का मामला क्या बताये ,

अपनेको फुरसत नही यहा अभी,

पराये जो भी है सब ,,

उनसे क्या उम्मीद करे

दर्द ही साथीदार अब हमारा ,

सहारा जिंदगीभर का..!

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