भय की मूरत: माँ Vedant Kana द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भय की मूरत: माँ

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“जिस दिन माँ ने हँसना बंद कर दिया, उस दिन से इस घर में रोशनी भी डर के मारे छिप गई।”

बिहार के एक छोटे से गांव चंदापुर के बाहरी छोर पर एक टूटा-फूटा, खंडहरनुमा हवेलीनुमा घर था—जिसे लोग "दुःखिनी माँ का घर" कहते थे। वहां कोई नहीं रहता था। रात में उसके पास से गुजरने वाले कहते कि कोई औरत ज़ोर-ज़ोर से किसी को पुकारती है, कभी हँसती है, तो कभी ज़मीन पर रेंगते हुए दिखती है।

इस गांव में 20 साल बाद लौटा विवेक, जो अब एक प्रसिद्ध यूट्यूबर बन चुका था। उसका चैनल “Real Ghost Expeditions” पर वो भारत के हर कोने में जाकर भूतिया कहानियाँ रिकॉर्ड करता था। जब उसे अपने ही गांव में मौजूद इस “माँ के भूत” की कहानी का पता चला, तो उसने ठान लिया कि वो इस हवेली में रात गुजारेगा। लेकिन इस बार की कहानी, उसकी आख़िरी बन जाएगी—उसे इस बात का अंदाज़ा नहीं था।

जब विवेक पहली बार कैमरा लेकर उस घर के अंदर घुसा, दरवाज़ा खुद से खुल गया। हवा एकदम ठंडी हो गई थी, जबकि बाहर गर्मी थी। दीवारों पर जले हुए हाथों के निशान थे, जैसे कोई दीवार में समा जाने की कोशिश करता रहा हो।

कमरों में बिखरे हुए खिलौने, अधजले झूले, और टूटी तस्वीरें थीं जिनमें एक महिला और एक बच्चा थे—शायद वही “माँ” और उसका बेटा।

रसोई में चूल्हा जला हुआ था… लेकिन कोई नहीं था।

"ये जगह जिंदा है," विवेक ने बुदबुदाया और कैमरा ऑन कर दिया।

रात के एक बजे के आसपास, विवेक को पहली बार एक आवाज़ सुनाई दी:
“राजू… रा-जू…”

ये आवाज़ किसी माँ की थी, जो अपने बच्चे को पुकार रही थी। वह आवाज़ गूंज रही थी, जैसे कोई सुरंग में बोल रहा हो।

तभी उसका कैमरा ऑफ हो गया। मोबाइल नेटवर्क चला गया। दरवाज़े अपने आप बंद हो गए।

"कौन है?" विवेक चिल्लाया।

दीवार पर किसी ने खून से लिखा था:
“राजू को मेरी गोद से छीना गया… अब हर बच्चा मेरा है।”

दूसरे दिन सुबह गांव की एक बूढ़ी औरत शांति दादी ने विवेक को इस भयानक माँ की सच्चाई बताई।

20 साल पहले, अनामिका नाम की औरत अपने बेटे राजू के साथ इस हवेली में रहती थी। उसका पति शराबी था, और एक दिन गुस्से में आकर उसने राजू को जला डाला। अनामिका ने उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। राजू की चीखें हवेली में गूंजती रहीं।

उस रात अनामिका ने खुद को उसी चूल्हे में जला लिया—जिसमें राजू जला था।

मरने से पहले वो चीखी:
“माँ की गोद से बच्चा छीना गया है, अब ये घर हर बच्चे को मेरी गोद में लाएगा… जो भी मेरी पीड़ा को नहीं समझेगा, वो खुद पीड़ा बन जाएगा।”

विवेक अब रोज़ रात उस घर में रहकर वीडियो शूट करता। पर हर रात वो किसी और वक़्त में पहुंच जाता था। दीवारों पर “राजू” हँसते हुए दिखता, कभी-कभी वह खुद को बच्चा समझने लगता।

उसे लगता कि कोई उसके सिर में बात कर रहा है—“तू मेरा बेटा बन जा…”

एक रात विवेक का खुद पर नियंत्रण खो गया। वो कैमरे के सामने खड़ा होकर बोला:
“मैं राजू हूँ… माँ… मैं आ गया…”

घर में अब चीजें बदलने लगी थीं। ज़मीन से हड्डियाँ बाहर आने लगीं, पंखे उल्टे घूमते, शीशे में विवेक की जगह किसी और औरत की परछाईं दिखती।

रात में विवेक ने एक नज़ारा देखा जिसे वो कभी नहीं भूल सका—रसोई में एक जली हुई औरत, जिसके गोद में अधजला बच्चा था, रोटियाँ बेल रही थी और गा रही थी:
“सो जा राजू… अब कोई तुझसे नहीं छीनेगा…”

फिर वो एकदम से घूमी और बोली:
“अब तू मेरा बेटा बन जा…”

विवेक ने ठान लिया कि वह आखिरी वीडियो शूट कर गांव छोड़ देगा। लेकिन उस रात, हवेली ने उसे जाने नहीं दिया।

कमरे बदलते रहे, दीवारें सिकुड़ती गईं, खिड़कियाँ लोहे के पिंजरे में बदल गईं। हर दिशा में "माँ" की आवाज़ गूंजने लगी।
"राजू…! तू भाग नहीं सकता…"

विवेक ने खिड़की से कूदने की कोशिश की, लेकिन ज़मीन पर जले हुए बच्चे उसे खींचने लगे।

तभी एक दरवाज़ा खुला—उसमें एक झूला था, और अनामिका झूले पर बैठी थी।

“बैठ जा बेटा… मेरी गोद में।”

सुबह गाँव वालों ने देखा कि हवेली से धुआँ निकल रहा है।

विवेक का कैमरा घर के बाहर पड़ा था, और उसमें रिकॉर्डिंग थी। वीडियो में सिर्फ एक आखिरी सीन था—विवेक, माँ की गोद में झूले पर बैठा मुस्कुरा रहा था।

पर उसकी आंखें एकदम खाली थीं… बेजान।

गांव वालों ने उस दिन के बाद हवेली को दोबारा सील कर दिया।

पर एक नया झूला गाँव की पेड़ के नीचे दिखाई देने लगा है। उसमें कभी-कभी एक औरत झूलती दिखती है—और उसके सामने बैठा होता है एक अधजला बच्चा।

एक हफ्ते बाद, विवेक का चैनल अपने आप एक्टिव हो गया।

नया वीडियो अपलोड हुआ:

"माँ की गोद में सुरक्षित हूँ। अब हर बच्चा यहीं आएगा। अगला नाम तुम्हारा है…"

नीचे कमेंट सेक्शन में बस एक नाम लिखा था: "तुम..."

क्या आप अगली बार "माँ" से मिलना चाहेंगे?
अगर हाँ, तो अगली रात जब आपकी माँ आपको बुलाए… दो बार सोचिएगा।

“अब वह सिर्फ एक आत्मा नहीं… एक माँ की आत्मा है, जो अपनी ममता में पागल हो चुकी है।”

7 दिन बाद
दिल्ली में आरव नाम का एक 22 वर्षीय लड़का अपने लैपटॉप पर यूट्यूब चला रहा था। वह हॉरर वीडियो का बड़ा शौक़ीन था। अचानक उसके सामने एक वीडियो Auto-Play हुआ — "माँ की गोद में सुरक्षित हूँ। अगला नाम तुम्हारा है..."

वीडियो के आखिर में किसी ने कमेंट किया था:
“तुम…”

आरव ने मजाक समझकर कमेंट किया — "मैं?"

बस इतनी सी बात ने उस रात आरव की ज़िंदगी बदल दी।

रात 2:03 बजे उसके कमरे की लाइट झपकने लगी। उसके लैपटॉप स्क्रीन पर धुंधले से शब्द उभरे:
“राजू…”

तभी स्क्रीन से एक हाथ बाहर आया। जला हुआ, झुलसा हुआ, लेकिन उसमें एक मातृत्व की पकड़ थी।

आरव चिल्लाया और पीछे गिर पड़ा। तभी उस हाथ ने सिर्फ़ एक चीज़ फुसफुसाई:
"तू तो मेरा बच्चा है न?"

माँ अब हवेली में क़ैद नहीं थी। विवेक की आत्मा ने उसे डिजिटल दुनिया से जोड़ दिया था।

अब जो भी उस वीडियो को देखता…
जो भी "तुम" पर क्लिक करता…
वो धीरे-धीरे उसकी दुनिया में खिंच जाता।

आरव ने अगले दिन देखा — उसका फेस कैमरा अपने-आप ऑन हो जाता था। लैपटॉप से lullaby बजता:
"सो जा बेटा… माँ आ गई है…"

आरव को अब सपनों में वही घर दिखता था—वो ही हवेली, वही झूला, और वही माँ।

हर रात वो उस झूले पर बैठा होता, और अनामिका उसे झुला रही होती। उसकी आंखें झुलस चुकी थीं, लेकिन होंठों पर हल्की सी मुस्कान होती।

आरव अब धीरे-धीरे खुद को राजू समझने लगा था। उसे अपनी असली माँ की याद नहीं आती थी। बस एक आवाज़ आती—
"तू ही मेरा राजू है… बाकियों को लाओ… माँ का घर अब खाली नहीं रहेगा…"

आरव ने एक यूट्यूब लाइव रखा —
“भूत की वीडियो देखने वालों के साथ क्या होता है?”

वीडियो वायरल हुआ। लाखों लोगों ने देखा। हर किसी के कमेंट में एक ही जवाब आता:
“तुम…”

भारत भर में रिपोर्ट आने लगी—लोगों की आंखों में जलन, झूला झूलते बच्चे, या स्क्रीन के अंदर से आते हाथ।

लोगों को लगता ये PR stunt है… पर फिर धीरे-धीरे मौतें शुरू हो गईं।

एक साइबर एक्सपर्ट समीरा को शक हुआ। उसने विवेक के चैनल का डेटा ट्रेस किया। लेकिन चैनल अब dark web पर एक्टिव था। जो कोई भी उस सर्वर को एक्सेस करता—उसके सिस्टम से एक lullaby सुनाई देती:

"माँ की गोद में आ जाओ बेटा…"

समीरा ने हवेली की पूरी फाइल निकाली। एक चौंकाने वाली बात सामने आई:

अनामिका ने मरने से पहले एक अंतिम वाक्य कहा था —
"जिसने मेरे राजू को छीना, वो सभी माँ के हो जाएंगे।"

अब केवल एक ही रास्ता था—आरव को खुद वापस उस हवेली में जाना होगा, और उस आत्मा से आमने-सामने मिलकर उसे रोकना होगा।

आरव ने समीरा और अपने दो दोस्तों के साथ कैमरा ऑन किया और फिर चंदापुर पहुंच गया।

दरवाज़ा पहले से खुला था। लेकिन हवेली अब बदल चुकी थी।

अब वो एक "भूतों का डिजिटल श्मशान" बन गई थी।

दीवारों पर QR कोड बने थे, जिनमें राजू की तस्वीरें थीं। दीवारें स्क्रीन में बदल चुकी थीं।
हर दीवार पर वीडियो चल रहा था—लोग माँ की गोद में मरते हुए।

आरव झूले तक पहुंचा।

अनामिका वहां बैठी थी।
उसने कहा:
“राजू… तू आ गया।”

आरव बोला: "मैं राजू नहीं हूँ।"

माँ चिल्लाई:
"झूठ! तू ही है! तुझे इस दुनिया में अब कोई नहीं चाहता… सिर्फ माँ!"

सारी हवेली हिलने लगी। समीरा और बाकी दोस्त गायब हो गए। मोबाइल जलने लगे। कैमरे बंद हो गए।

माँ ने आरव को झूले पर बिठाया, और धीरे से बोली:

“अब कभी कोई तुझे नहीं छोड़ेगा… मेरी गोद में सो जा।”

सुबह गांव वालों को हवेली के बाहर एक नया QR कोड मिला। जब स्कैन किया, तो उसमें एक वीडियो था:

आरव झूले पर बैठा, मुस्कुरा रहा था। उसके बगल में जली हुई अनामिका थी।

और बैकग्राउंड में आवाज़:
"माँ की गोद में सुरक्षित हूँ। अगला नाम तुम्हारा है…"

उस दिन से वो वीडियो खुद-ब-खुद लोगों के मोबाइल पर आने लगी।

अगर तुमने अब तक यह कहानी पढ़ ली है…

तो शायद…

"अगला नाम तुम्हारा है…"