त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 2 Gxpii द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 2

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श्रेयांस, एक आम इंसान की तरह दिखने वाला युवक, अपनी दादी के मरने के बाद उस हवेली में लौटता है जहाँ से बचपन में उसे दूर भेज दिया गया था। हवेली रहस्यों से भरी है, और एक अनजान पुकार उसे उसी कक्ष में ले जाती है जहाँ दादी की मौत हुई थी। दादी की राख के पास, एक जली हुई किताब और एक रहस्यमयी मुहर उसे कुछ खोलने का इशारा देती है…



अब आगे..

श्रेयांस ने जैसे ही राख के नीचे दबी उस पुरानी, जली हुई किताब को उठाया, उसकी उंगलियों में कुछ चुभ गया।

"आह!" उसने फौरन हाथ खींचा, पर तभी...

किताब की छाती पर लगे वो सुनहरा मुहर चमकने लगी — और उसके ठीक पीछे की दीवार, धीरे-धीरे कराहने लगी। दीवार पर उकेरे गए पुराने प्रतीक अब धुंध से बाहर निकलते से लग रहे थे।

श्रेयांस का लहू उस किताब पर गिरा था... और लगता था जैसे यही चाबी हो।

“ये… पहला द्वार है…”
एक रहस्यमयी स्त्री की गूंजती हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी। कोई वहाँ नहीं था, फिर भी ये आवाज़ उसके दिल की दीवारें हिला रही थी।

उस दीवार के पास जाकर उसने देखा — दीवार दरवाज़ा बन चुकी थी, और उस पर खून से लिखे अक्षर उभर आए थे:

"केवल वंशज ही खोल सकते हैं वह जो रक्षक से छिपाया गया था…"

उसका दिल तेज़ धड़क रहा था।

"मैं कौन हूं...? ये सब मेरे साथ क्यों हो रहा है?"

पर जवाब की जगह उसे एक कंपन महसूस हुई — जैसे ज़मीन के नीचे कुछ जाग रहा हो।

दरवाज़ा धीमे-धीमे खुलने लगा।
पीछे अंधकार था — ठंडी, स्याह, और सांस रोक देने वाली खामोशी से भरा।

श्रेयांस ने साँस भरी, और अंधेरे में कदम रख दिया…

और तभी...

दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया!



कहानी अब शुरू होती है।

उस गुफा जैसी सुरंग में, उसे दिखा एक दीवार पर बना चित्र —एक तीन नेत्रों वाला राक्षस, जिसके गले में वही मुहर टंगी थी जो अभी उसने किताब पर देखी थी।

और उसके नीचे लिखा था:

“जिसने पहला द्वार पार किया, वह अब सच्चाई से बच नहीं सकता।”



श्रेयांस ने दीवार छूने की कोशिश की, तभी ज़मीन काँपने लगी। गुफा में बने सारे प्रतीक लाल रोशनी से चमक उठे। और सामने से एक पत्थर हटने लगा।

पत्थर के पीछे...

एक बूढ़ा आदमी बैठा था।

"तू आ गया... श्रेयांस। बहुत देर कर दी तूने..."

Hook :

श्रेयांस चौंक गया, "तुम मुझे कैसे जानते हो?"

बूढ़े की आँखों में गहराई थी — मानो सदियों से उसे यही पल चाहिए था।

 "क्योंकि मैं ही वो हूँ जिसने तुझे इस रहस्य से बचाया था… और अब तू वापस लौट आया है। तैयार हो जा… दूसरा द्वार खुलने वाला है।"

Hook :

जिस द्वार पर अनगिनत कहानियाँ दफन थीं…
जहाँ हर दीवार ने सदियों तक एक राज़ को सीने से लगाए रखा था…
वहीं से उसकी कहानी फिर से ज़िंदा होने वाली थी।

वो दरवाज़ा, जो सालों से किसी के छूने भर से भी कांप जाता था,
आज पहली बार किसी ने उसे अपनी उंगलियों से छुआ…
और मानो किसी अदृश्य सत्ता ने साँस लेना शुरू किया।

दरवाज़े की हर दरार से जैसे किसी ने फुसफुसाकर कहा —
"सच जानना चाहते हो? तो कीमत भी चुकानी पड़ेगी..."

हवा भारी हो गई थी…
हर दीवार पर कोई नाम लिखा था… खून से या आँसुओं से, समझना मुश्किल था।
और ज़मीन पर बिखरे पड़े पुराने पत्रों में बस एक ही बात बार-बार लिखी थी —
"इस द्वार के पार जाने वाला… कभी पहले जैसा नहीं लौटता।"

वो एक द्वार नहीं था…
वो एक समय, एक श्राप, एक इतिहास था…
जिसे छूने भर से इंसान की किस्मत बदल सकती थी… या मिट सकती थी।

अब वो पहला द्वार… खुल चुका था।
और पीछे लौटने की हर राह — ख़ुद-ब-ख़ुद मिट गई थी…