खूनी हवेली Vijay Sharma Erry द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खूनी हवेली




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खूनी हवेली

✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी


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प्रस्तावना

अजनाला से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर, गाँव की एक ऊँची पहाड़ी पर सदियों पुरानी एक हवेली खड़ी थी। लोग उसे "खूनी हवेली" कहते थे। कहा जाता था कि वहाँ रात को अजीब रोशनी झिलमिलाती है, चीखें सुनाई देती हैं, और जो भी हवेली में गया, ज़िंदा वापस नहीं लौटा। गाँव वाले डर से उस रास्ते पर भी शाम ढलने के बाद नहीं जाते।

पर सच्चाई क्या थी?
क्या हवेली में सचमुच भूत-प्रेत थे?
या फिर कोई और रहस्य छिपा था?

यह जानने के लिए चार दोस्तों ने उस हवेली का रहस्य सुलझाने का निश्चय किया…


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पहला अध्याय – दोस्तों की टोली

चारों दोस्त बचपन से साथ थे।

1. राहुल – निडर और साहसी।


2. किरण – पढ़ाकू और थोड़ी डरपोक।


3. विक्रम – मजाकिया लेकिन दिल का साफ।


4. सोनिया – समझदार और संवेदनशील।



एक दिन गाँव के चौपाल पर हवेली की चर्चाएँ सुनकर विक्रम ने मजाक में कहा –
विक्रम (हँसते हुए): "अरे, ये सब अफवाह है। भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती।"
किरण (सहमकर): "तुम ऐसे कैसे कह सकते हो? कितने लोग वहाँ गए और वापस नहीं आए।"
राहुल: "मैं भी यही सोच रहा था। क्यों न हम चारों हवेली का सच जानें?"
सोनिया: "राहुल! ये खेल नहीं है।"
राहुल: "सोनिया, डर से सच छिपा नहीं रहता। हमें जाना चाहिए।"

आख़िर तय हुआ – अगले शनिवार की रात, चारों दोस्त हवेली का रुख करेंगे।


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दूसरा अध्याय – हवेली का पहला दर्शन

शनिवार की रात चाँदनी में चारों साइकिलों पर हवेली की ओर निकले।
हवेली ऊँचे दरवाज़ों, टूटी दीवारों और झाड़ियों में घिरी थी। काले कौवे ऊपर मंडरा रहे थे।

सोनिया (धीमे स्वर में): "ये जगह सचमुच डरावनी है।"
विक्रम (हँसकर): "डर तो मुझे तुम्हारी आवाज़ से लग रहा है।"
किरण: "चुप रहो विक्रम! कुछ आवाज़ आई थी…"

सचमुच, हवेली के अंदर से धीमी चीख सुनाई दी।
चारों के कदम ठिठक गए।

राहुल ने टॉर्च जलाकर दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा चर्र-चर्र की आवाज़ करता खुला और सब अंदर गए।


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तीसरा अध्याय – रहस्यमयी हवेली

अंदर घुप्प अंधेरा था। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं, जिनकी आँखें मानो उनका पीछा कर रही हों। फर्श पर खून जैसे धब्बे थे।

अचानक एक कमरा दिखा, जिसके दरवाज़े पर खून से लिखा था – “वापस जाओ।”

किरण (काँपते हुए): "देखा? मैंने कहा था यहाँ आना ठीक नहीं।"
राहुल: "ये हमें डराने के लिए लिखा गया है। सच्चाई और गहरी है।"

चारों अंदर बढ़े। तभी तेज़ हवा चली, खिड़की बंद हुई और सब चौक उठे।


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चौथा अध्याय – हवेली का इतिहास

हवेली की पुरानी डायरी उन्हें मेज़ पर मिली। उसमें लिखा था –
"इस हवेली के मालिक ठाकुर रणवीर सिंह थे। उनकी पत्नी और बेटी की रहस्यमयी मौत यहीं हुई थी। इसके बाद हवेली सुनसान हो गई। गाँव वाले कहते हैं कि उनकी आत्माएँ अब भी यहीं भटकती हैं।"

सोनिया (पढ़ते हुए): "मतलब हवेली सचमुच खून से रंगी है…"
राहुल: "नहीं सोनिया, सच्चाई इतनी आसान नहीं।"


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पाँचवाँ अध्याय – खून के धब्बे

जैसे ही वे तहख़ाने में पहुँचे, फर्श पर ताज़ा खून की बूंदें दिखीं।
विक्रम (घबराकर): "ये तो अभी का है! मतलब कोई यहाँ है।"

अचानक दीवार से एक नकली पैनल खिसका और अंदर से एक नकाबपोश आदमी बाहर आया। उसके हाथ में खंजर चमक रहा था।

किरण (चीखकर): "भूत!"
राहुल (गुस्से में): "नहीं, ये इंसान है!"

चारों भागकर ऊपर की ओर दौड़े, मगर हवेली का दरवाज़ा अपने-आप बंद हो गया।


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छठा अध्याय – जान का खेल

नकाबपोश उनका पीछा कर रहा था। हवेली की दीवारें उसकी परछाई से भर गई थीं।
राहुल ने बहादुरी से उसका सामना किया, लेकिन वह रहस्यमयी आदमी छिप गया।

तभी हवेली के अंदर से और भी अजीब आवाज़ें आईं – जैसे किसी लड़की की रोने की सिसकियाँ।

सोनिया (धीमे स्वर में): "ये कोई और है… शायद उसी बेटी की आत्मा!"
राहुल: "या फिर किसी की मदद की पुकार।"

वे आवाज़ के पीछे गए और एक ताले लगे कमरे तक पहुँचे।


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सातवाँ अध्याय – कैद लड़की

दरवाज़ा तोड़कर देखा तो अंदर एक लड़की बंधी पड़ी थी।
उसने रोते हुए कहा –
लड़की: "मुझे बचाइए… मैं पूजा हूँ।"
सोनिया: "तुम यहाँ कैसे?"
पूजा: "मुझे हवेली का रहस्य पता चल गया था। इसलिए उन्होंने मुझे यहाँ कैद कर लिया।"

राहुल: "कौन 'उन्होंने'?"
पूजा कुछ कह पाती, इससे पहले नकाबपोश फिर आ धमका।


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आठवाँ अध्याय – परतें खुलती हुई

चारों और पूजा ने किसी तरह नकाबपोश से बचकर तहख़ाने की और जाँच की।
वहाँ उन्होंने देखा – हवेली के अंदर अफीम और हथियारों का गुप्त भंडार था!

राहुल: "समझ गया! ये हवेली डरावनी कहानियों के बहाने तस्करी का अड्डा है।"
किरण: "मतलब गाँव वालों को भूतों से डराकर दूर रखा जाता है।"

अब सब साफ हो गया था।


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नौवाँ अध्याय – मौत का सामना

नकाबपोश के साथ उसके तीन साथी भी आ गए। चारों दोस्त और पूजा फँस गए।

विक्रम (हिम्मत जुटाकर): "अगर जान प्यारी है तो हमें छोड़ दो!"
मुखिया (नकाबपोश असली चेहरा दिखाते हुए): "मैं ठाकुर रणवीर का पोता हूँ। लोग कहते हैं हवेली खूनी है, और मैंने इसी डर का इस्तेमाल किया। जो भी सच्चाई जानने आया, उसकी जान ले ली। और आज तुम सबकी बारी है।"

चारों के दिल धड़कने लगे।


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दसवाँ अध्याय – अंतिम मोड़

लेकिन तभी पुलिस की सायरन की आवाज़ गूँजी।
असल में पूजा ने मौका मिलते ही अपना मोबाइल एक्टिव किया था, जिससे लोकेशन बाहर उसके भाई तक पहुँच गई। पुलिस हवेली पहुँच चुकी थी।

पुलिस ने तस्करों को पकड़ लिया। हवेली की "खून वाली कहानियाँ" बस उनके अपराधों को छिपाने का तरीका थीं।


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उपसंहार

गाँव वालों ने राहत की साँस ली। हवेली का रहस्य उजागर हो गया।
अब वह खूनी हवेली नहीं रही, बल्कि एक सबक बन गई –
"भूत-प्रेत से नहीं, इंसान के लालच और अपराध से डरना चाहिए।"

राहुल, किरण, विक्रम, सोनिया और पूजा गाँव के हीरो बन गए।
और हवेली… अब भी वीरान खड़ी है, लेकिन इस बार सच के उजाले के साथ।


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