त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 9 Gxpii द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 9

पिछली बार:
अनिरुद्ध ने अपने ही अंधकारमय रूप को हराकर सुनहरी शक्ति जाग्रत की।
लेकिन अद्रिका ने बताया — असली शत्रु तो अभी सामने ही नहीं आया।


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रात का रहस्य

चाँदनी रात थी।
अनिरुद्ध और अद्रिका एक पुराने किले की ओर बढ़ रहे थे, जो सदियों से खंडहर था।
कहा जाता था, वहाँ वो शक्ति छिपी है जिसने पूरे वंश को श्रापित किया था।

जैसे ही वो किले के भीतर पहुँचे, हवा भारी हो गई।
दीवारों पर काले निशान थे, जैसे किसी ने आग से उन्हें जला दिया हो।
एक गहरी गूँज सुनाई दी —
"तो आखिरकार वंशज मेरे दरवाज़े तक आ ही गया।"

अनिरुद्ध का दिल जोर से धड़कने लगा।
उसने तलवार कसकर पकड़ी।
"कौन है तू? सामने आ!"


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छाया का उदय

अचानक अंधकार की धुंध पूरे कक्ष में भर गई।
धुंध से एक विशाल आकृति बनी — लंबा कद, आँखें अंगारे जैसी, और पूरा शरीर काली छाया से बना हुआ।

वो गरजा,
"मैं हूँ छाया का स्वामी।
तेरे वंश का असली शत्रु।
तेरे पूर्वजों ने मेरी शक्ति चुराई थी, और अब… मैं उसे वापस लूँगा।"

अद्रिका डर से पीछे हटी।
उसने धीमे स्वर में कहा,
"अनिरुद्ध, यही है वो सत्ता जिसने तेरे परिवार को श्राप दिया था।
तेरे दादा, तेरे पिता… सब इसकी चालों में फँसे थे।"

अनिरुद्ध ने तिरस्कार से कहा,
"अगर तू इतना शक्तिशाली है… तो मेरे परिवार को खत्म क्यों नहीं कर पाया?"

छाया का स्वामी ठहाका मारकर हँसा,
"क्योंकि तुम्हारा वंशज… मैं ही चाहता था।
तू मेरी योजना का हिस्सा है, अनिरुद्ध।
तू वही है जो मेरी शक्ति को मुक्त करेगा।"


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भयावह सच

अनिरुद्ध चौंक गया।
"क्या बकवास कर रहा है?"

छाया का स्वामी आगे बढ़ा और उसकी आँखों में झाँका।
अचानक अनिरुद्ध की आँखों के सामने दृश्य चमकने लगे —

उसने देखा, उसका बचपन, उसकी माँ की मौत, गाँव में हुए हमले… ये सब साधारण घटनाएँ नहीं थीं।
ये सब छाया के स्वामी की योजना थी।
वो सालों से अनिरुद्ध को ढाल रहा था, उसे मजबूत बना रहा था… ताकि अंत में वही उसकी शक्ति का पात्र बन सके।

अनिरुद्ध का दिल काँप उठा।
"मतलब… मैं?"

अद्रिका ने चिल्लाकर कहा,
"अनिरुद्ध! इस पर भरोसा मत करना। ये तुझे मोहरा बना रहा है।"


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पहला सामना

छाया का स्वामी ने हाथ उठाया।
अंधकार की लहरें चारों तरफ़ फैल गईं।
पूरा कक्ष काँप उठा।

अनिरुद्ध ने सुनहरी तलवार उठाई और वार किया।
लेकिन उसकी तलवार छाया के शरीर को छूते ही धुंध में बदल गई।

वो हँसा,
"तलवार से छाया को नहीं हराया जा सकता।
अगर सचमुच लड़ना है, तो तुझे अपने भीतर की आख़िरी शक्ति खोलनी होगी।
पर याद रख… वो शक्ति खोलते ही तू मेरा हो जाएगा।"

अनिरुद्ध की साँसें तेज़ हो गईं।
"क्या ये सच है? क्या मेरी शक्ति ही मेरी हार की वजह बनेगी?"


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आशंका और निर्णय

अद्रिका ने उसका हाथ पकड़ा,
"अनिरुद्ध, सुन — शक्ति दुश्मन की नहीं होती, मन की होती है।
तू चाहे तो इस अंधकार को भी रोशनी में बदल सकता है।
बस… खुद पर भरोसा मत खो।"

अनिरुद्ध ने गहरी साँस ली।
उसकी आँखों में संकल्प चमका।
"ठीक है। अगर यही तेरी सच्चाई है… तो आज मैं तुझे ही चुनौती देता हूँ।
तेरे श्राप का अंत… मैं करूँगा।"

Hook

अब असली युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी।
अनिरुद्ध और छाया का स्वामी आमने-सामने थे —
एक ओर वो शक्ति जो सदियों से राज करती आई थी,
और दूसरी ओर वो वंशज, जिसने अपने अंधकार को स्वीकार कर सुनहरी रोशनी में बदल दिया था।

पर क्या अनिरुद्ध अपनी ही शक्ति का गुलाम बन जाएगा?
या सचमुच अपने वंश का उद्धार कर पाएगा?