Bapu ka Auchak Nirikshan Alankar Rastogi द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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Bapu ka Auchak Nirikshan

बापू का औचक निरीक्षण

स्वर्गलोक में विचरण कर रही बापू की आत्मा अपनी जान देकर दिलाई गयी देश की आजादी के कुशलक्षेम को लेकर टेंशनिया रही थी । अब देश किस हाल में है यह जानने को बेताब थी । हर बार की तरह अपने जन्म दिन को ऐंवे ही न गुजार देने की बापू ने सोची और निकल लिए धरती लोक पर देश की नब्ज टटोलने । या यूं कह लीजिये अपने बापू देश के औचक निरीक्षण के मूड में थे । देश में दो अक्टूबर को माहौल वाकई फील गुड कराने वाला नजर आ रहा था । सरकारी इमारतें सजी हुई थी और बैक ग्राउंड में देश भक्ति के गाने सुनाई पड़ रहे थे । बापू की आत्मा अपना इतना ग्रैंड वेलकम देखकर ग्लैड — ग्लैड हो गयी । बापू जी की आत्मा का मनोबल अब मल्टीप्लाई हो चुका था ।

एक सरकारी विभाग में अपनी फोटो लगा बैनर देखकर बापू किसी विशिष्ट अतिथि की भांति उसमे हो लिए । अन्दर जलसे सा माहौल था उनकी की फोटो पर फूल —मालाएं चढ़ाई जा रही थी। गाँधी जी को याद करने की चाही —अनचाही परंपरा जारी थी । हर वक्ता अपने भाषण में गाँधी जी की प्रासंगिकता को सिद्ध करने के लिए ऐसे —ऐसे तर्क दे रहा था की उनकी आत्मा मारे खुशी के पुनर्जनम की सोचने लगी । अभी तक उनकी आत्मा को आदर्श के सर्वाधिक ऊँचे झाड़ पर चढ़ा दिया जा चुका था । जाहिर सी बात है देशभक्ति के भाषणों और नारों ने बापू को वाकई फीलगुड सा करा दिया । लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी ,उनकी आत्मा को जोर का झटका धीरे से लगा । गाँधी जी अब भी हर जगह छाये हुए थे । मेज के नीचे से और अलमारी की आड़ में वही थे लेकिन वह विचारों में नहीं बल्कि रिश्वत में दी गयी और ली गयी नोटों के ऊपर फोटो के रूप में थे । यह आघात वाकई प्राण घातक था । सुकून तो यह था कि वह बापू की आत्मा थी झेल गयी वरना शरीर होता तो गोडसे की दागी गोलियों से कही ज्यादा छलनी हो जाता ।

उनकी आत्मा कुपित होने के बाद भी धैर्य धरते हुए अपने अगले पड़ाव की ओर निकल गयी । उन्होंने सोचा चलो आजादी और खादी दोनों का हाल —चाल ले लिए जाए । आजादी और खादी का डेडली कम्बीनेशन तो लोग वाकई फुल्ली एन्जॉय करते मिले। पता चला नेता लोग अब अपने काले कारनामों को खादी की सफेदी में लपेटे प्रजातंत्र की वादी में धडल्ले से घूम रहे हैं । नेता सरकार में आते ही कानून के बंधन से पूरी तरह आजाद हो चुके है। घोटालों के नए कीर्तिमान बनाने की उन्हें पूरी आजादी मिली हुई है। ठेकेदारों को दावा से लेकर दारू तक में मिलावट की फुल फ्रीडम है। आजाद भारत में हर कोई स्वतंत्र से ज्यादा स्वछन्द मिला। अब बापू की आत्मा अपने धैर्य के पेट्रोल को मेन से रिजर्व में लगाते हुए किसी तरह आगे बढ़ चली । तभी उनका ख्याल अपनी लाठी पर गया और सोचने लगे कि देखा जाए कि यह अब कितनो का सहारा बनी हुई है । लाठी मिली लेकिन अब वह मजबूरों का नहीं मजबूतों का सहारा बनी हुई थी .अब वह जिसकी लाठी उसकी भैस वाला काम कर रह थी । जिसको देखो वही अपनी लाठी हांक कर मतदाता को भयभीत कर प्रजातंत्र का भाग्य विधाता बना हुआ था। बापू कुपित हुए लेकिन उन्हें सुकून इस बात का था कि हिंसा का यह रूप देखने के लिए वह जीवित नहीं है ।

तभी उन्हें याद आया कि उनके पास एक गीता हुआ करती थी । सोचने लगे गीता में छिपा दर्शन तो अवश्य ही लोगों को कर्म का मर्म बता रहा होगा । लेकिन गीता कहीं नजर नहीं रही थी । बहुत ढूढ़ने पर गीता बापू को अदालत में मिली । वही गीता जो कभी उन्हें सत्य के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती थी आज वही गीता लोग झूठी कसमे खाने के लिए इस्तेमाल कर रहे थे । अब बापू को गीता का ज्ञान गलत लगने लगा कि आत्मा न पैदा होती है न मरती है । यहाँ तो पैसों के लिए लोगों की आत्मायें रोज मरती है । और बापू एक आत्मा होकर भी इस देश के लोगों में आत्मा ढूंढ रहे हैं । उनकी आत्मा अब अपने आत्मा के सच्चे चरित्र पर गर्व और इंसानों की मरी हुई आत्मा पर शर्म कर रही थी । उनके कुपित होने का प्रतिशत बढ़ता ही चल जा रहा था । भारी मन से उनके मन में उस घड़ी का ख्याल आया जो उन्हें समय का पाबंद बनाती थी , अनुशासनयुक्त और लापरवाही से मुक्त रखती थी । लेकिन यह क्या..? अब लोगों की सहूलियत, घड़ी के टाइम से कहीं आगे दिखी . कर्मचारियों की घड़ी अॉफिस की घड़ी से एक घंटा लेट ही मिली । लोग समय के पाबंद बस सिनेमाहाल के शो के समय को लेकर ही दिखे ।

अपने खून —पसीने से दी गई आजादी ,देश के आत्मसम्मान का प्रतीक खादी , मजबूरों का संबल लाठी ,पथ प्रदर्शक गीता , समय की कीमत बताती घड़ी की यह दुर्दशा देखकर बापू की आत्मा को अब अपने तीन बंदरों से कुछ आशा बची थी । पता चला बापू का वह बन्दर जो आँख बंद कर बुरा न देखो की सीख देता था अब वह कानून बन चुका है । उसे सबूतों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता है । कान बंद कर बुरा न सुनो कहने वाला बन्दर अब प्रशासन बन गया है जो किसी कि नहीं सुन रहा है । लेकिन बापू की आत्मा को सबसे बड़ा कष्ट तब हुआ जब उन्हें पता चला कि मुंह पर हाथ ढक कर बुरा न बोलो का सन्देश देने वला बन्दर अब देश के हर बन्दे का आदर्श बन चुका है । चाहे जितना भ्रष्टाचार हो जाए जनता अपना मुंह बंद किये रहती है । चाहे समाज में कितनी भी असमानताएं पनप जाए लोग झूठी शान के लिए मुंह सिले रहते हैं । शायद आजादी के मायने जो उनके लिए थे और जो मायने हमने खोज लिए हैं उनमे बड़ा अंतर आ चुका है । अब बापू की आत्मा तार —तार हो चुकी थी उसमे इतना साहस नहीं बचा था कि वह इस देश में कुछ और देर ठहर सके । अपने देश का यह हाल देख उनकी आत्मा के अश्रुधार भी रक्तधार में बदल चुके थे ।

अलंकार रस्तोगी

448/733, बाबा बालक दास पुरम ठाकुरगंज लखनऊ

मो—09838565890