Gandhiji ke Kisse Sandhya Pandey द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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Gandhiji ke Kisse

गांधीजी के किस्से

संकलन: संध्या पाण्डेय

1.

महात्मा गांधी अपने आश्रम में रहने वाले हर व्यक्ति का ख्याल रखते थे। यहां तक कि पशुओं को भी वे समान रूप से स्नेह देते थे। वे चाहे कितने भी व्यस्त रहे, आश्रम पर नजर रखना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। एक बार जाड़े के मौसम में गांधीजी आश्रम की गोशाला में पहुंचे। उन्हें देख गायें रंभाने लगीं। बापू ने गायों को सहलाया और प्यार से बछड़ों को थपथपाया। गांधी जी के चेहरे पर खुशी थी। उनका प्रेम भरा स्पर्श पाकर जानवरों ने भी गर्दन हिलाकर उनके प्रेम का जवाब दिया। वह वहां से बाहर निकल ही रहे थे कि तभी उनकी नजर पास खड़े एक गरीब लड़के पर गई। वह उसके पास पहुंचे और बोले, ‘तू रात को यहीं सोता है?’ पहले तो वह लड़का सहमा फिर धीमे से बोला, ‘जी बापू जी । मैं रात यहीं बिताता हूं।’ उसका जवाब सुनकर गांधी जी बोले, ‘बेटा, इन दिनों तो बहुत सर्दी है। ऐसे में क्या तुम्हें ठंड नहीं सताती?’ लड़का बोला, ‘हां बापू ठंड तो लगती है।’

‘फिर तुम ठंड से बचने के लिए क्या ओढ़ते हो?’ गांधी जी ने पूछा। लड़के ने एक फटी चादर दिखाते हुए कहा, ‘बापूजी, मेरे पास तो ओढ़ने के लिए बस एक यही चादर है।’ लड़के की यह बात सुनकर बापू आश्चर्य से उसे देखते रहे और तुरंत अपने कमरे में लौट आए। उन्होंने उसी समय बा से दो पुरानी साड़ियां मांगी। फिर कुछ पुराने अखबार तथा थोड़ी सी रूई मंगवाई। रूई को अपने हाथों से धुना। साड़ियों की खोली बनाई, अखबार के कागज और रूई भरकर एक रजाई तैयार कर दी। जब रजाई पूरी तरह तैयार हो गई तो बापूजी ने गोशाला से उस लड़के को बुलवाया । लड़का सहमता हुआ उनके पास आया तो गांधी जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा और रजाई उसे देते हुए बोले, ‘इसे ओढ़कर देखना कि रात में ठंड लगती है या नहीं ।’ लड़का रजाई देखकर बहुत खुश हुआ और उसे लेकर चला गया। अगले दिन जब गांधी जी गोशाला गए तो उन्हें वही लड़का नजर आया। बापू ने उससे पूछा, ‘क्या तुझे कल भी ठंड लगी थी?’ यह सुनकर लड़का तपाक से बोला, ‘नहीं बापू जी, कल तो आपकी दी हुई रजाई ओढ़कर मुझे बहुत गर्मी महसूस हुई और बड़ी मीठी नींद आई ।’ लड़के का जवाब सुनकर बापू हंस पड़े और बोले, ‘सच, तब तो मैं भी ऐसी ही रजाई ओढूंगा।’ लड़के की आंखें भर आईं।

…….

2.

गांधीजी को बच्चों से बहुत प्यार था। वे हमेशा समय निकालकर बच्चों से मिलते रहते थे। एक दिन एक छोटा बच्चा गांधीजी को बिना कपड़ों के देख कर बहुत दुखी हुआ। वो हैरान था कि इतने प्रसिद्ध व्यक्ति कमीज नहीं पहनते। वह बच्चा अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाया और उसने गांधीजी से पूछ ही लिया कि वे कुर्ता क्यों नहीं पहनते? गांधीजी ने उससे कहा, "पैसे कहां हैं बेटा? मैं बहुत गरीब हूं। मैं कुर्ता नहीं खरीद सकता।" बच्चे का दिल पसीज गया। उसने कहा, "मेरी मां बहुत अच्छी सिलाई करती है। मेरे सारे कपड़े वही सिलती है। मैं उसे कहूंगा कि वह आपके लिए भी एक कुर्ता बना दे।" गांधीजी ने बच्चे से पूछा, "तुम्हारी मां कितने कुर्ते सिल सकती है?" बच्चे ने कहा, "आपको कितने चाहिए? एक, दो, तीन आप जितना कहें, वह उतने कुर्ते सिल देगी।" कुछ सेकंड सोचने के बाद गांधीजी बोले, "लेकिन मैं अकेला नहीं हूं बेटा। यह सही नहीं होगा कि सिर्फ मैं कुर्ता पहनूं।" फिर वह बच्चा जिद करते हुए बोला, "आपको कितने कुर्ते चाहिए? मैं अपनी मां से कहूंगा कि आपको जितने कुर्ते चाहिए, उतने सिल दे।" गांधीजी ने उससे कहा, "मेरा परिवार बहुत बड़ा है बेटा। मेरे चालीस करोड़ भाई-बहन हैं, जब तक उनमें से हर किसी के पास कुर्ता न हो, मैं कैसे पहन सकता हूं? मुझे बताओ, क्या तुम्हारी मां उन सब के लिए कुर्ते सिल सकती है?" इस बात पर बच्चा सोच में पड़ गया।

……

3.

बात तब की है, जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे। वहां उनके आश्रम में हर वर्ग और समुदाय के बच्चों को शिक्षा भी दी जाती थी। गांधीजी खुद बच्चों को पढ़ाया करते थे। एक दिन की बात है। विद्यार्थी गणित के शिक्षक छगनलाल भाई की आलोचना कर रहे थे। एक विद्यार्थी कह रहा था कि गणित को बापू पढ़ाते तो अच्छा था। वे पढ़ाते हैं तो एक ही बार में समझ में आ जाता है। उसी समय गांधी जी वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने छात्रों की यह बात सुन ली। जब वे कक्षा में गए तो सभी विद्यार्थी सहम गए।

कक्षा में बापू गंभीरतापूर्वक बोले, ‘शिक्षकों की निंदा करने वाला छात्र चाहे जितना भी होशियार हो, उसकी वास्तविक शिक्षा शून्य रह जाएगी। आज तुम्हें छगनलाल भाई से योग्य मैं लगता हूं, कल को गोखले महाराज मुझसे योग्य लगेंगे। तुम्हारा ध्यान केवल पढ़ाई में होना चाहिए, शिक्षकों की योग्यता-अयोग्यता को परखने में नहीं। विनम्रता से ही ज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। विनम्र शिक्षार्थी थोड़े को भी बहुत बड़ा कर सकता है। केवल अपने दोष देखो, शिक्षकों में दोष ढूंढ़ना ठीक नहीं। गणित वे ही पढ़ाएंगे। जो समझ में नहीं आता, उसे बार-बार पूछो और उनके प्रति मन में आदर व श्रद्धा रखो।

…..

4.

गांधीजी को रोज देश भर से पत्र आते थे। वे न सिर्फ ध्यान से पत्रों को पढ़ते थे, बल्कि उनके जवाब भी देते थे। एक बार उन्हें एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। लिखने वाले ने विस्तार से मंदिर के बारे में सब कुछ बताया था। यह पढ़कर गांधीजी को धक्का लगा। उन्होंने अपनी पूजा करने वाले लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उन्हें फटकारा। इस पर उनका एक समर्थक बोला, 'बापूजी, यदि कोई इंसान अच्छे काम करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई तो नहीं है?

उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले,

' तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना गलत है।'

इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, 'बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। इसलिए अगर आपको यह सम्मान दिया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है।'

गांधीजी ने पूछा, 'आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?'

यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, 'बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।'

गांधीजी ने कहा, 'यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है।'

इसके बाद उन्होंने मंदिर की स्थापना करने वाले लोगों को संदेश भिजवाते हुए लिखा कि आपने मेरा मंदिर बनाकर अपने धन का दुरुपयोग किया है । इस धन को आवश्यक कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता था। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।