त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 1 Gxpii द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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त्रिशूलगढ़: काल का अभिशाप - 1

हवा में अजीब सी घुटन थी। आसमान में बादल थे, लेकिन बिजली नहीं चमक रही थी।
सिर्फ एक बेचैनी थी — जो हर दिशा से वेद को घेर रही थी।

उसका गांव छोटा था, शांत और पहाड़ियों से घिरा हुआ।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से, वो हर रात एक ही सपना देख रहा था —
एक विशाल किला, आग से घिरा हुआ,
एक त्रिशूल जिसकी तीन नोकों से तीन रंग की लपटें निकल रही थीं —
और फिर एक आवाज़ जो उसे पुकारती थी, "वेद... समय आ गया है…"

वेद हर बार डर के मारे जाग जाता।


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"आज तुम्हारा जन्मदिन है, वेद," उसकी मां ने मुस्कराते हुए कहा,
"आज से तुम वयस्क हो गए।"

वेद ने मुस्कराने की कोशिश की, लेकिन उसका मन बेचैन था।
वो उस पुराने जलाशय की तरफ निकल पड़ा, जहाँ बचपन से जाकर अकेले बैठता था।

जैसे ही वह पत्थरों के बीच बैठा, उसकी आंखें अपने आप उस एक चट्टान पर टिक गईं —
जिस पर किसी समय कुछ उकेरा गया था, पर अब वो धुंधला हो चुका था।

उसने चट्टान के पास की मिट्टी हटाई —
और तभी ज़मीन से एक नीली रोशनी फूटी।

"ये क्या है...?" वेद चौंक गया।

उसके हाथ की अंगुली में हल्की सी खरोंच आई थी,
और जैसे ही खून निकला — वो लाल नहीं, नीला था।

वेद घबरा गया। वो पीछे हटने ही वाला था कि तभी उसकी पीठ के पीछे एक भारी और गूंजती हुई आवाज़ आई —

"नीला रक्त... त्रिशूलगढ़ की पहचान। तुम अब तैयार हो, राजकुमार वेद।"



वेद ने पलटकर देखा —
एक वृद्ध साधु खड़ा था, सफेद दाढ़ी, गेरुआ वस्त्र, और हाथ में एक त्रिशूल।

"त… तुम कौन हो?" वेद कांपती आवाज़ में बोला।

वृद्ध ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखा।

"मैं तुम्हारा रक्षक हूँ… और तुम्हें बताने आया हूँ कि अब तुम्हारी परीक्षा शुरू हो चुकी है।"




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वेद कुछ समझ नहीं पा रहा था।
"कौन सी परीक्षा? ये नीला खून क्यों है? आप मुझे राजकुमार क्यों कह रहे हैं?"

साधु ने आसमान की तरफ देखा —
बादलों के बीच एक तेज़ चमक हुई, और एक क्षण को वेद की हथेली पर तीन चिन्ह उभर आए।

अग्नि। वायु। जल।

"ये मुहरें तुम्हारी पहचान हैं।" साधु बोला।
"तुम त्रिशूलगढ़ के अंतिम वारिस हो। और तुम्हारे भीतर तीनों तत्वों की शक्ति है।"



वेद पीछे हट गया।
"मुझे कुछ नहीं पता, मैं कोई योद्धा नहीं हूं… मैं तो बस एक सामान्य लड़का हूं…"

साधु की आंखें गहरी थीं।

> "तुम सामान्य नहीं हो, वेद।
तुम्हारा जन्म ही असामान्य परिस्थितियों में हुआ था।
तुम्हारी मां तुम्हें लेकर उस दिन भागी थीं… जिस दिन त्रिशूलगढ़ पर काल का अभिशाप टूटा था।"



"म… मेरी मां? उन्हें पता है ये सब?"

> "उन्हें सब पता है। और अब समय आ गया है कि तुम भी जानो कि तुम कौन हो।"




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वेद के मन में सवालों का तूफान था।
लेकिन उससे पहले कि वह कुछ पूछ पाता,
धरती हिलने लगी —
जैसे कोई प्राचीन शक्ति जाग गई हो।

जलाशय के केंद्र से एक गोल रोशनी उठने लगी —
और उसके ठीक मध्य में वेद का नाम उभर आया… "वेद", अग्निलिपि में चमकता हुआ।


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 एपिसोड का अंत (Hook Ending):

त्रिशूलगढ़ जाग चुका था।
अभिशाप फिर से फैलने लगा था।
और वेद के पास अब सिर्फ एक रास्ता बचा था —
अपनी पहचान स्वीकार करना…
या सब कुछ खो देना।
 क्या होगा आगे अब क्या लगता हैं आप लोगों को