आत्मग्लानि Deepak Rousa द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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आत्मग्लानि

महीप का एम.बी.ए की कॉलेज में पहला दिन था। उसकी हालत अजीब थी, अनजान लोग नयी जगह कक्षा में पहुंचा तो अजीब शांति थी जो फिर दो साल के सत्र में कभी नहीं रही । सामने एक अनजान लड़का सुमित जिसकी सादगी और ग्रामीण परिवेश स्पष्ट दमकता था । महीप भी एक गावं से ही था । वही दोनों की मुलाकात हुई दोनों का स्वाभाव लगभग एक जैसा ही था थोड़े से कंजूस अन्तर्मुखी और अपने अपने गावों और माटी की बातें करने वाले । अगले दो सालो में सुमित ने न किसी कॉलेज पार्टी में न ही किसी कार्यक्रम में भाग लिया बस पढ़ना और पेपर देना ही उसका उदेश्य था ।

कॉलेज महीप के शहर में था और सुमित कॉलेज हॉस्टल में ही रहा करता था। दोनों की घरेलू बातें भी होती थी। सुमित के पिता पुलिस में थे और उनकी असमय मृत्यु ने सुमित को झकोर दिया था। उसके बड़े भाई पर घर को सँभालने की जिमेदारी आ गयी थी। मगर दुर्भाग्य ने अभी उनका साथ नहीं छोड़ा था लिवर की गंभीर बीमारी की वजह से उसके भाई को भी काल ने लील लिया। पढाई पूरी होते होते ये सदमा और घर को सँभालने की ज़िम्मेदारी अब सुमित की ही थी और एकमात्र आश्रित होने के कारण सुमित को ही पुलिस की नौकरी भी मिलनी थी। कॉलेज के पेपर देने के बाद दोनों दोस्तों का बिछड़ना हुआ । दिन बीतते गए अब बातें फ़ोन से होने लगी थी। बतौर आश्रित पुलिस विभाग ने सुमित को उपनिरीक्षक पुलिस बना दिया और प्रशिक्षण के लिए इलाहबाद भेज दिया। महीप ने दिल्ली में प्राइवेट नौकरी ज्वाइन की और घर से ही आना जाना बनाये रखा। समय बीतता रहा।

महीप की शादी का समय आया वो कई बार सुमित को भी शादी करने का सुझाव दे चूका था, पर सुमित हर बार यही कहता की पहले वो घर को ढंग से संभल ले । अपनी शादी पर महीप ने सुमित को कई बार कॉल किया पर प्रशिक्षण में सुमित को छुट्टी न मिल सकी। बातो का सिलसिला जारी रहा। हर बात चाहे वो छोटी हो या बड़ी जीवन से जुडी हो या नहीं सुमित महीप को जरूर बताता । अंततः महीप की शादी हो गयी, दोस्त का न आना उसे खला l जीवन यु ही चलता रहा ।

महीप के लिए वो बुरा दिन था दिन भर ऑफिस में बॉस की डॉट और बोझिल सफर में कई बार अनजान नम्बर से कॉल आई और कट गयी ये कई बार हुआ। महीप परेशान हो उठा, आखिर कौन है जिसे इतनी शरारत सूझी, उसकी पत्नी तो नहीं ? अगर कोई भी हुआ तो आज वो उसको जरूर डाटेंगा ये सोचकर महीप ने नंबर मिलाकर बातें की, तो पता चला ये सुमित की शरारत थी। महीप ने थोड़े क्रोध से सुमित को डांटते हुए कहा, क्या बचपना है यार ! मजाक छोडो और जिंदगी में आगे बढ़ो, में बहुत थका हूँ कह कर फिर महीप ने कॉल काट दी।

शायद सुमित को कुछ दिन की छुटिया मिल गयी थी और वो अपने घर आया था रात बीती अगले दिन महीप को गलती का अहसास हुआ । उसने सुमित को कई बार कॉल की मगर उसके सभी नंबर बंद थे। महीप को लगा की सुमित बेहद नाराज है नाराजगी जानकर वो अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया। वही ऑफिस, काम और बस काम। सुबह जल्दी उठना और रात के अँधेरे में घर पहुचना। कभी कभी ज्यादा देर हो जाती तो घर जाना मुश्किल सा लगता। लम्बा सफर उसे खा रहा था। और उससे भी ज्यादा दोस्त का रूठ जाना ।

दिन बीतते रहे, एक सप्ताह, बीस दिन मगर कॉल नही मिली। अब महीप परेशान हो उठा उसे खुद पर तो गुस्सा था ही मगर दोस्त के रूठ जाने का दर्द भी बहुत था। उसने दुसरे दोस्तों से भी पूछा मगर से पूछा मगर कोई सुमित के नजदीक नहीं था। ऑफिस से उसने महीने का फ़ोन बिल माँगा कर सभी नंबर जाँचे, मगर सुमित का कोई नंबर नहीं मिल सका । अब महीप सुबह शाम फ़ोन मिलता मगर फ़ोन बंद होता। महीप ने उसकी फेसबुक प्रोफाइल पर एक सन्देश भी लिखा जिसमे उसने लिखा की सुमित जहाँ भी हो मुझसे संपर्क करे और अपने सारे नंबर लिख दिए। मगर शायद वहा भी किसी को उसकी जानकारी नहीं थी। महीप को सुमित से इतने गुस्से की उम्मीद नहीं थी आखिर दोस्ती में तो ऐसा होता ही रहता है। मन में यही भय रहता था कि कुछ गलत न हो जाए उसके दोस्त के साथ ।

वक़्त कब रुकता है वो तो बस निरन्तर बढ़ता रहता है, धीरे धीरे दो महीने बीत गए। हर दिन की तरह महीप ने फिर रात को छत से फ़ोन किया। आज घंटी गयी, महीप खुश हो उठा, सोचने लगा गलती बाद में मानूंगा, पहले इसको तंग करने के लिए माफ़ी मांगने को कहूँगा, ये सोचते हुए महीप ने तपाक से कहा – कहां है तू ? पता भी है, मैं कितना परेशान था ! ऐसा भी क्या नाराज होना !, महीप बस अपने ही अपनी बातें बोले जा रहा था की उधर से एक करुण आवाज आई, आप कौन है ? महीप ने कहा कि उसकी सुमित से बात करा दी जाये। स्त्री ने महीप से उसका परिचय पूछा ही था की करुण आवाज रोने में बदल गयी। आखिर क्या हुआ आपको ? सुमित कहा है ? महीप ने भरे गले से बैठते हुए पूछा। स्त्री ने रोते हुए बताया की डेढ़ महीने पहले सुमित घर छुटियों में आया था । उसकी शादी की बातें चल रही थी उस दिन वो गाव के कच्चे रस्ते से मोटरसाईकल से गुजर रहा था और एक बड़े वाहन की किनारी लगी और उसी सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी। ये शब्द महीप के हौसले पस्त कर गए उसके रोने की आवाजे गुंजने लगी। छत पर रोने की आवाज सुनकर महीप की पत्नी दौड़ी घर के अन्य सदस्य भी महीप को चुप करते हुए रोने का कारण पूंछने लगे। महीप ने रोते रोते सारा दर्द और किस्सा बयां कर दिया। महीप आत्मग्लानि में जल उठा उसे यादो के साथ साथ उसे अपने वो अंतिम शब्द रह रह के घायल करते रहे "जिंदगी में आगे बढ़ो..... जिंदगी में आगे बढ़ो !! अब वो अपने किये पर किससे माफ़ी मांगे ?

सच है एक सच्चे मित्र को खोना अपनी सबसे अमूल्य निधि को खोने जैसा है। जीवन में कई बार हम बहुत खास लोगों से सिर्फ इसलिए दूर हो जाते है की हम स्वयं में ही उलझे और फसे रहते है। मगर हमें नहीं भूलना चाहिये की जीवन सिर्फ और सिर्फ भागने का दौड़ने का पैसे कमाने का ही नहीं वरन खुद से जुड़े हर इंसान से जुड़ने सुख दुःख बाटने का भी नाम है।