शहर की रौशनी से भरी शाम थी। हर तरफ सजावट, घर के बाहर झालरें, ढोल की थाप और रिश्तेदारों की चहल-पहल।
आयरा ने अपने मेहँदी लगे हाथों को देखते हुए मुस्कुराकर कहा,
“लगता है इस बार असली जंग बारात और रिश्तेदारों की शरारतों से होगी।”
अर्जुन ने उसके हाथ पकड़कर धीरे से कहा,
“तो मैं तुम्हारा सिपाही बनकर हर रस्म निभाऊँगा, चाहे फेरे हों या चिढ़ाने वाले दोस्त।”
सीमा पास खड़ी हँसते हुए बोली,
“बारातियों की चिंता मत करो, मैं संभाल लूँगी। तुम दोनों बस मोहब्बत की जंग जीतना।”
रात को मेहँदी की रस्म हुई। बगीचे में डीजे बज रहा था, लड़कियाँ डांस कर रही थीं और बच्चे शोर मचा रहे थे। आयरा की सहेलियाँ उसे छेड़ते हुए बोलीं,
“देखना अर्जुन तुम्हारा नाम अपनी बाजू पर लिखवाएगा या नहीं।”
अर्जुन हँसते हुए बोला,
“नाम तो दिल पर लिखा है, दिखाने की ज़रूरत नहीं।”
सबने तालियाँ बजाईं और शोर मचा दिया।
अगली सुबह हल्दी की रस्म थी। छोटे-छोटे बच्चे अर्जुन को हल्दी लगाकर भाग रहे थे और वह परेशान होकर हँस रहा था। सीमा ने मुस्कुराकर कहा,
“तुम्हें गोलियों से डर नहीं लगा, लेकिन इन बच्चों से हार मान ली।”
शादी की रात आई तो पूरा घर फूलों और रोशनी से जगमगा उठा। ढोल की आवाज़ पर दोस्त नाचते हुए दूल्हे की एंट्री करा रहे थे। जब आयरा दुल्हन बनकर आई, तो अर्जुन की आँखें उसी पर ठहर गईं। उसने धीरे से कहा,
“अब जिंदगी का सबसे बड़ा मिशन शुरू हो रहा है – तुम्हें हमेशा हँसाना।”
आयरा मुस्कुराई और बोली,
“और मेरा मिशन होगा तुम्हें कभी अकेला महसूस न होने देना।”
फेरों के समय सीमा की आँखों में आँसू थे। उसने कहा,
“आज साफ दिख रहा है कि असली जीत जंग की नहीं, बल्कि रिश्तों और मोहब्बत की होती है।”
शादी के बाद बगीचे में पार्टी हुई। बच्चे दौड़ रहे थे, दोस्त गा रहे थे, परिवार नाच रहा था। अर्जुन, आयरा और सीमा ने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया।
अर्जुन बोला,
“अब हमारी कहानी में हथियार और खतरे नहीं होंगे, बल्कि हँसी, प्यार और बच्चों की शरारतें होंगी।”
आयरा ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
“और हर दिन का नया मिशन होगा – घर को खुशियों से भरना।”
सुबह की पहली किरण खिड़की से भीतर आई। आयरा की आँख खुली तो उसने देखा कि अर्जुन खिड़की के पास खड़ा कॉफी पी रहा है। हल्की हवा उसके चेहरे से खेल रही थी।
आयरा मुस्कुराते हुए उठी और बोली,
“इतनी सुबह-सुबह उठकर क्या सोच रहे हो?”
अर्जुन ने बिना उसकी तरफ देखे कहा,
“सोच रहा हूँ, कल तक हम गोलियों और खतरों के बीच थे, और आज सिर्फ तुम्हारे साथ इस कमरे में हूँ। ये बदलाव अजीब भी है और खूबसूरत भी।”
आयरा ने उसके पास जाकर कप उसके हाथ से ले लिया,
“अब ये कॉफी सिर्फ तुम्हारी नहीं, हमारी होगी। और हाँ, अब तुम्हें ऑफिस नहीं, पहले मेरी मदद करनी होगी। ये शादीशुदा जिंदगी का असली टेस्ट है।”
दोनों की हँसी से कमरा गूँज उठा।
सीमा रसोई में थी, उसने आवाज़ दी,
“अरे नए-नए दूल्हा-दुल्हन, अगर प्यार-दुलार खत्म हो गया हो तो नाश्ते की मेज पर आ जाओ। वरना सासु माँ के गुस्से का सामना करना पड़ेगा।”
सब हँसते हुए डाइनिंग टेबल पर आ गए। वहाँ घरवालों की चहल-पहल, बच्चों की शरारतें और रिश्तेदारों की बातें चल रही थीं। शादी का माहौल अभी भी पूरे घर में फैला हुआ था।
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शादी के कुछ दिन बाद असली जिंदगी की शुरुआत हुई। अब सिर्फ प्यार नहीं था, बल्कि रोज़मर्रा की जिम्मेदारियाँ और आदतें भी सामने आने लगीं।
एक शाम अर्जुन लैपटॉप पर काम कर रहा था। आयरा गुस्से में बोली,
“तुम्हें पता है, शादी के बाद सबसे बड़ी शिकायत क्या होती है? पति सिर्फ काम में बिज़ी रहते हैं। और तुम वही कर रहे हो।”
अर्जुन ने हँसते हुए कहा,
“काम तो जरूरी है, वरना तुम्हें शॉपिंग कौन कराएगा?”
आयरा ने तकिया उठाकर उसके सिर पर मार दिया,
“शॉपिंग का बहाना मत बनाओ। वक्त दो, वरना मैं सीमा से शिकायत कर दूँगी।”
सीमा कमरे में आई और बोली,
“अरे तुम दोनों की नोकझोंक सुन-सुनकर तो मुझे लग रहा है मैं किसी टीवी सीरियल में आ गई हूँ।”
सब हँस पड़े और माहौल हल्का हो गया।
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वीकेंड पर अर्जुन और आयरा ने अपने दोस्तों को घर बुलाया। बगीचे में म्यूज़िक, ग्रिल पर बारबेक्यू और बच्चों की दौड़भाग से पूरा घर जीवंत हो उठा।
अर्जुन का एक दोस्त बोला,
“भाई, तेरी शादी तो हो गई, अब जल्दी-जल्दी हम सबको मामा भी बना दे।”
सब जोर-जोर से हँसने लगे और आयरा शरमा गई।
सीमा ने चिढ़ाते हुए कहा,
“अरे अभी तो घर संभालना सीख रहे हैं, बच्चे का क्या करेंगे?”
दोस्तों की हँसी, बच्चों की चीख-पुकार और परिवार की गर्मजोशी ने उस शाम को और भी खूबसूरत बना दिया।
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कुछ ही दिनों बाद अर्जुन को ऑफिस से बड़ा प्रोजेक्ट मिला। देर रात तक काम करना पड़ने लगा। आयरा को कभी-कभी अकेलापन महसूस होता था।
एक रात उसने अर्जुन से कहा,
“मुझे लगता है शादी के बाद भी तुम मुझे पहले जैसा समय नहीं दे पा रहे।”
अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
“मुझे माफ़ करना, लेकिन ये सब हमारे आने वाले कल के लिए है। मैं वादा करता हूँ कि चाहे काम कितना भी हो, हर रात तुम्हारे पास बैठकर बात ज़रूर करूँगा।”
आयरा की आँखों में चमक आ गई।
“ठीक है, लेकिन डिनर अब हमेशा साथ करेंगे, चाहे कितना भी काम क्यों न हो।”
अर्जुन मुस्कुराकर बोला,
“डील पक्की।”
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कहानी अब धीरे-धीरे उनके शादी के बाद के छोटे-छोटे मिशन, जैसे – फैमिली ड्रामा, बच्चों की शरारतें, रिश्तों की मिठास और कभी-कभी तकरार –
सुबह का वक़्त था। खिड़की से आती धूप कमरे में फैल रही थी। आयरा ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं तो देखा कि अर्जुन अब भी सो रहा है। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। आयरा को लगा जैसे यह वही आदमी है जिसने कभी खतरों और जंगों का सामना किया था, और आज उसी की बाहों में वह सबसे सुरक्षित महसूस कर रही है। उसने उसके बालों में उँगलियाँ फिराते हुए धीरे से कहा, “अब हमारी असली जंग शुरू होती है, रोज़मर्रा की। लेकिन इसमें जीत हार का मतलब बस प्यार होगा।”
दिन बीतते गए और शादीशुदा जिंदगी अपने रंग दिखाने लगी। घर में रिश्तेदार आते-जाते, बच्चों की किलकारियाँ गूँजतीं, तो कभी छोटे-छोटे झगड़े भी होते। एक शाम को जब अर्जुन काम से थक कर लौटा तो देखा कि आयरा गुस्से में दरवाज़े पर खड़ी है। उसने पूछा, “क्या हुआ?” आयरा ने जवाब दिया, “तुम्हें याद भी है आज क्या दिन है?” अर्जुन सोच में पड़ गया। उसने सिर खुजाते हुए कहा, “ऑफिस में मीटिंग थी?” आयरा ने नाराज़ होकर कहा, “नहीं, आज हमारी सगाई की सालगिरह थी। तुम भूल गए।”
अर्जुन ने पास आकर उसके दोनों हाथ थाम लिए और मुस्कुराते हुए बोला, “मैं भूला नहीं था, बस सरप्राइज़ की तैयारी में लगा था।” इतना कहते ही उसने जेब से एक छोटा सा बॉक्स निकाला। अंदर चमचमाती चेन रखी थी। आयरा का गुस्सा पल भर में पिघल गया। उसकी आँखों में नमी आ गई और बोली, “तुम मुझे हर बार हरा देते हो।” अर्जुन हँसते हुए बोला, “क्योंकि यह जंग तुम्हारे साथ हारना ही मेरी जीत है।”
सीमा दूर से यह सब देख रही थी। उसने हँसते हुए कहा, “तुम दोनों की मोहब्बत देखकर लगता है कि असली शांति अब हमारे घर में है। अब मुझे किसी और जंग से डर नहीं लगता।”
कुछ ही समय बाद परिवार में बच्चों की बातें होने लगीं। रिश्तेदार मजाक करते कि अब घर में नई किलकारियाँ कब गूँजेंगी। आयरा शर्माती और मुस्कुराकर चुप हो जाती। अर्जुन बस उसे देखकर हँसता और कहता, “जल्दी ही यह घर और बड़ा होगा।”
फिर वह दिन आया जब आयरा ने अर्जुन को खुशखबरी सुनाई। उसकी आँखों में चमक थी और आवाज़ में हल्का कंपकंपाहट। उसने धीरे से कहा, “अर्जुन, हम माता-पिता बनने वाले हैं।” अर्जुन कुछ पल के लिए चुप रह गया, फिर उसकी आँखें खुशी से भर आईं। उसने आयरा को अपनी बाहों में भर लिया और बोला, “अब तक जितनी लड़ाइयाँ लड़ीं, अब सबसे खूबसूरत लड़ाई जीतनी है—हमारे बच्चे की हँसी और उसके भविष्य के लिए।”
सीमा ने यह खबर सुनी तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, “अब सच में हमारी जिंदगी पूरी हो जाएगी। यह घर अब सिर्फ मोहब्बत से नहीं, मासूमियत और नई उम्मीदों से भी भर जाएगा।”
घर में तैयारियाँ शुरू हो गईं। आयरा की देखभाल, डॉक्टर के चेकअप, परिवार की चिंता और अर्जुन का हर पल उसके पास रहना—सबने माहौल को बदल दिया। अर्जुन अब ऑफिस से जल्दी आने लगा, दोस्तों से कम मिलता और ज्यादा वक्त आयरा के साथ बिताता। वह कभी उसके लिए आइसक्रीम लाता, कभी किताबें, और कभी सिर्फ उसके पास बैठकर बातें करता।
रात को जब दोनों कमरे में अकेले होते तो अर्जुन उसके पेट पर हाथ रखकर कहता, “मुझे लगता है जैसे मैं अभी से अपने बच्चे की धड़कन सुन पा रहा हूँ।” आयरा हँसते हुए जवाब देती, “अभी तो बस धड़कनें हैं, जब रोएगा तो तुम रातभर जागोगे।” अर्जुन कहता, “अगर रोना भी होगा तो मैं हँसते-हँसते उसकी देखभाल करूँगा।”
समय बीतता गया और परिवार खुशी-खुशी उस दिन का इंतजार करने लगा जब घर में नई जान की आवाज़ गूँजेगी।
दिन धीरे-धीरे बीत रहे थे। घर का हर कोना नई उम्मीदों से भरा हुआ था। आयरा अब पहले से ज्यादा नाज़ुक और भावुक हो गई थी। अर्जुन उसके हर कदम पर साथ रहता, कभी उसकी दवाइयाँ देता, कभी उसके लिए खाना बनाता, और कभी सिर्फ उसके पास बैठकर बातें करता।
एक सुबह अचानक दरवाज़े पर गाड़ी रुकी। आयरा ने खिड़की से देखा तो उसकी माँ उतरीं। जैसे ही माँ अंदर आईं, आयरा उनकी बाँहों में भागकर समा गई। आँखों में खुशी के आँसू थे। माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “अब मेरी बेटी अकेली नहीं रहेगी। मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे हर दर्द, हर ख्वाहिश और हर पल में तुम्हारा साथ देने के लिए।”
अर्जुन ने पास आकर झुककर उन्हें नमस्ते किया। माँ ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुमने मेरी बेटी का हाथ थामा है, अब उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना ही तुम्हारा सबसे बड़ा काम है।” अर्जुन मुस्कुराया और बोला, “माँजी, आप निश्चिंत रहिए। अब यह सिर्फ आपकी बेटी नहीं, मेरी पूरी दुनिया है।”
घर में सभी लोग आयरा का ख्याल रखने लगे। अर्जुन की माँ हर रोज़ उसके लिए हेल्दी खाना बनातीं, सीमा समय पर दवा दिलवाती और आयरा की पसंदीदा कहानियाँ सुनाती, और अर्जुन तो दिन-रात उसकी सेवा में लगा रहता। ऑफिस से लौटते ही सबसे पहले वह सीधा आयरा के पास जाता, पूछता कि दिन कैसा रहा, और फिर देर रात तक उसके साथ बैठा रहता।
एक शाम आयरा थोड़ी उदास थी। उसने कहा, “अर्जुन, मुझे डर लगता है। पता नहीं सब ठीक होगा या नहीं।” अर्जुन ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, “तुम्हें अकेला महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ। और जब हमारा बच्चा आएगा, तो वह हमारी मोहब्बत का सबसे खूबसूरत तोहफ़ा होगा। बस तुम मुझ पर भरोसा रखना।”
उसकी बात सुनकर आयरा की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन इस बार डर के नहीं, बल्कि सुकून के थे। उसने अर्जुन के सीने पर सिर रख दिया।
आयरा की माँ अक्सर अर्जुन को देखतीं और मन ही मन सोचतीं कि उनकी बेटी सच में खुशकिस्मत है। एक रात उन्होंने अर्जुन से कहा, “बेटा, तुमसे ज्यादा समर्पित पति मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा। तुम आयरा का ख्याल ऐसे रखते हो जैसे वह कोई नाजुक फूल हो।” अर्जुन ने विनम्रता से जवाब दिया, “क्योंकि वह सच में मेरी सबसे बड़ी ताकत और मेरी सबसे बड़ी कमजोरी दोनों है। अगर वह मुस्कुराती है, तो मैं जीत जाता हूँ, और अगर वह रोती है, तो मुझे लगता है सब हार गया।”
बच्चे के आने की तैयारियाँ भी शुरू हो गई थीं। कमरे में छोटे-छोटे कपड़े, झूला, खिलौने और रंग-बिरंगे पर्दे लगाए जाने लगे। अर्जुन अक्सर उन खिलौनों को देखकर हँस पड़ता और कहता, “मुझे लगता है मैं भी बच्चा बन जाऊँगा, इनके साथ खेलने के लिए।”
घर का हर सदस्य एक-दूसरे से पहले आयरा की खैरियत पूछता। किसी दिन माँ उसके लिए कोई घरेलू नुस्खा बनातीं, तो किसी दिन सीमा उसके साथ बैठकर उसकी पसंदीदा बातें करती। अर्जुन हर रात उसके पास बैठकर उसका हाथ पकड़कर नींद में भी पहरा देता।
जैसे-जैसे समय नज़दीक आ रहा था, पूरे घर में हल्की-हल्की बेचैनी और उत्सुकता बढ़ रही थी। हर कोई बस उस पल का इंतज़ार कर रहा था जब घर में बच्चे की पहली किलकारी गूँजेगी।
रात का सन्नाटा था, लेकिन घर के अंदर बेचैनी साफ़ महसूस हो रही थी। आयरा का वक़्त नज़दीक आ चुका था। अर्जुन उसका हाथ थामे अस्पताल के कमरे में खड़ा था। उसकी आँखों में डर भी था और उम्मीद भी। आयरा पसीने से भीगी हुई थी, लेकिन उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। उसने धीरे से कहा, “अर्जुन, अगर मैं कमज़ोर पड़ जाऊँ तो तुम मुझे संभाल लेना।”
अर्जुन ने तुरंत उसका माथा चूमते हुए कहा, “कमज़ोर तुम नहीं, मैं हूँ। तुम सबसे मज़बूत हो। और मैं वादा करता हूँ, तुम्हारे साथ रहूँगा, चाहे कुछ भी हो।”
बाहर सीमा, अर्जुन की माँ और आयरा की माँ बेचैन होकर टहल रही थीं। सबके दिल की धड़कनें तेज़ थीं। हर कोई दुआ कर रहा था कि सब सही सलामत हो।
घंटों की जद्दोजहद के बाद आखिरकार वह पल आया। कमरे में बच्चे की पहली चीख गूँजी। जैसे ही डॉक्टर बाहर आए, उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “बधाई हो, बेटी हुई है।”
घर के अंदर और बाहर खुशी की लहर दौड़ गई। अर्जुन ने बेटी को पहली बार अपनी बाँहों में लिया। छोटी सी मासूम, गुलाबी चेहरे वाली बच्ची उसकी उँगली कसकर पकड़ रही थी। अर्जुन की आँखें भर आईं। उसने आयरा की तरफ देखा और बोला, “ये हमारी मोहब्बत का सबसे खूबसूरत रूप है।”
आयरा थकी हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी। उसने कहा, “अब हमारी दुनिया पूरी हो गई।”
अगले ही दिन घर में जश्न का माहौल था। बच्चे के लिए छोटे-छोटे कपड़े, झूला और खिलौने सजाए गए। परिवार और रिश्तेदार सब दौड़ते-भागते आयरा और नन्ही बच्ची का ख्याल रखते। आयरा की माँ उसे दवाइयाँ और पौष्टिक खाना देतीं, अर्जुन की माँ बच्ची को प्यार से झुलातीं, और सीमा अक्सर बच्ची को गोद में लेकर कहती, “ये हमारी नई शेरनी होगी।”
अर्जुन अब और भी बदल गया था। वह दिन-रात बच्ची के पास रहता। रात को जब बच्ची रोती तो आयरा थकी हुई होती। अर्जुन तुरंत उठकर उसे गोद में ले लेता और धीरे-धीरे सुलाता। आयरा उसे देखती रहती और सोचती, “शायद यही असली मोहब्बत है।”
एक शाम आयरा खिड़की के पास बैठी थी, बच्ची उसकी गोद में सो रही थी। अर्जुन ने पीछे से आकर उसे हल्के से गले लगाया और कहा, “अब मुझे लगता है कि हम सच में विजेता हैं। हमने हर जंग जीती, लेकिन यह जीत सबसे बड़ी है।”
आयरा ने उसकी तरफ देखते हुए जवाब दिया, “अब हमारे छोटे-छोटे मिशन बदल गए हैं। कभी बच्ची को सुलाना होगा, कभी उसकी मुस्कान पाना। और यही हमारे जीवन की सबसे खूबसूरत लड़ाई होगी।”
पूरा घर हर पल उस बच्ची की किलकारी से गूँजता रहता। मोहब्बत, अपनापन और परिवार की गर्मजोशी ने उस घर को सच में स्वर्ग बना दिया था।
अस्पताल से घर लौटते ही सब कुछ बदल गया। वह छोटा सा घर, जो अब तक हँसी और बातों से भरा था, अब एक नए जीवन की मासूम किलकारियों से गूँजने लगा। हर कोना, हर दीवार जैसे उस बच्ची की साँसों के साथ जीने लगी थी।
आयरा पलंग पर लेटी थी, उसकी गोद में नन्ही परी सोई हुई थी। उसका चेहरा गुलाबी था, आँखें बंद और होंठों पर हल्की सी मुस्कान। अर्जुन पास बैठा उसे देख रहा था। उसके चेहरे पर ऐसी चमक थी, जैसी उसने कभी किसी मिशन जीतने के बाद भी महसूस नहीं की थी। उसने धीरे से अपनी उँगली बच्ची की छोटी सी हथेली में रखी। बच्ची ने तुरंत कसकर पकड़ लिया। अर्जुन की आँखें भर आईं। वह बोला, “आयरा, देखो... इसे लगता है कि मैं ही इसकी पूरी दुनिया हूँ।”
आयरा मुस्कुराई, उसकी आँखें भी नम हो गईं। उसने कहा, “हाँ अर्जुन, अब यह हमारी दुनिया है। हमारी सबसे प्यारी जीत।”
घर में दादा-दादी यानी अर्जुन के माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। दादी हर वक्त बच्ची के पास बैठतीं, गातीं और कहतीं, “मेरी गुड़िया तो घर की रौनक बन गई है।” दादा भी बच्चे को गोद में उठाकर मोहल्ले में शान से दिखाते, जैसे यह उनकी सबसे बड़ी दौलत हो।
आयरा की माँ यानी नानी ने आते ही पूरा घर अपने स्नेह से भर दिया। वह आयरा का भी ख्याल रखतीं और बच्ची का भी। जब भी बच्ची रोती, वह अपनी गोदी में लेकर कहतीं, “मेरी बिटिया तो अपनी माँ की तरह जिद्दी निकली। रोएगी तभी जब सब उसे मनाएँगे।” घर के बाकी लोग हँसते और माहौल खिल उठता।
सीमा का प्यार तो सबसे अलग था। वह जब बच्ची को गोद में लेती, तो खुद भी बच्ची बन जाती। कभी उसे गुदगुदाती, कभी उससे बातें करती जैसे वह सब समझ रही हो। अर्जुन छेड़ते हुए कहता, “सीमा, यह मेरी बेटी है, तुम्हारी दोस्त नहीं।” सीमा हँसकर जवाब देती, “अब यह मेरी पार्टनर इन क्राइम है। देखना, जब यह बड़ी होगी तो तुम्हें सबसे ज्यादा मेरे खिलाफ खड़ा करेगी।” सब ठहाके लगाते।
अर्जुन के दोस्त भी अक्सर घर आते। वे नन्हीं परी को देखकर खिलौने, कपड़े और चॉकलेट लाते। एक दिन उसका सबसे करीबी दोस्त बोला, “भाई, अब तू बदल गया है। पहले तेरी आँखों में मिशन था, अब बस बेटी की मुस्कान है।” अर्जुन हँसकर बोला, “क्योंकि यही मेरी जिंदगी का असली मिशन है।”
रातें सबसे खास होती थीं। बच्ची जब रोती तो अर्जुन तुरंत उठ जाता। आयरा अक्सर कहती, “थोड़ा सो जाओ, मैं संभाल लूँगी।” लेकिन अर्जुन हँसकर कहता, “तुमने उसे जन्म दिया है, अब मैं उसे सुलाकर तुम्हें आराम दूँगा।” वह गोद में लेकर धीरे-धीरे टहलता और गुनगुनाता, जब तक बच्ची फिर से नींद में न खो जाती। आयरा यह सब देखती और उसका दिल अर्जुन के लिए और भी भर आता।
एक दिन बच्ची ने पहली बार मुस्कुराया। वह मुस्कान इतनी मासूम थी कि पूरा घर जैसे ठहर गया। सब दौड़कर उसके पास आए। दादी ने कहा, “देखो, मेरी गुड़िया ने अपनी दादी को देखा और हँस दी।” नानी बोलीं, “नहीं-नहीं, यह अपनी माँ की आवाज़ सुनकर हँसी है।” सीमा ने तुरंत कह दिया, “गलत, यह मुझे देखकर मुस्कुराई है।” सब हँसी में डूब गए। अर्जुन ने बस चुपचाप अपनी बेटी को देखा और सोचा, “यह जब भी मुस्कुराएगी, मेरी जिंदगी के सारे ग़म मिट जाएँगे।”
धीरे-धीरे बच्ची की दिनचर्या परिवार की दिनचर्या बन गई। वह कब सोती, कब रोती, कब हँसती—सब उसी के हिसाब से चलता। अर्जुन का ऑफिस भी अब उसकी प्राथमिकता में पीछे हो गया था। वह काम से जल्दी लौटता, सीधा बेटी के पास जाता और घंटों उसके साथ खेलता। कभी उसकी छोटी उँगलियाँ गिनता, कभी उसके गालों को सहलाता, कभी बस उसे अपनी बाँहों में लेकर खामोश बैठा रहता।
आयरा को अब एहसास होने लगा कि यह बच्ची सिर्फ उनकी मोहब्बत का प्रतीक नहीं, बल्कि पूरे परिवार को जोड़ने वाला धागा है। वह देखती कि कैसे दादी उसे कहानियाँ सुनातीं, नानी गाना गातीं, सीमा उसके साथ खेलती, अर्जुन उसे गोद से उतारना ही नहीं चाहता, और हर रिश्तेदार उस पर जान छिड़कता।
उस घर में अब कोई अकेला नहीं था। सबका दिल उस नन्हीं जान की धड़कन से जुड़ गया था। हर दिन एक नया रंग लाता, हर पल नई खुशी।
दिन बीतते-बीतते बच्ची अब घर की धड़कन बन चुकी थी। उसके बिना किसी को चैन नहीं आता। सुबह जब वह रोती तो पूरा घर भागकर उसके पास पहुँच जाता और जब वह हँसती तो जैसे पूरा घर उजाले से भर जाता। अब सबके मन में एक ही सवाल था – इस नन्हीं परी का नाम क्या रखा जाए।
एक शाम सब बैठक में बैठे थे। दादी बोलीं, “नाम तो बहुत सोच-समझकर रखना होगा। यह हमारी कुल की पहचान बनेगी।” नानी ने कहा, “नाम ऐसा हो जिसमें मिठास हो और मासूमियत भी।” सीमा ने मजाक किया, “नाम चाहे जो रखो, पर उसे घर में तो मैं अपनी गुड़िया ही कहूँगी।”
अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “नाम मैं रखना चाहता हूँ। यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफ़ा है।” सबकी नज़रें उसकी ओर टिक गईं। अर्जुन ने बच्ची को गोद में लेकर कहा, “जब इसे पहली बार देखा था तो लगा जैसे यह हमारे अंधेरों में रोशनी बनकर आई है। इसलिए इसका नाम होगा ‘अनाया’।”
आयरा की आँखें चमक उठीं। उसने कहा, “सच में, यह नाम इस पर बिल्कुल सूट करता है। हमारी नन्हीं रोशनी – अनाया।” पूरा घर ताली बजाने लगा। दादी ने उसके माथे को चूम लिया और बोलीं, “अब यह नाम हमारे घर की पहचान बनेगा।”
नामकरण के बाद परिवार ने तय किया कि बच्ची के आने की खुशी में एक भव्य उत्सव रखा जाएगा। तैयारी कई दिनों तक चलती रही। पूरा घर फूलों से सजाया गया, रंग-बिरंगी झालरों से हर कोना जगमगा उठा। आँगन में बड़ा मंडप सजाया गया, जिस पर सुनहरी सजावट और फूलों की खुशबू फैली हुई थी।
उत्सव के दिन सुबह से ही रिश्तेदार आने लगे। मोहल्ले के लोग भी सजधजकर पहुँचे। शहर की मशहूर हस्तियाँ, बड़े अधिकारी और पुराने साथी सब आमंत्रित थे। ढोल-नगाड़ों की गूँज से माहौल और भी रौनकदार हो गया। बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर दौड़ते फिर रहे थे। महिलाएँ गीत गा रही थीं, पुरुष हँसी-मज़ाक में मशगूल थे।
जब अर्जुन और आयरा अनाया को गोद में लेकर मंडप पर आए तो सबकी नज़रें उसी पर टिक गईं। अनाया गुलाबी कपड़ों में किसी परी की तरह लग रही थी। उसकी मासूम मुस्कान देखकर सब मंत्रमुग्ध हो गए।
अर्जुन के दोस्तों ने मंच पर चढ़कर मज़ाक किया, “भाई, अब असली डॉन बन गया है तू। शहर भर की नज़र अब तेरी बेटी पर है।” सब हँसी में डूब गए।
आयरा की माँ की आँखों में आँसू थे। उन्होंने कहा, “आज मेरी बेटी का घर सच में स्वर्ग बन गया है।” अर्जुन की माँ ने जोड़कर कहा, “और यह बच्ची हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफ़ा है।”
उत्सव में गीत-संगीत, नृत्य और पकवानों की बहार थी। बड़े-बड़े मेहमान जब बच्ची को आशीर्वाद देने आए तो अर्जुन गर्व से मुस्कुराता। हर कोई कहता, “यह बच्ची सच में भाग्यशाली है, इसके आने से यह घर सोने सा चमक उठा है।”
सीमा बच्ची को गोद में लिए इधर-उधर घूम रही थी और सबको कह रही थी, “देखो, यह मेरी शेरनी है। जब बड़ी होगी तो सबको मात देगी।” लोग हँसते और कहते, “सीमा, तुम तो अभी से इसके सपनों की दुनिया बनाने लगी।”
रात ढलने तक उत्सव चलता रहा। ढोल-नगाड़े, गीत, आतिशबाज़ी और हँसी से पूरा घर और शहर जैसे गवाह बन गया उस मासूम खुशी का।
आख़िर में अर्जुन ने सबके सामने खड़े होकर कहा, “आज मैं बहुत गर्व से कह सकता हूँ कि मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत यही है। अनाया ने हमें पूरा कर दिया। अब हमारी हर साँस, हर कोशिश, हर कदम सिर्फ इसी के लिए होगा।”
भीड़ ने तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत किया। आयरा ने अर्जुन की तरफ देखा, उसकी आँखों में संतोष था। उसने सोचा, “जिस इंसान ने मुझे हमेशा सुरक्षित रखा, वही अब मेरी बेटी का सबसे बड़ा सहारा है।”
उस रात जब सब मेहमान चले गए, घर शांत हो गया। लेकिन उस शांति में भी अनाया की मासूम साँसों की गूंज थी, जैसे पूरा घर उसकी धड़कनों से जुड़ गया हो।
अनाया अब धीरे-धीरे घर की धड़कन ही नहीं, पूरे मोहल्ले की जान बन चुकी थी। सुबह होते ही उसकी मीठी किलकारियाँ पूरे आँगन में गूँजने लगतीं। दादी उसके लिए लकड़ी की पालना तैयार करवातीं और उसमें रंग-बिरंगे झुनझुने टाँग देतीं। जब अनाया झुनझुने को पकड़ने की कोशिश करती और अपने नन्हें-नन्हें हाथ फैलाकर हँसती तो पूरा घर उसके पीछे भागने लगता।
नानी हर सुबह उसके लिए खिलौनों से भरा टोकरी ले आतीं और कहतीं, “मेरी गुड़िया के लिए रोज़ नया तोहफ़ा होगा।” सीमा तो हर वक्त उसे गोद में लिए रहती। अर्जुन अक्सर हँसते हुए कहता, “सीमा, तूने तो इसे अपनी बेटी बना लिया है।” और सीमा गर्व से जवाब देती, “हाँ, ये मेरी शेरनी है, जब बड़ी होगी तो पूरे शहर को हैरान कर देगी।”
अर्जुन की दोस्तों की टोली भी अक्सर घर आती। जब वे अनाया के पास जाते तो बच्ची अपनी मासूम आँखों से उन्हें देखती और हँस देती। दोस्त मज़ाक में कहते, “भाई, अब तेरा असली बॉस ये है। जो बोलेगा वही करना पड़ेगा।” अर्जुन मुस्कुराकर कहता, “हाँ, ये मेरी असली रानी है।”
दिन-ब-दिन अनाया की मासूम हरकतें सबको बाँध लेतीं। एक दिन जब वह पेट के बल रेंगने लगी तो पूरा घर तालियाँ बजाने लगा। दादी ने खुश होकर कहा, “अब देखना, यह जल्दी ही पैरों पर खड़ी हो जाएगी।” आयरा की आँखों में चमक थी। उसने अर्जुन से कहा, “देखो, यह हर कदम के साथ हमारी मोहब्बत को आगे बढ़ा रही है।”
कुछ महीनों बाद एक सुबह का नज़ारा घरवालों के लिए अनमोल था। अनाया ने पहली बार शब्द निकाला। उसने अपनी तोतली ज़ुबान से कहा – “मा…”। आयरा की आँखों से आँसू छलक पड़े। उसने बच्ची को सीने से लगाकर कहा, “हाँ, मैं तेरी माँ हूँ।” अर्जुन पास खड़ा था और उसकी आँखों में गर्व झलक रहा था। उसने हँसते हुए कहा, “अब देखना, अगला शब्द ‘पापा’ ही होगा।”
सच ही, कुछ दिनों बाद जब अर्जुन उसे गोद में लिए खेल रहा था, अनाया ने अचानक कहा, “पा…”। अर्जुन का चेहरा खिल उठा। उसने पूरे घर में आवाज़ लगाई, “सुनो, मेरी बेटी ने मुझे बुलाया है। अब मैं दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान हूँ।” पूरा घर हँसी और तालियों से गूँज उठा।
उसकी पहली चाल का दिन भी सबके लिए जश्न से कम नहीं था। अनाया सहारे से खड़ी हुई और डगमगाते कदमों से आयरा की ओर बढ़ी। आयरा की आँखों में आँसू थे, अर्जुन ने उसे कसकर गले लगा लिया। दादी और नानी दोनों खुशी से झूम उठीं। सीमा ने कहा, “देखा, मैंने कहा था न, ये हमारी शेरनी है।”
अब घर में हर दिन एक उत्सव जैसा होता। कभी अनाया की हँसी गूँजती, कभी उसकी नन्हीं शरारतें सबको हँसातीं। अर्जुन अब और भी जिम्मेदार हो गया था। वह अक्सर रात को देर से लौटता तो भी बच्ची की मुस्कान देखने के लिए उसके पास जाता। जब अनाया उसकी उँगली पकड़ लेती तो उसका सारा थकान मिट जाती।
आयरा अक्सर खिड़की पर बैठकर बच्ची को सीने से लगाए सोचती, “यह बच्ची सिर्फ़ मेरी नहीं, पूरे परिवार की धड़कन है। इसके आने से हमारे रिश्तों में जो मिठास आई है, वह हमें हमेशा जोड़कर रखेगी।”
घर का हर कोना अब अनाया की मासूमियत से महक उठा था। हर दिन नए रंग, नई खुशबू और नई उम्मीदें लेकर आता था।
अनाया का पहला जन्मदिन घर के लिए किसी त्योहार से कम नहीं था। पूरे घर और आँगन को फूलों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था। दादी ने अपने हाथों से छोटे-छोटे कपड़े सिलकर रखे थे, नानी ने स्वादिष्ट मिठाईयाँ बनाई थीं, और सीमा ने रंग-बिरंगे गुब्बारे और खिलौने हर कोने में रख दिए थे।
आयरा ने सुबह से ही अनाया को खास कपड़े पहनाए। उसका छोटा सा गाउन गुलाबी और सफेद रंगों में था। अनाया की आँखों में जिज्ञासा और मासूमियत दोनों झलक रहे थे। अर्जुन भी तैयार हो चुका था। उसने हँसते हुए कहा, “देखो, हमारी छोटी परी आज सबसे खूबसूरत राजकुमारी लग रही है।” आयरा मुस्कुराई और बोली, “और मेरे राजा, तुम उसकी आँखों का सबसे बड़ा हीरो हो।”
पार्टी के लिए शहर की मशहूर हस्तियाँ और करीबी दोस्त सब आ चुके थे। हर कोई बच्चे के लिए तोहफ़े लेकर आया और उसकी मुस्कान देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। ढोल की थाप और गीत-संगीत से पूरा आँगन गूँज रहा था।
अर्जुन और आयरा ने मिलकर अनाया के लिए एक छोटा सा मंच बनाया। उस पर एक सुनहरी झूला रखी थी जिसमें अनाया बैठ सकती थी। जब अनाया झूले में बैठी तो उसकी नन्हीं किलकारियों ने सबको अपनी ओर खींच लिया। दादी और नानी उसके पास बैठकर lullaby गा रही थीं। सीमा उसे गोद में लेकर घुमा रही थी और हँसते हुए कह रही थी, “देखो, यह हमारी शेरनी है।”
अर्जुन ने पास आकर अनाया का हाथ पकड़कर कहा, “आज का दिन सिर्फ तुम्हारा है। यह दिन हम सबके लिए खुशी का पर्व है।” आयरा ने मुस्कुराकर कहा, “और हर साल हम इसे और भी रंगीन बनाएँगे। यह हमारी जिंदगी की सबसे खूबसूरत शुरुआत है।”
जैसे ही केक कटने का समय आया, सबने हाथ उठाकर गाना शुरू किया। अनाया ने पहली बार केक को छुआ और चखने की कोशिश की। उसकी छोटी-छोटी उँगलियाँ क्रीम में लगी थीं। अर्जुन ने उसे प्यार से कहा, “देखो, यही हमारी मेहनत का फल है। हमारी छोटी परी, हमारी खुशी।” आयरा ने भी उसे गोद में उठाकर कहा, “तुम्हारी हँसी ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा उपहार है।”
पार्टी के बाद सबने मिलकर अनाया के लिए फोटो खिंचवाए। उसके छोटे-छोटे कदमों, मुस्कान और खेल-कूद को कैद किया गया। दादी और नानी बार-बार कह रही थीं, “हमारी बिटिया सच में सबकी धड़कन बन गई है।” सीमा ने हँसते हुए कहा, “यह हमारी शेरनी है, इसका कोई मुकाबला नहीं।”
रात को जब सब घर लौट गए, अर्जुन ने अनाया को गोद में लेकर खिड़की के पास बैठा लिया। उसने धीरे से कहा, “देखो, अनाया, आज का दिन तुम्हारे नाम लिखा गया। यह हमारी जिंदगी की पहली बड़ी खुशी थी और यह हमेशा याद रहेगी।” अनाया ने उसकी उँगली कसकर पकड़ लिया। अर्जुन की आँखें भर आईं। आयरा भी पास बैठकर मुस्कुराती रही, सोच रही थी कि इस छोटी-सी किलकारी ने कैसे पूरे घर को अपनी मासूमियत से जोड़ दिया।
उस रात पूरे घर में प्यार और अपनापन गूँज रहा था। अनाया की मासूम हँसी और परिवार का प्यार इस घर को सच में स्वर्ग बना रहा था।
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लेकिन जैसे ही कोई भी खुशियों में खो जाता है, नज़र रखने वाला कोई छुपकर मुसीबत की राह तैयार कर देता है। किसी ने अनाया की मासूमियत और पूरे परिवार की खुशियों पर नजर गड़ाई।, अचानक एक दिन अनाया गायब हो जाती है।
घर में हँसी और खेल-कूद अचानक चीख-पुकार और चिंता में बदल जाती है।
अर्जुन का दिल जैसे रुक सा गया हो। उसने ठान लिया कि चाहे कितना भी अंधेरा, चाहे कोई भी खतरा, वह अपनी बेटी को वापस लाकर घर में फिर से मुस्कान और खुशियाँ लाएगा।
जो व्यक्ति अनाया को ले गया है, उसकी पहचान अभी पूरी तरह सामने नहीं आए हैं। क्या यह कोई पुराना दुश्मन है, या सिर्फ़ किसी लालच की वजह से?
सब कुछ अब अगले भाग में खुलकर सामने आएगा। पूरे परिवार का साथ इस चुनौती में सबसे बड़ी ताकत बनेगा।