शिवाय का केदारनाथ Mohit bebni द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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शिवाय का केदारनाथ

1-शिवाय का केदारनाथ और २०१३ की बाढ़।

जब से धरती बनी है ईश्वर और मनुष्यों का एक अटूट संबंध और विशवास हमेशा से रहा है। जब भी कभी आप संकट में होते है तो ईश्वर को याद करते है जब भी आप खुश होते है ईश्वर को याद करते है। हमारे जीवन का आधार ही ईश्वर है। होली हो या दीवाली दाशहरा हो या नवरात्र हमारे जीवन की रौनक ही ईश्वर है।

पौराणिक कथाएँ हो या शास्त्र जिस भगवान का सबसे ज्यादा उल्लेख रहा है वह है शिवाय। शिवाय यानि शिव जो अमर है, जो देवों के देव है , जो बहुत भोले है, जो स्वयं ही जीवन है । किसी भी साधारण व्यक्ति के लिए शिव एक देव है जो सिर पर चाँद, जटा पर गंगा, गले मे नाग, हाथ में त्रिशूल और कंठ नीला है पर शिवाय को आप जितनी गहरायी से ढूंढेगे आपका शिव के प्रति परिभाषा भी बदलती जाती है और आप उतना ही आकर्षित होते है।

शिव की उत्पत्ति ॐ से हुई। उनका शुरुआती जीवन श्मशान में बीता। शिव ने वहीं जीवन-मृत्यु के खेल को समझा और वहीं रहते हुए उन्होंने सभी ज्ञान भी प्राप्त हुए। शायद आप जानते होंगे कि ॐ ही वो शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से ही सभी मंत्रो का उच्चारण हो जाता है।

अतः शिवाय ही वो पथ है जो स्वयं ही तपस्या के सामान है।

2-शिवाय के 12 ज्योतिर्लिंग...

शिवाय का स्वरुप 12 प्रकार के है जिन्हें ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यह भारत के विभिन्न स्थानों में मौजूद है।

1. केदारनाथ

हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।

2. सोमनाथ

यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।

3. श्री शैल मल्लिकार्जुन

मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थातिप है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।

4. महाकाल

उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।

5. ओंकारेश्वर ममलेश्वर

मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदाने देने हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।

6. नागेश्वर

गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।

7. बैजनाथ

बिहार के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।

8. भीमशंकर

महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।

9. त्र्यंम्बकेश्वर

नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।

10. घुमेश्वर

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गांव में स्थापित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग।

11. विश्वनाथ

बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।

12. रामेश्वरम्‌

त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।

यह 12 ज्योतिर्लिंग शिव के ही रूप है। यहाँ शिव का साक्षात वास रहता है। भक्तों के आस्था का प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है की यहाँ साल दर साल आने वाले लोगों की संख्या में भरी इजाफा हो रहा है। खास कर विदेशों से आने वाले लोगों का। वह भी इस बात को मानते है की शिव जैसी शक्ति वास्तव में वास करती है।शिवाय के जिस पवित्र ज्योतिर्लिंग का वर्णन कर रहा हूँ वह है केदारनाथ। यह चार धामो में से एक है जो उत्तराखंड में स्थित है।

3-उत्तराखंड(देवभूमि)

उत्तराखंड भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है और हो भी क्यों न यहाँ प्रत्येक नदी, पर्वत, पहाड़ पर देवताओं का वास जो है। कहा जाता है यहाँ ३३ करोड़ देवी-देवताओ का वास है। यहाँ का वातावरण बड़ा ही स्वछ, निर्मल और मनमोहक है। महर्षि वेदव्यास ने अपने पुराणों की रचना इसी पवित्र जगह पर की थी।

उत्तराखंड के लोगों के बात की जाये तो यहाँ के लोग बड़े ही मेहनती होते है। इनकी जीविका इनकी खेतो पर और कुदरत के दिए संसाधनों पर निर्भर करती है।इनका रहन-सहन भी बड़ा साधारण होता है।

उत्तराखंड के आर्थिक विकास की बात की जाये तो यहाँ लगभग हर गाँव में पानी की व्यस्था है , बिजली में भी कुछ हद तक सुधार हुआ है। प्रशाशन ने जोर पर्यटन और बेहतर सड़क मार्ग पर दिया है पर गावों के विकास में कोई कमी नहीं छोड़ी गयी है।

श्री केदारनाथ धाम जाने के लिए सबसे पहली चीज़ जो आप के मन में होनी चाहिए वह है श्रद्धा और भगवान केदार के प्रति विशवास। बहुत से लोगों के लिए केदारनाथ मात्र घूमने की जगह है परंतु ऐसा नहीं है। यह धाम प्रतीक है पौराणिक मान्यताओ का और यहाँ केवल उन्हें ही जाना चाहिए जो अपने जीवन के होने का अर्थ जानना चाहते है ,जो शिव को जानना चाहते है। कई बार तो लोग केदारनाथ मंदिर के पीछे की पहाड़ियों तक चले जाते है की काश उन्हें स्वर्ग का रास्ता मिल जाये पर उस दूरी पर भी वो कुछ नहीं ढूंढ पाते और वापस लौट आते है।

4- केदारनाथ कौन है और जाने का रास्ता

कहा जाता है कि केदारनाथ का नाम एक राजा के नाम पर पड़ा था जिनका नाम केदार था। उन्होंने सतयुग के समय राज किया था। राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन किया था। वह अपने समय के बड़े ही पराक्रमी और बुद्धिमान राजा थे।

केदारनाथ की यात्रा हरिद्वार से ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर(उत्तराखंड वाला), रुद्रप्रयाग, तिलवाड़ा, अगस्त्यमुनि कुण्ड, गुप्तकाशी, फाटा, रामपुर, सोनप्रयाग, गौरीकुण्ड, रामबाढ़ा से होते हुए श्रीकेदारनाथ तक पहुँचती है।

हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 247 किलोमीटर है और दूसरा मार्ग कोटद्वार से होकर जाता है जिसकी दुरी 260 है। हरिद्वार से गौरीकुण्ड 233 किलोमीटर की यात्रा मोटरमार्ग से की जाती है, जबकि गौरी कुण्ड से केदारनाथ तक 14 किलोमीटर की दूरी पैदल मार्ग या फिर घोड़े-खच्चर से की जा सकती है।

नवंबर से अप्रैल तक के छह महीनों के दौरान भगवान केदा‍रनाथ की पालकी गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती है। यहाँ के लोग भी केदारनाथ से आस-पास के ग्रामों में रहने के लिये चले जाते हैं।

5- केदारनाथ मंदिर कि कथा और इतिहास

केदारनाथ मंदिर का निर्माण कब और किसने किया इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं मिला। हाँ कुछ तीन चार कहानियां इस मंदिर के बारे में प्रचलित है। हमारे इतिहासकारों में यह मतभेद का विषय रहा है कि आखिर मंदिर का निर्माण कब हुआ है?

एक मान्यतानुसार केदारनाथ मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया है। सभी चार धामो की स्थापना करने के बाद शंकराचार्य ने मात्र 32 वर्ष की आयु मई अपना देह त्याग दिया था। केदारनाथ मंदिर के पास ही शंकराचार्य कि समाधि है।

एक कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया।

दूसरी कथा यह मानी जाती हैै कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। भगवान श्री कृष्ण न पांडवो को भ्रातृहत्या से मुक्त होने का उपाय बताया। उन्होंने पांडवो को भगवन शिव कि शरण में जाने को कहा।पांडव भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवन शिव उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।

भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।

6- केदारनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प

केदारनाथ मंदिर दिखने में साधारण-सा है लेकिन इसकी मजबूती और वास्तुशिल्प बड़े ही उत्तम दर्जे के है। ये बड़े से बड़े तुफानो को और बाढ़ को आसानी से झेल सकता है।

मंदिर का रंग भूरा है। मंदिर की दीवार और छत एक ही पत्थर से बानी है। केदारनाथ मंदिर 85 फ़ीट ऊँचा, 187 फ़ीट लंबा और और 80 फ़ीट चौड़ा है। मंदिर की दिवार 12 फ़ीट मोटी है और यह मंदिर लगभग 6 फ़ीट ऊँचे चबूतरे पर खड़ा है। देश विदेश के वैज्ञानिक हैरान है की आखिर इतने भारी पथरों को इतनी ऊँचाई पर कैसे लाया गया होगा? आखिर यह इतने सालों तक कैसे टिक रहा? और एक बात यह थी की इतना पुराना मंदिर होने के बाद भी मंदिर को 2013 के बाढ़ को मंदिर कैसे झेल गया, मंदिर के अंदर एक खरोंच तक नहीं आई।

केदारनाथ मंदिर समुद्र ताल से 3583 फ़ीट उँचाई पर है और यह गढवाल हिमालय रेंज के अंदर आता है। यह तीनों ओर से पहाड़ियों से ढका हुआ है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। मंदिर के ठीक बहार भगवान् शिव के प्रिय भक्त नंदी जी की मूर्ति है। मूर्ति को देख कर ऐसा लगता है कि मानो वह दरवाजे के बहार एक रक्षक के रूप में खड़े हो। यहाँ पांच ‍नदियों का संगम भी है, जिनका नाम मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ नदियों का अब अस्तित्व अब नहीं रहा है। मंदिर के अंदर प्रवेश करते वक़्त आपको भगवान गणेश की मूर्ति मिलेगी यह मूर्ति आम गणेश जी की मूर्ति से काफी अलग है। इसमे सिर्फ उनका एक दाँत, और शारिरिक भाग उभर हुआ है। यह मंदिर कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। मंदिर की छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। मंदिर में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।

अंत में आपको भगवान शिव के उस ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते है जिसके लिए आपने 28-30 किलोमीटर की पदयात्रा की होती है। शिव के इस रूप को देख कर ऐसा लगता है मानो इतनी लंबी यात्रा का सुखद अंत हुआ हो।

7- वैज्ञानिक शोध् और दावा

केदारनाथ मंदिर दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए शोध् का विषय रहा है। चाहे मंदिर के वास्तुशिल्प की बात हो या पौराणिक मान्यताओं की वैज्ञनिकों को एक बात हैरान करती थी की आखिर मंदिर का निर्माण बड़े ही उत्तम दर्जे का कैसे हुआ और वह भी उस समय जब इंसानो ने विज्ञान की सिर्फ परिभाषा ही समझी थी।

वैज्ञानिकों की माने केदारनाथ मंदिर 13वीं शताब्दी से ले कर 17वीं शताब्दी तक बर्फ में दबा रहा लेकिन आशचर्य की बात थी की यह मंदिर 400 साल तक सुरक्षित बचा रहा। मंदिर के निर्माण में इंटरलॉकिंग सिस्टम का इस्तेमाल हुआ है पर इतने भरी पत्थरो को आखिर इतनी ऊँचाई पर कैसे पहुँचाया इसका वैज्ञानिकों के पास कोई जवाब नहीं है।

8- गौरीकुंड - प्रथम चरण

अगर आप केदारनाथ में यात्रा के जाते है तो यह बात ध्यान रखें कि बिना गौरीकुंड में स्नान किये आपका केदारनाथ की यात्रा करना व्यर्थ है। गौरीकुंड को तप्तकुंड के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गर्म पानी का तालाब है। तालाब का पानी बैल के अकार जैसे बनाये गए एक मूर्ति से निकलता है। पाना गर्म क्यों आता है इसका किसी वैज्ञानिक तथ्य नहीं मिला है। हाँ यह कहा जाता है की पानी धरती के गर्भ से निकलता है इसी कारण यह गर्म रहता होगा। गौरीकुंड में देवी गौरी का मंदिर है। यहाँ पुरुष और महिलाओं के लिए अलग अलग तालाब बनाये गए है। इस तालाब का पानी मन्दाकिनी नदी का है।

आपके केदारनाथ की यात्रा का शुभ आरंभ तो गौरीकुंड से ही होता है। गौरीकुंड से केदारनाथ धाम की दुरी लगभग 30 किमी की दूरी पर है। केदारनाथ जाने के लिए आपके पास दो रास्ते है। पहला, पैदल मार्ग जो गौरीकुंड से केदारनाथ तक जाता है और दूसरा हेलिकॉप्टर द्वारा जो आपको गौरीकुंड से कुछ पहले फाटा नामक जगह से मिलता है। गौरीकुंड से ही आपको घोड़े-खच्चर और पालकी की सुविधा मिल जाती है। केदारनाथ धाम में आने वाले ज़्यादातर लोग गौरीकुंड में ही रुकते है। यात्रा का पहला पड़ाव गौरीकुंड से ही होने की वजह से लोग यहाँ होटेलों और गेस्ट हॉउस पर आराम करते है और सुबह सुबह ही एक निश्चित समय पर स्नान करके यात्रा आरम्भ करते है।

गौरीकुंड में होटलों की और लॉन्ज की काफ़ी संख्या है। पर चार धाम की यात्रा के दौरान आपको होटल में कमरा मिलना काफी मुश्किल हो जाता है। कई बार तो एक पलंग पर दो-दो लोगों को सोना पड़ता है जहाँ तक वाहन पार्किंग की बात है यह आपके लिए सफ़र के दौरान कुछ परेशानी खड़ी कर सकती है इसलिए बेहतर होगा आप वहाँ की लोकल सर्विस का ही इस्तेमाल करें। गौरीकुंड से ही भगवान शिव के जयकारों के साथ यात्रा का आरम्भ होता है। यहाँ आपको मंदाकनी नदी की तेज़ धाराऐं बहती दिखेंगी जो केदारनाथ से रामबाड़ा और रामबाड़ा से गौरीकुंड तक बहती दिखेंगी है। वैसे नदी के दर्शन तो आपको हेमकुंड साहिब से ही हो जायेंगे पर पास से देखने का अवसर और नहाने का अवसर तो आप गौरीकुंड पर ही प्राप्त कर पायेंगे।

9- रामबाड़ा-दूसरा चरण

केदारनाथ धाम की यात्रा करने के लिए आपके पास दो चीज़ो का होना बहुत ज़रूरी है वो है श्रद्धा और विश्वास भाव का समर्पण। यह यात्रा भी तभी सफल है जब आप स्वाच और निर्मल मन से यात्रा शुरू करे। गौरीकुंड से रामबाड़ा की दूरी लगभग 8 किमी है। चढ़ाई ज्यादा सीधी नहीं है पर अड़ी-तिरछी ज़रूर है। बीच बीच में आपको खाई भी ज़रूर मिलेगी।

रास्ते में आपको छोटे-बड़े झरने, कई सौ मीटर बर्फ के टुकड़े, बड़ी झील, बड़े बड़े पेड़ और जंगल । यह सब आपके सफ़र की थकान मिटने और नए जोश भरने के लिए काफी है। प्रकर्ती के गोद से बढ़ कर और कोई जगह नहीं है और केदारनाथ भी उसी की छत्रछाया में बसा हुआ है।

रामबाड़ा लगभग 1 किमी बड़ा है। यह किसी शहर से कम नहीं है। इतनी ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ के खाने पीने का समान बहुत ही ज्यादा महंगा हो जाता है। यहाँ भी होटल और गेस्ट हाउस काफी मात्रा में है।

जहाँ पर रामबाड़ा बसा था वहाँ कुछ साल पहले कभी मंदाकनी नदी बहा करती थी। बहुत साल पहले मंदाकनी नदी ने अपना स्थान बदल लिया था। इस सूखी जगह पर रामबाड़ा बसा हुआ था। दुर्भाग्यपूर्ण 2013 में नदी ने अपना वर्षों पुरना स्थान फिर से ग्रहण किया जिसने तक़रीबन 5000 लोगो को मौत कि नींद सुला दिया। अब रामबाड़ा केवल इतिहास मात्र बन कर रह गया। बाढ़ का सबसे ज्यादा असर यहीँ हुआ था।

10- रामबाड़ा से शिवाय का केदारनाथ

यह रास्ता बड़ा ही मनमोहक दृश्यों से भरा हुआ है। चारों तरफ नज़र दौड़ाकर देखने पर पता चलता है की यह इतना अद्भुत और आस्था का केंद्र क्यों है। यहाँ का मौसम भी पल-पल में बदलता रहता है। यहाँ आप बदलो को अपने सामने देख सकते है, बदलो की ठंडक को महसूस कर सकते है। मार्ग के दोनों ओर आपको गाय,भेड़,बकरियाँ चरती मिलेंगी। यहाँ एक बोर्ड भी लगा है जिसमे लिखा है कि "आप बाबा केदारनाथ के चरणों में है। अपने आप को गौरवनित समझें"। मार्ग के एक ओर गहरी खाई है। सुरक्षा के नाम पर एक लोहे की ग्रील लगी है। हाँ बीच रास्ते में कहीँ भी रोशनी का कोई प्रबंध नहीं है तो बेहतर होगा की आप अपने साथ टॉर्च रखें।

आखिर 8 किमी की यात्रा के बाद आपको केदारनाथ का मंदिर दिखेगा। मंदिर के दर्शन मात्र ही आपको असीम आनंद और शान्ति का एहसास होगा। मंदिर के बहार भगवान शिव के भक्त नंदी की मूर्ति है। यहाँ पर बड़ी लंबी कतार पर लगने के बाद आपको शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन होंगे। केदारनाथ मंदिर के पास में ही शकराचार्य जी की समाधी है। एक बात जो बहुत कम लोग जानते है वो यह है कि केदारनाथ के पास में ही एक भैरव झंप नाम की चट्टान या पहाड़ था। इसकी मान्यता यह थी की जो यहाँ से कूद कर अपनी जान दे देता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मान्यता की वजह से बहुत से लोगो ने यहाँ से कूद कर अपनी जान थी। ब्रिटिश राज के दौरान ब्रिटिश सरकार ने इस पर बैन लगा दिया। केदारनाथ के पास में ही पांडवो द्वारा एक मंदिर की स्थापना हुए थी पर वक़्त के मार की वजह से वह मंदिर नहीं रहा।

11- मंदिर के खुलने और बंद होने का समय

केदारनाथ मंदिर के कपाट मेष संक्रांति से पंद्रह दिन पूर्व खुलते हैं और अगहन संक्रांति के निकट बलराज की रात्रि चारों पहर की पूजा और भइया दूज के दिन, प्रातः चार बजे, श्री केदार को घृत कमल व वस्त्रादि की समाधि के साथ ही, कपाट बंद हो जाते हैं।

दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। उसके बाद फिर 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं।

12- केदारनाथ की आरती

जय केदार उदार शंकर,

मन भयंकर दुःख हरम |

गौरी गणपति स्कन्द नन्दी,

श्री केदार नमाम्यहम् |

शैल सुन्दर अति हिमालय,

शुभ मन्दिर सुन्दरम |

निकट मन्दाकिनी सरस्वती,

जय केदार नमाम्यहम |

उदक कुण्ड है अधम पावन,

रेतस कुण्ड मनोहरम |

हंस कुण्ड समीप सुन्दर,

जय केदार नमाम्यहम |

अन्नपूरणा सह अर्पणा,

काल भैरव शोभितम |

पंच पाण्डव द्रोपदी सह,

जय केदार नमाम्यहम |

शिव दिगम्बर भस्मधारी,

अर्द्ध चन्द्र विभूषितम |

शीश गंगा कण्ठ फिणिपति,

जय केदार नमाम्यहम |

कर त्रिशूल विशाल डमरू,

ज्ञान गान विशारदम |

मझहेश्वर तुंग ईश्वर,

रुद कल्प महेश्वरम |

पंच धन्य विशाल आलय,

जय केदार नमाम्यहम |

नाथ पावन हे विशालम |

पुण्यप्रद हर दर्शनम |

जय केदार उदार शंकर,

पाप ताप नमाम्यहम ||

12- २०१३ की बाढ़

एक ऐसी घटना जिसने उतररखंड के साथ साथ पूरे विश्व को हिला कर रख दिया वह है केदारनाथ की बाढ़। नासा ने भी बाढ़ के आने की भविष्यवाणी करने के बावजूद भी हमारा प्रशाशन काफी हद नाकाम रहा। नासा ने अपनी ली हुए सेटेलाइट तस्वीरों से कुछ माह पहले ही सचेत कर दिया था। अब जो भी कुछ हुआ उसको बदला तो नहीं जा सकता पर सबक जरूर लिया जा सकता है।

जिस दिन बाढ़ आई वह कुल मिलाकर हमारे बस के बाहर थी।

घोड़े-खच्चारो वालो की हड़ताल भी तीन दिन बाद खुली थी इसी कारण बाढ़ में इतना भीषण जान और माल का नुकसान हुआ। कई फ़ीट मलबे के नीचे न जाने कितने लोग मर गए। कइयों की लाश तक न मिल सकी। इसी बीच खबर आई की वाहाँ के कुछ नेपाली युवको ने लोगों से पैसे, सोने की चेन समेत उनका कई सामान लूट लिया। जिन लाशों से वह सोने की अंघूटी न निकाल पाये उनकी उंगलियाँ ही काट डाली। चील कौओं ने लाशो को नोच नोच कर खा डाला। जो लोग जान बचाने के लिए जंगलो की तरफ भागे वो या तो जंगली जानवर द्वारा मार दिए गए या फिर भूख प्यास से उन्होंने दम तोड़ दिया। हालात और भी बत्तर हो सकते थे अगर हमारे देश के वीर जवान केदारनाथ में राहत और बचाव कार्य न करते।

केदारनाथ और चार धाम के रास्ते में आने वाला उत्तराखंड का पूरा इलाका पर्यटन उद्योग के सहारे अपना जीवन यापन करता है। बाढ़ की खबर पूरे उत्तराखंड के लिए किसी आघात से कम नहीं था पर इस मुसीबत की घडी में उत्तराखण्डियो ने साहस और मानवता का परिचय दिया। हादसे के तुरंत बाद ही सभी गांव वालो ने यात्रियों की भरपूर मदद की। उन्होंने बाढ़ पीड़ितों को अपने घर आश्रय दिया। गाँव के लोगो के घर खुद कुछ खाने के लिए नहीं बच पाया पर फिर भी उन्होंने खुद के परिवार से ज्यादा केदारआपद के पीड़ितों की मदद की। उन्होंने मदद मांगने वाले हर उस व्यक्ति के लिए मदद के हाथ उठाये जिन्हे वह कभी जानते थे।

इस आपदा की वजह से उत्तराखंड राज्य का विकास 10 साल पीछे चला गया। कई गाँव का तो अता पता भी नहीं चला। बहुत से गांव तबाह हो गए थे। पानी के तेज़ बहाव ने अपने मार्ग में आने वाली हर चीज़ को तहस-नहस कर दिया।

17 जून 2013 को उत्तराखंड राज्य में हुयी अचानक मूसलधार वर्षा 340 मिलीमीटर दर्ज की गयी जो सामान्य बेंचमार्क 65.9 मिमी से 375 प्रतिशत ज्यादा थी। यहां के हर आदमी की उम्मीद होती है कि वह यात्रा वाले दो महीने की कमाई करके साल भर अपने परिवार को चलाने का खर्च जुटा ले लेकिन इस तबाही ने इन लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

13- बाढ़ की तबाही

केदारनाथ मंदिर के पास जो बाढ़ आई उसने 10-5 मिनट के लिए संभालने का मौका तो दिया पर रामबाड़ा में आई बाढ़ ने तो वह नमो निशान तक नहीं छोड़ा। जब बाढ़ का पानी धीरे धीरे केदारनाथ की तरफ बढ़ रहा था तो मंदिर समिति के लोगों ने स्पीकर पर सूचना दी की "बाढ़ आ रही है आप लोग मंदिर की तरफ आ जाओ" पर इतनी बड़ी तादाद में लोगों का मंदिर में घुसना लगभग नामुमकिन सा था। लोग एक दूसरे को धक्का मार रहे थे। इसी कारणवश मंदिर में कुछ ही लोग आ सके थे की अचानक जोरदार पानी का बाहव आया जो अपने साथ ढेर सारा मालवा,और बड़े बड़े पत्थर भी साथ लाया था। जो अपने साथ किसी मजबूत चीज़ को पकडे हुआ थे वो बच गये पर जो किसी का सहारा न ले पाये वो पानी के साथ ही बहते चले गए। रामबाड़ा का तो अस्तित्व ही ख़त्म हो गया। अब नदी अपने वर्षों पुराने जगह पर वापस आ गयी जो कभी उसने बहुत साल पहेले ही छोड़ दिया था। केदारनाथ में लगभग 5000 लोगो की मृत्यु हो गयी थी जिसकी संख्या में बाद तक इजाफा होता रहा।

बाढ़ के कारण पहाड़ी जिले रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ भी बुरी तरह प्रभावित हुए तथा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 600 से अधिक लोगों की जान चली गई। इस आपदा में 4,000 से ज्यादा लोग लापता भी हो गए।

इधर केंद्र सरकार हरकत में आई और रहत और बचाव कार्य का ज़िम्मा भारतीय सेना को दिया। सेना ने भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा मिशन शुरू किया। 10000-13000 लोगों को बचाया गया। इसी बीच सेना ने भी अपने कई जवान एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना ने गवां दिए। इसके बाद सेना ने हफ्ते भर में ही हालात पर काबू किया और एक महीने में ही रहत बचाव कार्य को ख़त्म किया। इस जोरदार पराक्रम और बहादुरी के लिए पूरे विश्व में सेना की प्रशंशा हुई और हो भी क्यों ना सेना ने कई अनगिनत जाने जो बचायी थी।

अब बाढ़ आने के बाद मीडिया और टीवी चैनल वालों की अपनी अपनी प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हुए। कोई कहता बाढ़ के लिए सरकार की लापरवाही है क्यों की सरकार को नासा कि चेतावनी का ज्ञात था, किसी ने कहा महादेव हमसे रुस्ट है, किसी ने कहा इसका कारण गांधी सरोवर है। खैर 1 या 2 महीने की न्यूज़ बनाने के बाद उत्तराखंड का क्या हुआ किसी को नहीं पता। माहौल तो ऐसा हो गया जैसे कुछ हुआ ही हो न।

बाढ़ के बाद जो बदलाव केदारनाथ में हुआ वो है दूरी। यात्रा लगभग 7-8 किमी. और बढ गयी। अब गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर का रास्ता 34-35 किमी. हो गया। दिन रात मेहनत कर के मन्दिर को साफ़ किया गया, वहाँ का मालवा हटाया गया, आस पास पथरों की दीवारेँ बनायीं गयी।

14- शिव का सन्देश भक्त भक्त द्वारा

इतनी भयंकर तबाही की वजह से शिव भक्तों ने महादेव से प्रार्थना की कि हे ईश्वर , हे देवोंके देव हमसे क्या भूल हो गयी क्या?अगले साल जब मंदिर के कपाट खोले गए तो पूजा-अर्चना और विधि-विधान के साथ ही ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुए। मंदिर को मंत्रो और हवन से शुद्ध किया गया था। तब वहाँ के एक भक्त पर शिव आए। उन्होंने कहा" तुमने यहाँ पर बहुत पाप किये थे"! बहुत से लोगो को जब ये बातें पता चली तो उन्हें उस पर विशवास नहीं किया। उनको यह मजाक लगा। जो भी हो लोगों के मन में बाढ़ की जख्म आज भी ताज़ा है। ऐसा लगता है मानो यह कल की ही बात रही हो।

लेकिन अब रुद्रप्रयाग के प्रशाशन और सरकार ने इस घटना से सबक लेते हुए केदारनाथ मार्ग पर तीर्थयात्रियों के खाने और ठहरने की मुफ्त व्यवस्था की गई तथा यात्रियों को बायोमेट्रिक्स पंजीकरण के बाद ही मंदिर की ओर आने का नियम भी बना। सभी के सफल प्रयासों से और मेहनत से केदारनाथ की यात्रा फिर से सुचारू रूप से चल पड़ी। मैं श्रंदांजलि अर्पित हूँ केदार आपदा में मारे गए मेरे देश के लोगो को, सेना के जवानों को और उत्तराखंड के मेरे भाइयों और बहनों को जिन्होंने मुसीबत के समय में भाईचारा और एकता का परिचय दिया। आप भी केदारनाथ धाम ज़रूर जाएं और ईश्वर द्वारा रचित उस आलौकिक संसार को ज़रूर देखें।

जय बद्रीनाथ जय केदारनाथ।