सफलता के लिये दौड़ Harish Bisht द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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सफलता के लिये दौड़

सफलता के लिये दौड़

इस तेज रफ्तार जिंदगी में हर कोई दौड़ लगा रहा है, हर किसी की महत्वाकांक्षा है अच्छी जिंदगी की। इस दौड़ में कुछ लोग सफल हो जाते हैं पर कई ऐसे होते हैं जो इस दौड़ में पीछे रह जाते हैं, लेकिन एक तीसरे तरह के लोग भी होते हैं जो अपने को इस दौड़ से अलग कर लेते हैं और अपने लिये दौड़ की नई प्रतिस्पर्धा बनाते हैं। उसमें वो खुद अपनी मंजिल चुनते हैं और अकेले दौड़ते हैं, लेकिन ये दौड़ उनकी सफलता के लिए नहीं होती, बल्कि इसकी सफलता और असफलता का पैमान दूसरों से जुड़ा होता है। रवि कालरा एक ऐसे ही शख्स हैं। जो पिछले आठ सालों से गरीब, लाचार, बेसहारा और बीमार लोगों की मदद कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है या फिर उनके अपनों ने इन लोगों को अपने रहमो करम पर छोड़ दिया है। करीब तीन सौ से ज्यादा लोगों को पनाह दे रहे रवि अब तक करीब 5 हजार से ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। खास बात ये है कि कभी इंडियन एम्योचर ताइकांडो फेडरेशन के अध्यक्ष रह चुके रवि की जिंदगी काफी उतार चढ़ाव वाली रही।

बचपन में जहां रवि के पास स्कूल जाने के लिए बस का किराया तक नहीं होता था तो जवानी के दिनों में उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर दुबई, दक्षिण अफ्रीका और कई दूसरे जगहों में उनके अपने ऑफिस थे, लेकिन एक घटना से उनकी जिंदगी ऐसी बदली कि वो ये सब छोड़ लोगों की सेवा में जुट गये। रवि कालरा के माता पिता दोनों सरकारी नौकरी करते थे। इनके पिता दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर थे। पिता पर कई पारिवारिक जिम्मेदारियां थी इस वजह से इनका बचपन काफी मुश्किलों से बीता। इस वजह से कई बार उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते थे कि स्कूल जाने के लिए वो बस में सफर कर सकें। तब वो कई कई किलोमीटर दूर तक पैदल ही रास्ता तय करते थे। हालांकि वो पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था लेकिन बहुत कम उम्र में ही वो मार्शल आर्ट इंस्ट्रक्टर बन गये। जिसके बाद मार्शल आर्ट के लिए उनको स्कॉलरशिप भी मिली। जिसकी ट्रेनिंग लेने के लिए उनको दक्षिण कोरिया जाना पड़ा। यहां रवि ने इस खेल से जुड़ी कई अंतर्राष्ट्रीय डिग्रियां हासिल की। इसके बाद जब वो भारत लौटे तो मार्शल आर्ट सिखाने के लिए स्कूल खोला और कुछ वक्त बाद इंडियन एम्योचर ताइकांडो फेडरेशन का अध्यक्ष भी बने।

अपनी मेहनत के बल पर रवि ने करीब दो सौ ब्लैक बेल्ट खिलाड़ियों को तैयार किया। इसके अलावा इन्होने विभिन्न पुलिस बटालियन और आर्म्स फोर्स को भी मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देना शुरू किया। इस तरह रवि खेल के क्षेत्र में सफलता की सीढ़िया चढ़ते जा रहे थे तब इन्होने सोचा कि क्यों ना कुछ नया किया जाये। इसके बाद रवि ने एक्सपोर्ट और ट्रेडिंग के कारोबार में अपना हाथ अजमाया। जहां पर ये सफलता के आसमान की बुलंदी को छूने लगे। इस नये काम से इनके पास काफी पैसा आ गया था। हालात ऐसे बने कि इनको अपना कारोबार चलाने के लिए दुबई, दक्षिण अफ्रीका और कई दूसरे देशों में अपने ऑफिस खोलने पड़े। जिंदगी ऐशो आराम से गुजर रही थी लेकिन एक दिन अचानक वो हुआ जिसने रवि की जिंदगी की दिशा ही बदल दी।

एक दिन रवि ने देखा कि सड़क पर एक फटेहाल गरीब बच्चा और उसके बगल में बैठा कुत्ता एक ही रोटी को खा रहे थे। ये देख रवि की आंखों से आंसू आ गये। तब रवि ये सोचने पर मजबूर हुए कि उनके पास इतना पैसा है कि वो जो चाहे खरीद सकते हैं, खा सकता हैं, लेकिन दुनिया में इस बच्चे की तरह लाखों दूसरे लोग हैं जो इस तरह रहने और खाने को मजबूर हैं। इस नजारे ने रवि की आंखों की नींद छीन ली थी। जिसके बाद रवि की जिंदगी ने ऐसी करवट बदली की उन्होने अपना कारोबार छोड़ कर गरीब और बेसहारा लोगों की सेवा करने का फैसला लिया। इस फैसले से शादीशुदा रवि की जिंदगी में मानों जैसे भूचाल आ गया। घरवालों ने उनके फैसले का जितना विरोध नहीं किया, उससे कही अधिक विरोध उनकी पत्नी ने किया, लेकिन रवि ने अपना फैसला नहीं बदला। जिसके बाद हालात ऐसे बने कि रवि की पत्नी ने उनसे अपना नाता ही खत्म कर लिया। पत्नी के इस फैसले ने रवि को डिगने नहीं दिया बल्कि रवि के इरादे और मजबूत हो गये।

रवि ने सबसे पहले दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में किराये पर एक जगह ली और उसके कुछ साल बाद गुडगांव में एक जगह लेकर ऐसे लोगों को अपने साथ रखा, जो बेघर थे, जो अपना इलाज नहीं करा पा रहे है, ऐसे लोग जिनको उनके घर वालों ने छोड़ दिया है। रवि ऐसे लोगों की दिन रात सेवा में जुट गये। शुरूआत में रवि ने जहां पर इन लोगों को रखा वहां पर बुजुर्गों के रहने के लिए एक जगह तैयार की और नारी निकेतन खोला। इसके अलावा जो गरीब बच्चे थे या भीख मांगने का काम करते थे उनके लिए स्कूल की व्यवस्था की। इस तरह 1-2 लोगों की सेवा से शुरू हुआ उनका ये सफर बदस्तूर जारी रहा। रवि एक ओर लोगों की सेवा में जुटे थे तो दूसरी ओर उनके सामने कई तरह की परेशानियां सामने आ रही थीं। जहां पर रवि लोगों की सेवा का काम करते थे उसके आसपास रहने वाले लोगों को उनका काम रास नहीं आ रहा था और आये दिन पुलिस भी उनका उत्पीड़न करने लगी। पुलिस वाले रवि को रात रात भर थाने में बैठाते थे और कहते थे कि उसने किडनी रैकेट शुरू किया है, लेकिन रवि ने हिम्मत नहीं हारी और वो लोगों की सेवा में जुटे रहे।

गरीब और बेसहारा लोगों के प्रति सेवा भाव के कारण ही रवि हजारों लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। इसके अलावा करीब एक हजार लोग जो कभी इनके साथ थे और उनकी बीमारी या दूसरी वजह से मृत्यु हो गई उनका भी अंतिम संस्कार कर चुके हैं। आज रवि ने अपना एक आश्रम तैयार कर लिया है और उसे नाम दिया है गुरूकुल। जहां पर तीन सौ बुजुर्ग लोग रहते हैं इनमें से सौ से ज्यादा महिलाएं हैं। जो नारी निकेतन में रहती हैं। इन महिलाओं में कई रेप की शिकार हैं तो कुछ बीमार और बुजुर्ग महिलाएं हैं। इतना करने के बाद भी रवि ने सपने देखना बंद नहीं किया है वो अब भी सपने देखते हैं। उस दौड़ में प्रथम आने के लिए नहीं जिसके लिये ज्यादातर लोग दौड़ लगा रहे हैं, बल्कि उस दौड़ के लिए जिसके लिए उन्होने खुद अपने मापदंड बनाये हैं। रवि की कोशिश है एक ऐसी जगह बनाने की जहां पर गरीब, लाचार, बीमार और बेसहारा लोग मुफ्त में रह सकें। साथ ही वहां पर अस्पताल भी सुविधा भी हो।

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लेखक : हरीश बिष्ट