बीमार Sonu Dwivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बीमार

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राजधानी के एक नामी अस्पताल में रोजाना लगभग 30 मरीज एमआरआई जांच के लिए आते हैं। केवल गम्भीर मरीजों को ही यहां जांच का अवसर मिलता है। नए मरीजों को 2-2 माह तक की वेटिंग दी जा रही है। एमआरआई जांच के दौरान तीमारदार को अंदर नहीं आने दिया जाता है। मरीज को अंदर ले जाने से पहले कर्मचारी चेक करते हैं कि उसके पास बेल्ट, मोबाइल समेत कोई भी मेटल और गोल्ड का सामान न हो।

इसी अस्पताल में आज रामकुमार जी की जांच होनी है। वे अपनी बारी की प्रतीक्षा में हैं। रामकुमार जी को उनके पुत्र समय से पूर्व ही अस्पताल ले आये हैं। अस्पताल के कर्मचारी जांच के लिए आने वाले सभी मरीजों और उनके तीमारदारों को समय समय पर विस्तृत दिशा निर्देश दे रहे हैं। गार्ड और कर्मचारी एक एक मरीज व उनके सहयोगी की सघन जांच करते हैं।

जू0 डॉ संदीप ने कहा, “ठीक से देखना किसी के पास कोई लोहे या धातु की कोई चीज रह न जाये ….एक पिन भी”।

“मुख्य मशीन रूम में कोई कुछ भी लेकर न जाये करोड़ों की मशीन है”, डॉ संदीप ने स्पष्ट किया।

जूते चप्पलें तो हाल के बाहर ही उतरवा दी गयी थी।

कैंसर की बीमारी सर जूझ रहे रामकुमार यहां की व्यवस्था से अत्यंत प्रभावित हैं। वे इसे महज अस्पताल की आंतरिक व्यवस्था न मान कर नई सरकार की कार्यशैली व भ्रष्टाचार विरोधी नीति से जोड़कर देखते हैं। अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठे वह सोचने लगे कि नई सरकार को वोट देकर उन्होंने कोई गलती नहीं की है। अस्पताल कितने नियम कायदे से चल रहा है। नई सरकार ने जो वादे किए थे वह उन पर खरी उतरी है। पिछली सरकारों की गुंडई दबंगई से अलग है इसकी व्यवस्था, एकदम पारदर्शी। इस सरकार की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। वी आई पी कल्चर सचमुच समाप्त हो गया है। अमीर गरीब सबको एक जैसे नियमों का पालन करना पड़ रहा है। सब कुछ कितना शांति पूर्वक चल रहा है।

अचानक रामकुमार जी की तन्द्रा उस समय टूटी जब अस्पताल के शांत वातावरण में कुछ अशांति सी फैल गयी थी।

“जी सर मैं आपका ही इंतजार कर रहा हूं…जी जी बिलकुल सर ।...आधे घंटे की ही तो बात है... अभी किसी को भी नहीं बुलाएंगे”, डॉ शर्मा ने फोन पर कहा। डॉ शर्मा जो कि एमआरआई जांच के स्पेशलिस्ट हैं, उनके बाहर आने के साथ ही अस्पताल के कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। सारे अन्य कार्य रोक दिए गए।

दोपहर के लगभग एक बजे सरकार के एक कद्दावर मंत्री अपने लाव लश्कर के साथ अस्पताल पहुंच गए। उन्हें चक्कर आने की शिकायत है। अभी दो दिन पूर्व ही किसी वैवाहिक कार्यक्रम में भोजन के दौरान मंत्री जी को अचानक चक्कर आ गया था जिस पर उनके शुभचिंतकों ने उन्हें विधिवत जांच कराने की सलाह दी थी।

इमरजेंसी में चेकअप के बाद डॉक्टरों ने उन्हें एमआरआई के कराने को भेजा है।

“डॉ संदीप फिलहाल सारे पेशेंट्स को रोक दो… पहले मंत्री जी का एमआरआई होना है”, डा शर्मा ने माथे से पसीना पोछते हुए कहा।

इन सारी बातों से अनजान रामकुमार के पुत्र विजय ने जानना चाहा, “पिता जी के टेस्ट में और कितना समय लगेगा “?

“अभी आप थोड़ा इंतजार करिये ….मंत्री जी के बाद उनका ही टेस्ट होना है”, डॉ संदीप ने बताया।

“पर अभी तो मेरा नम्बर है...”, विजय ने बोलना चाहा। पर डॉ0 साहब ने उन्हें बीच में ही टोंकते हुए बताया ,”यह वी आई पी का मामला है…आपको कुछ इंतजार करना पड़ेगा”।

इसीबीच झकाझक सफ़ेद कुर्ता पाजामा और सफ़ेद रंग का महंगा सपोर्ट शूज पहने हुए तीन चार लोगों के साथ मोबाइल फोन पर जोर जोर से बात करते हुए मंत्री जी हाल में प्रवेश करते हैं। उनके पीछे पीछे उनका गनर भी हाल के बाहर उतारे जूते चप्पलों को अपने बूट से रौंदता हुआ दाखिल होता है। उन्हें रोकने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई।

डॉ0 शर्मा ने मंत्री जी से कहा “ आइये आइए सर ...हम सब आपका ही इंतजार कर रहे थे … चलिये आपका टेस्ट शुरू कराते हैं…”। इसी के साथ मंत्री जी को मुख्य मशीन रूम में ले जाया गया। और मशीन के स्ट्रक्चर पर लिटा दिया गया।

मंत्री जी के इलाज में डॉक्टरों की टीम इस कदर डूब गई कि वह ये भी भूल गयी कि मुख्य मशीन रूम में मरीज के अलावा किसी और को आने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

तभी अचानक हाल में खड़े उनके सुरक्षा गनर को भी अपनी ड्यूटी याद आ गई । वह भीतर मंत्री जी को अकेला कैसे छोड़ दे? आखिर राज्य सरकार के एक मंत्री की सुरक्षा का सवाल है।

“आप ऐसे भीतर नहीं जा सकते…”, गार्ड ने सुरक्षा गनर को रोकना चाहा। वहां तैनात अन्य कर्मचारियों ने भी उसे रोकने की भरसक कोशिश की पर पिस्टल लगाए हुए मंत्री के गनर को साधारण गार्ड व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी भीतर जाने से भला कैसे रोक सकते थे। वह उन सबको धमकाते हुए और धक्का देते हुए मुख्य कमरे में पहुंच गया। कमरे में घुसते ही गनर का पिस्टल मशीन की चुम्बकीय शक्ति से खिंच कर फटाक की तेज आवाज के साथ एम आर आई मशीन से जा चिपका। और एक तेज घड़घड़ाहट के साथ मशीन बन्द हो गयी। मंत्री जी इस अप्रत्याशित हादसे से घबरा कर कुछ इस तरह से बाहर भागे कि मानो किसी विरोधी ने साजिशन उन पर हमला करा दिया हो।

चारों ओर अफरा तफरी के माहौल के बीच मुख्य मशीन कक्ष को भी बंद कर दिया गया। अभी 10-12 और लोगों का परीक्षण आज के दिन होना बाकी था।

“ डॉ0 साहब क्या हुआ है…और ये मशीन क्यों बन्द हो गयी? “, अपनी बारी का इंतजार कर रहे मरीज व उनके तीमारदारों ने जानना चाहा।

“आज आप सब का टेस्ट नही हो सकेगा, अब ये मशीन खराब हो चुकी है ….ठीक कराने में लगभग 15 दिन लगेंगे”, डॉ0 संदीप ने बताया।

रामकुमार जी की लगभग डेढ़ माह बाद मिले नम्बर की प्रतीक्षा अभी समाप्त नहीं हुई थी। डॉक्टरों ने उन्हें भी बताया ,”15 दिन बाद पता कर लीजियेगा कि मशीन ठीक हुई या नहीं”।

इस घटना से रामकुमार जी स्तब्ध रह गए। कुछ देर पहले तक नई सरकार के पक्ष में बन रहे उनके विचार अचानक ही बदलने लगे। वह सोचने लगे कि लाल बत्ती का प्रयोग बंद करने की घोषणा कर देने भर से ही क्या वी आई पी कल्चर बन्द हो जाता है…?, आज इस नई सरकार और पुरानी सरकारों में क्या फर्क रह गया है… मंत्री जी और उनके गनर का व्यवहार क्या सरकारी गुंडागर्दी नहीं है? हम लोग जो डेढ़ दो महीने से अपनी बारी के इंतजार में थे वह मंत्री जी की हनक और वी आई पी ट्रीटमेंट की भेंट चढ़ गया। उन्हें अपनी और अपने देश की बीमारी में समानता दिखाई पड़ने लगा। अब उन्हें अपनी बीमारी छोटी मगर देश की बीमारी लाइलाज व बड़ी दिखाई पड़ रही थी। वे सोच रहे थे कि कैंसर का इलाज तो देर सवेर खोजा जा सकता है पर सरकार बदलने पर भी सरकारी तंत्र की गुंडागर्दी का कैंसर जस का तस है।

बीमार बन कर इलाज के लिये अस्पताल आये सरकारी मंत्री ने आज दिखा दिया था कि वी आई पी कल्चर न छोड़ सकने वाला निरंकुश सरकारी तंत्र ही सचमुच का बीमार है।

समाप्त।