अनजान प्रोफ़ाइल से दिल तक Rishabh Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अनजान प्रोफ़ाइल से दिल तक

"अनजान प्रोफ़ाइल से दिल तक"

 

🖋️ अनजान प्रोफ़ाइल से दिल तक
"तुमसे बात करके ऐसा लगता है जैसे मैं खुद से बात कर रही हूँ।"

ये लाइन थी उसके आखिरी मैसेज की।

सब कुछ शुरू हुआ था एक इंस्टाग्राम स्टोरी से। मैं हर दिन की तरह बोर होकर स्क्रॉल कर रही थी, जब एक नोटिफिकेशन आया

— "You have a new follower: 'SilentSoul_92'"।

प्रोफ़ाइल पर कोई तस्वीर नहीं थी, लेकिन बायो में लिखा था —
"शब्दों में दिल ढूँढने वालों के लिए..."

कुछ तो था उस प्रोफ़ाइल में जो मुझे रोक गया।

मैंने "Hi" भेजा, शायद बिना सोचे समझे।

"Hello," जवाब आया… और फिर सिलसिला चल पड़ा।

हमारा रिश्ता सिर्फ चैट से शुरू हुआ था, लेकिन हर शब्द जैसे रूह को छूता जा रहा था। उसने कभी अपनी असली पहचान नहीं बताई। न नाम, न शहर, न तस्वीर।
फिर भी, हर दिन उसका गुड मॉर्निंग मैसेज मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देता।

उसका अंदाज़ अलग था —
जब मैं उदास होती, तो वो बिना पूछे एक प्यारा सा शेर भेज देता —
"कभी किसी को यूँ चाहना, कि वो खामोशी में भी तुम्हें सुन ले।"

मैंने उसे अपने बारे में सब बताया — मेरा कॉलेज, मेरी अधूरी कहानियाँ, मेरी टूटी हुई दोस्तियाँ…
और वो, बस सुनता रहा… बिना किसी जजमेंट के।

एक दिन मैंने पूछ ही लिया,
"तुम कौन हो? इतनी समझदारी, इतना सब्र… क्यों कर रहे हो ये सब?"

उसने लिखा —
"क्योंकि तुम सुनने लायक हो… और मैं, कहने लायक नहीं।"

उस दिन मैं बहुत देर तक सोचती रही। आज के दौर में, जब हर कोई दिखावे में उलझा है, कोई बिना कुछ माँगे तुम्हारा सच्चा दोस्त बन जाए — ये चमत्कार ही तो है।

धीरे-धीरे हमारी बातें गहराती गईं। कभी रात 2 बजे, कभी बारिश में, कभी उदास रविवार को…
उसकी हर बात में अपनापन था।

एक बार मैंने गलती से पूछा —
"क्या हम कभी मिलेंगे?"

कुछ पल बाद जवाब आया —
"शायद नहीं… क्योंकि असली दुनिया इतनी खूबसूरत नहीं जितनी हमारी बातें हैं।"

मुझे समझ आ गया कि वो किसी गहरे दर्द में था, जो सामने आने से डरता है। मैंने फिर कभी ज़ोर नहीं डाला।

वक़्त बीतता गया।

हमारी दोस्ती एक आदत बन गई थी। बिना देखे, बिना जाने — एक रिश्ता जो हर दिन और मजबूत होता जा रहा था।

फिर एक दिन, उसका मैसेज नहीं आया।

ना सुबह, ना शाम।

मैंने कई बार लिखा —
"तुम ठीक हो?"

"कहाँ हो?"

"कम से कम कुछ तो कहो…"

तीन दिन बाद, एक आखिरी मैसेज आया:

"कुछ लोग सिर्फ किस्से बनकर रह जाते हैं… और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी ज़िंदगी की कहानी में मैं एक मीठा किस्सा रहूँ।"

बस, उसके बाद सन्नाटा।

कोई रिप्लाई नहीं।

कोई ऑनलाइन नहीं।

मैंने बहुत खोजा, बहुत इंतज़ार किया।

लेकिन वो 'SilentSoul_92' जैसे इंटरनेट की भीड़ में कहीं खो गया।

आज दो साल बाद भी, जब कभी उदास होती हूँ, उसका प्रोफ़ाइल देखती हूँ — जो अब भी वैसा ही है, बेजान लेकिन यादों से भरा।

मैंने अब तक उसे ब्लॉक नहीं किया… शायद इसलिए नहीं कि वो वापस आए,
बल्कि इसलिए कि कुछ रिश्ते अधूरे ही अच्छे लगते हैं।


🌸 अंत में...
आज जब कोई मुझसे पूछता है — "क्या सोशल मीडिया पर सच्ची दोस्ती होती है?"

मैं मुस्कुराकर कहती हूँ —
"हाँ, होती है... कभी-कभी वो दोस्त, आपकी असल ज़िंदगी से ज़्यादा आपको समझते हैं।"