बदला ‘विश्वासघात’ का
जिंदगी में जिसे कई बार आप अपना सबसे करीबी मानते हैं, हो सकता है कि आप उसे पहचानने में गलती कर जायें और वो शख्स आपको धोखा दे जाए। तब आपके पास सिर्फ पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता। बावजूद इसके कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो उस हालात में भी ना सिर्फ उन मुश्किलों का डट कर सामना करते हैं, बल्कि उस विश्वासघात का बदला लेने के लिये ऐसा काम करते हैं ताकि दूसरे लोग ऐसे हालात में ना फंस सकें। कुछ ऐसा ही हुआ था उषा के साथ जो एक लड़के पर आंखे मूंद कर भरोसा करती थी। उस लड़के ने उसी भरोसे का फायदा उठाते हुए उषा का यौन शोषण किया। उषा की जिंदगी साल भर उस डर और सदमें से उबरने में खराब हो गई। वो ये समझ नहीं पाई कि वो भरोसा करे तो किस पर करे। ऊपर से उसका परिवार बेहद गरीब था, उसने अपनी इंटर तक की पढ़ाई बिना किताबों के की थी क्योंकि उसके पास इन किताबों को खरीदने के लिये पैसे तक नहीं थे। इसलिए वो अपनी पढ़ाई के साथ साथ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले दूसरे बच्चों को पढ़ाने का काम करती थी ताकि उसकी फीस समय पर जा सके। उस दौरान उषा ने देखा था कि एक ग्यारह साल की बच्ची, जिसे वो रोज पढ़ाती थी उसके साथ उसके चाचा ने ही बलात्कार किया था। तब उस बच्ची के घरवालों ने बात को आगे ना बढ़ाते हुए इसे घर का मामला बताया और पुलिस में शिकायत तक दर्ज नहीं की। उषा के लिये ये बड़ा झटका था, क्योंकि इससे पहले उसने टीवी और अखबार में ही इस तरह की खबरों को देखा और पढ़ा था। इस मामले को अभी ज्यादा वक्त भी नहीं गुजरा था कि खुद उषा के साथ ये धोखा हो गया। इस घटना ने उषा को अंदर तक झकझोर दिया था। समाज में बदनामी और लोगों का डर उसमें बुरी तरह समा गया था। इसलिए उसने भी इस घटना का जिक्र किसी के साथ नहीं किया था।
उषा की हालत दिन ब दिन खराब होने लगी थी, वो तनाव और गुमसुम सी रहने लगी। इस हालत में उसकी पढ़ाई तक छूट गई थी। एक वक्त नौबत ये आ गई थी कि उसको पागल खाने भेजने की बातें तक होने लगी। इस मुश्किल वक्त में एक चीज अच्छी हुई और वो थी कि उसके कुछ दोस्तों ने उसका साथ नहीं छोड़ा था। वो लगातार उषा को उस सदमें से बाहर निकालने में जुटे रहे। करीब साल भर बाद दोस्तों की कोशिश रंग लाई और उषा की जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटने लगी। तब उसने एक सहासी फैसला लिया और उसने तय किया कि वो ताउम्र रोने की जगह ऐसा कुछ करेगी जो दूसरी लड़कियों के साथ ना हो। उसका ये रूप समाज के लिये बिल्कुल नया था। उसने तय किया कि वो दूसरी लड़कियों को बतायेगी कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। साथ ही वो लड़कियों को मनचलों से बचाने का काम करेगी। लेकिन ये काम कैसे करेगी वो नहीं जानती थी। तब एक दिन ऐसा कुछ हुआ कि वो जान गई कि उसे क्या करना है। एक दिन उषा को महिलाओं की एक वर्कशॉप में जाने का मौका मिला। उस वर्कशॉप में करीब 55 लड़कियां शामिल हुई थी जिनमें से एक उषा भी थी। यहां जो बातें उषा के सामने आई वो उसको चौकाने वाली थीं। यहां उसको पता चला कि इन लड़कियों में 53 लड़कियां ऐसी हैं जिनके साथ उनके जानने वालों या रिश्तेदारों ने मारपीट, छेड़छाड़ या बलात्कार किया है। इन रिश्तेदारों में उन लड़कियों में से किसी का पिता तो किसी का भाई या चाचा ऐसे गलत काम के लिये जिम्मेदार था। इसके बाद उषा ने महिला हिंसा से जुड़े मामलों पर काम करना शुरू किया और इसके लिए सबसे पहले उसने 15 लड़कियों का एक संगठन बनाया। ये संगठन उन लड़कों का विरोध करता था कि सरेराहल लड़कियों के साथ छेड़खानी करते। अगर कोई लड़का इनका विरोध करता तो ये उस लड़के के घर तक पहुंच जाते और उसके परिवार वालों के सामने उसकी पोल पट्टी खोल कर रख देते थे। ऐसा करने से कई बार मामला बिगड़ भी जाता था और उषा और उसके साथियों को पुलिस थाने तक जाना पड़ता था। करीब छह सात महीने इसी तरह उषा का काम चलता रहा। इस बीच एक दिन उषा के संगठन की एक लड़की ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक मनचले की पिटाई कर दी। जिसके बाद लड़के के घर वाले उषा के पास आये और उसको बुरा भला कहने लगे, लेकिन बाद में जब लड़के के परिवार वालों को सच्चाई पता चली तो उनको वहां से शर्मिंदा होकर जाना पड़ा। इस घटना के बाद संगठन की लड़कियों में आत्मविश्वास आ गया था। वो जान गई थी कि आगे से वो ऐसी किसी भी तरह की छेड़खानी बर्दाश्त नहीं करेंगी। इसके बाद जहां कहीं भी छेड़खानी होती तो पहले वो लड़के को समझाने का काम करती थी लेकिन जब वो इनके साथ ज्यादा बदतमीजी करता था तो ये मिलकर उसकी पिटाई कर देती थी। धीरे धीरे शहर में इनकी पहचान बनने लगी। जिसके बाद जो मनचले बेखौफ होकर छेड़खानी करते थे वो इनको देखकर अपने घरों में दुबकना शुरू हो गये। लोगों को इनका काम पसंद आने लगा तब इन्होने फैसला लिया कि क्यों कोई ड्रेस कोड बनाया जाये। जिसके बाद इन लड़कियों ने मिलकर अपने लिये काला और लाल रंग चुना। इसके पीछे एक सोच थी, उसका एक मतलब था। काला रंग इन लोगों ने संघर्ष के लिये चुना जबकि लाल रंग विरोध के लिये। धीरे धीरे समाज में जब इनका काम दिखने लगा तो इन्होने अपने काम का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया।
आज उषा और उसके साथी जहां कहीं भी महिलाओं के खिलाफ अन्याय देखते हैं वहां पर वो उसका विरोध करना शुरू कर देते हैं। उषा का ये नया रूप जो दुनियाभर की दूसरी लड़कियों को अच्छा और बुरा, मनचलों से लड़ने की ताकत देने लगा है। उषा और उसके सदस्य निर्भया की याद में हर महीने 29 तारीख को महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ विरोध करते हैं। खासतौर से उस इलाके में जहां पर किसी महिला के साथ बलात्कार या तेजाब फेंकने जैसी दूसरी कोई गंभीर घटना हुई होती है। आज उषा की टीम पंद्रह से बढ़कर तीस हो गई है। खास बात ये है कि उषा के साथ इस काम में वो लड़कियां शामिल हैं जो काफी गरीब हैं इनमें से कुछ लड़कियां रेप सर्वाइवर हैं तो कुछ छेड़खानी की शिकार हो चुकी हैं। यौन हिंसा के बाद जो उषा घर की चारदीवारी से बाहर नहीं निकलना चाहती थी आज इंटरनेट के जरिये दुनिया भर में उसके साथ आठ हजार से ज्यादा लड़कियां जुड़ चुकी हैं। इतना ही नहीं दूसरी लड़कियों को वो सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे रही है। जिसका फायदा अब तक 34 हजार से ज्यादा लड़कियां उठा चुकी हैं। साथ ही एक ऐसी मुहिम में जुटी है जिस पर ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जाता। वो बच्चों को ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ में अंतर बता रही है। क्योंकि आज के दौर में पांच साल से लेकर ग्यारह साल तक बच्चों के साथ सबसे ज्यादा यौन हिंसा हो रही है, क्योंकि बच्चा ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ में अंतर नहीं जान पाता। इसलिये उषा का ज्यादातर ध्यान अब अपने इस काम पर है। ये उषा की कोशिशों का असर है कि वो दूसरी लड़कियों में हिम्मत बांध रही है, उनकी सोच को इस काबिल बना रही है कि वो बुरी नजर रखने वाले या मनचलों के साथ जरूरत पड़ने पर दो-दो हाथ कर उनको सबक सिखा सके।