बड़े दिल वाला - भाग - 4 Ratna Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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बड़े दिल वाला - भाग - 4

अभी तक आपने पढ़ा कि बारातियों के बीच वीर अचानक आकर अनुराग से मिला और अनन्या को बधाई देते हुए उसका हाथ ज़ोर से दबाकर एक कागज़ थमा गया। अनुराग को उसका व्यवहार अजीब लगा, पर अनन्या के मन में वीर की मौजूदगी गहरी बेचैनी छोड़ गई। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

इस तरह वीर के वहाँ आ जाने से अनन्या की बेचैनी बढ़ गई थी। उसके दिलो दिमाग़ में एक ही विचार आ रहा था कि वीर ने उस कागज़ में क्या लिखा होगा। वह उस कागज़ को निकाल कर पढ़ना चाहती थी लेकिन यह तो संभव नहीं था। अब उसे इंतज़ार था उस मौके का जब वह कुछ समय अकेली रह सके और अपने प्रियतम का पत्र पढ़ सके। उसके दिल से वह वीर को निकाल ही नहीं पा रही थी। उसे अनुराग तो उस पर जबरदस्ती थोपा हुआ भार लग रहा था जिसे ताउम्र उसे ढोना पड़ेगा। इन्हीं विचारों के साथ उनकी कार अनुराग के घर पहुँच गई।

ससुराल में अनन्या का जोरदार स्वागत हुआ। अनुराग की मम्मी शैलजा ने बड़े ही प्यार से घर की चौखट पर अनन्या के हाथ से हल्दी के छापे लगवाए और उसे अंदर ले गई। अंदर कई लोग अनन्या से मिलने आ रहे थे।

कुछ ही देर में उसने शैलजा से कहा, "मम्मी जी, मुझे बाथरूम जाना है।"

"हाँ बेटा, चलो मैं तुम्हें तुम्हारे कमरे में लेकर जाती हूँ। तुम्हें फ्रेश भी तो होना होगा।"

अनन्या ने अपने कमरे में आते ही दरवाज़ा बंद कर लिया। बाथरूम में जाकर उसने ब्लाउज के अंदर से वह कागज़ निकाला जिस पर लिखा था, 'मेरा अधूरा प्यार यदि पूरा ना हुआ तो मैं मर जाऊंगा। लव यू अनु, तुम मेरी थीं, मेरी हो और मेरी ही रहोगी। वापस आ जाओ प्लीज।'

यह वाक्य पढ़ते ही अनन्या की आंखों से आंसू निकल कर बहने लगे। वह ख़ुद को कोसने लगी। वह सोच रही थी, बेवफा है तू। कितना प्यार करता है वीर तुझे और तू ... तू ... उसे धोखा देकर यहाँ चली आई। कहीं वीर सच में कुछ कर ना ले। नहीं, वह वीर को यूं मरने नहीं देगी। वह भी उससे कितना प्यार करती है। पापा के कहने से यह शादी तो उसने कर ली पर अब वह कह देगी कि अनुराग से उसकी नहीं बन रही है, नहीं पट रही है और वह अब कभी वापस ससुराल नहीं जाएगी। तब तो पापा भी उसे वीर के पास जाने से नहीं रोक पाएंगे। वह सोच रही थी अब तो उसे हर हाल में अनुराग में कमियाँ ढूँढ कर निकालनी होंगी ताकि वह अपने पापा को वह सब बता सके और अनुराग से अपना पीछा छुड़ा सके।

शादी के अगले दिन उनके घर कथा संपन्न होने के बाद धीरे-धीरे शाम अपनी उपस्थिति दर्शाने लगी। अनुराग रात का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था क्योंकि यह उनके मिलन की पहली रात बनने वाली थी, उनकी सुहागरात। उसका दिल धड़क रहा था। समय तो कभी किसी के इंतज़ार के लिए अपनी गति में तेजी नहीं लाता। वह तो अपनी नियमित चाल से ही चलता है। परंतु फिर धीरे-धीरे वह समय आ ही जाता है जिसका हमें इंतज़ार होता है। अनुराग का इंतज़ार भी पूरा हुआ। रात के आगमन ने उसकी धड़कनों को और भी तेज कर दिया।

इधर अनन्या को भी सजा-धजा कर सुहाग की सेज पर बिठा दिया गया। वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसके दिल की धड़कनों में कोई हलचल नहीं थी। यदि हर धड़कन में कुछ था तो वह थी वीर की यादें।

अनुराग जब कमरे में आया, तब आते ही दरवाज़ा बंद करते समय जैसे ही उसकी नज़र बिस्तर पर गई तो उसने देखा, यह क्या ...? अनन्या सो चुकी थी। उसने तो सोचा था घूंघट में चांद-सा मुखड़ा छुपा कर अनन्या उसका इंतज़ार कर रही होगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वह धीरे-धीरे पास आया तो देखा अनन्या तो गहरी नींद में सो रही है।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः