मैं कौन हूँ? Neha kariyaal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं कौन हूँ?

क्या आपने कभी खुद से ये सवाल किया है- "मैं कौन हूँ?"

मीरा भी ऐसे ही एक सुबह इस सवाल के साथ जागती है। बाहर की दुनिया में जवाब ढूंढती हुई, वह अपने रिश्तों, अपनों और अजनबियों से टकराती है।

लेकिन हर बार उत्तर अधूरा रह जाता है। यह कहानी है एक लड़की की उस गूढ़ तलाश की, जहाँ हर असफल उत्तर उसे अपने भीतर झाँकने को मजबूर करता है।

यह सिर्फ मीरा की नहीं- हम सब की कहानी है।

एक दिन मीरा सुबह उठकर हाथ में चाय का कप लिए बाहर आंगन में बैठी थी। तभी अचानक उसके मन में एक सवाल आया… 

मैं कौन हूँ?


एक मामूली से सवाल ने उसे बहुत परेशान किया, उसने बहुत कोशिश की लेकिन सवाल का जवाब उसे नहीं मिला।

 हर समय खुश रहने और दूसरों को हँसाने वाली मीरा अपने सवाल का जवाब न मिलने के कारण बहुत परेशान हुई।

मीरा ने सोचा शायद उसके आस पास रहने वाले लोगों को पता होगा… मैं कौन हूँ?

मीरा चुप चाप बैठी थी।

कुछ ही देर में मीरा की मां वहां आई। उन्होंने मीरा को गहरी सोच में डूबा देखकर पूछा… आज सुबह सुबह कहां खोई हो? मीरा।

मीरा ने धीरे स्वर में मां से पूछा क्या आप मेरे एक सवाल का जवाब दोगी। हां, मां ने बहुत ही सरलता से कहा।

मैं कौन हूँ? 

मां उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हुई कि ये कैसा सवाल है। लेकिन मीरा को उम्मीद थी कि उसके सवाल का जवाब उसकी मां तो जरूर देंगी। 

पर ऐसा नहीं हुआ। मां ने उसके सवाल को अनदेखा कर दिया। 

मीरा तुमने फिर से अपने ऊटपटांग सवाल शुरु कर दिए, मां ने कहा। 

मीरा बहुत निराश हुई क्योंकि ये उसके लिए कोई आसान सवाल नहीं था। उसके लिए एक जंग थी अपने आप से। 

मीरा को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था।

खुद से ही सवाल पूछना और उसके उत्तर देना।

लेकिन इस बार उसका मन पूरी तरह उलझ चुका था। किसी भी काम में उसका ध्यान नहीं लग रहा था।

उसे सिर्फ जबाव चाहिए था जो उसे बता सके कि वो कौन है?

एक दिन मीरा अपने कॉलेज शहर जा रही थी। वहीं बस अड्डे पर उसे कुछ लोग बैठे मिले।

उन सब को देख कर मीरा को लगा। शायद कोई उसे पहचान ले या फिर उसे बताए कि वो कौन है? 


कुछ देर खड़ा होने के बाद मीरा के पास एक बुजुर्ग आदमी आए। उन्होंने पूछा कि बेटी कहां जा रही हो। 

मीरा ने बहुत विनम्रता से उनको जबाव दिया। उसी बीच मीरा को पता चला कि वो बुजुर्ग उसे नहीं जानते।

मीरा उदास हो गई।

थोड़ी ही देर में बस भी आ जाती है और सभी लोग उस बस में चले जाते है। मीरा भी उसी बस में बैठी थी। 

कि तभी एक लड़की उसकी ओर देख कर मुस्कुराती है। मीरा को लगा शायद ये मुझे जानती है चलो इसी से पूछा जाए।

बहुत ही उम्मीद से मीरा उस लड़की से बात कर रही थी। बातों ही बातों में मीरा उस लड़की से पूछ लेती है।

 क्या तुम मुझे जानती हो? 

  लड़की कहती है नहीं, मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा।

उसकी बात सुनकर मीरा फिर से उदास हो गई। 

मीरा अपने कॉलेज में बहुत से लोगों और अध्यापक से मिली पर किसी को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

कॉलेज से लौटने के बाद मीरा को अपनी सहेली रेणु की याद आई। 

रेणु जो उसकी सबसे अच्छी सहेली थी, उससे मीरा अपनी सभी बातें बताया करती थी।

जब मीरा रेणु से मिलने उसके घर पहुंची। तो उसकी आंखों में एक चमक थी कि उसकी सहेली को तो जरूर पता होगा।, मैं कौन हूँ?

रेणु उसे देख कर बहुत खुश होती है, दोनों घंटों बैठ कर बातें कर रही होती है। तभी मीरा रेणु से अपनी पसंद पूछती है।

इस पर रेणु थोड़ी देर चुप रही, फिर उसने धीरे से कहा , माफ करना मुझे तो याद नहीं तुम्हें क्या पसंद है।

रेणु की बात से मीरा को बहुत दुख हुआ उसे जिस सहेली पर विश्वास था उसी को उसकी पसंद नहीं पता थी।

मीरा वहां से चुपचाप अपने घर लौट आती है।

उसने बहुत से लोगों से पूछा लेकिन उसका सवाल वही रहा। 

रात को मीरा अकेले बैठी सोच रही थी कि आखिर वो कौन है? और क्यों है?

चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा पसरा हुआ था। जहां किसी की कोई पहचान नहीं थी, सिर्फ खामोशी थी। 

और उस खामोशी में शोर था तो एक सवाल का, मैं कौन हूँ? 

 क्या में एक लड़की हूँ? , एक बेटी हूँ?, या किसी की बहन? 

 

चारों तरफ सिर्फ सवाल ही सवाल थे, उनके जवाब किसी के पास नहीं थे। 

इसी सवाल को सोचते सोचते मीरा थक कर सो गई।

अगले दिन मीरा चुप चाप आंगन में बैठी थी। तभी उसके बड़े भाई ने पूछा क्या हुआ। 

ऐसे क्यों बैठी हो?

मीरा जो सवालों से घिरी थी। वह भूल गई थी कि उसके भाई के पास भी उसके सवाल का जवाब हो सकता है।

उसने अपने भाई को बताया कि वो परेशान क्यों है। कैसे उसे अपने सवाल का उत्तर नहीं मिला।

इस पर भाई ने मुस्कुरा कर कहा– ये कोई भावात्मक जबाव से हल होने वाला सवाल नहीं है, मैं कौन हूँ? इसी में तो पूरा ब्राह्मण छिपा है।

ये एक दार्शनिक, मानसिक और आध्यात्मिक विश्लेषण चाहता है।

अगर तुम इस सवाल का जवाब ढूंढ लेती हों तो तुम खुद को महसूस कर सकती हो।

तो चलो – तर्क, अनुभूति, दर्शन तीनों से इसका उत्तर तलाशो।

और इसका जबाव भी तुम्हारे ही भीतर मिलेगा।

 दूसरों से पूछने से बेहतर है खुद से पूछा कि मैं कौन हूँ?

तो उत्तर जल्दी मिलेगा।

धीरे धीरे मीरा को समझ आ गया कि जो भाई ने जो कहा वही सच है। 

उसके सवाल में ही जबाव छुपा है। जब तक हम खुद को नहीं समझेंगे तब तक मन ऐसे ही अशांत रहेगा।

और जब हम खुद को नहीं जानते तो बाहरी लोगों से क्या उम्मीद करना।

जिस दिन खुद को जान लिया उस दिन पता चल जाएगा कि मैं

कौन हूँ? 

और उस दिन तुम खुद से पहचानी जाओगी, लोगो से नहीं।

मीरा अब समझ चुकी थी कि उसके सवाल में ही उसका जवाब है।

उसने इस बार दूसरों से नहीं खुद से पूछा।

और उसका मन अब शांत हो गया था, क्योंकि उसे पता चल गया कि वो कौन है? और क्यों है? 

कभी कभी मामूली से लगने वाले सवाल सारी दुनिया उधड़ देते हैं। और मन की बेचैनी को इतना बढ़ा देते हैं कि न सुकून मिलता है और ही उसका जवाब।

बस उलझ जाते है स्वयं मैं।

क्या आपने भी कभी अपने आप से ये पूछा है कि मैं कौन हूँ? 

नहीं पूछा तो एक बार जरूर पूछना।

उसका जवाब भी वहीं मिलेगा जैसे मीरा को मिला।

***

Neha kariyaal ✍️