रोजा Gautam Thummar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रोजा

मैं अपने अपार्टमेन्ट की छत पे पानी की टंकी के पीछे बैठा था। मैं अपनी रोजा का इंतजार कर रहा था। मेरी रोजा चूलबूली, नटखट, चेतान, नादान, भोली सी मूस्कान वाली दुनिया की सबसे खूबसूरत लडकी। जो मेरे जीने की वजह है। जिसे मैं बहोत प्यार करता हुं।
थोडे से इंतजार के बाद वो दबे पांव चलते हुए मेरे पास आई और मेरे हाथो में हाथ डालके मेरे कंधे पे सिर रखके बैठ गई।
"क्यों बुलाया तुमने मुझे?" मेंने रोजा से पूछा।
"तुमसे मिलने की इच्छा हुई थी। तुम तो बुलाते नहीं, इसलिए मुझे ही बुलाना पडता है।"
"तुम जानती हो ना? इतना बडा रिस्क लेकर इस तरह मिलना कितना महंगा पड सकता है?"
"मुझे किसी भी बात का डर नहीं है। बात जब तुम्हारे और मेरे बारे में हो तब तो हरगीज नहीं।" मेरी रोजा ने सख्ती से कहा।
मेंने रोजा को मेरे कंधो से उठाया और उसे मेरी आंखों में झांकने को कहा। "क्या नजर आता है इन आंखों में तुम्हें?"
"मेरे लिए बहोत सारा प्यार।"
"तुम जानती हो? ऐसा ही प्यार हमारे पेरेन्टस् हमसे करते है, अगर तुम्हारे और मेरे रिश्तें के बारे में हमारे पेरेन्टस् को पता चल गया तो अंजाम क्या होगा तुम्हें पता ही है।"
रोजा चुप हो गई मेरी बात सुनकर। उसकी आंखें भर आई और वो मेरे सीने से लिपट गई। मुझे काफी बुरा लगा उसे उदास करके। "रोजा सोरी...! मैं तुम्हें यहां रुलाने नहीं आया था।"
"किशन..! हम एक सोसायटी में रहते है, एक अपार्टमेन्ट में रहते है, हमारे पेरेन्टस् एक दूसरे को जानते है, हम कभी-कभी साथ साथ धुमने जाते है, खाना खाते है, मस्तियां करते है तो फिर प्यार क्यों नहीं कर सकते?"
हर बार रोजा एक ही प्रश्न मेरे सामने रख देती थी और हर बार मैं चुप हो जाता था। मेंने रोजा को कसके अपने सीने से लगाया। मेरी नटखट रोजा जब भी शादी की बात करती थी, तब दुनिया की सबसे मासुम लडकी बन जाती थी।
"किशन अगर तुम्हारा हिन्दु होना और मेरा मुस्लीम होना गुना है, तो हमारे दिल ने हमे क्यों नहीं रोका कि हम प्यार नहीं कर सकते? दिल तो हमारा सबसे खास मित्र होता है तो उनको हमे समझाने का फर्ज बनता है।" रोजा मेरे सीने से लगी हुई नादानी से बोले जा रही थी।
"तुम अभी से इतना टेन्शन क्यों ले रही हो? अभी हमारे धरवालो ने हमे मना थोडी ना किया है? तुम बस अपने प्यार पे भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा। हमारे प्यार के बीच दुनिया की कोई दिवार नहीं आएगी। भले ही वो समाज के रीति रिवाजो से जुडी हो या धर्म और मजहब की झूठी शान से। तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी।" मेंने रोजा को शांत करने की कोशिश की।
"चलो अब मुझे टेटू बना दो। पिछली बार बनाया था वो मिट गया।"
"इतनी जल्दी कैसे मिट गया?"
"तुम्हें पता, तुम्हें ठीक से बनाना चाहिए ना?"
"कहां बनाना है बोलो?" मेंने कहा।
"इसबार गले में बनाअो, मुझे अच्छा लगेगा।"
"पागल हो तुम? किसीको नजर आ गया तो क्या सोचेंगे लोग? मैं गले से थोडा नीचे बनाता हुं, किसीको नजर भी नहीं आएगा।"
"बहोत स्मार्ट मत बनो किशन बाबु। मैं जानती हुं तुम्हारी नजर कहां है?" रोजा आंख निकालते हुए बोली।
"चलो अब मेरी गोद में सो जाओ मैं टेटू बना देता हुं।"
मेरे कहने पर रोजा ने अपना सिर मेरी गोद में रख दिया। उनकी कातील नजरे मुझे देख रही थी और मेरी नजरे भी उनकी ओर थी। रोजा से एकबार नजरे मिल जाए तो नजरे हटा पाना मुश्किल था, पर इसबार मुझे ये मुश्किल काम करना पडा, क्योंकि मुझे उनको टेटू बनाके देना था।
मेंने अपना मुंह रोजा के गले के थोडे से पीछे के भाग की तरफ झुकाया। मेंने अपनी गर्म सांसो को छोडा। जैसे ही मेरी गर्म सांसे रोजा के बदन से टकराई तो उनकी धडकने बढने लगी। मेंने देखा की वो जोर से सांस ले रही थी। एक अांह सी हर सांस पे हो रही थी। मेंने गर्म सांस छोडने के बाद उस जगह लंबी सांस लेते हुए एक अगाध(गहरा) चुंबन किया। मेरे चुबन के बाद उस जगह पे खुन इकट्ठा हो जाने से लाल रंग निखर आया था। रोजा की गोरी चमडी पे वो और भी ज्यादा अच्छा लग रहा था। पागल रोजा इसे टेटू कहती थी। अब वो जब भी इस टेटू को देखेगी तो मुझे याद करेगी और जब ये टेटू मिटने को आएगा तो फिरसे मुझे बुलाएगी। नया टेटू बनवाने के लिए।
टेटू बनने के बाद वो फिर से मुझे देखने लगी। इस बार उनकी आंखों में नमी थी। आंसू बाहर आने को मचल रहे थे। उसने मुझे अपनी तरफ खींचा और धीरे से अपने होंठ मेरे होंठ पे रख दिए और एक कीस का द्रश्य रात को मदहोश करने लगा।
"किशन देखो ना आर्यन मेरी बात नहीं मान रहा।" संध्या की आवाज सुनते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया। संध्या आर्यन के साथ मेरे पीछे खडी थी। संध्या मेरी प्यारी पत्नी। हा, मेरी और रोजा की शादी नहीं हुई। हमने वही किया जो हमारी फैमिली ने कहा। हमारी शादी सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती थी, क्योंकि हमारा धर्म अलग था। हम खुशी-खुशी अलग हो गए। हलांकि हम जानते थे कि खुशी सिर्फ दिखावे की थी, भीतर तो दोनों दिल तडप रहे थे। हम प्यार में बागी ना हो सके, शायद हम हिंमत नहीं कर पाए। ना जाने ऐसी कितनी कहानियां होगी जो सिर्फ धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर अधूरी रह गई होगी। लेकिन हम जानते थे हमारी कहानी अधूरी जरूर थी पर प्यार तो पूरा ही था, अच्छा था और बेशुमार था, इसीलिए शायद आजतक मैं उसे भूला नहीं पाया और वो भी मुझे भूला नहीं पाई होगी। तडप होती है उनको याद करके, पर ये तडप भी अच्छी लगती है।
"कहां खो गए किशन?" संध्या ने मेरे कंधो पर हाथ रखके फिर से मुझे खयालों से बाहर निकाला।
"हं.... क्या हुआ?" मेंने कहा।
"देखो ना आर्यन खाना खाने से मना कर रहा है।"
मेंने आर्यन के सामने देखा। उनको अपने पास बुलाया। उनकी छोटी सी हथेलियों को अपने हाथो में लिया। एक प्यारे से छ: साल के बच्चे के चेहरे पर मासुमियत थी। "बेटा खाना खा लो, देखो मम्मा को परेशान नही करते।" मेंने प्यार से कहा।
"डेडी मुझे अपनी फ्रेन्ड के धर जाना है। उसने मुझे बोला था आज मेरे धर खाना खाने अाना कुछ खास बनाया है । वो यही फर्स्ट फ्लोर पे ही रहती है। डेडी, क्या मैं जाऊ?" उसने अपनी प्यारी सी आवाज में सबकुछ बोल दिया।
"अच्छा..! फर्स्ट फलोर पे ही रहती है? क्या नाम है उसका?"
"रोजा....." उसने तुरंत अपनी फ्रेन्ड का नाम लीया और मेरे सामने मेरा अतीत खडा हो उठा। क्या मेरा बेटा मेरी ही कहानी दोहरा रहा था। क्या वो अपनी बचपन की दोस्ती को प्यार का नाम देगा? क्या वो भी मेरी तरह अपनी रोजा से बहोत प्यार करेगा? और क्या वो भी अपनी रोजा से बिछड जाएगा?
मैं सोच में डूब गया था और आर्यन अपना हाथ छुडाकर दरवाजे की ओर दौडा और जाते-जाते बोल गया 'मैं रोजा के धर जा रहा हुं और मैं खाना खाने के बाद ही आऊंगा।' संध्या मेरी तरफ देख रही थी। वो सोच रही होगी कि मेंने आर्यन को रोका क्यों नहीं? पर मैं उसे रोकता भी क्यों? मैं यही तो चाहता था कि वो जिद करे अपनी रोजा से मिलने के लिए, अपने प्यार के लिए। मेरी तरह वो भी गलतियां ना करे। वो दुनिया ले लडे अपने प्यार के लिए और खुश रहे पूरी जिंदगी अपने प्यार के साथ।
(शायद आप सोच कहे होगे मेंने किशन और रोजा को क्यों नहीं मिलाया, पर ये कहानी उन प्रेमी जोडों की है जो किशन और रोजा की तरह जी रहे है। जिनकी कहानी इनके जैसी ही है। क्यों सदीयों से प्यार के दुश्मन बने है लोग? क्या प्यार ख्तम हुआ उनके रोकने से? सब जानते रोकने वाले मर जाएंगे पर प्यार कभी ख्तम नहीं होगा। प्यार शाश्वत है और प्यार के बिना दुनिया की कल्पना करना किसी मुर्खता से कम नहीं। प्यार एक एहसास है, खुद म खुद खिलने वाला फूल है। इसे मेरे और आपके रोकने से रोका नहीं जा सकता।)