काई (शैवाल का रूप) Puneet Mishra द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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काई (शैवाल का रूप)

राजीव: शैवाल की शक्ति


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अध्याय 1 – संजीव 

साल 1985, भोपाल।

तालाब किनारे सुबह की हल्की धूप में संजीव खड़ा था। हाथ में दाना लेकर वह मछलियों को खिला रहा था। पानी में उछलती मछलियाँ उसके इर्द-गिर्द खेल रही थीं। उसका चेहरा शांत था, जैसे हर रोज़ की यह प्रक्रिया उसे जीवन का सबसे बड़ा सुख देती हो।

“चलो बच्चो, आज का दाना भी सही से खाओ,” संजीव ने हँसते हुए कहा।

बच्चों की तरह मछलियाँ भी उसकी मुस्कान का जवाब दे रही थीं। तालाब के किनारे खड़े लोग उसे देखते और कहते, “संजय, यह लड़का कितना नेक है, हमेशा दूसरों की परवाह करता है।”

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उसी दिन संजीव अचानक गिर पड़ा। किसी ने समझा कि बस पैर फिसल गए हैं, लेकिन यह साधारण घटना नहीं थी। जीवन की धारा अचानक थम गई।

संजिव की मृत्यु ने न केवल उसके परिवार को बल्कि तालाब के किनारे की पूरी दुनिया को शून्य में डाल दिया। उसकी आत्मा अधूरी रह गई और उसका यह जीवन कहानी अधूरी रह गई।


अध्याय 2 –  राजीव

साल 2022, दमोह।

राजीव कुमार अपनी फार्म आर. के. मिल्क की गतिविधियों में व्यस्त था। साहीवाल गायों की देखभाल, दूध की डिलीवरी और कर्मचारियों का प्रबंधन—सब कुछ उसकी जिम्मेदारी थी।

लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसके शरीर में अजीब हलचल होती रहती थी। कभी पैर, कभी हाथ, कभी गर्दन—कोई हिस्सा सुरक्षित नहीं था।

“डॉ. सोनी, मुझे समझ में नहीं आता, ये हलचल क्यों हो रही है। कभी-कभी तो लगता है कि मेरी ही कोशिकाएँ मुझे गुदगुदी कर रही हैं,” राजीव ने चिंता से कहा।

डॉ. सोनी ने उसकी पलकें झपकाई और गंभीर स्वर में कहा,
“राजीव, यह कोई साधारण समस्या नहीं है। तुम्हें सिर्फ दवा या आराम से राहत नहीं मिलेगी। तुम्हारे भीतर कुछ अदृश्य और गहरी समस्या है।”

परिवार भी परेशान था। राजीव हमेशा बिजनेस के सिलसिले में बाहर रहता, लेकिन कभी बिना बताए घर से बाहर नहीं गया। तीन दिन से घर नहीं लौटना परिवार के लिए चिंता का कारण बन गया था।

अध्याय 3 – बाबा जी से मिलन और शक्ति का वरदान

सिंग्रामपुर का घना जंगल।

रात का अंधेरा हर ओर फैला था। केवल चाँद की हल्की रोशनी और पेड़ों के बीच झुरमुटों की हल्की झिलमिलाहट।

राजीव जंगल में गुफाओं की ओर बढ़ा। अचानक उसे एक गड्ढा दिखाई दिया, जिसमें हल्की हरी आभा उभर रही थी। शैवाल की लहरें जैसे जीवित हों और कुछ संदेश दे रही हों।

बाबा जी सामने खड़े थे, चेहरे पर गंभीरता और मुस्कान का अजीब मिश्रण।
“राजीव, तुम संजीव का पुनर्जन्म हो। अब समय आ गया है कि तुम अपनी शक्ति को पहचानो।”

राजीव ने महसूस किया कि शैवाल गड्ढे में हलचल कर रहे हैं। उसकी हथेलियों से हल्की ऊर्जा बाहर निकली और गड्ढे में फैल गई।

बाबा जी बोले,
“यह शक्ति केवल हथियार नहीं है। यह तुम्हारा कर्तव्य है। तुम इसे समझकर, नियंत्रित करके लोगों की रक्षा करोगे। अब जाओ, सागर शहर को इस अदृश्य संकट से मुक्त करो।”

राजीव ने गहरी साँस ली। अब वह केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि शक्तिशाली रक्षक बन चुका था।

अध्याय 4 – सागर की परेशानी

सागर शहर।

सड़कों पर सन्नाटा था। दुकानदार जल्दी अपने सामान बंद कर रहे थे। बच्चे घर के अंदर छिपकर रो रहे थे। हवा में हल्की हरी झिलमिलाहट।

राजीव शहर में प्रवेश किया। उसकी आँखों में हरी आभा की चमक थी।
“तुम ही इसे रोक सकते हो,” बाबा के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे।

अचानक मुख्य बाजार में हलचल बढ़ गई। लोग दौड़ते हुए बाहर निकले। अदृश्य शक्ति सामान उड़ाती, हवा में झटके देती और लोगों को डराती।

राजीव ने अपनी हथेलियाँ फैलाईं। शैवाल की शक्ति पानी और प्रकाश की लहरों में बदल गई।

सड़क पर उड़ते सामान स्थिर हो गए।

हरी रोशनी हवा में फैलकर सुरक्षा का कवच बना रही थी।

बच्चों के रोने की आवाज धीरे-धीरे गायब हो गई।


राजीव ने महसूस किया कि शक्ति उसकी सोच और आत्मबल से नियंत्रित होती है।
“मैं डर नहीं सकता। मैं लोगों को सुरक्षित करूँगा।” उसने मन ही मन कहा।

अदृश्य शक्ति ने झटका दिया, लेकिन राजीव ने शैवाल की हरी लहरें कवच की तरह फैलाकर उसे रोका।

लोग दंग रह गए। उनके सामने खड़ा युवक, चमकती हरी आभा के साथ, अदृश्य संकट को रोक रहा था।


अध्याय 5 – पहला युद्ध और वीर का उदय

राजीव ने अदृश्य शक्ति से पहली लड़ाई लड़ी।

शैवाल की शक्ति से:

उड़ते सामान और हवा नियंत्रित हुई।

बच्चों और नागरिकों को सुरक्षित किया।

अदृश्य शक्ति को पीछे हटाया।


शहर के लोग राहत की साँस लेने लगे। उनके चेहरे पर डर नहीं, बल्कि उम्मीद और विश्वास था।

लेकिन जंगल की दिशा से एक अजीब छाया उभरती दिखी। राजीव ने महसूस किया कि यह शक्ति केवल शुरुआती चुनौती थी।

“सचमुच का खतरा अभी आना बाकी है…” उसकी आँखों में गंभीरता थी।

राजीव ने देखा कि अब उसकी जिम्मेदारी केवल शहर तक सीमित नहीं थी। आने वाली खतरनाक लड़ाइयों का सामना करना उसका अगला कर्तव्य था।