हमराज - 15 Gajendra Kudmate द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हमराज - 15

रात का समय हो गया था और यासीन उन दोनों को लेकर एक कमरे में बैठी थी के तभी दुसरे कमरे से किसी के आने की आहट हई. बादल ने देखा की उस कमरे से एक औरत नकाब पहने हुये उनकी तरफ चल कर आयी. उस औरत को देखकर ज़ेबा के चेहरे पर खुशी और आँखों से  आंसू आने लगे. फिर यकायक ज़ेबा उस औरत के सीने से लीपटकर रोने लगी थी. बादल यह देखकर अभी भी असंमजस में था के तभी उसके कानों में आवाज आयी, " कैसे हो बेटा." बादल इथर उधर देखने लगा तभी वह औरत फिर बोली, " मैं आपसे बात कर रही हूँ बेटा, आप बादल हो ना." उस औरत के मुँह से अपना नाम सुनकर बादल एकदम से चौंक गया और फिर वह बोला, " माफ़ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं " तभी उस औरत ने अपना नकाब उतारा और बादल को अपना चेहरा दिखाया. उस औरत का चेहरा देखने के बाद बादल सोचने लगा के तभी वह औरत बोली, " बेटा हम ज़ैबा की अम्मी है." तभी बादल ने भी उनको पहचान लीया और वह भी उनसे जाकर लीपट गया. फिर वह बोला, " अंटी, आप और इतने सालों के बाद, कहाँ थी आप और इस तरह रात में छुपकर अचानक कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर ऐसा बोलते हुए बादल बेकाब् होकर रोने लगा था. फिर अम्मी बोली, " बेटा यह बहोत लंबी दास्तान है थोडा सब्र और आराम करो तुम्हे सब बताऊंगी." फिर अम्मी अंदर जाकर उन तीनों के लीये खाने के लीये कुछ लायी और उन्होंने कहा, " बेटा पहले तुम लोग हात मुँह धोकर थोडा कुछ खा लो बाद में हम बैठकर बात करेंगे " उन तीनों को भूख तो जोरो की लगी हुई थी इसलीये वह जल्दी से खाने पर टूट पड़े.

     खाना खाने के बाद वह तीनों आराम करने के लीये जानेवाले थे के अम्मी ने बादल को आवाज लगाई, " बादल बेटा, तुम्हारे कंधे पर चोट लगी है तो उसकी मरहमपट्टी करवा लो. " बादल को उस ख़ुशी के माहोल में यह भी याद नहीं रहा था की उसे गोली छूकर गयीं है. फिर अम्मी उसके कंधे की मरहमपट्टी करते हुए बोली, " बेटा यह चोट कैसे लगी." तब बादल ने अम्मी को पूरी बात बताई. बादल ने सारा वाक्या अम्मी को बताया लेकिन अम्मी के माथे पर कोई शिकन नहीं दिख रही थी. बादल ने जब यह देखा तो उसे बड़ा अजीब लगा और वह सोचने लगा. तभी अम्मी बोली, " बेटा यहीं सोच रहे हो ना की आपने मुझे खून खराबे के बारे में बताया और मैं डरी भी नहीं " फिर बादलने चौंककर कहा, " अंटी, आपने मेरे मन की बात केसे जान ली." तब अम्मी बोली, " माँ हूँ ना बच्चे के मन की बात समझने के लीये जीतना तजुर्बा चाहिये वह मुझे हो चूका है और रही बात आपके सवालों की बेटा इन बीते कुछ सालों में हमने इन बेजान आँखों से इतना खून देखा है की अब उसके बारे कोई बात करे तो भी हमें कुछ भी अहसास नहीं होता." ऐसा कहकर अम्मी रो पड़ती है. फिर खुदको संभालकर अम्मी बोलती है, " जाओ बेटा अब आप भी थोड़ा आराम कर लो बहोत भाग दौड़ कर के आये हो. " ऐसा कहकर अम्मी अंदर चली जाती है. फिर बादल भी आराम करने चला जाता है.

     दुसरे दिन सुबह हुई और सभी उठकर अपने अपने काम में लगे थे, बादल को दर्द के कारण नींद ज्यादा लगी थी इस वजह से वह देर तक सोता रहा. उधर अम्मी और ज़ेबा उठकर तैयार हो गए थे और यासीन भी वहाँ से जा चुकी थी. तभी करीब करीब दस बजे बादल की नींद खुली और वह उठकर बैठ गया. फिर अम्मी ने उसे देखा तो बोली, " उठ गये बेटा, जाओ हाथ मुँह धोकर तैयार हो जाओ. " बादल को दर्द के कारण इतनी गहरी नींद लगी थी के वह सब भूल गया था और अम्मी, ज़ेबा को देखकर उसे वह सब एक सपने जैसा लग रहा था. तब अम्मी बोली, बेटा, यह सपना नहीं हकीकत है. आप हमारे साथ हो फिर बादलने उठने के लीये हाथ का जोर लगाया तो उसे कंधे में दर्द हुआ और फिर वह समझ गया की यह हकीकत है. फिर वह उठा और नहाने चला गया. नहाने के बाद तैयार होकर बादल एक कमरे में जेबा और उसकी अम्मी के रूबरू बैठा था. उस कमरे में एकदम सन्नाटा था. तीनों में से कोई भी कुछ बात नहीं कर रहा था. तब अम्मी बोली, " अब कैसा महसूस हो रहा है बेटा." जवाब में बादल बोला, " अंटी अब कल से थोड़ा बेहतर महसूस हो रहा है. दर्द तो हो रहा है लेकिन थोड़ा कम है" अब बादल कुछ बोले उससे पहले ज़ेबा बोल पड़ी, " तो जनाब आप सेना में शामील हो गए है. " बादल बोला, " हाँ मे अपने देश की सेना का एक सीपाही बन गया हूँ." फिर ज़ेबा बोली, " आप तो किसी ओर ही सबक की तालीम ले रहे थे फिर अचानक से यह सीपाही कैसे बन गये. 

    " बादल ने फिर अम्मी की तरफ देखा और उसके लबों से कुछ नहीं नीकला. अम्मी उसकी आँखों की बेचैनी और लाचारी को समझ गयी थी इसलीये वह बीच में बोली, " आप दोनों बैठकर बाते करो मै थोड़ा पड़ोस से होकर आती हूँ. ऐसा कहकर अम्मी वहाँ से चली गयी. फिर ज़ेबा बोली, " बादल, आप अम्मी के सामने नहीं बताना चाहते थे ना." तभी बादल बोला, " आपको कैसे पता चला मेरी लाचारी के बारे में " तब ज़ेबा बोली, " जनाब, हमें लाचारी इस शब्द का इतना तजुर्बा हो गया है की हमने इसमें महारत हासील करली है." फिर बादल बोला, " ज़ेबा, आप और आपके अम्मी अब्बू उस रात को किसी को बीना कुछ भी बताये घर से चले गये है. यह बात मुझे सुबह पता चली तो मुझे बहोत गहरा सदमा लगा था. मै तो पागलों जैसा हो गया था और उसके बाद मेरा जीने में मन नहीं लग रहा था. मुझे बार बार ऐसा लग रहा था की मैं अपने जीवन को ख़त्म कर दूँ. के तभी मैंने सेना में शामील होने का इश्तेहार देखा अखबार में, तब मैंने यह तय किया की अगर मुझे अपनी जान देनी है तो फिर यह जान क्यों न अपने देश के लीये न्यौछावर करू, फिर मैं सेना में शामील हो गया और आज देखो आपके सामने एक सीपाही बनकर खड़ा हूँ." बादल कहते जा रहा था और ज़ेबा उसकी बातों में खोई हुई उसे सुन रही थी. एकपल के लीये वह खुद को और खुद की तकलीफों को भूल गयी थी.

    शेष अगले भाग में ......