इंतेक़ाम - भाग 25 Mamta Meena द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • तेरे मेरे दरमियान - 46

    विकास :- यही कुछ 1000 करोड़ की ।काली :- साला , एक ही बार मे...

  • ‎समर्पण से आंगे - 1

    ‎part - 1‎‎सुबह के छह बज रहे थे।‎शहर अभी पूरी तरह जागा नहीं...

  • रहनुमा

    रहनुमा आज ईद का दिन था। साहिल नमाज़ पढ़ने गए हुए थे। अंबर घर क...

  • कृष्ण–अर्जुन

    ⭐ कृष्ण–अर्जुन कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त हो चुका था।घोड़ों...

  • एक मुलाकात

    एक मुलाक़ातले : विजय शर्मा एरी(लगभग 1500 शब्दों की कहानी)---...

श्रेणी
शेयर करे

इंतेक़ाम - भाग 25


रोमी के बोले शब्द विजय के दिमाग में घूम रहे थे आज वह अकेले में बैठ कर बहुत रोया और भगवान से अपने किए की माफी मांगने लगा, आज उसे अपने बच्चों और निशा की बहुत याद आ रही थी, वह चाहता था कि निशा वापस आ जाए उसके बच्चे भी आ जाए तो वह उनके साथ हंसी-खुशी रहे, क्यों वह दौलत कमाने के चक्कर में इतना अंधा हो गया कि अपने बीवी बच्चों का दुख भी नहीं देख पाया उसके जीवन पर धिक्कार है धिक्कार है ऐसे जीवन पर ,लेकिन अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था क्योंकि उसने अपना जो पहले छोटा-मोटा कारोबार था वह भी छोड़ कर रोमी के पिता के कारोबार में अपना पूरा जी जान लगा दिया था,,,,,,

आज विजय को महसूस हो रहा था कि उसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है उसने निशा की बड़ी बुआ के घर जाकर पता लगाने की कोशिश की लेकिन निशा का उसे कोई पता नहीं चला क्योंकि जिस चौकीदार काका को निशा का पता मालूम था वह तो उस वक्त ड्यूटी पर ही नहीं थे और दूसरे नए आए चौकीदार को निशा के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं था,,,,

विजय थक हार कर घर आ गया अब रोमी के साथ रहना उसकी मजबूरी थी ,इसी तरह 2 साल और गुजर गए,,,,

अब विजय और निशा को अलग हुए 4 साल हो चुके थे इन 4 सालों में निशा ने काफी मुकाम हासिल कर लिया था, अब सुनील दत्त के साथ उसके कारोबार में निशा की पार्टनरशिप थी,,,,

संगीता ने भी काफी अच्छा मुकाम हासिल किया था लेकिन उसका मुकाम निशा से कम था,,,,,,

अब निशा का खुद का आलीशान बंगला नौकर चाकर गाड़ी सब कुछ था कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतने कम समय में निशा यह मुकाम हासिल कर सकती है ,लेकिन कहते हैं ना अगर हम किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात भी हैं हमें उसे मिलाने में लग जाती है, यही हाल निशा का था वह बस अब ऐसे मुकाम पर पहुंचना चाहती थी जहां पहुंचकर बह सब दुनिया को बता सके कि एक अकेली औरत कमजोर नहीं होती एक नारी दुर्गा का रूप होती है वह चाहे जो कर सकती है,,,,,,

निशा और विजय उसी शहर में रहते हुए भी एक दूसरे से अनजान थे ना ही इन 4 सालों में दोनों कभी एक दूसरे से मिले भी नहीं थे,,,,

तभी एक दिन सुनील दत्त ने आकर निशा को बताया कि शहर में जो विधवाओं और बेसहारा महिलाओं के लिए जो आश्रम बन रहा था ना जिसमें अकेले 50% खर्चा हमारी कंपनी की तरफ से गया था हमने उसमें 50% सहयोग दिया था जबकि बाकी का 50% शहर के अन्य लोगों ने दिया था कल उस आश्रम का उद्घाटन है,   

इसलिए हमारा जाना जरूरी है और मैं जा नहीं सकता क्योंकि मुझे एक इंपॉर्टेंट मीटिंग है इसलिए तुम चली जाना,,, 

यह सुनकर निशा बोली सर कल मेरा भी जाना नहीं हो सकता, कल मेरे बच्चों कि स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है और मुझे वहां जाना जरूरी है,,,,,

यह सुनकर सुनील दत्त कुछ सोच में डूबते हुए बोले देख लेना निशा, अगर तुम्हारा जाना हो जाए तो ठीक वरना जाना कैंसिल कर देंगे,,,,,

यह कहकर सुनील दत्त चला गया निशा भी अपने कामों में लग गई,,,,,