दिल के आंसू Dr Pradeep Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दिल के आंसू

दिल के आंसू

महामहिम राष्ट्र्पति महोदय से पुरस्कार लेते समय गोपाल बाबू और उनकी पत्नी भाव विभोर हो गये। उनकी नम आॅखों से चारों ओर की तस्वीर धूंधली दिखाई देने लगी , और मन-मस्तिष्क में अमित का चेहरा सजीव हो उठा। उसका मासूम सा चेहरा और उसके अत्यन्त विनम्र स्वभाव की याद दोनों को आने लगी। आज शौर्य पराक्रम का सबसे बड़ा पुरस्कार ’’परमवीर चक्र‘‘ उनके बेटे को मरणोपरान्त दिया जा रहा था। रेडियों व टेलीविजन पर उसके यशगान प्रसारित किये जा रहे थे । उस वीर ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए, अपनी जान तक न्यैाछावर कर दी थी । इस तरह देश को एक बडे संकट से उबार लिया था। वीर गति को प्राप्त उस पराक्रमी यौद्धा के माता-पिता को , धन्य-धन्य कहा जा रहा था , जिन्होंने इस तरह के अनमोल हीरे को जन्म दिया। इस देश को दुश्मन के चंगुल में जाने से बचाने के लिये अपनी जान कीे बिना किसी हिचक के एक पल में न्यौछावर कर दिया।

महामहिम राष्ट्र्पति से पुरस्कार लेते समय, अन्तरात्मा से निकली आवज उन्हें धिक्कारने लगी। नहीं! नहीं! तुम इस पुरस्कार को छूने तक के योग्य भी नहीं हो, अमित तुम्हारा बेटा कहां था...... तुम्हारा बेटा तो एक नाबालिक मासुम लड़की से बलात्कार और उसके पश्चात उसकी हत्या के जुर्म में आजीवन करावास की सजा भुगत रहा है। अमित तो न जाने किसका बेटा ... था ? न जाने किसका खून .....? ..............?

नहीं! नहीं! अमित ही हमारा एकमात्र बेटा था, मेरा अपना बेटा। हां हमने उसे जन्म नहीं दिया था मगर ...... ’’ । ’’क्या कहा ? तुम्हारा बेटा ... तुमने तो उसे जब जन्म भी नहीं दिया तो फिर वह तुम्हारा बेटा कैसे हुआ ? ’’

वह स्वयं नहीं जानता था कि वह किसका बेटा था । उसने तो स्वंय के हाथों से अपने जीवन को सजाने-संवारने की एक नाकाम कोशिश की थी । मगर हाय रे विधाता ! एक पल का सुख और एक टुकड़ा प्यार भी उसके नसीब में कभी नहीं आया। मरते दम तक वह प्यार के लिए तरसता रहा। सात-सात परमाणु बम वर्षक विमान को मार गिराने वाला वह शूरवीर स्वंय के हाथों ही वीर गति को प्राप्त हो गया। उसके कीर्तित्व से आज सारा देश चकित और स्तब्ध है। गोपाल बाबू पुरस्कार लेते समय अर्द्धमूक्र्षित होकर महामहिम राष्ट्र्पति के चरणों में गिर पड़े। यह देखकर महामहिम द्रवित हो उठे। उन्होंने अनेकों बार पुरस्कार, शोकाकुल माता-पिताओं को वितरित किये थे। मगर कोई भी व्यक्ति पुत्र शोक में इस तरह विह्वल होकर इस स्वर्णिम क्षण में बेहोश नहीं हुआ था। एक पिता की भावनाओं की कद्र करते हुए महामहिम ने उन्हें अपने हाथों से सम्भालने व उठाने की भरसक कोशिश की, मगर भारी भरकम गोपाल बाबू महामहिम के हाथांे नहीं संभल सके । तब तक वहाॅं तैनात सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें संभाल लिया। अमित की मां दांतों से अपने होंठ कतरने लगी। उनकी आंखों से निरन्तर आंसू बहते रहे ।

सत्ताईस वर्ष पूर्व की घटना एक बार फिर मन-मष्तिक में सजीव होने लगी। उन दिनांे वह एक बच्चे के लिए तरस रही थी। पड़ोसिन अपने - अपने बच्चे को उनसे छिपाकर रखने लगी थी। उसके अन्दर इतना प्यार और वात्सल्य प्रेम था , कि जब भी वह किसी के बच्चे को देखती तो उसका मातृत्व हिलोरे भरने लगता था। वह किसी भी बच्चों को सीने से लगाकर प्यार करने लगती थी।

वह बच्चों को इतना चुमती चिपटाती थी कि बच्चे किकिया उठते। उसके इस मानसिकता व व्यवहार के कारण आसपास के सभी पड़ोसी उसका साया तक अपने बच्चों पर पड़ने नहीं देना चाहते थे । डाक्टरों ने स्पष्ट शब्दों में यह बता दिया था, कि उसके पति में बाप बनने की संभावना बिलकुल लगभग नहीं के बराबर है। गोपाल बाबू अपनी पत्नी रमा को बच्चों के प्रति तीव्र लालसा व उसकी मातृत्व की भावना को देखकर बहुत परेशान रहते थे । एकदिन उन दोनांे ने किसी अनाथालय से बच्चे को गोद लेने का निर्णय लिया। बात ढ़की छुपी रहे, इसके लिए गोपाल बाबू पति-पत्नी किसी अज्ञात शहर को चले गये। वहां लगभग छः महीने रहकर वहाॅं के एक अनाथालय से एक नवजात शिशु को गोद लेकर अपने शहर लौट आए। इस बच्चे के जन्म होने की खुशी के नाम पर शानदार जश्न मनाया गया । इस मौके पर उसने सभी मित्र व रिश्तेदारो को आमंत्रित किया और एक यादगार पार्टी दी। उस नवजात बच्चे का नाम उन लोगों ने अमित रखा । अमित को प्यार से वे दोनों मीतू कहकर पुकारते थे । मीतू के घर में आने के पश्चात रमा अत्यन्त प्रसन्न रहने लगी। उसका स्वास्थ्य भी पहले से बेहतर हो गया जो अपने बच्चे के अभाव में पहले काफी हद तक बिगड़ गया था । मीतू को वह अपनी आॅखों के सामने से कभी भी ओझल नहीं होने देती थी। उसकी एक-एक मुस्कराहट पर वह खिल उठती थी। मीतू के लालन-पालन में रमा अपने आपको भी भूल गयी। खुशी के माहौल में तीन साल कैसे बीत गए, किसी को पता ही नहीं चला। मीतू का चेहरा और रंग भी गोपाल बाबू से मिलता- जुलता था। अतः किसी को एक जरा सा भी शक नहीं हुआ कि मीतू गोद लिया गया बालक है। मीतू का चैथा जन्म दिन पहले की तरह से ही धूमधाम से मनाया गया , और यही जन्मदिन मीतू के लिए लाड़-प्यार का अन्तिम जन्मदिन साबित हुआ।

जन्मदिन में आए मेहमानों को विदा कर जैसे ही रमा वापस धर के अन्दर पाॅव रखी ही थी कि उसे मुर्झा आ गया और वह घम्म से बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। यह देखकर गोपाल बाबू घबरा गए। ईलाज के लिए तुरंत एक अच्छे डाक्टर को बुलाया गया। सघन जाॅंच के बाद डाक्टर ने बताया कि इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है। आपकी पत्नी एक बार फिर माॅं बनने वाली है। गोपाल बाबू को इस बात पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं हुआ, मगर उस समय वे चुप रह गए।

बस यहीं से मीतू के बुरे दिन शुरू हो गए । मीतू को रमा से प्यार - दुलार तो बन्द हुआ ही, साथ ही साथ घर के कामों में हाथ बटाने के लिए उसे कहा जाने लगा। चार वर्ष के अबोध बालक पर दुखों का पहाड़ सा टूट पड़ा। मीतू की दुर्दशा पर गोपाल बाबू ,रमा को टोकते थे, मगर रमा इस कान से सुनकर उस कान से उनकी बातें निकालती रही । रमा अब बिल्कुल स्वार्थी सी हो गयी थी। बालक मीतू को कुछ भी समझ में नहीं आया कि अचानक यह सब क्या हो गया। गोपाल बाबू आॅफिस से लौटने पर थोड़ा सा वक्त मीतू के लिए निकालते रहते थे। केवल वे हीं यदा-कदा प्यार-दुलार करते रहे , लेकिन धीरे-धीरे गोपाल बाबू भी मीतू से कटते चले गए।

वसन्त पंचमी से आठ दिन पूर्व रमा ने एक स्वस्थ और सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। रमा ने उसका नाम सोनू रखा । सोनू की सेवा में अब मीतू के दिन बीतने लगे। बर्तन साफ करने से लेकर कपड़ा धोने तक का काम भी मीतू को करना पड़ता था। मीतू की पढ़ाई लिखायी भी अब नाम मात्र की ही रह गयी थी। लेकिन मीतू भी न जाने किस मिट्टी का बना था,कि इतने सारे घरेलू काम काज के बाद भी किसी न किसी तरह से समय निकालकर पढ़ाई पूरी कर लेता था। गोपाल बाबू मीतू की इस घृष्टता से भी चिढने लगे थे। एक दिन गोपाल बाबू ने मीतू के हाथ में सोनू की नई किताब देखकर उसकी पिटाई कर दी । कई दिन बाद उसे पता चला कि वह किताब सोनू की नहीं थी, बल्कि मीतू अपने एक दोस्त से वैसी ही एक किताब मांग कर पढने के लिए लाया था। मीतू बुरी तरह से पिटने के बाद भी अपने पिता से एक भी शब्द नहीं बोला । मीतू के दिन इसी तरह कष्ट से बीत रहे थे। सोनू के द्वारा एक रूपया मांगने पर रमा उसे दो रूपये पकडाती रही , फलतः सोनू के कदम गलत दिशाओं में बढ़ने लगे।

पढ़ाई से वह धीरे-धीरे विमुख होता चला गया। अडोस-पडोस से सोनू की शिकायतें आने लगी। रमा पुत्र मोह के कारण मौन धारण किए रहती थी। अपने प्यारे पुत्र के मोह ने उसे लगभग अंधा सा बना दिया था। एक-एक कक्षा उत्र्तीण करने में सोनू को तीन -तीन साल तक लगने लगे । पन्द्रह साल की आयु में सोनू ने आगे की पढ़ाई जारी रखने से साफ इंकार कर दिया। उसकी मांगे इतनी बढ़ चुकी थी कि सामान्य आमदनी करने वाले उसके पिता को उसकी हर इच्छा की पूर्ति करना संभव न रहा । फलतः सोनू के कदम धीरे-धीरे अपराध जगत की ओर बढ़ते चले गए।

मीतू का माध्यमिक कक्षा का परीक्षाफल घोषित किया गया। वह पूरे प्रदेश में सर्व प्रथम आया। पूरे प्रदेश में सर्वाधिक अंक लाने से उस विद्यालय की भी व्यापक प्रंशसा हुई। विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने गोपाल बाबू की प्रशंसा करते हुए कहा ’’अमित आपका बहुत ही विलक्षण और प्रतिभा सम्पन्न पुत्र है। यह एक ऐसा अनमोल हीरा है जिस पर देश को तथा आपको भी एक दिन बहुत ही गर्व होगा।

मनुष्य अपनी सड़ी गली चीजों को भी दिलोजान से चाहता है, और वह पराये अनमोल हीरे को भी धूल से ज्यादा महत्व नहीं देता। यह प्रत्येक साधारण मानव का स्वभाव है।

काश! सोनू इतना शानदार परीक्षाफल लाया होता, तो वे खुशी के मारे पागल हो जाते। सारी सम्पत्ति, दोनों हाथों से लूटा डालते। हाय रे भाग्य! अपना पुत्र भी हुआ तो नालायक, आवारा। इस तरह से सोचते और अपने आपको को कोसते हुए गोपाल बाबू घर लौटे।

अमित को राजधानी के अनेक अच्छे महाविद्यालयों से नामांकन के प्रस्ताव मिले। इसके लिए उसने अपने पिता से राय माॅगी । गोपाल बाबू ने मीतू को शहर के एक अच्छे महाविद्यालय में नामांकन की सहमति दे दी।

इस शानदार परीक्षाफल से मीतू की जिन्दगी मे व्याप्त ,घोर कष्टों में काफी कमी आयी। अनेक धनाद्य परिवारों से बच्चों को पढाने के लिए ट्यूशन के आॅफर उसे मिलने लगे, जिसमें से उसने कुछ ट्यूशन स्वीकर कर लिये। ट्यूशन पढा़ने से जो कुछ आय होती वह अपने पिता को सौंप देता था । उसका ख्याल था कि इस तरह वह अपने माता-पिता का दिल जीत कर उनके स्नेह को फिर से हासिल कर लेगा। लेकिन गोपाल बाबू और रमा ने भी मीतू को प्यार का एक कतरा तक नहीं देने की कसम ही खा ली थी। इधर सोनू की जुए और शराब की लत निरन्तर बढती गयी। अमित उसे सही रास्ते पर लाने का हर संभव प्रयास करता रहा, मगर उसके सारे प्रयास विफल साबित हुए। एक बार वह शराब के नशे में चलते हुए एक राहगीर को टकराने के एवज में उसपर जूता फेंक कर मारा। उस राहगीर ने तो उसेे कुछ नहीं कहा, मगर आप-पास से गुजर रहे लोगों ने उसकी इस हिमाकत के लिए जमकर पिटायी कर दी। फिर उसी भद्र पुरूष ने बीच-बचाव करते हुए बोला, कि यदि तुम अमित के छोटे भाई न होते, तो मैं अपने हाथों से तुम्हें सबक सिखाता । अब सीधी तरह से अपने घर जाओ। अपने माता-पिता से लड़-भीड़ जाने वाला सोनू अमित के सामने आंख भी उठा नहीं पाता था। इस कारण भी रमा देवी को मीतू से कोफ््त होती थी। मीतू अपने माता-पिता से हर मौके पर प्यार ,स्नेह और उनके आर्शीवाद पाने का हर सम्भव प्रयास करता रहा और अपने बेहतरीन आचरण से उन्हें प्रसन्न करने का नाकामयाब कोशिश करता रहा। उसकी यह आकांक्षा वास्तव में, पत्थर पर फूल खिलाने जैसा था।

वह क्लास में सबसे पीछे बैठने वाला और अकेला दिखने वाला छात्र था। लगभग सभी सहपाठी उसे घमण्डी समझते थे। ईश्वरीय कीर्ति का एक बेहतरीन नमूना और सादगी की प्रतिमूर्ति नीलम उसी कक्षा की छात्रा थी। काॅलेज के अनेक लड़के सदैव नीलम के आगे पीछे घूमते रहते थे। राजेश नामक एक छात्र तो हर समय उसका साया बना फिरता रहता था। मृृदुल व सरल स्वभाव की नीलम सभी के साथ हिल-मिलकर बातें करती थी। मगर वह हमेशा राजेश से बचने का प्रयास करती रहती थी। राजेश नीलम से अकेले में मिलकर कई बार प्रेम - याचना कर चुका था। मगर नीलम हर बार विन्रम शब्दों में उससे इंकार करती रही। नीलम को लगता था कि अब राजेश उसके पीछे नहीं पडेगा। लेकिन उसका दुःस्साहस बढता ही गया । एक बार उसके लिखे प्रेम पत्र मिलने पर नीलम ने उस प्रेम पत्र को व्यंग भरे अंदाज में सभी साथियों की उपस्थिति में जोर-जोर से पढ़कर सुनायी। इस तरह उसका जबरदस्त ढंग से मजाक उड़ायी, ताकि फिर से वह इस तरह का दुस्साहस न कर सके। इसपर राजेश बिना कोई प्रतिक्रिया दिए चुपचाप वहाॅं से चला गया। इसके बावजूद भी राजेश का नीलम के प्रति प्यार में कोई कमी नहीं आया। वह अनवरत् नीलम से प्यार और सहानुभूति पाने के प्रयास में लगा रहा।

एक दिन क्लास में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर ने उस क्लास के सभी छात्रों के नोट््स देखे । सभी नोट््स देखने के पश्चात उन्होंने बताया कि सभी के नोटस बहुत अच्छे हंै, मगर अमित के नोट््स अद्धितीय है। इसके लेख नवीन और शत प्रतिशत तथ्यात्मक हैं। मैं निःसंकोच स्वीकार करता हॅंू कि मैं भी अब एैसे नोट््स तैयार नहीं कर सकता। सभी छात्र अमित की ओर देखने लगे। सभी को आश्चर्य हुआ कि कटे-कटे से रहने वाला यह छात्र कितना मेधावी है। कुछ छात्र माध्यमिक परीक्षाफल में टाॅपर होने के कारण उसे पहचानते थे। उन सबके साथ न घुलने मिलने के कारण ज्यादातर छात्र उसे घमण्डी समझते थे ।

नीलम ज्यादातर समय उसे पुस्तकालय में पढते हुए देखी थी । उसे आज महसूस हो रहा था कि यह युवक अपना अधिकांश समय केवल पढ़ाई में ही बिताता है । सभी छात्रों को अमित के नोट््स को देखने की तीव्र इच्छा थी। कहीं वह मना न कर दे यह सोचकर किसी ने उससे नोट््स नहीं मांगे । एक दिन नीलम पुस्तकालय में अमित के सामने जाकर बैठ गयी और बडे ही अनुनय भरे शब्दों में उसके नोट््स को देखने की इच्छा प्रकट की । अमित ने बिना किसी आना कानी के वह नोट््स उसे थमा दिया । इस तरह नीलम ने अमित से कई नोट्स पढने के लिए ली । नोट््स के आदान - प्रदान में अनेक बार वह मीतू के करीब आई। दोनों के बीच में अध्ययन-अध्यापन के अलावा अन्य बातों का सिलसिला भी शुरू हुआ। इस तरह से नीलम ने अमित के भीतर पूरी तरह से झांक गयी। वह अच्छी तरह से जान गई कि अमित को इस दुनिया से प्यार का एक टुकडा भी नसीब नहीं है। वह अमित से प्यार कर उसके जिन्दगी में प्यार ही प्यार भर देने का सपने संजोने लगी। नीलम ने अपने प्यार का इजहार अमित से कई बार सही मौकों पर की, मगर अमित इस पहलू को समझते हुए भी इससे अनजान बना रहा। अमित हमेशा की तरह अपनी पढ़ाई में गम्भीरता से जुटा रहा।

एक दिन राजेश अकेले में नीलम से मिलकर बहुत ही विनम्र और करूण शब्दों में बोला ’’नीलम तुम चाहो तो मेरी सारी सम्पति ले लो , चाहे तो उस करोड़ों की सम्पत्ति को भिखारियों में बाॅंट दो,मैं उफ्् तक नहीं करुंगा, मगर तुम इसके बदले में बस अपना प्यार मेरी झोली में डाल दो। यह कहते- कहते राजेश की आंखे भर आयी। नीलम राजेश की भावनाओं को समझ गयी।

वह राजेश की आंखों में भर आए आंसूओं को पोछती हुए बोली, ’’नहीं राजेश तुम्हें प्यार करने वाली और कई नीलम मिल जायेंगी कयोकिं तुम स्वस्थ ,सुन्दर और शहर के गिने चुने रईश व सम्पन्न परिवार से हो । लेकिन मैं जिससे प्यार करती हॅंू ,उसे केवल मेरी ही जरूरत है। तुम्हें यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि जिसे मैं प्यार करती हॅू वह मुझे प्यार भी नहीं करता है । फिर भी मैं मजबूर हॅंू क्योंकि उसे केवल मैं ही प्यार दे सकती हूॅ और कोई नहीं । फिर भी मैं तुमसे वादा करती हॅंू कि तुम मेरे सबसे प्रिय और करीबी मित्र रहोगे। जिन्दगी के सभी चिरस्मरणीय मौंके पर , मैं तुम्हारे साथ रहने तथा दोस्ती का फर्ज निभाने का प्रयास करती रहूंगी। उस समय राजेश से कुछ न बोला गया। इस सबके बावजूद भी वह निराश नहीं हुआ बल्कि वह अपने मकसद की कामयाबी में जुटा रहा । स्नातक की परीक्षा में भी अमित विश्वविद्यालय में सर्वाधिक अंक लाने वाला छात्र रहा। उसके द्वारा प्राप्त किए गए प्रतिशत अंकों ने पिछले वर्षों के कई रिर्काडों को तोड़ डाला। इसी बीच नीलम अमित से अपने पिता से मिलने के लिए बार - बार आग्रह करती रही । अमित ने उसके इस आग्रह पर कभी ध्यान नहीं दिया। दिल के हाथों मजबूर नीलम स्वंय अपने पिता को लेकर एक दिन अमित के घर पहुंच गयी। इसे संयोग कहिए कि उसी समय सोनू के एक अपराध के छानबीन हेतु पुलिस वहां पर आयी हुई थी। नीलम के पिता भी एक बड़े पुलिस अधिकारी थे। उनके हस्तक्षेप से पुलिस तत्काल वापस चली गयी। अमित को एक बार फिर अपने उपर ग्लानि हुई। वह शर्म से नीचे गड़ा जा रहा था। पुलिस के चुपचाप वापस जाने की उपलब्धि समझी जाय या कुछ और ,रमा देवी ने नीलम और उसके पिता रवि शंकर का उचित ढंग से स्वागत किया।

मौका देखकर रवि बाबू ने नीलम के रिश्ते की बात आगे बढ़ायी, मगर इस ओर उन्हें संतोष जनक उत्तर नहीं मिला, फिर भी रवि बाबू हतोत्साहित नहीं हुए। वे नीलम की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार थे । क्योंकि नीलम उनकी एकलौती बेटी थी। अमित इस संदर्भ में तथा अपनी पारिवारिक स्थिति पर काफी सोचता रहा और उसके दिल में नीलम और उसके प्यार और वर्तमान परिस्थिति के बीच की कश्मकश चलती रही। उसने मन ही मन तय किया कि आगे जो भी कुछ स्थिति बने मगर नीलम के पिता से मिलकर सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी जाए । पहली बार अमित नीलम के घर गया। अमित का वहां पर भव्य स्वागत किया गया और विगत किसी घटना का जिक्र हो, इसका उन लोगों ने कोई मौका ही नहीं दिया। रवि बाबू ने अमित को आगामी होने वाली ’’कम्बाइन्ड डिफेंस एक्जामिनेशन‘‘ के बारे में जानकारी दी तथा उसमें शामिल होने की सलाह दी। अपने बीते हुए दिनों को याद करते हुए बोले, ’’बेटे! मैं स्वंय सेना में जाना चाहता था , मगर मेरे पिताजी की इच्छा के कारण मुझे पुलिस सेवा में आना पड़ा। तुम सेना में शामिल होकर देश की सेवा करो। देश की सेवा में तुम्हारे जैसे होनहार युवक की बड़ी जरूरत है। देश पर सर्वस्व अर्पण करने वालों की अभी भी बहुत जरूरत है।

उन सबकी बातों और स्वागत सत्कार से अमित बहुत प्रभावित हुआ । नीलम के लिए उसके दिल में पहली बार जगह बनी। अमित रवि बाबू की दी सलाह के अनुसार सी.डी.एस. की परीक्षा में शामिल हुआ और चुन लिया गया।

रवि बाबू इस दौरान अनेक बार गोपाल बाबू और रमा देवी से मिलकर नीलम और अमित की शादी की बात करते रहे और हर बार वे लोग खूबसूरती से टालते रहे ।

अमित को प्रशिक्षण के लिए गए हुए केवल दो हफ्ते ही हुए होगें कि गोपाल बाबू का अपराधी पुत्र सोनू जेल चला गया। वह भी एक मासूम लड़की के साथ बलात्कार और उसके पश्चात उसकी गला घोंट कर की गई हत्या के जुर्म में । रमा देवी ने सोनू के बचाव के लिए अपने पति को रवि बाबू के पास जाकर मदद लेने के लिए कहा।

गोपाल बाबू को बचाव का अब एकमात्र यही रास्ता नजर आया । गोपाल बाबू अपनी पत्नी के साथ उनके पास गये और सगाई की तिथि तय कर दी । इसके बाद सोनू को जेल से छुड़वाने में मदद का आग्रह किया। रवि शंकर ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि सोनू निर्दोष हुआ तो निश्चय ही वह छूट जायेगा। अगर यह इल्जाम सही निकला तो वे रत्ती भर भी इस मामले में मदद नहीं कर सकेंगें। गोपाल बाबू दुखी मन से लौट गए।

सगाई के लिए अमित एक सप्ताह की छुट््टी लेकर घर आया । सगाई की तैयारी में रवि बावू ने अपनी ओर से कोई कसर नहीं उठा रखी थी। उनकी सरकारी कोठी दुल्हन की तरह सजाई गई थी। कोठी के चारों ओर छोटे बडे सभी प्रकार के रंगीन बल्ब लगाए गए थे। कोठी के भीतर भी खूब चहल-पहल थी। सभी के स्वागत के लिए रवि बावू स्वंय मुख्यद्वार पर खड़े थे। आने वालों का तांता देर रात तक लगा रहा। आने वाले विशेष अतिथियों में अमित अपने माता पिता के साथ आया। हल्के नीले कलर के सूट में वह बहुत खूबसूरत लग रहा था। राजेश भी आया मगर लुटा पिटा सा। दाढ़ी उसकी बढ़ी हुई थी। चेहरे पर गमों का पहाड़ टूटा हो वैसा लग रहा था। सगाई रस्म की घोषणा की गई। नीलम अपनी सहेलियों के साथ आकर अमित के सामने खड़ी हो गयी। उसके चेहरे से ही नहीं बल्कि अंग-अंग से प्रसन्नता फूट रही थी। वह बहुत खुश थी। अमित के पास ही राजेश खड़ा था। सगाई की रस्म की धोषणा की गई । नीलम ने अमित को अंगुठी पहनाने की रस्म पूरी की। गोपाल बाबू अभी तक अंगुठी ही ढूंढ़ रहे थे। सभी जेबों को टटोलने के बाद वे निरीह भाव से बोले, किसी ने उनके जेब से अंगुठी निकाल ली है या फिर कही रास्ते में गिर गई है। क्योंकि घर से चलते वक्त उन्होंने बडे ध्यान से अंगुठी जेब में रखी थी। ऐन वक्त पर राजेश ने अपनी अंगुली से हीरे की अपनी अंगुठी निकाल कर नीलम को पहनाने के लिए अमित को दी। अमित ने बुज्ञे मन से नीलम को वही अंगुठी पहनायी । अब राजेश का चेहरा खुशी से दमकने लगा जैसे कि उसकी ही सगाई नीलम से साथ सम्पन्न हुई हो। जैसे तैसे यह रस्म भी पूरी हुई। फिर खाने पीने का दौर चला। पंडाल के एक ओर आर्केस्टा पार्टी थी। उन्होंने अपना काम शुरू किया। राजेश उसमें शामिल होकर देर तक नाचता रहा । कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा। विदाई के पूर्व रविशंकर ने गोपाल बाबू को फरवरी के पहले सप्ताह में शादी की शुभ मुहूर्त निकलने की बात कही तो उन्होंने इस पर कोई उत्तर नहीं दिया।

राजेश सगाई समारोह के बाद एक बार फिर परेशान रहने लगा। वह यह सोचकर परेशान था कि अब नीलम की शादी अमित के साथ होने में ज्यादा देर नहीं है। उसे महसूस होने लगा कि भाग्य कभी भी उसका साथ नहीं दे रहा है। हर बार भाग्य उसे ही दगा दे जाता है। अभी - अभी एक सुन्दर समय आया जब उसकी पहनी हुई अंगुठी से सगाई की रस्म पूरी हुई । वह इस बारे में, नीलम को वह स्पष्ट करने वाला था कि मंगनी उसकी अंगुठी से हुई है। अतः मंगनी उसके साथ हुई माना जाना चाहिए। मगर वह शादी की तारीख तय हो जाने से एक बार फिर से परेशान हो गया।

प्रशिक्षण के बाद अमित की नियुक्ति लद्दाख क्षेत्र के लिए की गयी । उसे दो दिन बाद ही लद््दाख जाना था। नीलम और अमित इन दो दिनों का पल-पल उपयोग कर रहे थे। सैर-सपाटे, पिकनिक, खरीददारी और सिनेमा सभी कार्यक्रमों में राजेश उन दोनों के साथ हमेशा मौजूद रहा। आज अमित को वापस जाना था। राजेश अमित के लद््दाख की शीघ्र वापसी से अन्दर ही अन्दर बहुत प्रसन्न था।

अमित की वापसी के लिए ट्र्ेन में सामान रखे जा रहे थे। यह काम कुली की जगह राजेश खुद ही कर रहा था। नीलम बहुत उदास थी, अमित भी उतना ही उदास था। अमित को ऐसा लग रहा था कि शायद अब नीलम से फिर कभी मिलना नही हो सकेगा । उसका मन कर रहा था अभी साथ ही नीलम को लेकर लद्दाख ले जाए, मगर वह मर्यादाओं से बाहर कभी नहीं निकला था। ट्रेन में चढते समय पहली बार अमित को नीलम से जुदा होने का एहसास हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे कि उसका अपना, अपनी कोई सबसे प्रिय वस्तु उससे छीनी जा रही है। उसका गला अवरूद्ध हो गया। उसकी आंखे भर आयी। नीलम से विदाई के समय उसके होंठ पर आये विदा के शब्द हवा में बिखर गए।

ईश्वरीय मनसा को इंसान कभी भी समझ नहीं पाता है। इसके साथ यह भी कहा जाता है कि ऊपर वाले की कृृृपा दृृष्टि समान रूप से सबको मिलती है । लेकिन अमित के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। रवि बावू का भेजा गया लम्बा सा पत्र अमित को हर तरह से झकझोर गया । क्षण भर के लिए वह स्तब्ध रह गया। उसे इस घटना पर विश्वास नहीं हो रहा था । इस तथ्य पर अविश्वास का कोई कारण भी तो नहीं था। सच तो यह भी था कि उसे जन्म देते ही अनाथालय पहुंचा दिया गया था । उस अभागे को किसी से प्यार मिलने का क्या भरोसा ? भाग्य जिसके साथ क्रुरतम खेल-खेल रहा हो तो ऐसे अभागे के स्वप्न कैसे साकार हो सकते थे। उसके बुने हुए सपने पर तुषारापात हो चुका था । नीलम अब इस संसार में नहीं थी। राजेश की स्वार्थी जिद््द ने उसे काल के मुंह मंे ढ़केल दिया था। मगर, राजेश स्वार्थी नहीं था , कयोंकि आखिरकार वह भी तो इस संसार से कूच कर गया था। हुआ यह कि राजेश नीलम और अमित की शादी की तिथि निश्चित होने पर वह एक हद तक टूट गया । ज्यों-ज्यों शादी के दिन करीब आ रहे थे , त्यों-त्यों निराशा भी बढ़ती जा रही थी। उसकी सोच भी कंुठित होती जा रही थी। चार दिन बाद उसका जन्म दिन था। उसने एक भयानक निर्णय ले लिया जो शायद ही कोई ले पाता होगा । अपने जन्मदिन की पार्टी को वह बड़े धूमधाम से मनाना चाहता था। नीलम राजेश के लिए अत्यन्त खूबसूरत और कीमती उपहार के रूप में ताजमहल लेकर आयी थी। वह छोटा सा ताजमहल कोई बेशकीमती संगमरमर का ही बना हुआ था। राजेश ने स्वंय नीलम से कीमती उपहार लेकर आने को कहा था। राजेश उस दिन बहुत खुश था। वह चारो ओर रूपये की बारिश कर रहा था। लोग अचम्भित होकर उसके क्रियाकलाप देख रहे थे। हर एक नौकर हजारों रुपए इनाम में पा चुका था। वे भी आश्चर्य चकित थे कि उन्हें बात - बात पर इनाम दिया जा रहा था। धन से तरह का विमोह प्रत्येक व्यक्ति पहली बार देख रहा था। राजेश हमेशा नौंकरों को खुश होने पर इनाम देता था। मगर इस तरह उसने कभी नहीं किया था । पार्टी में भोजन की भी व्यवस्था की गयी थी। केक का पहला टुकड़ा राजेश ने नीलम को बहुत ही प्यार से खिलाया। उसके पश्चात ही अपने माता-पिता को केक खिलाया। उसके बाद खाने-पीने का दौर शुरु हुआ ।

सभी लोग बेहतरीन जायकेदार भोजन की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे । सम्भवतः सभी कुक पांच सितारे होटल से भोजन बनबाने हेतु बुलवाए गए थे । सभी मेहमान खाने -पीने में मशगुल थे । राजेश नीलम के उपहार को लिए उसके सामने खडा था। नीलम राजेश के इस अप्रत्याशित व्यवहार को समझ नहीं पा रही थी । उसे लग रहा था कि आज जरुर कुछ न कुछ अनहोनी होकर रहेगी । मगर इतनी बडी धटना धटेगी इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी । राजेश ने नीलम के दिए उपहार की जमकर प्रशंसा की । इतनी प्रशंसा की कि नीलम उससे बोर होने लगी। मगर वह राजेश का दिल दुखाना नहीं चाहती थी। अब नीलम घर जाने के लिए इजाजत चाह रही थी । राजेश उसे वापस जाने का मौका नहीं दे रहा था। राजेश अन्दर से खुद दो ’’कोल्ड ड्र्ंिकस‘‘ उठा लाया। एक नीलम को देकर दूसरा स्वंय पीने लगा। कोल्ड ड्र्ंिकस के खत्म होने के बाद वह बहुत ही भावुक हो उठा। नीलम का हाथ अपने हाथों में लेते हुए वह बोला - नीलम मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता , तुम किसी ओर की न हो सकोगी, यदि तुम मेरी बन न सकी। नीलम यह सुनकर तिलमिला गई । उसी समय उसकी आंखो के सामने अंधेरा छाने लगा। वह काफी प्रयास के बावजूद भी अपने शरीर को जमीन पर गिरने से रोक नहीं पा रही थी। राजेश फिर खूद ही बोल उठा - हां नीलू , अभी-अभी हम दोनों ने जहर मिला कोल्ड ड्र्ंिकस पिया है । इसमें ऐसा जहर मिला था जिसे दुनिया का कोई भी डॅाक्टर इसके असर को खत्म नहीं कर सकता है । मैं मरते-मरते भी तुमसे यही कह रहा हूंॅ कि मैं तुम्हें अपने सारे अस्तित्व से भी ज्यादा चाहता था ... और ..... ज्यादा .... उसका वाक्य अधूरा ही रह गया। लड़खड़ा कर वह नीलम के साथ ही जमीन पर गिर पड़ा। अस्पताल में दोनों को मृत घोषित कर दिया गया।

पत्र अमित के हाथ में था , शरीर गतिहीन हो चला था । हृदय में शूल से चुभ रहे थे। आंसू निरंतर निकल कर गालों से होते हुए जमीन पर आकर गिरते । इसी जमीन के किसी भाग पर नीलम भी कहीं गिरकर पंचतत्वों में विलीन हो गयी थी। अमित जीवन की यह बाजी भी हार गया था। वह तो हमेशा से हारता ही तो रहा था । जीतना तो उसके नसीब में कभी आया ही नहीं था। हारने का यह सिलसिला उसके जन्म से ही शुरू होकर उसके भाग्य के डोर में बंध गया था। इसे अमित का कोई भी प्रयास विफल नहीं कर सकता था।

सीमा पर कई छिटपुट घटना से एकाएक तनाव बढ़ गया था। किसी समय युद्ध भड़क उठने की संभावना थी। यह सब आतंककिस्तानियों की ज्यादती का एक हिस्सा था। आए दिन सीमा पर आतंक किस्तानी गोली बारी कर जाते थे। भारतीय सुरक्षा अधिकारी उनकी मनमानी हरकतों से परेशान थे। और अंततः आतंककिस्तान ने भारत पर युद्ध थोप ही दिया । अमित अपने मोर्चे पर बहादुरी से जंग लड़ रहा था । कई र्मोचे पर आतंककिस्तानियों को युद्ध भारी पड़ने लगा। उसकी कई चैकियां नष्ट हो गयी ।

फलतः उसकी सेना को कई जगहों पर पीछे हटना पड़ा। उस दिन अमित सोया हुआ था। उसे हल्का बुखार था । उसे दोपहर में ही बुखार के कारण वापस आराम के लिए भेज दिया गया था। आज उसे नीलम की बहुत याद रही थी। वह नीलम जिसने उसे दिलो-जान से चाहता था। उसके एक-एक कदम पर खुशियां बिखरने का प्रयास करने वाली नीलम जिसने , अपनी कोई जरूरत चाहे बिना ही उसे निरन्तर चाहती रही। अमित की आंखों से आंसू निकल कर बहने लगे। वह नीलम की याद में खोया हुआ था। तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी । वह उठ कर बाहर आया और , दरवाजा खोला तो देखा कि दो सार्जेण्ट खड़े थे।

’’जय हिन्द सर ’’ कह कर सार्जेण्ट ने अमित का अभिवादन किया ।

’’जय हिन्द ’’ कहकर अमित ने उसका अभिवादन स्वीकार किया ।

’’सर अभी - अभी हमने दुश्मन देश आतंकिस्तान के एक सैन्य विमान को मार गिराया है। उसके पाइलट तथा एक या दो सैनिक के बच जाने की उम्मीद है। वे छिपने के लिए इधर भी आ सकते हंै। प्लीज इसका ख्याल रखें । ’’सार्जेन्ट ने जरुरी सूचना दी ।

’’ठीक है, इस तरह की कोई जानकारी मिलने पर मैं स्वंय हैड, आफिस में सूचना दंूगा। ’’ अमित ने जवाब दिया ।

’’जय हिंद सर‘‘ एक बार फिर अभिवादन कर दोनांे सार्जेन्ट वापस चले गए ।

’’जय हिंद ’’ कहकर अमित ने दरवाजा अन्दर से़ बंद कर लिया।

उसके तुरन्त बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई ।

अमित जैसे ही ने दरवाजा खोला तो उसके ठीक सामने नीलम की बिलकुल हमशक्ल लड़की सैनिक पोशाक में हाथ में पिस्तौल लिए खड़ी थी।

’’हैण्ड््स अप --- किसी --- तरह की आवाज ---’’ मुश्किल से यह बोल ही पायी थी कि वह लड़खड़ा कर धडाम से नीचे जमीन पर गिर पड़ी। वह बहुत ही ज्यादा घायल थी। उसकी शरीर खून से लथपथ था। अमित धर्म संकट में पड़ गया। अभी वह नीलम की याद में ही खोया था । उसके गालों पर आंसुओं के दाग अभी भी पडे़ थे। सामने नीलम की हमशक्ल लड़की बेहोश पड़ी थी, जो दुश्मन थी। मन-मष्तिस्क में द्वंद होने लगा कि इस लड़की को गिरफतार करा दिया जाए या नहीं। नहीं -नहीं यह गम्भीर रुप से घायल है ... इसलिए ऐसा करना एक अपराध होगा । दूसरी तरफ यह विचार आया कि यह देशद्रोह है ,और वह देशद्रोही कदापि बनना नहीं चाहता था । मगर यह मानवता परक भी तो नहीं है। अन्तर्मन में द्वंध होने लगी । अन्ततः मानवीय संवेदना जीत गया । अमित उसे उठाकर बेडरूम में ले गया। उसकी घाव को धोकर साफ किया। दवाई लगाकर पट्टी बांधी और उसकी सेवामें निरन्तर लगा रहा। दो दिन बाद लड़की काफी हद तक ठीक हो चुकी थी। अमित उसे स्वंय जाने के लिए कहना नहीं चाहता था। वह अमित को हमेशा रिझाने की कोशिश में लगी रहती थी । वह अपने इस मकसद में एक हद तक कामयाब भी हुई। अमित भी यह भूल गया कि वह नीलम नहीं बल्कि एक दुश्मन है , और अपने देश के दुश्मन को पनाह देना देशद्रोह के साथ - साथ देश से गददारी भी है। वह लड़की हमेशा उसे मोहपाश और जवानी के जलवे में बांधने के प्रयास में लगी रहती थी। उसकी हर एक अदा में अंग-प्रदर्शित होता रहता था। एक - एक जम्हाई वह इस प्रकार से लेती थी कि शक्तिहीन पुरूष में भी शक्ति का संचार हो जाए। उसकी हर एक अदा उत्तेजक और मादक थी। बाथरूम से कभी भी वह पूरे कपड़े पहनकर नहीं निकलती। प्रतिदिन केवल तौलिया लपेटे सामने आ खड़ी होती।

एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। बाथरूम से वह निकली तो सामने ही बाथरूम जाने के लिए अमित खड़ा था । उसके बदन पर लिपटा तौलिया अक्समात नीचे गिर पड़ा। वह जानबूझकर तौलिया गिराई या स्वंय गिरा कहना काफी मुश्किल था। अमित अपनी नजरें खूद ही नीचे कर लिया। अमित अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था। उसे वह लड़की बिलकुल नीलम ही लगती थी।

इन दिनों युद्ध नाजुक मोड़ पर आ खड़ा हुआ था। प्रत्येक दिन भारतीय चैकियों पर हमले हो रहे थे। कई अत्यन्त महत्वपूर्ण सामरिक ठिकाने नष्ट हो चुके थे। इन चैकियों पर बहुत से जवान मारे जा चुके थे। रक्षा अधिकारी आश्चर्य चकित थे , कि इतनी खुफिया जानकारी दुश्मन को कैसे और कहाॅ से मिल रही है। अमित ने भी इस पर काफी विचार किया, मगर समझ में कुछ भी नहीं आया कि ऐसा कैसे संभव हो रहा था। आज अधिकारियों की इस मुद््दे पर बैठक हुई थी । जिसमें सभी अधिकारियों ने व्यापक विचार-विमर्श किया कि सभी सामरिक महत्व के ठिकानों की जानकारी दुश्मन को कैसे हासिल हो रही है। अधिकारियों ने अमित को भी इस पर अलग से सोचने और इसके समाधान के लिए कहा , क्योंकि वे सभी अमित को सभी प्रतिभा सम्पन्न युवक का मानते थे। अमित ने भी इस पर मंथन करने और उसका समाधान खोजने का आश्वासन दिया । मिटिंग शीघ्र ही समाप्त हो गई । उस दिन अमित दोपहर में ही अपने धर आ गया। बाहर के दरवाजे का ताला उसने ज्यों हीं खोेलना चाहा ,उसे धर केे अन्दर से वायरलेस पर बातचीत होने की आवाज सुनाई पड़ी। वह चैंक उठा । उसकी धड़कन और तेज हो गयी। वह बिना कोई आवाज किए ताला खोला और दबे पांव जिधर से आवाज रही थी , उघर की ओर बढ़ा। वायरलेस पर बातचीत की आवाज बाथरूम से आ रही थी। उन बातों को वह काफी ध्यान से सुनने की प्रयास करते हुए वह बाथरूम के पास पहुंच गया । वह पूरी तरह से सर्तक था । जब वह बातचीत समाप्त कर बाहर निकली तो उसके सामने में अमित खडा था । अमित को सामने खडा देखकर वह बुरी तरह से घबरा गई। फिर भी वह मामले को संभालने के लिए अमित से लिपटते हुए बोली ’’डार्लिंग, बस थोड़ी देर की ही तो बात है। यह देश और हमारा देश दोनो एक हो जायेगा , और तुम आतंककिस्तान सरकार के पहले सम्मानित नागरिक हो जाआगें‘‘

’’यह कैसे संभव होगा डार्लिंग ‘‘ अमित शहद से ओतप्रोत शब्दों में पूछा , क्योंकि अब वह इसी तरह से पूछने को वह विवश था।

’’अभी कुछ ही देर के पश्चात् इस खाली क्षेत्र से सात परमाणु बमवर्षक विमान गुजर कर सभी भारतीय सामरिक ठिकानों पर हमला कर देगे। इस निर्णायक हमले से भारत सरकार को हथियार डालने पडे़गे। फिर यह देश आतंककिस्तान का, और यह गुलबदन सदा के लिए तुम्हारी हो जायेगी।’’ गुलबदन नामक उस जासूस लड़की अमित के होंठ चुमते हुए बोली। अमित ने प्यार मनुहार कर अन्य कई जरुरी जानकारी उससे हासिल किये ।

उसके पश्चात अमित ने उसे झटक कर अपने से अलग करते हुए एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके मुंह पर रसीद किया । और फटकारते हुए बोला ’’कमीनी , कुतिया , जिस थाली में तूने खाया उसी में छेद कर दिया । धिक्कार है तेरे इस आचरण पर - मैंने तुम्हें क्या समझा था और तुम क्या निकली। गुलबदन बौखला कर रह गयी। अमित ने उसके हाथ पांव बांध कर उसे पंलग पर डाल दिया। परमाणु बमवर्षक विमान को अपने सामरिक क्षेत्र में प्रवेश करने से रोकने के लिए वह तेजी से चल पड़ा। हैड अॅाफिस मंे दो चार सिपाहियों के अलावा और कोई नहीं था। सही में दुश्मन इस समय अपने उद्देश्य में सफल हो जाते।

अमित बम वर्षक विमान को मार गिराने वाला मिसायल लाॅचर लिया और गुलबदन के बताये स्थान की ओर तेजी से बढ़ने लगा। सीमा पर पहुंचकर वह मिसायल लाॅचर सेट ही किया था कि गड़गड़ाहट की आवाज के साथ आकाश में पहला बमवर्षक विमान उसके राडार पर दिखाई पड़ा ,जिसकी जानकारी उसे गुलबदन ने दी थी। बमवर्षक विमान के रेन्ज के आते ही अमित ने गोला दागा विमान दूर ही नष्ट होकर गिरने लगा। उसके बाद तो गोला दागने और विमान गिरने का सिलसिला शुरू हो गया। एक एक कर उसने पाॅच परमाणु बमवर्षक विमानों को अकेले मार गिराया। अब उसे केवल दो विमान मार गिराने थे । जिसका उसे बेसब्री से इन्तजार था। थोड़ी देर के अन्तराल में उसे छठा बमवर्षक विमान आता हुआ दिखाई पड़ा। अमित ने गोला दागा विमान के दो टुकड़े हो गये। बड़ा छोटा दोनों ही टुकड़ा एक समान गति से पृथ्वी पर गिरते देखकर उसे न्युटन की गति सम्बन्धी एक नियम याद आ गया । उसने राडार देखा अंतिम विमान लगभग उसके उपर आने ही वाला था । एक पल के लिए अमित सहम गया , फिर उसके होंठ पर एक फीकी सी मुस्कराहट आयी और चली गई । जेहन में माता पिता का ख्याल , अजीवन करावास की सजा पाये छोटे भाई सोनू की याद आयी । और सबसे ज्यादा चाहने वाली प्यार और त्याग की मूर्ति नीलम की याद आ गयी। और अन्त में बेवफा गुलबदन की याद आयी। अमित अपने होंठ को दांत से काटते हुए प्राण के भय के बिना गोला दाग दिया। विमान से गोला टकराया और उसमंे आग लग गयी और जलते हुए उसके मलवे आसपास के क्षेत्रों के साथ - साथ उसके शरीर की ओर बढने लगे । विमान के जलते हुए शोलों के बारिश से बचने के प्रयास करने पर वह बच पाता या नहीं , यह कहना बहुत ही मुश्किल था । जलते हुए शोले उसकी देह पर जब गिरे तो उसे ऐसा लगा मानों उसके शरीर पर हजारों मन फूलों की बारिश कर दी गई हो ,और इस तरह अमित भी जलते हुए उस विमान के मलबे में शामिल हो गया।

डा. प्रदीप गुप्ता