एक एंजिनियरींग स्टूडेंट का पत्र hitesh narsingani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक एंजिनियरींग स्टूडेंट का पत्र

Hitesh Narsingani

hiteshnarsingani@gmail.com

मेरे सभी इंजीनियरिंग के दोस्तों और अपनी एजुकेशन सिस्टम को,

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नमस्ते, मेरे सभी इंजीनियरिंग के दोस्तों में इंजीनियरिंग के सेकंड यर में पढने वाला लड़का दिलसे आपको एक सवाल पूछना चाहता हु,और साथ में अपने दिल की बात आपके सामने रखना चाहता हूँ | क्या दोस्तों सच में हम इंजिनियर है? आधा इंजिनियर तो में बन जाऊंगा एक दो महीनो में और मेरे कुछ सीनियर दोस्त पुरे इंजिनियर बन जायेंगे | क्या सोचा हे आपने आप इंजिनियर बनके क्या करेंगे, मास्टर्स, एमबीए, जॉब करेंगे या मोस्ट ऑफ़ जो करते है वेसे जॉब की तलाश करेंगे | लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा के में इंजीनियरिंग करके थोमस आल्वा एडिसन या निकोला टेस्ला की तरह अपनी पेटंट बनाऊंगा और आपनी खुद की कम्पनी खोलूँगा या फिर सर विश्वेसरैया की तरह अच्छा सा इंजिनियर बनके देश के लिए आपने इंजीनियरिंग का ज्ञान इस्तमाल करके देश के लिए कुछ करूँगा | ये जब मेरी तरह फर्स्ट यर में होते है तब से हम सब एसा हि सोचते है शायद, लेकिन जब हमारी इंजीनियरिंग की पढाई आगे चलती है तब न ही हमें एडिसन याद आतें हे और नाही टेस्ला, लास्ट सेम में आके सब की सोच बस जॉब पर आके ही रुक जाती है | ऐसा क्यों होता है वो आप सब को पता ही होगा |

अभी थोड़े महीने पहले मेने पेपर में कही पढ़ा था की अपना संसद्भवन की ईमारत बहोत पुरानी हो चुकी हे और आज के समय के हिसाब से अपने संसद की ईमारत छोटी पड रही है | अपने संसदभवन की इमारत हेरिटेज प्लेस तो हे ही साथ में वह अपने देश की पहेचान हे | जो की अंग्रेजो की देन हे, अब अपने को संसदभवन की इमारत को रिप्लेस करना होगा लेकिन दूसरा संसदभवन बनाने के लिए क्या हमें दुसरे सर एडविन ल्युटन्स मिलंगे? ( ल्युटन्स ने अपनी संसदभवन की ईमारत डिज़ाइन तैयार की थी ) क्या है अपनी पास ? अरे भाई संसदभवन बनाना है, उसे कोई एहरे गहरे, चिला चालू आर्किटेक से थोड़ी न बनवा लेंगे | हा तो अब सवाल ये हे के कहा से आएंगे दुसरे सर ल्युटनस ? क्या हम १२५ करोड़ मेसे एक ल्युटन्स जेसा आर्किटेक नहीं पैदा कर सकते |

Because “our education system are not made engineers it made us only PAPERBABU”

हा हम सब पेपरबाबु ही है | उसके लिए आजकल अपनी इंजीनियरिंग कोलेजो में केसे पहाया जाता हे या में और आप केसे पढ़ रहे है या आपको और मुझे केसे पढाया जाता हे उसका डिस्क्रिप्शन देने की जरुरत नहीं है | क्यों हम एडिसन, टेस्ला और सर विश्वेसरैया की तरह नहीं सोच पा रहे है ?

मेरे हिसाब से दुनिया में सबसे ज्यादा इंजिनियर भारत में हे, बन रहे है | लेकिन इंजीनियरिंग में जो सिलेबस पढाया जाता हे वह पूरा का पूरा बहार से उठाया हुआ | उसमे आपना क्या हे ? अगर किसी को पता हो या किसीको पता चले तो मुझे बताना | थ्री इडियट फिल्म का एक डायलोग हे “पेन की टिप से लेके पेंट की ज़िप तक.........” उसमे पेन की टिप से लेकर पेंट की ज़िप तक जो हम पुरे दिन में इस्तेमाल करते है उसमे से अपने देश में खोजी हुई अपनी चिजे कितनी है ? ऐसी कितनी चीजो के पेटंट अपने देश के पास है ?मोबाईल फोन से लेकर कम्पूटर तक जिन चीजो ने आम आदमी की लाइफ को बदल कर रख दिया हो ऐसी कितनी पेटंट अपने नाम है ? शायद एक भी नही | साला में तो कभी कभी सोचता हु के अपने देश ने दुनिया को दिया क्या ... संस्कार और संस्कृति , नहीं सिर्फ अपने संस्कार और संस्कृति की बाते ही हमने दुनिया को दी और सुनाई है |

अपना एजुकेशन सिस्टम में अपना सिलेबस हिमालय जेसा है | हम हिमालय को देखते तो हमें सिर्फ बर्फ ही दिखाई देती हे,वेसे ही इंजीनियरिंग के सिलेबस में हमें इंजीनियरिंग की बर्फ ही दिखाई जाती है | और अगर कोई वो बर्फ हटाकर असली हिमालय देखना चाहे तो भी उसे वह बर्फ हटाने नहीं दी जाती | गुजरती में एक कहावत है “कुवा माँ होय तो हवाडा माँ आवे” मतलब के जब अपनी एजुकेशन सिस्टम में ही बर्फ हटाने किवाली कोई बात नहीं तो हम स्टूडेंट्स क्या करेंगे पेपरबाबु ही बनेंगे |

एसा नहीं है अपने लोगो कुछ किया ही नहीं हे, लेकिन अपने यहाँ कुछ करते हे वे देश छोड़कर बहार चले जाते है | और वहा अपना टेलेंट दिखाते है और वहा के हिसाब से अपना इन्वेंशन करते है | अपने यहाँ थोड़ी न कुछ इन्वेंशन होता हे, अपने यहाँ तो सिर्फ ‘जुगाड़’ होता है | क्यों हम कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स को अपने यहाँ से अंतरिक्ष में नहीं भेज सकते ? क्योकि अपने सिस्टम को ये सब नहीं जुगाड़ करने वाले ही चाहिए | शायद इसी वजह से हम आज तक लोगो की लाइफ चेंज हो ऐसी कुछ चीज मार्किट में नहीं ला पाए है | सही में अगर हम इंजिनियर बनाते तो आज तक तो कुछ्ना कुछ लाइफ चेंजिंग वाला जुगाड़ तो हम कर ही लेते | हा जुगाड़ ही हहह अपने यहाँ थोड़ी इन्वेंशन होता है |

चलो अब अपनी बहोत मजाक बनाली अब सीरियसली इसके सोल्यूशन के बारे में सोचते है | सबसे पहले तो हमें अपना पूरा एजुकेशन अपनी भाषा में करना होगा | वो क्यों करना होगा वो भी अब में ही बताऊ क्या ? (अब इस पर तो कुछ लोग मुझसे अलग में डिबेट करने आयेंगे) अरे सबको पता हे वेसे मुझे भी पता है कि हमें दुनिया से कनेक्ट रहना है तो इंग्लिश आज जरुरी है | लेकिन क्या आज जापान, जर्मनी, चीन, क्या ये सब दुनिया से कनेक्ट नहीं है ? अरे भाई सिर्फ दुनिया से कनेक्ट रहनेके लिए अगर आपको इंग्लिश सीखना जरुरी है तो इंग्लिश अलग से पढाओ ना, कोन मन कर रहा है | में तो यह कहता हु की जितनी इंजीनियरिंग बन्दे या बंदी को अच्छी आनी चाहिए (अपनी भाषा में पढ़ी हुई) उससे अच्छी उसे इंग्लिश भी आनी चाहिए | है अब अपने पुरे एजुकेशन सिस्टम को के.जी. से लेकर कोलेज तक सब बदलना होगा | हमें अब सब नया लाना होगा हमें पहले तो परिस्तिथि बनानी होगी जिसमे स्टूडेंट्स हमेशा नया सोच सके नाकि हमेशा मार्क्स और एग्जाम के बारे में सोचते रहे | तभी अपन टेलेंट और इन्वेंशन बहार आएगा | जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, के पास था वोह बहुत आ चूका उनके यहाँ अब क्या नया करने के लिए शायद अभी के लिए तो कुछ नहीं हे वे अब बस उनके पास जो हे उसको सिर्फ इम्प्रुव कररहे है | लेकिन हमारे यहाँ बहोत कुछ नया करने के लिए हे | अब हमने जुगाड़ तो बहोत कर लिए लेकिन अब हमें दुसरे विकसित देशो पर निर्भर नहीं रहना है | दुनिया को हमें दिखाना अहोगा के सिर्फ जुगाड़ आलावा भी हम बहोत कुछ कर सकते है |

इसके लिए हमें एक एसा सिस्टम बनाना होगा जो एजुकेशन की क्वालिटी मेन्टेनहो | समयानुसार वह अपडेट होता रहे | कोई भी कुछ नया लाए तो उस एप्रोत्साहित करना होगा ,उसकी कीमत हमें चुकानी होगी, ऑफकोर्स पैसो से | ताकि वो टेलेंट बहार न चला जाए, आज ब्रिटेन का हर पांचवा रिसर्चर भारतीय मूल का है और अमेरिअका का हर पांचवा | हमें बहार जाते हुए अपने इस टेलेंट को अपने देश में ही जगह तो देनी ही होगी साथ साथ उन्हें अपने काम के लिए हर चिज्ज उपलभध करनी होगी जिनके लिए वो अमेरिका या दुसरे विकसित देशो का रास्ता चुनते है | उनकी सराहना भी करनी होगी, और उन्हें विदेश में जितने पैसे मिलते होंगे उससे ज्यादा हमें चुकाने होंगे | अब हमरे यहाँ टीचर्स को भी अपडेट होना पड़ेगा , उनका पुराना तो कुछ नहीं चलेगा | एसा नहीं के हमारे पास क्वालिटी एजुकेशन नहीं है | लेकिन वह बहोत स्लो हे, और बहोत पुराना हो चूका है | हमारे क्वालिटी टीचर्स हे वोह भी अभी तक अपने पुराने तरीके से ही पढ़ा रहे है | और हमें पेपरबाबु बनाने पर मजबूर कर रहे है | और यार् अपनी मज़बूरी तो देखो हम तो रेली निकल कर “नहीं चलेगा .........नहीं चलेगा “ का नारा भी नहीं लगा सकते | हमें अपने प्राइमरी स्कुल के बच्चो को भी एसा माहोल देना होगा जिसमे वह खुद से अपना कुछ सोच सके | अगर अँधेरा ही नहीं होगा तो कोने में जलता हुआ छोटा सा दिया कहा से दिखाई देगा |

हमें अपना पुराना ज्ञान भी वापस लाना होगा | आज दुनिया जो मेथेमेटिक्स पढ़ा रही है वह तो सदियो पहले अपने यहाँ पढाया जाता था | भासकराचार्य और आर्यभट इसके पायोनियर है | और आप और में सभी जानते है की मैथ्स तो इंजीनियरिंग की पत्नी, गर्ल फ्रेंड और हा साथ में मम्मी भी मेथ्स ही है | दुनिया में जब सेटेलाईट का नमो निशान नहीं तब भी हमारे यहाँ ग्रहों की स्तिथि का अंदाजा लगाया जाता था | और वो भी बिलकुल सही और सटीक होता था, विश्वास न होतो हमारा सदियों पुराना पंचांग उठाकर देख लेना उसमे सूर्य और चन्द्र की गति का अनुमान और उनकी दिशा एक्यूरेट बताई गई है और आज भी उसी तरीके से बताई जाती है | ये सब अपना है, हमें अपने स्टूडेंट्स को ये सब भी दिखाना होगा, बताना होगा, सीखना होगा | इसके लिए हमें बड़ी रिसर्च करके अपने पुराने भुलाए गए ज्ञान को नए स्वरूप में वापस लाना होगा | इसके साथ हमें दुनिया में जो चल रहा है उसकी कोपी भी अपने तरीके करनी है | अरे भाई सीधी सी बात है और में निश्चिन्त रूप से मानता हु की नक़ल करने से ही इन्सान आगे आता है | पर सिर्फ नक़ल से कुछ नहीं होता है, नक़ल+अकल=सफल | हा सिर्फ नक़ल से भी हमारे यहाँ बहुत लोग आगे आते ही है लेकिन इंजिनिअर्स नहीं वो ......................... वाले |

हम डिग्री होल्डर्स याने पेपरबाबु वाले टेक्नोक्रेट इंजिनिअर्स तो पैदा कर लेते है, लेकिन इन्वेन्टर्स पैदा नहीं कर पाते | अगर कुछ इन्वेंट कर लेते हे तो उसका सिस्ता नहीं बना पाते , अगर सिस्टम नहीं बना पाते है , सब कुछ अगर कर भी लेते है तो वो आम आदमी तक पोहचे एसा कुछ नहीं कर पाते है |

अरे हमने सोल्यूशन तो बहोत सरे सोच लिए पर इन सब पर अब सोचेगा कोन........अपनी गवर्मेन्ट ? हा सबसे पहले तो गवर्मेन्ट को ही सोचना होगा | बजेट देना होगा भाई , उसके सिवा थोड़ी न कुछ होता हे ,उसके बगेर तो हा ये सब सोच भी नहीं सकते, में तो ये कहता हु की जितना बजेट हम डिफेंस के लिए बनाते है उतना ही एजुकेशन के लिए रखना होगा और साथ में हम सबको भी सोचना होगा , हमारे टीचर्स, प्रोफेसर्स, और एदुकातीं फिल्ड में जितने भी लोग हे उन सभी को एक साथ सोचना होगा तभी हम सही में पेपरबाबु वाले डिग्री होल्डर नहीं इंजिनियर भी बनेंगे | और अंत में यह हमें याद रखना होगा की अपने इंजीनियरिंग और सायंस का पानी हर जगह है, तय हमें करना है की हमें कुए में दुबकी लगानी हे या समंदर में |

आपके जेसा ही एक एवरेज इंजीनियरिंग स्टूडेंट ( हितेश नरसिंगानी )

Hitesh r. narsingani

204, mahir palace,

Amarnagar road, b\\h Shreeji

School, jetpur(360370)

Mo : 8347866461