राजभाषा के कार्यान्वयन में तकनीकी की भूमिका
—दिलीप कुमार सिंह
हमारे देश में कंप्यूटरीकरण की शुरूआत लगभग 80 के दशक में हुई। उस समय तक केवल शोध संस्थानों इत्यादि में ही कंप्यूटर दिखता था। जैसे—जैसे कंप्यूटर की उपादेयता जीवन के अन्य क्षेत्रों में दिखाई देने लगी, उसका प्रयोग कार्यालयों में भी बढ़ने लगा। शुरूआत में कंप्यूटर पर काम करने की भाषा केवल अंग्रेजी ही थी, अतः कंप्यूटरीकरण के शुरूआती दौर में कार्यालयों में अंग्रेजी की प्रयोग खूब बढ़ा, लेकिन धीरे—धीरे बदलती और उन्नत होती तकनीकी ने इसे हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में भी संभव कर दिया। शुरुआती दौर में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में हिंदी में काम करने के उत्सुक लोगों को एक प्रकार की बेचारगी का सामना करना पड़ता था किंतु आज यह स्थिति नही है, अब हम मात्र जानकारी के अभाव में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर पर काम नही कर पा रहे हैं, अन्यथा कोई अन्य कारण या कोई बहाना नही बचा है कि हिंदी में काम न किया जाए। राजभाषा के अनुपालनों के लिए हमारे कार्यालयों में जो कार्य किए जाते हैं, उन पर हिंदी में काम करने का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है—
हिंदी टाइपिंग में यूनिकोड तकनीकी के आ जाने के बाद हमारे देश में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में टाइपिंग के मामले में क्रांति सी आ गई है। पहले टाईप करने का कार्य केवल टाइपिस्ट का होता था, आज क्लर्क से लेकर महाप्रबंधक/निदेशक/महानिदेशक स्तर के अधिकारी यूनिकोड के माध्यम से सहजता से टाइपिंग कर पा रहे हैं। परंपरागत प्रकार के फांट जिसपर टाइपिंग सीखने के बाद अभ्यास करना पड़ता था और स्पीड आने में महीनों लगते थे, अब फोनेटिक की बोर्ड की मदद से वही कार्य कुछ महीनों की जगह कुछ घंटों में हो जाता है। तकनीकी की मदद से आसानी से टाइपिंग सीखने की वजह से सभी स्तर के हिंदी में दक्ष कर्मचारी/अधिकारी हिंदी में लिखने मेें रूचि लेने लगे हैं। परंपरागत प्रकार के फांट में जो समस्याएं थीं, वह सब की सब यूनिकोड फांट में दूर कर ली गई है, जिससे एक बार हिंदी में टाईप की गई सामग्री सभी माध्यमों में प्रयोग किया जा सकेगा। इस प्रकार यूनिकोड तकनीकी को अपनाने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के लिए प्रवृत किया जा सका है। अब स्थिति यह है कि 15 वर्ष पहले तक जो लोग कंप्यूटर सीखने और हिंदी में काम करने से बचते थे वही आगे बढ़कर स्वतः कंप्यूटर भी सीख रहे हैं और हिंदी में काम करना भी। आज के समय में तकनीकी इतनी विकसित हो चुकी है कि यदि लोगों को मात्र कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने के संबंध में जागरूक भर कर दिया जाए तो वे शेष कार्य खुद से कर लेंगे। इससे सरकारी कार्यालयों में कंप्यूटर पर हिंदी में काम करने संबंधी अभियान को बहुत गति मिली है। आज देश में राजभाषा हिंदी में कार्यान्वयन इतना तेजी से बढ़ाने में हिंदी यूनिकोड की सबसे बड़ योगदान है। देश भर में सभी स्तर के अधिकारी/कर्मचारी अपने कार्य के लिए किसी टाइपिस्ट पर आश्रित न रहकर खुद से अपना कार्य कर पा रहे है। यूनिकोड ने कंप्यूटर पर हिंदी को अंग्रेजी के समान ही सशक्त बना दिया है। अब तकनीकी यहां तक विकसित हो गई है कि मात्र बोलकर शतप्रतिशत शुद्धता के साथ टाइपिंग करना संभव हो गया है। यह संभव बनाया गया है गूगल वाइस टाइपिंग द्वारा। इसके प्रयोग से बड़ी आसानी इंटरनेट के प्रयोग से स्मार्टफोन, कंप्यूटर व अन्य इलेक्ट्रानिक जुगतों पर हिंदी में बड़ी आसानी से बोलकर टाइपिंग की जा सकती है। भारत सरकार द्वारा केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में हिंदी में काम करने के लिए यूनिकोड तकनीकी में काम करने को अनिवार्य बनाया गया है। इसे कंप्यूटर पर इंस्टाल करना बहुत आसान है। गूगल सर्च में जाकर हिंदी टूलसेटअप सर्च करने से ही इसका इंस्टालर आ जाता है, जिसको डाउनलोड कर रन करवाकर इंस्टाल किया जा सकता है।
हिंदी अनुवाद—केंद्र सरकार के कार्यालयों में लागू राजभाषा नीति के अनुसार हमारे देश के एक बड़े हिस्से में शत—प्रतिशत कार्यालयीन कार्य हिंदी से ही करना अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा कुछ प्रकार के दस्तावेजों को पूरे देश को द्विभाषी रूप में जारी करना अनिवार्य होता है। इन सब कार्यों को पूरी तरह से कैसे बड़ी संख्या में कुशल और प्रशिक्षित अनुवादकों की आवश्यकता है। राजभाषा विभाग द्वारा बनाए गए नियमों के मुताबिक केंद्र सरकार के प्रत्येक कार्यालय में प्रत्येक 25 अनुसचीवीय कार्मिकों पर एक हिंद अनुवादक की भर्ती का नियम बनाया गया है। अव्वल तो यह लक्ष्य किसी कार्यालय में पूरा नही किया जाता है। दूसरा अगर पूरा कर भी लिया जाए तो 25 अनुसचिवीय कार्मिको द्वारा किया गया अंग्रेजी के बाद एक हिंदी अनुवादक नही कर सकता है। अतः राजभाषा नीति में इस बात पर बल दिया गया कि मूल रूप से सारा कार्य हिंदी में ही किया जाए। अनुवादकों पर अधिक आश्रित न रहा जाय। इस वजह से अंग्रेजी में काम करने के अभ्यस्त अधिकारियों/कर्मचारियों को मशीन अनुवाद का विकल्प के तौर पर सहारा लेना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक देश भर के अधिकांश कार्यालयों में तुरंत हिंदी करने के लिए गूगल ट्रांसलेशन सर्विस सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसके बाद दूसरा स्थान सीडैक द्वारा विकसित ‘मंत्रा‘ मशीन अनुवाद प्रणाली का है। लोक सभा व राज्य सभा में सत्र के दौरान संदन की कार्यवाही को हिंदी मे करने के लिए कार्य की अधिकता की वजह से मशीन अनुवाद की सहायता लेना अनिवार्य हो जाता है। निश्चय ही मशीन अनुवाद की मदद से कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में काम—काज बहुत तेजी से बढ़ा है। मशीन अनुवाद की सेवा का उपयोग शब्दकोश के विकल्प के तौर पर भी किया जा रहा है। तकनीकी की प्रयोग कर बड़े—बड़े दस्तावेजों की अनुवाद बहुत अल्प समय में किया जा रहा है। मशीन अनुवाद की मदद से धारा 3 (3) जैसे नियमों के अनुपालन में बड़ी मदद मिल रही है। गूगल अनुवाद और मंत्र मशीन अनुवाद हमारे देश की प्रमुख अनुवाद प्रणालियां हैं। गूगल अनुवाद वर्तमान में दुनिया की 106 भाषा युग्मों में परस्पर अनुवाद की सुविधा देता है। गूगल एक कदम और आगे बढ़ते हुए किसी अंग्रेजी लिखी हुई इमेज का भी अनुवाद कर देता है। हालांकि यह इतना शुद्ध नही होता है परंतु छोटे—छोटे वाक्य या पदबंध या एक शब्द का अच्छा अनुवाद प्राप्त हो जाता है।
हिंदी शिक्षण में— संविधान की धारा 344 के अनुसार वर्ष 1955 में गठित किए गए राजभाषा आयोग के सिफारिशों पर जारी राष्ट्रपति महोदय के आदेश, 1960 में स्पष्ट किया गया है कि केंद्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय में कार्यरत अधिकारी/कर्मचारी जिनको हिंदी में काम करने का ज्ञान नहीं है, को सेवा—कालिक प्रशिक्षण लेना अनिवार्य कर दिया गया है। इस प्रशिक्षण मे ंपास होने पर एक वेतनवृद्धि के बराबर राशि मिलती है और अच्छे अंकों से पास होने पर कुछ नकद पुरस्कार भी मिलता है। प्रशिक्षण की व्यवस्था बड़े शहरों में ही होने की वजह से छोटे शहरों के कार्यालयों में कार्यरत अधिकारियो/कर्मचारियों प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नही हो पायी थी। हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए पत्राचार पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई है, परंतु किसी प्रशिक्षक के अभाव में यह योजना कारगर सिद्ध नही हुई है। हिंदी प्रशिक्षण के लिए भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा एक ऑनलाईन पोर्टल विकसित किया गया है। प्रमुख भारतीय भाषाओं के माध्यम से हिंदी सीखाने के लिए एक प्लेटफार्म है। इसमें हिंदी के अक्षर ज्ञान/उच्चारण से लगकर पत्र लेखन तक का संपूर्ण अभ्यास कराया जाता है। इसकी मदद से बहुत से लोगों ने आसानी से हिंदी सीखा है। जैसे—जैसे देश में हिंदी में प्रशिक्षित अधिकारी/कर्मचारी बढ़ते जा रहे हैं, वैसे—वैसे राजभाषा में कार्य भी बढ़ता जा रहा है। आज पहले के मुकाबले सभी कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन की स्थिति मजबूत हुई है, तो इसका एक कारण यह भी है कि आज हिंदी में प्रशिक्षित अधिकारी व कर्मचारी बढ़ रहे हैं। विभिन्न तकनीकी माध्यमों से उपलब्ध प्रशिक्षण सामग्री की वजह से राजभाषा कार्यान्वयन को बढ़ाने में सहायता मिली है। भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा विकसित लीला साफ्टवेयर की मदद से किसी भी भारतीय भाषा में पारंगत हुआ जा सकता है। इस साफ्टवेयर तक पहुंचने के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाया जा सकता है— ीजजचरूध्ध्सपसंचचचण्तइ.ंंपण्पदध्
हिंदी आशुलिपिक— भाषाई क्षेत्र में तकनीकी की बढ़ती दखलंदाजी ने इस क्षेत्र को बहुत विकसित किया है। प्रत्येक कार्यालय में एक निश्चित अनुपात में हिंदी आशुलिपिकों की भर्ती अनिवार्य की गई। फिर भी, प्रत्येक स्तर के अधिकारी को हिंदी आशुलिपिक की सेवाएं सुलभ नहीं हो पाती है। कुछ समय पहले तक कार्यालयों में आशुलिपिक अधिकारी का डिक्टेशन लेकर उसे हिंदी या अंग्रेजी में हाथ से लिखते थे या सीधे कंप्यूटर/टाईप मशीन पर बैठ कर पत्र का मसौदा तैयार कर प्रस्तुत करते थे। यह एक श्रमसाध्य और समय साध्य प्रक्रिया थी। परंतु आज के दौर में तकनीकी के बढ़ते प्रभाव ने प्रायः आशुलिपिकों का कार्य समाप्त करने की प्रक्रिया की शुरूआत कर दी है। गूगल के भाषा प्रौद्योगिकी उत्पादों की मदद के वाक से पाठ सॉफ्टवेयर और पाठ से वाक सॉफ्टवेयर विकसित किए जा चुके हैं। अब आशुलिपिकों के बजाय कंप्यूटर पर सीधे डिक्टेशन दिया जा सकता है और यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत कम श्रमसाध्य और कम समय साध्य है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से हिंदी टाईपिंग न जानने वाले अधिकारी/कर्मचारी भी कंप्यूटर पर हिंदी में लिखने की क्षमता से युक्त बन रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी के पाठ से वाक सॉफ्टवेयर द्वारा किसी अन्य कार्य व्यस्त रहने पर भी हिंदी पत्रों का मजमून सुनकर समझा जा सकता है। आज के समय में वाक से पाठ सॉफ्टवेयर प्रयोग कर कार्यालय में अधिकारी व कर्मचारी बिना किसी पर आश्रित रहे कार्यालय आदेश/परिपत्र/पत्र/निविदा पत्र आदि तैयार करने में सक्षम हो पा रहे हैं। इसे हिंदी पत्रों को तैयार करने में बड़ी सहूलियत हो रही है और कार्यालयों मे ंराजभाषा हिंदी में पत्राचार भी बढ़ रहा है। गूगल वाइस टाइपिंग प्रणाली को सीखने के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाकर विस्तार से समझा जा सकता है— ीजजचरूध्ध्ूूूण्तंरइीेंींण्हवअण्पदध्चकध्हिववहसमअवपबमजलचपदहण्चकि
हिंदी शब्दकोश— अगर किसी भाषा में कुछ काम करना है, और हमारी पकड़ उस भाषा में ठीक नहीं है, तो उस स्थिति में शब्दाकोश में भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वही स्थिति होती है जब अंग्रेजी में काम करने में प्रशिक्षित व्यक्ति हिंदी में काम करना शुरू करता है, उसे शब्दों की सटीक अभिव्यक्तियां नहीं मिल पाती हैं, और इस काम को आसान करता है शब्दकोश। पुस्तकाकार शब्दकोश को बार—बार देखना असुविधाजनक होता है। ई—बुक के रूप में उपलब्ध शब्दकोश का अवलोकन काफी आसानी से किया जाता है और इसका डिजाइन प्रयोक्ता की आवश्यकतानुसार भी किया जा सकता है। ई—शब्दकोश के प्रयोग से हिंदी अनुवाद में तो आसानी हुई ही है, साथ ही अंग्रेजी में काम करने के अभ्यस्त लोगों को भी हिंदी में लिखने में आसानी होती है। ई शब्दकोश के स्मार्टफोन और कंप्यूटर में इस्तेमाल से लोगों में हिंदी में लिखने संबंधी जागरूकता बढ़ी है। इसी बढ़ी हुई जागरूकता का सीधा असर कार्यालयों में हिंदी कामकाज पर भी पड़ा है। प्रमुख हिंदी शब्दकोश तक पहुंचने के लिए निम्नलिखित लिंक पर जाया जा सकता है— ूूूण्ेींइकावेीण्बवउए ीजजचरूध्ध्म.उींेंींइकावेीण्तइ.ंंपण्पदध्ए ीजजचरूध्ध्ूूूण्बपिसजण्पपजइण्ंबण्पदध्ीकपबजध्ूमइपदजमतिंबमऋनेमतध्कपबजऋेमंतबीऋनेमतण्चीच
आज कार्यालयों में राजभाषा हिंदी में अगर कार्य बढ़ता जा रहा है, हिंदी कार्यान्वयन की स्थिति मजबूत हो रही है, हिंदी क्रियान्वयन की रफ्तार बढ़ रही है, तो उसमें तकनीकी का बहुत बड़ा योगदान है। तकनीकी की मदद से आज हिंदी में काम करना बहुत आसान हो गया है। आज केंद्रीय सरकार के लगभग सभी कार्यालयों में प्रस्तुत होने वाले मैनुअल कार्य, संदर्भ व प्रक्रिया साहित्य हिंदी में उपलब्ध हो गए हैं। बाकी कुछ पत्राचार हिंदी में हो रही है। सभी कार्यालयों की वेबसाइटें हिंदी में उपलब्ध हो गई है। लोगों में हिंदी में काम करने की ललक अवश्य बढ़ी है।
यद्यपि तकनीकी की मदद से काफी कुछ काम हिंदी में किया जाना संभव हो पाया है। तथापि तकनीकी की सभी संभावनाओं का प्रयोग हिंदी भाषा के लिए करने की स्थिति में हम अभी नही आ सके हैं। तमाम सॉफ्टवेयरों की लोकलाइजेशन अभी तक नही हुआ है। अभी भी बहुत से सॉफ्टवेयरों का लोकलाइजेशन करना बाकी है। तमाम सॉफ्टवेयर अंग्रेजी व कुछ अन्य भाषाओं के लिए तो बहुत अच्छा कार्य करते हैं, परंतु हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में उतनी दक्षता से कार्य नहीं कर पाते हैं। देश भर में प्रायः सभी कार्यालयों में अपने आंतरिक काम—काज के लिए इन्ट्रानेट व अन्य प्रचालन सॉफ्टवेयर बनवाए जाते हें, परंतु दुःखद यह है कि इनमें से अधिकांश अंग्रेजी को ही समर्पित करते है, जिससे न चाहते हुए भी तमाम लोगों को अंग्रेजी में ही काम करना पड़ता है। इससे कार्यालयों में कुछ काम मजबूरी के चलते भी अंग्रेजी में करना पड़ता है ।
जिस कंप्यूटर टेक्नोलॉजी ने आरंभ में राजभाषा के विकास और प्रचार व प्रसार में खलनायक की भूमिका निभाई थी, वही आज इसकी सबसे बड़ी पैरोकार बनकर उभरी है। भाषा की प्रगति तकनीकी रूप से न होती तो भारत सरकार की राजभाषा प्रचार—प्रसार अभियान इतनी गति से नही पकड़ सकता था। यद्यपि जितनी प्रगति आज हुई है, वह अभी भी अपर्याप्त है। मुकम्मल प्रगति के लिए भारत सरकार को अपने शोध संस्थानों में भाषा— प्रौद्योगिकी को भारतीय भाषायें के लिए विकसित करने हेतु अनुसंधान पर जोर देना चाहिए। देश में कंप्यूटर साक्षरता की दर और बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि इजाद की तकनीकियों का मुकम्मल प्रयोग किया जा सके। वर्तमान मोदी सरकार जिस ‘डिजीटल इंडिया ‘ की संकल्पना लेकर चल रही है, उसे भाषा प्रौद्योगिकी को भारतीय भाषाओं के लिए विकसित किए बिना कारगर ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है । भाषा प्रौद्योगिकी के विकसित स्वरूप पर ही राजभाषा कार्यान्वयन को प्रभावी ढंग से करने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। इंटरनेट पर सर्वाधिक प्रयोग होने वाली दुनिया की शीर्ष 10 भाषाओं में हिंदी का स्थान नही है, हालांकि हिंदी दुनिया की प्रथम दो भाषाओं में से एक है। दुनिया की शीर्ष 10 भाषाओं की इंटरनेट पर उपस्थिति निम्नलिखित ग्राफ से समझी जा सकती है।