Kahani Maksud Raja ki Makshudh Raja द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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Kahani Maksud Raja ki

अध्याय 1 — “राजनीति की आंधी”

सुलतानगढ़ के आसमान में धूल का तूफ़ान उठा हुआ था।
लोगों के चेहरों पर डर था, पर मकसूद राजा की आँखों में सिर्फ़ युद्ध की चमक थी।
वो तलवार के साथ पैदा हुआ था, और उसी के साथ जीना जानता था।
पर आज की लड़ाई मैदान में नहीं — दरबार में लड़ी जानी थी।

दरबार में जब मंत्री ने कहा —

> “महाराज, अगर देवगढ़ से संधि नहीं की गई, तो सुलतानगढ़ पर हमला तय है।”



मकसूद राजा उठे, उनकी भारी आवाज़ गूँजी —

2> “जो ताज सर झुकाकर बचे, वो ताज नहीं, बेड़ियाँ हैं।”



सारा दरबार खामोश हो गया।
फिर अचानक एक दूत आया, जिसने ख़बर दी —

> “देवगढ़ की रानी रूहानारा ने संदेश भेजा है… वो बात करना चाहती हैं।”



वो नाम सुनते ही मकसूद राजा की आँखों में एक पल को सन्नाटा उतर आया।
वो वही रानी थी, जिसने कभी उनकी ज़िंदगी बचाई थी,
और फिर बिना कुछ कहे चली गई थी —
पीछे छोड़ गई थी बस यादें और सवाल।

अब वही रानी लौट रही थी,
लेकिन इस बार किसी प्रेम कहानी के लिए नहीं —
3एक राजनीतिक गठबंधन के लिए।

मकसूद राजा ने आसमान की ओर देखा और बुदबुदाए —

> “रूहानारा… अगर ये राजनीति है, तो मैं दिल से लड़ूँगा — पर झुकूँगा नहीं।”



दरबार के बाहर तूफ़ान ज़ोर पकड़ चुका था,
और अंदर — राजनीति का खेल शुरू हो चुका था।


जब रूहानारा का संदेश आता है और मकसूद राजा जान जाते हैं कि अब राजनीति सिर्फ दरबार की नहीं, दिल की भी होगी।


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📜 अध्याय 2 — “रूहानारा का आगमन”

महल की दीवारों पर शाम का सूरज उतर रहा था।
राज्य की हवाओं में उस दिन एक अजीब-सी खामोशी थी — जैसे सब कुछ रुक गया हो, बस किसी के आने का इंतज़ार कर रहा हो।

दूर से घोड़ों की टाप सुनाई दी।
सुलतानगढ़ के फाटक खुले, और भीतर दाख़िल हुई — रूहानारा।
सुनहरी पोशाक में लिपटी, आँखों में वही पुरानी चमक, पर चेहरा… अब पहले से ज्यादा सख़्त।

मकसूद राजा दरबार की सीढ़ियों पर खड़े थे।
जैसे ही रूहानारा ने नज़र उठाई, कुछ पल के लिए वक्त ठहर गया।
दोनों की आँखों में सवाल थे — पर ज़ुबानें खामोश।

> “काफी समय हो गया, मकसूद।” — रूहानारा की आवाज़ में ठंडक थी,
“राजनीति के रास्ते पर तुम्हारा नाम बहुत सुना है।”



मकसूद राजा मुस्कुराए, मगर उनकी मुस्कान में एक चुभन थी।

> “नाम तो हर कोई सुनता है, रूहानारा।
लेकिन उस नाम के पीछे कितने ज़ख्म हैं, ये कोई नहीं जानता।”



दरबार के लोग चुपचाप उस टकराव को देख रहे थे —
जहाँ शब्द तलवारों से तेज़ थे, और नज़रें हथियार बन चुकी थीं।

रूहानारा आगे बढ़ीं, सिंहासन के सामने आकर बोलीं —

> “देवगढ़ शांति चाहता है, सुलतानगढ़ स्थिरता।
अगर हमारे राज्य मिल जाएँ, तो ये ज़मीन अमर हो सकती है।”



मकसूद राजा ने कहा,

> “और अगर हमारे दिल अलग हों तो?
तब ये गठबंधन ताज बचाएगा या दिल तोड़ेगा?”



रूहानारा ने नज़र झुका ली।
उनके होंठ काँपे — पर वो कुछ बोली नहीं।
वो राजनीति के लिए आई थीं…
पर उस एक नज़र ने उनके दिल की दीवारें हिला दी थीं।

महल के बाहर रात उतर चुकी थी,
और भीतर — एक नई कहानी का जन्म हो चुका था।

> अब राजनीति सिर्फ ताज की नहीं रही…
ये जंग अब मोहब्बत और सत्ता दोनों