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mod ke aage

मोड़ से आगे

किसना का तबादला हो गया था। जाने कितनी बार वह बाबू और मां को बताने की सोचता रहा। पर... बाबू का सपाट चेहरा, मां की निरीह आंखें जो बड़ी आशा से उसकी ओर निहार रही होतीं। और वनिता की आंखें... मानो अभी ही रो पड़ेगी वह। कितनी ही बार वह इन ख्यालों को झटक देता। कितना सोचे वह आखिर और कब तक? उसकी अपनी जिंदगी है, वह भी तो जीना चाहता है।

मां अपनी जवान बेटी की ओर निहारती।

'बड़का तो किसी दीन का नहीं, अब किसना ही वनिता के लिए कुछ करेगा।'

किसना जब तक घर में रहता आक्रोश से भरा रहता-'बड़का भैया को क्यों कोई कुछ नहीं कहता?' मकान के ऊपर बड़का ने एक कमरा और रसोई बना ली है। वहां वह अपनी पत्नी के साथ मजे से रहता है। पिछले बरस ही तो बड़के की शादी हुई थी। कहता था-' मां मेरी शादी वहां कर दो बरिच्छा और तिलक में आए रुपए वनिता की शादी के लिए तुम्हारे पास जमा कर दूंगा। और रुपये इधर-उधर से उधार ले लूंगा, थोड़ा दफ्तर से उठा लूंगा। और वनिता की शादी कर देंगे।' मां और बाबू को इतना बड़ा आश्वासन देकर बड़का मानो घर का देवता बन गया। तब किसना को बाबू कितना कोसते थे। बड़का तो हमेशा उससे लड़ने को तैयार रहता था। बाबू कहते-' इतना बड़ा घींगड़ा घर में बैठा है। 14 कक्षा पास किया है, कहीं तो नौकरी के लिए हाथ-पांव मारना चाहिए।'

थोड़े ही दिनों में बड़का की असलियत सामने आने लगी। तिलक और बरिच्छा के रुपयों से ऊपर कमरा बनने लगा। फिर रसोई बनी और बड़का अपने शादी के उपहारों के साथ ऊपर शिफ्ट हो गया।

मां ने बाबू के बहुत उकसाने से पूछा-'बड़का ये रुपये तो तू वनिता की शादी के लिए रखने वाला था। बड़का बेशर्मी से बोला-'तो क्या मां नीचे के एक कमरे के घर मे पर्दा लगाकर नई-नवेली के साथ रहता।'

जैसे ही किसना की नौकरी लगी, बड़का ने राशन सब्जी के रुपए देने बंद कर दिए। किसना के पहले वेतन मिलने तक किराना के पहले वेतन मिलने तक किराना वाले का भरपूर उधार हो चुका था।

किसना एख बिल्डर के आॅफिस में कैशियर के काम पर लगा था। वह खुश था क्योंकि यहां का मालिक सहृदय और सुलझे विचारों का था। चाय भी आॅफिस में मिलती और जब ग्राहक फ्लैट की बुकिंग के लिए आते तब भरपूर नाश्ता भी मिल जाता। कितनी ही बार वनिता का बनाया लंच डिब्बे में ही रखा रह जाता और वापिस आ जाता।

वनिता को वह बहुत प्यार करता था। मां-बाबू के प्रति भी वह अपनी जिम्मेदारी मानता था। लेकिन अकेले ही वह परिवार के लिए खटने को तैयार नहीं था। बड़का बस मजे करे। शादी क्या बहुत महान कार्य था जिसके होते ही बड़का परिवार के प्रति सारी जिम्मेदारी भूल गया। वह देखता है आॅफिसेस में कार्यरत उसके जैसे ही वेतन पाने वाले कितने अच्छे कपड़े पहनते हैं। उनके जूते चमकते रहते हैं। और एख वह है कि दो शर्ट पैन्ट में काम चल रहा है। कितनी ही बार मोची द्वारा सिली सैन्डिलों को पॉलिश से चमकाकर पहनता है। लेकिन टूटी सैंडिल तो अलग ही दिख जाती है। जैसे ही वह नौकरी करने लगा मां-बाबू उसकी तरफ खिंच आए। पहले बड़का-बड़का करते थे। अब बड़का का नाम लेते ही डरते हैं। क्योंकि बड़का भड़क उठता है। बाबू तो खैर अधिकतर चुप ही रहते हैं। लेकिन मां का यह ठुलमुल रवैया उसे कतई अच्छा नहीं लगता।

वनिता उसके कपड़ों को धोती है, और फिर पास के प्रेस वाले से प्रेस करवाकर उसके पास तिपाई पर रख देती है। क्योंकि सुबह उसे जल्दी जाना होता है। वनिता शुरू से ही उसको बहुत प्यार करती रही है। उसका रात-दिन 'किसना भैया-किसना भैया' करते बीतता था, और अब भी वही हाल है। वह सचमुच उसके जीवन को खुशियों से भरा देखना चाहता है। लेकिन अकेली ही इतनी जिम्मेदारी उससे उठाई नहीं जाती।

पिछले दिनों घर के सामने आकर रिक्शा रूका, तो देखा भाभी और बड़का भैया एक बड़ा डिब्बा लेकर उतर रहे हैं। मां देखती रह गई उन्हें लगा वह बताएगा कि क्या लाया है। लेकिन जब वे सरपट सीढ़ियां चढ़ने लगे तो उससे रहा नहीं गया-'अरे बड़का हमें भी तो दिखा क्या लाया है।' वह पूछती ही रह गई और वे दोनों सीढ़ियां चढ़ गए। नीचे खाना खाते चारों एक-दूसरे का मुंह देखते रह गए। खाना खतम ही हुआ था कि ऊपर से घर्र-घर्र मशीन चलने की आवाज सुनाई दी। वनिता ऊपर भागी तो देखा तिपाई पर मिक्सी रखी थी। भाभी उसमें कुछ पीस रही थी। वनिता को देखते ही दोनों के चेहरे से हंसी गायब हो गई। बड़का उठा और पलंग पर जाकर लेट गया।

'हाय, बड़का भैया मिक्सी लाए क्या?' वह खुश होकर मिक्सी को छूने लगी। बोली-'बाबू को पिसे मसाले का खाना बहुत पसंद है। मैं भी अब इसमें मसाला पीस लिया करूंगी। सिल-बट्टे पर पीसते-पीसते थक जाती हूं।'

भाभी ने मिक्सी बंद कर दी। जार उठाकर गैस के पास रख दिया। और मिक्सी उसी डिब्बे में पैक करते हुए बोली-'कोई नहीं पीसेगा। खराब हो जाएगी। तुम क्या मैं भी नहीं पीसूंगी कुछ।'

वनिता का चेहरा उतर गया। सोचा-तो क्या डिब्बे में बंद करके अलमारी के ऊपर रखने के लिए लाई है भाभी।

वह भारी कदमों से नीचे उतर गई और जूठे बर्तन समेटन्ने लगी। वह तो अभी भी धुएं से भरे चूल्हे पर जूझती रहती थी। जब बड़का अपनी गैस उठाकर ऊपर ले गया था तो वह बहुत रोई थी। बड़का ने एक शब्द नहीं बोला था जैसा उशकी पत्नी ने मिक्सी के लिए कहा तब भी वह पलंग पर बैठा अपने मोबाइल से खेलता रहा था। बाबू बता रहे थे अभी पिछले दिनों ही उसने चौबीस सौ का मोबाइल खरीदा है। किसना तो अपने लिए कुछ नहीं कर पाता।

यदि शादी के बाद किसना भैया ऐसा निकला तो? बाबू और मां को कौन देखेगा।

तभी बर्तन घिसती वनिता के सिर पर किसना ने हाथ रखा-'तेरी शादी में मिक्सी दूंगा... बस।'

वह हंसने लगी।

जहां किसना काम करता था उससे 250 किलोमीटर दूर बिल्डर की एक साइट और थी जहां बिल्डिंग बनाने का काम चल रहा था। वहां भी एक एकाउन्टेन्ट की जरूरत थी। किसना ईमानदार था। लगन से काम करता था। बिल्डर चौहान ने किसना से कहा-'कृष्ण कुमार तुम क्या उस साइट पर जाओगे। वहां रहना-खाना फ्री होगा और ऊपर से यहां से एक हजार ज्यादा वेतन भी पाओगे। किसना सहर्ष तैयार हो गया। बिल्डर जानता था कि किसी अन्य एकाउन्टेन्ट, को रखने से अच्छा है एक हजार किसना का वेतन बढ़ाना। क्योंकि तो भी नए एकाउन्टेन्ट के वेतन से आधा ही किसना को देना पड़ेगा।

किसना सहर्ष तैयार हो गया। उसने मुक्ति की सांस ली। परिवार को जिम्मेदारियों का बोझ ढोते ढोते वह भी थक गया था। बाबू अपना खोए (मावा) का धंधा फिर शुरू कर देंगे। थोड़े रुपए वह हर महीने दे ही दिया करेगा। ऊपर से दूसरे-चौथे शनिवार-रविवार छुट्टी मिलेगी तो यहां आ जाया करेगा। न यहां रहेगा, न सबके दुखड़े सुनेगा। मां से कह देगा कि बड़का एक हजार दे मैं एक हजार दूंगा। एक बार ही तो देना पड़ेगा। बाबू दो हजार में फिर खोए का धंधा कर सकेंगे। दूर गांव के तबेले से जहां खोवा भी बनता है लाना है और जरूरत के हिसाब से इस जनपद की मिठाई की दुकानों में देना है। आखिर यही काम तो उन्होंने शुरू से किया है। दाल-रोटी तो तीन जनों की चल ही जाएगी। खोए के धंधे में।

सारा हिसाब मन ही मन लगाकर वह मुस्कुरा पड़ा। और सोचा वह आज ही बाबू को तबादले वाली बात बता देगा।

रही वनिता की शादी की बात? तो उससे जो बन पड़ेगा वह करेगा। आखिर वनिता उसके अकेली की जिम्मेदारी तो नहीं है।

बाबू रास्ते में बिजली के खंभे के पास पुलिया पर बैठे मिल गए।

'अरे किसना, कहां डोल रहा था। मां खाने को बैठी है। मैं तुझे ही देखते यहां तक आया।' ठहर कर फिर बोले-'बड़का कह रहा था... तुम सिगरेट पीने लगे हो। यार-दोस्तों के साथ खूब खर्चने लगे हो... जानते हो न...?' वह कहना चाहता था-

'हां, पीने लगा हूं, कमाता नहीं हूं क्या? और बड़का का हर झूठ उन्हें सच क्यों लगता है?' पर वह चुप रहा।

किसना कहीं दूर देखने लगा जहां से मेढकों की टर्र-टर्र आवाज आ रही थी...। बाबू भी अचानक कहते-कहते रुक गए।

उसे लगा अब बाबू कहेंगे, तेरी एक जवान बहन बैठी है। ...लेकिन वह अब इन झांसों में नहीं आने वाला। अब यह तुम्हारा और मां का रोने-धोने का नाटक नहीं चलेगा। बड़का के सामने तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं। कुछ कहते नहीं उससे। अपना फर्ज कौन-सा तुमसे ही निभाया गया, फिर वही क्यों पिसे?

किसना बोला-'बाबू मेरा तबादला हो गया है नई साइट पर... कल से ही वहां पर काम शुरू करना है।'

वे चौक पड़े। मानो उन्हें यह अहसास काफी पहले हो गया था।

उन्होंने बीड़ी का आखिरी कश लेना चाहा पर वह बुझ चुकी थी। उन्होंने बहुत लाचारगी से किसना की ओर देखा और उठ गए।

छ: महीने पहले और कितना? उनकी दोनों किड़नियां खराब हो गई थीं। वे अकेले ही भुगत रहे थे। उन्होंने न पत्नी को और न बच्चों को यह बात बताई थी। वे लड़खड़ाते कदमों से घर की तरफ जाते दिखे।

किसना घर के सामने वाली गली से दूर निकल गया और वहां जाकर जेब से सिगरेट की डिब्बी निकालकर उसमें से एक सिगरेट निकाली। उसे डिब्बी पर ठोका, मुंह में सिगरेट दबाकर जलाई और बेफिक्री से कश भरते हुए सामने पड़े पत्थर को ठोकर मारी।

अब बाबू घर पहुंच गए होंगे। वनिता घुटनों में मुंह छुपाए रो रही होगी और बाबू नीचे बैठे शून्य में ताक रहे होंगे। इन सारे दृश्यों को उसने झटका।

उस गली के मोड़ से भी आगे निकल गया। लौटा और फिर उसी पत्थर पर जाकर फिर ठोकर मारी। उसे हैरानी हुई मुक्ति का रास्ता इतना सरल था।

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