साकार हुई सपनों की उड़ान
सपने तो हर कोई देखता है, लेकिन उनमें से कुछ ही लोग होते हैं जो उन सपनों में रंग भरना जानते हैं। भले ही उनके सामने कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों ना आए। कुछ ऐसे ही अपने सपनों में रंग भरा अर्चना ने। जिसने अपने शौक को पूरा करने के लिये ना सिर्फ अपनी सोच बदली, अपने डर को दूर किया बल्कि उम्र की सीमा को भी नजर अंदाज कर दिया। अर्चना का जन्म कश्मीर में हुआ था, उसका परिवार रूढिवादी सोच रखने वाला था। इसलिए वो कभी बाजार तक अकेले नहीं गई थी। बंदिशों के बीच अर्चना बड़ी तो हो रही थी लेकिन उसने अपने सपनों को मरने नहीं दिया। पहाड़ी वादियों के बीच रहने वाली अर्चना सपने देखती कि वो आसमान की ऊंचाइयों को छू रही है और सागर की गहराई कितनी है उसे नाप रही है। लेकिन ये सिर्फ सपने थे और हकीकत में इस माहौल में वो पूरे नहीं हो सकते थे। बावजूद अर्चना ने सपने देखना नहीं छोड़ा।
कहते हैं कि सपने भी उन्ही लोगों के पूरे होते हैं जो उन सपनों को पूरा करे के लिये उनका पीछा नहीं छोड़ते। तभी तो अपने परिवार की लाडली अर्चना जब बड़ी हुई तो उसकी शादी एक ऐसे शख्स के साथ हुई जो भारतीय नौसेना में सबमरीन कमांडर था। ऐसे में उसको अपने पति के साथ देश के कई कोनों में जाना पड़ा। अर्चना शादी के बाद ऐसे घर में आ गई थी जहां के माहौल में काफी खुलापन था और किसी के लिए भी किसी चीज की कोई मनाही नहीं थी। वक्त गुजरता जा रहा था। अर्चना अब दो बच्चों की मां भी बन चुकी थी, लेकिन उसके सपने अब तक जिंदा थे। अर्चना के पति को एडवेंचर का काफी शौक था, ये शौक अर्चना के सपनों में रंग भरने के लिये काफी था। लेकिन अर्चना ने पहले अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाया और एक दिन मौका देख अपने पति के सामने अपने सपनों का जिक्र किया।
अर्चना की बात सुन उनका पति ये जान कर हैरान हुआ कि अब तक उसने ये बात उसे क्यों नहीं बताई, बावजूद वो खुश था। तब तक अर्चना की उम्र 30 के आसपास की हो गई थी। इस तरह एक दिन अर्चना ने देखा कि उसके शहर में 45 किलोमीटर की वॉकेथान होने जा रही है। जिसके बाद उसने अपने पति से इस बारे में बात की तो उसके पति ने अपनी सहमति दे दी। ये पहला मौका था जब दो बच्चों की मां अर्चना अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा काम करने जा रही थी जो उसकी इच्छा के मुताबिक था। इस मैराथन में हिस्सा लेने वाली अर्चना के पैरों पर भले ही छाले पड़ गये थे, लेकिन इससे उनके पति के साथ साथ उनका भी हौसला बुलंद हुआ और उनको भरोसा हुआ कि वो भी ऐडवैंचर के क्षेत्र में कुछ नया कर सकती हैं। इसी तरह अर्चना एक दिन घूमने फिरने के इरादे से दार्जिलिंग गई, वहां पर उसने देखा कि बेसिक माउंटेनिंग का कोर्स चल रहा है। जिसे वो भी करना चाहती थी इसके लिए जब पति से उसने बात की तो उसने भी झट से अपनी मंजूरी दे दी। इस तरह अर्चना ने 15 दिन के कोर्स में अपना दाखिला करा लिया। शुरूआत में अर्चना को इसे करने में काफी दिक्कत आई क्योंकि उम्र के कारण उसमें अब वो ऊर्जा भी नहीं बची थी, लेकिन अपने दृढ़संकल्प से उसने इस कोर्स को भले ही पूरा कर लिया था लेकिन उसको इस बात का मलाल था कि उसका कोर्स में ‘ए’ ग्रेड नहीं आया है। इस तरह वो घर तो लौट गई थी इस उम्मीद के साथ कि वो यहां फिर आएगी और उसने ऐसा ही किया। तब वहां पर केवल महिलाओं के लिए ये कोर्स चल रहा था। इस बार उसने जो सोचा था वही हुआ और उसका ‘ए’ ग्रेड आया।
अब बारी थी उन सपनों को पूरा करने की जो वो बचपन से देखते आ रही थी। तब अर्चना ने स्काई डाइविंग सीखने के बारे में सोचा, लेकिन उस समय भारत में आम लोगों के पास स्काई डाइविंग सीखने की सुविधा नहीं थी। तब अपने पति के सहयोग से वो अमेरिका के लॉस एंजिलस में इस कोर्स को करने के लिए गई। अर्चना तब उम्र के उस पढ़ाव में थी जब ज्यादातर लोग अपने करियर की बुलंदी पर होते हैं लेकिन अर्चना ने 32 साल की उम्र में इसे चुनौती के तौर पर लिया और स्काई डाइवर बनने का फैसला लिया।
ये बहुत ही महंगा कोर्स था और इस कोर्स को करने के लिए अर्चना को अपने गहने बेचने पड़े और उसके पति को घर तक गिरवा रखना पड़ा, लेकिन सफलता पूर्वक इस कोर्स को पूरा करने के बाद अब तक वो 200 जंप्स पूरे कर चुकी है और अपना 201वां जंप तिरंगे के साथ पूरा किया। इस तरह का कारनामा करने वाली वो देश की पहली महिला बनी। लेकिन अर्चना इस उम्र में इतना कुछ करने के बाद भी संतुष्ट नहीं थी और जब तक वो 35 साल की हुई तो उसने बेस जंपिंग सीखने के बारे में सोचा। यहां भी अर्चना दूसरों के मुकाबले बीस ही साबित हुई। तभी तो लोग एक हजार स्काई जंप्स के बाद ही बेस जंपिंग करते हैं वो उसने सिर्फ 200 स्काई जंप्स के बाद ही बेस जंपिंग करना शुरू कर दिया। इस तरह ऐसा कारनाम करने वाली वो देश की पहली महिला बनी। अर्चना एक के बाद एक कारनामें कर रही थीं, अब बारी थी वो करने की जो इससे पहले कभी भी किसी भारतीय ने नहीं किया था। अर्चना ने बेस जंपिंग के लिये मलेशिया के केएल टॉवर को चुना। जहां पर बेस जंपिंग करने वाले 120 लोगों में से वो अकेली भारतीय थी। यहां भी उसने तिरंगे के साथ छलांग लगाई। खास बात ये थी कि उसने बेस जंप और स्काई डाइविंग दोनों के लिए एक ही पैराशुट का इस्तेमाल किया था।
इस तरह अर्चना आसमान की उंचाईयों को छू रही थी लेकिन पानी से उसको काफी डर लगता था। वो ये डर भी बाहर निकालना चाहती थी लेकिन तब तक अर्चना की उम्र 38 साल की हो गई थी। स्कूबा डाइविंग के लिए अर्चना ने पहले तैराकी सीखी और उसके बाद स्कूबा डाइविंग का कोर्स किया। जब उसने ये कोर्स पूरा किया तो उसने आसमान की ऊंचाई के बाद सागर की 60 फीट की गहराई में जाकर तिरंगे को लहराया। इस तरह वो आसमान के बाद सागर की गहराई में तिरंगा लहराने वाली पहली भारतीय महिला बनी। आज अर्चना के नाम कई रिकॉर्ड हैं। वो अब तक 350 स्काई डाइव, 45 बेस जंपिग, 347 स्कूबा डाइव लगा चुकी हैं। आज अर्चना एक प्रोफेशनल स्कूबा डाइविंग ट्रेनर हैं। 40 साल से ज्यादा बसंत देख चुकी अर्चना आज भी कुछ ना कुछ नया करने की कोशिश कर अपने उन सपनों को पूरा करने में लगी है जो उसने बचपन में देखे थे।