स्नूफी और पिंकी Pallavi Raj द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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स्नूफी और पिंकी

Pallavi Raj

pallavi9598@gmail.com

स्नूफी और पिंकी

" पिंकी........पिंकी .....जल्दी करो स्कूल के लिए लेट हो रहा है."

" हाँ.....माँ, आती हूँ."

दस साल की पिंकी बहुत ही नटखट थी. उसे जानवरों से बहुत लगाव था परंतु उसकी माँ को यह सब बिलुल ही नापसंद था. पिंकी की माँ ‘रमा’ पिंकी की इस हरकत से बहुत ही परेशान रहती थी. और आज कल तो पिंकी एक नये विषय पर ध्यान देना शुरु कर दिया था, वह हमेशा ही अपनी खिड़की से बाहर न जाने किसको निहारती है ! पिंकी की इस हरकत को रमा कुछ दिनों से नज़रंदाज़ कर रही थी पर अब पानी सर से उपर जा रहा था. पिंकी ने पढना – लिखना भी छोर दिया था. रमा पिंकी की चिंता में गलते जा रही थी. उसने पिंकी के पापा से इस विषय पर बात करने की सोची.

शाम को जब पिंकी के पापा घर लौटे तो रमा ने चाय का कप टेबल पर रखते हुए कहा....

" सुनो पिंकी आज कल कुछ जादा ही बदमास हो गयी है. वह दिन भर खिड़की से बाहर देखती रहती है और पढाई भी नहीं कर रही है......"

" आप सुन तो रहे है ना ...."

" हाँ......हाँ..... मै सुन रहा हूँ."

" अब आप ही पिंकी को समझाइये."

" ठीक है मै उससे बात करता हूँ. "

रमा को पिंकी की हरकत से नफरत सी होने लगी थी. अब रमा चुप नहीं बैठने वाली थी. तीन – चार दिन गुज़र गये मगर अभी तक पिंकी के पापा ने पिंकी से बात नही किया था. यहाँ रमा का पारा सातवे आसमान को छु रहा था. पर पिंकी अभी भी वैसे की वैसे ही थी. पिंकी अपनी ही दुनिया में मस्त थी. उसे आस पास हो रहे किसी भी चीज से कोई मतलब नही था.

" दो बज गये है और पिंकी कहाँ रह गयी?" रमा ने अपने आप से कहा.

पिंकी स्कूल से अभी तक घर नहीं आई थी. रमा बहुत चिंतित हो रही थी. परोसियों से पूछने से पता चला कि पिंकी कहीं भी नहीं थी. रमा की चिंता डर में बदल गयी. रमा ने घबराते हुए पिंकी के पापा को फ़ोन किया. कई बार लगाया फिर भी पिंकी के पापा ने फ़ोन नही उठाया. यहाँ रमा बीच रास्ते पे पागलो की तरह पिंकी को खोज रही थी. पिंकी का कोई पता नही था. इतनी कोशिसों के बाद भी पिंकी की कोई खरब नही मिल रही थी. रमा मन ही मन सोच रही है कि

" मेरी बच्ची सिर्फ दस साल की है......वह कहाँ जा सकती है..."

" भगवन मरी बच्ची को सलामत रखना, और मुझसे जल्दी मिला दो "

पसीने से लत – पत रमा लम्बे - लम्बे कदमो के साथ स्कूल की ओर भागी. रास्ते में उससे याद आया की पिंकी की एक फ्रेंड रौशनी भी उसी गली में रहती है. कही पिंकी उससी के घर तो नही चली गयी? एक पल के लिए रमा की जान में जान आ गयी. दुसरे ही पल उससे यह बात भी अंदर ही अंदर खल रही थी कि अगर पिंकी रौशनी के घर पे भी नहीं मिली तो? रमा रौशनी के घर पहुंची. रौशनी घर पे नही थी. रौशनी की मम्मी ने रमा को अंदर बैठाया.

" रौशनी बस आती ही होगी. " रौशनी की मम्मी ने रमा से कहा.

करीब दस मिनट बाद रौशनी लौटी.

" बेटा, पिंकी आज स्कूल आई थी? " रमा ने रौशनी से पूछा

" हाँ, आंटी पिंकी तो अज स्कूल आई थी. "

" बेटा अभी तक पिंकी घर नही पहुंची है, तम्हे पता है वो कहाँ जा सकती है?"

" नहीं, आंटी....पिंकी को मैंने स्कूल के बाद रुकने को कहा था पर पता नही छुट्टी के बाद वो जल्दी ही चली गयी थी."

निराश रमा रौशनी के घर से चली जाती है. उसका डर और बढ़ते ही जा रहा था. उतने में ही पिंकी के पापा का फ़ोन आया....

" रमा फ़ोन क्यों की थी?"

" पिंकी अभी तक स्कूल से घर वापस नही आई है, पता नही कहाँ चली गयी है...."

" अरे रमा, पिंकी अपनी किसी दोस्त के यहाँ चली गयी होगी."

" नहीं, वो किसी के भी घर में नही है, मैं रौशनी के घर भी गयी थी पर वो वहाँ भी नही है. अभी मैं स्कूल जा रही हूँ आप भी वहाँ आ जाएगा. "

" ठीक है मैं आता हूँ."

रमा जब स्कूल पहुंची तो स्कूल में कोई नही था. जब उसने गार्ड से पूछा तो......

" मैडम सभी बच्चे तो जा चुके है, कोई भी नही है स्कूल में."

रमा के पैरों तले जमीन ही खिसक गयी. जब पिंकी के पापा स्कूल पहुंचे तो उन्होंने देखा की रमा कोने में बैठ के रो रही है. पिंकी के पापा ने हाथ बढ़ाते हुए कहा

" चलो घर चलते है कहीं पिंकी वापस आ गयी हो."

जब वे घर पहुँचे तो पिंकी घर वापस नही आई थी. उपर से उससी वक्त परोसियों ने अपनी नई कहानी बना ली थी.

" पिंकी को किसी ने किडनैप कर लिया होगा." वर्मा जी की पत्नी बोली.

" या फिर कही वो घर चोर के तो नही भाग गयी?" मधु ने वर्मा जी के पत्नी से कहा.

ऐसे ही कई बाते बन रही थी. अचानक से घर कइ बाहर कुत्ते के भौकने की आवाज़ सुनाई दी. वो वही कुत्ता था जिसको पिंकी रोज़ एक रोटी दिया करती थी. पर वो वह क्या कर रहा था? जब रमा घर से बाहर निकली तो उसने उस कुत्ते की मुह में पिंकी का जूता देखा. वो घबरा गयी, पिंकी सही सलामत तो है न. करीबन ५ मिनट बाद पिंकी की आवाज़ आई.

" माँ मैं आ गयी."

पिंकी हाथ में एक बिल्ली के बच्चे को लिए आ रही थी. रमा के आँखों से ख़ुशी के आंसू रुक ही नही रहे थे.

" पिंकी तुम कहाँ चली गयी थी, पता है हम सब कितना परेशान हो गये थे." रमा ने पिंकी से रोते हुए कहा.

" माँ मुझे कुछ लड़के परेसान कर रहे थे, तभी स्नूफी (पिंकी ने उस कुत्ते का नाम रखा था) ने मुझे बचाया. और माँ मुझे भी पेट रखना है. माँ मुझे जानवर बहुत पसंद है. ऐसे भी माँ ये सब तो अब मेरे दोस्त है."

" ह्म्म्म..........तुम इन्हें रख सकती हो." रमा ने मुस्कुराते हुए पिंकी से कहा.

हम सभी लोगों को जानवरों से नफरत नही करनी चाहिए. जानवर तो हमारे दोस्त होते है और सहायक भी. इस कहानी से मैं यह बताना चाहती हूँ कि जानवरों से नफरत करने के बजाए उनसे दोस्ती करे और उन्हें कभी भी कैद कर के नही रखना चाहिए.

---पल्लवी राज