किन्नर की आत्मा का कहर Katha kunal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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किन्नर की आत्मा का कहर

 यह कहानी तीन दोस्तों की है, जो पठानकोट के एक हॉस्टल में रहते थे। जिस कॉलेज में वे पढ़ते थे, वह एक बेहद प्रतिष्ठित और अमीरों का कॉलेज था, जहाँ केवल धनवान घरों के बच्चे ही पढ़ने आते थे।

 

कुनाल, उस कॉलेज का सबसे अमीर छात्र माना जाता था। उसके तीन खास दोस्त थे — कुनाल, उदय और विनीत।

कुनाल को हमेशा घूमने-फिरने और बाहर खाने-पीने का शौक था। वह अपने दोस्तों के साथ अक्सर कहीं न कहीं निकल जाया करता था। कुनाल की आदत थी एक अगर उसका कोई भी काम करने का दिल करे तो वो उसको करके ही छोड़ता था चाहे फिर जो भी हो जाए

 

लेकिन अब वह इन सब बातों से ऊब चुका था। उसके मन में कुछ नया, कुछ रोमांचक करने की इच्छा जागी।

एक दिन उसने हर्ष और उदय से कहा, "आज रात हम बाहर घूमने चलेंगे।"

 

विनीत ने उन्हें मना किया, "ऐसा मत करो। यहाँ रात को आत्माएं भटकती हैं। अब तक जो भी रात में बाहर गया, या तो लौट कर नहीं आया या अगली सुबह नहीं देखी।"

कुनाल हँसते हुए बोला, "अबे छोटे, तू यहीं रह। हम चलते हैं।"

तीनों हँसते हुए निकल पड़े।

 

अगली रात, कुनाल ने ₹1000 का सामान खरीदा और तीनों बाइक पर निकल पड़े।

कुनाल बाइक चला रहा था, लेकिन उसे लगा जैसे बाइक वह नहीं कोई और चला रहा हो।

उसने हैंडल छोड़ दिया, और बाइक अपने आप श्मशान की ओर मुड़ गई।

पीछे बैठे दोस्तों को लगा कि वह मज़ाक कर रहा है, लेकिन यह मज़ाक नहीं, सच्चाई थी।

 

श्मशान में एक आधी जली हुई लाश पड़ी थी, जो एक किन्नर की थी।

कुनाल ने मज़ाक में उस लाश पर पेशाब कर दिया।

फिर बिना कुछ कहे वह श्मशान के पीछे चला गया।

 

उदय और हर्ष को लगा वह कोई शरारत कर रहा है या कुछ खास करना चाहता है।

हर्ष को महसूस हुआ जैसे कोई किन्नर उसके पीछे ताली मार रहा हो।

उसने उदय से पूछा, "क्या तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है?"

उदय बोला, "नहीं, मुझे तो कुछ नहीं सुनाई दिया।"

 

फिर हर्ष उस आवाज़ के पीछे गया और देखा — कुनाल ज़मीन पर पड़ा था, उसका शरीर जला हुआ था, जैसे उस किन्नर की लाश जली थी।

यह देखकर हर्ष के मुँह से आवाज़ नहीं निकली, वह बेहोश होने को था।

 

तभी उसने देखा — सामने एक नग्न किन्नर बैठा था, और उसके पास कुनाल का टूटा हुआ हाथ पड़ा था।

उस किन्नर ने न सिर्फ हर्ष की ज़ुबान बंद कर दी, बल्कि उसे उल्टा पेड़ पर लटकाकर उसकी गर्दन भी काट दी।

 

उधर उदय, जो इन सबसे अनजान था, खाने-पीने में लगा था।

तभी उसे ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो, "मुझे भूख लगी है..."

उसने देखा — एक औरत उससे कुछ खाने को माँग रही थी।

जैसे ही उसने कुछ निकालने की कोशिश की, उसकी गर्दन काट दी गई और बहुत दूर जा गिरी।

 

तीनों दोस्तों की ज़िंदगी यहीं खत्म हो गई।

 

तभी श्मशान में एक डरावनी आवाज़ गूँजने लगी —

"मुझे पूरा जलाओ... मुझे पूरा जलाओ..."

 

रात खत्म हुई, और विनीत, अपने तीनों दोस्तों की चिता को अग्नि देते हुए बोला —

"काश तुम लोगों ने मेरी बात मान ली होती..."